Wednesday, March 31, 2010

Terror War (9/11/26/11) vs Cyber War

कितने दोस्तों के ई-मेल हैं आपके पास? कितने मीडिया पर्सन्स को जानते हैं आप? कितनी न्यूज़ एजेंसियों से संबंध है आपका? देखिए तो ज़रा अपने सेलफोन (मोबाइल) के कान्टेक्टस और इनबाक्स में जाकर, कितने लोगों के मोबाइल नम्बर हैं आपके पास? हां भई हां! मैं कोई ऐसी बात कहने जा रहा हूं, जो आप जानते तो हैं मगर किसी से कहते नहीं हैं। मगर अब कह सकेंगे, इसलिए कि मैं कह रहा हूं आपका अपना अज़ीज़ बर्नी और मेरे हवाले से जब यह बात आप कहेंगे तो न आप पर कोई आंच आएगी और न कोई आपसे यह कहेगा कि ज़रा धीरे बोलो, कोई सुन लेगा तो....
जाने दीजिए भाई! अंजाम तो सबका एक ही होता है चाहे डर-डर के जियें, चाहे निडर हो कर। तो सुनिये! यह कोई सच न सही सिर्फ अनुमान ही सही, मगर सच्चाई तक पहुंचने की कोशिश करेंगे तो मेरी बात बेमानी बिलकुल नहीं लगेगी। कोई आंतकवादी हमला नहीं था, 9/11 के नाम से जिसे मशहूर किया गया। यह सब मास्टर प्लान था अमेरिका का। दरअस्ल सारी दूनिया पर राज करने का सपना इसी तरह पूरा हो सकता था। आतंकवाद के विरूद्ध जंग और अपने जंगी हथियारों का प्रयोग करने का एक ऐसा तरीक़ा था यह, जिसका तर्क स्वयं अमेरिका ने पैदा किया। यह अलक़ायदा, लश्कर-ए-तैयबा, तालिबान जैसे आतंकवादी संगठन कुछ नहीं हैं, सिवाय इसके कि यह सी.आई.ए के ही घटक हैं, जिसे उसने मुस्लिम नामों के साथ अपनी कार्यवाही को जारी रखने के लिए क़ायम किया है। जिसका दिल चाहे मेरी इन बातों को कोरी बकवास समझे, जिसका दिल चाहे उन्हें सच्चाई समझे। मैंने अपने अख़बार के अतिरिक्त अपनी वेबसाइट शुरू करने का फैसला इसीलिए तो किया है कि जो बात अख़बार की ज़बान में कहने में महीनों लगते हैं, उसे अपनी वेबसाइट के द्वारा जब दिल चाहे चंद जुमलों में सारी दुनिया तक पहुंचा दिया जाए।
9/11 न होता तो अफ़ग़ानिस्तान तबाह न होता... ईराक़ तबाह न होता... सद्दाम हुसैन को फांसी न होती... पाकिस्तान आतंकवाद का शिकार न होता... ईरान पर जंग के बादल न होते... हिन्दुस्तान में बम धमाके न होते... गृहयुद्ध का बहाना न होता। यह सब नहीं होता तो अमेरिका का क्या होता... कौन पूछता उसे...? कैसे बिकते हथियार...? इस्राईल में स्थापित किए हुए तौपख़ाने का क्या होता...? फ़लस्तीन के विरूद्ध प्रयोग होने वाले जंगी हथियारों की नुमाइश कैसे होती...? पूरी दुनिया में इन हथियारों को बेचने के लिए आर्डर कैसे मिलते...? अब कौन सा हथियार कितना ख़तरनाक है, किस देश को अपनी रक्षा प्रणाली को मज़बूत बनाने के लिए अमेरिका का कौन सा मिज़ाइल चाहिए, इसका फैसला कैसे होगा...? अफ़ग़ानिस्तान और ईराक़ के ख़िलाफ इस्तेमाल किए गए जंगी हथियारों के फूटेज से... मासूम इंसानों की लाशों के चीथड़ों से... आपकी आंखों में आंसू आ सकते हैं, आपका दिल रो सकता है, आप सिर पकड़ कर बैठ सकते हैं, मगर जिन्हें पूरी दुनिया पर शासन का जनून सवार होता है, उनमें ऐसे नैरो भी होते हैं कि जब रोम जल रहा हो वह बांसरी बजाते रह सकते हैं और ऐसे बुश भी होते हैं कि जब न्यूयार्क की ईमारतें ढ़ह रही हों तो वह बच्चों को बकरी की कहानी सुना रहे हों।
मैं नहीं करता ज़िक्र अफ़ग़ानिस्तान और ईराक़ की तबाही का। मुझे नहीं होती चिंता पाकिस्तान के तबाह हो जाने की, मैं संतुष्ट रहता ईरान के भविष्य को लेकर, अगर आंच मेरे दरवाज़े तक न पहुंची होती। अगर ख़तरा मेरे देश हिन्दुस्तान पर न होता। हो सकता है मैंने अकेले इस जंग की शुरूआत की हो। मैं गांधी के आदर्शो पर चलने वाला एक ऐसा हिन्दुस्तानी बन गया हूं, जिसे अंग्रेज़ों से डर नहीं लगता। हो सकता है मेरे अंदर सुभाष चंद्र बोस की आत्मा समा गई हो, इसलिए मैंने अपने क़लम को पिस्तौल के अंदाज़ में चलाना शुरू कर दिया हो। हो सकता है मैं शहीद भगत सिंह की तरह अपने गले के लिए फांसी का फंदा तैयार कर रहा हूं और यह भी हो सकता है कि मैं अलहिलाल और अलबलाग़ के एडीटर मौलाना अबुलकलाम आज़ाद के इतिहास को दोहराने की कोशिश कर रहा हूं।
आप जो चाहें समझें, मगर मुझे लगता है 26/11, न्यूयार्क के 9/11 से अलग नहीं था। दोनों का मास्टर माइंड एक... दोनों की प्लानिग का मक़सद एक... बस आंतकवादी प्रक्रिया का तरीक़ा अलग-अलग। 9/11 का मक़सद अफ़ग़ानिस्तान और ईराक़ की तबाही के साथ इस्लामी दुनिया को यह पैग़ाम देना कि हमारे जूते के नीचे रहो, वरना सद्दाम की तरह मौत के घाट उतार दिए जाओगे। वह तो भला हो मुंतज़िर ज़ैदी जैसे पत्रकार का, जिसने अपने जूते से इस पैग़ाम को बदल दिया और 26/11 का मक़सद था पाकिस्तान पर आरोप लगाना... हिन्दुस्तान को पाकिस्तान पर जंग के लिए उकसाना... हिन्दुस्तान में गृहयुद्ध का वातावरण बनाना। पहले हिन्दुस्तान जैसे शक्तिशाली देश द्वारा पाकिस्तान की तबाही, फिर कमज़ोर हो चुके हिन्दुस्तान पर सऊदी अरब, ईराक़ और अफ़ग़ानिस्तान की तरह मूसल्लत हो जाना।
कहानी बेसिर पैर की नहीं। बस फर्क़ इतना है कि मैंने क्लिाइमेक्स से शुरूआत की है। इंतज़ार कीजिए जल्द ही फ्लेश-बेक के साथ इसका आरम्भ करने जा रहा हूं, फिर आपको हर सीन में सच्चाई की एक झलक मिलेगी। कड़ियां इस तरह जुड़ती चली जाऐंगी कि आपको कुछ भी अजीब नहीं लगेगा। दुआ कीजिए, आख़िरी सीन लिखने तक मेरे इस लिखने का सिलसिला न टूटे और हां आपके पढ़ने का भी। हो सकता है परवरदिगार-ए-आलम ने यही तय किया हो कि इंसान दुश्मन ताक़तों को सबक़ सिखाने का ज़रिया अब जंग के मैदान की बजाय यह साइबर वार (Cyber War) ही हो, इसलिए काग़ज़ और क़लम के साथ-साथ मैं इंटरनेट की दुनिया में भी चला आया हूं। आप सबके सहयोग का भरोसा जो है।

Terror War (9/11/26/11) vs Cyber War

کتنے دوستوں کے ای میل (E-mail)ہیں آپ کے پاس ؟ کتنے میڈیا پرسنس (Media Persons)کو جانتے ہیں آپ؟ کتنی نیوز ایجنسیوں سے رابطہ ہے آپ کا؟ دیکھئے تو ذرا اپنے سیل فونس (Cell Phones)کے کونٹیکٹسContacts) اور Inboxمیں جا کر ،کتنے لوگوں کے موبائل نمبر ہیں آپ کے پاس؟ ہاں بھئی ہاں! میں کوئی ایسی بات کہنے جا رہا ہوں، جو آپ جانتے تو ہیں مگر کسی سے کہتے نہیںہیں۔پر اب کہہ سکیں گے ،اس لئے کہ میں کہہ رہا ہوں آپ کا اپنا عزیز برنی اور میرے حوالے سے جب یہ بات آپ کہیں گے تو نہ آپ پر کوئی آنچ آئے گی اور نہ کوئی آپ سے یہ کہے گا کہ ذرا آہستہ بولو،کوئی سن لے گا تو..........
جانے دیجئے بھائی! انجام تو سب کا ایک ہی ہوتا ہے چاہے ڈر ڈر کے جئیں،چاہے نڈر ہو کر۔تو سنئے! یہ کوئی سچ نہ سہی محض قیاس آرائی ہی سہی،پر حقیقت تک پہنچنے کی کوشش کریں گے تو میری بات بے ایمانی قطعاً نہیں لگے گی۔
کوئی دہشت گردانہ حملہ نہیں تھا،/11کے نام سے جسے مشہور کیا گیا۔یہ سب ماسٹر پلان تھاامریکہ کا۔دراصل ساری دنیا پر حکومت کرنے کا خواب اسی طرح پورا ہو سکتا تھا۔دہشت گردی کے خلاف جنگ اور اپنے جنگی ہتھیاروں کا استعمال کرنے کا ایک ایسا طریقہ تھا یہ، جس کا جواز خودامریکہ نے پیدا کیا۔یہ القائدہ، لشکر طیبہ، طالبان جیسی دہشت گرد تنظیمیں کچھ نہیںہیں، سوائے اس کے کہ یہ سی آئی اے کے آئوٹ فٹس ہیں،جسے اس نے مسلم ناموں کے ساتھ اپنی کارروائیوں کو جاری رکھنے کے لئے قائم کیا ہے۔جس کا دل چاہے میری ان باتوں کو کوری بکواس سمجھے،جس کا دل چاہے انھیں حقیقت سمجھیں۔میں نے اپنے اخبار کے علاوہ اپنی ویب سائٹ شروع کرنے کا فیصلہ اسی لئے توکیا ہے کہ جو بات اخبار کی زبان میں کہنے میں مہینوں لگتے ہیں، اسے اپنی ویب سائٹ کے ذریعہ جب دل چاہے چند جملوں میں ساری دنیا تک پہنچا دیا جائے۔
9/11نہ ہوتا تو افغانستان تباہ نہ ہوتا............عراق تباہ نہ ہوتا ............صدام حسین کو پھانسی نہ ہوتی............یہ سب نہ ہوتا تو پاکستان کی زمین استعمال نہ ہوتی..........پاکستان دہشت گردی کا شکار نہ ہوتا................ایران پر جنگ کے بادل نہ ہوتے............ہندوستان میں بم دھماکے نہ ہوتے ...........خانہ جنگی کا بہانہ نہ ہوتا۔یہ سب نہیں ہوتا تو امریکہ کا کیا ہوتا.............کون پوچھتا اسے ..........؟ کیسے بکتے ہتھیار .........؟ اسرائیل میں اس کے قائم کردہ توپ خانے کا کیا ہوتا...........؟فلسطین کے خلاف استعمال ہونے والے جنگی ہتھیاروں کی نمائش کیسے ہوتی...........؟ پوری دنیا میں ان ہتھیاروں کی فروخت کے لئے آرڈر کیسے ملتے ............؟ اب کون سا ہتھیار کتنا خطر ناک ہے،کس ملک کو اپنے دفاعی نظام کو مضبوط بنانے کے لئے امریکہ کا کون سا میزائل چاہئے، اس کا فیصلہ کیسے ہوگا...........؟افغانستان اور عراق کے خلاف استعمال کئے گئے جنگی ہتھیاروں کے فوٹیج سے.............. معصوم انسانوں کی لاشوں کی چیتھڑوں سے ............آپ کی آنکھوں میں آنسو آ سکتے ہیں،آپ کا دل رو سکتا ہے ، آپ سر پکڑ کر بیٹھ سکتے ہیں،مگر جنھیں پوری دنیا پر حکومت کا جنون سوار ہوتا ہے،ان میں ایسے نیرو بھی ہوتے ہیں کہ جب روم جل رہا ہو وہ بانسری بجاتے رہ سکتے ہیں اور ایسے بش بھی ہوتے ہیں کہ جب نیو یارک کی عمارتیں زمین دوز ہو رہی ہوں تو وہ بچوں کو بکری کی کہانی سنا رہے ہوں۔
میں نہیں کرتا ذکر افغانستان اور عراق کی تباہی کا۔مجھے نہیں ہوتی فکر پاکستان کے تباہ ہونے کی۔میں بے فکر رہتا ایران کے مستقبل کو لے کر، اگر آنچ میرے دروازے تک نہ پہنچی ہوتی۔اگر خطرہ میرے ملک ہندوستان پر نہ ہوتا۔ہو سکتا ہے میں نے تنہا اس جنگ کی شروعات کی ہو۔میں گاندھی کے آدرشوں پر چلنے والا ایک ایسا ہندوستانی بن گیا ہوں، جسے فرنگیوں سے ڈر نہیں لگتا۔ہو سکتا ہے میرے اندر سبھاش چندر بوس کی روح سما گئی ہو،اس لئے میں نے اپنے قلم کو پستول کے انداز میں چلانا شروع کر دیا ہو۔ہو سکتا ہے میں شہید بھگت سنگھ کی طرح اپنے گلے کے لئے پھانسی کا پھندہ تیار کر رہا ہوں اور یہ بھی ہو سکتا ہے کہ میںالہلال اور البلاغ کے مدیر مولانا ابو الکلام آزاد کی تاریخ کو دوہرانے کی کوشش کر رہا ہوں ۔
آپ جو چاہیں سمجھیں، مگرمجھے لگتا ہے 26/11،نیو یارک کے 9/11سے الگ نہیں تھا۔دونوں کا ماسٹر مائنڈایک...........دونوں کی پلاننگ کے مقصد ایک...........بس دہشت گردانہ عمل کا طریقہ جدا جدا۔/11سے مقصد افغانستان اور عراق کی تباہی کے ساتھ اسلامی دنیا کو یہ پیغام دینا کہ ہمارے جوتے کے نیچے رہو،ورنہ صدام کی طرح موت کے گھاٹ اتار دئے جائو گے۔ وہ تو بھلا ہو منتظر الزیدی جیسے صحافی کا، جس نے اپنے جوتے سے اس پیغام کو تبدیل کر دیا اور 26/11کا مقصد تھا پاکستان کو مورد الزام ٹھہرانا........ ہندوستان کو پاکستان پر جنگ کے لئے آمادہ کرنا.........ہندوستان میں خانہ جنگی کا ماحول پیدا کرنا۔پہلے ہندوستان جیسے طاقتور ملک کے ذریعے پاکستان کی تباہی، پھر کمزور ہو چکے ہندوستان پر سعودی عرب ،عراق اور افغانستان کی طرح مسلط ہو جانا۔
کہانی بے سر پیر کی نہیں۔بس فرق اتنا ہے کہ میں نے کلائمکس سے شروعات کی ہے۔انتظار کیجئے جلد ہی فلیش بیک کے ساتھ اس کا آغاز کرنے جا رہا ہوں، پھر آپ کو ہر سین میں سچائی کی ایک جھلک ملے گی۔ کڑیاں اس طرح جڑتی چلی جائیں گی کہ آپ کو کچھ بھی عجیب نہیں لگے گا۔ دعاکیجئے،آخری سین لکھنے تک میرے اس لکھنے کا سلسلہ نہ ٹوٹے اور ہاں آپ کے پڑھنے کا بھی۔ ہو سکتا ہے پرور دگار عالم نے یہی طے کیا ہو کہ انسان دشمن طاقتوں کو سبق سکھانے کا ذریعہ اب جنگ کے میدان کی بجائے یہ سائبروار (Cyber War)ہی ہو، اس لئے کاغذ اور قلم کے ساتھ ساتھ میں انٹر نیٹ کی دنیا میں بھی چلا آیا ہوں۔آپ سب کے تعاون کا بھروسہ جو ہے۔
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!دہشت کی چنگاری اب روس میں کیوں

عزیز برنی

قسط 110

آج کے دن کی ایک خاص پہچان یہ بھی ہے کہ اگر آپ کوئی بے وقوفی کی حرکت کریں یا آپ کا کوئی دانستہ عمل بے وقوفی سے بھرا ہو، تب بھی وہ قابل معافی ہے، کیونکہ آج پہلی اپریل ہے۔ نہیں، میرا ایسا کوئی ارادہ نہیں ہے کہ میں کوئی بے وقوفی کی بات کروں۔ اپنی دانست میں تو میں عقل مندی کی باتیں کرنے کی ہی کوشش کررہا ہوں، تاہم اگر یہ کسی کو بے وقوفی سے بھری لگےں تو وہ انہیں پہلی اپریل کی مناسبت سے قابل معافی تسلیم کرلے۔ بے شک میرا آج کا مضمون کل کی تحریر کے تسلسل میں ہی ہے، جہاں میں نے دہشت گردی کے واقعات کو ہتھیاروں کی فروخت سے جوڑتے ہوئے اپنی بات کہنے کی کوشش کی تھی اور پھر روس میں ہوئے حالیہ دہشت گردانہ حملہ کا ذکر کرنے جارہا تھا، مگر بات مکمل ہوتی اس سے قبل ہی وقت ختم ہوگیا یا یوں کہئے کہ جتنی جگہ میں مجھے اپنی بات کہنی تھی، وہ جگہ ختم ہوگئی، میرا صفحہ مکمل ہوگیا۔
بہرحال آج کی تحریر میں کچھ بہت پرانی یادوں سے شروع کرنے کا ارادہ رکھتا ہوں۔ 1978-79کا دور رہا ہوگا، اکثر محبانِ اہل بیت سے ذکر حسین سننے کا موقع ملتا۔ فضائل بیان کرنے کے بعد جب وہ مصائب کی طرف آتے تو حضرت حسینؓ کی شہادت کامنظر بیان کرتے۔ انہیں شمر کا خنجر یاد رہتا۔ پھر وہ حضرت حسینؓ کے گلے پر چلائے جانے کا ذکر کرتے اور ہر بار میں نے یہی کہتے سنا کہ شمر ایک ایسا کندچھرا لے کر آیا، جس سے حضرت امام حسینؓ کا گلا کٹتا ہی نہ تھا۔ میں دیر تک سوچتا رہتا، خطیب کے خطاب کے دوران بھی اور ان کے خطبہ کے بعد بھی کہ کیا یہ ممکن ہے کہ یزید کی فوج کو جو ایک سرچاہئے وہ حضرت امام حسینؓ کا سر تھا، پھریہ کیسے ممکن ہے کہ کوئی بھی شخص جو جنگ کے میدان میں لڑنے کے ارادے سے جائے، وہ ایسا ناقص ہتھیار لے کر ساتھ جائے، جو کسی مطلب کا نہ ہو۔ میں دیر تک سوچتا رہتا، ذہن یہ قبول کرنے کے لےے تیار نہ ہوتا کہ ظالم شمر کے ہاتھ میں چھراکند بھی ہوسکتا ہے۔ پھر یاد آتا مجھے اپنے طالب علمی کا وہ دور جب میں اپنے والدمحترم کی کلینک کے سامنے بیٹھنے والے ایک موچی (رام سوروپ) کو اپنا کام کرتے ہوئے دیکھتا تھا۔ میں نے بارہا یہ پایا کہ کسی بھی جوتے یا چپل میں پیوند لگانے سے قبل وہ سوکھے چمڑے کو کچھ دیر کے لےے پانی سے بھرے کٹورے میں پڑا رہنے دیتا اور جب چمڑا دیر تک پانی میں بھیگ کر نرم ہوجاتا تب وہ اسے بآسانی کاٹ لیتا۔ اسی دور میں میں نے یہ بھی محسوس کیا تھا کہ ضعیف اور کمزور مریضوں کو جن کی کھال خشک ہوگئی ہو، انجکشن لگانا مشکل ہوتا ہے بالمقابل کسی صحت مند نظر آنے والے شخص کے۔ پھر وہ دور بھی آیا، جب مجھے خود ذکرحسینؓ کا شرف حاصل ہوا(خدارا کسی فرقہ سے جوڑ کر نہ دیکھیں، میں مسلمان ہوں اور ہندوستانی ہوں، میرے لےے بس اتنا ہی کافی ہے) اور میں کربلا کے میدان میں حضرت امام حسینؓ کی شہادت کا منظر بیان کرتے وقت جو کچھ سنتا چلا آیا تھا، اس کے الٹ کہا کہ حضرت حسینؓ کا گلا تین روز کی بھوک اور پیاس، کربلا کی تپتی ہوئی ریت، شدید گرمی اور عزیزواقارب کی شہادتوں کے احساس نے اس قدر خشک کردیا تھا کہ شمر کا بہترین اور تیزسے تیز چھرا بھی ان کی گردن کو بآسانی کاٹ نہیں پارہا تھا۔ سامعین نے جب میری اس دلیل کو سنا تو اس کم عمری میں بھی میری حوصلہ افزائی کرتے ہوئے کہا کہ ایک زمانے سے ذکر حسینؓ سنتے چلے آئے ہیں، پر آپ نے جو بات آج کہی وہ دل کو چھوگئی۔
شاید کسی بھی بات کو بہت دیر تک سوچتے رہنے اور گہرائی سے مطالعے کے بعد کسی نتیجے پر پہنچنے کی عادت جو مجھے اس دور میں پڑی، وہ ابھی تک قائم ہے، فرق بس یہ پیدا ہوگیا ہے کہ تب میں کربلا کے میدان پر جو کچھ ہوا، اسے بہت گہرائی سے سوچتا تھا، یزید نے جو کیا، اسے بہت گہرائی سے سوچتا تھا اور آج جب پوری دنیا میں خون کی ندیاں بہانے والوں کی طرف نظر ڈالتا ہوں تو پھر اتنی ہی سنجیدگی سے سوچتا ہوں کہ آخر کون ہےں یہ خون کے پیاسے لوگ؟ ان کا مقصد کیا ہے؟ وہ چاہتے کیا ہیں؟ اگر یہ جنگ ہے تو کون کس کے خلاف جنگ لڑرہا ہے؟ اگر یہ جہاد تو وہ وجوہات کیا ہیں کہ جب جہاد ان پر فرض ہوگیا ہے اور جو ان کا نشانہ بنے، کیا انہیں اسلام پر عمل سے روک رہے تھے، اگر یہ مجاہد ہیں تو پھر ان کا اسلام سے رشتہ کیا ہے؟ بہت الجھے ہوئے سے سوال ہیں، قاتل مجھے مجاہد نہیں لگتا، اس کا نام کچھ بھی ہو، اس کا مذہب کچھ بھی ہو، ان کے ایسے اعمال سے مذہب کا کوئی رشتہ نہیں لگتا، یہی سوچوںکی گہرائی مجھے ڈیوڈ کولمین ہیڈلی جیسے شخص کی ذہنیت کو پڑھنے کے لےے مجبور کردیتی ہے، اس کے آقاؤں کے مقصد کو سمجھنے کے لےے مجبور کردیتی ہے، اسی لےے میں لکھ دیتا ہوں کہ دہشت گرد ثابت ہوجانے پر بھی ہندوستان کا دوست امریکہ اس مجرم کو بچانا کیوں چاہتا ہے؟ امریکہ کاجو نظریہ 26/11کے دہشت گرد اجمل عامر قصاب کے لےے ہوتا ہے، وہی نظریہ ڈیوڈ کولمین ہیڈلی کے لےے کیوں نہیں ہوتا؟ وہ دو دہشت گردوں کو الگ الگ نظرےے سے کیوں دیکھتا ہے۔ اگر یہ مسلمان ہےں، اس کی سوچ کے مطابق مجاہد ہےں، اس کی تصدیق کے مطابق پاکستانی ہےں، اس کی اطلاعات کے مطابق پاکستانی دہشت گرد تنظیم لشکرطیبہ کے تربیت یافتہ ہیں تو پھر اجمل عامر قصاب اور ڈیوڈ کولمین ہیڈلی کو ایک زمرے میں رکھ کر دیکھنے میں اسے پریشانی کیا ہے؟ اور جب اس کی پریشانی پر سنجیدگی سے غور کیا جاتا ہے تو سی آئی اے کے پرانے کارنامے یاد آجاتے ہیں۔ ایسا تو ہے نہیں کہ اس بدنامِ زمانہ امریکی خفیہ تنظیم نے اب بھجن کیرتن، روزہ نماز یا گرجا گھروں میں Prayerکی ذمہ داری سنبھال لی ہو اور اپنے پچھلے گناہوں کا کفارہ ادا کرنے کے لےے امن کی راہ پر چل پڑے ہوں۔ قوی امکان تو یہی نظر آتے ہیں کہ جیسے کوئی فراڈ کمپنی بھاری غبن کرنے کے بعد یا بلیک لسٹڈ ہوجانے کے بعد نئے نام سے اپنا پرانا دھندہ پھر شروع کردیتی ہے، سی آئی اے نے بھی کچھ ایسا ہی کیا ہوا اور ہمارے سامنے اتفاق سے جو ایک چہرہ ڈیوڈ کولمین ہیڈلی کا آگیا ہے، وہ صرف ایک چہرہ نہ ہو، بلکہ ایسے بیشمار چہرے دنیا کے چپے چپے پر موجود ہوں اور کچھ ایسی ہی سرگرمیوں میں مصروف ہوں، تبھی تو امریکہ اتنے دعویٰ کے ساتھ کہتا ہے کہ ایک اور6/11ہونے پر پاکستان کو بخشا نہیں جائے گا، یعنی پاکستان کو اگر نہیں بخشا جانا ہے تو اس کے لےے ہندوستان میں ایک اور6/11ہوجانا ہی کافی ہے۔ اب یہ6/11کس کے ذریعہ عمل میں آیا؟ ہوسکتا ہے یہ کوئی معمہ بن جائے۔ ہم جان کر بھی انجان بن جائےں۔ کیا پھر جسے بھی مجرم ثابت کرنا ہو، وہی مجرم ثابت ہوجائے اور ان دہشت گردانہ حملوں کا مقصد جن ناپاک عزائم کو پورا کرنا ہو، ان کی راہ آسان ہوجائے۔ ادھورا چھوڑتا ہوں میں اس بات کو یہیں، آپ بھی سوچئے میرے پاس کافی مواد ہے، مذکورہ بالا تمام باتوں کی کڑیاں جوڑنے کے لےے اور حقائق کی روشنی میں اس بات کو آگے بڑھانے کے لےے، لیکن اب میں ذکر کرنا چاہوں گا، روس میں ہوئے حالیہ دہشت گردانہ حملے کا، جہاں کل میں نے اپنا مضمون چھوڑا تھا۔ لہٰذا اب ملاحظہ فرمائیں یہ خبر، پھر اس کے بعد میری بات جاری رہے گی، مگر ہاں یہ ابھی میں آپ سب کے ذہن نشیں کردینا چاہتا ہوں کہ کوئی رشتہ تو ضرور ہے ہندوستان اور پاکستان میں دہشت گردی کے طوفان کے بعد ان چنگاریوں کے روس تک پہنچنے کا۔
افغانـپاک دہشت گرد نیٹ ورک سے حملہ آوروں کا تعلق
ماسکو،0مارچ010(انڈوـایشین نیوز سروس)
روس کے وزیرخارجہ سرگیئی لاوروو نے کہا کہ ماسکو میں دو میٹرو اسٹیشنوں پر ہوئے دھماکوں کی سازش رچنے والوں کا تعلق افغانستانـپاکستان سرحد پر واقع دہشت گرد تنظیموں سے ہوسکتا ہے۔
خبررساں ایجنسی آرآئی اے نوووستی کے مطابق لاوروو نے کہا کہ اس بات کے امکان ہیں کہ ماسکو میں ہوئے دھماکوں کو غیرممالک کے تعاون سے انجام دیا گیا۔ انہوں نے کہا ’’فی الحال کسی بھی امکان سے انکار نہیں کیا جاسکتا ہے۔‘‘
لاوروو نے کہا کہ ماسکو اس بات سے واقف ہے کہ پاکستان اور افغانستان کی سرحد پر واقع علاقوں میں دہشت گرد سرگرم ہیں۔ انہوں نے کہا ’’ہم یہ جانتے ہیں کہ کئی دہشت گرد تنظیمیں نہ صرف افغانستان میں حملے کرتی ہیں، بلکہ دیگر ممالک کو بھی اپنا نشانہ بناتی ہیں۔‘‘
روسی وزیرخارجہ نے بین الاقوامی برادری سے دہشت گردی کے خلاف جنگ میں تعاون کرنے کی اپیل کی۔
…………………
ماسکو دھماکے: پاکـافغان دہشت گردوں کا ہاتھ!
ٹورنٹو/ماسکو،0مارچ010(ایجنسیاں)
روس کے وزیرخارجہ سرگیئی لاوروو کا کہنا ہے کہ ماسکو میں دو میٹرواسٹیشنوں پر پیرکے روز دھماکوں میں افعانستانـپاکستان سرحد پر سرگرمیاں چلانے والی دہشت گرد تنظیموں کا ہاتھ ہوسکتا ہے۔
لاوروو نے کہا کہ اس بات کا اندیشہ ہے کہ افغانستانـپاکستان سرحد کے شورش زدہ علاقہ کے اسلامی دہشت گردوں نے ماسکو میں ہوئے دھماکوں کے لےے مدد کی ہوگی۔ کناڈا میں جیـکے ممالک کے وزیرخارجہ کی میٹنگ میں انہوں نے یہ بات کہی۔
لاوروو نے کہا کہ ایسا امکان ہے کہ ماسکو میں ہوئے دھماکوں کو باہری تعاون سے انجام دیا گیا۔ انہوں نے کہا کہ فی الحال کسی بھی امکان سے انکار نہیں کیا جاسکتا ہے۔
لاوروو نے کہا کہ ماسکو اس بات سے واقف ہے کہ پاکستان اور افغانستان کے سرحدی علاقوں میں دہشت گرد سرگرم ہیں۔ انہوں نے کہا کہ ہم جانتے ہیں کہ کئی دہشت گرد تنظیمیں نہ صرف افغانستان میں حملے کرتے ہیں، بلکہ دیگر ممالک کو بھی نشانہ بناتے ہیں۔
بیٹھک میں کناڈا کے وزیرخارجہ لارنس کینن نے کہا کہ ماسکو میں دو میٹرو اسٹیشنوں پر ہوئے دہشت گردانہ حملہ کی ہم مذمت کرتے ہیں، جن میں کئی بے قصور ہلاک اور زخمی ہوئے۔ جیـممالک کے وزیرخارجہ نے حملہ میں مارے گئے لوگوں کے لواحقین کے تئیں گہری ہمدردی کا اظہار کیا۔
اس میٹنگ میں روس، ناروے، امریکہ اور ڈنمارک کے وزیرخارجہ نے حصہ لیا۔ لاوروو نے کہا کہ مستقبل میں ایسے حملوں سے بچنے کے لےے بین الاقوامی تعاون کی ضرورت ہے۔
ماسکو میں پیرکے روز پہلا دھماکہ وسط ماسکو کے لبیانکااسٹیشن پر صبح 7بج کر 56منٹ پر ہوا۔ دوسرا دھماکہ نزدیکی پارک کلتری اسٹیشن پر 8بج کر0منٹ پر ہوا۔ ان دھماکوں میں کم ازکم 38لوگ ہلاک اور0سے زائد زخمی ہوئے۔

आतंक की चिंगारी अब रूस में क्यों!

आज के दिन की ख़ास पहचान यह भी है कि अगर आप कोई मूर्खतापूर्ण हरकत करें या आपका कोई कार्य जानबूझ कर मूर्खतापूर्ण हो तब भी वह क्षमा के योग्य है, क्योंकि आज पहली अप्रैल है। नहीं, मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है कि मैं कोई मूर्खता की बात करूं। अपनी समझ से तो मैं अक़्लमंदी की बातें करने की ही कोशिश कर रहा हूं, फिर भी अगर यह किसी को मूर्खतापूर्ण लगें तो वह उन्हें पहली अप्रैल के परिपेक्ष में क्षमा योग्य मान ले। निःसंदेह मेरा आज का लेख कल के लेख की ही कड़ी के रूप में है, जहां मैंने आतंकवाद की घटनाओं को हथियारों की बिक्री से जोड़ते हुए अपनी बात कहने का प्रयास किया था और फिर रूस में हुए वर्तमान आतंकवादी हमले की चर्चा करने जा रहा था। परन्तु बात पूरी होती इससे पूर्व ही समय समाप्त हो गया या यूं कहिए कि जितनी जगह में मुझे अपनी बात कहनी थी वह जगह समाप्त हो गई, मेरा पेज पूरा हो गया।
बहरहाल आज का लेख मैं कुछ बहुत पुरानी यादों से शुरू करने का इरादा रखता हूं। 1978-79 का ज़माना रहा होगा, अकसर अहले बैत की मुहब्बत रखने वालों से ज़िक्रे हुसैन सुनने का मौक़ा मिलता। फ़ज़ाइल बयान करने के बाद जब वह मसाइब (विपत्तियों के बयान) की तरफ़ आते तो हज़रत इमाम हुसैन की शहादत का दृश्य बयान करते। उन्हें शिम्र का ख़ंजर याद रहता। हज़रते हुसैन (रज़ि॰) के गले पर चलाए जाने का ज़िक्र करते और हर बार मैंने यही कहते सुना कि शिम्र एक ऐसा कुंद छुरा लेकर आया, जिससे हज़रते इमाम हुसैन (रज़ि॰) का गला कटता ही न था। मैं देर तक सोचता रहता मौलाना की तक़रीर के दौरान भी और उनके ख़िताब के बाद भी क्या यह संभव है कि यज़ीद की सेना को जो एक सर चाहिए था, वह हज़रते इमाम हुसैन (रज़ि॰) का सर था फिर यह कैसे संभव है कि कोई भी व्यक्ति जो जंग के मैदान में लड़ने के इरादे से जाए वह ऐसा घटिया हथियार साथ लेकर जाए जो किसी काम का न हो। मैं देर तक सोचता रहता मन यह स्वीकार करने के लिए तैयार न होता कि ज़ालिम शिम्र के हाथ में छुरा कुंद भी हो सकता है। फिर याद आता मुझे अपने छात्र अवस्था का वह ज़माना जब मैं अपने वालिदे मुहतरम की क्लिनिक के सामने बैठने वाले एक मोची (राम स्वरूप) को अपना काम करते हुए देखता था। मैंने कई बार यह पाया कि किसी भी जूते या चप्पल में पैवंद लगाने से पहले वह सूखे चमड़े को कुछ देर के लिए पानी से भरे कटोरे में पड़ा रहने देता और जब चमड़ा देर तक पानी में भीग कर नर्म हो जाता तब वह उसे आसानी के साथ काट लेता। उसी ज़माने में मैंने यह भी महसूस किया था कि वृद्ध और कमज़ोर रोगियों को जिनकी त्वचा सूख गई हो, स्वस्थ आदमी के मुक़ाबले उसे इंजेक्शन लगाना कठिन होता है फिर वह दौर भी आया, जब मुझे ख़ुद ज़िक्रे हुसैन का शर्फ़ हासिल हुआ (ख़ुदा के वासते किसी फ़िर्क़ा से जोड़ कर न देखें, मैं मुसलमान हूं और भारतीय हूं मेरे लिए बस इतना ही काफ़ी है) और मैं कर्बला के मैदान में हज़रते इमाम हुसैन (रज़ि॰) की शहादत का दृश्य बयान करते समय जो कुछ सुनता चला आया था, उसके उलट कहा कि हज़रते इमाम हुसैन (रज़ि॰) का गला तीन रोज़ की भूख और प्यास, कर्बला की तपती हुई रेत, सख़्त गर्मी और सगे संबंधियों की शहादतों के एहसास ने इतना ख़ुश्क कर दिया था कि शिम्र का बेहतरीन और तेज़ से तेज़ छुरा भी उनकी गर्दन को आसानी के साथ काट नहीं पा रहा था। श्रोताओं ने जब मेरे इस तर्क को सुना तो इस अल्पआयु में भी मेरा उत्साह बढ़ाते हुए कहा कि एक ज़माने से ज़िक्रे हुसैन सुनते चले आए हैं लेकिन आपने जो बात आज कही वह दिल को छू गई।
शायद किसी भी बात को बहुत देर तक सोचते रहने और गहराई से अध्ययन के बाद किसी निष्कर्ष पर पहुंचने की आदत जो मुझे उस ज़माने में पड़ी, वह अभी तक क़ायम है, अंतर केवल यह पैदा हो गया है कि तब मैं कर्बला के मैदान पर जो कुछ हुआ उसे बहुत गहराई से सोचता था। यज़ीद ने जो किया उसे बहुत गहराई से सोचता था और आज जब पूरी दुनिया में ख़ून की नदियां बहाने वालों की तरफ़ नज़र डालता हूं तो उतनी ही गंभीरता से सोचता हूं कि आख़िर कौन हैं यह ख़ून के प्यासे लोग? उनका उद्देश्य क्या है? वह चाहते क्या हैं? अगर यह युद्ध है तो कौन किसके विरुद्ध युद्ध लड़ रहा है? अगर यह जिहाद है तो वह कारण क्या हैं कि जब जिहाद उन पर फ़र्ज़ हो गया है और यह जो उनका निशाना बने तो क्या उन्हें इस्लाम पर अमल से रोक रहे थे अगर यह मुजाहिद हैं तो फिर उनका इस्लाम से रिश्ता क्या है? बहुत उलझे हुए से प्रश्न हैं, हत्यारे मुझे मुजाहिद नहीं लगते, उसका नाम कुछ भी हो, उसका धर्म कुछ भी हो, उनके ऐसे कार्यों से धर्म का कोई रिश्ता नहीं लगता, इन्हीं सोचों की गहराई मुझे डेविड कोलमैन हेडली जैसे व्यक्ति की मानसिकता को पढ़ने के लिए मजबूर कर देती है, उसके आक़ाओं के उद्देश्य को समझने के लिए मजबूर कर देती है, इसीलिए मैं लिख देता हूं कि आतंकवादी सिद्ध हो जाने पर भी भारत का मित्र अमेरिका उस अपराधी को बचाना क्यों चाहता है? अमेरिका का जो दृष्टिकोण 26/11 के आतंकवादी अजमल आमिर क़साब के प्रति होता है, वही दृष्टिकोण डेविड कोलमैन हेडली के लिए क्यांे नहीं होता। वह 2 आतंकवादियों को अलग-अलग दृष्टि से क्यों देखता है। अगर यह मुसलमान हैं, उसकी सोच के अनुसार मुजाहिद हैं, उसकी पुष्टि के अनुसार पाकिस्तानी हैं, उसकी सूचनाओं के अनुसार पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन लशकर-ए-तैयबा के प्रशिक्षित हैं तो फिर अजमल आमिर क़साब और डेविड कोलमैन हेडली को एक ही श्रेणी में रख कर देखने में क्या पेरशानी है? और जब उसकी परेशानी पर गंभीरता से विचार किया जाता है तो सीआईए के पुराने कारनामे याद आ जाते हैं। ऐसा तो है नहीं कि इस कुख्यात अमेरिकी गुप्तचर संगठन ने अब भजन कीर्तन, रोज़ा नमाज़ या गिरिजा घरों में प्रार्थना की ज़िम्मेदारी संभाल ली हो और अपने पिछले पापों का प्रायश्चित करने के लिए शांति के मार्ग पर चल पडी़ हो। पूर्ण संभावना तो यही नज़र आती है कि जैसे कोई फ्ऱाॅड कंपनी भारी ग़बन करने और ब्लैक लिस्टिड हो जाने के बाद नाए नाम से अपना पुराना धंधा फिर आरंभ कर देती है। सीआईए ने भी कुछ ऐसा ही किया हो और हमारे सामने संयोगवश जो एक चेहरा डेविड कोलमैन हेडली का आ गया है वह केवल एक चेहरा न हो, बल्कि ऐसे अनगिनत चेहरे दुनिया के चप्पे चप्पे पर मौजूद हों और कुछ ऐसी ही गतिविधियों में लगे हों, तभी तो अमेरिका इतने दावे के साथ कह सकता है कि एक और 26/11 होने पर पाकिस्तान को बख़्शा नहीं जाएगा। यानी पाकिस्तान को अगर नहीं बख़्शा जाना है तो उसके लिए भारत में एक और 26/11 हो जाना ही पर्याप्त है। अब यह 26/11 किसके द्वारा अमल में आए, हो सकता है यह कोई पहेली बन जाए। हम जानकर भी अनजान बन जाएं। क्या फिर जिसे भी अपराधी साबित करना हो वही अपराधी सिद्ध हो जाए और उन आतंकवादी हमलों का उद्देश्य जिन नापाक उद्देश्यों को पूरा करना हो, उनका रास्ता आसान हो जाए। अधूरी छोड़ता हूं मैं अपनी इस बात को यहीं, आप भी सोचिए मेरे पास काफ़ी तथ्य हैं उपरोक्त तमाम बातों की कड़ियां जोड़ने के लिए और तथ्यों की रोशनी में इस बात को आगे बढ़ाने के लिए। लेकिन अब मैं चर्चा करना चाहूंगा रूस में हुए वर्तमान आतंकवादी हमले की, जहां कल मैंने अपना लेख समाप्त किया था। इसलिए अब मुलाहिज़ा फ़रमाएं यह ख़बर फिर उसके बाद मेरी बात जारी रहेगी मगर हां यह अभी मैं आप सबके मन में बिठा देना चाहता हूं कि कोई रिश्ता अवश्य है भारत और पाकिस्तान में आतंकवाद के तूफ़ान के बाद इन चिंगारियों के रूस तक पहुंचने का।
अफ़ग़ान õपाक आतंकी नेटवर्क से हमलावरों का संबंध
मास्को, 30 मार्च 2010 (इंडो-एशियन न्यूज़ सर्विस)
रूस के विदेश मंत्री सेर्गई लावरोव ने कहा कि मास्को में दो मेट्रो स्टेशनों पर हुए विस्फोटों की साज़िश रचने वालों का संबंध अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर स्थित आतंकवादी संगठनों से हो सकता हैै।
समाचार एजेंसी आरआईए नोवोस्नी के अनुसार लावरोव ने कहा कि इस बात की संभावना है कि मास्को मंे हुए विस्फोटों को विदेशों के सहयोग से अंजाम दिया गया। उन्होंने कहा, फिलहाल किसी भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
लावरोव ने कहा कि मास्को इस बात से अवगत है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर स्थित इलाकों मंे आतंकवादी सक्रिय हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हम यह जानते हैं कि कईं आतंकवादी संगठन न केवल अफगानिस्तान मंेे ही हमले करते हैं बल्कि अन्य देशों को भी अपना निशाना बनाते है‘‘।
रूसी विदेश मंत्री ने अंतर्राष्ट्रिय समुदाय से आतंकवाद के खिलाफ जंग मंे सहयोग करने की अपील की।
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माॅस्को धमाकेः पाक-अफ़ग़ान आतंकियों का हाथ!
टोरंटो/माॅस्को, 30 मार्च, 2010 (एजेंसियां)
रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव का कहना है कि माॅस्को में दो मेट्रो स्टेशनों पर सोमवार के विस्फोटों में अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर गतिविधियां चलाने वाले आतंकवादी संगठनों का हाथ हो सकता है।
लावरोव ने कहा कि इस बात का अंदेशा है कि अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान सीमा के अशांत क्षेत्र के इस्लामी आतंकवादियों ने माॅस्को में हुए विस्फोटों के लिए सहायता की होगी। कनाडा में जी-8 के देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में उन्होंने यह बात कही।
लावरोव ने कहा कि ऐसा अंदेशा है कि मास्को में हुए विस्फोटों को बाहरी सहयोग से अंजाम दिया गया हो। उन्होंने कहा कि फिलहाल किसी भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।
लावरोव ने कहा कि माॅस्को इस बात से अवगत है कि पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में आतंकवादी सक्रिय हैं। उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि कई आतंकवादी संगठन न केवल अफ़ग़ानिस्तान में हमले करते हैं बल्कि अन्य देशों को भी निशाना बनाते हैं।
इस बैठक में कनाडा के विदेश मंत्री लाॅरेंस केनन ने कहा कि मास्को में दो मेट्रो स्टेशनों पर हुए आतंकवादी हमले की हम निंदा करते हैं, जिनमें कई निर्दोष लोग मारे गए और घायल हुए। जी-8 देशों के विदेश मंत्रियों ने हमले में मारे गए लोगों के परिजनों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की।
बैठक में रूस, नार्वे, अमेरिका और डेनमार्क के विदेश मंत्रियों ने हिस्सा लिया। लावरोव ने कहा कि भविष्य में ऐसे हमलों से बचने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।
मास्कों में सोमवार को पहला विस्फोट मध्य मास्को के लुब्यांका स्टेशन पर सुबह 7 बजकर 56 मिनट पर हुआ। दूसरा विस्फोट नज़दीकी पार्क कुलतुरी स्टेशन पर 8 बज कर 40 मिनट पर हुआ। इन विस्फोटों में कम से कम 38 लोग मारे गए और 70 से अधिक घायल हुए।

Tuesday, March 30, 2010

کیا کبھی سوچا ہے آپ نے ’’ٹیررٹریڈ‘‘ کے بارے میں

عزیز برنی…………………………………قسط 109

میں ہرروز ایک پورے صفحہ کا مضمون لکھتا ہوں اور تسلسل بنا رہتا ہے، مگر کئی بار جب مجھے محض چند سطریں لکھنی ہوتی ہیں تو یہ سلسلہ ٹوٹ جاتا ہے، اس لےے کہ بہت سوچنا ہوتا ہے، بہت مطالعہ کرنا ہوتا ہے، وہ چند سطریں لکھنے کے لےے اور یہ بات بس اتنی ہی نہیں ہے، بلکہ حتی الامکان کوشش ہی رہتی ہے کہ یہ چند سطریں پوری طرح غیرجانبدار حقائق پر مبنی نظر آئیں۔ اگر ذرا بھیـذرا بھی یہ تاثر چلا گیا کہ میں کسی ملک، ادارے یا واقعہ کے بارے میں ایک طے شدہ ذہن رکھتا ہوں تو تحریر بے معنی ہوجائے گی۔ میں نے جب بٹلہ ہاؤس کے مشتبہ انکاؤنٹر کے بارے میں لکھنا شروع کیا تو بہت آوازیں اٹھیں، مگر میں لکھتا رہا اس یقین کے ساتھ کہ انشاء اللہ ایک دن سچ سامنے آئے گا ضرور۔ کچھ لوگوں کو لگا کہ متعصب ذہن رکھتا ہوں، اس لےے یہ سب لکھ رہا ہوں، لیکن اللہ کا کرم ہے کہ آہستہ آہستہ تصویر صاف ہونے لگی، سچ سامنے آنے لگا اور پوسٹ مارٹم کی رپورٹ نے تو تقریباً یہ واضح کردیا کہ بٹلہ ہاؤس انکاؤنٹر کی حقیقت کیا ہے۔ حالانکہ رپورٹ تو اب آئی ہے، ہم نے تو ان تصویروں کو سامنے رکھ کر اور تجربہ کار ڈاکٹروں سے مشورہ کرکے جو بات کہی تھی، آج وہی سچ ثابت ہوئی ہے۔ اسی طرح 26/11/2008کوممبئی پر ہوئے دہشت گردانہ حملہ کو گہرائی سے دیکھنے اور سمجھنے کے بعد ہم نے جو کچھ لکھا، وہ اب بھی حقیقت کا رنگ لیتا نظر آرہا ہے۔
ڈیوڈ کولمین ہیڈلی کا معاملہ بھی ہمارے لےے بٹلہ ہاؤس کے مشتبہ انکاؤنٹر اور ممبئی پر ہوئے دہشت گردانہ حملہ کی تحقیقات جیسا ہی ہے۔ اس لےے کہ ہم ڈیوڈ کولمین ہیڈلی کو صرف اور صرف 26/11تک ہی محدود کرکے نہیں دیکھ رہے ہیں۔ ہم پھر کہیں گے کہ ’ڈیوڈ کولمین ہیڈلی تو بس ایک نام ہے اور6/11 صرف ایک دہشت گردانہ حملہ‘، بات بس اتنی ہی نہیں ہے۔اگر ہم نے اس کے دوراندیش نتائج پر غور نہیں کیا تو ساری سچائی ہیڈلی کے نام کے ساتھ ہی ختم ہوجائے گی۔ فرض کیجئے کہ ڈیوڈ ہیڈلی نے جیل کی سلاخوں کے پیچھے خودکشی کرلی، تواب کیا کریں گے آپ؟ نہ امریکہ پر دباؤ ڈالنے کا کوئی مطلب، نہ دہشت گردانہ حملوں میں ایف بی آئی اور سی آئی اے کے کردار سے پردہ اٹھنے کی امید۔
دوسری ایک اور انتہائی اہم وجہ ہے ڈیوڈ کولمین ہیڈلی کو بچانے کی۔ کیا آپ کو لگتا ہے کہ دنیا بھر میں صرف ایک ہی ہیڈلی ہے، یعنی صرف ایک ہی ایف بی آئی یا سی آئی اے کا ایجنٹ ہے یا اور بھی ہیڈلی دنیا کے چپے چپے پر پھیلے ہوئے ہیں؟ اور وہ تمام کے تمام آج امریکہ کی طرف نظریں اٹھا کر دیکھ رہے ہیں کہ کیا امریکہ اس ہیڈلی کو بچاپاتا ہے؟ اگر ہاں، تو وہ تمام ہیڈلی دنیا کے چاہے جس کونے میں ہوں اور انہیں جو بھی ذمہ داری سونپی گئی ہے، اس ذمہ داری کو نبھانے میں جان لڑا دیں گے، اس لےے کہ ڈیوڈ کولمین ہیڈلی کا تحفظ اس کے خاندان کو کسی طرح کی کوئی پریشانی کا نہ ہونا، ان سب کے لےے انتہائی حوصلہ افزا ہوگا… اور اگر ڈیوڈ کولمین ہیڈلی کو کسی بھی طرح کی تکلیف کا سامنا کرنا پڑتا ہے، سخت سزا ملتی ہے یا ہندوستان کے حوالے کردیا جاتا ہے تو پھر سبھی کا حوصلہ ٹوٹ جائے گااور امریکہ سے بھروسہ ٹوٹ جائے گا، پھر وہ ہیڈلی کی طرح سی آئی اے کے ایجنٹ کے طور پر کام کرنے کی ہمت نہیں کریں گے۔ امریکہ ایسا کبھی نہیں ہونے دے گا۔ ہندوستان سے تعلقات ختم ہوجانے کی قیمت پر بھی نہیں۔ ہندوستان سے دشمنی کا رشتہ قائم ہوجانے کی صورت میں بھی نہیں (حالانکہ دونوں ہی باتوں کے امکان نہیں ہیں)، اس لےے کہ اس کی نظر ساری دنیا پر ہے اور کسی ایک ملک کی دوستی کی خاطر پوری دنیا کے حوالہ سے اپنے منصوبوں کو ناکامی کی طرف لے جانے کا فیصلہ کرلیا جائے، یہ ممکن نہیں ہے۔
علاوہ ازیںکچھ باتوں پر ہمیں بہت سنجیدگی سے غور کرنا ہوگا۔ ’’چائنا‘‘ مقابلتاً ہندوستان اورپاکستان کے ایک پرامن ملک ہے، جبکہ سرحدیں ہندوستان سے بھی ملتی ہیں اور پاکستان سے بھی۔ چین سب کچھ بھول کر صرف ترقی کی راہ پر گامزن ہے، اس نے اپنی ’مین پاور‘ کو ’منی پاور‘میں بدلنے کا طریقہ سیکھ لیا ہے۔ آج پوری دنیا میں کہیں بھی جائےے گھریلو ضروریات کی تقریباً سبھی اشیا چین کی بنی ہوتی ہیں، جو سستی دروں میں آپ کو مل جائیں گی۔ اسی طرح پوری دنیا میں کہیں بھی جائےے، خطرناک ہتھیار چاہے پولس کے کام آنے والے ہوں، فوج کے کام آنے والے یا پھر دہشت گردوں کے ہاتھ میںہوں، اسرائیل اور امریکہ کے بنے ہوئے ملیں گے۔ اگر چین کے تمام پروڈکٹس کی مارکیٹ یا کھپت ختم ہوجائے تو پھر چین کی معاشی حالت کیا ہوگی، آپ سمجھ سکتے ہیں۔ اسی طرح اگر پوری دنیا میں امن قائم ہوجائے، دہشت گردی سے نمٹنے کے لےے سرکاروں کو اپنے شہریوں کی حفاظت کے لےے ہتھیار خریدنے کی ضرورت پیش نہ آئے اور نہ ہی دہشت گردی کا وجود باقی رہے تو پھر ایسی صورت میں امریکہ کی معاشی حالت کیا ہوگی، اس کا بھی آپ بخوبی اندازہ کرسکتے ہیں۔ چین کبھی نہیں چاہے گا کہ اس کے پروڈکٹس کی مارکیٹ ختم ہو، جو کہ آپ کی گھریلو ضروریات کو پورا کرتے ہیں اور امریکہ کبھی نہیں چاہے گا کہ اس کی پروڈکٹس کی مارکیٹ ختم ہو، اس لےے کہ وہ اس کی معاشی ضرورت کو پوری کرتے ہیں۔ پوری دنیا پر حکومت کے خواب کو حقیقت میں بدلنے کی اہلیت رکھتے ہیں۔ یہ تھیں وہ چند سطریں، جنہیں لکھنے کے لےے بہت سوچنا پڑا۔ اب پھر ذکر ڈیوڈ کولمین ہیڈلی کا اور ان سے جڑے تازہ انکشافات کا۔ جو خبر آج ہر طرف گرم ہے کہ اس کے کریڈٹ کارڈ کا بھگتان کس نے کیا، پہلے یہ اہم اطلاعات ملاحظہ فرمائیں، اس کے بعد روس میں دہشت گردی کے تازہ حادثے پر نظر ڈالیں اور پھر ان دونوں واقعات کو سامنے رکھ کر میری گفتگو کا سلسلہ جاری رکھیں۔
پاکستانی امریکی دہشت گرد ڈیوڈ کولمین ہیڈلی کے انٹر نیشنل کریڈٹ کارڈ کا بل کس نے ادا کیا، یہ وسیع ہوتی جانچ کے مرکز میں ہے جس سے ظاہر ہوتا ہے کہ ایسے ہی کریڈٹ کارڈوں کے ذریعہ مشتبہ دہشت گردوں نے تقریباً 20سے 25 کروڑ روپے پورے ملک میں خرچ کئے ہیں۔ اس بل کی امریکہ، کناڈا اور نیپال میں ادائیگی کی گئی، جو کڑیوں کو جوڑتا ہے اور جس سے اس کے ماسٹرس کی شناخت ظاہر ہو سکتی ہے۔
خفیہ ایجنسیاں جو اقتصادی لین دین کی جانچ کر رہی ہیں اور متعدد شہروں میں جہادی نیٹ ورک اور ان کے سلیپر سیل کو تلاش کررہے ہیں، انہوںنے پایا کہ مشتبہ دہشت گرد امریکہ، کناڈا، برطانیہ، دبئی، نیپال اور بنگلہ دیش میں جاری انٹر نیشنل کریڈٹ کارڈوں کا استعمال کرتے رہے ہیں اور ان ممالک میں مقیم ان کے ہینڈلرس نے بلوں کو حاصل کیا۔ ایجنسیاں ادائیگی کے طریقِ کار اور ان کا فائدہ حاصل کرنے والوں کی پہچان کر رہی ہیں۔
یہ نہ حوالہ چینل ہے اور نہ ہی لائن آف کنٹرول کے دونوں جانب کے تاجر جنہوں نے ملک کے اندر سرگرم دہشت گرد تنظیموں کی مالی مدد کی ہے۔ دہشت گردوں کو اب انٹرنیشنل کریڈٹ کارڈس دئے جارہے ہیں جو ہندوستان میں اپنے آپریشن کو انجام دینے کے لئے روپے نکالنے اور ٹھہرنے کے دوران اپنے بلوں کی ادائیگی کے لئے استعمال کر رہے ہیں۔
اعلیٰ ذرائع کے مطابق حفاظتی اور خفیہ ایجنسیوں نے پایا ہے کہ گزشتہ کچھ وقت میں مشتبہ دہشت گردوں نے اسی طرح کے کارڈوں کے ذریعہ 20 تا 25کروڑ روپے خرچ کئے ہیں۔ تفتیش سے پتہ چلا ہے کہ بشمول دہلی، ممبئی، بنگلور، حیدرآباد اور کشمیر ملک کے مختلف حصوں سے روپے نکالے گئے جو ظاہر کرتاہے کہ دہشت گردوں کا نیٹ ورک کتناوسیع ہے اور کس قدر آسانی سے وہ سرولانس سسٹم کو دھوکہ دینے میں کامیاب ہو رہے ہیں۔ اس سے دہشت گردوں کے ماسٹر مائنڈس کے وسیع اساس ظاہر ہو سکتے ہیں جو امریکہ، کناڈا اور یوروپ کے دوسرے ممالک میں ہیں۔ ہندوستان ان ممالک کی حکومتوں کے رابطہ میں ہے اور مشتبہ دہشت گردوں کی جانب سے کن لوگوں نے بل لیا اس کی تصدیق کر رہی ہے۔
اعلیٰ افسر کے مطابق دہشت گردوں کی جانب سے امریکہ اور یوروپ کی زمین سے کریڈٹ کارڈوں کے ذریعہ مالی مدد کا طریقہ پوری طرح نیا ہے۔ انہوں نے مزید بتایا کہ پاکستان، بنگلہ دیش اور متحدہ عرب امارات (UAE) جیسے ممالک سے دہشت گردوں کی مالی طور پر کی جارہی نگرانی کو دھوکہ دینے کے لئے ایساکیا گیا ہے۔
حکومت نے بینک اور مالی اداروں کو اپنے گاہکوں کو جاننے کی سخت ہدایت جاری کر رکھی ہے تاکہ دہشت گردی کو جائز سسٹم سے مالی مدد نہ حاصل ہو سکے۔ یہ حوالہ چینل پر سخت کارروائی کے علاوہ تھا جو ماضی میں سلسلہ وار دہشت گردانہ حملے کے بعد کئے گئے تھے اور جن کا تعلق ایسے مالی طریقوں سے تھا۔
…………
ہندوستانی خفیہ ایجنسیاں امریکی بینکوں سے رابطہ کرنے کا منصوبہ بنارہی ہیں، تاکہ ان لوگوں کی شناخت ہوسکے جنہوں نے امریکی دہشت گرد ڈیوڈ کولمین ہیڈلی کے دہشت گردی مشن کے دوران اس کے انٹرنیشنل کریڈٹ کارڈ کے بل حاصل کئے۔
حالانکہ ایف بی آئی نے این آئی اے (نیشنل انویسٹی گیشن ایجنسی) کو ہیڈلی کے ساتھی ملزم تہور حسین رانا کی کمپنی ورلڈ امیگریشن کمپنی کو مالی مدد کرنے والا بتایا تھا اور جس نے اس کے جہادی مشن میں کور (Cover)بھی مہیا کرایا تھا۔ تاہم یہ واضح نہیں ہے کہ امریکہ میں کس نے اس کے انٹرنیشنل کریڈٹ کارڈ کا بل حاصل کیا۔
ایک افسر کا کہنا ہے کہ ’جیسے ہی ہم ہیڈلی سے رابطہ حاصل کریں گے، اس سے پوچھ گچھ میں بھی ہم یہ سوال کریں گے۔‘ مزید کہا گیا ہے کہ ’ہندوستان ہیڈلی سے راست رابطہ کے لئے اس ہفتہ کے آخر میں امریکہ کو ایک خط روانہ کررہا ہے۔ وزارت داخلہ کے ذریعہ امریکہ کے ڈپارٹمنٹ آف جسٹس کو ہیڈلی سے سیدھے پوچھ گچھ کی تاریخ کے متعلق روانہ کئے جانے والا خط طے ہوگیا ہے۔
-افسر نے کہا کہ خط کے ذریعہ وزارت امریکی حکام کو بتائے گا کہ ہندوستانی تفتیش کاروں کی ایک ٹیم تیار ہے اور امریکہ سے اجازت ملنے کے بعد وہ جاسکتی ہے۔ امریکی قانون کے مطابق امریکہ کا ڈپارٹمنٹ آف جسٹس ہندوستان کے ہیڈلی سے سیدھے پوچھ گچھ کے لئے شکاگو عدالت سے اجازت لینی ہوگی جو ہیڈلی کے معاملے کی سنوائی کررہی ہے۔ عدالت ہندوستانی تفتیش کاروں کو اجازت دینے سے قبل دہشت گرد کے وکیل کی رائے بھی لے گی۔ امریکی حکومت سے ہیڈلی کے سمجھوتے کے تحت ہندوستان کی پاکستانی امریکی دہشت گرد تک رسائی بیان، ویڈیو کانفرنسنگ یا خصوصی خط کے ذریعہ ہوسکتی ہے۔
ذرائع کے مطابق ہندوستان تینوں ذرائع کی کوشش کرے گا اور خصوصی طور پر بیان یا سیدھے طور پر رابطہ کی کوشش کرے گی۔ ہندوستان نے ہیڈلی کے بیان درج کرنے کے لئے ایک مجسٹریٹ کو روانہ کرنے کا فیصلہ کیا ہے جوعدالت میں قابل قبول ثبوت ہوگا۔
ذرائع کا کہنا ہے کہ مجسٹریٹ کو تب روانہ کیا جائے گا جب امریکہ ہیڈلی کے بیان درج کرنے کی اجازت دے دے گا۔ سی آر پی سی کی دفعہ 164کے تحت بیان درج ہوگا جو ہندوستانی عدالت میں قابل قبول ہے۔ ممبئی میں جب ہیڈلی کے خلاف چارج شیٹ داخل کی جائے گی تب یہ بیان کافی اہم ہوگا۔ گزشتہ ہفتے ہیڈلی نے اپنے اوپر لگے 12دہشت گردی کے الزامات کو قبول کرلیا تھا جن میں سے 9معاملے 26/11کو ممبئی پر ہوئے دہشت گردانہ حملے سے جڑے ہیں۔

क्या कभी सोचा है आपने ‘‘टैरर ट्रेड’’ के बारे में
अज़ीज़ बर्नी

मैं हर दिन एक पूरे पृष्ठ का लेख लिखता हूं और सिलसिला बना रहता है, मगर कई बार जब मुझे केवल कुछ पंक्तियां लिखनी होती हैं तो यह सिलसिला टूट जाता है, इसलिए कि बहुत सोचना होता है, बहुत अध्ययन करना होता है, वह चंद पंक्तियां लिखने के लिए और यह बात बस इतनी ही नहीं है, बल्कि अतिसंभव प्रयास रहता है कि यह कुछ पंक्तियां पूर्ण रूप से निष्पक्ष और तथ्यों पर आधारित दिखाई दें। यदि तनिक भी यह भाव चला गया कि मैं किसी देश, संस्था या घटना के बारे में पूर्वाग्रह से ग्रस्त हूं तो लेख अर्थहीन हो जाएगा। मैंने जब बटला हाऊस के संदिग्ध एन्काउन्टर के बारे में लिखना आरंभ किया तो बहुत सी आवाज़ें उठीं, परन्तु मैं लिखता रहा इस विश्वास के साथ कि इन्शाअल्लाह एक दिन सच सामने आयगा ज़रूर। कुछ लोगों को लगा कि मैं एक विशेष मानसिकता रखता हूं इसलिए यह सब लिख रहा हंूं। लेकिन अल्लाह का करम है कि धीरे-धीरे तस्वीर साफ़ होने लगी, सच सामने आने लगा और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट ने तो लगभग यह स्पष्ट कर दिया कि बटला हाउस एन्काउन्टर की हक़ीक़त क्या है। हालांकि रिपोर्ट तो अब आई है, हमने तो उन तस्वीरों को सामने रख कर तथा अनुभवी डाक्टरों से सलाह करके उसी समय जो बात कही थी, आज वही सच साबित हुई है। इसी तरह 26/11/2008 को मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले को गंभीरता से देखने और समझने के बाद हमने जो कुछ लिखा, वह अब भी हक़ीक़त का रूप लेता नज़र आ रहा है।
डेविड कोलमैन हेडली का मामला भी हमारे लिए बटला हाउस के संदिग्ध एन्काउन्टर और मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले की छानबीन जैसा ही है। इसलिए कि हम डेविड कोलमैन हेडली को केवल और केवल 26/11 तक ही सीमित करके नहीं देख रहे हैं। हम फिर कहेंगे कि डेविड कोलमैन हेडली तो बस एक नाम है और 26/11 एक आतंकवादी हमला, बात बस इतनी ही नहीं है। अगर हमने इसके दूरगामी परिणामों पर विचार नहीं किया तो सारी सच्चाई हेडली के नाम के साथ ही समाप्त हो जाएगी। फ़र्ज कीजिए कि डेविड हेडली ने जेल की सलाख़ों के पीछे आत्महत्या कर ली, तो अब क्या करेंगे आप? न अमेरिका पर दबाव डालने का कोई अर्थ, न आतंकवादी हमलों में एफबीआई और सीआईए की भूमिका पर से पर्दा उठने की उम्मीद।
दूसरा एक और अत्यंत महत्वपूर्ण कारण है डेविड कोलमैन हेडली को बचाने का। क्या आपको लगता है कि दुनिया भर में केवल एक ही हेडली है, अर्थात केवल एक ही एफबीआई या सीआईए का एजेंट है या और भी हेडली दुनिया के चप्पे-चप्पे पर फैले हैं? और वह सबके सब आज अमेरिका की ओर नज़रें उठाकर देख रहे हैं कि क्या अमेरिका उस हेडली को बचा पाता है? अगर हां, तो वह सभी हेडली दुनिया के चाहे जिस कोने में हों, और उन्हें जो भी ज़िम्मेदारी सौंपी गई हो, उस ज़िम्मेदारी को निभाने में जान लड़ा देंगे इसलिए कि डेविड कोलमैन हेडली की सुरक्षा, उसके परिवार को किसी प्रकार की कोई कठिनाई का न होना, इन सबके लिए अत्यंत उत्साहवर्धक होगा ह्न ह्न और अगर डेविड कोलमैन हेडली को किसी भी प्रकार की पीड़ा का सामना करना पड़ता है, कठोर सज़ा मिलती है या भारत के हवाले कर दिया जाता है तो फिर सभी का उत्साह टूट जाएगा, अमेरिका से भरोसा टूट जाएगा और फिर वह हेडली की तरह एफ.बी.आई या सी.आई.ए के एजेंट के रूप में काम करने का साहस नहीं करेंगे। अमेरिका ऐसा कभी नहीं होने देगा। भारत से संबंध समाप्त हो जाने की क़ीमत पर भी नहीं। भारत से दुश्मनी का संबंध स्थापित हो जाने की स्थिति में भी नहीं (हालांकि दोनों ही बातों की संभावना नहीं है), इसलिए कि उसकी नज़र सारी दुनिया पर है और किसी एक देश की दोस्ती के लिए पूरी दुनिया के हवाले से उसे अपनी योजनाओं को नाकामी की ओर ले जाने का फैसला कर लिया जाए यह संभव नहीं है।
अतएव कुछ बातों पर हमें बहुत गंभीरता से विचार करना होगा। ‘चाइना’ तुलनात्मक रूप में भारत और पाकिस्तान के एक शांतिपूर्ण देश हैं, जबकि सीमाएं भारत से भी मिलती हैं और पाकिस्तान से भी। चीन सब कुछ भूल कर केवल प्रगति के रास्ते पर अग्रसर है, उसने अपने ‘मैन पाॅवर’ को ‘मनी पाॅवर’ में बदलने का तरीक़ा सीख लिया है। आज पूरी दुनिया में कहीं भी जाइए घरेलू आवश्यकताओं की लगभग सभी वस्तुएं चीन की बनी होती हैं जो सस्ते दामों में आपको मिल जाएंगी। इसी प्रकार पूरी दुनिया में कहीं भी जाइए घातक हथियार चाहे पुलिस के काम आने वाले हों फौज के काम आने वाले या फिर आतंकवादियों के हाथ में हों इस्राईल और अमेरिका के बने हुए मिलेंगे। अगर चीन के सभी प्रोडक्टों का बाज़ार या ख़पत समाप्त हो जाए तो फिर चीन की आर्थिक स्थिति क्या होगी, आप समझ सकते हैं। इसी प्रकार अगर पूरी दुनिया में शांति स्थापित हो जाय, आतंकवाद से निपटने के लिए सरकारों को अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए हथियार ख़रीदने की आवश्यकता पेश न आए और न ही आतंकवाद का अस्तित्व बाक़ी रहे तो फिर ऐसी स्थिति में अमेरिका की आर्थिक स्थिति क्या होगी, इसका भी आप भलीभांति अनुमान कर सकते हैं। चीन कभी नहीं चाहेगा कि उसके प्रोडक्ट्स का बाज़ार समाप्त हो, जो कि आपकी घरेलू ज़रूरतों को पूरा करता है और अमेरिका कभी नहीं चाहेगा कि उसके प्रोडक्ट्स की मार्किट समाप्त हो, इसलिए कि वह उसकी आर्थिक आवश्यकता पूरी करते हैं। पुरी दुनिया पर शासन के सपने को साकार करने की क्षमता रखते हैं। यह थी वह चंद पंक्तियां जिन्हें लिखने के लिए बहुत सोचना पड़ा। अब फिर उल्लेख डेविड कोलमैन हेडली का और उससे जुड़े ताज़ा रहस्योदघाटनों का। जो ख़बर आज हर तरफ़ गर्म है कि उसके क्रेडिट कार्ड का भुगतान किसने किया, पहले यह महत्वपूर्ण जानकारियां मुलाहिज़ा फरमाएं, उसके बाद रूस में आतंकवाद की ताज़ा घटना पर नज़र डालें, और फिर इन दोनों घटनाओं को सामने रख कर मेरी बातचीत का सिलसिला जारी रखें।
पाकिस्तानी अमेरिकी आतंकवादी डेविड कोलमेन हेडली के इंटरनेशनल क्रेडिट कार्ड बिलों का भुगतान किसने किया, जांच के केंद्र में है जिससे स्पष्ट होता है कि ऐसे ही क्रेडिट कार्डों के माध्यम से संदिग्ध आतंकवादियों ने लगभग 20 से 25 करोड़ रुपए पूरे देश में ख़र्च किए हैं। इस बिल का अमेरिका, कनाडा और नेपाल में भुगतान किया गया जो कड़ियों को जोड़ता है और जिससे उनके मास्टर्स की पहचान ज़ाहिर हो सकती है।
गुप्तचर एजेंसियां जो आर्थिक लेन-देन की जांच कर रही हैं और विभिन्न शहरों में जिहादी नेटवर्क तथा उनके सिलीपर सेल को तलाश कर रही हैं, उन्होंने ने पाया कि संदिग्ध आतंकवादी अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, दुबई, नेपाल तथा बंगला देश में जारी इंटरनेशनल क्रेडिट कार्डों का प्रयोग करते रहे हैं और इन देशों में रहने वाले उनके हंैडलर्स ने बिलों को प्राप्त किया। ऐजेंसियां भुगतान के तरीक़े और उनका लाभ प्राप्त करने वालों की पहचान कर रही हैं।
यह न हवाला चैनल है और न ही लाइन आॅफ़ कन्ट्रोल के दोनों ओर के व्यापारी जिन्होंने देश के अंदर सक्रिय आतंकवादी संगठनों की आर्थिक सहायता की है। आतंकवादियों को अब इंटरनेशनल क्रेडिट कार्ड दिए जा रहे हैं जो भारत में अपने आप्रेशन को अंजाम देने के लिए रुपए निकालने तथा ठहरने के दौरान अपने बिलों के भुगतान के लिए प्रयोग कर रहे हैं।
उच्च सूत्रों के अनुसार सुरक्षा तथा गुप्तचर एजेंसियों ने पाया है कि पिछले कुछ समय में संदिग्ध आतंकवादियों ने इसी तरह के कार्डों द्वारा 20 से 25 करोड़ रुपए ख़र्च किए हैं। जांच से पता चला है कि दिल्ली, मुम्बई, बैंगलोर, हैदराबाद और कश्मीर सहित देश के विभिन्न भागों से रुपए निकाले गए जो स्पष्ट करता है कि आतंकवादियों का नेटवर्क कितना व्यापक है और कितनी सरलता से वह सर्विलांस सिस्टम को धोखा देने में सफल हो रहे हैं। इससे आतंकवादियों के मास्टर माइंड्स के व्यापक आधार ज़ाहिर हो सकते है जो अमेरिका, कनाडा और यूरोप के अन्य देशों से चलाते हैं। इन देशों की सरकारों के साथ भारत सम्पर्क में है और संदिग्ध आतंकवादियों की ओर से किन लोगों ने बिल लिया उसका सत्यापन कर रही है।
उच्च अधिकारियों के अनुसार आतंकवादियों की ओर से अमेरिका तथा यूरोप की धरती से क्रेडिट कार्डों द्वारा आर्थिक सहायता का तरीक़ा पूर्ण रूप से नया है। उन्होंने आगे बताया कि पाकिस्तान, बंगलादेश तथा संयुक्त अरब इमारात (यू॰ए॰ई) जैसे देशों से आतंकवादियों की आर्थिक सहायता पर रखी जा रही निगरानी को धोखा देने के लिए ऐसा किया गया है।
सरकार ने बैंक तथा आर्थिक संस्थानों को अपने ग्राहकों को जानने के सख़्त आदेश दे रखे हैं ताकि आतंकवादी को वैधानिक सिस्टम से आर्थिक सहायोग न प्राप्त हो सके। यह हवाला चैनल पर सख़्त कार्यवाही के अलावा था जो अतीत में सिलसिलेवार आतंकवादी हमले के बाद किए गए थे और जिनका संबंध ऐसे आर्थिक तरीक़ों से था।
भारतीय गुप्तचर एजेंसियां अमेरिकी बैंकों से सम्पर्क करने की योजना बना रही हैं ताकि उन लोगों की पहचान हो सके जिन्होंने अमेरिकी आतंकवादी डेविड कोलमैन हेडली के आतंकवादी मिशन के दौरान उसके इंटरनेशनल क्रेडिट कार्ड के बिल प्राप्त किए।
हालांकि एफ॰बी॰आई॰ ने एन॰आई॰ए॰ (नेशनल इन्वेस्टिगेशन ऐजेंसी) को हेडली के आरोपी तहव्वुर हुसैन राना की कंपनी वल्र्ड इमिग्रेशन को आर्थिक सहायता देने वाला बताया था और जिसने उसके जिहादी मिशन में कवर ;ब्वअमतद्ध भी उपलब्ध कराया था फिर भी यह स्पष्ट नहीं है कि अमेरिका में किसने उसके इंटरनेशनल क्रेडिट कार्ड का बिल प्राप्त किया।
एक अधिकारी का कहना है कि ‘जैसे ही हम हेडली से सम्पर्क करेंगे उससे पूछताछ में भी हम यह प्रश्न करेंगे।’ आगे कहा गया है कि ‘भारत हेडली से सीधे सम्पर्क के लिए इस सप्ताह के अंत में अमेरिका को एक पत्र भेज रहा है। गृहमंत्रालय द्वारा अमेरिका के डिपार्टमेंट आॅफ जस्टिस को हेडली से सीधे पूछताछ की तिथि से संबंधित भेजे जाने वाला पत्र तय हो गया है।’
अधिकारी ने कहा कि पत्र द्वारा मंत्रालय अमेरिकी अधिकारियों को बतायगा कि भारतीय जांच कर्ताओं की एक टीम तैयार है और अमेरिका से अनुमति मिलने के बाद वह जा सकती है। अमेरिकी क़ानून के अनुसार अमेरिका का डिपार्टमेंट आॅफ जस्टिस भारत को हेडली से सीधे पूछताछ के लिए शिकागो की अदालत से अनुमति लेनी होगी जो हेडली के मामले की सुनवाई कर रही है। अदालत भारतीय जांच कर्ताओं को अनुमति देने से पूर्व आतंकवादी के वकील की भी राय लेगी। अमेरिकी सरकार से हेडली के समझौते के तहत भारत की पाकिस्तानी अमेरिकी आतंकवादी तक पहुंच, बयान, वीडियों कान्फ्ऱेंसिंग या विशेष पत्र के माध्यम से हो सकती है।
सूत्रों के अनुसार भारत तीनों माध्यमों का प्रयास करेगा और विशेष रूप से बयान या सीधे तौर पर सम्पर्क की कोशिश करेगा। भारत ने हेडली के बयान दर्ज करने के लिए एक मैजिस्ट्रेट को भेजने का फैसला किया है जो अदालत में स्वीकारीय प्रमाण होगा।
सूत्रों का कहना है कि मैजिस्ट्रेट को तब भेजा जाएगा जब अमेरिका हेडली के बयान दर्ज करने की अनुमति दे देगा। सी॰आर॰पी॰सी॰ की धारा 164 के तहत बयान दर्ज होगा जो भारतीय अदालत में मान्य है। मुम्बई में जब हेडली के विरुद्ध आरोपपत्र दाख़िल किया जायगा तब यह बयान काफी महत्वपूर्ण होगा। पिछले सप्ताह हेडली ने अपने ऊपर लगे 12 आतंकवाद के आरोपों को स्वीकार कर लिया था। जिसमें से 9 मामले 26/11 को मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले से जुड़े है।

Monday, March 29, 2010

انصاف کے بغیر جمہوریت کا تصور ہی کیا!

عزیز برنی…………………………………قسط 108

ہندوستانی مےڈےاکے پرےس کانفرنس مےں وزےراعظم کی افتتاحی تقرےراس سے پہلے کہ مےں اپنی بات شروع کروں، مےں گزشتہ سال 26 نومبر کو ممبئی مےںہوئے دہشت گردانہ حملے کی پہلی سال گرہ کے موقع پر چند جملے کہنا چاہوںگا۔ےہ دن ان معصوم لوگوںاورہمارے جوانوںکو ےاد کرنے اورخراج عقےدت پےش کرنے کا دن ہے جنہوں نے ہندوستان کی تارےخ مےں اب تک کے سب سے خوفناک دہشت گردانہ حملے مےں اپنی جانےں گنوائےں۔قوم کی طرف سے مےں ہراس کنبے کو ےہ پےغام دےنا چاہوںگا کہ بھاری من سے ان کے دکھ مےں شرےک ہےں۔ہم اس تکلےف کو کبھی نہےں بھول پائےںگے جو انہوںنے جھےلی ہے۔آج جب وہ اپنے گزرے ہوئے رشتہ داروں کی روح کی تسکےن کےلئے دعا کررہے ہےں تو اس گھڑی مےں ہم ان کے ساتھ ہےں۔ممبئی پرہوا دہشت گردانہ حملہ ان باہری طاقتوں کا اےک سوچاسمجھاکام تھاجو ہمارے دھرم نرپےکچھ اسٹےٹ سسٹم کو غےرمستحکم کرناچاہتے ہےں۔ےہاں فرقہ وارانہ خےر سگالی کا ماحول بگاڑنا چاہتے ہےں اور ملک کی اقتصادی اور سماجی ترقی کو برباد کرنا چاہتے ہےں۔ اےسی طاقتوں کو ےہ بات صاف طورسے سمجھ لےنی چاہےے کہ وہ اپنے ارادوں مےں کامےاب نہےں ہوںگے۔گزشتہ سال ہمارے ملک کے لوگوں اور کچھ غےرملکی شہرےوں نے اپنی زندگی کی جو عظےم قربانی دی وہ رائےگاں نہےں جائے گی۔ہماری طرز زندگی پر اس طرح کے حملوں سے اےک کھلے، جمہوری اور سےکولر سماج پر کوئی اثرنہےں پڑے گا۔ہماری حکومت اس وقت تک چےن سے نہےں بےٹھے گی جب تک وہ اس حملہ کے ذمہ دارافراد کو سزانہ دلادے۔ ےہ ہمارا اوّلےن فرض ہے ۔ ہم نے پوری طاقت کے ساتھ ےہ معاملہ حکومت پاکستان کے ساتھ اٹھاےاہے۔ہمےں امےد ہے کہ اس حملہ کی منصوبہ ساز ی کرنے والوںاور ان کے حامےوںپر مقدمہ چلاےاجائے گا اورانہےں سزابھی دی جائے گی۔دہشت گردی اوراس کو تحفظ دےنے والوں کے پورے ڈھانچے کو ختم کرناہوگا۔ہم نے ملک مےںاپنی سےکورٹی اورخفےہ مشنری کو مضبوط کرنے کےلئے کئی تدابےر کی ہےں۔ ا س طرح کے ممکنہ حملوں سے نمٹنے کےلئے اےک مؤثرجوابی نظام بناےا گےا ہے۔ہم تب تک اور بھی تدابےر کرتے رہےںگے جب تک کہ ہم خود بھی مطمئن نہ ہوجائےں کہ ہم نے اس کےلئے اےک اچوک نظام تےارکرلےا ہے۔مےں قوم کو پھر ےقےن دہانی کراناچاہتاہوں کہ اندرونی سلامتی کومحفوظ بنانا حکومت کی اوّلےن ترجےح ہے اور ہم اپنے شہرےوںکی زندگی کی حفاظت کےلئے اور سلامتی تدابےر کرنے کےلئے کوئی بھی کسرنہےںچھوڑےںگے۔مےںنے ابھی ابھی امرےکہ کاکامےاب دورہ کےا ہے۔ صدر اوباما اورامرےکہ کے دےگرلےڈروںکے ساتھ اپنی بات چےت کی بنےاد پر مجھے پورا ےقےن ہے کہ گزشتہ برسوں مےںہمارے تعلقات جو قائم ہوئے ہےں ہم نہ صرف انہےں برقراررکھ سکتے ہےں بلکہ ان کی رفتار کو مزےد تےز کرسکتے ہےں۔صدراوبامانے اس اہم رول کو تسلےم کےا جو ہندامرےکی ےونےن اکےسوےں صدی کے عالمی چےلنجوںکا مقابلہ کرنے مےں ادا کرسکتے ہےں۔ہم اس بات پر متفق تھے کہ ہندوستان اورامرےکہ کےلئے اپنے ےکساں اصولوں، عام اتفاق رائے اور تعاون کی بنےاد پر عالمی امن اوراستحکام کےلئے مل کر کام کرنے کا ےہ اےک تارےخی موقع ہے۔ہم نے ان بہت سی باتوں پربھی تبادلہ خےال کےا کہ کس طرح سے ہم عالمی اقتصادی نظام کو تےزی سے از سرنوپٹری پرلانے اورمستقبل مےں مزےد تےزی کے ساتھ اور متوازن راہ پر برقراررکھنے کےلئے مل کر کام کرسکتے ہےں۔ہم صدر اوباما کی کوپن ہےگن مےں تبدےلی آب وہواپرہوئی مےٹنگ مےں اےک وسےع اور متوازن نتےجہ ےقےنی بنانے کےلئے ان کے ٹھوس عہد کا خےرمقدم کرتے ہےں۔ہم نے اس نتےجہ کوےقےنی بنانے کےلئے باہمی طورپر مل کرکام کرنے اوردےگر ممالک کے ساتھ اس سمت مےں مل کرکام کرنے پر اتفاق کا اظہار کےا ہے۔ہم نے اپنے تعلقات کو مزےد آگے لے جانے کےلئے اےک ڈھانچہ تےارکےا ہے۔اس موقع پر جو مشترکہ اعلامےہ جاری کےا گےاہے اس مےں زراعت، تعلےم، صحت، صاف توانائی اور توانائی سےکورٹی، دفاع،سائنس اورتکنےک کے شعبے مےں ممکنہ تعاون کی ہماری ترجےحات کا ذکرہے۔ہم نے اپنے سول اےٹمی تعاون کے معاہدے کے فی الفور اورمکمل عمل درآمد پر اتفاق ظاہر کےا ۔ اس سے ہندوستان کو اعلیٰ تکنےکی اشےاء کے تبادلہ کا راستہ ہموار ہوگا۔صدراوباما دونوں ممالک کے سامنے کھڑے دہشت گردی کے خطرے اور اس سے نمٹنے کےلئے دونوں ممالک کے مل کر کام کرنے کی ضرورت کے تئےں بےحد بےدارنظرآئے۔ ہم نے دہشت گردی کے خلاف لڑائی کے مےدان مےں تعاون کومضبوط کےے جانے پر بھی اتفاق جتاےا۔انہوںنے مجھے بتاےا کہ امرےکہ افغانستان کی تعمےرنو اوراس کی ترقی مےں ہندوستان کے رول کا بےحد احترام کرتا ہے۔اےشےا پےسےفک خطے مےں امن اورخوشحالی لانے کے تعلق سے بھی ہمارے خےالات اےک جےسے تھے۔مےں نے امرےکی کانگرےس کی صدرنےنسی پےلوسی ،جو کہ ہندوستان کی اےک بہترےن دوست ہےں، کانگرےس اور سےنےٹ کے سےنئر اراکےن سے بھی ملاقات کی۔ ان سبھی مےٹنگوں مےں اور تجارتی برادری نےز سےاسی ماہرےن کے ساتھ ہوئی مےٹنگوں مےں مجھے ہندوستان کے تئےںلامحدود ہم آہنگی دےکھنے کوملی۔ےہاں ہندوستان کے تئےںگرم جوشی، احترام اورعزت کا جذبہ ہے اورساتھ ہی ہماری اسٹرےٹجک پارٹنرشپ کو مضبوط کرنے کےلئے ہندوستان کے ساتھ مل کر کام کرنے کی فطری خواہش بھی ہے۔آج تھوڑی دےربعد مےںامرےکہ مےںہندوستانی برادری کے اراکےن کے ساتھ مےٹنگ کروںگا۔انہوںنے ہمارے دونوںممالک کو ساتھ لانے مےں شاندارکردارادا کےاہے۔ہمےں ان کی حصولےابیوں پر فخرہے اورہم چاہتے ہےں کہ اسی طرح مزےد خوشحال ہوںاوربہترےن حصولےابی فراہم کرےں۔ان کا امرےکی سماج اور اقتصادی نظام کےلئے جو تعاون رہاہے اس کا مجھ سے ملاقات کرنے والے سبھی لےڈروںنے ذکرکےا۔مےںصدراوباما اورخاتون اوّل مسز مشےل اوباماکابےحد شکرگزارہوںکہ انہوں مےری اورمےری بےوی کی گرمجوشی کے ساتھ خاطرمدارات کی اورامرےکی صدر کے پہلے سرکاری مہمانوں کے طورپر ہمےں عزت دی۔ صدراوباما نے ہندوستان کے دورہ کی ہماری دعوت قبول کرلی ہے اورہم 2010مےںانہےں اوران کے کنبہ کا پورے احترام کے ساتھ خےرمقدم کرنے کے منتظرہوںگے۔مےںنائب صدر ڈاکٹربےڈےن اور وزےرخارجہ محترمہ مسز کلنٹن کی جانب سے ہندوستان کے تعلق سے دکھاےاگےادوستی کے جذبہ کا بھی خصوصی طورپر ذکرکرنا چاہوںگا۔ ہم دونوں ممالک کے تعلقات کے تئےں ان کی نجی دلچسپی کا بےحد احترام کرتے ہےں۔مےں ےہاںسے اس امےد کے ساتھ جارہاہوںکہ مےرے اس دورہ سے ہندوستان اورامرےکہ کے مابےن باہمی ساجھےداری مزےدگہری ہوئی ہے اور مےرے اس دورہ نے ہمارے اسٹرےٹجک پارٹنرشپ کےلئے نئی راہےں طے کی ہےں اور ہمارے قومی مفادات کو آگے لے جائےںگی۔

न्याय के बिना लोकतंत्र की कल्पना ही क्या!
अज़ीज़ बर्नी

मीडिया के संवाददाता सम्मेलन में प्रधानमंत्री का उद्घाटन भाषणइससे पहले कि मैं अपनी बात शुरू करूं, मैं पिछले वर्ष 26 नवंबर को मुम्बई में हुए आतंकवादी हमले की पहली वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर चंद शब्द कहना चाहूंगा।यह दिन उन मासूम लोगों और हमारे जवानों को याद करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने का दिन है जिन्होंने भारत के इतिहास में अब तक के सबसे भयानक आतंकवादी हमले में अपनी जानें गंवाई। राष्ट्र की तरफ से मैं उस हर परिवार को यह संदेश देना चाहूंगा कि हम भारी मन से उनके दुखः में शरीक हैं। हम उस वेदना को कभी नहीं भूल पाएंगे जो उन्होंने झेली है। आज जब वे अपने दिवंगत प्रियजनों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं तो इस घड़ी में हम उनके साथ हैं।मुम्बई पर हुआ आतंकवादी हमला उन बाहरी ताकतों का एक सोचा समझा काम था जो हमारी धर्मनिरपेक्ष राज्य व्यवस्था को अस्थिर करना चाहते हैं, यहां सांप्रदायिक सौहार्द का वातावरण बिगाड़ना चाहते हैं और देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति को नष्ट करना चाहते हैं। ऐसी ताक़तों को यह बात साफ तौर से जान लेनी चाहिए कि वे अपने इरादों में सफल नहीं होंगे। पिछले वर्ष हमारे देश के लोगों और कुछ विदेशी नागरिकों ने अपने जीवन का जो सर्वोच्च बलिदान दिया वह बेकार नहीं जाएगा।हमारी जीवन पद्धति पर इस तरह के हमलों से एक खुले, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष समाज पर कोई असर नहीं पड़ेगा।हमारी सरकार तब तक चैन से नहीं बैठेगी जब तक वह इस हमले के दोषियों को सज़ा न दिलवा दे। यह हमारा परम कत्र्तव्य है। हमने पूरी ताक़त के साथ यह मामला पाकिस्तान सरकार के साथ उठाया हैं। हमें उम्मीद है कि उस हमले के नीति निर्धारक और उनके समर्थकों पर मुक़दमा चलाया जाएगा और उन्हें सज़ा दी जाएगी। आतंकवाद और उसको सुरक्षा देने वालों के संपूर्ण ढांचे को नष्ट करना होगा।हमने देश में अपने सुरक्षा और खुफिया तंत्र को मज़बूत करने के लिए कई उपाय किए हैं। इस तरह के भावी हमलों से निपटने के लिए एक प्रभावी जवाबी तंत्र बनाया गया है। हम तब तक और भी उपाय करते रहेंगे जब तक कि हम स्वयं संतुष्ट न हो जाएं कि हमने इसके लिए एक अचूक व्यवस्था तैयार कर ली है। मैं राष्ट्र को पुनः आश्वस्त करना चाहता हूं कि आंतरिक सुरक्षा को मज़बूत बनाना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है और हम अपने नागरिकों के जीवन की सुरक्षा के लिए और सुरक्षा उपाय तैयार करने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ेंगे।मैंने अभी-अभी अमरीका की सफल यात्रा की है। राष्ट्रपति ओबामा और अमरीका के अन्य नेताओं के साथ अपनी बातचीत के आधार पर मुझे पूरा विश्वास है कि पिछले वर्षों में जो हमारे संबंध बने हैं हम न केवल उन्हें बनाए रख सकते हैं बलिक् उनकी गति को और ज़्यादा बढ़ा सकते हैं।राष्ट्रपति ओबामा ने उस महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया जो भारत-अमरीकी संबंध 21वीं सदी की वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में निभा सकते हैं। हम इस बात पर सहमत थे कि भारत और अमरीका के लिए अपने समान मूल्यों, सर्वसहमति और सहयोग के आधार पर विश्व शांति और स्थायित्व के लिए मिलकर काम करने का यह एक ऐतिहासिक अवसर है।हमने उन बहुत सी बातों पर भी चर्चा की कि किस तरह से हम विश्व अर्थव्यवस्था को तेज़ी से पुनः पटरी पर लाने और भविष्य में और ज़्यादा सतत और संतुलित पथ पर बनाए रखने के लिए मिलकर काम कर सकते हैं।हम राष्ट्रपति ओबामा की कोपेनहेगन में जलवायु परिवर्तन बैठक में एक व्यापक और संतुलित परिणाम सुनिश्चित करने के लिए उनकी ठोस प्रतिबद्धता का स्वागत करते हैं। हमने इस परिणाम को सुनिश्चित करने के लिए द्विपक्षीय तौर पर मिलकर काम करने और अन्य देशों के साथ इस दिशा में मिलकर काम करने पर सहमति व्यक्त की।हमने अपने संबंधों को और आगे ले जाने के लिए एक ढांचा तैयार किया है। इस अवसर पर जो संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया है उसमें कृषि, शिक्षा, स्वास्थय, स्वच्छ ऊर्जा तथा ऊर्जा सुरक्षा, रक्षा, विज्ञान व पोद्योगिकी के क्षेत्र में भावी सहयोग की हमारी प्राथमिकताएं उल्लिखत हैं।हमने अपने सिविल प्रमाणु सहयोग के समझौते के अविलम्ब और पूर्ण कार्यनवयन पर सहमति व्यक्त की। इससे भारत को उच्च तकनीकी वस्तुओं के आदान प्रदान का मार्ग प्रशस्त होगा।राष्ट्रपति ओबामा दोनों देशों के सामने खड़े आतंकवादी खतरे और इससे निपटने के लिए दोनों देशों के मिलकर काम करने की ज़रूरत के प्रति बेहद सजग दिखे। हमने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के क्षेत्र में सहयोग को मज़बूत किए जाने पर भी सहमति व्यक्त की। उन्होंने मुझे बताया कि अमरीका अफ़ग़ानिस्तान के पुननिर्माण और उसके विकास में भारत की भूमिका का बहुत सम्मान करता है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शांति और खुशहाली लाने के प्रति भी हमारे विचार एक जैसे थे।मैंने अमरीकी कांग्रेस की अध्यक्षा नैनसी पेलोसी, जो कि भारत की एक अच्छी मित्र हैं, कांग्रेस तथा सीनेट के कई वरिष्ठ सदस्यों से भी मुलाक़ात की। इन सभी बैठकों में और व्यापारिक समुदाय और रणनीतिक विशेषज्ञों के साथ हुई बैठकों में मुझे भारत के प्रति असीम सद्भावना देखने को मिली। यहां भारत के प्रति गर्मजोशी, सम्मान और आदर का भाव है और साथ ही हमारी रणनीतिक भागीदारी को मज़बूत करने के लिए भारत के साथ मिलकर काम करने की स्वाभाविक इच्छा भी है।आज थोड़ी देर बाद मैं अमेरिका में भारतीय समुदाय के सदस्यों के साथ बैठक करूंगा। उन्होंने हमारे दोनों देशों को साथ लाने में शानदार भूमिका निभाई है। हमें उनकी उपलब्धियों पर गर्व है और हम चाहते हैं कि इसी तरह और खुशहाल हों तथा और बेहतरीन उपलब्ध्यिां हासिल करें। उनका अमरीकी समाज और अर्थव्यवस्था के लिए जो योगदान रहा है उसका मुझसे मुलाक़ात करने वाले सभी नेताओं ने ज़िक्र किया।मैं राष्ट्रपति ओबामा और प्रथम महिला श्रीमती मिशेल ओबामा का बेहद शुक्रगुज़ार हूं कि उन्होंने मेरा और मेरी पत्नी का गर्मजोशी के साथ आदर सत्कार किया और अमरीकी राष्ट्र के प्रथम राजकीय मेहमानों के रूप में हमारा सम्मान किया। राष्ट्रपति ओबामा ने भारत यात्रा का मेरा निमंत्रण स्वीकार कर लिया है और हम 2010 में उन्हें तथा उनके परिवार का पूरे सम्मान के साथ स्वागत करने का इंतज़ार करेंगे।मैं उपराष्ट्रपति डाॅ. बिडेन और विदेश मंत्री महोदया श्रीमती क्लिंटन द्वारा भारत के प्रति दिखाई गई मित्र भावना का भी विशेष रूप से उल्लेख करना चाहूंगा। हम दोनों देशों के संबंधों के प्रति उनकी निजी प्रतिबद्धता का बेहद सम्मान करते हैं।मैं यहां से इस भरोसे के साथ जा रहा हूं कि मेरी इस यात्रा से भारत और अमरीका के बीच आपसी समझदारी और गहरी हुई है और मेरी इस यात्रा ने हमारी रणनीतिक भागीदारी के लिए नई दिशाएं तय की हैं जो हमारे राष्ट्रीय हितों को आगे ले जाएंगी।

Friday, March 26, 2010

The Curious Case of David Coleman Headley

By Amaresh Misra

With the row over India’s access to David Headley growing acrimonious each day, the CIA’s double agent saga seems all set to open up a can of incredible worms. First, the case unmasks the pro-US face of the Indian English media. When the Headley saga first came to light, Vir Sanghavi of the Hindustan Times carried an editorial piece claiming that if `Headley is CIA, and knew about 26/11, the CIA knew about the attack.’ In other words, Sanghavi accepted the `conspiracy theory’—which in the eyes of the English media was `peddled’ by Aziz Burney and this author during the terrible aftermath of 26/11—that the event was a CIA/Mossad/RSS/ISI plot. In November-December 2008, Vir Sanghavi and his cohorts in the English media attacked both Aziz Burney and this author for spelling forth the `conspiracy theory’. Then after Headley’s name surfaced, they changed tune, without of course admitting their debt to Mr. Burney or this author. The fact of the matter is that in the 2009 Parliamentary elections, the English media was all set to project Lal Krishna Advani as India’s next Prime Minister. It was the feverish anti-RSS, anti-Mossad work done by Aziz Burney and this author that went a long way in ensuring the victory of Congress and secular forces. Now when the CIA hand behind 26/11 is slowly being unraveled, the English media is seeing red. It is again trying to portray Headley merely as a Lashkar operative, severing thus his links with the CIA. This highlights the second point, that basically Headley and the CIA cannot be de-linked. Thank God the government of India put into place the NIA, a new investigative agency. The NIA was set up, as the IB and other India agencies, especially the IB, had not only gone anti-Muslim—they had gone anti-India. This was proved in the case of Azamgarh boys picked up in and around the Batala House encounter on various bomb blasts charges. Most of the boys were products not of Madarsas, but modern schools. They were youngsters in their teens; they had made a mark for themselves in professional courses and were holding jobs in the new, professional sector of the economy. When Shri Digvijaya Singh, the General Secretary AICC and the most secular leader of the India, went to Sanjarpur (under the banner of anti-communal front) in Azamgarh to find out the facts for himself, he was shocked to find that Zeeshan, a boy from Azamgarh who on the fateful day of the Batala House encounter was giving his exams, had more than 50 cases slapped over him in more than 3 states—which meant that his parents could go on fighting cases for more than 100 years and yet Zeeshan would be in jail. There are dozens and hundreds of Zeeshans from Azamgarh and other districts of UP, Gujarat and Maharashtra languishing in various Indian jails on unsubstantiated charges. This in fact is India’s Guantanamo Bay story—that right here in the world’s largest democracy the Indian security services like the IB have secret detention and torture centers where innocent Muslim youths are tortured and put to death. The IB today has been infiltrated heavily by RSS, Mossad and CIA. In fact this one agency is an anti-national agency—it is obstructing the work of NIA and secular Indians like Shri Digvijaya Singh. Soon, in India’s interest, the IB will have to be closed down. All its communal officers will be hunted down and tried in a court of just law. The IB knew about Headley—this is proved by the fact that the SIM cards used by the ten 26/11 terrorists were purchased by an IB informer. Till date, the investigations into the 26/11 case, which the IB is handling, has been unable to state as to how the ten terrorists got hold of the SIM cards. The State IB chief of Maharashtra told a very senior Mumbai Police Officer just after 26/11 that he was `entirely in the dark about 26/11 investigations as Delhi (meaning the chief IB office) was handling it’. Basic information about 26/11 was not shared with secular Indian officers. The Headley lead would never have come to the fore had the NIA not stepped in. Now comes the news that the IB has set-up training camps in Gorakhpur, where it trains criminals—and then uses them to kill Muslim under-trials. The name of Chota Rajan is used as a convenient scapegoat. It is in this manner that dozens of accused in the 1993 Mumbai bomb blasts, several other such accused in other cases, Muslim businessmen and men of influence have been eliminated on a systematic basis in Maharashtra. The latest in the long list of victims killed allegedly by IB is Shahid Azmi, the lawyer defending the accused of the 2006 Mumbai train blasts. Shahid had hit upon evidence which proved the innocence of the accused—and that is why he was bumped off, again by criminals with Nepal-Gorakhpur links! In fact, the state of Maharashtra holds the dubious distinction of almost institutionalizing the extra-judicial killing of Muslim youth and personalities. Headley was in India months and years before the 26/11 attack; he even surveyed Pune where a blast took place as late as February 2010. It beats one imagination as to how the IB did not know about Headley and his movements. There can only be two scenarios: that the IB is totally incompetent—or that the IB is heavily infiltrated by CIA and Mossad: the agency knew about 26/11 and did nothing to stop it. This places the IB at par with Headley, as executioners of 26/11 and mass murderers. There can be no other honest conclusion. Headley holds the key to the fact that 26/11 was not just a mere Lashkar operation—that it was a joint Mossad-CIA operation, conducted with possible ISI and RSS help. If the charge-sheet against Raj Kumar Purohit and Saadhvi Pragya, accused in the Malegaon and other blasts, is read, it is clear that there was always some sort of collusion between the RSS and the ISI. The so-called nationalists, the Hindutva forces took money to the tune of Crores of rupees from the ISI! The IB knows about this transaction but is keeping quiet!The Headley saga has links to Abhinav Bharati and pro-Hindutva terror groups. The pro-Hindutva terror groups are widely believed to be behind the Pune blasts where a combination of RDX and Ammonium Nitrate was used. Right after the visit of Shri Digvijaya Singh to Maharashtra in February 2010, the state home secretary spoke of the possibility of the involvement of Hindutva groups in the Pune blasts. Other officers, including the ATS chief Raghuvanshi, purported to be a RSS/opportunist man also spoke of this possibility. But then RR Patil, the Maharashtra Home Minister whose role during 26/11 was disastrous and who was removed from his post in the wake of the attack on Mumbai (but who was restored after the 2009 assembly elections), made amazing statements `that those who take the name of Hindu organizations in the Pune blasts will be punished’! How can a Home Minister make such a statement? Now we hear that Rakesh Maria, a notorious anti-Muslim officer, with pro-Israel links, a man who has killed and tortured innocents, has been made the new ATS chief and Raguvanshi has been promoted! Secular organizations in Maharashtra were demanding that Raghuvanshi be removed and that an honest, secular officer be made the ATS chief so that Hemant Karkare’s seminal work in cracking the shell of Hindutva communalism could be exposed. But Rakesh Maria is even worse than Raghuvanshi. It seems that the NCP in Maharashtra has taken a clear anti-Congress, anti-national line. RR Patil, who is a third grade, uncouth, thoroughly communal, NCP leader should be removed from his post. The Maharashtra chief minister should act, because if the NIA gets access to Headley, the latter’s links with Hindutva organization—and the whole RSS-Mossad-CIA-ISI-IB nexus—will be exposed. This nexus is working overtime to destabilize the Congress government and overthrow the commendable done by the party under the secular leadership of Sonia Gandhi.

Amaresh Misra is a famed historian and chief of the Anti-Communal Front of the All India Congress Committee (AICC)

Thursday, March 25, 2010

جو لہجہ پاکستان کےلئے تھا، کیا اب امریکہ کےلئے بھی ہوگا؟

عزیز برنی…………………………………قسط 107

زیر نظر تقریر ہمارے ملک کے وزیر اعظم ڈاکٹر منموہن سنگھ نے ممبئی پر ہوئے دہشت گردانہ حملوں کے بعد 11دسمبر 2008کو لوک سبھا میں بحث کے دوران کی،جسے آج ہم نے لفظ بہ لفظ قارئین کی خدمت میں پیش کرنے کی جسارت کی ہے۔
ہم اپنے وزیر اعظم سے دوہرے معیار کی امید نہیں کر تے۔اس تقریر میں ہمارے وزیر اعظم نے جو کچھ بھی کہا ہے، ہم اس سے لفظ بہ لفظ متفق ہیں، مگر اب دیکھنا یہ ہے کہ ہمارے ملک میں دہشت گردانہ عمل کے لئے جو نئے چہرے سامنے آئے ہیں،تازہ انکشافا ت کے بعد منصوبہ بندی کے لئے جس زمین کا استعمال کیا گیا ہے،کیا ہمارے وزیر اعظم اس کے لئے بھی یہی تاثرات رکھتے ہیں؟ اگر ہاں ،تو گفتگو اور عمل میں وہ بات نظر کیوں نہیں آتی، جو اب تک نظر آتی رہی ہے اور اگر نہیں تو کیوں؟
جیسا کہ ہم نے اپنے قارئین کی خدمت میں عرض کیا ہے،آج6/11 ہمارے لئے ایک ریسرچ کا موضوع ہے،اس لئے کہ ہم اپنے ملک کو شدید خطرے میں محسوس کر رہے ہیں اور یہ خطرہ کچھ اس طرح نظر آرہا ہے گویا ہمارے ملک کو پھر سے غلام بنانے کی سازش کی جا رہی ہے۔لہٰذا ہمیں اس ضمن میں بہت کچھ لکھنا ہے، مگر صرف لفظوں کے سہارے نہیں ،تاریخی حقائق اور ایسے دستاویز سامنے رکھ کر اپنی بات کہنی ہے کہ سب کچھ آئینے کی طرح صاف ہو جائے اور جو کچھ بھی ہم محسوس کر رہے ہیں،اس کا اندازہ ہماری قوم اور ہمارے ملک کے نگہبانوں کو ہوسکے اور ہم بروقت ملک دشمن طاقتوں کے خلاف ایک معقول لائحہ عمل تیار کر سکیں۔ میری جانب سے آج بس یہی چند جملے۔ملاحظہ فرمائیں وزیر اعظم ہند کی ممبئی پر دہشت گردانہ حملوں کے بعد کی گئی یہ تاریخی تقریر۔کچھ جملے میں نے دانستہ طور پر انڈر لائن کئے ہیں۔اس لئے کہ انھیں آپ بار بار پڑھیں اور اپنے ذہن میں محفوظ کر لیں، اس لئے کہ آگے جب ہم اس موضوع پر لکھنا شروع کریں گے تو بہت کچھ ان جملوں کی روشنی میں بھی ہوگا۔
’’میں اپنی بات شروع کرنے سے پہلے یہ کہنا چاہتا ہوں کہ ہم اس حقیقت کے تئیں انتہائی چوکنا ہیں کہ دہشت گردی کی وارداتیں بڑھ رہی ہیں اور ان سنگین معاملوں میں کئی شہریوں کی جانیں گئی ہیں۔ میں سمجھتا ہوں کہ ہمارے نظام اور عمل کا جائزہ لینے کی ضرورت ہے۔ حکومت کی جانب سے میں عوام سے اس بات کے لئے معذرت خواہ ہوں کہ ان سنگین وارداتوں کو نہیں روکا جاسکا۔
جہاں تک ممبئی کا سوال ہے، یہ انتہائی منظم اور سفاکانہ حملہ تھا، جس کا مقصد وسیع پیمانے پر دہشت پیدا کرنا اور ہندوستان کی شبیہ کو نقصان پہنچانا تھا۔ اس حملے کے پیچھے جو طاقتیں کام کررہی تھیں، ان کا ارادہ ہماری سیکولر سیاست کو غیر مستحکم کرنا، فرقہ وارانہ پھوٹ ڈالنا اور ہمارے ملک کی اقتصادی اور سماجی ترقی میں رکاوٹ ڈالنا تھا۔
ہم میں سے ہر ایک نے اس خوفناک واقعہ کی مذمت کی ہے اور غمزدہ کنبوں کے تئیں گہری تعزیت اور زخمیوں کے تئیں ہمدردی کا اظہار کیا ہے۔ نیشنل سیکورٹی گارڈ اور نیوی کمانڈو جیسے خصوصی دستوں سمیت پولس اور سیکورٹی فورسز کی بہادری اور حب الوطنی کے تئیں ہم سربسجودہیں۔ میں اس واقعہ میں متعدد غیر ملکی شہریوں کے مارے جانے پر بھی انتہائی دکھ کا اظہار کرتا ہوں۔ میں نے ذاتی طور پر بات چیت کرکے اور تحریری پیغام بھیج کر ان ممالک کے لیڈروں سے معافی مانگی ہے، جن کے شہریوں کی اس حملے میں جانیں گئیں۔
ہم چاہے جو بھی کہیں اور کچھ بھی کرلیں، لیکن جو جانیں گئی ہیں ان کی تلافی نہیں کی جاسکتی، لیکن یہ طے کرنا انتہائی اہم ہے کہ گزرتے وقت کے ساتھ ان کی قربانی کی یاد بھی بھلائی نہیں جانی چاہئے۔ پارلیمنٹ کو پھر اس عزم کا اظہار کرنا ہوگا کہ ہمارا ملک دہشت گردی کو شکست دینے اور اس کی جڑوں اور شاخوں کو ختم کرنے کے تعلق سے پابند عہد ہے۔ ہمیں دہشت گردی کی تباہ کاری سے پوری طاقت کے ساتھ لڑنا ہوگا اور ہم لڑیں گے۔ اس کام کے لئے ضروری سبھی وسائل اور تدابیر کو کام میں لایا جائے گا۔
ہماری فوری ترجیح یہ ہے کہ ہندوستان کے لوگوں میں تحفظ کا احساس بحال کیا جائے۔ ہم ایسی صورت حال نہیں برداشت کرسکتے جس میں دہشت گردوں یا دیگر انتہا پسند طاقتوں سے ہمارے شہریوں کی سلامتی کو نقصان پہنچے۔
میرا ماننا ہے کہ ہمیں تین سطح پر کام کرنا ہوگا۔ پہلا یہ ہے کہ ہمیں دہشت گردی کے مراکز، جو پاکستان میں قائم ہیں، کے ساتھ مؤثر طریقے سے اور پُرزور انداز میں نمٹنے میں اندرونی برادری کو شامل کرنا ہوگا۔ دہشت گردی کے ڈھانچے کو مستقل طور پر ختم کرنا ہوگا۔ ایسا کرنا خود پاکستان کے لوگوں کی خوشحالی سمیت پوری عالمی برادری کی بھلائی کے لئے نہایت ضروری ہے۔
ممبئی میں دہشت گردانہ حملوں کے سلسلے میں متعدد سربراہان مملکت اور سربرہان حکومت نے مجھ سے بات چیت کی ہے۔ ان سبھی نے تحمل سے کام لینے پر ہندوستان کی ستائش کی ہے۔ وہ اس بات سے متفق ہیں کہ ان حملوں کے ذمہ دار افراد کے خلاف سخت کارروائی کی جائے۔ میں نے ان سے کہا ہے کہ ہندوستان محض یقین دہانیوں سے مطمئن نہیں ہوگا۔ بین الاقوامی برادری کی سیاسی خواہش ایک ٹھوس اور مستقل کارروائی کی شکل میں سامنے بھی آنی چاہئے۔ اب وقت آگیا ہے کہ بین الاقوامی برادری متحد ہوکر دہشت گردی کے چیلنج کا مقابلہ کرے۔ ملک کی پالیسی کے وسیلہ کے طور پر دہشت گردی کے استعمال کی اجازت اب کسی کو نہیں دی جائے گی۔ دہشت گردوں کو اچھے یا برے کا نام نہیں دیا جاسکتا۔ بے قصور لوگوں کے قتل کو کسی بھی زاویے سے مناسب نہیں ٹھہرایا جاسکتا۔
ہمیں نہ صرف ممبئی حملوں کے لئے ذمہ دارافراد کو عدالت کے سامنے لانا ہے بلکہ اس بات کے پختہ انتظامات کرنے ہیں کہ دہشت گردی کے ایسے واقعات پھر کبھی نہ ہوں۔
مجھے خوشی ہے کہ اقوام متحدہ نے آج لشکر طیبہ کی معاون تنظیم جماعۃ الدعوہ کودہشت گرد تنظیم قرار دیتے ہوئے اس پر پابندی عائد کرنے اور اس کے سربراہ حافظ محمد سعید سمیت 4افراد کو دہشت گرد قرار دیا ہے۔ ہمارا ماننا ہے کہ اس طرح کی بامقصد کارروائی عالمی برادری کی جانب سے مسلسل کی جانی چاہئے، تاکہ دہشت گردی کا پورا ڈھانچہ تباہ کیا جاسکے۔
دوسرے، ہمیں پاکستان کی حکومت کے سامنے یہ معاملہ پوری شدت سے اٹھانا ہوگا کہ وہ اس طرح کے حملے کے لئے اپنی سرزمین کا استعمال نہ ہونے دے اور ایسی سفاکانہ کارروائی کرنے والوں کے خلاف سخت سے سخت کارروائی کرے۔ عالمی برادری کو یہ یقینی بنانا ہوگا کہ پاکستان ایسے جرائم کو انجام دینے والوں کے خلاف جو کارروائی کرے وہ مؤثر ہو اور تسلسل برقرار رہے۔
ہم نے ابھی تک انتہائی ضبط سے کام لیا ہے، لیکن مہذب طور طریقے کے تئیں ہماری ثابت قدمی کو کمزوری نہیں سمجھا جانا چاہئے۔ دہشت گردی پھیلانے والا، اس کا منصوبہ بنانے والا اور اس کی حمایت کرنے والا خواہ وہ کسی بھی مکتب فکر، مذہب یا ملک کا ہو، اسے لوگوں کے خلاف بزدلانہ اور وحشیانہ کارروائی کی سزا ضرور ملنی چاہئے۔ پاکستان کے ذریعہ اٹھائے گئے مبینہ اقدام کی جانکاری ہمیں ملی ہے، لیکن ہم واضح کرنا چاہتے ہیں کہ ا بھی بہت کچھ کرنے کی ضرورت ہے اور کارروائیوں کو منطقی انجام تک پہنچانا ضروری ہے۔
تیسرے، ہمیں یہ تسلیم کرنا ہوگا کہ ایک ملک کے طور پر ہم مطلوبہ نتائج حاصل کرنے کے لئے ان دوطریقوں پر منحصر نہیں رہ سکتے۔ممبئی کے واقعہ نے اس طرح کے حملوں سے نمٹنے کی ہماری تیاری کی خامیوں کو اجاگر کیا ہے۔ ملک کے اتحاد اور سالمیت کے تئیں اس طرح کے لاثانی خطروں اور چیلنجوں کے ساتھ زیادہ مؤثر طریقے سے نمٹنے کے لئے ہمیں اپنے کو تیار کرنا ہوگا۔
وزیر داخلہ نے متعدد تدابیر کا خاکہ پہلے ہی پیش کردیا ہے، جو ہم کرنے جارہے ہیں۔ ایڈمنسٹریٹیو اصلاحات کمیشن کی رپورٹ میں دہشت گردی کے مسئلے پر تفصیلی روشنی ڈالی گئی ہے اور کمیشن نے جس طرح کی کارروائی کرنے کا مشورہ دیا ہے، اس پر حکومت سنجیدگی سے غور کررہی ہے۔
ملک کے ساحلی علاقوں کی سیکورٹی کے لئے سخت تدابیر کی ضرورت پہلے سے اجاگر کی گئی تھی، لیکن اس سلسلے میں حقیقی رفتار کافی سست رہی ہے۔ ہم سمندر سے پیدا ہونے والے ہنگامی خطروں سے نمٹنے کے لئے سمندری سیکورٹی کو مضبوط بنا رہے ہیں۔ ساحلی سیکورٹی کا کام فی الوقت کئی ایجنسیوں کی ذمہ داری ہے، اس لئے یہ فیصلہ کیا گیا ہے کہ پوری ساحلی لائن کی سیکورٹی کا واحد ذمہ کوسٹ گارڈکو سونپا جائے گا۔ اس کام کے لئے ہندوستانی نیوی کوسٹ گارڈ کو ضروری بیک اپ تعاون فراہم کرائے گی۔ یہ فیصلہ فوری اثر سے نافذ ہوگا۔ تمام اہم بندرگاہوں کے لئے خصوصی سیکورٹی اور دفاعی انتظام کئے جارہے ہیں۔ ساحلی علاقوں میں واقع حساس مقامات کے لئے بھی اسی طرح کے سیکورٹی انتظامات کرنے ہوں گے۔
روایتی اور غیر روایتی خطروں کے پیش نظر ملک کی فضائی حدود کی سیکورٹی کی تدابیر کو پختہ کیا جارہا ہے۔ ایئر فورس اور شہری ہوابازی کے افسروں کی جانب سے مشترکہ طور پر طیاروں کی آمدورفت پر حقیقی نگرانی شروع کی گئی ہے۔ ملک کی فضائی حدود میں دھوکے باز/نامعلوم طیاروں کی روک تھام کے لئے فضائی سیکورٹی تدابیر کی گئی ہیں۔
ممبئی کے حملے نے اس بات کی ضرورت اجاگر کی ہے کہ ایسی وارداتوں کے لئے جوابی کارروائی زیادہ تیزی سے کی جانی چاہئے۔ ہم نے جامع بحران مینجمنٹ کے لئے ایک مشینری قائم کرنے کے لئے ایک خاکہ تیار کیا ۔ یہ فیصلہ پہلے ہی کیا جاچکا ہے کہ نیشنل سیکورٹی گارڈکا ڈی سینٹرلائزیشن کیا جائے گا اور انہیں تمام بڑے میٹروپولٹین علاقوں میں رکھا جائے گا، اسی کے ساتھ ایسے انتظامات ضرور ہونے چاہئیں کہ سریع الحرکت یونٹیں فی الفور دیگر مقامات پر پہنچ سکیں۔نیشنل سیکورٹی گارڈ کی تعداد بڑھائے جانے اور نئی یونٹوں کو ٹرینڈ کئے جانے تک فوج، ایئر فورس اور نیوی نیز دیگر سول ایجنسیوں کے پاس دستیاب خصوصی فورسز کا استعمال کیا جائے گا۔ ہر ریاست کے ذریعے کمانڈو یونٹیں قائم کی جائیں گی۔
ہمیں دہشت گردی سے نمٹنے کے لئے قانونی ڈھانچہ مضبوط کرنے کا فیصلہ پہلے ہی کرلیا ہے۔ اس کے لئے ایک قومی جانچ ایجنسی بھی تشکیل کی جائے گی۔ وزیر داخلہ کے ذریعہ کئے گئے اعلان کے مطابق اس سے متعلق بل جلد ازجلد ایوان میں پیش کیا جائے گا۔
جیسا کہ اشارہ دیا گیا ہے کہ مستقبل میں دہشت گردانہ حملوں کے منصوبے کا پہلے سے پتہ لگانے کے لئے خفیہ نظام کو زیادہ مضبوط کیا جائے گا۔ وزیر داخلہ کی سطح پر روزانہ میٹنگیں لی جارہی ہیں۔ خفیہ بیورو کا ملٹی ایجنسی سینٹرخصوصی طور پر دہشت گردانہ حملوں سے متعلق معلومات جمع کرنے، ملان کرنے اور پہنچانے کا کام کرے گی۔ مختلف خفیہ ایجنسیوں کے بیچ اتحاد اور روابط میں سدھار کیا جارہا ہے۔ ریاستوں سے کہا گیا ہے کہ وہ ضلع سطح پر خفیہ اطلاعات مؤثر ڈھنگ سے جمع کریں تاکہ زیادہ سرگرم خفیہ نظام قائم کیا جاسکے۔
مختصر مدت اور طویل مدت کی متعدد تدابیر تو ہمیں کرنی ہی ہوگی، اس کے ساتھ ہی اس بات پر عام اتفاق رائے ہوا ہے کہ سیکورٹی نظام کو طویل مدت کے لئے مستحکم تبھی بنایا جاسکتا ہے جب پولس اداروں کو، خاص طور پر مقامی سطح پر پولس کو مضبوط بنایا جائے۔ہم پولس کی جدید کاری کے تئیں پابند عہد ہیں اور اس کام کو متعینہ مدت کے اندر پورا کرنے کے لئے کوئی کسر نہیں چھوڑیں گے اور وسائل کی کمی اس میں آڑے نہیں آئے گی۔ ہمیں اپنی سیکورٹی فورسز کے لئے ایسے جدید اور جدید ترین آلات ضرور فراہم کرانے ہوں گے جو روز افزوں نئے نئے دہشت گردانہ جرائم سے نمٹنے کے لئے ضروری ہےں۔ سیکورٹی فورسز کا اخلاقی حوصلہ انتہائی اہم ہے، اس میں کوئی بھی کمی ہوگی تو اسے دور کیا جائے گا۔ آج کے دور میں سیکورٹی اور ڈیولپمنٹ کے دوہرے چیلنج کا مقابلہ کرنے کے لئے ملک کو ایک جدید اور اہل پولس فورس کی ضرورت ہے۔
ہندوستان میں دہشت گردانہ حملوں نے فرقہ وارانہ نفاق کا بیج بونے اور ہمارے سیاسی اور سماجی تانے بانے کو کمزور کرنے کی کوشش کی ہے۔ ہم ہر چیلنج کے بعد مضبوط ہوکر ابھرے ہیں اور ایسا ہی پھر کریں گے۔ مجھے کوئی شبہ نہیں ہے کہ ممبئی حملوں کے پیچھے جو ناپاک ارادے تھے وہ ناکام ہوں گے۔ تمام سیاسی جماعتوں کا یہ فرض ہے کہ وہ فرقہ وارانہ منافرت اور من مٹائو کے خلاف متحد ہوکر کام کریں۔ اگر ہمارے درمیان آپسی نفاق ہوگا تو ہم دہشت گردی کے خلاف یہ جنگ نہ تو لڑپائیں گے نہ ہی جیت پائیں گے۔
مختصراًمیں یہ کہنا چاہتا ہوں کہ بحران کی اس گھڑی میں ملک کو اپنا لوہا منوانا ہے۔ ہمیں صبر اور ضبط سے کام لینا ہوگا۔ دہشت گردی کے ذریعہ پیش کےے گئے اس چیلنج کا سامنا کرنے کے لئے ہمیں ایک ملک اور ایک قوم کی شکل میں مضبوطی سے کھڑا ہونا ہوگا۔ ہم اپنے دشمنوں کو صحیح جواب دیں گے۔ عملی جمہوریت اور کثیر طبقاتی سماج کا ہندوستان کا فلسفہ دائو پر لگا ہوا ہے۔ یہ وقت ہے قومی ایکتا کا مظاہرہ کرنے کا اور میں اس میں آپ سے تعاون کی اپیل کرتا ہوں۔ صداقت اور مذہبی وابستگی ہمارے حق میں ہے اور ہم مل کر سامنا کریں گے۔‘

जो लहजा पाकिस्तान के लिए था, क्या अब अमेरिका के लिए भी होगा?
अज़ीज़ बर्नी

निम्नलिखित भाषण हमारे देश के प्रधानमंत्री डा॰ मनमोहन सिंह ने मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमलों के बाद 11 दिसम्बर 2008 को लोकसभा में चर्चा के दौरान दिया, जिसे आज हमने हूबहू पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करने का साहस किया है।
हम अपने प्रधानमंत्री से दोहरे मापदण्ड की आशा नहीं करते। इस भाषण में हमारे प्रधानमंत्री ने जो कुछ भी कहा है हम उसके एक-एक शब्द से सहमत हैं। मगर अब देखना यह है कि हमारे देश में आतंकवाद की प्रक्रिया के लिए जो नए चेहरे सामने आए हैं, नए रहस्योदघाटन के बाद योजनाबंदी के लिए जिस भूमि का प्रयोग किया गया है, क्या हमारे प्रधानमंत्री उसके लिए भी यही भाव रखते हैं? यदि हां, तो कथनी और करनी में वह बात नज़र क्यों नहीं आती जो अब तक नज़र आती रही है और अगर नहीं तो क्यों?
जैसा कि हमने अपने पाठकों की सेवा में अर्ज़ किया है, आज 26/11 हमारे लिए एक शोध का विषय है। इसलिए कि हम अपने देश को गंभीर ख़तरे में अनुभव कर रहे हैं और यह ख़तरा कुछ इस तरह नज़र आ रहा है जैसे हमारे देश को फिर से ग़ुलाम बनाने की साज़िश रची जा रही है। इसलिए हमें इस बारे में बहुत कुछ लिखना है, परंतु केवल शब्दों के सहारे नहीं, ऐतिहासिक तथ्यों तथा ऐसे दस्तावेज सामने रख कर अपनी बात कहनी है कि सब कुछ आईने की तरह साफ़ हो जाए। और जो कुछ भी हम अनुभव करते हैं, उसका अंदा़ज़ा हमारी क़ौम और हमारे देश के संरक्षकों को हो सके और हम समय रहते देश दुशमन ताक़तों के ख़िलाफ एक उचित कार्य प्रणाली तैयार कर सकें। मेरी ओर से आज बस यही कुछ वाक्य। मुलाहिज़ा फरमाएं भारत के प्रधानमंत्री का मुम्बई पर आतंकवादी हमलों के बाद किया गया यह ऐतिहासिक भाषण। कुछ शब्द मैंने जानबूझ कर रेखांकित किए हैं। इसलिए कि उन्हें आप बार-बार पढ़ें और अपने मन में सुरक्षित कर लें, इसलिए कि आगे जब हम इस विषय पर लिखना आरंभ करेंगे तो बहुत कुछ इन वाक्यों की रोशनी में भी होगा।
‘‘मैं अपनी बात शुरू करने से पहले यह कहना चाहता हूं कि हम इस तथ्य के प्रति अत्यंत सजग हैं कि आतंकवादी वारदातें बढ़ रही हैं और इन जघन्य घटनाओं में अनेक नागरिकों की जानें गयी हैं। मैं समझता हूं कि हमारी प्रणाली और प्रक्रियाआंें की समीक्षा की आवश्यकता है। सरकार की ओर से मैं जनता से इस बात के लिए क्षमा चाहता हूं कि इन जघन्य वारदातों को नहीं रोका जा सका।
जहां तक मुंबई का प्रश्न है, यह अत्यंत सुनियोजित और दुष्टतापूर्ण हमला था, जिसका मक़सद व्यापक आतंक पैदा करना और भारत की छवि को आघात पहंुचाना था। इस हमले के पीछे जो ताक़तें काम कर रही थीं उनका इरादा हमारी धर्मनिरपेक्ष राजनीति को अस्थिर करना, साम्प्रदायिक फूट डाला और हमारे देश की आर्थिक तथा सामाजिक प्रगति में रुकावट डालना था।
हममे से प्रत्येक ने इस भयावह घटना की निंदा की है और शोक संतप्त परिवारों के प्रति गहरी संवेदना तथा घायल व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की है। राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड और नौसेना कमांडो जैसे विशेष बलों सहित पुलिस औरसुरक्षा बलों के साहस और राष्ट्रभक्ति के प्रति हम सभी नतमस्तक हैं। मैं इस घटना में अनेक विदेशी नागरिकों के मारे जाने पर भी अत्यंत दुख व्यक्त करता हूं। मैंने व्यक्तिगत रूप से बातचीत करके और लिखित संदेश भेजकर उन देशों के नेताओं से क्षमा मांगी है, जिनके नागरिकों की इस हमले में जानें गयीं।
हम चाहे कुछ भी कहें और कुछ भी कर लें लेकिन जो जानें गयी हैं उनकी क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती। किन्तु यह सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि गुजरते समय के साथ उनके बलिदान की याद कभी भुलाई नहीं जानी चाहिए। संसद को फिर से यह संकल्प व्यक्त करना होगा कि हमारा देश आतंकवाद को परास्त करने और उसकी जड़ों तथा शाखाओं को समाप्त करने के प्रति वचनबद्ध है। हमें आतंकवाद के अनर्थ से पूरी ताक़त के साथ लड़ना होगा और हम लड़ेंगे। इस प्रयोजन के लिए आवश्यक सभी साधनों और उपायों को काम में लाया जायेगा।
हमारी तात्कालिक प्राथमिकता यह है कि भारत के लोगों में सुरक्षा की भावना बहाल की जाये। हम ऐसी स्तिथि बर्दाश्त नहीं कर सकते जिसमें आतंकवादियों या अन्य उग्रवादी ताक़तों के हमलों से हमारे नागरिकों की सुरक्षा को क्षति पहुंचे।
मेरा मानना है कि हमें तीन स्तरों पर काम करना होगा। पहला यह है कि हमें आतंकाद के केन्द्र, जो पाकिस्तान में स्थित है, के साथ कारगर ढंग से और शक्ति के साथ निपटने में आंतरिक समुदाय को शामिल करना होगा। आतंकवाद के ढांचे को स्थायी तौर पर नष्ट करना होगा। ऐसा करना स्वयं पाकिस्तान के लोगांे की ख़ुशहाली सहित समूचे विश्व समुदाय की भलाई के लिए निहायत ज़रूरी है।
मुंबई में आतंकवादी हमलों के सिलसिले में अनेक राष्ट्राध्याक्षों और शासनाध्यक्षों ने मुझसे बातचीत की है। उन सभी ने संयम बरतने पर भारत की सराहना की है। वे इस बात पर सहमत हैं कि इन हमलों के ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाये। मैंने उनसे कहा है कि भारत महज़ आश्वासनों से संतुष्ट नहीं होगा। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की राजनीति इच्छा एक ठोस और स्थिर कार्रवाई के रूप में सामने भी आनी चाहिए। अब समय आ गया है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय एकजुट होकर आतंकवाद की चुनौती का सामना करे। राष्ट्र की नीति के साधन के रूप में आतंकवाद के इस्तेमाल की अनुमति अब किसी को नहीं दी जायेगी। आतंकवादियों को अच्छे या बुरे की संज्ञा नहीं दी जा सकती। निर्दोष लोगों की हत्या को किसी भी दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता।
हमें न केवल मुंबई के हमलों के लिए ज़िम्मेदार लोगों को अदालत के सामने लाना है बल्कि इस बात की पुख़्ता व्यवस्था करनी है कि आतंकवाद की ऐसी घटनाएं फिर कभी न हों।
मुझे ख़ुशी है कि संयुक्त राष्ट्र ने आज लश्कर-ए-तैयबा के सहयोगी संगठन जमात-उद-दावा को आतंकवादी संगठन घोषित करते हुए उस पर प्रतिबंध लगाने और इसके प्रमुख हाफ़िज़ मुहम्मद सईद समेत चार लोगों को आतंकवादी घोषित कया है। हमारा मानना है कि इस तरह की सार्थक कार्रवाई विश्व समुदाय द्वारा निरंतर की जानी चाहिए ताकि आतंकवाद का समूूचा ढांचा नष्ट किया जा सके।
दूसरे, हमें पाकिस्तान की सरकार के सामने यह मामला पूरी सख़्ती से उठाना होगा कि वह इस तरह के हमले के लिए अपनी धरती का इस्तेमाल न होने दे और ऐसी जघन्य कर्रावाई करने वालों के ख़िलाफ़ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करे। विश्व समुदाय को यह सुनिश्चित करना होगा कि पाकिस्तान ऐसे अपराधों को अंजाम देने वाले लोगों के ख़िलाफ़ जो कार्रवाई करे वह असरदार हो और उसमें निरंतरता बनी रहे।
हमने अभी तक अत्यंत संयम से काम लिया है। किन्तु सभ्य तौर तरीक़ों के प्रति हमारी वचनबद्धता को कमज़ोरी नहीं समझा जाना चाहिए। आतंक फैलाने वाला, उसकी योजना बनाने वाला और उसका समर्थन करने वाला, चाहे वह किसी भी विचारधारा, धर्म या देश का हो, उसे लोगों के ख़िलाफ़ कायरतापूर्ण और भयावह कार्रवाई की सजा अवश्य मिलनी चाहिए। पाकिस्तान द्वारा उठाए गए कथित कदमों की जानकारी हमें मिली है। लेकिन हम साफ करना चाहते हैं कि अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है और कार्रवाइयों को युक्तिसंगत निष्कर्ष तक पहुंचाना ज़रूरी है।
तीसरे, हमें यह स्वीकार करना होगा कि एक राष्ट्र के रूप में हम वांछित परिणाम हासिल करने के लिए इन दो आयामों पर निर्भर नहीं रह सकते। मुंबई की घटना ने इस तरह के हमलों से निपटने की हमारी तैयारी की ख़ामियों को उजागर किया है। देश की एकता और अखंडता के प्रति इस तरह के अभूतपूर्व ख़तरों और चुनौतियों के साथ अधिक कारगर ढंग से निपटने के लिए हमें अपने को तैयार करना होगा।
गृह मंत्री ने अनेक उपायों की रूप रेखा पहले ही प्रस्तुत कर दी है, जो हम करने जा रहे हैं। प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट में आतंकवाद की समस्या पर व्यापक प्रकाश डाला गया है और आयोग ने जिस तरह की कार्रवाई करने का सुझाव दिया है उस पर सरकार सक्रियता से विचार कर रही है।
देश के तटवर्ती क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए कड़े उपायों की आवश्यकता पहले से उजागर की गयी थी, किन्तु इस बारे में वास्तविक प्रगति बड़ी धीमी रही है। हम समुद्र से पैदा होने वाले आकस्मिक ख़तरों से निपटने के लिए समुद्री सुरक्षा को सुदृढ़ बना रहे हैं। तटीय सुरक्षा का काम वर्तमान में अधिसंख्य एजेंसियों की ज़िम्मेदारी है, इसलिए यह निर्णय किया गया है कि समूची तट रेखा की सुरक्षा का एकमात्र दायित्व तट रक्षक को सौंपा जायेगा। इस प्रयोजन के लिए भारतीय नौसेना तट रक्षक को आवश्यक बैक अप सहायता उपलब्ध करायेगी। यह निर्णय तत्काल प्रभाव से लागू होगा। सभी प्रमुख बंदरगाहों के लिए विशेष सुरक्षा और संरक्षात्मक प्रबंध किए जा रहे हैं। तटवर्ती क्षेत्रों में स्थित संवेदनशील ठिकानों के लिए भी इसी तरह के सुरक्षा उपाय करने होंगे।
परंपरागत और गैर-परंपरागत ख़तरों को देखते हुए देश के हवाई क्षेत्र की सुरक्षा के उपायों को पुख़्ता किया जा रहा है। वायु सेना और नागर विमानन अधिकारियों द्वारा संयुक्त रूप से विमानों की आवाजाही पर वास्तविक निगरानी शुरू की गयी है। देश के हवाई क्षेत्र में धोखेबाज/ अज्ञात विमानों की रोकथाम के लिए हवाई सुरक्षा उपाय किए गए हैं
मुंबई के हमले ने इस बात की आवश्यकता उजागर की है कि ऐसी वारदातों के लिए जवाबी कार्रवाई अधिक तेज़ी से की जानी चाहिए। हमने व्यापक संकट प्रबंधन के लिए एक तंत्र कायम करने की रूपरेखा तैयार की है। यह निर्णय पहले ही किया जा चुका है कि राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड का विकेन्द्रीकरण किया जायेगा और उन्हें सभी बड़े मैट्रोपालिटिन क्षेत्रों में रखा जायेगा। इसी के साथ ऐसे प्रबंध भी अवश्य होने चाहिएं कि त्वरित कार्रवाई इकाइयां तत्काल अन्य स्थानों पर पहुंच सकें। राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड की संख्या बढ़ाए जाने और नयी यूनिटों को प्रशिक्षित किए जाने तक सेना, वायुसेना और नौसेना तथा अन्य सिविल एजेंसियों के पास उपलब्ध विशेष बलों का इस्तेमाल किया जायेगा। प्रत्येक राज्य द्वारा कमांडो इकाइयां स्थापित की जायेंगी।
हमने आतंकवाद से निपटने के लिए क़ानूनी ढांचा मज़बूत करने का फैसला पहले ही कर लिया है। इसके लिए एक राष्ट्रीय जांच एजेंसी भी गठित की जायेंगी। गृह मंत्री द्वारा की गयी घोषणा के अनुसार तत्सम्बधी विधेयक यथाशीध्र सदन में पेश किए जायेंगे।
जैसा कि संकेत दिया गया है कि भविष्य में आतंकवादी हमलों की योजना का पहले से पता लगाने के लिए गुप्तचर व्यवस्था अधिक सुदृढ़ की जायेगी। गृह मंत्री के स्तर पर रोज बैठकें ली जा रही हैं। गुप्तचर ब्यूरो का मल्टी एजेंसी संेटर विशेष रूप से आतंकवादी हमलों से सम्बन्धित जानकारी एकत्र करने, मिलान करने और सप्रेषित करने का काम करेगा। विभिन्न गुप्तचर एजेंसियों के बीच एककी करण और समन्वय में सुधार किया जा रहा है। राज्यों से कहा गया है कि वे जिला स्तर पर गुप्तचर सूचनाएं प्रभावशाली ढंग से एकत्र करें ताकि अधिक सक्रिय गुप्तचर व्यवस्था क़ायम की जा सके।
अल्पावधि और दीर्घावधि के अनेक उपाय तो हमें करने ही होंगे, इसके साथ ही इस बात पर आम सहमति बनी है कि सुरक्षा व्यवस्था को दीर्घावधि के लिए सुदृढ़ तभी बनाया जा सकता है जब पुलिस प्रतिष्ठान, विशेषकर स्थानीय स्तर पर पुलिस को मजबूत बनाया जा सकता है जब आधुनिकीकरण के प्रति वचनबद्ध हैं और इस कार्य को निश्चित समय सीमा के भीतर पूरा करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे और संसाधनों का अभाव इसमें आड़े नहीं आयेगा। हमें अपने सुरक्षा बलों के लिए ऐसे आधुनिक और अत्याधुनिक उपकरण अवश्य उपलब्ध कराने होंगे जो हर रोज़ बढ़ रहे नए-नए आतंकवादी अपराधों से निपटने के लिए आवश्यक है। सुरक्षा बलों का नैतिक साहस अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें कोई भी कमी होगी तो उसे दूर किया जायेगा। आज के युग में सुरक्षा और विकास की दोहरी चुनौतियों का सामना करने के लिए देश को एक आधुनिक और सक्षम पुलिस बल की आवश्यकता है।
भारत में आतंकवादी हमलों ने साम्प्रदायिक फूट का बीज बोने और हमारे राजनीतिक तथा सामाजिक तानेबाने को कमज़ोर करने की कोशिश की है। हम हर चुनौती के बाद मजबूत होकर उभरे हैं और ऐसा ही फिर करेंगे। मुझे कोई संदेह नहीं है कि मुंबई हमलों के पीछे जो नापाक इरादे थेे वे विफल होंगे। सभी राजनीतिक दलों का यह दायित्व है कि वह साम्प्रदायिक घृणा और मनमुटाव के ख़िलाफ एकजुट होकर काम करें। अगर हमारे बीच आपसी फूट होगी तो हम आतंकवाद के खिलाफ यह युद्ध न तो लड़ पायेंगे और न जीत पायंेगे।
सार रूप में यह कहना चाहता हूं कि संकट की इस घड़ी में राष्ट्र को अपना लोहा सिद्ध करना है। हमें शांति और संयम से काम लेना होगा। आतंकवाद द्वारा पेश की गयी इस चुनौती का सामना करने के लिए हमंें एक राष्ट्र और एक क़ौम के रूप में मज़बूती से खड़ा होना होगा। हम अपने शत्रुओं को सही जवाब देंगे। व्यावहारिक लोकतंत्र और बहु समुदायवादी समाज का भारत का आदर्श दाव पर लगा है। यह समय है कि राष्ट्रीय एकता प्रदर्शित करने का और मैं इसमें आपसे सहयोग की अपील करता हूं। सत्य और धर्म परायणता हमारे पक्ष में है और हम मिलकर सामना करेंगे।