Wednesday, December 31, 2008

मुल्क में शान्ति व एकता का यकीन हो जाए

तो दूँ नए साल की मुबारकबाद

दिल चाहता है की आप सब को नववर्ष की शुभकामनाएं प्रस्तुत करूँ, किंतु हिम्मत नहीं होती, इसलिए की पिछले वर्ष के कड़वे अनुभव को भूलने में अभी कुछ समय लगेगा। यह वर्ष जो आज हमसे विदा हो रहा है इसका भी हमने उत्साह पूर्वक स्वागत किया था किंतु क्या पता था की नव वर्ष का प्रथम दिन हमारे लिए दुःख दर्द का तोहफा लेकर आएगा। ३१ दिसम्बर २००७ और १ जनवरी २००८ की मध्य रात्री में रामपुर सी आर पी ऍफ़ कैंप पर हुए हमले को आप अभी तक भुला नहीं पाये होंगे और शायद नववर्ष का आरम्भ भी इस की कड़वी यादों को बार बार सामने रखता रहेगा। इसलिए की इसका एक आरोपी फहीम कुछ दिन पूर्व मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों के मामले में पूछताछ के लिए ऐ टी एस की गिरफ्त में है। हमने इस पूरे मामले का विस्तृत विवरण प्राप्त कर लिया है और शीघ्र ही इसके सत्य को भी जनता के समक्ष प्रस्तुत करना चाहते हैं। सभी मामलों का गहन अध्यन करने के पश्चात् ऐसा प्रतीत होता है की "आरुशी मर्डर केस" जो एक "मर्डर मिस्ट्री" बन कर रह गया एवं मुंबई पर आतंकवादी हमला जिसके सत्य से अभी भी परदा उठाना बाक़ी है, गत १ जनवरी का यह मामला भी इन मामलों से अलग नहीं है। सम्भव है की इस का सत्य सामने आए (यदि आ सका तो) वो भी एक नई कहानी सामने रख सकता है क्यूंकि इस फाइल का अध्यन करते समय जिन गवाहों के आधार पर सारा सत्य टिका है, उन्हीं चश्मदीद गवाहों ने कहीं पर यह कहा की उन्होंने बिजली के प्रकाश में आरोपियों का चेहरा देखा एवं सामने आने पर पहचान सकते हैं और कुछ देर पश्चात् ही उन्होंने यह भी कहा की इतना अँधेरा था की हम गोलियों के खाली खोखे तलाश नहीं कर सके। बहरहाल जैसे ही यह मामला आगे बढेगा हम इसकी परतें खोलने का कार्य भी प्रारम्भ कर देंगे। अभी तो हमारे समक्ष दो प्रमुख मामले ये हैं की २६ नवम्बर २००८ को मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले का सत्य सामने लाने का प्रयास किया जाए। यह लेख लिखे जाने तक दो सदस्य कमिटी बनाई गई है जिसमें नागालैंड के पूर्व राज्यपाल आर डी प्रधान और उनके सहयोगी पूर्व आई पी एस अधिकारी वी बालचंद्र होंगे, जिनके अधिकार कैबिनेट मंत्री एवं राज्य मंत्री के बराबर होंगे अर्थात आव्यशकता पड़ने पर ये महाराष्ट्र के पुलिस उच्चाधिकारियों ऐ एन रोय एवं हसन गफूर को भी तलब कर सकेंगे। किंतु सबसे प्रमुख प्रशन यह है की क्या सरकार गंभीर है और सत्य को सामने लाने का इरादा रखती है? क्या वह सांप्रदायिक ताक़तें जो सत्य को सामने लाने का इरादा रखती है? क्या वह सांप्रदायिक ताक़तें जो सत्य सामने आने देना नहीं चाहतीं, अब सरकार को प्रभावित नहीं कर पाएँगी? इसलिए की संसद में कैबिनेट मंत्री अब्दुर रहमान अंतुले द्वारा यह प्रशन उठाये जाने पर जिस प्रकार कांग्रेस सकते की स्थिति में थी एवं विपक्ष के सभी नेता आग बगुला थे और उनसे प्रभावित मीडिया अब्दुररहमान अंतुले को देशद्रोही के रूप में प्रस्तुत करने में भी नहीं झिझक रहा था, क्या वे यह सहन कर पायेंगे की इस आतंकवादी हमले की ईमानदारी के साथ जांच हो और सत्य सामने आए। पता नहीं क्यूँ हमें इस पर विश्वास नहीं हो रहा? इसलिए की वह बयान जो अकेले जीवित बचने वाले आतंकवादी अजमल आमिर कसाब ने दिया है, वह बयान जो करकरे, सालसकर और अशोक काम्टे के साथ टाटा कुअलिस में मौजूद अकेले जीवित बचने वाले पुलिस कोन्स्टेबल अरुण जाधव ने दिया है, यदि वास्तव में ये सब एक साथ उस समय टाटा कुअलिस में सवार थे और यह जीवित बचा पुलिस कोन्स्टेबल उनके साथ था, तो उसके बयान की भी गहराई से जांच करने की आव्यशकता है। अब आप कहेंगे की इसमें संदेह की क्या गुंजाइश है की अशोक काम्टे, विजय सालसकर और हेमंत करकरे एक साथ इस कुअलिस में सवार थे, जिस में उनके साथ ४ अन्य पुलिसकर्मी भी थे अर्थात उस समय गाड़ी में मौजूद ७ लोगों में से १ जीवित बचा, जिस प्रकार पाकिस्तान से आए १० आतंकवादियों में से ९ मारे गए और एक जीवित बचा, यहाँ इन दोनों का भिन्न भिन्न मामलों में एक एक का जीवित बच जाना, एक हसीन इत्तेफाक भी हो सकता है अथवा परदे के पीछे कुछ और कारण भी हो सकता है? अपने इस क्रमबद्ध लेख की १०० वीं कड़ी तरतीब देते समय जब मैं एक एक मामले का विस्तृत विवरण पढ़ रहा था अथवा लिख रहा था तब कई बार लगा की संभवत: यह सत्य नहीं है की वे ७ व्यक्ति एक टाटा कुअलिस में सवार थे और उन में से १ कांस्टेबल अरुण जाधव जीवित बचा एवं ६ एक आतंकवादी इस्माइल की गोलियों का निशाना बन गए। इसलिए की अजमल आमिर कसाब के बयान के अनुसार सी एस टी पर गोलियां बरसाने के पश्चात् वे अपने आका चाचा ज़की उर रहमान लिख्वी के आदेशानुसार वे एक ऊंची बिल्डिंग की छत पर जाने की तलाश में बाहर निकले थे, जहाँ उन का चाचा मोबाइल फोन पर उन्हें किसी मीडिया हाउस का नंबर देने वाला था। जिस मास्टर माइंड ने उनको "गूगल" पर सर्च करके छोटी से छोटी जानकारी दी, बुधवार पैठ में कहाँ रबर की नाव से जाना है? ताज होटल में किस किस स्थान पर किस किस को जाना है? सी एस टी पर कब गोलियाँ चलाना है? क्या उस ने यह जानकारी नहीं दी? और यह अजमल आमिर कसाब जो स्वयं गूगल पर सर्च कर के केवल ३ मिनट में अपना छोटा सा घर तक ढूंढ लेता है, क्या वह सी एस टी के साथ अंजुमन इस्लाम एवं टाईम्स ऑफ़ इंडिया की बिल्डिंग नहीं ढूंढ सका? अगर उसे ऐसी बिल्डिंग की तलाश थी जो वीरान हो, जिस में उस समय कोई न हो तो अंजुमन इस्लाम की बिल्डिंग सी एस टी के उस गेट से निकलते ही उसकी आंखों के सामने थी, दिन में वहां स्कूल चलता है और रात में वहां कोई नहीं होता। अगर उसे ऐसी बिल्डिंग की तलाश थी जहाँ कुछ लोगों को बंधक बनाया जा सके ताकि अपनी मांगें सामने रखी जा सकें तो फिर टाईम्स ऑफ़ इंडिया की बिल्डिंग उचित थी, मीडिया हाउस भी था, जिम्मेदार लोगों की मौजूदगी की संभावना भी थी, वे पतली सी अनजान गली में क्यूँ घुस गए, उन्होंने तो अपने प्रत्येक क़दम पूर्व निर्धारित कार्यक्रमानुसार उठाया था फिर भी यदि उन्हें कामा हॉस्पिटल की छत पर पहुँचने का अवसर मिल ही गया तो फिर नीचे वापस आने की आव्यशकता क्यूँ पड़ गई जबकि उनकी तलाश पूरी हो चुकी थी, जहाँ से वे अपने चाचा से बात कर सकते थे? कसाब ने कहा की वहां उन पर पुलिस द्वारा गोलियाँ चलायी गयीं, जिसका उत्तर उन्होंने हैण्ड ग्रेनेड फ़ेंक कर दिया। गोलियाँ चलाने वाले पुलिस कर्मी कौन थे और हैण्ड ग्रेनेड से क्या कोई घायल हुआ? आतंकवादियों ने जिन दो गार्डस को गोलियाँ मारीं वो आतंकवादी तो मराठी बोल रहे थे एवं एक मराठी गार्ड को उन्होंने जीवित भी छोड़ दिया था, जिसने उनसे मिन्नतें कीं और कहा की उसकी पत्नी अस्पताल में भरती है इसी प्रकार यह रहम दिल आतंकवादी उस स्कोडा कार के यात्रियों को भी जीवित छोड़ देते हैं जिन से उन्होंने कार छीनी थी। उनके सामने से पुलिस की एक गाड़ी निकल जाती है किंतु उस गाड़ी पर गोलियाँ चलाने का निर्णय वे नहीं लेते, जिस गाड़ी में करकरे, सालसकर एवं अशोक काम्टे यात्रा कर रहे थे वह गाड़ी रूकती है, उससे कोई उतरता है, उतरने वाला कसाब और उसके सहयोगी इस्माइल पर गोलियाँ चलाता है। पहली गोली कसाब को लगती है, जिसके कारण ऐ के -४७ उसके हाथ से छूट कर नीचे गिर जाती है। दूसरी गोली भी उसके हाथ में लगती है अर्थात अब उसके ही बयान के अनुसार उसे कुअलिस गाड़ी में उसके साथी ने खींच कर सवार कराया था और गाड़ी से तीन लाशें करकरे, काम्टे और सालसकर की इस्माइल ने ही बाहर निकाली थीं अर्थात हमारे ३ बहादुर पुलिस अफसर एवं उनके साथ बैठे ४ सिपाही एक अकेले आतंकवादी इस्माइल को एक गोली भी नहीं मार सके जबकि उनमें से विजय सालसकर शार्प शूटर थे। वह एक व्यक्ति जिसने गाड़ी से नीचे उतरकर गोलियाँ चलाई और उन्हीं गोलियों से अजमल आमिर कसाब घायल हुआ, वह कौन था? इसलिए की कुअलिस से तीन लाशें सालसकर, काम्टे और करकरे को इस्माइल ने बाहर निकाला, बाक़ी तीन लाशों के नीचे दबा था, वह कांस्टेबल (अरुण जाधव) जिसने आंखों देखि कहानी बयान की हलाँकि उसकी आँखें लाशों के नीचे दबे होने के कारण क्या गाड़ी के फर्श और सीट के निचले भाग के अलावा भी कुछ देख सकती थीं? अर्थात कुल मिलाकर ७ लोग सवार, १ जीवित और ६ लाशें गाड़ी के भीतर, तब गाड़ी के बाहर आकर गोली चलाने वाला कौन.....? कसाब का पूर्ण बयान और उस पर विस्तृत विवरण तो १०० वीं कड़ी में ही हम अपने पाठकों की सेवा में प्रस्तुत कर सकेंगे किंतु अब वे सवाल अन्य मीडिया में उठने लगे हैं जिन्हें हमने पहले दिन से ही उठाना प्रारम्भ कर दिया था।

हम नहीं चाहते थे की वर्ष के प्रथम दिन फिर इन कड़वी बातों से शुरुआत करें, किंतु मजबूरी यह है की अभी उम्मीद की कोई किरन दिखाई नहीं देती। अब इन आंखों ने सुहाने सपने देखना छोड़ दिया है। हम वास्तविकता की इस पथरीली भूमि पर चलने के लिए मजबूर हो चुके हैं जहाँ प्रत्येक क़दम पर उंगलियाँ घायल हुई जाती हैं। यह नववर्ष उन आंखों में सुहाने सपने लेकर आसकता है जिनके लिए हर दिन ईद का दिन और हर रात दीपावली की रात हो सकती है। हम तो चिंतित हैं इस बात के लिए की क्या अब मालेगाँव की जांच का सिलसिला आगे बढ़ पायेगा? हाँ आज के समाचार पत्रों में दयानंद पाण्डेय के अपराध स्वीकार करने का समाचार है और मुंबई ऐ टी एस को इस स्वीकार्यता से बहुत सी उम्मीदें हैं परन्तु यह समाचार उस प्रमुखता के साथ समाचार पत्रों में स्थान प्राप्त नहीं कर सका, जितना महत्त्वपूर्ण यह समाचार था और न ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इसे कोई प्रमुखता दी। भीतरी पृष्ठों में एक या दो कॉलम का स्थान ही इस समाचार को प्राप्त हो सका। हमने ज़रूर इस समाचार को पृष्ठ १ पर मुख्य हेडिंग के साथ प्रकाशित किया। इस लिए की हमारी दृष्टी में मालेगाँव जांच केवल मालेगाँव के अपराधियों का पता लगाने की ओर आगे नहीं बढ़ रही थी, शहीद हेमंत करकरे ने आतंकवाद के एक बड़े नेटवर्क को सामने लाना प्रारम्भ कर दिया था। "समझौता एक्सप्रेस" बम धमाकों का राज़ भी बस खुलने ही वाला था। मक्का मस्जिद बम धमाकों की जांच दोबारा शुरू करने की उम्मीद पैदा हो गई थी। नांदेड में बम बनाने की कोशिश में बजरंग दल के जो कार्यकर्ता मारे गए थे, वह फाइल भी पुन: खोल दी गई थी। संघ परिवार के सदस्य इन्द्रेश के पाकिस्तान की गुप्तचर एजेन्सी आई एस आई से संबंधों की बात सामने लाइ जा चुकी थी। इन्द्रेश की हत्या का षड़यंत्र बेनकाब हो चुका था अर्थात हेमंत करकरे के नेतृत्व में ऐ टी एस आतंकवाद के इतने बड़े नेटवर्क का पर्दाफाश करने जा रहा था जिससे भारत में आतंकवाद की जड़ों तक पहुँचा जा सकता था और यह विश्वास होने लगा था की अगर यह जांच अंत तक पहुँच गई तो भारत से आतंकवाद और आतंकवादियों का नाम व निशान मिटाया जा सकता है।

क्या नववर्ष में ऐसा हो पायेगा? नहीं कोई उम्मीद नहीं.....किंतु हम मायूस भी नहीं हैं, जद्दोजहद का सिलसिला चलता रहेगा। हाँ, नववर्ष में एक कार्य और किया जाना चाहिए यदि भारत की आबादी हिंदू और मुस्लमान सभी उसे पसंद करें तो यह वर्ष शान्ति व एकजुटता की स्थापना के लिए सदेव याद किया जायेगा। साम्प्रदायिकता के इस दौर की शुरुआत हुई ६ दिसम्बर १९९२ को बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद से! २५ दिसम्बर २००८ को मैं अपनी अयोध्या यात्रा के दौरान महंत सत्येन्द्र दास और बाबा भाउनाथ व पंडित जुगल किशोर जी से हुई भेंट को गत वर्ष की उपलब्धि कह सकता हूँ। उनके विचार एक ऐसे भारत की पुनर्स्थापना में मील के पत्थर का दर्जा रखते हैं और हम फिर एक बार अपने देश की गंगा-जमनी संस्कृति के दौर को वापस ला सकते हैं। शायद भारतीय नागरिकों की बड़ी आबादी को इस वास्तविकता की जानकारी नहीं है की बाबरी मस्जिद की शहादत से पूर्व इसी स्थान पर १३ मंदिरों को भी तोडा गया था। यदि भारत के मुस्लमान अयोध्या के साधू संतों से मिल कर यह निर्णय कर लें की बाबरी मस्जिद-रामजन्म भूमि का निर्णय तो आता रहेगा, अयोध्या के महंत उन स्थानों की निशानदेही करें जहाँ मन्दिर तोड़ दिए गए और मुस्लमान भाई फिर से उन स्थानों पर भव्य मन्दिर बनाने में अपना सहयोग देने का निर्णय लें। इसके साथ ही नववर्ष में एक निर्णय और लें की अब भारतीय नागरिक मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले को भारत पर हुआ आतंकवादी हमला मानते हुए इस के सत्य को सामने लाने के लिए अपनी जान लड़ा देगा, यदि यह हमला पाकिस्तान ने किया है तो इस बार एक नहीं असंख्य वीर अब्दुल हमीद उस कहानी को दोहराएंगे और यदि उस हमले में कुछ ऐसे आतंकवादियों का हाथ है जिनके चेहरे अभी हमारी निगाहों के सामने नहीं आए हैं तो भारत की १०० करोड़ जनता उन्हें सामने भी लाएगी और ऐसा दंड देगी की फिर उन्हें इस देश में कहीं भी मुहँ छुपाने का स्थान नहीं मिलेगा।

Sunday, December 28, 2008

अमेरिका से आने वाली रिपोर्टों ने कहा

९/११ के पीछे सी आई ऐ और मोसाद,

क्या २६/११ के पीछे भी?

२३ दिसम्बर की रात्री जब मैं "टाईम्स ऑफ़ इंडिया" की संवाददाता से बात कर रहा था उससे कुछ ही देर पूर्व "बी बी सी" ने भी मुझसे बात की थी और १५ मिनट के इस इंटरव्यू में मैंने जो कहा लगभग वही मैंने "टाईम्स ऑफ़ इंडिया " से भी कहा। "बी बी सी" का इंटरव्यू तो मैंने नहीं सुना, किंतु टाईम्स ऑफ़ इंडिया का समाचार मैंने पढ़ा।

राष्ट्र से वफादारी अथवा गद्दारी का प्रमाणपत्र बाँटने वाले यह अवसरवादी राजनीतिज्ञ कैसे हो सकते हैं? शायद बहोत बड़ी ग़लत फ़हमी का शिकार हैं वह.......अतिशीघ्र वह समय आने वाला है जब भारत की १०० करोड़ जनता उनसे राष्ट्र के प्रति उनकी वफादारी का प्रमाण मांगेगी। इसकी एक झलक तो २६ नवम्बर को आतंकवादी हमले के बाद मुंबई के "गेट वे ऑफ़ इंडिया" सहित देश के अन्य शहरों में देखने को मिल चुकी है, जब बिना भेदभाव हर धर्म के अनुयायी आतंकवाद के विरुद्ध तो एकजुट थे, किंतु राजनीतिज्ञों की कार्यप्रणाली पर उन्हें विश्वास नहीं था, इस लिए उनके लिए नाराज़गी भी प्रकट की गई।

हम जानबूझ कर अपने इस क्रमबद्ध लेख की १०० वीं कड़ी को एक दस्तावेजी रूप देना चाहते हैं ताकि समाचार पत्र के पृष्ठों के रूप में यह बरबाद न हो जाए। हम ऐसे एक-दो नहीं १०० से अधिक प्रशन उठाने जा रहे हैं, जिसका उत्तर भारत सरकार और प्रशनों के नाम पर नाक भौंह चढाने वाले विपक्ष को भी देना ही होगा। क्या चोर है उनके दिल में, जो प्रत्येक बार प्रत्येक प्रशन पर ज़मीन व आसमान सर पर उठा लेते हैं? अगर हम ने यह प्रशन उठाया की नरीमन हाउस की संदिग्ध गतिविधियों की जांच क्यूँ नहीं की गई? क्यूँ एक आतंकवादी के बयान को अत्याधिक अहमियत दी जा रही है की उस पर किसी भी पुष्टि की आव्यशकता नहीं? हमने येही बात २५ दिसम्बर को फैजाबाद में आतंकवाद के विरुद्ध और राजनीतिज्ञों की कार्यशैली पर आयोजित कार्यक्रम में कही, जिसकी अध्यक्षता अयोध्या मन्दिर के पुजारी सत्येन्द्र दास ने की एवं इस जनसभा में हनुमानगढ़ी के मुख्य पुजारी बाबा भाव दास भी थे। मुंबई पर आतंकवादी हमलों के सन्दर्भ में लगभग वह सभी प्रशन मैंने वक्ताओं एवं श्रोतागण के समक्ष रखे जो अधिकतर लिखता रहा हूँ अथवा जो १०० वीं कड़ी में उठाने जा रहा हूँ। मैंने तो येही महसूस किया की सभी ने मेरे प्रशनों का समर्थन किया। अयोध्या वह जगह है, जो भारत में महत्त्वपूर्ण हैसियत रखती है और जिस स्थान के नागरिक ने तमाम उंच नीच को बहुत करीब से देखा है। अगर वहां इन प्रशनों का समर्थन किया जाता है, तब फिर इन प्रशनों पर आपत्ति कैसी?

हाँ, मगर आज एक प्रशन मैं पहली बार उठा रहा हूँ और मुझे यह प्रतीत होता है की यह प्रशन चुनाव के बाद भी आज के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और प्रधानमंत्री पद के इच्छुक लाल कृष्ण अडवाणी जी का पीछा करता रहेगा।

और वह प्रशन यह है की " लाल कृष्ण अडवाणी जी ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के शपथपत्र में ऐसी कौन सी बात असाधारण महसूस की, जिसको लेकर वह व्याकुल हो गए और अपने चुनावी जनसभाओं में उसे इशु बनाया, सरकार से जवाब माँगा, प्रधान मंत्री से भेंट के लिए समय माँगा। सरकार ने उनके द्वारा उठाये गए प्रशन को इतना महत्त्व दिया की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम् के नारायणन को भेंट हेतु उनके घर भेजा। श्री नारायणन ने उन्हें विशवास दिलाया की अब साध्वी प्रज्ञा को प्रताडित नहीं किया जायेगा। इसके पशचात न्यायलय ने साध्वी प्रज्ञा को पुलिस कस्टडी में देने से इंकार कर दिया। प्रधानमंत्री ने लाल कृष्ण अडवाणी को भेंट का समय दिया..........."

चलिए इस पर अधिक चर्चा नहीं करते, कुछ समय के लिए मान लेते हैं की यह रूटीन कार्य रहा होगा। हलाँकि हमारी मौजूदगी में शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी साहब ने मुफ्ती अबुल बशर को उठाये जाने के प्रशन पर एवं उन्हें प्रताडित किए जान के सम्बन्ध में प्रधानमंत्री से भेंट की थी। हमने स्वयं इस भेंट के दौरान उसके भाई का पत्र भी प्रधानमंत्री की सेवा में प्रस्तुत किया था किंतु परिणाम कुछ नहीं निकला, जबकि साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, जिसके सम्बन्ध में शहीद हेमंत करकरे के नेतृत्व में ऐ टी एस ने बहुत ठोस प्रमाण एकत्रित किए थे वह मुफ्ती अबुल बशर के मुकाबले में इतने अधिक हैं की दोनों की तुलना भी नहीं की जा सकती।

लेकिन इस सम्बन्ध में सबसे बड़ा प्रशन यह है जिसका उत्तर भारत का इतिहास भी मांगेगा और आज की १०० करोड़ जनता भी भारत सरकार से इस प्रशन का उत्तर जानना चाहेगी की अंतत: लाल कृष्ण अडवाणी एवं भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मध्य इस प्रमुख भेंट में ऐसी क्या बात हुई जिसके बाद से सरकार का रुख बदल गया जो सरकार एवं कांग्रेस पार्टी मालेगाँव जांच के परिणाम को लेकर अपने राजनीतिज्ञ भविष्य के सम्बन्ध से बड़ी निश्चिंत दिखाई देने लगी थी, जिसे लगता था की बटला हाउस में भी हानि की बहुत हद तक भरपाई हो चुकी है और भारतीय जनता पार्टी मालेगाँव जांच में हुए रहस्योद्घाटन के बाद बगलें झाँकने के लिए मजबूर हो गई है, इसलिए वह चुनाव में मुकाबला नहीं कर सकती।

फिर हुआ २६ नवम्बर को मुंबई पर आतंकवादी हमला और उसके बाद संसद की कार्यवाही, यह दोनों ही भारतीय जनता के लिए एक नया अनुभव हैं। न तो कभी भारतियों ने यह देखा था की केवल १० आतंकवादी हमारे देश पर इतना बड़ा हमला करने में सफल हो जाएँ की ६१ घंटों तक हमारी पुलिस और सेना को उन्हें पराजित करने के लिए इन्तिज़ार करना पड़े और यह भी भारत के इतिहास में शायद पहले कभी नहीं हुआ की किसी एक आतंकवादी का बयान लगभग पूरी संसद के लिए अहम् का प्रशन बन जाए, सबके सब इसे उचित करार देने के लिए बुरी तरह अडे हों और किसी भी तरह की जांच का प्रशन उठाये जाने पर इस प्रकार आगबबूला हो जाएँ की प्रशन उठाने वाले को आतंकवादियों का समर्थक और देशद्रोही तक कहने लगें।

क्या भारत की जनता को यह जानने का अधिकार नहीं है की श्रीमती कोन्दोलीज़ा राइस जो भारत पर आतंकवादी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के दौरे पर आई, उनका यह प्रोग्राम कब तय हुआ था, अचानक इन हमलों के बाद या पहले से उन्हें इन्हीं तारीखों में आना था। उन्होंने ऑन रिकॉर्ड कही जाने वाली बातों के आलावा भी क्या कुछ ऐसा कहा जो सत्ता पार्टी और विपक्षी पार्टी दोनों के लिए एक विचार हो जाने के लिए विवश करने वाला था? श्री ब्राउन का भारतीय दौरा भी क्या पहले से ही तय था और ताज़ा वास्तुस्थिति या स्पष्ट रूप से कहें तो हिंद-पाक जंग के हालात कन्दोलिज़ा राईस और श्री ब्राउन की यात्रा का परिणाम हैं? क्यूंकि यह बात भारत के राजनीतिज्ञों को भी सूट करती है की यदि हिंद-पाक के बीच जंग हो जाए तो फिर कांग्रेस से कोई उसकी पाँच साल की उपलब्धियों पर हिसाब मांगेगा और न भारतीय जनता पार्टी से आतंकवाद के सवाल पर पूछताछ होगी, दोनों आगामी चुनावों में ऐसे प्रशनों से भयभीत हुए बिना उतर सकती हैं? और अमेरिका जिसे हथियारों को बेचने से अपने आर्थिक हालात को बेहतर बनाने की आव्यशकता है, इसके लिए हिंद पाक जंग एक वरदान सिद्ध हो सकती है और जिस तरह ९/११ अर्थात ११ सितम्बर २००१ को वर्ल्ड ट्रेड टावर में मोसाद ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका की एक विशेष भूमिका हो सकती है?

सम्भव है यह सब काल्पनिक हो। जांच के बाद सच्चाई कुछ और सामने आए परन्तु इस दृष्टीकोण से जांच किए जाने पर हमारे राजनीतिज्ञ भयभीत क्यूँ हैं? ऐसे प्रशनों पर उनके चेहरे का रंग उड़ जाने से ही यह सिद्ध होता है की कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है। (जिसे छुपाया जा रहा है)

हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम

वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता

२६ नवम्बर २००८ को मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले की सच्चाई क्या है, इसे जानने के बारे में शायद केंद्रीय सरकार और विपक्षी दलों की कोई रुचि है ही नहीं, जो कुछ एक जीवित बचे आतंकवादी ने कह दिया शायद सभी ने उसे सत्य मान लिया है और उनका विशवास है की यह आतंकवादी जो कह रहा है सत्य कह रहा है और सत्य के अलावा कुछ नहीं कह रहा है। इस लिए अब अधिक जांच की आव्यशकता नहीं है।

क्यूंकि इस सम्बन्ध में हम २६ नवम्बर के बाद से लगातार लिख रहे हैं, जिसका सिलसिला अभी भी जारी है और अगली ५ जनवरी को अर्थात हेमंत करकरे की मृत्यु के ४० वें दिन १०० पृष्ठों पर सम्मिलित एक विशेष पत्रिका प्रकाशित करने जा रहे हैं, हाँ परन्तु आतंकवाद की जड़ तक पहुँचने का प्रयास हम आज भी करना चाहते हैं, इसलिए आज अपने पाठकों के सामने कुछ ऐसे भुलाए तथा अनदेखी कर दिए गए समाचार रखना चाहते हैं जिनका सम्बन्ध कहीं न कहीं आतंकवाद से भी हो सकता था परन्तु न तो इस सम्बन्ध में कोई जांच की गई और न ही मीडिया ने इन समाचारों पर कोई विशेष ध्यान दिया, इसका कारण क्या हो सकता है यह पाठक अच्छी तरह समझ सकते हैं। ऐसी घटनाएं अनगिनत हैं परन्तु हम उनमें से कुछ ही का वर्णन करना चाहते हैं, वह भी केवल ऐसी घटनाओं का जो अभी मस्तिष्क से मिट न पाये हों.

इसलिए बात आरम्भ करेंगे अप्रैल २००६ में हुए नांदेड बम धमाकों से, जहाँ बम बनाने के प्रयास में बजरंग दल के दो कार्यकर्ता मारे गए, घटना लगभग पौने तीन वर्ष पुरानी है, परन्तु प्रारम्भ इसका स्मरण कराने की आव्यशकता इसलिए महसूस हुई क्यूंकि फिर से इसकी जांच के आदेश जारी हो चुके हैं, मिस्टर रघुवंशी शहीद हेमंत करकरे के सही उत्तराधिकारी सिद्ध होते हैं और इसी प्रकार जांच कर पाते हैं जिस प्रकार वह कर रहे थे, यह कहना तो अभी कठिन है परन्तु इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता की घटनास्थल पर मस्जिदों के नक्शे, नकली दाढ़ी और टोपी मिले थे अर्थात इरादा था की बम बनाने के बाद यह लोग बम धमाके करेंगे और घटनास्थल का दृश्य कुछ इस प्रकार होगा की संदेह मुसलामानों पर जाए। इसके बाद ऐसा ही कानपूर में हुआ जहाँ २४ अगस्त २००८ को बजरंग दल के दो कार्यकर्ता इसी प्रकार बम बनने की कोशिश में मारे गए, दो तीन दिन तक तो समाचारपत्रों ने तो कुछ समाचार प्रकाशित किए परन्तु इसके बाद उन्हें भी इस बात की आव्यशकता महसूस नहीं हुई की पता लगाया जाए की यह बम क्यूँ बनाये जा रहे थे? इनका प्रयोग कहाँ होना था और बम बनाने के पीछे आतंकवाद के सिवा उनके उद्देश्य और क्या था? उसके बाद राजस्थान के भरतपुर जिले में पटाखों में आग लगने से ३० लोग मारे गए। स्पष्ट हो की ख़ास दीपावली के दिन उत्तराँचल के शहर ऋषिकेश में भी पटाखों के एक बाज़ार में आग लग गई थी, जिस में एक व्यक्ति की मृत्यु हुई, प्रशन यह पैदा होता है की क्या राजस्थान के इस एक घर में ऋषिकेश के पटाखा बाज़ार से भी अधिक गोला- बारूद मौजूद था? अगर हाँ तो क्या इस का कारण केवल पटाखे बनाने के लिए प्रयोग किया जाना ही था? या फिर नांदेड और कानपूर जैसे बम बनाने वालों के लिए यह घर एक गोदाम की तरह था, जहाँ ये वह आव्यशकता अनुसार विस्फोटक सामग्री मंगाते रहते थे और जब जिस प्रकार जहाँ चाहते, उसका प्रयोग करते रहते थे? इस दृष्टिकोण से वहां विस्फोटक सामग्री की मौजूदगी की जांच क्यूँ नहीं की गई? अगर हुई तो इसे सामने क्यूँ नहीं लाया गया? इसी प्रकार मध्यप्रदेश के एक शहर रीवा में गुलाब सिंह के घर पर ३२५ किलो अमोनियम नाइट्रेट बरामद हुआ, यह व्यक्ति भाग जाने में सफल हो गया, इसके बाद यह समाचार गायब हो गया, कोई वर्णन न तो पुलिस ने दिया और न ही मीडिया ने इस बात का कष्ट किया की पता लगाया जाए की आख़िर अमोनियम नाइट्रेट का इतना भंडार उसके पास मौजूद क्यूँ था?


केरल में इसी प्रकार की एक घटना में बजरंग दल के दो कार्यकर्ता बम बनाने के प्रयास में हताहत हुए तथा यदि बिल्कुल ताज़ा घटनाका उल्लेख करें तो कानपुर में सिलेंडर में हुए धमाका से एक मकान ध्वस्त हो गया और ७ लोग घायल हो गए। समाचार पत्रों ने यह समाचार भी दिया की केवल गैस सिलेंडर में धमाका ही नहीं हुआ बल्कि सिलेंडर के पास कमरे में बारूद भी रखा था, यदि बारूद में धमाका हो जाता तो आस पास के घर भी ध्वस्त हो सकते थे और अधिक संख्या में जान व माल की क्षति हो सकती थी. प्रशन यह पैदा होता है की घर में यह बारूद क्यूँ रखा था? इस पर कोई भी कुछ बताने के लिए तैयार नहीं। उस परिवार के लोगों का कहना था की बारूद नहीं था बल्कि पटाखे थे। यदि पटाखे ही थे तो वह इतनी बड़ी मात्रा में क्यूँ थे तथा कुछ ही देर में उन्हें गायब क्यूँ करदिया गया?


इस समाचार को भी मीडिया ने कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया और केवल एक गैस सिलेंडर के फट जाने से हुई दुर्घटना मानकर बात समाप्त कर दी गई। क्या बात केवल इतनी ही है यद्यापि घरों में बेमौसम पटाखों तथा गोला-बारूद की इस मात्र में मौजूदगी क्यूँ बढती जा रही है? क्या यह चिंताजनक नहीं है? क्या इस पर विचार नहीं किया जाना चाहिए की अचानक यह प्रवृत्ति इतनी क्यूँ बढती जा रही है की बस्तियों में रहनेवाले अपने घरों को बम बनाने की फक्ट्रियों में परिवर्तित कर रहे हैं, इस से वह ही नहीं आस पास के लोग भी खतरे का शिकार हो सकते हैं। क्यूँ इस बात की जांच नहीं की जाती के नांदेड, कानपूर, राजस्थान तथा मध्यप्रदेश के उपरोक्त घरों में इतनी बड़ी मात्रा में गोला-बारूद क्यूँ था? इस की जांच की आव्यशकता उस समय और बढ़ जाती है जब देश में जगह-जगह बम धमाके हो रहे हैं। इसे क्यूँ पूरी तरह असंभव मान लिया जाए की जिन घरों में बम बनाने की फक्ट्रियाँ चल रही थीं और जो लोग बम बनाने के प्रयास में मारे गए, उनका सम्बन्ध देश के विभिन्न स्थानों पर हुए बम धमाकों से भी हो सकता है। और क्या केवल इतने ही लोग इस प्रकार के कार्यों में लिप्त थे जो मारे गए या उनका बड़ा नेटवर्क था, उनका कार्य बम बनाना था, गोला बारूद प्राप्त करने वाले और लोग थे तथा इन बमों का प्रयोग करने वाले अन्य व्यक्ति अर्थात यह एक नेटवर्क था जो शायद मालेगाँव बम धमाकों जैसे आतंकवादी कार्य के लिए तैयार किया जा रहा था।


क्या कारण है की ऐसे सभी समाचारों को कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया गया तथा पुलिस ने भी इन घटनाओं में इतनी रूचि नहीं ली की जनता के सामने असलियत आपाती? शहीद हेमंत करकरे येही कार्य कर रहे थे, दुर्भाग्य से उन की मृत्यु २६ नवम्बर को मुंबई में हुए आतंकवादी हमले के दौरान हो गई। क्या ऐसा सोचना पूर्ण रूप से निराधार होगा की जिस सोच ने उपरोक्त सभी घटनाओं को दबाने का प्रयास किया, तथ्यों को सामने लाने में कोई रूचि प्रकट नहीं की, वैसे ही मानसिकता के लोग आज न तो देश पर शहीद हेमंत करकरे की मृत्यु की सच्चाई सामने आने देना चाहते हैं और न मुंबई में हुए आतंकवादी हमले का पूर्ण सत्य। उनके लिए तो बस इतना काफ़ी है की जो कुछ जीवित बचे एक आतंकवादी आमिर अजमल कासब ने कह दिया उसी को अन्तिम शब्द मान लिया जाए।

Thursday, December 25, 2008

महाराष्ट्र ऐ टी एस के प्रमुख के पी रघुवंशी
क्या हेमंत करकरे के सही उत्तराधिकारी हैं?
आज प्रात:जब मैं अंग्रीजी दैनिक "टाईम्स ऑफ़ इंडिया" तथा "हिंदुस्तान टाईम्स" का अध्यन कर रहा था तो तीन समाचारों पर मेरा ध्यान केंद्रित हुआ, उस में आर एस एस के एक सदस्य की बम बनने में लिप्त होने की बात एक बार फिर सामने आई, इत्तेफाक से कानपूर में गैस सिलेंडर फटने से ७ लोगों के घायल होने का समाचार भी हमारे सामने था, जिस में चिंताजनक बात यह थी की सिलेंडर के पास बारूद भी पाया गया तथा जब इस का कारण मालूम किया गया तो कहा गया की यह पटाखे थे और बाद में उन्हें गायब भी कर दिया गया। ऐसे कुछ समाचारों को एकत्रित करके मैं अलग से एक लेख लिख रहा हूँ, जो जल्द ही पाठकों की सेवा में प्रस्तुत किया जायेगा। बहरहाल ऐसे समाचारों से पता चलता है की संघ परिवार की गतिविधियाँ क्या हैं? हमारी सरकार आतंकवाद पर कंट्रोल करना भी चाहती है और ऐसी घटनाओं की उपेक्षा भी करती रहती हैं, उसकी नियत में खोट है या कोई और मजबूरी, इसका उत्तर तो बहरहाल सरकार को ही देना होगा, यदि वह अंतुले के प्रशन के उत्तर में गृहमंत्री की लीपापोती वाले रुख से हटा कर कोई ठोस उत्तर दे सके तो......
एक दूसरा समाचार जिसने आकर्षित किया वह शिवसेना के प्रमुख बाल ठाकरे का बयान था, जो कह रहे थे की मुझे खुशी होगी की मालेगाँव बम धमाकों में हिंदू संघटनों का नाम सिद्ध होता है तो यह एक प्रशसनीय संदेश हैं। वह हिंदू आतंकवाद की वकालत करते भी नज़र आए। ठाकरे हिंदू खुदकश दस्ते बनाने की बात पहले भी कर चुके हैं। महाराष्ट्र सरकार तथा केंद्रीय सरकार का विश्वास प्राप्त करने के बाद उन्होंने यह संदेश दिया है या फिर यह उनकी अपनी सोच है? जो भी हो यदि सरकार कार्यवाही नहीं करती है तो उसकी कार्यप्रणाली पर सवाल तो उठेगा ही।
तीसरा जो सब से महत्वपूर्ण समाचार था वह जनता दल यूनाइटेड शिवानन्द तिवारी जी द्वारा महाराष्ट्र ऐ टी एस प्रमुख रघुवंशी की नियुक्ति पर सवाल उठाने वाला था। हम उनकी बात से शत प्रतिशत सहमत हैं, हमने समाचार पढने के तुंरत बाद उनसे टेलीफोन पर संपर्क किया जिसके उत्तर में उन्होंने हमें बहुत कुछ जानकारियाँ दीं और इस सम्बन्ध में अपना बयान रोजनामा राष्ट्रीय सहारा के लिए फैक्स द्वारा भेजा। उनका यह बयान तो हम शब्दश: आज ही पाठकों की सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं, इसके अतिरिक्त रघुवंशी की निय्युक्ति पर हमारी राय क्या है, यह आगामी दिनों में इसी कॉलम में प्रस्तुत किया जायेगा।
"मुंबई के ऐ टी एस प्रमुख हेमंत करकरे की मृत्यु के बाद श्री के पी रघुवंशी को महाराष्ट्र सरकार ने ऐ टी एस का प्रभार सोंपा है। हेमंत करकरे के पहले श्री रघुवंशी ही ऐ टी एस के प्रमुख थे। इन्हीं के कार्यकाल में मालेगाँव में बम विस्फोट हुआ था। इस विस्फोट काण्ड में ऐ टी एस ने मुसलामानों को ही जिम्मेदार मानकर अनुसंधान शुरू किया था। मुस्लिम नौजवानों को संदेह के आधार पर पकड़ा गया था।
बाद में जब हेमंत करकरे ऐ टी एस के प्रमुख बने तो उन्होंने विस्फोट के लिए इस्तेमाल की गई मोटर साइकल को आधार बनाकर मामले का अनुसन्धान शुरू किया और साध्वी प्रज्ञा तथा फौजी अफसर पुरोहित सहित अन्य हिरासत में लिए गए हैं।
चौकाने वाली बात यह है की श्री रघुवंशी ने ऐ टी एस प्रमुख के तौर २००५ में पुरोहित को ऐ टी एस मुख्यालय में आमंत्रित किया था। श्री पुरोहित ने श्री रघुवंशी के अनुरोध पर ऐ टी एस के स्टाफ को आतंकवाद से लड़ने की ऑपरेशनल ट्रेनिंग दी थी।
आज श्री पुरोहित आतंकी करवाई के प्रमुख साजिशकर्ता के रूप में जेल में बंद हैं। श्री रघुवंशी ऐ टी एस के प्रभार में हैं। ऐसे में मालेगाँव तथा अन्य आतंकवादी घटनाओं की निपक्ष जांच के भविष्य पर गंभीर संदेह पैदा हो गया है।
अभी ११ नवम्बर २००८ को स्वयं श्री रघुवंशी ने सार्वजनिक रूप से श्री पुरोहित को ऐ टी एस मुख्यालय में बुलाने की बात कबूल की है।
हमें आश्चर्य है की महाराष्ट्र की सरकार ने उपरोक्त तथ्यों के आलोक में श्री रघुवंशी को ऐ टी एस का प्रभार कैसे दिया? आज मालेगाँव के मुस्लमान श्री रघुवंशी को ऐ टी एस प्रमुख बनाये जाने के विरोध में जुलूस निकाल रहे हैं। हमें खेद है की गंभीर मामले की श्री अंतुले अनदेखी कर रहे हैं और बेवजह मुस्लिम समाज में भ्रम फैला कर नेता बन्ने की सस्ती कोशिश कर रहे हैं।
हम मांग करते हैं की महाराष्ट्र सरकार तत्काल श्री रघुवंशी को ऐ टी एस के प्रमुख के प्रभार से हटाये और किसी तटस्थ, निष्पक्ष तथा सक्षम पदाधिकारी को उसका प्रमुख बनाये।"
शिवानन्द तिवारी
(एम् पी) राष्ट्रीय प्रवक्ता जनता दल यूनाइटेड
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Hindustan Times
RSS man linked to bomb-making camp again
WEDNESDAY, DECEMBER 24, 2008
बम बनने वाले कैंप से एक बार फिर जुड़ा आर एस एस का आदमी
(पुणे, २३ दिसम्बर) आर एस एस के एक वरिष्ठ नेता डॉ शरद कुंटे के बारे में समझा जा रहा है की ऐ टी एस लगातार दूसरी बार उनको अपने निरिक्षण में रखे हुए है। ऐ टी एस सूत्रों के अनुसार मालेगाँव धमाका के अभियुक्त राकेश धावडे ने अपने वक्तव्य में कहा था की डॉ कुंटे ने इस प्रकार की करवाई के लिए उसके अन्दर रूचि पैदा करवाई थी। धावडे जो की २००३ के जालना और परभानी के धमाकों का भी अभ्युक्त है, उसने यह वक्तव्य जालना पुलिस के सामने दिया था। उसने बताया था की डॉ कुंटे भी उन लोगों में शामिल थे जिन्होंने २००३ में पुणे के सिंघ्गढ़ किला के निकट "अकांक्षा" नामी रेस्टोरंट में बम बनाना सिखाने के लिए एक कैंप लगाया था। मंगलवार को आर एस एस के इस नेता ने बताया की उन्हें धावडे के इस वक्तव्य के बारे में पहले से ही जानकारी थी जो उस ने ऐ टी एस की हिरासत में रहते हुए २२ नवम्बर को जालना की अदालत में दिया था। डॉ कुंटे ने कहा था की "जब से (धावडे को) मजिस्ट्रेट की हिरासत में भेजा गया तो उसने (धावडे ने) अदालत के सामने यह बात स्पष्ट कर दी थी की उस ने यह बयान ऐ टी एस के दबाव में आकर दिया था। "डॉ कुंटे ने यह भी बताया की जालना पुलिस के सामने धावडे द्वारा इस वक्तव्य के दिए जाने के बाद ऐ टी एस ने उनसे कोई संपर्क नहीं किया। डॉ कुंटे आर एस एस के ऐसे पहले नेता हैं जिनसे २९ सितम्बर के मालेगाँव धमाका के मामले में (जिसमें ६ व्यक्तियों की जानें चली गई थी) ऐ टी एस पूछताछ करेगी। पुणे ऐ टी एस पर चूंकि मीडिया से बात करने पर प्रतिबन्ध है इसलिए उसके अज्ञात सूत्रों से पता चला है की धावडे के वक्तव्य से ज्ञात हुआ है की उसने पाइप बम बनाने का सामान उपलब्ध कराया था, जिसके लिए पैसे डॉ कुंटे ने दिए थे। मालेगाँव बम धमाका की जांच के बाद ऐ टी एस ने महाराष्ट्र के जालना और परभनी के बम धमाकों के मामले की जांच फिर से प्रारम्भ कर दी है जिसमें पुलिस को हिंदू संघटनों के सम्मिलित होने का संदेह है। पुणे के एक प्रसिद्द कॉलेज के प्रोफेसर डॉ कुंटे कुछ साल पूर्व विश्व हिंदू परिषद् की राज्य ईकाई के कार्यकारी अध्यक्ष रह चुके हैं।
(हिंदुस्तान टाईम्स, २४ दिसम्बर २००८, पेज ११)
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Lighting Candles no answer: Thackeray
HT Political Bureau
Mumbai, December 23
मोम बत्ती जलाना कोई जवाब नहीं है: ठाकरे
(मुंबई, २३ दिसम्बर) शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे को पिछले माह के हमलों के बाद गेट वे ऑफ़ इंडिया पर कुछ "नालायकों" द्वारा मोमबत्ती जलाना पसंद नहीं है। उन्होंने ने कहा है की मोमबत्ती जलाना आतंकवाद का उत्तर नहीं है।
शिव सेना के प्रवक्ता "सामना" को मंगलवार को दिए गए एक इंटरविउ में ठाकरे ने उन लोगों को काफ़ी बुरा-भला कहा है जो पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा शहर के पांचसितारा होटलों का दौरा प्रतिदिन कर रहे हैं। उन्होंने सवाल किया है की "जिन लोगों ने होटल ताज के सामने मोमबत्ती जलाई, वह सब बेकार लोग हैं। आतंकवादियों ने २६/११ से पहले जब हम पर हमला किया था तो यह लोग कहाँ थे?"
मोमबत्ती जलाने में सम्मिलित महिलाओं को सलाह देते हुए ठाकरे ने कहा है की वह महिला स्वतंत्रता सेनानियों से सीख लें। उनका कहना था की "इन औरतों ने मोमबत्ती जलाने से पहले किसी भी चीज़ के विरुद्ध लडाई नहीं लड़ी है। इन लोगों ने महाराष्ट्र राज्य की उन महिला स्वतंत्रता सेनानियों को न तो देखा होगा और न ही उन के बारे में सुना होगा, जिन्होंने बड़े स्तर पर प्रदर्शन किए और संयुक्त महाराष्ट्र के लिए लड़ाईयां लड़ी हैं।"
ठाकरे ने यह भी कहा है की अगर मालेगाँव धमाकों के अभियुक्तों का अपराध सिद्ध हो जाता है तो उन्हें खुशी होगी। उन्होंने बताया की "मैं हिन्दुओं से चाहता हूँ की वह आतंकवादी पैदा करें। वर्तमान परिस्थिति का मुकाबला इसी ढंग से किया जा सकता है।"
(हिंदुस्तान टाईम्स, २४ दिसम्बर २००८, पेज १०)

क्या सब को संतुष्ट कर पायेगा

अंतुले के बयान पर गृहमंत्री का स्पष्टीकरण

हेमंत करकरे और मुंबई पुलिस के दूसरे अधिकारीयों की मृत्यु से सम्बंधित हालात पर गृहमंत्री का बयान

१- इन दिनों मुंबई ऐ टी एस चीफ हेमंत करकरे सहित दूसरे पुलिस अधिकारीयों की मृत्यु सम्बंधित हालात पर अनेक प्रशन उठाये गए हैं जो की २६ नवम्बर २००८ को एक ही कार में सवार हो कर कामा हॉस्पिटल के निकट रंग भवन रोड पर जा रहे थे।

२- मैंने महाराष्ट्र सरकार से इस सम्बन्ध में बयूरा प्राप्त किया है।

३-सबसे पहले मैं यह कहना चाहता हूँ की इस घटना के कम से कम तीन चश्मदीद गवाह हैं, जिन में से एक मो अजमल आमिर है, जिसे इस घटना के तुंरत बाद ही गिरफ्तार कर लिया गया था और अब वह पुलिस हिरासत में है। दूसरे चशम्दीद गवाह हैं पुलिस नायक, श्री अरुण जाधव जो इस घटना के समय पुलिस की इसी क़ुअलिस के भीतर थे और दूसरे हैं सरकारी गाड़ी के चालक, श्रीमती मारुती माधवराव फाड़, जोकि महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रिंसिपल सेक्रेटरी (हैल्थ) को उपलब्ध कराइ गई गाड़ी के चालक हैं।

४- इन तीनों चश्मदीद गवाहों और दूसरे गवाहों के द्वारा दी गई सूचनाओं के आधार पर मुंबई पुलिस ने इस घटना की एक रूप रेखा तैयार कर ली है जो की संक्षेप में इस प्रकार हैं:

५-श्री करकरे दादर में अपने घर पर २१.४५ पर पहुंचे। उसके कुछ देर बाद ही टेलीफोन पर कंट्रोल रूम के इंस्पेक्टर इंचार्ज, श्री तोंडवलकर की और से सूचना मिलने पर उन्होंने अपने स्टाफ को सी एस टी रेलवे स्टेशन पर जाने के लिए तैयार होने का आदेश दिया। कुछ ही मिनटों के भीतर वह अपनी टीम (एक पी एस आई और चार कांस्टेबल)के साथ बोलेरो जीप द्वारा सी एस टी की और चल पड़े। सी एस टी पहुँचने से पहले ही उन्होंने देखा की नाकाबंदी के कारण मार्ग अवरुद्ध कर दिया गया है। इसलिए करकरे और उन की टीम वहां से पैदल ही सी एस टी की और चल पड़ी। वहां जा कर उन्होंने रेलवे के एडिशनल डी जी पी के पी रघुवंशी और दूसरे अधिकारीयों से भेंट की। उन लोगों ने करकरे को बताया की दो आतंकवादी रेलवे स्टेशन के भीतर ज़बरदस्त फायरिंग करने के बाद टाइम्स ऑफ़ इंडिया बिल्डिंग और अंजुमन इस्लाम हाई स्कूल के बीच वाली रोड (जिसे अंजुमन लेन कहते हैं) की ओर भाग गए हैं। श्री करकरे ने तुंरत ही अपनी बुल्लेट प्रूफ़ जैकेट और हेलमेट पहना और अपनी टीम के साथ इस ओर चल पड़े जहाँ आतंकवादी भागे थे। श्री करकरे तथा उनकी टीम कामा हॉस्पिटल के पिछले द्वार पर पहुँची। वहां पर उन्होंने गोलीबारी और ग्रेनेड के फटने की आवाज़ सुनी। उन्होंने पिछले द्वार पर कवर पोजीशन संभाल ली।

६- इस के कुछ देर बाद ही मुंबई के एडिशनल पुलिस कमिश्नर श्री अशोक काम्टे कामा हॉस्पिटल के पिछले द्वार पर पहुंचे। श्री काम्टे लगभग २२.०० बजे अपने निवास स्थान पर पहुंचे और ईस्ट रीजन के कंट्रोल रूम से सूचना मिलने के ५ मिनट के भीतर उन्होंने अपने वायरलेस ओपरेटर और ड्राईवर को तैयार होने का निर्देश दिया और १० मिनट में बाहर आ गए। उन्होंने बोम्बे पोर्ट ट्रस्ट जाने के लिए सड़क का मार्ग अपनाया, जब वह आजाद मैदान पुलिस क्लब पहुंचे तो उनसे कहा गया की वह अपनी कार कामा अस्पताल के गेट तक न ले जाएँ और वह वहीँ पर अपनी कार से उतर गए और ड्राईवर को कार में रहने का निर्देश देते हुए वह अपने वायरलेस ओपेरटर के साथ कामा अस्पताल के गेट पर पहुंचे।

७- पुलिस इंस्पेक्टर एंटी एक्सटोर्शन सकुएड क्राइम ब्रांच श्री विजय सालसकर भी कामा अस्पताल के गेट के पास पहुंचे। वह इससे पूर्व अपने निवास स्थान पर २१.३० बजे पहुंचे थे। इससे पहले श्री काम्टे अपने घर २१.३० पर पहुंचे थे और अपने चालाक, स्टाफ और कार को छोड़ दिया था परन्तु २१.५० पर जब उन्हें क्राइम ब्रांच के एडिशनल कमिश्नर ने मोबाइल फोन पर इस घटना की सूचना दी तो वह अपने घर से अपनी निजी क़ुअलिस स्वयं ही चलाते हुए निकल पड़े। रास्ते में उन के पुलिस नायक श्री अरुण जाधव ने जब उन्हें टेलेफोन द्वारा एलर्ट किया तो उन्होंने अपने साथ पुलिस इंस्पेक्टर नितिन अल्कनूरे को भी ले लिया तथा यह दोनों हाजी अली और नेपियन सी रोड होते हुए कोलाबा पुलिस स्टेशन की ओर चल पड़े। कोलाबा पुलिस स्टेशन पर पुलिस नायक अरुण जाधव भी उनके साथ चल पड़ा। दूसरी ओर क्राइम ब्रांच के जोइंट पुलिस कमिश्नर श्री राकेश मारिया ने मोबाइल फोन द्वारा श्री सालसकर को मुंबई पुलिस हेड कोअटर जाने का आदेश दिया। पुलिस हेड कोअटर की ओर गाड़ी चला कर जाते हुए श्री सालसकर ने हथियार लिए हुए दो पुलिस वालों को आजाद मैदान पुलिस स्टेशन के गेट पर एलर्ट पोजीशन में देखा। उन पुलिस वालों ने श्री सालसकर को कामा हॉस्पिटल में चलने वाली गोलीबारी के बारे में अवगत कराया इसलिए श्री सालसकर भी अपनी टीम के साथ कामा हॉस्पिटल के पिछले द्वार की ओर भागे।

८- उपरोक्त वर्णित तथ्यों से पता चलता है की तीनों अधिकारी अर्थात श्री करकरे, श्री काम्टे और श्री सालसकर अलग अलग रास्तों से कामा हॉस्पिटल के पिछले द्वार पर एकत्रित हुए थे। यह तीनों आपस में इस वास्तुस्थिति पर बातचीत कर रहे थे की एडिशनल पुलिस कमिश्नर श्री सुदानंद दाते के साथ जुड़े हुए वायरलेस ओपेरटर श्री तिलेकर घायल अवस्था में कामा हॉस्पिटल से बाहर निकले और उन तीनों को सूचना दी की कामा हॉस्पिटल के भीतर आतंकवादियों के साथ होने वाली गोलीबारी में श्री सुदानंद दाते घायल हो गए हैं। कामा हॉस्पिटल की छत पर से भी फाइरिंग हो रही थी परन्तु कुछ क्षण पश्चात ही खामोशी हो गई। उसके पश्चात् गोली चलने की आवाजें सेन्ट जेवियर्स कोलेज की ओर से आने लगीं। श्री करकरे ने अपनी टीम को इस दिशा में पोजीशन संभालने का आदेश जारी कर दिया तथा श्री काम्टे व श्री सालसकर के साथ पुलिस जीप अर्थात उस क़ुअलिस गाड़ी में सवार हो गए जो पधोनी डिविज़न के ऐ सी पी की थी और सेन्ट जेवियर्स कोलेज की ओर चल पड़े। श्री सालसकर उस गाड़ी को चला रहे थे, श्री काम्टे सामने वाली सीट पर बाएँ ओर बैठे हुए थे, श्री करकरे बीच वाली सीट पर थे और श्री अरुण जाधव सहित ४ अन्य पुलिस वाले पिछली सीट पर बैठे हुए थे।

९- जीवित बच जाने वाले पुलिस कर्मचारी श्री अरुण जाधव ने बताया है की क़ुअलिस जिस समय बदरुद्दीन तय्यब जी मार्ग के अंत में रंग भवन लेन पर स्थित एक बैंक के ऐ टी एम् सेंटर से गुजर रही थी तो रोड की दूसरी ओर पीछे की झाडी से दो आतंकवादियों ने हम पर अंधाधुन्द फायरिंग शुरू कर दी। क़ुअलिस में बैठे हुए हम में से एक ने आतंकवादियों पर गोलियाँ चलाई जिसके कारन एक आतंकवादी के हाथ पर एक गोली लगी (जिसकी पहचान बाद में मो अजमल आमिर के रूप में की गई)। श्री करकरे, श्री काम्टे, श्री सालसकर और दूसरे तीन पुलिस वाले गंभीर रूप से घायल हो गए। दोनों आतंकवादियों ने अगली सीट पर बैठे तीनों घायल अधिकारीयों को उठा कर बाहर फ़ेंक दिया और चारों पुलिस वालों को मृत समझ कर उनके साथ ही क़ुअलिस को लेकर भाग गए। श्री अरुण जाधव, मारे जा चुके अपने तीन सहयोगी पुलिस वालों के शरीर के नीचे छुप गए थे और इस प्रकार बच गए। इस क़ुअलिस को आतंकवादियों ने "फ्री प्रेस जनरल मार्ग" पर छोड़ दिया तथा एक दूसरी स्कोडा कार को अपने कब्जे में ले लिया। इस जगह पर अरुण जाधव गाड़ी से बाहर निकले और क़ुअलिस में लगे हुए वायरलेस सेट की सहायता से कंट्रोल रूम से संपर्क करने में सफल रहे। कंट्रोल रूम ने यह सूचना ००.२५ बजे प्राप्त की अर्थात २६/२७ नवम्बर की आधी रात्री के कुछ ही देर बाद।

१० -श्री अरुण जाधव ने इस पूरी घटना का विवरण उपलब्ध कराया है, जब वह कोलाबा पुलिस स्टेशन में श्री सालसकर के साथ जा कर मिले थे और जिस समय उन्होंने कंट्रोल रूम को सूचना दी थी। गिरफ्तार किए गए आतंकवादी मो अजमल आमिर ने इस कहानी का शेष अंश बयान किया है की उसने तथा उसके सहयोगी ने क़ुअलिस गाड़ी पर फायरिंग शुरू कर दी तथा यह समझते हुए की इस गाड़ी में बैठे हुए सारे लोग मारे गए हैं, उन्होंने गाड़ी को अपने कब्जे में ले लिया था। महाराष्ट्र सरकार के प्रिंसिपल सेक्रेटरी (हैल्थ)को उपलब्ध करायी गई सरकारी गाड़ी के चालक श्री मारुती माधवराव फाड़ ने इस पूरी घटना को अत्यन्त निकट से देखा। वह इस बात के चश्मदीद गवाह हैं की कैसे दो आतंकवादियों ने एक झाडी के पीछे से क़ुअलिस गाड़ी पर छुप कर फायरिंग की, तीन घायल व्यक्तियों को बाहर फेंका और गाड़ी को लेकर फरार हो गए।

११-मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच इस पूर्ण घटना की छानबीन कर रही है, जिस में वह अपराध भी शामिल हैं जिन्हें मो अजमल आमिर और उसके सहयोगी ने अंजाम दिया है, उस की पहचान इस्माइल खान के रूप में हो चुकी है। इस जांच के दौरान उन सभी नंबरों का और उन पुलिस वालों का पता लगाया जा चुका है जो फोन द्वारा विभिन्न स्थानों से एक दूसरे के संपर्क में थे। जांच के दौरान यह भी पता लगा की श्री करकरे ने दादर में स्थित अपने घर से सी एस टी रेलवे स्टेशन तक पहुँचने के लिए सबसे सरल रस्ते का चुनाव किया था और रेलवे स्टेशन पर उपस्थित पुलिस अधिकारीयों से सूचना के बाद कामा हॉस्पिटल का रुख किया था। कामा हॉस्पिटल के पिछले द्वार पर ही यह तीनों अधिकारी, चार दूसरे पुलिस वालों के साथ क़ुअलिस में सवार हुए थे और वहां से रंग भवन लेन पर स्थित ऐ टी एम् सेंटर जहाँ उन पर फायरिंग की गई, वहां तक का चश्मदीद गवाह हूँ, श्री अरुण जाधव और श्री मारुती माधवराव फाड़ द्वारा दी गई सूचनाओं के आधार पर बनाया गया है।

१२- जांच अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं की इस संदेह की कोई गुंजाइश मौजूद नहीं है की श्री करकरे या दूसरे अधिकारीयों को मारने के पीछे कोई बड़ा षड़यंत्र था। घटना के दिन श्री करकरे की गतिविधियों से सम्बंधित फैलाई जाने वाली ग़लत रिपोर्टों में भी कोई सच्चाई नहीं है। श्री करकरे ने संकट की स्थिति में अपने सहयोगियों के साथ तुंरत एक्शन लिया था ताकि हालात का मुकाबला किया जा सके। हलाँकि यह दुर्भाग्य की बात है की तीनों बहादुर अधिकारी एक ही क़ुअलिस में सवार थे तथा ऐसे हालत से दो चार हुए, जिसके कारण फायरिंग से मौत के शिकार हो गए।

१३- मृत्यु से पहले भी श्री करकरे द्वारा आतंकवादी मामले में की जाने वाली जांच के बारे में सवाल किए जा रहे थे। उन की मृत्यु के बाद भी उनकी मृत्यु से सम्बंधित परिस्थितियों के बारे में सवाल उठाये जा रहे हैं। मेरे विचार से यह दोनों बातें ग़लत हैं और अत्यन्त दुखदायक हैं।

१४- मिस्टर स्पीकर, मैं अपना बयान यहीं समाप्त करता हूँ और अपने साथी सदस्यों और देश के नागरिकों से यह अपील करता हूँ की यह समय अपने पुलिस अधिकारीयों और उनके दूसरे सहयोगियों को सलामी देने का है। यह समय उनके परिवार को सहायता पहुंचाने का है, विशेष रूप से उनके बच्चों को ताकि वह संकट की इस घड़ी का मुकाबला कर सकें। समूचे देश के लिए यह एकजुट होने का समय है और आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध करने का है।

जंग पाकिस्तान से आवयशक है या आतंकवाद से!

भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के हालात जनम ले चुके हैं। पाकिस्तान में इस्लामाबाद, रावलपिंडी और लाहोर में गश्त तेज़ कर दी गयी है, हवाई अड्डों और विभिन्न मुख्य स्थानों पर हाई एलर्ट की घोषणा कर दी गयी है, लोग घरों की छतों पर निकल आये हैं, अर्थात कुल मिलाकर पाकिस्तान में इस समय युद्ध की तैयारी दिखाई दे रही है और इधर हिंदुस्तान भी मानसिक रूप से पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध के लिए तैयार है, परन्तु क्या युद्ध ही समस्या का हल है?

प्रशन यह उठ्त्ता है की इस समय हमें आतंकवाद के विरुद्ध लड़ना है या पाकिस्तान के विरुद्ध लड़ना है..........,यदि पाकिस्तान के विरुद्ध लड़ना ही हमारे देश के समक्ष समस्याओं का निवारण है तो फिर यह युद्ध बिना देर किये होना ही चाहिए। पाकिस्तान को हम १९६५, १९७१ तथा उस के बाद कारगिल जंग में भी पराजित कर चुके हैं। आज हमारी सेना पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली है और पाकिस्तान कहीं भी हमारे बहादुर सैनिकों के सामने टिक सकेगा, इस की उम्मीद नहीं है। लेकिन क्या हमें अपने लिए इस युद्ध की आव्यशकता है या हम किसी और की लड़ाई लड़ने के लिए विवश हैं? कहीं ऐसा तो नहीं की अफगानिस्तान और इराक की तबाही के बाद जो युद्ध के बादल ईरान पर मंडला रहे थे और अमेरिका चाहते हुए भी ईरान पर यह जंग थोप नहीं सका, इस लिए की अंतर्राष्ट्रीय मत इस के विरुद्ध था, वही अमेरिका आज अपने लिए पाकिस्तान की आव्यशकता समाप्त हो जाने के बाद "इस्तेमाल करो और फेंको" की रणनीति पर अमल करते हुए पाकिस्तान को तबाह (विनाश) करने का इरादा रखता हो और मुंबई पर आतंकवादी हमलों के बाद उसे अपने उद्देश्य में सफलता का रास्ता नज़र आने लगा हो, इस लिए की आर्थिक बदहाली के शिकार अमेरिका को युद्ध की अत्यंत आव्यशकता है।

हमारे सामने पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध लड़ने का जो कारन है, वह मुंबई पर आतंकवादी हमलों के बाद जीवित पकडे गए पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब का इकबालिया बयान है। इस बयान में इस बात पर संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है की वह पाकिस्तानी है और जो पते उसने बाक़ी ९ पाकिस्तानी आतंकवादियों के बताये हैं, वह सभी पते भी सही होने ही चाहिए। आतंकवादियों के जो नाम और आयु उसने बताई है, उस पर संदेह नहीं किया जाना चाहिए। आई एस आई और लश्करे तैयबा से लेकर अलकाईदा तक जितने भी ठिकानों की जानकारी दी गयी है, वह भी होनी चाहिए। हम अपने पूर्व अनुभव की बिना पर यह कह सकते हैं की इन दस पाकिस्तानी आतंकवादियों के नाम व पते ही क्या, पाकिस्तान के १००-२०० आतंकवादियों के नाम पते भी यदि हमारी पुलिस और खुफिया एजेन्सी के पास हों तो उसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। उनकी रिकॉर्ड फाइल में सेंकड़ों पाकिस्तानी आतंकवादियों की फोटो भी हो सकती है, उनके काले कारनामों का विस्तृत रिकॉर्ड भी हो सकता है, इसलिए की ६१ वर्ष के कटु संबंधों के बाद और इस बीच सेंकड़ों आतंकवादी हमले हो जाने पर यदि हमारे पास इतना भी रिकॉर्ड न हो तो यह आश्चर्य की बात है। प्रति दिन हम पढ़ते रहते हैं की आई एस आई का कोई जासूस लखनऊ में पकडा गया, सहारनपुर में पकडा गया, खुफिया दस्तावेज़ भेजते हुए समझौता एक्सप्रेस में पकडा गया, महाराष्ट्र के किसी शहर में गिरफ्तारी हुई, बंगाल, राजस्थान या गुजरात के विभिन्न स्थानों से गिरफ्तारियां हुईं, अब इतनी गिरफ्तारियों के बाद नाम व पते और हुल्ये की कमी तो हो ही नहीं सकती।

हमारे कहने के तात्पर्य यह नहीं है की हमारी पुलिस जिन १० आतंकवादियों का विवरण प्रस्तुत कर रही है, वह मुंबई के आतंकवादी हमलों में शामिल नहीं थे या वह पाकिस्तानी नहीं हैं......यह सब के सब आतंकवादी हमलों में सम्मिलित हो सकते हैं और पाकिस्तानी भी हो सकते हैं परन्तु हमारी सरकार को पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध का निर्णय लेने से पहले यह सोचना होगा की यदि हमें आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध लड़ना है तो क्या पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध कर के हम आतंकवादियों के विरुद्ध लड़ा जाने वाला युद्ध जीत जायेंगे? क्या केवल १० आतंकवादियों ने ही मुंबई पर इतना बड़ा आतंकवादी हमला किया था? या और भी सेंकड़ों पाकिस्तानी आतंकवादी या उन के सहयोगी हमारी धरती पर मौजूद हैं? इस लिए की यह तो असंभव है, यहाँ शब्द लगभग प्रयोग करने की भी आव्यशकता प्रतीत नहीं होती की केवल १० आतंकवादी चाहे वह कितने भी प्रशिक्षण प्राप्त किये क्यूँ न हों, भारत पर इतना बड़ा आतंकवादी हमला कर सकते हैं? और ६१ घंटों तक हमारे प्रशिक्षित कामानदोज़ और जांबाज़ पुलिस का मुकाबला कर सकते हैं? जिस में शहीद हेमंत करकरे जैसे देश भक्त, अशोक काम्टे जैसा काबिल अधिकारी और विजय सालसकर जैसे शार्प शूटर भी शामिल हों। शार्प शूटर का अर्थ "अचूक निशानेबाज़"जिन्होंने अपने कैरिएर में बहुत से आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया हो, इस स्तर की पुलिस और सेना की उपस्थिति में केवल १० आतंकवादी तो इतनी तबाही नहीं मचा सकते। अभी तक हमारी पुलिस या खुफिया एजेंसियों ने लग भाग २५ रोज़ की दिन रात की मेहनत के बाद ऐसा कोई सुराग नहीं दिया की उन आतंकवादी हमलों में स्थानीय लोग भी सम्मिलित हैं या नहीं। हाँ पश्चिमी बंगाल के किसी व्यक्ति के नाम पर लिए गए सिम कार्ड्स की जानकारी अवश्य मिली परन्तु शायद इतना ही काफी नहीं है। एक बहुत बड़ा नेटवर्क होना चाहिए और वह भी उन आतंकवादियों जिन्होंने इन १० आतंकवादियों की सहायता की हो। इसलिए की बुधवार मछवारों की बस्ती है, समुन्दर का मोई सुनसान किनारा नहीं और वह ऐसी जगह भी नहीं है, जहाँ सैलानी अपनी निजी नाव से आते जाते रहते हों। और स्थानीय लोग इस बात पर ध्यान ही न दें की आखिर एक ही आयु के १० नव युवक इतने सामान के साथ कहाँ से आरहे हैं और क्यूँ अपनी रबर की नाव को लावारिस छोड़ कर जा रहे हैं? गूगल अर्थ पर सर्च कर के किसी भी स्थान पर पहुँच जाना, कम्पयूटर स्क्रीन पर तो ३ मिनट का काम हो सकता है परन्तु सच्चाई यह है की सेंकड़ों मीलों तक फैले समुन्दर में इस छोटे से क्षेत्र को खोजना असंभव है जब तक की चप्पे चप्पे से परिचित कराने में किसी व्यक्ति ने उन की सहायता न की हो या फिर वह स्वयं उस स्थान से इस हद तक परिचित न हों की भटक जाने की गुंजाईश न रहे। हमने सामान्यत: यह देखा है की वर्षा के दिनों में अगर रास्ते पर पानी भर जाए तो क्षेत्रीय लोग ही यह अच्छी तरह से जान सकते हैं की कहाँ पैर रखा जाए और कहाँ नहीं, कहाँ गड्ढा है और कहाँ ज़मीन, समुद्र के तटीय क्षेत्र में ऐसी बढ़िया सड़क नहीं होती की नाव से उतर कर सीधे मैन रोड पर आजायें और टैक्सी पकड़ लें, न तो वहां तीर का नीशान होता है और न ही इस बात का इशारा होता है की समुन्द्र के इस किनारे से मैन रोड कितने मीटर की दूरी पर है? इस सच्चाई का विश्लेषण हमने स्वयं समुन्द्र में नाव के द्वारा जा कर किया है और बुधवार के तटीय क्षेत्र का भी गहराई से निरिक्षण किया है इसलिए या तो कुछ लोग उनके सहायक अवश्य रहे होंगे या फिर अजमल आमिर कसाब का यह बयान झूठा है की वह उसी दिन मुंबई पहुंचा, अपने साथियों के साथ टैक्सी पकड़ी और सी एस टी स्टेशन पहुंचा, हो सकता है वह झूठ बोल रहा हो, वह अपने आतंकवादी साथियों के साथ काफी पहले भारत आ चूका हो उसने चप्पे चप्पे की जानकारी स्वयं हासिल की हो या उस के साथियों ने ध्यानपूर्वक हर उस जगह का निरिक्षण किया हो जहाँ जहाँ उन्होंने वारदात की। अजमल आमिर कसाब के बयान के अनुसार ही वह होटल ताज के कमरा नंबर -६३० में ठहरा था और यह चार दिनों तक उस के लिए बुक था। यह कब की घटना है, घटना से कितने दिन पहले की बात है, क्या उस ने यह बताया की उसके साथी अर्थात बाक़ी ९ आतंकवादी कहाँ कहाँ ठहरे और वह कब कब आये? क्या पुलिस ने होटल ताज और ओबेरॉय का अतिथि रजिस्टर ज़ब्त किया? क्या इस बात की जानकारी प्राप्त की की हमले के कुछ दिन पहले और उस समय कौन कौन लोग होटल में ठहरे थे, उनके नाम पते क्या क्या हैं, क्या उनके द्वारा की गयी टेलीफोन काल्स का रिकॉर्ड मौजूद है? दोनों होटलों में डयूटी पर तैनात लोग कौन कौन थे? उनके नाम पते क्या क्या हैं? उनके द्वारा किये गए और प्राप्त किये गए फ़ोन काल्स का रिकॉर्ड क्या है? उल्लेखनीय है की यह सारी आतंकवादी गतिविधियाँ ऐसे व्यस्त स्थानों पर हुई जहाँ बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे, अभी तक कितने प्रत्यक्षदर्शी पुलिस के पास हैं जो इस बात की पुष्टि करें की उन्होंने आमिर कसाब और उस के साथियों को वास्तव में इस स्थान पर देखा जो बयूरा अजमल आमिर कसाब ने बताया और देखा है तो कब और किस परिस्थिति में देखा? यह प्रशन हम इस लिए कर रहे हैं की नरीमन हाउस के आस पास रहने वालों ने यह जानकारी दी थी की हमले के कुछ दिन पहले वहां कुछ अज्ञात चेहरे नज़र आरहे थे जो विदेशी नज़र आते थे, उनकी मुराद गोरों से थी, अब यहाँ यह कहने की आव्यशकता नहीं है की हिन्दुस्तानी व पाकिस्तानी देखने में एक ही जैसे लगते हैं। क्या हमारी गुप्तचर एजेंसियों के पास ऐसी कोई जानकारी है की वह कौन लोग थे? क्या हमारी पुलिस ने ऐसे कुछ लोगों को गिरफ्तार किया है या वह भी केन हेवूड़ की तरह अपने अपने देश के लिए फरार होने में सफल हो गए, जैसे इंडियन मुजाहिदीन के नाम से ई मेल भेजे जाने के बाद वह फरार हो गया था? नरीमन हाउस में १०० किलो गोश्त अजमल आमिर कसाब और उस के साथी ९ पाकिस्तानी आतंकवादियों की मेहमान नवाजी के लिए किस के द्वारा मँगवाया गया था? उस आतंकवादी का पूरा इकबालिया बयान हमारे पास मौजूद है जो पुलिस द्वारा लिखा गया और उसे पढ़कर सुनाया गया जिस को उस ने सही ठहराया। हम अपनी १०० वीं किस्त में यह विस्तृत बयान प्रकाशित करने जा रहे हैं, उस ने तो बताया था की वह फज्र की नमाज़ से पहले उठकर इबादत करता था और कुरान की तिलावत भी करता था, फिर क्या यह लोग शराब भी खूब पीते थे? इस लिए की नरीमन हाउस में १०० किलो गोश्त के साथ बियर की बोतलें भी मंगायीं गयीं। अब दोनों में से कोई एक बात तो झूठ होनी चाहिए। कौन सी बात झूठी है और कौन सी बात सच्ची है, यह पुष्टि तो पुलिस के द्वारा ही संभव है। क्या उन्होंने यह पुष्टि कर ली की ७ घंटे तक नरीमन हाउस से वाशिंगटन, न्यूयार्क और इस्राइल टेलीफोन के द्वारा कांफ्रेंस से आतंकवादियों से क्या बात होती रही और इतनी लम्बी बातचीत का कारण.........ऐसी बहुत सी बातें हैं जिनकी पुष्टि के बिना अंतिम निर्णय तक नहीं पहुंचा जा सकता।

हमें यह लेख आज नहीं लिखना था, लेकिन देश की स्थिति खतरनाक सीमाओं को पार कर जाएँ और हम विशेष प्रकाशन की प्रतीक्षा में बैठे रहे यह भी संभव नहीं है। इसलिए १०० वीं किस्त तो शहीदे वतन हेमंत करकरे की शहादत के चालीसवें दिन ही प्रकाशित की जायेगी जिस में कम से कम ऐसे १०० प्रशन होंगे जिन पर अभी पुलिस खामोश है और जिनके उत्तर की प्रतीक्षा है। इस बीच जब भी लगा की कलम उठाना ज़रूरी है तो अपने कर्त्तव्य की जिम्मेदारियों को अनुभव करते हुए हम बराबर लिखते रहेंगे।

आज दिन भर जिस तरह की खबरें टेलीविजन पर दिखाई जाती रही उससे लगता था की हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच युद्ध किसी भी समय हो सकता है। इस लिए हमें एक दिन की भी प्रतीक्षा करना उचित नहीं लगा और हमने आवयशक समझा की किसी भी आलोचना की परवाह किये बिना जो प्रशन हमारे मस्तिष्क में हैं, सम्मानपूर्वक और नम्रतापूर्वक अपनी सरकार के सामने रखना आवयशक समझा, ताकि जब वह युद्ध का फैसला करे तो इन बातों को भी ध्यान में रखें.....

२६ नवम्बर २००८ हिंदुस्तान की तारिख का वह काला दिन था जब हमारे देश पर आतंकवादी हमला हुआ। इस आतंकवादी हमले में लिप्त ९ पाकिस्तानी आतंकवादी मारे गए और एक जीवित पकडा गया। हम इस आधार पर जंग करने का इरादा रखते हैं, ठीक है पाकिस्तान से जंग की जाए मगर आतंकवाद को मिटाने के लिए उन आतंकवादियों को भी तलाश करना होगा जिनके सहयोग के बिना हिंदुस्तान पर यह आतंकवादी हमला नहीं हो सकता था। कौन हैं वह? पाकिस्तान की खुफिया एजेन्सी आई एस आई से किसका रिश्ता है? क्या नरीमन हाउस जिसे हिंदुस्तान में मोसाद का अड्डा समझा जा सकता है, कौन हैं वे जिनका इस्राइल या मोसाद से सम्बन्ध है, हम इस समय इस बहस में नहीं पड़ना चाहते की हेमंत करकरे को किसने वहां भेजा व परिस्थितियाँ क्या थीं? मगर यह बात तो अपनी सरकार के समक्ष रखी जा सकती है की अपनी जांच में हेमंत करकरे आई एस आई के साथ किसके रिश्तों कोका उल्लेख कर रहे थे और अभी तक की सूचनाएँ इस्राइली गुप्तचर विभाग यानी मोसाद के साथ हिंदुस्तान में किन लोगों के साथ होती रही है। इसे हिंदुस्तान का ९/११ कहा जा रहा है। हमारे सामने इस समय हिंदुस्तान के ७/११ अर्थात मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट का विवरण भी है। न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड टावर पर आतंकवादी हमला अर्थात ९/११ का विवरण भी है और वर्तमान २६/११ का विवरण भी है। सारी घटनाओं की तुलना तो हम अपने इस लेख की १०० वीं किस्त में ही करेंगे। मगर इस समय इतना ज़रूर लिख देना चाहते हैं ताकि हमारी सरकार जंग का फैसला करने से पहले इस पहलु पर भी विचार कर ले की वर्ल्ड ट्रेड टावर पर हुआ हमला अलकायदा का नहीं, सी आई ऐ और मोसाद के षड़यंत्र का परिणाम थी, जिसका विवरण हमने पिछले वर्ष लगभग एक महीने तक अपने लगातार लेख में प्रकाशित किया था और यह तमाम रिपोर्टें उसी ज़मीन (अमेरिका) के रहनेवालों की शोध का परिणाम थीं। हमारे पास अभी भी ५०० से अधिक पृष्ठों पर आधिरत ऐसी रिपोर्टें मौजूद हैं जो यह प्रमाणित करती हैं की ९/११ एक खतरनाक षड़यंत्र था। क्या २६/११ के पीछे भी इन ही शक्तियों की हमारी धरती पर एक ऐसी ही खतरनाक साजिश है। अब इस के स्पष्टीकरण की तो कोई ज़रूरत नहीं की इराक को तबाह करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने जो बहाना तलाश किया था बाद में खुद उन्होंने ही यह स्वीकार भी कर लिया की यह निर्णय गलत था। कहीं ऐसा न हो की पाकिस्तान पर हमले के बाद हमें भी ऐसी ही कुछ जानकारी मिले और हमें यह एहसास हो की जल्दबाजी में हमने सही निर्णय नहीं लिया। हाँ!मगर इसका अर्थ यह नहीं की पाकिस्तान की घेराबंदी न की जाए। उसे अपने यहाँ चल रहे आतंकवाद के अड्डों को तबाह करने के लिए मजबूर न किया जाए, इससे यह न कहा जाए की वह अजमल आमिर कसाब को अपना शेहरी माने, यह सब तो ज़रूर किया जाए, उससे आतंकवादपर काबू पाने में मदद मिलेगी, परन्तु आतंकवाद पूर्ण रूप से समाप्त करने के लिए हमें ऐसे सभी पहलुओं पर भी ध्यानपूर्वक विचार करना होगा जिसका उल्लेख इस समय किया जा रहा है। कहीं ऐसा न हो की यह बदली हुई स्थिति उनके लिए उत्साहवर्द्धक बन जाए ,जो इन पाकिस्तानी आतंकवादियों के अतिरिक्त हिंदुस्तान में आतंकवाद के लिए जिम्मेदार हैं, अगर ऐसा हुआ तो पाकिस्तान के साथ जंग तो की जा सकती है उसे तबाह भी किया जा सकता है, परन्तु अपने देश में चल रहे आतंकवाद को समाप्त नहीं किया जा सकता।

Wednesday, December 24, 2008


शहादत तो शहादत है उस पर सवाल कैसा
मगर सच्चाई का सामने आना भी राष्ट्र के हित में है
भारत के इतिहास में यह पहला अवसर है जब पूरा देश आतंकवाद के खिलाफ एकजुट है, हिंदू भी, मुस्लमान भी और अन्य देशवासी भी। मुंबई में आतंकवादियों के हमले के तुंरत बाद पहले गेट वे ऑफ़ इंडिया और फिर देश के दूसरे शहरों में भारतीय जनता ने जिस एकजुटता का प्रदर्शन किया, वह आतंकवादियों के मुहँ पर भरपूर तमांचा है। शायद आतंकवादियों का बम धमाकों के द्वारा मकसद था की भारत को गृहयुद्ध का शिकार बना दिया जाए, हिंदू और मुस्लमान एक दूसरे के खिलाफ मोर्चेबंदी पर मजबूर हों और इस प्रकार उन के नापाक इरादे पूरे हो जाएँ। उन्हें यह दृश्य देख कर अवश्य ही मायूसी हुई होगी की उन का मकसद पूरा नहीं हुआ और साथ ही देश के राजनीतिज्ञों ने भी यह भली भांति समझ लिया होगा की भारतीय जनता का यह प्रदर्शन उन के लिए भी किसी सबक से कम नहीं है। क्यूंकि वह अब न उनके पारंपरिक बयान सुनना चाहते हैं और न किसी तरह की सफाई में उन की रूचि है। यहाँ तक की सहायता स्वरुप दी जाने वाली धनराशि में भी पीडितों को कोई रूचि नहीं है। लेकिन यह तस्वीर का एक रुख है। अब नज़र डालिए तस्वीर के दूसरे रुख पर।
भारत ही नहीं शायद विश्व इतिहास में ऐसा पहला अवसर है जब किसी देश की संसद सत्तारूढ़ पार्टी, विपक्ष और अन्य राजनितिक दल सब के सब किसी एक आतंकवादी के बयान पर एक जुट हैं।
हमारे देश भारत की अखंडता पर हमला करने वाले आतंकवादियों में से जिंदा पकड़े जाने वाले एक अजमल आमिर कसाब नामक आतंकवादी का बयान पुलिस के माध्यम से मीडिया और सरकार तक पहुँचा है, उस बयान पर मीडिया खास तौर से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तो अपने अपने अंदाज़ में उस की पब्लिसिटी कर ही रहा है, मगर हैरान करने वाली बात यह है की हमारी सरकार और दूसरी सभी पार्टियों ने भी बिना किसी विलंब के इस बयान को इतना प्रमाणित मान लिया मानो येही अन्तिम सत्य है और इस बयान को जारी करने वाला कोई आतंकवादी या अपराधी नहीं, कोई ऐसा विश्वसनीय और सत्यप्रिय व्यक्ति है जिस की ज़बान से निकलने वाला एक एक शब्द हमारे लिए स्वीकार्य है, न तो इस में संदेह की गुंजाईश है और न किसी अन्य जांच की। हाँ! अगर इस जांच के नाम पर कुछ बातें सामने आजाती हैं तो वे भी वहीँ हैं जो उस के बयान को सही साबित कर सकती हों।
ऐसी बात न तो उस आतंकवादी ने कही जिस से परदे के पीछे की घटनाओं को समझा जा सके और न ही हमारी पुलिस और खुफिया एजेंसियों ने उन तमाम सबूतों पर नज़र डाली जो चारों तरफ़ बिखरे पड़े हैं। हम अपने इसी लेख की १०० वीं किस्त में ऐसे बहुत से सबूतों को सामने लाने वाले हैं, जिस की एक झलक आज की इस किस्त में भी पाठकों की सेवा में प्रस्तुत की जा रही है। लेकिन पहले ज़रा एक नज़र राजनेताओं के रवैये पर।
विपक्षी सांसदों का रवैया तो समझ में आता है, इस लिए की आमिर कसाब का बयान तो उन के लिए बड़े संतोष की बात है। हेमंत करकरे मालेगाँव बम धमाकों के बाद अपनी और अपनी टीम की जांच द्वारा आतंकवाद के जिस नेटवर्क को बेनकाब कर रहे थे उस के घेरे में भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार के लोग भी आने लगे थे। अत: उन की समझ में आगया था की अगर यह आग उन के दामन तक पहुँची तो वे और उन के हिंदू राष्ट्र के सपने सहित सारी राजनितिक योजनायें अर्थात सब कुछ ख़ाक में मिल जायेंगी, येही कारण था की इन रहस्योद्घतनों के बाद उन्होंने हेमंत करकरे के खिलाफ हर स्तर पर मोर्चेबंदी शुरू कर दी थी। न केवल यह की उनके खिलाफ हर तरफ़ से ज़हर उगला जा रहा था, बल्कि उन्हें जान से मारने की धमकियाँ तक मिल रही थीं, जिस का ज़िक्र उन्हों ने अपनी ज़िन्दगी में ही किया था, जो अधिकान्क्ष अखबारों में छपा और रोजनामा राष्ट्रीय सहारा ने भी इन घटनाओं को सामने रखा। कुछ छोटी राजनितिक पार्टियों की यह मजबूरी हो सकती है की वे अपने दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहती हैं, आज वह कांग्रेस के साथ हैं, इस लिए की कांग्रेस सत्ता में है। कल अगर कांग्रेस के स्थान पर वह पार्टी सत्ता में आजाये जो विपक्ष में है तो फिर उन्हें उस के दरवाज़े पर भी दस्तक देने की आव्यशकता हो सकती है। आज उस के विरुद्ध आवाज़ उठाने के बजाये खामोशी ही बेहतर है। परन्तु अब प्रशन यह उठता है की कांग्रेस के सामने ऐसी क्या मजबूरी थी की वह एक आतंकवादी के बयान पर अडिग रहने और रखने के लिए दृढ़संकल्प है। केन्द्र सरकार में केंद्रीय मंत्री अब्दुर रहमान अंतुले ने शहीद हेमंत करकरे की मौत के कारण जानने की बात कह दी तो इस में इस कदर तूफ़ान खड़ा करने का क्या कारण था? हाँ यदि अडवाणी एंड पार्टी में भूकंप आजाये, संघ परिवार सकते की स्थिति में पहुँच जाए, शिव सेना चीखने चिल्लाने लगे, यह बात तो समझ में आती है क्यूंकि यह सब वही लोग हैं जिन्हें हेमंत करकरे बेनकाब कर रहे थे और जिन के लिए अजमल आमिर कसाब का बयान किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है। परन्तु कांग्रेस के लिए तो अब्दुर रहमान अंतुले द्वारा उठाई गई आवाज़ राहत पहुँचा रही है। जो लोग कांग्रेस की भूमिका को भारतीय जनता पार्टी के साथ जोड़कर देखने लगे थे और जिन्हें एक तरह से कांग्रेस भी भगवा रंग में रंगी नज़र आने लगी थी, उस से छुटकारा दिलाने का कम किया, ऐ आर अंतुले ने। अत: कांगेस को तो अपने केंद्रीय मंत्री का आभारी होना चाहिए था। बहर हाल इस और अभी चिंतन की गुंजाईश बाकी है। क्यूंकि कांग्रेस ने अभी कोई आखिरी फ़ैसला नहीं किया है। सम्भव है की उसे यह ख्याल आजाये की हेमंत करकरे की शहादत के पीछे अगर कोई और भी कहानी है तो इस प्रशन को उठाकर श्री अंतुले ने ठीक ही किया इसलिए की उन के द्वारा उठाया गया यह प्रशन भारत की जनता के दिलों में भी है। हाँ बस उन्होंने इस सवाल को जुबां देदी है। अन्यथा रोजनामा राष्ट्रीय सहारा में तो इस घटना के तुंरत बाद से ही प्रशन उठता रहा है और मैंने ख़ुद मुंबई पहुँच कर चप्पे चप्पे का निरिक्षण किया। जहाँ जहाँ भी आतंकवादी हमले हुए या जिस जगह भी आतंकवादियों के कदम पड़े, ख़ुद वहां पहुँच कर सभी जगह का गहराई से जायज़ा लिया ताकि सत्य को समझा जा सके।
हमारे विश्लेषण में बहुत से ऐसी बातें हैं जिस तरफ़ न तो पुलिस और खुफिया एजेंसियों ने ध्यान दिया और न ही अजमल आमिर कसाब के बयान में इन बातों का उल्लेख किया गया। इन में से कुछ आज पाठकों की सेवा में पेश कर रहे हैं। शेष १०० वीं किस्त में।
*मुंबई में आतंकवादी हमले से पूर्व नरीमन हाउस में रहने वालों ने १०० किलो मास और अन्य खाने पीने की वस्तुएं मंगायीं। एक ही समय में इस्तेमाल किया जाए तो लगभग ५०० लोगों के लिए यह खाना पर्याप्त था। अगर ५० लोग दोनों समय यह खाना खाएं तो तब भी कम से कम पाँच दिन तक यह खाना चल सकता है। इतने खाने का आर्डर किस ने दिया और क्यूँ? अगर वहां रहने वालों की संख्या केवल ५ थी तो यह खाना किस के लिए मंगाया गया? आतंकवादी मछवारों की बस्ती बुधवार पार्क तक रबर की नाओ से पहुंचे। उस के बाद अलग अलग टुकडों में बट कर होटल ताज, ओबेरॉय और सी एस टी पहुंचे। हमने अजमल आमिर कसाब की फोटो के साथ साथ बुधवार पार्क (समुद्र के किनारे मछवारों की बस्ती) के उस स्थान की फोटो भी पाठकों के सामने प्रस्तुत की ताकि समझा जा सके की अगर यह आतंकवादी उसी रास्ते से आए थे और सीधे उपरोक्त स्थानों पर पहुंचे तो उनके जूते कीचड में सने हुए क्यूँ नहीं? उन के कपडों पर पानी और कीचड के निशान नहीं? ऐसा तो नहीं है की पेहले यह आतंकवादी नरीमन हाउस पहुंचे हों (उसी दिन या पहले कभी) और फिर वहां से तैयार हो कर योजनाबद्ध तरीके से हमला करने के लिए निकले हों। नरीमन हाउस के आस पास रहने वालों का बयान भी है की कुछ संदिग्ध चेहरे यहाँ कई रोज़ से नज़र आरहे थे। पुलिस ने उन पड़ोसियों में से किसी का भी बयान अभी तक सार्वजनिक क्यूँ नहीं किया? घटना की रात यानि २६ और २७ नवम्बर की मध्यरात्री नरीमन हाउस के निकट रहने वाले एक आदमी ने एक टी वी चैनल पर बताया था की पिछले कुछ दिनों से नरीमन हाउस में आने जाने वालों की गतिविधियाँ बढ़ गई थी, जिन में गोरे अर्थात अँगरेज़ दिखने वाले लोग शामिल थे, बाद में यह ख़बर कभी नहीं दिखायी गई। इस प्रकार एक सूचना के अनुसार उसी रात अर्थात २६ और २७ की मध्यरात्री एक आतंकवादी से तेलेफोनिक कांफ्रेंस द्वारा वाशिंगटन, न्यूयार्क और इस्राइल लगभग ५ घंटों तक बातचीत होती रही। यह बात क्या थी? पुलिस और खुफिया एजेंसियों की पकड़ में क्यूँ नहीं आई?
*होटल ताज और ओबेरॉय के सी सी टी वी कैमरों का फूटेज कहाँ है? इनमें आतकवादियों के चेहरे सुरक्षित होने चाहिए। क्या वह मारे गए ९ आतंकवादियों और एक जिंदा बचे आतंकवादी से मिलते हैं?
*हेमंत करकरे, विजय सलस्कर और अशोक काम्टे के मोबाइल फ़ोन कहाँ हैं? घटना के कुछ घंटों पूर्व तक किस किस ने उन्हें फोन किए, कितनी कितनी देर बात हुई? यह जानकारी ज़रूरी है।
*एक ख़बर यह भी है की हेमंत करकरे की मौत की ख़बर पहुँचने के बाद नरीमन हाउस में खुशियाँ मनाई गई। यह खुशियाँ मनाने वाले कौन थे? अगर आतंकवादी थे तो हेमंत करकरे की मौत से उन्हें खुशी क्यूँ? क्या वह इसी टास्क के लिए आए थे? और अगर खुशी मनाने वाले वह यहूदी थे जो नरीमन हाउस में रहते थे तो उन की खुशी मनाने की वजह? उनकी हेमंत करकरे से क्या दुश्मनी थी? हम पूरा विवरण अपने इसी लेख की १०० वीं किस्त में विस्तृत रूप से प्रकाशित करने का इरादा रखते हैं। परन्तु प्रशन सिर्फ़ इतने ही नहीं हैं। टी वी पर यह फूटेज बार बार दिखाया गया की हेमंत करकरे आतंकवादियों के पीछे जाने से पहले हेलमेट पहन रहे हैं। बुल्लेट प्रूफ़ जैकेट पहन रहे हैं, क्या इसी तरह की तयारी की विडियो ग्राफी अन्य अधिकारीयों की भी की गई थी? अगर हाँ तो वह कहाँ है? और अगर नहीं तो सिर्फ़ हेमंत करकरे की ही क्यूँ? कहीं इस लिए तो नहीं की हमने एनकाउंटर बटला हाउस में मोहन चंद शर्मा के मामले में बुल्लेट प्रूफ़ जैकेट न पहेन्ने का सवाल उठाया था।
*सी एस टी स्टेशन पर आतंकवादियों के दो फोटो जो पुलिस के द्वारा जारी की गई उन में से कसाब अकेला है और दूसरे फोटो में उस का साथी भी मौजूद है। दोनों फोटो में आतंकवादियों के अतिरिक्त कोई चीज़ फ्रेम में नहीं है, न तो यात्रियों का छूटा सामन और न ही भाग दौड़ में पैरों से निकल जाने वाले जूते चप्पल। यहाँ तक की फर्श पर कोई भी ऐसी चीज़ नज़र नहीं आरही है जो आमतौर पर दिन भर के प्रयोग के बाद नज़र आसकती है। जैसे अखबार, पानी की खाली बोतलें इत्यादि। फोटो अगर किसी फोटोग्राफर ने ली तो उस ने क्या देखा? उसे अभी तक सार्वजनिक क्यूँ नहीं किया गया? दोनों फोटो अगर सी सी टी वि द्वारा li गई तो इस अवसर की अन्य फोटो कहाँ हैं? इस लिए की सी सी टी वी में एक या दो फोटो ही नहीं होते बल्कि कांतिनुइटी में आगे पीछे की फोटो भी होती हैं, वह फोटो कहाँ हैं? कोई फोटो तो ऐसी होगी जिस में यह आतंकवादी गोलियाँ चलाते हुए दिखायी दें और वहां घायल लोग और आतंकवादी एक साथ नज़र आयेंगे।
प्रशन और भी बहुत हैं परन्तु आज जगह इससे अधिक नहीं दी जा सकती इस लिए आपको प्रतीक्षा करनी होगी, इस लेख की १०० वीं कड़ी की। सम्भव है इस दिन यह लेख एक दो पृष्ठों पर न हो कर १०० पृष्ठों पर आधारित हो और एक इतिहासिक दस्तावेज़ के रूप में इस प्रकार प्रस्तुत किया जाए की आप उसे संभाल कर रख सकें अर्थात आलमी सहारा के रूप में। जहाँ तक तिथि का सम्बन्ध है तो हम चाहते हैं की हेमंत करकरे की शहादत के ४० वें दिन यह मुख्य अंक मंज़र आम पर आए। आज के बाद हम इस मुख्य अंक के बारे में समय समय पर जानकारी देते रहेंगे मगर एक अन्तिम प्रशन अभी आपके विचार के लिए छोड़ना चाहते हैं, पिछली रात्रि को १० बजे टी वी चैनल "आज तक" पर एक विशेष रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, जिसमें करकरे के साथ शहीद होने वाले विजय सलस्कर के जीवन के अन्तिम ८ मिनट की विडियो फ़िल्म प्रसारित की गई, क्या ऐसी ही फ़िल्म अशोक काम्टे और हेमंत करकरे के जीवन के अन्तिम समय की भी बनाई गई है? यदि नहीं तो केवल एक ही शहीद की विडियो फ़िल्म बनाने का कारण........? और इससे सम्बंधित एक महत्तवपूर्ण जानकारी यह भी की विजय सालस्कर को सभी गोलियाँ पीठ पर लगी, उनके पीछे तो हेमंत करकरे और उनके पीछे चार कांस्टेबल बैठे हुए थे, क्या जीवित बचा कांस्टेबल यह बता पायेगा की यह किस प्रकार सम्भव हुआ?
नोट: आज की इस ९९ वीं कड़ी में हम रोजनामा राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित २५ अक्तूबर से २५ नवम्बर तक की घटनाएं सिलसिलेवार अपने पाठकों की सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं और १०० वीं कड़ी में हम २६ नवम्बर से २६ दिसम्बर तक की घटनाएं प्रस्तुत करेंगे ताकि जब आप भी इन कड़ियों को जोडें तो घटनाओं की पूरी तसवीरें आपके मस्तिष्क में सुरक्षित हो जाए।
मालेगाँव धमाका जांच
रोजनामा राष्ट्रीय सहारा देश में हो रहे आतंकवादी हमलों के पीछे बजरंग दल व शिवसेना सरीखे संघटनों के लिप्त होने की ओर इशारा करता रहा है। जब नांदेड, जालना और परभनी की एक मस्जिद में धमाका हुआ था, उस समय भी हम ने बजरंग दल की संदिग्ध गतिविधियों की ओर इशारा किया था, तब नांदेड में बजरंग दल के सदस्य के घर से नकली दाढ़ी और टोपी के साथ अरबी भाषा में कुछ लेख भी मिले थे, परन्तु इस दिशा में कोई कार्यवाही नहीं की गई। अंतत: उस समय वास्तविकता सामने आगई जब मुंबई ऐ टी एस ने २३ अक्टोबर २००८ को धमाकों में प्रयोग हुई साध्वी प्रज्ञा सिंह की मोटर साइकिल बरामद की और हिंदू संघटनों के विरुद्ध जांच आरम्भ कर दी। जांच के बाद हिंदू संघटनों और सेना के महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के चेहरे सामने आए।



आपकी सेवा में प्रस्तुत है ऐ टी एस की इस दिशा में की गई अब तक की जांच पर एक नज़र:-
ऐ टी एस की तथ्यों पर आधारित रिपोर्ट के अनुसार पहली बार हिंदू संघटनों के लिप्त होने की बात सामने आई। प्राथमिक जांच में ऐ टी एस ने ५ लोगों को गिरफ्तार किया जिन में साध्वी प्रज्ञा सिंह का भी नाम था। इसी दिन राज्य सभा सी पी एम् की नेता ब्रुन्दकारत ने हिंदू संघटनों की बात की थी। बाद में उन में से दो को छोड़ दिया गया।
इसी दिन कांग्रेस ने बजरंग दल, आर आर एस के साथ साथ बी जे पी तक का हाथ मालेगाँव धमाके में होने का संदेह प्रकट किया था।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से ३२ दिन पूर्व
२५ अक्टूबर: ऐ टी एस ने इन में से तीन आरोपियों को नासिक कोर्ट में पेश किया। साध्वी प्रज्ञा, श्याम लाल भंवर और शिव नारायण को न्यायालय में पेश किया गया।
इसी तिथि को ऐ टी एस ने एक सनसनी खेज़ रहस्योद्घाटन करके ३ लोगों को गिरफ्तार किया जो पूर्व सैनिक थे। इसी दिन एन सी पी कार्यकर्ताओं ने मुंबई में वी एह पी के कार्यालय पर हमला किया।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से ३१ दिन पूर्व
२६ अक्टूबर: समाचार के अनुसार ऐ टी एस की टीम जांच के लिए भोपाल गई और दो पूर्व सेना अधिकारीयों से पूछताछ की गई।
इसी दिन भारतीय जनशक्ति पार्टी की अध्यक्ष उमा भरती ने कहा की प्रज्ञा किसी भी हिंसक मामले में संलिप्त नहीं हो सकती क्यूंकि वह एक साध्वी है और साध्वी केवल पूजा पाठ और शान्ति की बात करती है।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से ३० दिन पूर्व
२७ अक्टूबर: जबलपुर में साध्वी के घर की तलाशी ली गई और ऐ टी एस ने महत्त्वपूर्ण प्रमाण एकत्रित किए।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से २८ दिन पूर्व
२९ अक्टूबर: प्रज्ञा के भाई ने मानवाधिकार कमीशन और मुंबई हाई कोर्ट में एक स्वतंत्र जांच कमीशन की मांग की और इसके साथ अन्य हिंदू संस्थायें भी खड़ी दिखाई दीं।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से २७ दिन पूर्व
३० अक्टूबर: इधर भाजपा हिंदू संस्थाओं के नाम आने पर बोखला गई और खुले आम आरोपियों के बचाव में खड़ी हो गई। भाजपा अध्यक्ष राज नाथ सिंह ने मीडिया पर निशाना साधते हुए कहा की "मीडिया इस पूरे मामले को आरुशी मर्डर केस की भाँती प्रस्तुत कर रहा है" और प्रज्ञा के बचाव में कहा की जो लोग साँस्कृतिक राष्ट्रीयता पर विश्वास रखते हैं वे आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त हो ही नहीं सकते। उन्होंने ने ऐ टी एस के नार्को टेस्ट पर प्रशनचिंह लगाया और कहा की किसी भयानक आतंकवादी को भी इस प्रकार से प्रताडित नहीं किया जाता, किंतु ऐ टी एस प्रमुख हेमंत करकरे ने सभी आरोपियों पर मकोका लगा दिया। इसी बीच हिंदू महासभा ने कर्नल पुरोहीत और अन्य आरोपियों को कानूनी सहायता देने का एलान किया।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से २५ दिन पूर्व
१ नवम्बर: साध्वी के ब्रेन मेपिंग टेस्ट में ऐ टी एस साध्वी से कुछ भी उगलवाने में नाकाम रही। यह टेस्ट नागपाडा पुलिस अस्पताल में इसी सप्ताह किया गया और इस के पश्चात पुलिस ने दूसरे फोरेंसिक टेस्ट की तयारी आरम्भ कर दी।
इसी दिन ख़बर आई की समीर कुलकर्णी को ऐ टी एस ने मालेगाँव धमाके के आरोपियों के रूप में पहले ही गिरफ्तार कर लिया है। समीर कुलकर्णी भोपाल की एक प्रिंटिंग प्रेस में कार्य करता था। पुलिस के अनुसार ३५ वर्षीया कुलकर्णी अभिनव भारत के संस्थापक सदस्यों में से था।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से २४ दिन पूर्व
२ नवम्बर: भोंसला मिलेट्री स्कूल के प्रिंसिपल को गिरफ्तार कर उससे पूछताछ की गई। इसी तिथि को बाल ठाकरे ने भाजपा की इस बात के लिए आलोचना की की वह साध्वी का बचाव नहीं कर रही है और इस से हिंदू समाज की मानहानि हो रही है।
भाजपा और शिव सेना ने विभिन्न स्थानों से उच्च स्तर के अधिवक्ताओं को एकत्रित करके नासिक कोर्ट के समक्ष धरना दिया।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से २२ दिन पूर्व
४ नवम्बर: ऐ टी एस के अनुसार आरोपी प्रज्ञा सिंह ने स्वीकार किया की उसी ने अपनी मोटर साइकल कथित आरोपी रामजी जिसने बम रखा था को दी थी, किंतु साथ ही उस ने यह भी बताया की उसे इस के इस्तेमाल के सम्बन्ध में पता नहीं था की रामजी का इसकी मोटर साइकल को लेकर क्या Intention था, यह LML (Freedom) मॉडल की बाइक थी।
इसी दिन साध्वी के सम्बन्ध में कठोर रवैये से पलटते हुए भाजपा ने उसे कानूनी सहायता देने का एलान किया। इससे पूर्व भाजपा ने साध्वी के सम्बन्ध में कठोर रवैया अपनाया हुआ था। इसी तिथि को जांच एजेन्सी ऐ टी एस ने मालेगाँव धमाके के ८ आरोपियों पर मकोका लगाने का निर्णय लिया।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से २१ दिन पूर्व
५ नवम्बर: मुंबई ऐ टी एस ने आरोपी लेफ्टनेंट पुरोहीत को गिरफ्तार करके जांच करने की तैयारीआरम्भ कर दी एवं इसी तिथि को साध्वी पर भी मकोका लगाने की तयारी भी प्रारम्भ कर दी गई।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से २० दिन पूर्व
६ नवम्बर: कर्नल पुरोहीत को गिरफ्तार किया गया। पुलिस को उस के मोबाइल से दूसरे संदिग्ध आरोपियों को किए गए कुछ एस एम् एस मिले, जो कोड वर्ड में किए गए थे। जिन में "कैट इस आउट ऑफ़ दी बास्केट"। दूसरा "सिंह हेस संग" इस के अतिरिक्त "वी आर ऑन दी राडार ऑफ़ दी ऐ टी एस", "चेंज दी सिम कार्ड" यह वह एस एम् एस जो कर्नल प्रोहित के मोबाइल से रिताइर्ड मेजर रमेश उपाध्याय को भेजा गया था इससे पूर्व पुलिस उपाध्याय को इस मामले में गिरफ्तार कर चुकी थी और इस को १५ नवम्बर तक पुलिस रिमांड पर ले लिया गया था।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से १९ दिन पूर्व
७ नवम्बर: ऐ टी एस के अनुसार कर्नल प्रोहित ने स्वीकार किया की वे मालेगाँव धमाकों का मास्टर माइंड था। इस के साथ साथ उस ने यह भी स्वीकार किया की उसने धमाके का षड़यंत्र रचा था और २९ सितम्बर के लिए धमाका करने की सामग्री फौज से मुहैया करायी थी और हथ्यार भी मुहैया कराये थे और यह सभी सामान अभिनव भारत के सदस्यों के हवाले की थी।
इसी तिथि को आर्मी डिप्टी चीफ लेफ्तानेंत जनरल ने बयान दिया की कर्नल प्रोहित की गिरफ्तारी से सेना के सम्मान को ठेस पहुँची है। इसी तिथि को तोगडिया ने अभिनव भारत की आलोचना भी की।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से १८ दिन पूर्व
८ नवम्बर: कर्नल पुरोहीत से सम्बंधित मुंबई ऐ टी एस ने दो और सेना अधिकारीयों से पूछताछ की। साथ ही ऐ टी एस ने यह भी बताया की कर्नल पुरोहीत पर मकोका लगाया जा सकता है। इसी तिथि में प्रमाण के सामने आने के बाद संघ परिवार ने कर्नल पुरोहीत और दूसरे गिरफ्तार आरोपियों से किसी प्रकार का सम्बन्ध होने से इंकार किया जबकि इससे पूर्व वह धमाका करने वाले आरोपियों का खुल कर समर्थन करते आरहे थे।
इसी तिथि को कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगाया की भाजपा सेना का भगवाकरण कर रही है। यह बयान अभिषेक मनु सिंघवी ने दिया।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से १७ दिन पूर्व
९ नवम्बर: ऐ टी एस का बयान आया की ऐ टी एस ३ वी एह पि नेताओं, जो गुजरात से सम्बन्ध रखते हैं उन के बारे में जांच करना चाहती है क्यूंकि इन तीनों का सम्बन्ध समीर कुलकर्णी से है जो अभिनव भारत का बुनयादी कार्यकर्ता है।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से १६ दिन पूर्व
१० नवम्बर: ऐ टी एस ने एक और सनसनीखेज़ रहस्योद्घाटन करते हुए कहा की कर्नल पुरोहीत का हाथ परभनी, जालना और नांदेड धमाकों में है। ऐ टी एस के सामने यह बात कर्नल पुरोहीत के नार्को टेस्ट के दौरान आई।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से १५ दिन पूर्व
११ नवम्बर: गोरखपुर के एम् पी योगी आदित्यनाथ ने कांग्रेस पर आरोप लगाया की वह हिंदू संस्थाओं के कार्यकर्ताओं को झूठे केसों में फंसा रही है।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से १४ दिन पूर्व
१२ नवम्बर: केन्द्र ने सभी राज्य सरकारों से बजरंग दल से सम्बंधित एक विस्तृत रिपोर्ट मांगी। केन्द्र का मन्ना था की बजरंग दल के कार्यकर्ता विभिन्न सांप्रदायिक दंगों में लिप्त हो सकते हैं।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से १३ दिन पूर्व
१३ नवम्बर: हरियाणा पुलिस ने मालेगाँव के तार समझौता एक्सप्रेस बम धमाके से जुड़े होने की बात कही और सम्बंधित पुलिस अधिकारीयों को पूछताछ हेतु मुंबई भेजा।


मुंबई पर आतंकवादी हमले से १२ दिन पूर्व


१४ नवम्बर: ऐ टी एस ने नासिक कोर्ट में रहस्योद्घाटन किया की महंत दयानंद पाण्डेय ने पुरोहित को आर डी एक्स सप्लाई करने को कहा


दयानंद पाण्डेय कानपूर ब्लास्ट में भी संदिग्ध - ऐ टी एस
मुंबई पर आतंकवादी हमले से ११ दिन पूर्व
१५ नवम्बर: राजनाथ सिंह ने इस पूरे मामले को “एक बड़ा षड़यंत्र” करार दिया। उन्होंने कहा की “ मैं पूर्णत: संतुष्ट हूँ की साध्वी आदि इस षड़यंत्र में लिप्त नहीं हैं”।


पुरोहीत ने समझौता एक्सप्रेस धमाके के लिए आर डी एक्स सप्लाई किया - ऐ टी एस
नासिक कोर्ट में पुरोहीत ने ऐ टी एस के द्वारा किसी भी प्रकार से प्रताडित किए जाने के आरोप को खारिज कर दिया।लालू ने अडवाणी को “टेरर मास्क” कहा
मुंबई पर आतंकवादी हमले से ९ दिन पूर्व
१७ नवम्बर: मालेगाँव धमाके के तार अजमेर शरीफ और मक्का मस्जिद बम धमाके से जुड़े हैं - ऐ टी एस
इसी तिथि को प्रज्ञा ठाकुर ने मुंबई ऐ टी एस के द्वारा उसे प्रताडित करने से सम्बंधित शपथ पत्र दायर किया।
मुम्बई पर आतंकवादी हमले से ८ दिन पूर्व
१८ नवम्बर: मालेगाँव धमाकों की जांच से सम्बंधित बात करने के लिए विपक्षी दल के नेता एल के अडवाणी ने प्रधान मंत्री से भेंट की।इसी तिथि को अडवाणी और राजनाथ सिंह ने ऐ टी एस पर आरोप लगाया की ऐ टी एस और कांग्रेस में सांठ गाँठ है और वह अव्यसायिक ढंग से जांच कर रही है।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से ६ दिन पूर्व
२० नवम्बर: ऐ टी एस ने मालेगाँव आरोपियों पर मकोका लगाया। साध्वी प्रज्ञा की मोटर साइकिल खरीदने वाला व्यक्ति २००७ में मारा गया– ऐ टी एस
मुंबई पर आतंकवादी हमले से ५ दिन पूर्व
२१ नवम्बर: मोदी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया की वह वोट बैंक की राजनीती कर रही है।“पाकिस्तान जो कार्य २० वर्ष में नहीं कर सका वह भारत सरकार (कांग्रेस) ने २० दिन में कर दिखाया।” मोदी
मुंबई पर आतंकवादी हमले से २ दिन पूर्व
२४ नवम्बर: प्रोहित ने सी बी आई को बयां दिया की “वी एह पी नेता अभिनव भारत की स्थापना में आगे आगे थे। उन्होंने ने कहा की आर एस एस नेता इन्द्रेश कुमार ने पाकिस्तान की संस्था आई एस आई से ३ करोड़ रूपये लिए। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने मालेगाँव धमाके के लिए प्रोहित को इस का क्रेडिट लेने से इंकार किया और कहा, “ उनके लोगों ने” यह धमाका किया है न की अभिनव भारत ने।”दयानंद पाण्डेय ने स्वीकार किया की उस ने आर डी एक्स उपलब्ध कराया था। इसी तिथि को मकोका अदालत ने साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहीत और दयानंद पाण्डेय का ऐ टी एस द्वारा रिमांड की अवधि में वृद्धि की मांग को रद्द कर दिया था क्यूंकि इन तीनों ने ऐ टी एस पर प्रताडित करने का आरोप लगाया था।इसी दिन पुलिस कंट्रोल रूम में सायं ५।२० पर करकरे की हत्या करने का धमकी भरा फ़ोन आया था जिस का खुलासा उपायुक्त पुलिस राजेंद्र सोनवाने ने एक बयान में किया था। यह फ़ोन कॉल सहकार नगर के एक पी सी ओ, जिस का नंबर २४२३१३७५ है, से आई थी.मुंबई पर आतंकवादी हमले से १ दिन पूर्व २५ नवम्बर: मकोका न्यायालय ने ऐ टी एस से प्रताडित करने के आरोपों पर जवाब माँगा। महाराष्ट्र ऐ टी एस ने मानवाधिकार के राष्ट्रीय आयोग ने प्रताड़ना के आरोपों पर सफाई पेश करने को कहा।कर्नल प्रोहित ने स्वीकार किया की उस ने इस वर्ष आर एस एस प्रमुख सुदर्शन से जबलपुर में भेंट की और आर एस एस नेता इन्द्रेश कुमार के रोल की शिकायत की।


kt hindustaan mein

Saturday, December 20, 2008


मुंबई पर हमला करने वाले आतंकवादी पाकिस्तानी
मगर क्या उन का कोई सहयोगी भारतीय भी!
२६ नवम्बर २००८ को आतंकवादियों का मुंबई पर हमला, केवल मुंबई ही नहीं बल्कि भारत पर हमला है तथा भारतीयता पर हमला है। जिस का पहला उत्तर तो दिया हमारी पुलिस और सेना ने इस हमले को और अधिक भयानक रूप लेने से रोक कर और सिवाए एक के सभी आतंकवादियों को मौत के घाट उतार कर, उस के बाद दूसरा उचित जवाब दिया भारतीय नागरिकों ने राष्ट्रीय एकता का प्रदर्शन कर के। हाँ! राजनीतिज्ञों से उन की नाराज़गी ज़रूर सामने आई। मगर नाराज़ होने के बजाये यह विचारणीय पल है हमारे राजनीतिज्ञों के लिए की वे आतंकवाद पर काबू पाने में असफल क्यूँ हैं। कमी उन की रणनीति में है या दृढ़ इच्छा शक्ति में। इस आतंकवादी हमले में केवल एकमात्र जीवित पकड़ में आए अजमल आमिर कसाब के इस बयान ने वास्तव में हमारी पुलिस और सरकार को सोचने पर मजबूर कर दिया होगा की अभी १० आतंकवादी और मुंबई में छुपे हुए हैं। मगर यहाँ एक विचारणीय बात यह भी है की इसी आतंकवादी ने पुलिस को दिए गए अपने बयान में पहले सिर्फ़ १० आतंकवादियों के पाकिस्तान से आने का उल्लेख किया था। अब उस के अनुसार उन की संख्या २० हो गई। क्या इसे विश्वसनीय स्वीकार कर लिया जाए या उस के अगले बयान में कुछ और आतंकवादियों की बात भी सामने आ सकती है।
जहाँ तक अजमल आमिर कसाब के बारे में पुलिस सूत्रों से प्राप्त सूचनाओं का सम्बन्ध है तो अब तक यह सिद्ध हो चुका है की अजमल आमिर कसाब एक पाकिस्तानी आतंकवादी है। उस के बाप ने भी उस की पहचान कर ली है। पाकिस्तान के लोकप्रिय टी वी चॅनल जीओ टी वी ने अपने स्टिंग ओपरेशन के द्वारा यह रहस्योद्घाटन भी कर दिया की अजमल पाँच महीने पहले आतंकवाद का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद अपने घर वालों से मिलने के लिए अपने गाँव आया था। उस ने गाँव के लड़कों को जुडो कराटे के करतब भी दिखाए, इस बात को प्रर्दशित भी किया की अब वह एक प्रशिक्षित नौजवान है जिसे पकड़ना आसन नहीं और जिस के शरीर में अदभुत शक्ति है। उस ने यह भी स्वीकार किया की वह जिहाद के लिए जाने का इरादा रखता है और उस के लिए उस ने अपनी माँ से आशीर्वाद भी लिया। इन सारी बातों पर बहस की कोई गुंजाईश नहीं है। पाकिस्तान को भी अब सच्चाई का सामना करते हुए उस हकीकत को स्वीकार करना चाहिए और धन्यवाद् देना चाहिए जीओ टी वी चैनल को जिस ने आतंकवाद के विरुद्ध जिहाद का अमली सबूत अपने स्टिंग ओपरेशन के द्वारा दिया।
लेकिन अब भारत सरकार और हमारी गुप्तचर एजेंसियों को भी इस बात पर विचार करना होगा की अजमल आमिर कसाब के बयान को सच्चाई की कसौटी पर परखें।
क्या वह सच बोल रहा है की उस ने २६ नवम्बर को ही भारतीय सीमा में प्रवेश किया और मुंबई पहुँचा?
क्या वह सच बोल रहा है की उसके साथ आने वाले आतंकवादियों की संख्या केवल १० ही थी?
क्या वह सच बोल रहा है की केवल १० आतंकवादी ही पाँच टुकडों में विभाजित हो कर अलग अलग स्थान पर आतंकवादी हमले के लिए पहुंचे, कहीं संख्या के मामले में ग़लत बयानी तो नहीं की जा रही है? पाकिस्तान के शहर कराची से मुंबई तक पहुँचने के मामले में यात्रा की जो दास्तान बयान की गई है, क्या वह पूर्ण रूप से विश्वसनीय है? भारत की जिस नाव पर कब्ज़ा करके एक नाविक को रास्ता दिखाने की नियत से साथ लेकर आए फिर नाव के तहखाने में उस की हत्या कर दी, क्या उस की पहचान हो गई है?
क्या उस का शव मिल गया है? जिन दूसरे नाविकों को आतंकवादी पाकिस्तान के जहाज़ अलहुसैनी में बंधक बना कर ले गए थे, क्या उन के बारे में पूरी जानकारी मिल गई है? यह हत्या किस तारीख को की गई, उन नाविकों को किस तारीख को बंधक बनाया गया? क्या कसाब का बयान हिंदुस्तान की गुप्तचर एजेंसियों और सम्बंधित रिश्तेदारों की जानकारियों के अनुसार मेल खता है? जिस प्रकार असलाह होटल ताज और अन्य स्थानों पर बरामद हुआ व इस्तेमाल हुआ, क्या येही दस लोग अपने बैग में रखकर उसी दिन अर्थात २६ नवम्बर को शहर में प्रवेश किए थे या आतंकवादियों की संख्या कहीं अधिक थी और आने के समय व संख्या में ग़लत बयानी से काम लिया जा रहा है? क्या गूगल अर्थ की वेबसाइट पर जाकर नक्शे के द्वारा ही इन सभी स्थानों पर पहुँच कर आतंकवादी कार्यवाई को अंजाम दिया जा सकता है या उन में से कुछ आतंकवादी पहले से ही शहर में प्रवेश कर चुके थे? और सभी स्थानों को चिन्हित कर चुके थे? की कब, किस तरह यह आतंकवादी हमला करना है, उस का खाका बना चुके थे और बहुत सोच समझ कर २६ नवम्बर की तारिख तय की गई थी।
स्पष्ट हो की हमारी सूचना के अनुसार उसी दिन अर्थात २६ नवम्बर को शाम के लगभग ८ बजे लन्दन से इंग्लैंड क्रिकेट टीम को मुंबई पहुंचना था। उन के लिए होटल ताज में कमरे बुक कर लिए गए थे। नवम्बर के दुसरे हफ्ते में भी इंग्लैंड की क्रिकेट टीम होटल ताज की पाँचवीं और छटी मंजिल के कमरों में ठहरी थी। कसाब के द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार वह भी होटल ताज के कमरा नंबर ६३० में ठहरा था। यह केवल इत्तेफाक है या आतंकवादियों के इरादे अधिक खतरनाक थे। उन्हें यह मालूम था के २६ तारिख को आठ साढ़े आठ बजे मुंबई पहुँचने के बाद १० बजे तक यह क्रिकेट टीम होटल ताज में होगी और उन्हें नुक्सान पहुँचा कर वह इस आतंकवादी हमले को और भी भयानक बनाने में सफल हो जायेंगे। अगर हम तक पहुँची यह सूचना सही है तो अब तक यह ख़बर किसी भी सूत्र के द्वारा सामने क्यूँ नहीं आई? क्या यह भी विचारणीय नहीं है की जिस जहाज़ को लगभग साढ़े आठ बजे मुंबई पहुंचना था वह रात लगभग १२ बजे मुंबई पहुँचा और यह क्रिकेट टीम मुंबई एअरपोर्ट से ही वापस लौट गई। क्या जहाज़ के ज़मीन पर उतरने से पहले ही पाइलट तक यह सूचना पहुँच चुकी थी और एहतियाती तौर पर उस की लैंडिंग में देर करायी गई या फिर यह केवल एक इत्तेफाक था?
हम जानते हैं की सभी घटनाओं की कडियाँ जोड़ने में फूँक फूँक कर कदम रखने की आव्यशकता है मगर आतंकवाद को पूर्ण रूप से समाप्त करने के लिए सभी तथ्यों को जानना और समझना भी अति अनिवार्य है। पाकिस्तान पर किया जाने वाला संदेह अपनी जगह, उस के पूर्व कार्यों को देखें तो उसके अविश्वसनीय होने का भी कोई उचित कारण नहीं है। पाकिस्तान और पाकिस्तान की गुप्तचर संघटन आई एस आई या पाकिस्तान में प्रशिक्षित आतंकवादी भारत की अखंडता पर हुए इस हमले में शामिल हो सकते हैं। मगर हमें यह भी सोचना होगा की कहीं उस में हमारी कोई भूल या हमारी धरती पर बसने वाले कुछ ऐसे लोग तो जान बूझ कर या अनजाने तौर पर उन हमलावरों के सहयोगी साबित नहीं हुए वरना मुट्ठी भर आतंकवादी हमारी ज़मीन पर आकर इतना बड़ा आतंकवादी हमला करने में कैसे सफल हुए। सभी घटनाओं की कडियाँ जोड़ने और विश्लेषण करने में समय लगेगा साथ ही उन आतंकवादी हमलों को बीते दिनों की कुछ घटनाओं की रौशनी में देखना होगा। मेरे सामने पिछले दिनों हुए बम धमाकों और ऐ टी एस की जांच के बाद सामने आए कुछ रहस्योद्घाटन हैं। पता नहीं उन का कोई सम्बन्ध ताज़ा आतंकवादी हमलों से है या नहीं मगर भारत सरकार और जांच करने वाली एजेंसियों की सेवा में इस लिए उन्हें इस लेख में शामिल करना आवयशक महसूस हो रहा है की अगर उचित समझें तो वे इस पहलु पर भी विचार करें ताकि आतंकवाद की पूर्ण रूप से समाप्ति करने में सफलता प्राप्त हो सके इसलिए की आतंकवादी एक आतंकवादी है। वह हमारी ज़मीन का है तो भी आतंकवादी है, पराई ज़मीन का है तो भी आतंकवादी है। वह आतंकवादी चाहे किसी भी धर्म व जाती से सम्बन्ध रखता हो, हमारे नज़दीक उस की पहचान केवल और केवल एक आतंकवादी की है।
इसलिए आपकी सेवा में प्रस्तुत है समाचार पत्रों की कुछ कतरनें जो स्पष्ट करती हैं की पाकिस्तान की खतरनाक गुप्तचर संस्था आई एस आई के तार शायद हमारे देश के कुछ लोगों से जुड़े हुए थे। यदि ऐ टी एस (हेमंत करकरे) की जांच के बाद लिखे गए बयान सच्चे हैं तो।
*इन्द्रेश ने आई एस आई से तीन करोड़ रूपये लिए हैं।
*दयानंद पाण्डेय के लैपटॉप से प्राप्त जानकारी के अनुसार इन्द्रेश और मोहन भागवत की हत्या का षड़यंत्र रचा गया था। षड़यंत्र में लेफ्टनेंट प्रोहित के अतिरिक्त कुछ दूसरे लोग भी सम्मिलित थे। (हिंदुस्तान दैनिक, २२ नवम्बर)
*मुंबई ऐ टी एस के वकील रोहनी सलेन ने यह दावा करते हुए कहा की पाण्डेय के ज़ब्त किए गए लैपटॉप से प्राप्त ३ ऑडियो और विडियो क्लिपिंग से स्पष्ट होता है की उनकी बड़ा धमाका करने की भी योजना थी। वकील के अनुसार लैपटॉप में पंचमढ़ी में बुलाई गई एक मीटिंग का विवरण है जिस में मालेगाँव धमाके का षड़यंत्र रचने की बातचीत है। इस बातचीत में लम्बी दूरी तक वार करने वाले हथियारों, हैण्ड ग्रेनेड, रासायनिक और आर डी एक्स का उल्लेख है। (हिंदुस्तान, २७.११.२००८)
*मुंबई ऐ टी एस के अनुसार कर्नल प्रोहित के नार्को टेस्ट में बताया गया है की अजमेर धमाके का मास्टर माइंड स्वामी दयानंद पाण्डेय उर्फ़ अमृतानंद थे। (हिंदुस्तान १७.११.२००८)
*मुंबई ऐ टी एस को दयानंद पाण्डेय से सम्बंधित हरी पर्वत मन्दिर के गेस्ट हाउस से पुलिस ने स्वामी का इन्टरनेट डाटा कार्ड और महाराष्ट्र, हरयाणा और उत्तर्पर्देश, गुजरात और दिल्ली के अतिरिक्त विभिन्न क्षेत्रों का नक्शा प्राप्त किया। (हिंदुस्तान १६.११.२००८)
*ऐ टी एस के वकील अजय मिश्रा को टेलीफोन द्वारा दोपहर २ बज कर ५६ मिनट पर धमकी देने वाले ने कहा, इस मामले से हट जाओ। उस ने हेमंत करकरे और मोहन कुलकर्णी के नाम भी धमकी दी। ६९९१३२ से फ़ोन पर बताया "हम तुम्हारा हेमंत करकरे और मोहन कुलकर्णी का गेम करेंगे" (हिंदुस्तान, १६.११.२००८)
*महाराष्ट्र ऐ टी एस के सूत्रों ने कहा की प्रोहित ने राष्ट्र सेवक संघ के सुधाकर चतुर्वेदी को पुणे के निकट सिन्हा के तोपखाना केन्द्र में जाने के लिए फर्जी दस्तावेज़ दिए। (जनसत्ता, २१ नवम्बर, पृष्ठ न १)
मैंने १२ दिसम्बर की शाम श्री हेमंत करकरे के घर जाकर उन की पत्नी से भेंट की। यह शाम हेमंत करकरे के जनम दिन की शाम थी। अगर वह जीवित होते तो यह घर रौशनी से जगमगा रहा होता और खुशी प्रत्येक स्थान से प्रतीत होती परन्तु वहां उदासी थी। हम देश पर शहीद और एक कर्तव्यपरायण अधिकारी के परिवार को वे खुशियाँ तो नहीं लौटा सकते जो भारतीय समुदाय की सुरक्षा के मार्ग में कुर्बान हो गई परन्तु आतंकवाद का विनाश करके उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित तो कर ही सकते हैं...........

Sunday, December 14, 2008


कसाब नाव से उतरा, पानी और कीचड से गुज़रा, स्टेशन पहुँचा
लेकिन न कीचड जूतों पर और न भीगने के निशान पैंट पर
"अजमल आमिर कसाब हमारी पुलिस के लिए बड़ी काम की चीज़ सिद्ध हो रहा है। एक तो उस की याददाश्त बहुत अच्छी है जो पुलिस के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो रही है। उसे पूरी कहानी जुबानी याद है। कौन कौन लोग उस के साथ थे, वे सब कहाँ के रहने वाले थे, उन के पते क्या क्या थे, कब-कब, कहाँ-कहाँ, किस-किस को, किस-किस ने, किस-किस प्रकार की ट्रेनिंग दी, उसे सब याद है, जगहें भी और लोग भी। साथ ही वो पुलिस के लिए इतना को- ओपरेटिव भी है की पुलिस के प्रत्येक प्रशन का खुशी-खुशी उत्तर देने के लिए हर समय तैयार रहता है।यह पहला पैराग्राफ था मेरे उस लेख का जो मैंने अपने दिल्ली कार्यालय में बैठ कर १० दिसम्बर को लिखा था। अर्थात आपकी नज़र से गुज़रा ब्र्हुस्पतिवार, ११ दिसम्बर को। उस के बाद ब्र्हुस्पतिवार और शुक्रवार को मुझे नहीं लिखना था इसलिए मैंने अपने पाठकों की सेवा में यह प्रस्तुत किया था की मेरे इस जारी लेख की आगामी कड़ी उनके सामने होगी रविवार १४ दिसम्बर को। कारण था की सम्पूर्ण दास्ताँ मैं दिल्ली में बैठ कर नहीं लिखना चाहता था। मुझे लगा की आवयशक है की मैं मुंबई में घटना स्थल पर पहुँच कर प्रत्येक जगह का निरिक्षण करूँ, जहाँ जहाँ भी आतंकवादी कार्यवाही हुई थी। इस लिए शुक्रवार मेरे और मुंबई टीम के लिए अत्यन्त व्यस्तता का दिन था। हम लोग ऐसे प्रत्येक स्थान पर गए जहाँ जहाँ भी आतंकवादी हमले हुए थे और प्रत्येक चीज़ का ध्यानपूर्वक निरिक्षण करने का प्रयास किया।अतएवं आज बात आरम्भ करते हैं इस स्थान से जहाँ अजमल आमिर कसाब अपने सहकर्मी आतंकवादियों के साथ रबड़ की नाव से मुंबई पहुँचा। उस स्थान का नाम है बुधवार पार्क, यहाँ से सड़क पर आकर उस ने टैक्सी पकड़ी, टैक्सी से वह सी एस टी स्टेशन पहुँचा। हमारे पास अपने वाहन थे। परन्तु हम कई बातों को गहराई से समझना चाहते थे इसलिए हम ने तय किया की हमारी एक टीम जिस में दो लोग होंगे वह टैक्सी द्वारा ही सी एस टी स्टेशन पहुंचेंगे। हम आठ लोग (स्पष्ट रहे की उस स्थान तक पहुँचने वाले आतंकवादियों की संख्या भी आठ ही थी। क्यूंकि दो आतंकवादी जो होटल ओबेरॉय पहुंचे वह दूसरे पॉइंट से गए थे जिस का उल्लेख हम बाद में करेंगे) हम लोग उसी स्थान पर खड़े हो कर टैक्सी की प्रतीक्षा करने लगे। लग भाग १२ मिनट तक कोई टैक्सी वाला नहीं रुका इस लिए की सभी में यात्री पहले से ही बैठे हुए थे। इस बीच १५ से अधिक टेक्सियाँ हमारे सामने से गुजरीं जिन्हें रोकने का प्रयास किया गया परन्तु उन में पहले से ही कोई न कोई व्यक्ति बैठा था, काफ़ी प्रयास के बाद एक टेक्सी रुकी, जिस में हमारे साथी जावेद जमालुद्दीन और उन के साथ स्थानीय रिपोर्टर शराफत खान जो की उस दिन अर्थात २६ नवम्बर को उस समय सी एस टी स्टेशन के निकट ही थे, जब यह घटना हुई, स्वर हुए। टैक्सी द्वारा उन लोगों को स्टेशन पहुँचने में १४ मिनट का समय लगा। लगभग इतना ही समय अजमल आमिर कसाब और उसके साथी इस्माइल को भी लगा होगा। उस के बाद क्या हुआ यह २६ नवम्बर से आज तक आप लगातार पढ़ते चले आरहे हैं और इस विवरण को एक मात्र जीवित बचे आतंकवादी अजमल आमिर कसाब ने अपने शब्दों में बयान किया। हम उस का पूरा बयान आप की सेवा में प्रस्तुत करेंगे परन्तु अभी नहीं। आज मैं केवल एक बात पर आप सब का ध्यान केंद्रित करना चाहता हूँ इस लिए आज का लेख अत्यन्त छोटा होगा ताकि आप का पूरा ध्यान उस चित्र में पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब के वस्त्रों और मुख्य रूप से उस के जूतों पर केंद्रित रहे। आप को याद होगा हम ने इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा का भी केवल एक फोटो द्वारा ही ऑपेरशन बटला हाउस के पूरे सत्य को सामने लाने का प्रयास किया था और आज फिर एक बार येही प्रयास दोहरा रहे हैं। आज भी केवल हम एक फोटो द्वारा ही अपनी जांच आरम्भ करेंगे।ध्यान से देखें इस फोटो को, इस में कसाब के जूते बिल्कुल साफ़ हैं। उस ने जो कार्गो पेंट पहनी हुई है वह भी सफ़ेद या बहोत ही हलके रंग की है, उस पर न तो कीचड लगी है न पानी से भीगे होने के निशान हैं, न जूते कीचड में सने हैं जबकि वह नाव के सहारे बुधवार पार्क पंहुचा जिस का फोटो हमने ऊपर दिया है। आप देख सकते हैं की नाव से उतर कर सड़क तक पहुँचने से पहले आतंकवादियों को जिस मार्ग से गुज़रना था, वह अत्यन्त कीचड भरा और गन्दा है। जबकि सी एस टी स्टेशन पर ऐ के ४७ लेकर खड़ा आतंकवादी कसाब जो कपड़े पहने हुए हैं उन पर गन्दगी की एक छींट भी नहीं दिख रही है और न ही उस के आस पास की धरती पर जहाँ वह कुछ कदम जो अवश्य चला होगा और यह भी अत्यन्त आश्चर्यजनिक है की उस के जूते के सोल पर भी कीचड बिल्कुल नहीं है। यह कैसे सम्भव हुआ? क्या कसाब पहले कहीं और गया था? वहां उस ने वस्त्र बदले, जूते बदले और तैयार होकर फिर स्टेशन पहुँचा? अगर ऐसा है तो वह स्थान कौनसा था? ले जाने वाले कौन थे? अभी तक इस का उल्लेख क्यूँ नहीं? और अगर वह सीधे वहां पहुंचे तो उस के जूतों पर कीचड क्यूँ नहीं थी? पैंट के निचले भाग पर पानी का निशान क्यूँ नहीं? स्पष्ट है की केवल आधे घंटे में इतने मोटे कपड़े की कार्गो पैंट सूख तो नहीं सकती। सोचें फिर हमें बताएं की आपकी राय क्या है। यह सिलसिला जारी रहेगा परन्तु प्रत्येक दिन प्रत्येक प्रशन पर आपकी राय भी आवयशक है, चाहे वह ई-मेल द्वारा हो, एस एम् एस या फैक्स द्वारा। आज के लिए बस इतना ही। कल फिर आपकी सेवा में उपस्थित होंगे कुछ नए प्रशनों के साथ।

Wednesday, December 10, 2008

अगर पुलिस को दिया गया कसाब का बयान सच्चा

तो फिर प्रज्ञा, प्रोहित और पाण्डेय के बयान भी सच्चे!

अजमल आमिर कसाब हमारी पुलिस के लिए बड़ी काम की चीज़ सिद्ध हो रहा है। एक तो उसकी याददाश्त बहुत अच्छी है जो पुलिस के लिए अतिमहत्त्वपूर्ण सिद्ध हो रही है। उसे पूरी कहानी ज़बानी याद है। कौन कौन लोग उस के साथ थे, वे सब कहाँ के रहने वाले थे, उनके पते क्या क्या थे, कब-कब, कहाँ-कहाँ, किस-किस को, किस-किस ने, किस-किस प्रकार की ट्रेनिंग दी, उसे सब याद है, जगहें भी और लोग भी। साथ ही वह पुलिस के लिए इतना को-ओप्रटिव भी है की पुलिस के प्रत्येक प्रशन का खुशी खुशी उत्तर देने के लिए हर समय तैयार रहता है। वह हमारी पुलिस से इतना घुल मिल भी गया है की कब उसे अपनी माँ की याद आती है और कब माँ को चिट्ठी लिखना चाहता है, एक हमदर्द अच्छे मित्र की तरह अपनी प्रत्येक इच्छा उनके सामने रखता है। यहाँ तक की अमिताभ बच्चन की कौनसी फ़िल्म देखना चाहता है, यह बताने में भी उसे कोई संकोच नहीं होता और हमारी पुलिस भी इतनी दयालु है की उस के हर आराम का ध्यान रखती है। अर्थार्त वह व्यक्ति जो ६० घंटों तक भारत पर किए गए हमले की प्रमुख कड़ी, हमारी पुलिस, फौज, भारत सरकार, महाराष्ट्र सरकार और लगभग १०० करोड़ जनता के लिए सब से बड़ा सिरदर्द बना रहा, वह आज हमारी पुलिस के लिए सब से बड़े सुकून का कारण बन गया है। पुलिस के प्रत्येक प्रशन का उस के पास उत्तर है। केवल इतना ही नहीं की उसने ट्रेनिंग कब-कब, कहाँ-कहाँ ली, उसे इस बात की भी पूर्ण जानकारी है की कुबेर पर कब और कहाँ कब्जा किया, कहाँ मारा, किस-किस को मारा, कहाँ सटेलाईट फ़ोन छूटा, कहाँ से नाव ली, किस प्रकार ५ ग्रुपों में बट कर ताज, ओबेरॉय, सी एस टी और नरीमन हाउस पहुंचे, किस ग्रुप में कौन था, वह इस बात को भी स्वीकार करता है की ऐ टी एस चीफ हेमंत करकरे पर छुप कर हमला करने वाला वही है। वह यह भी बताता है की ९ एम् एम् वाली पिस्टल उस ने पाकिस्तान से प्राप्त की थी और करकरे पर गोलियां उस ने ऐ के ४७ या ५६ से नहीं बल्कि पिस्टल से चलाईं। परन्तु जब हमारा जांबाज़ सिपाही तुकाराम उसे जीवित पकड़ने के प्रयास में मारा जाता है तो उस पर वे ऐ के ४७ से हमला करता है अर्थार्त हेमंत करकरे के बारे में इस प्रकार यह पुष्टि हो भी जाए की उनकी मृत्यु किस गोली से हुई और यदि हत्या में ऐ के ४७ या ५६ नहीं ९ एम् एम् की गोली होने के प्रमाण मिलें तो अपराधी का इकबालिया बयान प्रस्तुत है, किसी और पर संदेह करने की आव्यशकता ही नहीं है और अब यह प्रशन तो उठाना ही नहीं चाहिए की शहीद हेमंत करकरे की मृत्यु किस प्रकार हुई और उन की मृत्यु के लिए कौन जिम्मेदार है, इस लिए की अपराधी स्वयं अपना अपराध स्वीकार कर रहा है की उस ने ही गोलीयाँ चलाईं, उस ने ही तीनों अपराधियों को गाड़ी से निकाल कर बाहर फैंका, उस ने ही गाड़ी पर कब्जा किया। बस इस बयान में थोडी सी कमी यह है की उस टाटा कुअलिस में मरने वालों की संख्या ६ थी और कुल ७ लोग सवार थे, जिन में ४ कांस्टेबल थे, तीन अधिकारीयों में ऐ टी एस चीफ हेमंत करकरे, इनकाउन्टर स्पेशलिस्ट विजय सालसकर और अशोक काम्टे। इस हमले में बच जाने वाले एक मात्र सिपाही का नाम जाधव था, जिस को बाजू में गोली लगी, और अब वह इलाज करा रहा है। सम्भव है अब कसाब यह भी बता दे की शेष तीन पुलिस कांस्टेबल जो हेमंत करकरे के साथ शहीद हुए, वह उस के दूसरे साथियों की गोलियों से मारे गए जो अब जीवित नहीं बचे हैं।

इस कहानी के अनुसार पाकिस्तान पूर्ण रूप से इन हमलों के लिए जिम्मेदार है। उसी धरती पर षड़यंत्र रचा गया। ट्रेनिंग देने वालों से लेकर मंसूबा बनाने वालों तक सबका सम्बन्ध इसी धरती से है। हमें अत्यन्त दुःख है की पाकिस्तान द्वारा ट्रेनिंग प्राप्त किए केवल १० आतंकवादी ६० घंटों तक हमारी पुलिस और फौज का मुकाबला करते रहे। हमें इस बात का भी दुःख है की ताज और ओबेरॉय जैसे ७ स्टार होटलों का सुरक्षा प्रबंधन इतना ख़राब था की ४ और २ के ग्रुपों में आतंकवादियों ने इतने भारी हथियारों के साथ प्रवेश किया था और किसी को उन की जानकारी भी नहीं मिली। ६० घंटों तक यह आतंकवादी हमारी पुलिस और फौज का मुकाबला करते रहते हैं और साथ ही इस मुकाबले के बीच अपने स्वामियों से टेलीफोन पर बात कर के आदेश भी लेते रहते हैं। अर्थात उन के पास इतना समय रहता था की वह टेलीफोन पर बात करते रहे, हथियार चलाते रहे और हमारे सजग कामांडोस इस अवसर का लाभ उठा कर भी उन पर हमला न कर सके। केवल फोटो और इन्टरनेट पर गूगल की वेबसाईट देखने के बाद आतंकवादी मुंबई के कठिन नक्शों और ताज और ओबेरॉय की बिल्डिंग के अन्दर के भागों से इतना अवगत हो जाते हैं की उन्हें कहीं भी पहुँचने में और पोजीशन लेने में कोई कठिनाई नहीं आती। शायद उन्हें यह भी पता होता है की खुफिया कैमरों की पकड़ से वे किस प्रकार बच सकते हैं या कम से कम उन की पकड़ में आ सकते हैं। ऐसी दवाइयाँ भी उन के पास होती हैं की ६० घंटों तक न उन्हें कुछ खाने की आव्यशकता होती है और न शौच की, न सोने की। लगातार जागते रहने के लिए तो बहरहाल वे कुछ दवाइयाँ लेते रहते हैं परन्तु शेष बातों के लिए उन्होंने कौनसी दवाइयाँ लीं यह अभी तक कसाब ने नहीं बताया है। हो सकता है कोई बड़ा डॉक्टर उसे ऐसी दवाइयों के नाम भी बता दे की यह भी सम्भव नज़र आने लगे की बिना खाए और बिना आव्यशाक्तों से निपटे किस प्रकार ६० घंटों तक मोर्चे पर डाटा रहा जा सकता है।

हमारी मजबूरी है की हम १०० करोड़ भारतियों के पास इस आतंकवादी की प्रत्येक बात को विश्वसनीय मानने के अलावा कोई चारा नहीं है क्यूंकि १० आतंकवादियों में केवल अकेला वही जीवित है और शेष जीवित हो कर अब उस की किसी बात को झूठा करार नहीं दे सकते और हमारी पुलिस को इस के बयान की सच्चाई जानने की बिल्कुल आव्यशकता है ही नहीं, इस लिए की उन्हें भरोसा है की कसाब जो बोलेगा, सच ही बोलेगा और सच के अतिरिक्त कुछ नहीं बोलेगा। इस लिए वह उसे लाइ डिटेक्टर टेस्ट, पोलिग्रफ्य टेस्ट, नार्को टेस्ट जैसी पीड़ा दायक प्रक्रियाओं से नहीं गुज़रना चाहते, यह अत्याचार तो उन्होंने साध्वी प्रज्ञा, दयानंद पाण्डेय और प्रोहित जैसे महान लोगों पर किया था और इतना किया था की हमारे भूतपूर्व गृहमंत्री व उपप्रधानमंत्री या यूँ कहिये की प्रधानमंत्री बन्ने के इच्छुक लाल कृष्ण अडवाणी अत्यन्त बेचैन हो गए और उन्होंने इस समस्या पर प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह से मिलना आवयशक समझा परन्तु संभवत: लाल कृष्ण अडवाणी जी के सहदेशवासी होने का लाभ प्राप्त हुआ कसाब को......यह तो आप जानते ही हैं की अडवाणी जी भी पाकिस्तान के संध प्रांती में ही जन्मे थे अत: हमारे पुलिस वालों ने इस बात का ध्यान रखा होगा की जो त्रुटी पहले हो चुकी है, वह अब न हो। येही कारण है की अब तक कोई ऐसी बात सुनने में नहीं आई की कसाब ने पुलिस के किसी भी अत्याचार व उत्पीडन का शिकवा किसी से किया हो। अर्थात उस के साथ पुलिस ने किसी प्रकार का अत्याचार नहीं किया।

कसाब बड़ा धार्मिक व्यक्ति है। आधी रात के बाद उठ कर तहज्जुद की नमाज़ पढता है और फिर सोता नहीं, फज्र की नमाज़ पढने के बाद नाश्ते के समय तक ट्रेनिंग में व्यस्त रहता है। कुरान व हदीस की बातें भी अच्छी तरह जानता है। मतलब यह संदेश देने की कोशिश भी कर रहा है की हत्या और विनाश दीनदार मुसलमानों का काम है जो कुरान व हदीस और उस के संदेश को अच्छी तरह समझते हैं।

हमारा मीडिया विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पुलिस के द्वारा उपलब्ध कराये गए हर बयान को अत्याधिक प्रभावी और सुंदर ढंग में प्रस्तुत करने की निपुणता रखता है। इस का नाटकीय चित्रण इतना मज़बूत होता है मानो अब किसी आतंकवादी के बयान को पेश नहीं कर रहे हैं बल्कि आंखों देखा हाल एक विडियो फ़िल्म के द्वारा पेश करने का प्रयास कर रहे हैं। सम्भव है की पुलिस इस प्रचार को अपने लिए बड़ा उपयोगी समझती हो और ऐसा मीडिया जो जांच के बजाय पुलिस के द्वारा सुनाई गई कहानी को महत्त्व देना उस का प्रचार करना ही अपने कर्तव्य को निभाना समझता है, सम्भव है कल अपनी भूल का एहसास करे, इस लिए की अदालत में इस बयान का कोई महत्त्व नहीं है। पुलिस की मौजूदगी में किसी भी अपराधी का दिया गया बयान अदालत में कोई महत्त्व नहीं रखता और यदि पाठक और भारत सरकार हमें अपनी राय प्रकट करने की आज्ञा दें तो पुलिस से अत्याधिक क्षमा के साथ हम केवल इतना कहना चाहेंगे की कम से कम पुलिस ऐसे मामलों में कुछ अच्छे स्क्रिप्ट राइटर्स की सेवाएँ प्राप्त किया करे और पहले कहानी के सभी पक्षों पर विचार कर लिया करे। इस लिए की भारतीय जानता इतनी ज़हीन है की उस ने दुर्घटना के तुंरत बाद अपने पहले प्रदर्शन में ही संदेश दे दिया था और शहीद हेमंत करकरे की मृत्यु की सच्चाई क्या है, इस के लिए एक कसाब का बयान तो क्या हजारों क़साबों का बयान बेकार है क्यूंकि शहीद हेमंत करकरे की पत्नी ने जो पहली प्रतिक्रिया प्रकट की, वह हर भारतीय को समझाने के लिए काफ़ी है की उन की दृष्टी में अपराधी कौन कौन हैं?

अब रहा प्रशन रोजनामा राष्ट्रीय सहारा, उस की रिसर्च टीम तथा पाठकों के द्वारा दी जाने वाली महत्त्वपूर्ण सूचनाओं के द्वारा तथ्यों को सामने रखने का तो इस में कहने केलिए अभी बहुत कुछ शेष है, जिस को हम बहुत जल्द अपने पाठकों और भारत सरकार की सेवा में प्रस्तुत करने का इरादा रखते हैं। इस के पश्चात पुलिस स्वयं ही इस कहानी को झूठा करार देने के लिए मजबूर हो सकती है और यदि कुछ क्षणों के लिए हम इस कहानी को सच्चा मान भी लें तो पुलिस के सामने सब से बड़ी कठिनाई यह होगी की अब तक दिए गए सभी इकबालिया बयानों को उसे सच्चा मानना पड़ेगा। पुलिस की मौजूदगी में यानी ऐ टी एस हेमंत करकरे और उसकी टीम की मौजूदगी में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टनेंट कर्नल प्रोहित, दयानंद पाण्डेय और मेजर उपाध्याय ने जो कुछ कहाँ वह सब भी सच्चा माना जायेगा, क्यूंकि यदि एक इतने खतरनाक आतंकवादी को हमने सच्चा मान लिया तो वह जिन्हें शहीद हेमंत करकरे आतंकवादी सिद्ध कर रहे थे उन सब के बयानों को झूठा कैसे साबित किया जायेगा। यदि पुलिस के सामने बयान की गई यह कहानी सच्ची है तो फिर साध्वी प्रज्ञा सिंह, प्रोहित और दयानंद पाण्डेय के सभी बयान भी सच्चे और जब इन्हें सच्चा मानें तो बात प्रवीन तोगडिया और लाल कृष्ण अडवाणी तक भी पहुँच सकती है। मतलब जहाँ से चले थे वहीँ पहुँच गए। बहरहाल अब यह निर्णय तो पुलिस और उत्तरदायी मीडिया को ही करना होगा की वह केवल उस एक आतंकवादी की बात को सच मान कर पिछले तमाम आरोपियों के पुलिस को दिए गए बयानों को सच्चा मान लें या फिर इस की हर बात को बकवास करार दे कर हर बात की नए सिरे से जांच ईमानदारी से करें। यदि कसाब को अपराधी और इसके सभी साथी आतंकवादी साथियों को भारत पर हुए आतंकवादी हमले का जिम्मेदार करार दे कर जांच बंद कर दी गई और परदे के पीछे के वास्तविक अपराधी सुरक्षित रह गए तो अत्याधिक दुःख के साथ हमें यह कहना पड़ेगा की भारत में आतंकवाद की समाप्ति नहीं होगी। वह इसी प्रकार पोषित होता रहेगा। आतंकवादी मानसिकता, नए नए चेहरे, नए तरीके, नए नए बहाने तलाश करती रहेगी।

हम अपनी बात के स्पष्टीकरण के लिए ऐसे कुछ आरोपियों के इकबालिया बयान कल और उस के बाद के प्रकाशनों में अपने पाठकों की सेवा में पेश करेंगे और फिर उन से उन की राय मांगेंगे की यदि कसाब के बयान को सच्चा मान लिया जाए तो फिर प्रज्ञा, प्रोहित और दयानंद जैसों के बयानों को सच्चा क्यूँ नहीं माना जाए.........