Thursday, March 25, 2010

जो लहजा पाकिस्तान के लिए था, क्या अब अमेरिका के लिए भी होगा?
अज़ीज़ बर्नी

निम्नलिखित भाषण हमारे देश के प्रधानमंत्री डा॰ मनमोहन सिंह ने मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमलों के बाद 11 दिसम्बर 2008 को लोकसभा में चर्चा के दौरान दिया, जिसे आज हमने हूबहू पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करने का साहस किया है।
हम अपने प्रधानमंत्री से दोहरे मापदण्ड की आशा नहीं करते। इस भाषण में हमारे प्रधानमंत्री ने जो कुछ भी कहा है हम उसके एक-एक शब्द से सहमत हैं। मगर अब देखना यह है कि हमारे देश में आतंकवाद की प्रक्रिया के लिए जो नए चेहरे सामने आए हैं, नए रहस्योदघाटन के बाद योजनाबंदी के लिए जिस भूमि का प्रयोग किया गया है, क्या हमारे प्रधानमंत्री उसके लिए भी यही भाव रखते हैं? यदि हां, तो कथनी और करनी में वह बात नज़र क्यों नहीं आती जो अब तक नज़र आती रही है और अगर नहीं तो क्यों?
जैसा कि हमने अपने पाठकों की सेवा में अर्ज़ किया है, आज 26/11 हमारे लिए एक शोध का विषय है। इसलिए कि हम अपने देश को गंभीर ख़तरे में अनुभव कर रहे हैं और यह ख़तरा कुछ इस तरह नज़र आ रहा है जैसे हमारे देश को फिर से ग़ुलाम बनाने की साज़िश रची जा रही है। इसलिए हमें इस बारे में बहुत कुछ लिखना है, परंतु केवल शब्दों के सहारे नहीं, ऐतिहासिक तथ्यों तथा ऐसे दस्तावेज सामने रख कर अपनी बात कहनी है कि सब कुछ आईने की तरह साफ़ हो जाए। और जो कुछ भी हम अनुभव करते हैं, उसका अंदा़ज़ा हमारी क़ौम और हमारे देश के संरक्षकों को हो सके और हम समय रहते देश दुशमन ताक़तों के ख़िलाफ एक उचित कार्य प्रणाली तैयार कर सकें। मेरी ओर से आज बस यही कुछ वाक्य। मुलाहिज़ा फरमाएं भारत के प्रधानमंत्री का मुम्बई पर आतंकवादी हमलों के बाद किया गया यह ऐतिहासिक भाषण। कुछ शब्द मैंने जानबूझ कर रेखांकित किए हैं। इसलिए कि उन्हें आप बार-बार पढ़ें और अपने मन में सुरक्षित कर लें, इसलिए कि आगे जब हम इस विषय पर लिखना आरंभ करेंगे तो बहुत कुछ इन वाक्यों की रोशनी में भी होगा।
‘‘मैं अपनी बात शुरू करने से पहले यह कहना चाहता हूं कि हम इस तथ्य के प्रति अत्यंत सजग हैं कि आतंकवादी वारदातें बढ़ रही हैं और इन जघन्य घटनाओं में अनेक नागरिकों की जानें गयी हैं। मैं समझता हूं कि हमारी प्रणाली और प्रक्रियाआंें की समीक्षा की आवश्यकता है। सरकार की ओर से मैं जनता से इस बात के लिए क्षमा चाहता हूं कि इन जघन्य वारदातों को नहीं रोका जा सका।
जहां तक मुंबई का प्रश्न है, यह अत्यंत सुनियोजित और दुष्टतापूर्ण हमला था, जिसका मक़सद व्यापक आतंक पैदा करना और भारत की छवि को आघात पहंुचाना था। इस हमले के पीछे जो ताक़तें काम कर रही थीं उनका इरादा हमारी धर्मनिरपेक्ष राजनीति को अस्थिर करना, साम्प्रदायिक फूट डाला और हमारे देश की आर्थिक तथा सामाजिक प्रगति में रुकावट डालना था।
हममे से प्रत्येक ने इस भयावह घटना की निंदा की है और शोक संतप्त परिवारों के प्रति गहरी संवेदना तथा घायल व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की है। राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड और नौसेना कमांडो जैसे विशेष बलों सहित पुलिस औरसुरक्षा बलों के साहस और राष्ट्रभक्ति के प्रति हम सभी नतमस्तक हैं। मैं इस घटना में अनेक विदेशी नागरिकों के मारे जाने पर भी अत्यंत दुख व्यक्त करता हूं। मैंने व्यक्तिगत रूप से बातचीत करके और लिखित संदेश भेजकर उन देशों के नेताओं से क्षमा मांगी है, जिनके नागरिकों की इस हमले में जानें गयीं।
हम चाहे कुछ भी कहें और कुछ भी कर लें लेकिन जो जानें गयी हैं उनकी क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती। किन्तु यह सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि गुजरते समय के साथ उनके बलिदान की याद कभी भुलाई नहीं जानी चाहिए। संसद को फिर से यह संकल्प व्यक्त करना होगा कि हमारा देश आतंकवाद को परास्त करने और उसकी जड़ों तथा शाखाओं को समाप्त करने के प्रति वचनबद्ध है। हमें आतंकवाद के अनर्थ से पूरी ताक़त के साथ लड़ना होगा और हम लड़ेंगे। इस प्रयोजन के लिए आवश्यक सभी साधनों और उपायों को काम में लाया जायेगा।
हमारी तात्कालिक प्राथमिकता यह है कि भारत के लोगों में सुरक्षा की भावना बहाल की जाये। हम ऐसी स्तिथि बर्दाश्त नहीं कर सकते जिसमें आतंकवादियों या अन्य उग्रवादी ताक़तों के हमलों से हमारे नागरिकों की सुरक्षा को क्षति पहुंचे।
मेरा मानना है कि हमें तीन स्तरों पर काम करना होगा। पहला यह है कि हमें आतंकाद के केन्द्र, जो पाकिस्तान में स्थित है, के साथ कारगर ढंग से और शक्ति के साथ निपटने में आंतरिक समुदाय को शामिल करना होगा। आतंकवाद के ढांचे को स्थायी तौर पर नष्ट करना होगा। ऐसा करना स्वयं पाकिस्तान के लोगांे की ख़ुशहाली सहित समूचे विश्व समुदाय की भलाई के लिए निहायत ज़रूरी है।
मुंबई में आतंकवादी हमलों के सिलसिले में अनेक राष्ट्राध्याक्षों और शासनाध्यक्षों ने मुझसे बातचीत की है। उन सभी ने संयम बरतने पर भारत की सराहना की है। वे इस बात पर सहमत हैं कि इन हमलों के ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाये। मैंने उनसे कहा है कि भारत महज़ आश्वासनों से संतुष्ट नहीं होगा। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की राजनीति इच्छा एक ठोस और स्थिर कार्रवाई के रूप में सामने भी आनी चाहिए। अब समय आ गया है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय एकजुट होकर आतंकवाद की चुनौती का सामना करे। राष्ट्र की नीति के साधन के रूप में आतंकवाद के इस्तेमाल की अनुमति अब किसी को नहीं दी जायेगी। आतंकवादियों को अच्छे या बुरे की संज्ञा नहीं दी जा सकती। निर्दोष लोगों की हत्या को किसी भी दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता।
हमें न केवल मुंबई के हमलों के लिए ज़िम्मेदार लोगों को अदालत के सामने लाना है बल्कि इस बात की पुख़्ता व्यवस्था करनी है कि आतंकवाद की ऐसी घटनाएं फिर कभी न हों।
मुझे ख़ुशी है कि संयुक्त राष्ट्र ने आज लश्कर-ए-तैयबा के सहयोगी संगठन जमात-उद-दावा को आतंकवादी संगठन घोषित करते हुए उस पर प्रतिबंध लगाने और इसके प्रमुख हाफ़िज़ मुहम्मद सईद समेत चार लोगों को आतंकवादी घोषित कया है। हमारा मानना है कि इस तरह की सार्थक कार्रवाई विश्व समुदाय द्वारा निरंतर की जानी चाहिए ताकि आतंकवाद का समूूचा ढांचा नष्ट किया जा सके।
दूसरे, हमें पाकिस्तान की सरकार के सामने यह मामला पूरी सख़्ती से उठाना होगा कि वह इस तरह के हमले के लिए अपनी धरती का इस्तेमाल न होने दे और ऐसी जघन्य कर्रावाई करने वालों के ख़िलाफ़ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करे। विश्व समुदाय को यह सुनिश्चित करना होगा कि पाकिस्तान ऐसे अपराधों को अंजाम देने वाले लोगों के ख़िलाफ़ जो कार्रवाई करे वह असरदार हो और उसमें निरंतरता बनी रहे।
हमने अभी तक अत्यंत संयम से काम लिया है। किन्तु सभ्य तौर तरीक़ों के प्रति हमारी वचनबद्धता को कमज़ोरी नहीं समझा जाना चाहिए। आतंक फैलाने वाला, उसकी योजना बनाने वाला और उसका समर्थन करने वाला, चाहे वह किसी भी विचारधारा, धर्म या देश का हो, उसे लोगों के ख़िलाफ़ कायरतापूर्ण और भयावह कार्रवाई की सजा अवश्य मिलनी चाहिए। पाकिस्तान द्वारा उठाए गए कथित कदमों की जानकारी हमें मिली है। लेकिन हम साफ करना चाहते हैं कि अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है और कार्रवाइयों को युक्तिसंगत निष्कर्ष तक पहुंचाना ज़रूरी है।
तीसरे, हमें यह स्वीकार करना होगा कि एक राष्ट्र के रूप में हम वांछित परिणाम हासिल करने के लिए इन दो आयामों पर निर्भर नहीं रह सकते। मुंबई की घटना ने इस तरह के हमलों से निपटने की हमारी तैयारी की ख़ामियों को उजागर किया है। देश की एकता और अखंडता के प्रति इस तरह के अभूतपूर्व ख़तरों और चुनौतियों के साथ अधिक कारगर ढंग से निपटने के लिए हमें अपने को तैयार करना होगा।
गृह मंत्री ने अनेक उपायों की रूप रेखा पहले ही प्रस्तुत कर दी है, जो हम करने जा रहे हैं। प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट में आतंकवाद की समस्या पर व्यापक प्रकाश डाला गया है और आयोग ने जिस तरह की कार्रवाई करने का सुझाव दिया है उस पर सरकार सक्रियता से विचार कर रही है।
देश के तटवर्ती क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए कड़े उपायों की आवश्यकता पहले से उजागर की गयी थी, किन्तु इस बारे में वास्तविक प्रगति बड़ी धीमी रही है। हम समुद्र से पैदा होने वाले आकस्मिक ख़तरों से निपटने के लिए समुद्री सुरक्षा को सुदृढ़ बना रहे हैं। तटीय सुरक्षा का काम वर्तमान में अधिसंख्य एजेंसियों की ज़िम्मेदारी है, इसलिए यह निर्णय किया गया है कि समूची तट रेखा की सुरक्षा का एकमात्र दायित्व तट रक्षक को सौंपा जायेगा। इस प्रयोजन के लिए भारतीय नौसेना तट रक्षक को आवश्यक बैक अप सहायता उपलब्ध करायेगी। यह निर्णय तत्काल प्रभाव से लागू होगा। सभी प्रमुख बंदरगाहों के लिए विशेष सुरक्षा और संरक्षात्मक प्रबंध किए जा रहे हैं। तटवर्ती क्षेत्रों में स्थित संवेदनशील ठिकानों के लिए भी इसी तरह के सुरक्षा उपाय करने होंगे।
परंपरागत और गैर-परंपरागत ख़तरों को देखते हुए देश के हवाई क्षेत्र की सुरक्षा के उपायों को पुख़्ता किया जा रहा है। वायु सेना और नागर विमानन अधिकारियों द्वारा संयुक्त रूप से विमानों की आवाजाही पर वास्तविक निगरानी शुरू की गयी है। देश के हवाई क्षेत्र में धोखेबाज/ अज्ञात विमानों की रोकथाम के लिए हवाई सुरक्षा उपाय किए गए हैं
मुंबई के हमले ने इस बात की आवश्यकता उजागर की है कि ऐसी वारदातों के लिए जवाबी कार्रवाई अधिक तेज़ी से की जानी चाहिए। हमने व्यापक संकट प्रबंधन के लिए एक तंत्र कायम करने की रूपरेखा तैयार की है। यह निर्णय पहले ही किया जा चुका है कि राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड का विकेन्द्रीकरण किया जायेगा और उन्हें सभी बड़े मैट्रोपालिटिन क्षेत्रों में रखा जायेगा। इसी के साथ ऐसे प्रबंध भी अवश्य होने चाहिएं कि त्वरित कार्रवाई इकाइयां तत्काल अन्य स्थानों पर पहुंच सकें। राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड की संख्या बढ़ाए जाने और नयी यूनिटों को प्रशिक्षित किए जाने तक सेना, वायुसेना और नौसेना तथा अन्य सिविल एजेंसियों के पास उपलब्ध विशेष बलों का इस्तेमाल किया जायेगा। प्रत्येक राज्य द्वारा कमांडो इकाइयां स्थापित की जायेंगी।
हमने आतंकवाद से निपटने के लिए क़ानूनी ढांचा मज़बूत करने का फैसला पहले ही कर लिया है। इसके लिए एक राष्ट्रीय जांच एजेंसी भी गठित की जायेंगी। गृह मंत्री द्वारा की गयी घोषणा के अनुसार तत्सम्बधी विधेयक यथाशीध्र सदन में पेश किए जायेंगे।
जैसा कि संकेत दिया गया है कि भविष्य में आतंकवादी हमलों की योजना का पहले से पता लगाने के लिए गुप्तचर व्यवस्था अधिक सुदृढ़ की जायेगी। गृह मंत्री के स्तर पर रोज बैठकें ली जा रही हैं। गुप्तचर ब्यूरो का मल्टी एजेंसी संेटर विशेष रूप से आतंकवादी हमलों से सम्बन्धित जानकारी एकत्र करने, मिलान करने और सप्रेषित करने का काम करेगा। विभिन्न गुप्तचर एजेंसियों के बीच एककी करण और समन्वय में सुधार किया जा रहा है। राज्यों से कहा गया है कि वे जिला स्तर पर गुप्तचर सूचनाएं प्रभावशाली ढंग से एकत्र करें ताकि अधिक सक्रिय गुप्तचर व्यवस्था क़ायम की जा सके।
अल्पावधि और दीर्घावधि के अनेक उपाय तो हमें करने ही होंगे, इसके साथ ही इस बात पर आम सहमति बनी है कि सुरक्षा व्यवस्था को दीर्घावधि के लिए सुदृढ़ तभी बनाया जा सकता है जब पुलिस प्रतिष्ठान, विशेषकर स्थानीय स्तर पर पुलिस को मजबूत बनाया जा सकता है जब आधुनिकीकरण के प्रति वचनबद्ध हैं और इस कार्य को निश्चित समय सीमा के भीतर पूरा करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे और संसाधनों का अभाव इसमें आड़े नहीं आयेगा। हमें अपने सुरक्षा बलों के लिए ऐसे आधुनिक और अत्याधुनिक उपकरण अवश्य उपलब्ध कराने होंगे जो हर रोज़ बढ़ रहे नए-नए आतंकवादी अपराधों से निपटने के लिए आवश्यक है। सुरक्षा बलों का नैतिक साहस अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें कोई भी कमी होगी तो उसे दूर किया जायेगा। आज के युग में सुरक्षा और विकास की दोहरी चुनौतियों का सामना करने के लिए देश को एक आधुनिक और सक्षम पुलिस बल की आवश्यकता है।
भारत में आतंकवादी हमलों ने साम्प्रदायिक फूट का बीज बोने और हमारे राजनीतिक तथा सामाजिक तानेबाने को कमज़ोर करने की कोशिश की है। हम हर चुनौती के बाद मजबूत होकर उभरे हैं और ऐसा ही फिर करेंगे। मुझे कोई संदेह नहीं है कि मुंबई हमलों के पीछे जो नापाक इरादे थेे वे विफल होंगे। सभी राजनीतिक दलों का यह दायित्व है कि वह साम्प्रदायिक घृणा और मनमुटाव के ख़िलाफ एकजुट होकर काम करें। अगर हमारे बीच आपसी फूट होगी तो हम आतंकवाद के खिलाफ यह युद्ध न तो लड़ पायेंगे और न जीत पायंेगे।
सार रूप में यह कहना चाहता हूं कि संकट की इस घड़ी में राष्ट्र को अपना लोहा सिद्ध करना है। हमें शांति और संयम से काम लेना होगा। आतंकवाद द्वारा पेश की गयी इस चुनौती का सामना करने के लिए हमंें एक राष्ट्र और एक क़ौम के रूप में मज़बूती से खड़ा होना होगा। हम अपने शत्रुओं को सही जवाब देंगे। व्यावहारिक लोकतंत्र और बहु समुदायवादी समाज का भारत का आदर्श दाव पर लगा है। यह समय है कि राष्ट्रीय एकता प्रदर्शित करने का और मैं इसमें आपसे सहयोग की अपील करता हूं। सत्य और धर्म परायणता हमारे पक्ष में है और हम मिलकर सामना करेंगे।

1 comment:

Narendra Vyas said...

बहुत ही अच्‍छा आलेख है| आपने बिलकुल सही कहा कि हमें केवल शब्दों के सहारे नहीं, ऐतिहासिक तथ्यों तथा ऐसे दस्तावेज सामने रख कर अपनी बात कहनी है कि सब कुछ आईने की तरह साफ़ हो जाए। मैं भी आपके विचारों से पूर्णतया सहमत हू| आपका आभार इस आलेख के लिये|धन्‍यवाद।।