Wednesday, December 31, 2008

मुल्क में शान्ति व एकता का यकीन हो जाए

तो दूँ नए साल की मुबारकबाद

दिल चाहता है की आप सब को नववर्ष की शुभकामनाएं प्रस्तुत करूँ, किंतु हिम्मत नहीं होती, इसलिए की पिछले वर्ष के कड़वे अनुभव को भूलने में अभी कुछ समय लगेगा। यह वर्ष जो आज हमसे विदा हो रहा है इसका भी हमने उत्साह पूर्वक स्वागत किया था किंतु क्या पता था की नव वर्ष का प्रथम दिन हमारे लिए दुःख दर्द का तोहफा लेकर आएगा। ३१ दिसम्बर २००७ और १ जनवरी २००८ की मध्य रात्री में रामपुर सी आर पी ऍफ़ कैंप पर हुए हमले को आप अभी तक भुला नहीं पाये होंगे और शायद नववर्ष का आरम्भ भी इस की कड़वी यादों को बार बार सामने रखता रहेगा। इसलिए की इसका एक आरोपी फहीम कुछ दिन पूर्व मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों के मामले में पूछताछ के लिए ऐ टी एस की गिरफ्त में है। हमने इस पूरे मामले का विस्तृत विवरण प्राप्त कर लिया है और शीघ्र ही इसके सत्य को भी जनता के समक्ष प्रस्तुत करना चाहते हैं। सभी मामलों का गहन अध्यन करने के पश्चात् ऐसा प्रतीत होता है की "आरुशी मर्डर केस" जो एक "मर्डर मिस्ट्री" बन कर रह गया एवं मुंबई पर आतंकवादी हमला जिसके सत्य से अभी भी परदा उठाना बाक़ी है, गत १ जनवरी का यह मामला भी इन मामलों से अलग नहीं है। सम्भव है की इस का सत्य सामने आए (यदि आ सका तो) वो भी एक नई कहानी सामने रख सकता है क्यूंकि इस फाइल का अध्यन करते समय जिन गवाहों के आधार पर सारा सत्य टिका है, उन्हीं चश्मदीद गवाहों ने कहीं पर यह कहा की उन्होंने बिजली के प्रकाश में आरोपियों का चेहरा देखा एवं सामने आने पर पहचान सकते हैं और कुछ देर पश्चात् ही उन्होंने यह भी कहा की इतना अँधेरा था की हम गोलियों के खाली खोखे तलाश नहीं कर सके। बहरहाल जैसे ही यह मामला आगे बढेगा हम इसकी परतें खोलने का कार्य भी प्रारम्भ कर देंगे। अभी तो हमारे समक्ष दो प्रमुख मामले ये हैं की २६ नवम्बर २००८ को मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले का सत्य सामने लाने का प्रयास किया जाए। यह लेख लिखे जाने तक दो सदस्य कमिटी बनाई गई है जिसमें नागालैंड के पूर्व राज्यपाल आर डी प्रधान और उनके सहयोगी पूर्व आई पी एस अधिकारी वी बालचंद्र होंगे, जिनके अधिकार कैबिनेट मंत्री एवं राज्य मंत्री के बराबर होंगे अर्थात आव्यशकता पड़ने पर ये महाराष्ट्र के पुलिस उच्चाधिकारियों ऐ एन रोय एवं हसन गफूर को भी तलब कर सकेंगे। किंतु सबसे प्रमुख प्रशन यह है की क्या सरकार गंभीर है और सत्य को सामने लाने का इरादा रखती है? क्या वह सांप्रदायिक ताक़तें जो सत्य को सामने लाने का इरादा रखती है? क्या वह सांप्रदायिक ताक़तें जो सत्य सामने आने देना नहीं चाहतीं, अब सरकार को प्रभावित नहीं कर पाएँगी? इसलिए की संसद में कैबिनेट मंत्री अब्दुर रहमान अंतुले द्वारा यह प्रशन उठाये जाने पर जिस प्रकार कांग्रेस सकते की स्थिति में थी एवं विपक्ष के सभी नेता आग बगुला थे और उनसे प्रभावित मीडिया अब्दुररहमान अंतुले को देशद्रोही के रूप में प्रस्तुत करने में भी नहीं झिझक रहा था, क्या वे यह सहन कर पायेंगे की इस आतंकवादी हमले की ईमानदारी के साथ जांच हो और सत्य सामने आए। पता नहीं क्यूँ हमें इस पर विश्वास नहीं हो रहा? इसलिए की वह बयान जो अकेले जीवित बचने वाले आतंकवादी अजमल आमिर कसाब ने दिया है, वह बयान जो करकरे, सालसकर और अशोक काम्टे के साथ टाटा कुअलिस में मौजूद अकेले जीवित बचने वाले पुलिस कोन्स्टेबल अरुण जाधव ने दिया है, यदि वास्तव में ये सब एक साथ उस समय टाटा कुअलिस में सवार थे और यह जीवित बचा पुलिस कोन्स्टेबल उनके साथ था, तो उसके बयान की भी गहराई से जांच करने की आव्यशकता है। अब आप कहेंगे की इसमें संदेह की क्या गुंजाइश है की अशोक काम्टे, विजय सालसकर और हेमंत करकरे एक साथ इस कुअलिस में सवार थे, जिस में उनके साथ ४ अन्य पुलिसकर्मी भी थे अर्थात उस समय गाड़ी में मौजूद ७ लोगों में से १ जीवित बचा, जिस प्रकार पाकिस्तान से आए १० आतंकवादियों में से ९ मारे गए और एक जीवित बचा, यहाँ इन दोनों का भिन्न भिन्न मामलों में एक एक का जीवित बच जाना, एक हसीन इत्तेफाक भी हो सकता है अथवा परदे के पीछे कुछ और कारण भी हो सकता है? अपने इस क्रमबद्ध लेख की १०० वीं कड़ी तरतीब देते समय जब मैं एक एक मामले का विस्तृत विवरण पढ़ रहा था अथवा लिख रहा था तब कई बार लगा की संभवत: यह सत्य नहीं है की वे ७ व्यक्ति एक टाटा कुअलिस में सवार थे और उन में से १ कांस्टेबल अरुण जाधव जीवित बचा एवं ६ एक आतंकवादी इस्माइल की गोलियों का निशाना बन गए। इसलिए की अजमल आमिर कसाब के बयान के अनुसार सी एस टी पर गोलियां बरसाने के पश्चात् वे अपने आका चाचा ज़की उर रहमान लिख्वी के आदेशानुसार वे एक ऊंची बिल्डिंग की छत पर जाने की तलाश में बाहर निकले थे, जहाँ उन का चाचा मोबाइल फोन पर उन्हें किसी मीडिया हाउस का नंबर देने वाला था। जिस मास्टर माइंड ने उनको "गूगल" पर सर्च करके छोटी से छोटी जानकारी दी, बुधवार पैठ में कहाँ रबर की नाव से जाना है? ताज होटल में किस किस स्थान पर किस किस को जाना है? सी एस टी पर कब गोलियाँ चलाना है? क्या उस ने यह जानकारी नहीं दी? और यह अजमल आमिर कसाब जो स्वयं गूगल पर सर्च कर के केवल ३ मिनट में अपना छोटा सा घर तक ढूंढ लेता है, क्या वह सी एस टी के साथ अंजुमन इस्लाम एवं टाईम्स ऑफ़ इंडिया की बिल्डिंग नहीं ढूंढ सका? अगर उसे ऐसी बिल्डिंग की तलाश थी जो वीरान हो, जिस में उस समय कोई न हो तो अंजुमन इस्लाम की बिल्डिंग सी एस टी के उस गेट से निकलते ही उसकी आंखों के सामने थी, दिन में वहां स्कूल चलता है और रात में वहां कोई नहीं होता। अगर उसे ऐसी बिल्डिंग की तलाश थी जहाँ कुछ लोगों को बंधक बनाया जा सके ताकि अपनी मांगें सामने रखी जा सकें तो फिर टाईम्स ऑफ़ इंडिया की बिल्डिंग उचित थी, मीडिया हाउस भी था, जिम्मेदार लोगों की मौजूदगी की संभावना भी थी, वे पतली सी अनजान गली में क्यूँ घुस गए, उन्होंने तो अपने प्रत्येक क़दम पूर्व निर्धारित कार्यक्रमानुसार उठाया था फिर भी यदि उन्हें कामा हॉस्पिटल की छत पर पहुँचने का अवसर मिल ही गया तो फिर नीचे वापस आने की आव्यशकता क्यूँ पड़ गई जबकि उनकी तलाश पूरी हो चुकी थी, जहाँ से वे अपने चाचा से बात कर सकते थे? कसाब ने कहा की वहां उन पर पुलिस द्वारा गोलियाँ चलायी गयीं, जिसका उत्तर उन्होंने हैण्ड ग्रेनेड फ़ेंक कर दिया। गोलियाँ चलाने वाले पुलिस कर्मी कौन थे और हैण्ड ग्रेनेड से क्या कोई घायल हुआ? आतंकवादियों ने जिन दो गार्डस को गोलियाँ मारीं वो आतंकवादी तो मराठी बोल रहे थे एवं एक मराठी गार्ड को उन्होंने जीवित भी छोड़ दिया था, जिसने उनसे मिन्नतें कीं और कहा की उसकी पत्नी अस्पताल में भरती है इसी प्रकार यह रहम दिल आतंकवादी उस स्कोडा कार के यात्रियों को भी जीवित छोड़ देते हैं जिन से उन्होंने कार छीनी थी। उनके सामने से पुलिस की एक गाड़ी निकल जाती है किंतु उस गाड़ी पर गोलियाँ चलाने का निर्णय वे नहीं लेते, जिस गाड़ी में करकरे, सालसकर एवं अशोक काम्टे यात्रा कर रहे थे वह गाड़ी रूकती है, उससे कोई उतरता है, उतरने वाला कसाब और उसके सहयोगी इस्माइल पर गोलियाँ चलाता है। पहली गोली कसाब को लगती है, जिसके कारण ऐ के -४७ उसके हाथ से छूट कर नीचे गिर जाती है। दूसरी गोली भी उसके हाथ में लगती है अर्थात अब उसके ही बयान के अनुसार उसे कुअलिस गाड़ी में उसके साथी ने खींच कर सवार कराया था और गाड़ी से तीन लाशें करकरे, काम्टे और सालसकर की इस्माइल ने ही बाहर निकाली थीं अर्थात हमारे ३ बहादुर पुलिस अफसर एवं उनके साथ बैठे ४ सिपाही एक अकेले आतंकवादी इस्माइल को एक गोली भी नहीं मार सके जबकि उनमें से विजय सालसकर शार्प शूटर थे। वह एक व्यक्ति जिसने गाड़ी से नीचे उतरकर गोलियाँ चलाई और उन्हीं गोलियों से अजमल आमिर कसाब घायल हुआ, वह कौन था? इसलिए की कुअलिस से तीन लाशें सालसकर, काम्टे और करकरे को इस्माइल ने बाहर निकाला, बाक़ी तीन लाशों के नीचे दबा था, वह कांस्टेबल (अरुण जाधव) जिसने आंखों देखि कहानी बयान की हलाँकि उसकी आँखें लाशों के नीचे दबे होने के कारण क्या गाड़ी के फर्श और सीट के निचले भाग के अलावा भी कुछ देख सकती थीं? अर्थात कुल मिलाकर ७ लोग सवार, १ जीवित और ६ लाशें गाड़ी के भीतर, तब गाड़ी के बाहर आकर गोली चलाने वाला कौन.....? कसाब का पूर्ण बयान और उस पर विस्तृत विवरण तो १०० वीं कड़ी में ही हम अपने पाठकों की सेवा में प्रस्तुत कर सकेंगे किंतु अब वे सवाल अन्य मीडिया में उठने लगे हैं जिन्हें हमने पहले दिन से ही उठाना प्रारम्भ कर दिया था।

हम नहीं चाहते थे की वर्ष के प्रथम दिन फिर इन कड़वी बातों से शुरुआत करें, किंतु मजबूरी यह है की अभी उम्मीद की कोई किरन दिखाई नहीं देती। अब इन आंखों ने सुहाने सपने देखना छोड़ दिया है। हम वास्तविकता की इस पथरीली भूमि पर चलने के लिए मजबूर हो चुके हैं जहाँ प्रत्येक क़दम पर उंगलियाँ घायल हुई जाती हैं। यह नववर्ष उन आंखों में सुहाने सपने लेकर आसकता है जिनके लिए हर दिन ईद का दिन और हर रात दीपावली की रात हो सकती है। हम तो चिंतित हैं इस बात के लिए की क्या अब मालेगाँव की जांच का सिलसिला आगे बढ़ पायेगा? हाँ आज के समाचार पत्रों में दयानंद पाण्डेय के अपराध स्वीकार करने का समाचार है और मुंबई ऐ टी एस को इस स्वीकार्यता से बहुत सी उम्मीदें हैं परन्तु यह समाचार उस प्रमुखता के साथ समाचार पत्रों में स्थान प्राप्त नहीं कर सका, जितना महत्त्वपूर्ण यह समाचार था और न ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इसे कोई प्रमुखता दी। भीतरी पृष्ठों में एक या दो कॉलम का स्थान ही इस समाचार को प्राप्त हो सका। हमने ज़रूर इस समाचार को पृष्ठ १ पर मुख्य हेडिंग के साथ प्रकाशित किया। इस लिए की हमारी दृष्टी में मालेगाँव जांच केवल मालेगाँव के अपराधियों का पता लगाने की ओर आगे नहीं बढ़ रही थी, शहीद हेमंत करकरे ने आतंकवाद के एक बड़े नेटवर्क को सामने लाना प्रारम्भ कर दिया था। "समझौता एक्सप्रेस" बम धमाकों का राज़ भी बस खुलने ही वाला था। मक्का मस्जिद बम धमाकों की जांच दोबारा शुरू करने की उम्मीद पैदा हो गई थी। नांदेड में बम बनाने की कोशिश में बजरंग दल के जो कार्यकर्ता मारे गए थे, वह फाइल भी पुन: खोल दी गई थी। संघ परिवार के सदस्य इन्द्रेश के पाकिस्तान की गुप्तचर एजेन्सी आई एस आई से संबंधों की बात सामने लाइ जा चुकी थी। इन्द्रेश की हत्या का षड़यंत्र बेनकाब हो चुका था अर्थात हेमंत करकरे के नेतृत्व में ऐ टी एस आतंकवाद के इतने बड़े नेटवर्क का पर्दाफाश करने जा रहा था जिससे भारत में आतंकवाद की जड़ों तक पहुँचा जा सकता था और यह विश्वास होने लगा था की अगर यह जांच अंत तक पहुँच गई तो भारत से आतंकवाद और आतंकवादियों का नाम व निशान मिटाया जा सकता है।

क्या नववर्ष में ऐसा हो पायेगा? नहीं कोई उम्मीद नहीं.....किंतु हम मायूस भी नहीं हैं, जद्दोजहद का सिलसिला चलता रहेगा। हाँ, नववर्ष में एक कार्य और किया जाना चाहिए यदि भारत की आबादी हिंदू और मुस्लमान सभी उसे पसंद करें तो यह वर्ष शान्ति व एकजुटता की स्थापना के लिए सदेव याद किया जायेगा। साम्प्रदायिकता के इस दौर की शुरुआत हुई ६ दिसम्बर १९९२ को बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद से! २५ दिसम्बर २००८ को मैं अपनी अयोध्या यात्रा के दौरान महंत सत्येन्द्र दास और बाबा भाउनाथ व पंडित जुगल किशोर जी से हुई भेंट को गत वर्ष की उपलब्धि कह सकता हूँ। उनके विचार एक ऐसे भारत की पुनर्स्थापना में मील के पत्थर का दर्जा रखते हैं और हम फिर एक बार अपने देश की गंगा-जमनी संस्कृति के दौर को वापस ला सकते हैं। शायद भारतीय नागरिकों की बड़ी आबादी को इस वास्तविकता की जानकारी नहीं है की बाबरी मस्जिद की शहादत से पूर्व इसी स्थान पर १३ मंदिरों को भी तोडा गया था। यदि भारत के मुस्लमान अयोध्या के साधू संतों से मिल कर यह निर्णय कर लें की बाबरी मस्जिद-रामजन्म भूमि का निर्णय तो आता रहेगा, अयोध्या के महंत उन स्थानों की निशानदेही करें जहाँ मन्दिर तोड़ दिए गए और मुस्लमान भाई फिर से उन स्थानों पर भव्य मन्दिर बनाने में अपना सहयोग देने का निर्णय लें। इसके साथ ही नववर्ष में एक निर्णय और लें की अब भारतीय नागरिक मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले को भारत पर हुआ आतंकवादी हमला मानते हुए इस के सत्य को सामने लाने के लिए अपनी जान लड़ा देगा, यदि यह हमला पाकिस्तान ने किया है तो इस बार एक नहीं असंख्य वीर अब्दुल हमीद उस कहानी को दोहराएंगे और यदि उस हमले में कुछ ऐसे आतंकवादियों का हाथ है जिनके चेहरे अभी हमारी निगाहों के सामने नहीं आए हैं तो भारत की १०० करोड़ जनता उन्हें सामने भी लाएगी और ऐसा दंड देगी की फिर उन्हें इस देश में कहीं भी मुहँ छुपाने का स्थान नहीं मिलेगा।

3 comments:

wasi bastavi said...

जनाब श्री अजीज साहेब,

हम आपके नियमित पाठक हैं. हम रोजन सहारा उर्दू पढ़ते हैं. हम एक मशविरा देना चाहते हैं.

आप यहाँ ब्लॉग पे लिखते समय ढेर सारे अनुच्छेदों में लिखा करें. जब पाराग्राफ्स ज्यादा हों तो पड़ने में सुविधा होती हैं. अन्यथा सब खल्त मल्त दिखता है.

धन्यवाद.
आपका ही,
वसी बस्तवी

260, sabarmati hostel, JNU,
New Delhi -110067,

Phone: 9873711908
Email: wasijnu@gmail.com

Umar Kairanvi said...

आज ताखीर के लिए माजरत पढा, बहुत अच्छा लगा, उर्दू اردو में भी बलाग हो ता बताईये
उमर कैरानवी
عمر کیرانوی

Abdullah Abul Kalam said...

Urdu has little impact. After all, it goes to a very limited reading public. What people and the government take notic of is the English media. Launch an English daily or a channel.