जंग पाकिस्तान से आवयशक है या आतंकवाद से!
भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के हालात जनम ले चुके हैं। पाकिस्तान में इस्लामाबाद, रावलपिंडी और लाहोर में गश्त तेज़ कर दी गयी है, हवाई अड्डों और विभिन्न मुख्य स्थानों पर हाई एलर्ट की घोषणा कर दी गयी है, लोग घरों की छतों पर निकल आये हैं, अर्थात कुल मिलाकर पाकिस्तान में इस समय युद्ध की तैयारी दिखाई दे रही है और इधर हिंदुस्तान भी मानसिक रूप से पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध के लिए तैयार है, परन्तु क्या युद्ध ही समस्या का हल है?
प्रशन यह उठ्त्ता है की इस समय हमें आतंकवाद के विरुद्ध लड़ना है या पाकिस्तान के विरुद्ध लड़ना है..........,यदि पाकिस्तान के विरुद्ध लड़ना ही हमारे देश के समक्ष समस्याओं का निवारण है तो फिर यह युद्ध बिना देर किये होना ही चाहिए। पाकिस्तान को हम १९६५, १९७१ तथा उस के बाद कारगिल जंग में भी पराजित कर चुके हैं। आज हमारी सेना पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली है और पाकिस्तान कहीं भी हमारे बहादुर सैनिकों के सामने टिक सकेगा, इस की उम्मीद नहीं है। लेकिन क्या हमें अपने लिए इस युद्ध की आव्यशकता है या हम किसी और की लड़ाई लड़ने के लिए विवश हैं? कहीं ऐसा तो नहीं की अफगानिस्तान और इराक की तबाही के बाद जो युद्ध के बादल ईरान पर मंडला रहे थे और अमेरिका चाहते हुए भी ईरान पर यह जंग थोप नहीं सका, इस लिए की अंतर्राष्ट्रीय मत इस के विरुद्ध था, वही अमेरिका आज अपने लिए पाकिस्तान की आव्यशकता समाप्त हो जाने के बाद "इस्तेमाल करो और फेंको" की रणनीति पर अमल करते हुए पाकिस्तान को तबाह (विनाश) करने का इरादा रखता हो और मुंबई पर आतंकवादी हमलों के बाद उसे अपने उद्देश्य में सफलता का रास्ता नज़र आने लगा हो, इस लिए की आर्थिक बदहाली के शिकार अमेरिका को युद्ध की अत्यंत आव्यशकता है।
हमारे सामने पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध लड़ने का जो कारन है, वह मुंबई पर आतंकवादी हमलों के बाद जीवित पकडे गए पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब का इकबालिया बयान है। इस बयान में इस बात पर संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है की वह पाकिस्तानी है और जो पते उसने बाक़ी ९ पाकिस्तानी आतंकवादियों के बताये हैं, वह सभी पते भी सही होने ही चाहिए। आतंकवादियों के जो नाम और आयु उसने बताई है, उस पर संदेह नहीं किया जाना चाहिए। आई एस आई और लश्करे तैयबा से लेकर अलकाईदा तक जितने भी ठिकानों की जानकारी दी गयी है, वह भी होनी चाहिए। हम अपने पूर्व अनुभव की बिना पर यह कह सकते हैं की इन दस पाकिस्तानी आतंकवादियों के नाम व पते ही क्या, पाकिस्तान के १००-२०० आतंकवादियों के नाम पते भी यदि हमारी पुलिस और खुफिया एजेन्सी के पास हों तो उसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। उनकी रिकॉर्ड फाइल में सेंकड़ों पाकिस्तानी आतंकवादियों की फोटो भी हो सकती है, उनके काले कारनामों का विस्तृत रिकॉर्ड भी हो सकता है, इसलिए की ६१ वर्ष के कटु संबंधों के बाद और इस बीच सेंकड़ों आतंकवादी हमले हो जाने पर यदि हमारे पास इतना भी रिकॉर्ड न हो तो यह आश्चर्य की बात है। प्रति दिन हम पढ़ते रहते हैं की आई एस आई का कोई जासूस लखनऊ में पकडा गया, सहारनपुर में पकडा गया, खुफिया दस्तावेज़ भेजते हुए समझौता एक्सप्रेस में पकडा गया, महाराष्ट्र के किसी शहर में गिरफ्तारी हुई, बंगाल, राजस्थान या गुजरात के विभिन्न स्थानों से गिरफ्तारियां हुईं, अब इतनी गिरफ्तारियों के बाद नाम व पते और हुल्ये की कमी तो हो ही नहीं सकती।
हमारे कहने के तात्पर्य यह नहीं है की हमारी पुलिस जिन १० आतंकवादियों का विवरण प्रस्तुत कर रही है, वह मुंबई के आतंकवादी हमलों में शामिल नहीं थे या वह पाकिस्तानी नहीं हैं......यह सब के सब आतंकवादी हमलों में सम्मिलित हो सकते हैं और पाकिस्तानी भी हो सकते हैं परन्तु हमारी सरकार को पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध का निर्णय लेने से पहले यह सोचना होगा की यदि हमें आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध लड़ना है तो क्या पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध कर के हम आतंकवादियों के विरुद्ध लड़ा जाने वाला युद्ध जीत जायेंगे? क्या केवल १० आतंकवादियों ने ही मुंबई पर इतना बड़ा आतंकवादी हमला किया था? या और भी सेंकड़ों पाकिस्तानी आतंकवादी या उन के सहयोगी हमारी धरती पर मौजूद हैं? इस लिए की यह तो असंभव है, यहाँ शब्द लगभग प्रयोग करने की भी आव्यशकता प्रतीत नहीं होती की केवल १० आतंकवादी चाहे वह कितने भी प्रशिक्षण प्राप्त किये क्यूँ न हों, भारत पर इतना बड़ा आतंकवादी हमला कर सकते हैं? और ६१ घंटों तक हमारे प्रशिक्षित कामानदोज़ और जांबाज़ पुलिस का मुकाबला कर सकते हैं? जिस में शहीद हेमंत करकरे जैसे देश भक्त, अशोक काम्टे जैसा काबिल अधिकारी और विजय सालसकर जैसे शार्प शूटर भी शामिल हों। शार्प शूटर का अर्थ "अचूक निशानेबाज़"जिन्होंने अपने कैरिएर में बहुत से आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया हो, इस स्तर की पुलिस और सेना की उपस्थिति में केवल १० आतंकवादी तो इतनी तबाही नहीं मचा सकते। अभी तक हमारी पुलिस या खुफिया एजेंसियों ने लग भाग २५ रोज़ की दिन रात की मेहनत के बाद ऐसा कोई सुराग नहीं दिया की उन आतंकवादी हमलों में स्थानीय लोग भी सम्मिलित हैं या नहीं। हाँ पश्चिमी बंगाल के किसी व्यक्ति के नाम पर लिए गए सिम कार्ड्स की जानकारी अवश्य मिली परन्तु शायद इतना ही काफी नहीं है। एक बहुत बड़ा नेटवर्क होना चाहिए और वह भी उन आतंकवादियों जिन्होंने इन १० आतंकवादियों की सहायता की हो। इसलिए की बुधवार मछवारों की बस्ती है, समुन्दर का मोई सुनसान किनारा नहीं और वह ऐसी जगह भी नहीं है, जहाँ सैलानी अपनी निजी नाव से आते जाते रहते हों। और स्थानीय लोग इस बात पर ध्यान ही न दें की आखिर एक ही आयु के १० नव युवक इतने सामान के साथ कहाँ से आरहे हैं और क्यूँ अपनी रबर की नाव को लावारिस छोड़ कर जा रहे हैं? गूगल अर्थ पर सर्च कर के किसी भी स्थान पर पहुँच जाना, कम्पयूटर स्क्रीन पर तो ३ मिनट का काम हो सकता है परन्तु सच्चाई यह है की सेंकड़ों मीलों तक फैले समुन्दर में इस छोटे से क्षेत्र को खोजना असंभव है जब तक की चप्पे चप्पे से परिचित कराने में किसी व्यक्ति ने उन की सहायता न की हो या फिर वह स्वयं उस स्थान से इस हद तक परिचित न हों की भटक जाने की गुंजाईश न रहे। हमने सामान्यत: यह देखा है की वर्षा के दिनों में अगर रास्ते पर पानी भर जाए तो क्षेत्रीय लोग ही यह अच्छी तरह से जान सकते हैं की कहाँ पैर रखा जाए और कहाँ नहीं, कहाँ गड्ढा है और कहाँ ज़मीन, समुद्र के तटीय क्षेत्र में ऐसी बढ़िया सड़क नहीं होती की नाव से उतर कर सीधे मैन रोड पर आजायें और टैक्सी पकड़ लें, न तो वहां तीर का नीशान होता है और न ही इस बात का इशारा होता है की समुन्द्र के इस किनारे से मैन रोड कितने मीटर की दूरी पर है? इस सच्चाई का विश्लेषण हमने स्वयं समुन्द्र में नाव के द्वारा जा कर किया है और बुधवार के तटीय क्षेत्र का भी गहराई से निरिक्षण किया है इसलिए या तो कुछ लोग उनके सहायक अवश्य रहे होंगे या फिर अजमल आमिर कसाब का यह बयान झूठा है की वह उसी दिन मुंबई पहुंचा, अपने साथियों के साथ टैक्सी पकड़ी और सी एस टी स्टेशन पहुंचा, हो सकता है वह झूठ बोल रहा हो, वह अपने आतंकवादी साथियों के साथ काफी पहले भारत आ चूका हो उसने चप्पे चप्पे की जानकारी स्वयं हासिल की हो या उस के साथियों ने ध्यानपूर्वक हर उस जगह का निरिक्षण किया हो जहाँ जहाँ उन्होंने वारदात की। अजमल आमिर कसाब के बयान के अनुसार ही वह होटल ताज के कमरा नंबर -६३० में ठहरा था और यह चार दिनों तक उस के लिए बुक था। यह कब की घटना है, घटना से कितने दिन पहले की बात है, क्या उस ने यह बताया की उसके साथी अर्थात बाक़ी ९ आतंकवादी कहाँ कहाँ ठहरे और वह कब कब आये? क्या पुलिस ने होटल ताज और ओबेरॉय का अतिथि रजिस्टर ज़ब्त किया? क्या इस बात की जानकारी प्राप्त की की हमले के कुछ दिन पहले और उस समय कौन कौन लोग होटल में ठहरे थे, उनके नाम पते क्या क्या हैं, क्या उनके द्वारा की गयी टेलीफोन काल्स का रिकॉर्ड मौजूद है? दोनों होटलों में डयूटी पर तैनात लोग कौन कौन थे? उनके नाम पते क्या क्या हैं? उनके द्वारा किये गए और प्राप्त किये गए फ़ोन काल्स का रिकॉर्ड क्या है? उल्लेखनीय है की यह सारी आतंकवादी गतिविधियाँ ऐसे व्यस्त स्थानों पर हुई जहाँ बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे, अभी तक कितने प्रत्यक्षदर्शी पुलिस के पास हैं जो इस बात की पुष्टि करें की उन्होंने आमिर कसाब और उस के साथियों को वास्तव में इस स्थान पर देखा जो बयूरा अजमल आमिर कसाब ने बताया और देखा है तो कब और किस परिस्थिति में देखा? यह प्रशन हम इस लिए कर रहे हैं की नरीमन हाउस के आस पास रहने वालों ने यह जानकारी दी थी की हमले के कुछ दिन पहले वहां कुछ अज्ञात चेहरे नज़र आरहे थे जो विदेशी नज़र आते थे, उनकी मुराद गोरों से थी, अब यहाँ यह कहने की आव्यशकता नहीं है की हिन्दुस्तानी व पाकिस्तानी देखने में एक ही जैसे लगते हैं। क्या हमारी गुप्तचर एजेंसियों के पास ऐसी कोई जानकारी है की वह कौन लोग थे? क्या हमारी पुलिस ने ऐसे कुछ लोगों को गिरफ्तार किया है या वह भी केन हेवूड़ की तरह अपने अपने देश के लिए फरार होने में सफल हो गए, जैसे इंडियन मुजाहिदीन के नाम से ई मेल भेजे जाने के बाद वह फरार हो गया था? नरीमन हाउस में १०० किलो गोश्त अजमल आमिर कसाब और उस के साथी ९ पाकिस्तानी आतंकवादियों की मेहमान नवाजी के लिए किस के द्वारा मँगवाया गया था? उस आतंकवादी का पूरा इकबालिया बयान हमारे पास मौजूद है जो पुलिस द्वारा लिखा गया और उसे पढ़कर सुनाया गया जिस को उस ने सही ठहराया। हम अपनी १०० वीं किस्त में यह विस्तृत बयान प्रकाशित करने जा रहे हैं, उस ने तो बताया था की वह फज्र की नमाज़ से पहले उठकर इबादत करता था और कुरान की तिलावत भी करता था, फिर क्या यह लोग शराब भी खूब पीते थे? इस लिए की नरीमन हाउस में १०० किलो गोश्त के साथ बियर की बोतलें भी मंगायीं गयीं। अब दोनों में से कोई एक बात तो झूठ होनी चाहिए। कौन सी बात झूठी है और कौन सी बात सच्ची है, यह पुष्टि तो पुलिस के द्वारा ही संभव है। क्या उन्होंने यह पुष्टि कर ली की ७ घंटे तक नरीमन हाउस से वाशिंगटन, न्यूयार्क और इस्राइल टेलीफोन के द्वारा कांफ्रेंस से आतंकवादियों से क्या बात होती रही और इतनी लम्बी बातचीत का कारण.........ऐसी बहुत सी बातें हैं जिनकी पुष्टि के बिना अंतिम निर्णय तक नहीं पहुंचा जा सकता।
हमें यह लेख आज नहीं लिखना था, लेकिन देश की स्थिति खतरनाक सीमाओं को पार कर जाएँ और हम विशेष प्रकाशन की प्रतीक्षा में बैठे रहे यह भी संभव नहीं है। इसलिए १०० वीं किस्त तो शहीदे वतन हेमंत करकरे की शहादत के चालीसवें दिन ही प्रकाशित की जायेगी जिस में कम से कम ऐसे १०० प्रशन होंगे जिन पर अभी पुलिस खामोश है और जिनके उत्तर की प्रतीक्षा है। इस बीच जब भी लगा की कलम उठाना ज़रूरी है तो अपने कर्त्तव्य की जिम्मेदारियों को अनुभव करते हुए हम बराबर लिखते रहेंगे।
आज दिन भर जिस तरह की खबरें टेलीविजन पर दिखाई जाती रही उससे लगता था की हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच युद्ध किसी भी समय हो सकता है। इस लिए हमें एक दिन की भी प्रतीक्षा करना उचित नहीं लगा और हमने आवयशक समझा की किसी भी आलोचना की परवाह किये बिना जो प्रशन हमारे मस्तिष्क में हैं, सम्मानपूर्वक और नम्रतापूर्वक अपनी सरकार के सामने रखना आवयशक समझा, ताकि जब वह युद्ध का फैसला करे तो इन बातों को भी ध्यान में रखें.....
२६ नवम्बर २००८ हिंदुस्तान की तारिख का वह काला दिन था जब हमारे देश पर आतंकवादी हमला हुआ। इस आतंकवादी हमले में लिप्त ९ पाकिस्तानी आतंकवादी मारे गए और एक जीवित पकडा गया। हम इस आधार पर जंग करने का इरादा रखते हैं, ठीक है पाकिस्तान से जंग की जाए मगर आतंकवाद को मिटाने के लिए उन आतंकवादियों को भी तलाश करना होगा जिनके सहयोग के बिना हिंदुस्तान पर यह आतंकवादी हमला नहीं हो सकता था। कौन हैं वह? पाकिस्तान की खुफिया एजेन्सी आई एस आई से किसका रिश्ता है? क्या नरीमन हाउस जिसे हिंदुस्तान में मोसाद का अड्डा समझा जा सकता है, कौन हैं वे जिनका इस्राइल या मोसाद से सम्बन्ध है, हम इस समय इस बहस में नहीं पड़ना चाहते की हेमंत करकरे को किसने वहां भेजा व परिस्थितियाँ क्या थीं? मगर यह बात तो अपनी सरकार के समक्ष रखी जा सकती है की अपनी जांच में हेमंत करकरे आई एस आई के साथ किसके रिश्तों कोका उल्लेख कर रहे थे और अभी तक की सूचनाएँ इस्राइली गुप्तचर विभाग यानी मोसाद के साथ हिंदुस्तान में किन लोगों के साथ होती रही है। इसे हिंदुस्तान का ९/११ कहा जा रहा है। हमारे सामने इस समय हिंदुस्तान के ७/११ अर्थात मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट का विवरण भी है। न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड टावर पर आतंकवादी हमला अर्थात ९/११ का विवरण भी है और वर्तमान २६/११ का विवरण भी है। सारी घटनाओं की तुलना तो हम अपने इस लेख की १०० वीं किस्त में ही करेंगे। मगर इस समय इतना ज़रूर लिख देना चाहते हैं ताकि हमारी सरकार जंग का फैसला करने से पहले इस पहलु पर भी विचार कर ले की वर्ल्ड ट्रेड टावर पर हुआ हमला अलकायदा का नहीं, सी आई ऐ और मोसाद के षड़यंत्र का परिणाम थी, जिसका विवरण हमने पिछले वर्ष लगभग एक महीने तक अपने लगातार लेख में प्रकाशित किया था और यह तमाम रिपोर्टें उसी ज़मीन (अमेरिका) के रहनेवालों की शोध का परिणाम थीं। हमारे पास अभी भी ५०० से अधिक पृष्ठों पर आधिरत ऐसी रिपोर्टें मौजूद हैं जो यह प्रमाणित करती हैं की ९/११ एक खतरनाक षड़यंत्र था। क्या २६/११ के पीछे भी इन ही शक्तियों की हमारी धरती पर एक ऐसी ही खतरनाक साजिश है। अब इस के स्पष्टीकरण की तो कोई ज़रूरत नहीं की इराक को तबाह करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने जो बहाना तलाश किया था बाद में खुद उन्होंने ही यह स्वीकार भी कर लिया की यह निर्णय गलत था। कहीं ऐसा न हो की पाकिस्तान पर हमले के बाद हमें भी ऐसी ही कुछ जानकारी मिले और हमें यह एहसास हो की जल्दबाजी में हमने सही निर्णय नहीं लिया। हाँ!मगर इसका अर्थ यह नहीं की पाकिस्तान की घेराबंदी न की जाए। उसे अपने यहाँ चल रहे आतंकवाद के अड्डों को तबाह करने के लिए मजबूर न किया जाए, इससे यह न कहा जाए की वह अजमल आमिर कसाब को अपना शेहरी माने, यह सब तो ज़रूर किया जाए, उससे आतंकवादपर काबू पाने में मदद मिलेगी, परन्तु आतंकवाद पूर्ण रूप से समाप्त करने के लिए हमें ऐसे सभी पहलुओं पर भी ध्यानपूर्वक विचार करना होगा जिसका उल्लेख इस समय किया जा रहा है। कहीं ऐसा न हो की यह बदली हुई स्थिति उनके लिए उत्साहवर्द्धक बन जाए ,जो इन पाकिस्तानी आतंकवादियों के अतिरिक्त हिंदुस्तान में आतंकवाद के लिए जिम्मेदार हैं, अगर ऐसा हुआ तो पाकिस्तान के साथ जंग तो की जा सकती है उसे तबाह भी किया जा सकता है, परन्तु अपने देश में चल रहे आतंकवाद को समाप्त नहीं किया जा सकता।
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