Wednesday, December 10, 2008

अगर पुलिस को दिया गया कसाब का बयान सच्चा

तो फिर प्रज्ञा, प्रोहित और पाण्डेय के बयान भी सच्चे!

अजमल आमिर कसाब हमारी पुलिस के लिए बड़ी काम की चीज़ सिद्ध हो रहा है। एक तो उसकी याददाश्त बहुत अच्छी है जो पुलिस के लिए अतिमहत्त्वपूर्ण सिद्ध हो रही है। उसे पूरी कहानी ज़बानी याद है। कौन कौन लोग उस के साथ थे, वे सब कहाँ के रहने वाले थे, उनके पते क्या क्या थे, कब-कब, कहाँ-कहाँ, किस-किस को, किस-किस ने, किस-किस प्रकार की ट्रेनिंग दी, उसे सब याद है, जगहें भी और लोग भी। साथ ही वह पुलिस के लिए इतना को-ओप्रटिव भी है की पुलिस के प्रत्येक प्रशन का खुशी खुशी उत्तर देने के लिए हर समय तैयार रहता है। वह हमारी पुलिस से इतना घुल मिल भी गया है की कब उसे अपनी माँ की याद आती है और कब माँ को चिट्ठी लिखना चाहता है, एक हमदर्द अच्छे मित्र की तरह अपनी प्रत्येक इच्छा उनके सामने रखता है। यहाँ तक की अमिताभ बच्चन की कौनसी फ़िल्म देखना चाहता है, यह बताने में भी उसे कोई संकोच नहीं होता और हमारी पुलिस भी इतनी दयालु है की उस के हर आराम का ध्यान रखती है। अर्थार्त वह व्यक्ति जो ६० घंटों तक भारत पर किए गए हमले की प्रमुख कड़ी, हमारी पुलिस, फौज, भारत सरकार, महाराष्ट्र सरकार और लगभग १०० करोड़ जनता के लिए सब से बड़ा सिरदर्द बना रहा, वह आज हमारी पुलिस के लिए सब से बड़े सुकून का कारण बन गया है। पुलिस के प्रत्येक प्रशन का उस के पास उत्तर है। केवल इतना ही नहीं की उसने ट्रेनिंग कब-कब, कहाँ-कहाँ ली, उसे इस बात की भी पूर्ण जानकारी है की कुबेर पर कब और कहाँ कब्जा किया, कहाँ मारा, किस-किस को मारा, कहाँ सटेलाईट फ़ोन छूटा, कहाँ से नाव ली, किस प्रकार ५ ग्रुपों में बट कर ताज, ओबेरॉय, सी एस टी और नरीमन हाउस पहुंचे, किस ग्रुप में कौन था, वह इस बात को भी स्वीकार करता है की ऐ टी एस चीफ हेमंत करकरे पर छुप कर हमला करने वाला वही है। वह यह भी बताता है की ९ एम् एम् वाली पिस्टल उस ने पाकिस्तान से प्राप्त की थी और करकरे पर गोलियां उस ने ऐ के ४७ या ५६ से नहीं बल्कि पिस्टल से चलाईं। परन्तु जब हमारा जांबाज़ सिपाही तुकाराम उसे जीवित पकड़ने के प्रयास में मारा जाता है तो उस पर वे ऐ के ४७ से हमला करता है अर्थार्त हेमंत करकरे के बारे में इस प्रकार यह पुष्टि हो भी जाए की उनकी मृत्यु किस गोली से हुई और यदि हत्या में ऐ के ४७ या ५६ नहीं ९ एम् एम् की गोली होने के प्रमाण मिलें तो अपराधी का इकबालिया बयान प्रस्तुत है, किसी और पर संदेह करने की आव्यशकता ही नहीं है और अब यह प्रशन तो उठाना ही नहीं चाहिए की शहीद हेमंत करकरे की मृत्यु किस प्रकार हुई और उन की मृत्यु के लिए कौन जिम्मेदार है, इस लिए की अपराधी स्वयं अपना अपराध स्वीकार कर रहा है की उस ने ही गोलीयाँ चलाईं, उस ने ही तीनों अपराधियों को गाड़ी से निकाल कर बाहर फैंका, उस ने ही गाड़ी पर कब्जा किया। बस इस बयान में थोडी सी कमी यह है की उस टाटा कुअलिस में मरने वालों की संख्या ६ थी और कुल ७ लोग सवार थे, जिन में ४ कांस्टेबल थे, तीन अधिकारीयों में ऐ टी एस चीफ हेमंत करकरे, इनकाउन्टर स्पेशलिस्ट विजय सालसकर और अशोक काम्टे। इस हमले में बच जाने वाले एक मात्र सिपाही का नाम जाधव था, जिस को बाजू में गोली लगी, और अब वह इलाज करा रहा है। सम्भव है अब कसाब यह भी बता दे की शेष तीन पुलिस कांस्टेबल जो हेमंत करकरे के साथ शहीद हुए, वह उस के दूसरे साथियों की गोलियों से मारे गए जो अब जीवित नहीं बचे हैं।

इस कहानी के अनुसार पाकिस्तान पूर्ण रूप से इन हमलों के लिए जिम्मेदार है। उसी धरती पर षड़यंत्र रचा गया। ट्रेनिंग देने वालों से लेकर मंसूबा बनाने वालों तक सबका सम्बन्ध इसी धरती से है। हमें अत्यन्त दुःख है की पाकिस्तान द्वारा ट्रेनिंग प्राप्त किए केवल १० आतंकवादी ६० घंटों तक हमारी पुलिस और फौज का मुकाबला करते रहे। हमें इस बात का भी दुःख है की ताज और ओबेरॉय जैसे ७ स्टार होटलों का सुरक्षा प्रबंधन इतना ख़राब था की ४ और २ के ग्रुपों में आतंकवादियों ने इतने भारी हथियारों के साथ प्रवेश किया था और किसी को उन की जानकारी भी नहीं मिली। ६० घंटों तक यह आतंकवादी हमारी पुलिस और फौज का मुकाबला करते रहते हैं और साथ ही इस मुकाबले के बीच अपने स्वामियों से टेलीफोन पर बात कर के आदेश भी लेते रहते हैं। अर्थात उन के पास इतना समय रहता था की वह टेलीफोन पर बात करते रहे, हथियार चलाते रहे और हमारे सजग कामांडोस इस अवसर का लाभ उठा कर भी उन पर हमला न कर सके। केवल फोटो और इन्टरनेट पर गूगल की वेबसाईट देखने के बाद आतंकवादी मुंबई के कठिन नक्शों और ताज और ओबेरॉय की बिल्डिंग के अन्दर के भागों से इतना अवगत हो जाते हैं की उन्हें कहीं भी पहुँचने में और पोजीशन लेने में कोई कठिनाई नहीं आती। शायद उन्हें यह भी पता होता है की खुफिया कैमरों की पकड़ से वे किस प्रकार बच सकते हैं या कम से कम उन की पकड़ में आ सकते हैं। ऐसी दवाइयाँ भी उन के पास होती हैं की ६० घंटों तक न उन्हें कुछ खाने की आव्यशकता होती है और न शौच की, न सोने की। लगातार जागते रहने के लिए तो बहरहाल वे कुछ दवाइयाँ लेते रहते हैं परन्तु शेष बातों के लिए उन्होंने कौनसी दवाइयाँ लीं यह अभी तक कसाब ने नहीं बताया है। हो सकता है कोई बड़ा डॉक्टर उसे ऐसी दवाइयों के नाम भी बता दे की यह भी सम्भव नज़र आने लगे की बिना खाए और बिना आव्यशाक्तों से निपटे किस प्रकार ६० घंटों तक मोर्चे पर डाटा रहा जा सकता है।

हमारी मजबूरी है की हम १०० करोड़ भारतियों के पास इस आतंकवादी की प्रत्येक बात को विश्वसनीय मानने के अलावा कोई चारा नहीं है क्यूंकि १० आतंकवादियों में केवल अकेला वही जीवित है और शेष जीवित हो कर अब उस की किसी बात को झूठा करार नहीं दे सकते और हमारी पुलिस को इस के बयान की सच्चाई जानने की बिल्कुल आव्यशकता है ही नहीं, इस लिए की उन्हें भरोसा है की कसाब जो बोलेगा, सच ही बोलेगा और सच के अतिरिक्त कुछ नहीं बोलेगा। इस लिए वह उसे लाइ डिटेक्टर टेस्ट, पोलिग्रफ्य टेस्ट, नार्को टेस्ट जैसी पीड़ा दायक प्रक्रियाओं से नहीं गुज़रना चाहते, यह अत्याचार तो उन्होंने साध्वी प्रज्ञा, दयानंद पाण्डेय और प्रोहित जैसे महान लोगों पर किया था और इतना किया था की हमारे भूतपूर्व गृहमंत्री व उपप्रधानमंत्री या यूँ कहिये की प्रधानमंत्री बन्ने के इच्छुक लाल कृष्ण अडवाणी अत्यन्त बेचैन हो गए और उन्होंने इस समस्या पर प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह से मिलना आवयशक समझा परन्तु संभवत: लाल कृष्ण अडवाणी जी के सहदेशवासी होने का लाभ प्राप्त हुआ कसाब को......यह तो आप जानते ही हैं की अडवाणी जी भी पाकिस्तान के संध प्रांती में ही जन्मे थे अत: हमारे पुलिस वालों ने इस बात का ध्यान रखा होगा की जो त्रुटी पहले हो चुकी है, वह अब न हो। येही कारण है की अब तक कोई ऐसी बात सुनने में नहीं आई की कसाब ने पुलिस के किसी भी अत्याचार व उत्पीडन का शिकवा किसी से किया हो। अर्थात उस के साथ पुलिस ने किसी प्रकार का अत्याचार नहीं किया।

कसाब बड़ा धार्मिक व्यक्ति है। आधी रात के बाद उठ कर तहज्जुद की नमाज़ पढता है और फिर सोता नहीं, फज्र की नमाज़ पढने के बाद नाश्ते के समय तक ट्रेनिंग में व्यस्त रहता है। कुरान व हदीस की बातें भी अच्छी तरह जानता है। मतलब यह संदेश देने की कोशिश भी कर रहा है की हत्या और विनाश दीनदार मुसलमानों का काम है जो कुरान व हदीस और उस के संदेश को अच्छी तरह समझते हैं।

हमारा मीडिया विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पुलिस के द्वारा उपलब्ध कराये गए हर बयान को अत्याधिक प्रभावी और सुंदर ढंग में प्रस्तुत करने की निपुणता रखता है। इस का नाटकीय चित्रण इतना मज़बूत होता है मानो अब किसी आतंकवादी के बयान को पेश नहीं कर रहे हैं बल्कि आंखों देखा हाल एक विडियो फ़िल्म के द्वारा पेश करने का प्रयास कर रहे हैं। सम्भव है की पुलिस इस प्रचार को अपने लिए बड़ा उपयोगी समझती हो और ऐसा मीडिया जो जांच के बजाय पुलिस के द्वारा सुनाई गई कहानी को महत्त्व देना उस का प्रचार करना ही अपने कर्तव्य को निभाना समझता है, सम्भव है कल अपनी भूल का एहसास करे, इस लिए की अदालत में इस बयान का कोई महत्त्व नहीं है। पुलिस की मौजूदगी में किसी भी अपराधी का दिया गया बयान अदालत में कोई महत्त्व नहीं रखता और यदि पाठक और भारत सरकार हमें अपनी राय प्रकट करने की आज्ञा दें तो पुलिस से अत्याधिक क्षमा के साथ हम केवल इतना कहना चाहेंगे की कम से कम पुलिस ऐसे मामलों में कुछ अच्छे स्क्रिप्ट राइटर्स की सेवाएँ प्राप्त किया करे और पहले कहानी के सभी पक्षों पर विचार कर लिया करे। इस लिए की भारतीय जानता इतनी ज़हीन है की उस ने दुर्घटना के तुंरत बाद अपने पहले प्रदर्शन में ही संदेश दे दिया था और शहीद हेमंत करकरे की मृत्यु की सच्चाई क्या है, इस के लिए एक कसाब का बयान तो क्या हजारों क़साबों का बयान बेकार है क्यूंकि शहीद हेमंत करकरे की पत्नी ने जो पहली प्रतिक्रिया प्रकट की, वह हर भारतीय को समझाने के लिए काफ़ी है की उन की दृष्टी में अपराधी कौन कौन हैं?

अब रहा प्रशन रोजनामा राष्ट्रीय सहारा, उस की रिसर्च टीम तथा पाठकों के द्वारा दी जाने वाली महत्त्वपूर्ण सूचनाओं के द्वारा तथ्यों को सामने रखने का तो इस में कहने केलिए अभी बहुत कुछ शेष है, जिस को हम बहुत जल्द अपने पाठकों और भारत सरकार की सेवा में प्रस्तुत करने का इरादा रखते हैं। इस के पश्चात पुलिस स्वयं ही इस कहानी को झूठा करार देने के लिए मजबूर हो सकती है और यदि कुछ क्षणों के लिए हम इस कहानी को सच्चा मान भी लें तो पुलिस के सामने सब से बड़ी कठिनाई यह होगी की अब तक दिए गए सभी इकबालिया बयानों को उसे सच्चा मानना पड़ेगा। पुलिस की मौजूदगी में यानी ऐ टी एस हेमंत करकरे और उसकी टीम की मौजूदगी में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टनेंट कर्नल प्रोहित, दयानंद पाण्डेय और मेजर उपाध्याय ने जो कुछ कहाँ वह सब भी सच्चा माना जायेगा, क्यूंकि यदि एक इतने खतरनाक आतंकवादी को हमने सच्चा मान लिया तो वह जिन्हें शहीद हेमंत करकरे आतंकवादी सिद्ध कर रहे थे उन सब के बयानों को झूठा कैसे साबित किया जायेगा। यदि पुलिस के सामने बयान की गई यह कहानी सच्ची है तो फिर साध्वी प्रज्ञा सिंह, प्रोहित और दयानंद पाण्डेय के सभी बयान भी सच्चे और जब इन्हें सच्चा मानें तो बात प्रवीन तोगडिया और लाल कृष्ण अडवाणी तक भी पहुँच सकती है। मतलब जहाँ से चले थे वहीँ पहुँच गए। बहरहाल अब यह निर्णय तो पुलिस और उत्तरदायी मीडिया को ही करना होगा की वह केवल उस एक आतंकवादी की बात को सच मान कर पिछले तमाम आरोपियों के पुलिस को दिए गए बयानों को सच्चा मान लें या फिर इस की हर बात को बकवास करार दे कर हर बात की नए सिरे से जांच ईमानदारी से करें। यदि कसाब को अपराधी और इसके सभी साथी आतंकवादी साथियों को भारत पर हुए आतंकवादी हमले का जिम्मेदार करार दे कर जांच बंद कर दी गई और परदे के पीछे के वास्तविक अपराधी सुरक्षित रह गए तो अत्याधिक दुःख के साथ हमें यह कहना पड़ेगा की भारत में आतंकवाद की समाप्ति नहीं होगी। वह इसी प्रकार पोषित होता रहेगा। आतंकवादी मानसिकता, नए नए चेहरे, नए तरीके, नए नए बहाने तलाश करती रहेगी।

हम अपनी बात के स्पष्टीकरण के लिए ऐसे कुछ आरोपियों के इकबालिया बयान कल और उस के बाद के प्रकाशनों में अपने पाठकों की सेवा में पेश करेंगे और फिर उन से उन की राय मांगेंगे की यदि कसाब के बयान को सच्चा मान लिया जाए तो फिर प्रज्ञा, प्रोहित और दयानंद जैसों के बयानों को सच्चा क्यूँ नहीं माना जाए.........