Sunday, December 28, 2008

अमेरिका से आने वाली रिपोर्टों ने कहा

९/११ के पीछे सी आई ऐ और मोसाद,

क्या २६/११ के पीछे भी?

२३ दिसम्बर की रात्री जब मैं "टाईम्स ऑफ़ इंडिया" की संवाददाता से बात कर रहा था उससे कुछ ही देर पूर्व "बी बी सी" ने भी मुझसे बात की थी और १५ मिनट के इस इंटरव्यू में मैंने जो कहा लगभग वही मैंने "टाईम्स ऑफ़ इंडिया " से भी कहा। "बी बी सी" का इंटरव्यू तो मैंने नहीं सुना, किंतु टाईम्स ऑफ़ इंडिया का समाचार मैंने पढ़ा।

राष्ट्र से वफादारी अथवा गद्दारी का प्रमाणपत्र बाँटने वाले यह अवसरवादी राजनीतिज्ञ कैसे हो सकते हैं? शायद बहोत बड़ी ग़लत फ़हमी का शिकार हैं वह.......अतिशीघ्र वह समय आने वाला है जब भारत की १०० करोड़ जनता उनसे राष्ट्र के प्रति उनकी वफादारी का प्रमाण मांगेगी। इसकी एक झलक तो २६ नवम्बर को आतंकवादी हमले के बाद मुंबई के "गेट वे ऑफ़ इंडिया" सहित देश के अन्य शहरों में देखने को मिल चुकी है, जब बिना भेदभाव हर धर्म के अनुयायी आतंकवाद के विरुद्ध तो एकजुट थे, किंतु राजनीतिज्ञों की कार्यप्रणाली पर उन्हें विश्वास नहीं था, इस लिए उनके लिए नाराज़गी भी प्रकट की गई।

हम जानबूझ कर अपने इस क्रमबद्ध लेख की १०० वीं कड़ी को एक दस्तावेजी रूप देना चाहते हैं ताकि समाचार पत्र के पृष्ठों के रूप में यह बरबाद न हो जाए। हम ऐसे एक-दो नहीं १०० से अधिक प्रशन उठाने जा रहे हैं, जिसका उत्तर भारत सरकार और प्रशनों के नाम पर नाक भौंह चढाने वाले विपक्ष को भी देना ही होगा। क्या चोर है उनके दिल में, जो प्रत्येक बार प्रत्येक प्रशन पर ज़मीन व आसमान सर पर उठा लेते हैं? अगर हम ने यह प्रशन उठाया की नरीमन हाउस की संदिग्ध गतिविधियों की जांच क्यूँ नहीं की गई? क्यूँ एक आतंकवादी के बयान को अत्याधिक अहमियत दी जा रही है की उस पर किसी भी पुष्टि की आव्यशकता नहीं? हमने येही बात २५ दिसम्बर को फैजाबाद में आतंकवाद के विरुद्ध और राजनीतिज्ञों की कार्यशैली पर आयोजित कार्यक्रम में कही, जिसकी अध्यक्षता अयोध्या मन्दिर के पुजारी सत्येन्द्र दास ने की एवं इस जनसभा में हनुमानगढ़ी के मुख्य पुजारी बाबा भाव दास भी थे। मुंबई पर आतंकवादी हमलों के सन्दर्भ में लगभग वह सभी प्रशन मैंने वक्ताओं एवं श्रोतागण के समक्ष रखे जो अधिकतर लिखता रहा हूँ अथवा जो १०० वीं कड़ी में उठाने जा रहा हूँ। मैंने तो येही महसूस किया की सभी ने मेरे प्रशनों का समर्थन किया। अयोध्या वह जगह है, जो भारत में महत्त्वपूर्ण हैसियत रखती है और जिस स्थान के नागरिक ने तमाम उंच नीच को बहुत करीब से देखा है। अगर वहां इन प्रशनों का समर्थन किया जाता है, तब फिर इन प्रशनों पर आपत्ति कैसी?

हाँ, मगर आज एक प्रशन मैं पहली बार उठा रहा हूँ और मुझे यह प्रतीत होता है की यह प्रशन चुनाव के बाद भी आज के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और प्रधानमंत्री पद के इच्छुक लाल कृष्ण अडवाणी जी का पीछा करता रहेगा।

और वह प्रशन यह है की " लाल कृष्ण अडवाणी जी ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के शपथपत्र में ऐसी कौन सी बात असाधारण महसूस की, जिसको लेकर वह व्याकुल हो गए और अपने चुनावी जनसभाओं में उसे इशु बनाया, सरकार से जवाब माँगा, प्रधान मंत्री से भेंट के लिए समय माँगा। सरकार ने उनके द्वारा उठाये गए प्रशन को इतना महत्त्व दिया की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम् के नारायणन को भेंट हेतु उनके घर भेजा। श्री नारायणन ने उन्हें विशवास दिलाया की अब साध्वी प्रज्ञा को प्रताडित नहीं किया जायेगा। इसके पशचात न्यायलय ने साध्वी प्रज्ञा को पुलिस कस्टडी में देने से इंकार कर दिया। प्रधानमंत्री ने लाल कृष्ण अडवाणी को भेंट का समय दिया..........."

चलिए इस पर अधिक चर्चा नहीं करते, कुछ समय के लिए मान लेते हैं की यह रूटीन कार्य रहा होगा। हलाँकि हमारी मौजूदगी में शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी साहब ने मुफ्ती अबुल बशर को उठाये जाने के प्रशन पर एवं उन्हें प्रताडित किए जान के सम्बन्ध में प्रधानमंत्री से भेंट की थी। हमने स्वयं इस भेंट के दौरान उसके भाई का पत्र भी प्रधानमंत्री की सेवा में प्रस्तुत किया था किंतु परिणाम कुछ नहीं निकला, जबकि साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, जिसके सम्बन्ध में शहीद हेमंत करकरे के नेतृत्व में ऐ टी एस ने बहुत ठोस प्रमाण एकत्रित किए थे वह मुफ्ती अबुल बशर के मुकाबले में इतने अधिक हैं की दोनों की तुलना भी नहीं की जा सकती।

लेकिन इस सम्बन्ध में सबसे बड़ा प्रशन यह है जिसका उत्तर भारत का इतिहास भी मांगेगा और आज की १०० करोड़ जनता भी भारत सरकार से इस प्रशन का उत्तर जानना चाहेगी की अंतत: लाल कृष्ण अडवाणी एवं भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मध्य इस प्रमुख भेंट में ऐसी क्या बात हुई जिसके बाद से सरकार का रुख बदल गया जो सरकार एवं कांग्रेस पार्टी मालेगाँव जांच के परिणाम को लेकर अपने राजनीतिज्ञ भविष्य के सम्बन्ध से बड़ी निश्चिंत दिखाई देने लगी थी, जिसे लगता था की बटला हाउस में भी हानि की बहुत हद तक भरपाई हो चुकी है और भारतीय जनता पार्टी मालेगाँव जांच में हुए रहस्योद्घाटन के बाद बगलें झाँकने के लिए मजबूर हो गई है, इसलिए वह चुनाव में मुकाबला नहीं कर सकती।

फिर हुआ २६ नवम्बर को मुंबई पर आतंकवादी हमला और उसके बाद संसद की कार्यवाही, यह दोनों ही भारतीय जनता के लिए एक नया अनुभव हैं। न तो कभी भारतियों ने यह देखा था की केवल १० आतंकवादी हमारे देश पर इतना बड़ा हमला करने में सफल हो जाएँ की ६१ घंटों तक हमारी पुलिस और सेना को उन्हें पराजित करने के लिए इन्तिज़ार करना पड़े और यह भी भारत के इतिहास में शायद पहले कभी नहीं हुआ की किसी एक आतंकवादी का बयान लगभग पूरी संसद के लिए अहम् का प्रशन बन जाए, सबके सब इसे उचित करार देने के लिए बुरी तरह अडे हों और किसी भी तरह की जांच का प्रशन उठाये जाने पर इस प्रकार आगबबूला हो जाएँ की प्रशन उठाने वाले को आतंकवादियों का समर्थक और देशद्रोही तक कहने लगें।

क्या भारत की जनता को यह जानने का अधिकार नहीं है की श्रीमती कोन्दोलीज़ा राइस जो भारत पर आतंकवादी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के दौरे पर आई, उनका यह प्रोग्राम कब तय हुआ था, अचानक इन हमलों के बाद या पहले से उन्हें इन्हीं तारीखों में आना था। उन्होंने ऑन रिकॉर्ड कही जाने वाली बातों के आलावा भी क्या कुछ ऐसा कहा जो सत्ता पार्टी और विपक्षी पार्टी दोनों के लिए एक विचार हो जाने के लिए विवश करने वाला था? श्री ब्राउन का भारतीय दौरा भी क्या पहले से ही तय था और ताज़ा वास्तुस्थिति या स्पष्ट रूप से कहें तो हिंद-पाक जंग के हालात कन्दोलिज़ा राईस और श्री ब्राउन की यात्रा का परिणाम हैं? क्यूंकि यह बात भारत के राजनीतिज्ञों को भी सूट करती है की यदि हिंद-पाक के बीच जंग हो जाए तो फिर कांग्रेस से कोई उसकी पाँच साल की उपलब्धियों पर हिसाब मांगेगा और न भारतीय जनता पार्टी से आतंकवाद के सवाल पर पूछताछ होगी, दोनों आगामी चुनावों में ऐसे प्रशनों से भयभीत हुए बिना उतर सकती हैं? और अमेरिका जिसे हथियारों को बेचने से अपने आर्थिक हालात को बेहतर बनाने की आव्यशकता है, इसके लिए हिंद पाक जंग एक वरदान सिद्ध हो सकती है और जिस तरह ९/११ अर्थात ११ सितम्बर २००१ को वर्ल्ड ट्रेड टावर में मोसाद ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका की एक विशेष भूमिका हो सकती है?

सम्भव है यह सब काल्पनिक हो। जांच के बाद सच्चाई कुछ और सामने आए परन्तु इस दृष्टीकोण से जांच किए जाने पर हमारे राजनीतिज्ञ भयभीत क्यूँ हैं? ऐसे प्रशनों पर उनके चेहरे का रंग उड़ जाने से ही यह सिद्ध होता है की कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है। (जिसे छुपाया जा रहा है)

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