कल रात लगभग 8 बजे उत्तर प्रदेश जिला बस्ती से फोन द्वारा मुझे बताया गया कि यहां साम्प्रदायिक दंगे की स्थिति है बात बड़ी साधारण सी थी, जिसने बड़े विवाद का रूप धारण कर लिया है अगर शीघ्र ही इस पर कोई उचित कदम नहीं उठाया गया तो स्थिति बेकाबू हो सकती है। उसी समय केन्द्रीय सरकार के एक जिम्मेदार व्यक्ति (नाम इसलिए नहीं लिख रहा हूं कि वह हमेशा शोहरत और दिखावे से दूर रहना पसन्द करते हैं) से बात की। उचित परिणाम बरामद हुए। कुछ ही देर में जिला मजिस्ट्रेट स्वयं वहां पहुंचे और स्थिति को और बिगड़ने से बचाया। 11 बजते-बजते महमूद कासमी ने मुझे फोन पर यह सूचना दी कि अल्लाह के फज़ल से अब स्थितियां काबू में हैं और लोग सकून की नींद सो सकते हैं।
दूसरी तसल्ली मुझे उस समय मिली जब ‘‘राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग’’ के अध्यक्ष श्री शफी कुरैशी के ओ.एस.डी. श्री नईम अहमद सिद्दीकी ने मुझे बताया कि दो दिन पूर्व, 27 सितम्बर को आपके समाचार पत्र में शादाब असदक की गुमशुदगी से सम्बन्धित जो समाचार तथा गृहमंत्री के नाम लिखा गया पत्र प्रकाशित किया गया है, उसका नोटिस लेते हुए आयोग के अध्यक्ष ने गृहमंत्री को एक पत्र लिखकर मामले में रूचि लेने का निवेदन किया है, साथ ही महाराष्ट्र और आंध्रा प्रदेश के गृहमंत्री को भी यह पत्र भेजा रहा है ताकि इस मामले में उचित कार्यवाई की जा सके। इस सिलसिले में आयोग के अध्यक्ष को सांसद गुलाम जीलानी का पत्र भी प्राप्त हुआ है। मैं गृहमंत्री के नाम अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष श्रीमान शफी कुरैशी का वह पत्र अपने पत्र के साथ भेज रहा हूं।
अब हम आशा करते हैं कि आंध्रा प्रदेश, राजस्थान तथा महाराष्ट्र की सरकारें जिस मुस्लिम युवक इंजीनियर की गुमशुदगी के बाद से सोई पड़ी थी, अब उनकी नींद जरूर टूटेगी।
.........लेकिन इस तरह के मामले इतने अधिक हैं, अल्लाह ही बेहतर जानता है कि कब हम पूरी तरह सकून की सांस ले सकेंगे। इसके बाद, एक के बाद दूसरा यह अफसोसनाक मामले इस तेज़ी से सामने आते जा रहे हैं कि कुछ समझ में नहीं आता है कि किस तरह उन्हें रोका जाये?
मैं उपरोक्त मामलों में उलझा हुआ था कि मेरे मोबाईल फोन पर सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी का एस.एम.एस मिला, जो पांच मुस्लिम युवकों के उठा लिये जाने तथा उन्हें उत्पीड़न देने से सम्बन्ध रखता था। मैंने फिर इस मामले कों गंभीरता से लेते हुए अपने संवाददाता सलीम सिद्दीकी को शबनम हाशमी, हर्षमन्दर सिंह तथा समबन्धित लोगों से सम्पर्क स्थापित कर घटना का विवरण प्राप्त करने को कहा।
मैं पाठकों तथा भारत सरकार की सेवा में इस आशा के साथ वह रिपोर्ट प्रकाशित कर रहा हूं कि इस सिलसिले में भी उचित कदम उठाया जायेगा।
नई दिल्लीः 29 सितम्बर (सलीम सिद्दीकी/एस.एन.बी.) बड़ौदा पुलिस ने योजनाबद्ध षडयंत्र के तहत पांच मुस्लिम युवकों का अपहरण करने के बाद उन्हें शहर से बाहर एक फार्म हाउस में ले जाकर कई दिन तक टार्चर किया। कई दिन बीतने पर जब यह मामला तूल पकड़ने लगा तो पुलिस ने 6 सितम्बर को उनकी गिरफ्तारी दिखाकर 7 सितम्बर को अदालत में पेश कर दिया। पुलिस ने उनके पास से राॅकेट लांचर तथा सुतली बमों की बरामदगी दिखाकर यह आरोप लगाते हुए झूठा केस दर्ज कर दिया कि यह युवक गणेश विसर्जन यात्रा पर हमला करने की साजिश कर रहे थे। यह खुलासा किया प्रसिद्ध मानव अधिकार संस्था ‘‘अनहद’’ ने और पीड़ितों को न्याय दिलाने में सहायता करने की अपील की। इसके अलावा आज सुबह उन सभी लोगों ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग तथा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन से भेंट कर उन्हें अपनी कहानी सुनाई जिसके बाद अल्पसंख्यक आयोग ने इस मामले की जांच के लिए अपनी टीम बड़ौदा भेजने का आश्वासन दिलाया है।
‘‘अनहद’’ संस्था से सम्बन्धित प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने मीडिया को बताया कि बड़ौदा पुलिस ने ज़हीर अब्बास और मुश्ताक को एक सितम्बर, इकबाल और अमीन को 2 सितम्बर और उस्मान गनी नवाब को 3 सितम्बर को अचानक उठा लिया और उनके घर वालों को उनके बारे में कोई सूचना नहीं दी गई। जब यह मामला गर्म हुआ तो पूर्व डिप्टी मेयर मोहम्मद भाई दोरा से डीसीपी राकेश स्थाना ने इन युवकों के पुलिस के पास होने की बात स्वीकार की और उन सबकी गिरफ्तारी 6 सितम्बर को दिखाकर उन्हें 7 सितम्बर को न्यायालय में पेश किया गया।
उसी दिन बड़ौदा के पुलिस आयुक्त ने एक प्रेस कांफ्रेंस करके यह दावा किया कि इन युवकों के पास से राकेट लांचर और सुतली बम बरामद किये गये हैं और उनकी योजना गणेश विसर्जन यात्रा पर हमला करने की थी। शबनम हाशमी ने बताया कि इस घटना की जानकारी के बाद वह स्वयं, प्रसिद्ध मानव अधिकार कार्यकर्ता हर्षमन्दर और राहुल राष्ट्रपाल बड़ौदा गये तथा उन युवकों के परिवार वालों से जाकर मिले। यह लोग इतने भयभीत थे कि उन्होंने शुरू में कुछ बताने से ही इंकार किया। काफी विश्वास में लेने के बाद उन्होंने पूरी कहानी बयान की और बताया कि उन्हें पुलिस की ओर से धमकियां दी जा रही हैं।
शबनम हाशमी ने बताया कि उन्होंने 25 सितम्बर को राहुल राष्ट्रपाल, दुष्यंत भाई तथा सचिन पांडया के साथ बड़ौदा सेंट्रल जेल में जाकर उन 5 युवकों में से 2 इकबाल तथा ज़हीर से भेंट की। उन दोनों युवकों ने बताया कि उन्हें शहर से 10-15 किलोमीटर दूर एक फार्म हाउस में ले जाया गया था। वहां उनके अलावा 3 युवक और भी थे। उनके अनुसार पुलिस वालों ने उन सबकों लाठियों से बुरी तरह पीटा, बिजली के झटके दिये और तालिबान आतंकवादी कहते हुए मां तथा बहन को निशाना बनाकर गंदी गालियां दी गईं। ज़हीर ने उन्हें बताया कि उसे हाथ बांधकर छत से लटका दिया गया और सोने नहीं दिया गया। ज़हीर और इकबाल को रोज़ा खोलने के लिए रात के 11 बजे तक भी कुछ नहीं दिया गया। उनसे जबरन यह बात मनवाने का प्रयास किया गया कि वह गणेश विसर्जन यात्रा पर बमों से हमला करने वाले थे। ज़हीर ने उन्हें यह भी बताया कि पुलिस वालों ने उसे जान से मारने की धमकी भी दी।
उच्चतम न्यायालय की अधिवक्ता वन्दना ग्रोवर ने कहा कि पुलिस को किसी भी मामले की जांच करने का पूरा अधिकार है लेकिन किसी को भी अवैध रूप से हिरासत में रखने या टार्चर करने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि पुलिस के इस तरह के रवैये पर केवल अदालत ही रोक लगा सकती है। अदालतों को सबकुछ पता है कि क्या हो रहा है। वन्दना ग्रोवर ने कहा कि काग़ज़ात पर ‘मुसलमान, राकेट लांचर और बम’ लिखा देकर अदालत के भी आंख और कान बन्द हो रहे हैं, यह एक बहुत खतरनाक प्रवृत्ति है। उन्होंने कहा कि जहांतक बात बम या राॅकेट लांचर बरामद किये जाने की है तो आरोपियों के पास से जो भी सामान बरामद दिखाना हो वह सब पहले से ही थानों में मौजूद होता है। उन्होंने कहा कि देश की अदालतों के सामने यह एक बहुत बड़ा चैलेंज है कि यह देश बचेगा या नहीं क्योंकि झूठे केसों की सूची अब बहुत लम्बी हो चुकी है। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हर्षमन्दर ने कहा कि बड़ौदा पुलिस ने जिन युवकों को उठाकर उनके विरूद्ध केस दर्ज किये हैं उनके विरूद्ध पहले कोई मामूली झगड़े तक का केस नहीं है। यह प्रचार पूर्ण रूप से गलत है कि वह गणेश विसर्जन यात्रा पर हमला करने वाले थे। पुलिस का यह रवैया और सोच अत्यन्त खतरनाक है। आज यह मुस्लिम युवकों के साथ हो रहा है, कल किसी के भी साथ हो सकता है।
इस अवसर पर शबनम हाशमी, हर्षमन्दर और प्रसिद्ध अधिवक्ता वन्दना ग्रोवर ने इन युवकों की गिरफ्तारी और उन्हें अवैध हिरासत में रखकर कई दिन तक टार्चर करने के लिए पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना, एसीपी राकेश शर्मा, पी.आई. क्राइम ब्रांच, जे.डी. राम गाडिया और पी.आई. बड़ौदा डी.आर. धमाल को दोषी ठहराया है। उन्होंने मानव अधिकार आयोग, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग तथा भारत सरकार से इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषी पुलिस अधिकारियों को कठोर सज़ा दिये जाने की मांग की है।
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چیئرپرسن حکومت ہند
قومی اقلیتی کمیشن
29ستمبر2009
محترم!
جےسا کہ آپ سے بات ہوئی تھی ، قومی اقلےتی کمےشن کے عزت مآب چےئر پرسن کی جانب سے مرکزی وزےر داخلہ کے نام روانہ کردہ لےٹر( اس کی کاپےاں مہاراشٹر اور آندھرا پردےش کے وزرائے داخلہ کو بھی روانہ کی گئی ہےں) کی اےک کاپی آپ کو بذرےعہ فےکس بھےجی جارہی ہے۔ ےہ لےٹرشری سےد شاداب اصدق کی گمشدگی سے متعلق ہے۔
احترام کے ساتھ
آپ کا
(نعیم احمد صدےقی)
بخدمت
جناب عز ےز برنی
گروپ اےڈےٹر
راشٹرےہ سہارا
ستمبر2009 29
شری پی چدمبرم ،عزت مآب وزیر داخلہ
میں مجاہد آزادی، سابق ایم ایل اے ، ایم ایل سی اورایم سی اے جموں و کشمیر پیر زادہ غلام جیلانی کے ذریعہ بھیجے گئے اس مکتوب کو منسلک کر رہا ہوں جو سید شاداب اصدق ولد ممشاد اصدق ساکن کوٹہ، راجستھان کے سکندرآباد، جے پور ہالی ڈے اسپیشل (0995) سے سفر کے دوران08-09-2009 کو صبح 10:10 بجے ناگپور اسٹیشن سے لاپتہ ہونے کے متعلق ہے۔ وہ حیدر آباد سے کولکاتا جارہا تھا۔اس کے اعزا و اقارب تمام تر کوششوں کے باوجود اس گمشدہ نوجوان کاپتہ نہیں لگا سکے۔ 20 دن گزر جانے کے بعد بھی پولس اس کا سراغ لگانے میں ناکام ہے۔ میرے خیال میں سید شاداب اصدق کے والد سید ممشاد اصدق روزنامہ راشٹریہ سہارا نئی دہلی کے دفتر سے آپ کے دفتر میں فیکس کی گئی درخواست میں آپ سے مداخلت کی استدعا کرچکے ہیں۔ سید شاداب اصدق کے والدین بیٹے کے اچانک لاپتہ ہونے سے صدمے کی حالت میں ہیں۔
اگر آپ کی نوازش،کوشش اورمداخلت کی بدولت متعلقہ حکام اس گمشدہ نوجوان کا پتہ لگاسکیں تاکہ یہ نوجوان اپنے اعزا کے پاس آجائے اور وہ مطمئن ہوسکیں تو میں اس سلسلہ میں آپ کا شکر گزار رہوںگا۔
چونکہ یہ واقعہ ناگپور اسٹیشن پر پیش آیا،لہٰذا میں اس درخواست کی کاپیاں مہاراشٹر اور آندھرا پردیش کے وزرائے داخلہ کو بھی روانہ کررہا ہوں تاکہ وہ اس معاملہ میں کارروائی کرسکیں۔
شری پی چدمبرم آپ کا مخلص
عزت مآب وزیر داخلہ
حکومت ہند(محمد شفیع قریشی)
کمرہ نمبر 104،نارتھ بلاک
نئی دہلی-110001