और अब कोटा का इन्जीनियर लापता!19 सितम्बर 2008 को पुलिस की गोली से हताहत हुए आतिफ़ और साजिद, पुलिस के कथनानुसार वह दोनों 13 सितम्बर को दिल्ली में हुए बम धमाकों के लिए ज़िम्मेदार थे वे तथा पुलिस एन्काउन्टर में उनकी मृत्यु हुई। अभी तक हमारा मन यह स्वीकार नहीं कर पा रहा है कि क्या पुलिस का बयान ठीक है? एक बरस की अवधि बीत चुकी है। एक अनुमान के अनुसार 50 से अधिक बार हमने इस विषय पर लिखा है और शायद 100 से अधिक बार लिखने की आवश्यकता पड़े। इसलिए कि हमारे नज़दीक यह केवल एक मुडभेड़ नहीं थी, केवल आतिफ़ तथा साजिद की मृत्यु नहीं थी, बल्कि उस समय जो परिस्थतियां थीं, जो माहौल था, आज भी जब हम उन पर विचार करते हैं तो ऐसा लगता है कि उस समय केवल आतिफ़ तथा साजिद ही नहीं पूरा समुदाय निशाने पर था और अगर एक के बाद एक, पिछले एक वर्ष में ऐसी अनेक घटनाएं घटित नहीं हुई होतीं तो आज भी इस समुदाय के दामन से आतंकवाद का दाग़ मिटाना कठिन होता। भला हो शहीद हेमन्त करकरे का जिन्होंने मालेगांव जांच के द्वारा आतंकवाद का वह चेहरा भी उजागर किया जो अभी तक लोगों के सामने नहीं था। उसके बाद अनेकों एन्काउन्टर फ़र्जी सिद्ध हुए, जिन्हें सही साबित करने के लिए पुलिस ने ऐड़ी चोटी का ज़ोर लगा दिया था। हाल ही में इशरत जहां एन्काउन्टर का फ़र्जी सिद्ध होना इस बात का ताजा उदाहरण है कि पुलिस किस प्रकार निर्दोषों को आतंकवादी सिद्ध करके मार डालती है। आज जिस समय मैं यह लेख लिख रहा हूं, मेरे मोबाइल फ़ोन पर मुझे अपने मित्र असद हयात का एस।एम।एस प्राप्त हुआ, जिसमें लिखा है कि उच्चतम न्यायालय के एडोकेट प्रशांत भूषण ने बटला हाऊस मुडभेड़ से संबंधित उच्चतम न्यायालय में एस पी एल ;ैचमबपंस स्मंअम च्मजपजपवदद्ध दाखिल की है, जिसे उच्चतम न्यायालय द्वारा स्वीकार कर लिया गया है। अतः हम यह आशा कर सकते हैं कि इस केस को फिर से खोले जाने की संभावना अभी बाक़ी है और एक दिन इन्शाअल्ला सच्चाई सामने आएगी ही। लेकिन यह अकेला ऐसा मामला नहीं है। अक्सर इस प्रकार की दर्दनाक घटनाएं सामने आती रहती हैं। पिछले सप्ताह 12 सितम्बर को जब मैं उपराष्ट्रपति महोदय से मिलकर वापस लौट रहा था, मेरे मोबाइल फोन पर मुझे एक और दर्दनाक सूचना मिली। फोन करने वाले थे कोटा, राजस्थान से मुमशाद असदक़। उन्होंने मुझे बताया कि उनका पुत्र शादाब असदक़ जो कि इंजीनियर है, जिसकी आयु 26 वर्ष है, 7 सितम्बर को सिकंद्राबाद (आंध्रा प्रदेश) से अपने घर वापस कोटा के लिए जयपुर स्पेशल पर सवार हुआ। वह वहां अपनी कंपनी आई एल की एक बैठक के सिलसिले में गया था मगर अभी तक वापस नहीं लौटा है। हां उसकी बर्थ 12 से उसका सामान जरूर बरामद हुआ। तब से आज तक यानी 19 सितम्बर तक लगातार शादाब के पिता से बात होती रही। एक सप्ताह और बीत चुका है। अभी तक किसी भी प्रकार की सूचना नहीं मिली है। रेलवे मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी से सम्पर्क करने पर भी कोई विशेष जानकारी प्राप्त नहीं हुई। शादाब के पिता का कहना है कि इसी प्रकार की एक घटना पहले भी घटित हुई थी जब बिहार का एक लड़का जो अलीगढ़ में पढ़ता था, ट्रेन द्वारा दिल्ली जा रहा था, उठा लिया गया तथा इस बीच उसके बारे में कोई सूचना नहीं मिली। ना ही पुलिस को कोई जानकारी थी कि उस लड़के का क्या हुआ? लेकिन हाल ही में गुप्तचर विभाग द्वारा टेलीफोन पर सूचना दी गई कि अपने पुत्र को ले जाइये। लगभग 8 माह की अवधि बीत जाने के बाद यह सूचना दी गई। हमें भय है कि हमारे बेटे के साथ भी कहीं कुछ ऐसा ही तो नहीं हुआ। वह एक शिक्षित युवक है, कहीं से भी अपनी ख़ैरियत का समाचार दे सकता था और अगर ख़ुदा न करे उसके साथ कोई अप्रिय घटना घटित हुई होती तो भी पुलिस या अस्पताल द्वारा हमें उसकी सूचना मिल गई होती। हम हर जगह की ख़ाक छान चुके हैं लेकिन अभी तक किसी से भी कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला है। प्रश्न यह पैदा होता है कि एक ओर तो इस समुदाय को लगातार यह ताना सुनना पड़ता है कि यह शिक्षा से दूर है तथा दूसरी ओर लगातार इस प्रकार की घटनाएं सामने आ रही हैं जब शिक्षित युवकों को मुडभेड़ में मार दिया जा रहा है या उन्हें इस प्रकार उठा लिया जाता है। अगर यह मुस्लिम युवकों को शिक्षा से भयभीत करने का षड़यंत्र नहीं है तो क्या है? जिस प्रकार एक के बाद एक मुडभेड़ फ़र्जी साबित हो रहे हैं, उससे तो यह चिंता होती है कि इस सच्चाई की तह तक जाना अत्यंत आवश्यक है। आतिफ़, साजिद उसके बाद शादाब की समस्या का अध्यन किया जारहा था मगर इस बीच नासिक जेल से एक और पत्र प्राप्त हुआ जिसने सोचने के लिए विवश किया कि क्या यह भी मुआरिफ़ और आमिर जैसा ही मामला तो नहीं है, जिन्होंने तिहाड़ जेल से हमें पत्र लिखा था या फिर कानपुर के सैयद वासिफ़ हैदर जिनको रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा द्वारा मामले को उठाए जाने पर न्यायालय से रिहाई मिली, हो सकता है कि ऐसा ही कुछ हो इसलिए इसी आशा के सहारे आज हम मुहम्मद शरीफ़ का मामला उठा रहे हैं ताकि गृह मंत्रालय का ध्यान इस ओर आकर्षित हो और उसे भी न्याय मिले। नासिक जेल से हमें मुहम्मद शरीफ़ ने जो पत्र लिखा वह इस प्रकार हैः मेरा नाम मुहम्मद शरीफ़ बादशाह शमीम खान है। मैं इस समय नासिक सेंट्रल जेल में हूं। मैंने 31/5/09 का सहारा टाइम्स पढ़ा था पढ़ने के बाद उसमें देखा कि कानपुर के सैयद आसिफ़ हैदर, हाजी मुहम्मद अतीक़, मुहम्मद मुमताज, शफ़ाअत रसूल की रिहाई का समाचार सुन कर इतना प्रसन्न हुआ कि इसका कोई अंदाज़ा नहीं। यह पढ़ कर हमें एक आशा जगी और अल्लाह का शुक्र अदा किया और हमें विश्वास हो गया कि अभी न्याय बाकी है। हम भी इसी प्रकार एक केस में फंसे हैं। आशा है कि आप हमारी भी सहयता करेंगे। इसलिए मैं आपसे निवेदन करना चाहता हूं कि आप हमारी सहायता करें। अल्लाह तअ़ाला आपके द्वारा हमें भी न्याय दिलाएगा। इसलिए मैं यह पत्र आपको लिख रहा हूं और जो मैं आगे लिखने जा रहा हूं वह मेरे केस का विवरण है। मेरा नाम मुहम्मद शरीफ बादशाह शमीम खान, रुम-6, लाइन नं॰ टी-फ्लेट नं॰ 37, रोड नं॰6, शिवाजी नगर, गोविंडी, मुम्बई 400043 इस पते पर हम लोग 18 वर्ष से रहते हैं। मेरे पिता का देहांत हो चुका है। देहांत को 6 साल की अवधि बीत चुकी है। अभी मेरे घर में मेरी मां मेरा एक भाई और एक बहन है। मेरी मां सदैव बीमार रहती है। मैं एक गरीब आदमी हूं।मुझे 19।04।06 को शिवाजी नगर पुलिस थाने वालों ने जांच के लिए बुलाया, उसके बाद हमको एक दिन रखा। दूसरे दिन 20।04।06 को कोर्ट में खड़ा कर दिया और कहा गया कि तुमने 3 साल की बच्ची की हत्या की है। मैंने बार-बार पुलिस वालों को बताया कि मैं इस केस में नहीं हूं परन्तु उसने हमारी एक भी नहीं सुनी, फिर मैंने एक पत्र मुम्बई कमिश्नर को लिखा जिसकी तिथि है 22।11.06 और उनसे कहा कि मुझे इस केस में डाल दिया जिसका नाम है एम.पी.डी.ए। इस सब का जवाब रहा कमिश्नर साहब के पास से कि मैं कुछ नहीं कर सकता। फिर इसके बाद मैंने 20.06.07 को एक और पत्र लिखा मानवाधिकार को जिसमें मैंने लिखा था कि मुझे मेरे केस की सी.बी.आई जांच चाहिए। फिर वहां से जवाब आया कि मैंने मुम्बई कमिश्नर डी.सी.पी को आदेश दिया है कि इस केस की पूरी जानकारी हमको 15 दिन में चाहिए, इसके बाद फिर मैंने एक और पत्र मानवाधिकार को लिखा जिसकी तिथि है 06.11.07। फिर इसका जवाब आया कि मैंने तुम्हारे पुलिस थाने से पूरी जांच मांगी, उसका जवाब आया कि तुम्हारे ऊपर दो केस हैं और वह भी बलात्कार के, इसलिए सी.बी.आई जांच नहीं हो सकती है। जनाब बर्नी साहब हमारे ऊपर केवल एक केस था वह भी मारा-मारी का और पुलिस ने मानवाधिकार को ग़लत बताया। फिर मैंने अपने पुलिस थाने से आई.टी.आर मांगी और उसमें लिखा कि मेरे ऊपर कितने केस हैं? इसका जवाब दिया कि तुम्हारे ऊपर केवल एक केस है, वह भी बलात्कार का नहीं है। यह सब पेपर हमारे पास हैं और मैंने सारी कापी मानवाधिकार को भेज दी हैं जिसका अभी तक जवाब नहीं आया है।(1) इसके बाद मैंने उच्च न्यायालय को एक प्रार्थनापत्र लिखा और वह मेरा प्रार्थनापत्र हाई कोर्ट में अपील हो गया, कुछ महीने के बाद हाई कोर्ट से पेपर आया, रिजेक्ट हो कर आया।(2) फिर मैंने सभी पेपर लेकर सुप्रीम कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया, वहां भी मेरी अपील हो गई और वहां से आर्डर आया कि तुम अपने सेशन कोर्ट में कार्यवाही करो, अगर वहां से नहीं कुछ हुआ तो फिर मैं यहां से करूंगा। मैंने सब कार्यवाही जेल से ही की थी, अब हम से नहीं होगी। इसलिए मैं आपसे निवेदन करता हूं कि मेरे लिए आप कुछ करें, मैं बहुत ग़रीब आदमी हूं और मेरी मां अकेली क्या करेगी। मैं सभी पेपर और यह प्रार्थना पत्र आपके नाम से भेज रहा हूं, आपकी अति कृपा होगी।जनाब एक और मुख्य बात यह है कि इस केस को जिस पुलिस वालों ने बनाया, उसके ऊपर भी केस हो चुका है। मेरी तरह बहुत सारे लोग इसी तरह झूठे फंसाए गए हैं। जनाब मैं इसका फोटो के साथ पेपर भी भेज रहा हूं, अगर और कुछ जानकारी चाहिए तो मैं बाद में आपको भेज दूंगा जब आप कहेंगे और मैं आप से क्या कहूं। अस्सलामुअलैकुम, अल्लाह हाफिज़
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