जूलियो रिबैरो मंुबई के पुर्व पुलिस आयुक्त ही नहीं, वह एक ऐसे जांबाज़ पुलिस अधिकारी हैं जो उस समय पंजाब के डायरेक्टर जनरल आॅफ पुलिस थे, जब पंजाब आतंकवाद का शिकार था। अर्थात उन्हें आतंकवाद से निपटने तथा आतंकवादियों की मानसिकता को समझने का पूरा अनुभव है और वह भलीभांति जानते हैं कि आतंकवादियों से निपटने के दौरान पुलिस अधिकारियों को किस प्रकार के मानसिक तनाव का शिकार होना पड़ता है। कितने खतरों से खेलना पड़ता है। शायद यही कारण है कि हेमन्त करकरे ने जूलियो रिबैरो से उन हालात की चर्चा की, जिनसे उनका सामना था। हमने अपने कल के लेख में जिस समाचारपत्र के समाचार को प्रकाशित किया, वह अंग्रेजी दैनिक ‘टाईम्स आॅफ इंडिया का 28 नवम्बर 2008 का समाचार था और यह बात जूलियो रिबैरो ने उस समय कही, जब वह शहीद हेमन्त करकरे के अंतिम संस्कार से वापस लौट रहे थे और यह समाचार केवल ‘टाईम्स आॅफ इंडिया’ में ही प्रकाशित नहीं किया गया बल्कि अन्य कई समाचारपत्रों ने उसे प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया था, हमारे पास यह फाईल आज भी मौजूद है। क्या हम जूलियो रिबैरो को किसी प्रकार की राजनीति से प्रभावित समझ सकते हैं? क्या हम उनके इस बयान पर संदेह कर सकते हैं? क्या उनके इस बयान को राजनीति पर आधारित ठहरा सकते हैं? विचारणीय है कि जूलियो रिबैरो केवल एक पुलिस अधिकारी ही नहीं बल्कि एक राजनयिक भी रहे हैं। वह 1989 से 1993 तक रोमानिया में भारत के राजदूत रहे हैं। आज तक भी उनकी किसी राजनीतिक दल से कोई संलग्नता नहीं है, और उनका यह बयान दिग्विजय सिंह के बयान की तरह हेमन्त करकरे की शहादत के दो वर्ष बाद नहीं आया है, बल्कि यह शहादत के अगले ही दिन शमशान भूमि पर उनकी चिता को अग्निी की भेंट किए जाने के पश्चात अत्यंत शोकाकूल वातावरण में रिबैरो की जु़बान से निकले हुए शब्द थे। हां परन्तु इसका विचारणीय पहलू यह है कि बात वही है जो हेमंत करकरे के द्वारा दिग्विजय सिंह से कही गई।
हम आज फिर कुछ ऐसी घटनाओं का उल्लेख कर रहे हैं, जिससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि शहीद हेमन्त करकरे को मालेगांव जांच के बाद अपने जीवन के अंतिम दिनों में धमकियां मिल रही थीं और वह भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की ओर से की जाने वाली अनुचित आलोचना तथा निराधार आरोप लगाये जाने से अत्यंत दुखी थे। यहां तक कि वह ए.टी.एस को छोड़ देना चाहते थे और उस आतंकवादी हमले की संध्या ही उन्होंने अपने साथियों से कहा था कि उन्होंने महाराष्ट्र के गृहमंत्री आर आर पाटिल से यह निवेदन किया है कि उनका स्थानांतरण किसी दूसरे विभाग में कर दिया जाये। मैं अपने आज के इस लेख में यह समाचार तिथि एवं सूत्रों के साथ इसलिए शामिल कर रहा हूं ताकि सनद रहे कि यह सभी तो वह बातें हैं, जो उसी समय सामने आ गई थीं और आज अगर ऐसी कोई बात की जा रही है तो क्या हमें उसके निजि उद्देश्य खोजने का प्रयास करना चाहिए, उसे राजनीति पर आधारित समझना चाहिए या उन्हें तथ्यों को फिर से सामने लाने का प्रयास समझना चाहिए? आज मेरे पास बहुत अधिक लिखने का मौका नहीं है, इसलिए कि मैं अन्य जिम्मेदार विशेष रूप से अंग्रेजी मीडिया के समाचारों के हवाले प्रकाशित कर रहा हूं, फिर भी एक बात पर विशेष ध्यान आवश्य दिलाना चाहता हूं। जिस तरह मैंने दिग्विजय ंिसंह के भाषण के एक वाक्य को सामने रखकर अपनी बात कही थी और आज उसी पर हंगामा है, उसी तरह आज के अपने लेख में फिर उन समाचारपत्रों के एक वाक्य को अपने पाठकों तथा भारत सरकार की भेंट करना चाहता हूं। जूलियो रिबैरो से अपनी इस अंतिम मुलाकात में शहीद हेमन्त करकरे ने कहा था कि उन्हें एक ऐसी सीडी उपलब्ध हो गई है, जिससे अत्याधिक चैंकाने वाले रहस्योद्घाटन हो सकते हैं, परन्तु उन्हें संदिग्ध लोगों से अधिक पूछ ताछ करने की अनुमति नहीं दी जा रही है।
आज हमारा प्रश्न है कि उस सीडी में क्या है? वह चैंका देनेवाले रहस्योद्घाटन क्या थे? किनको हिरासत में लिये जाने की अनुमति नहीं दी जा रही थी। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि शहीद हेमन्त करकरे के बाद जिसे एटीएस की जिम्मेदारी दी गई, वह श्री रघुवंशी वही थे जिन्होंने नांदेड़ बम धमाकों में लिप्त पाए गए संघ परिवार के लोगों के साथ नर्म रवैया अपनाने का जबर्दस्त कारनामा अंजाम दिया था।
आईए अब शुरूवात करते हैं हवालों की, सबसे पहले मंुबई से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी दैनिक डीएनए का वह प्रमुख समाचार जिसमें दर्ज है कि शहीद हेमन्त करकरे ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में अपने साथी सुधाकर से उसी स्थिति की चर्चा की थी कि जिसकी चर्चा जूलियो रिबैरो या दिग्विजय सिंह के अनुसार उनके साथ की। मुलाहेजा फरमायें यह पूरा समाचार तथा उसके बाद अन्य खबरों के हवाले।
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मृत्यु के पूर्व से ही करकरे परेशान थे
एटीएस प्रमुख के साथियों का बयान
मुंबई 30 नवम्बर 2008(आईएएनएस)
एटीएस प्रमुख हेमन्त करकरे जिन्हें मुंबई में हाहाकार मचाने वाले आतंकवादियों ने मार डाला, मृत्यु के पूर्व से ही परेशान थे, क्योंकि मालेगांव बम धमाके की जांच के लिए उनपर लगातार हमले किये जा रहे थे। यह कहना है उन पुलिस अधिकारियों का जो करकरे से भलीभांति अवगत थे।
पूर्व मुंबई पुलिस प्रमुख जूलियो रिबैरो और रिटायर्ड पुलिस अधिकारी सुधाकर सोरादकर दोनों का कहना है कि 26/11 की रात्रि आतंकी हमलों के बाद कामा अस्पताल के पास मोर्चा लेते समय करकरे मानसिक रूप से ठीक स्थिति में नहीं थे। करकरे को एक विशिष्ट अधिकारी बताते हुए रिबैरो ने कहा कि वे समय से उन्हें जानते हैं और वह बखूबी अंदाजा लगा सकते हैं कि ‘राजनीतिक दलों द्वारा लगातार हमलों के कारण करकरे परेशान थे।’
1982 बैच के आईपीएस अधिकारी करकरे 29 सितम्बर को महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम धमाकों की जांच कर रहे थे, जिसके लिए हिन्दू आतंकवादी जिम्मेदार माने जा रहे थे। कट्टर हिन्दू संगठनों से जुड़े लोग एक हिन्दू साध्वी तथा एक सैनिक अधिकारी को गिरफ्तार करने के लिए करकरे की कठोर आलोचना कर रहे थे और उन्हें हिन्दू विरोधी बता रहे थे।
सुधाकर ने कहा कि ‘मार्निंग वाक के दौरान मैं अकसर हेमन्त से मिलता था। वह काफी परेशानी और पीड़ा महसूस कर रहे थे। शायद वह मानसिक रूप से दबाव में हों। गलत तथा अनावश्यक आरोपों ने उन्हें बुरी तरह झंझोड़ कर रख दिया था। सुधाकर ने आगे कहा कि जिस तरह से हेमन्त ने आंतकवादियों के विरूद्ध आॅपरेशन किया वह उस हेमन्त से अलग था क्योंकि वह बहुत ही संगठित तरीके से काम करने वाले थे।
स्पष्ट रहे कि मुंबई के इन हमलों में मारे गये 20 पुलिसकर्मियों में करकरे भी शामिल थे। उनमें से 14 महाराष्ट्र पुलिस से संबंध रखते थे।
दोनों रिटायर्ड पुलिस अधिकारियों ने करकरे को मन से श्रद्धांजलि पेश किया जिनका शनिवार को अंतिम संस्कार किया गया था।
करकरे के सुरक्षाकर्मी नासिर कुलकर्णी ने भावुक होते कहा कि ‘उनके अधीन काम करना गौरव की बात थी।’ कुलकर्णी ने आगे कहा कि सर (करकरे) एक सच्चे कर्मयोगी थे। वह सभी से एक जैसा व्यवहार करते थे, चाहे उनका पद कुछ भी हो।
अन्य अधिकारियों ने करकरे को एक मिसाली अधिकारी और सीधा सादा इनसान बताया। पूर्व इन्सपेक्टर जनरल आॅफ पुलिस सोरादकर ने कहा कि ‘वह बहुत ही साफ मन और सहजता के साथ मिलने वाले इंसान थे, वह बहुत ही अच्छे अधिकारी तथा इंसान थे। वह किसी को गलत तरीके से फंसाने वाले नहीं थे। उनका व्यक्तित्व पारदर्शी था।’ जैसे ही बुध की रात आतंकवादियों ने मुंबई के 10 स्थानों को निशाना बनाया करकरे ने अपना हेल्मेट और बुलेट प्रुफ जैकेट पहना और उनसे मुकाबले के लिए निकल पड़े, यह सुरक्षा व्यवस्था अपर्याप्त सिद्ध हुई और करकरे कामा अस्पताल के सामने आतंकवादियों के बुलेट का निशाना बन गये। इन हमलों में कम से कम 183 लोग मारे गये और 300 से अधिक घायल हुए।
करकरे के मित्र और रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी वाईपी सिंह ने आरोप लगाया कि ‘ पुलिस अधिकारियों में सुरक्षा सामग्री जैसे हेल्मेट और बुलेट पु्रफ जैकटों की घटिया क्वालिटी के लिए भारी रोष था।
दि इकानाॅमिक टाईम्स
30 नवम्बर 2008
रिबैरो ने कहा कि करकरे ने उनसे कहा था कि उनके हाथ एक ऐसी सीडी लगी है जिनसे मालेगांव मामले में और अधिक सूचनाएं मिलती हैं। इस सीडी के आधार पर उन्होंने संदिग्ध लोगों से और पूछताछ करने की योजना बनाई थी लेकिन उनलोगों को उनकी तहवील में फिर नहीं दिया गया।
हेमन्त करकरे की पत्नि कविता करकरे ने भाजपा नेता तथा गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा दी गई एक करोड़ की सहायता को लेने से मना कर दिया गया। मोदी ने मुंबई हमलों में मारे गये पुलिस कर्मियों के संबंधियों को विशेष राशि देने की घोषणा की थी।
करकरे के करीबी सूत्रों के अनुसार वह अपने विरूद्ध लगाये जा रहे आरोपों से इतने दुखी हो गये थे कि उन्होंने राज्य के गृहमंत्री आर आर पाटिल से कहा था कि उनका एटीएस से स्थानांतरण कर दिया जाए। यह रहस्योद्घाटन करकरे की मृत्यु से कुछ घंटे पूर्व ही किया गया था। सूत्रों के अनुसार उनके विरोधी न केवल उन्हें निजि रूप से आलोचना के निशाना बना रहे थे। बल्कि उनके बच्चों के चरित्र पर भी कीचड़ उछाल रहे थे, जो करकरे के लिए असहनीय हो रहा था।
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01.12.2008
उन्हें शिव सेना की चिंता नहीं थी, उन्हें भाजपा के व्यवहार से बहुत तकलीफ पहुंची थी जिसकी प्रोपेगैंडा मशीनरी बहुत संगठित थी और जो उनके विरूद्ध लगातार मुहिम चला रही थी कि उन्होंने प्रज्ञा ठाकुर तथा अन्य के विरूद्ध गलत मामले ठोंके हैं।
एटीएस ने ठाकुर प्रज्ञा सिंह और कम से कम अन्य 9 कट्टरपंथियों को 19 सितम्बर को हुए मालेगांव बम बलास्ट के सिलसिले में गिरफ्तार किया है जिन पर संदेह किया जाता है कि इस धमाके में उनका हाथ है।
मुंबई के पूर्व प्रसिद्ध पुलिस आयुक्त जूलियो रिबैरो जो तब पंजाब के डायरेक्टर जनरल आॅफ पुलिस थे जब वहां आतंकवाद चरम पर था, कहा कि यह विचित्र दुर्भाग्य है कि हेमन्त करकरे की ईमानदारी तथा निष्पक्षता पर भाजपा लगातार इसलिए प्रश्न चिन्ह लगा रही है कि क्योंकि उन्होंने 2008 के मालेगांव धमाका में लिप्त हिन्दू कट्टरपंथियों को बेनक़ाब किया परन्तु यही करकरे इंडियन मुजाहिदिन की हिट लिस्ट में भी थे।
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एटीएस प्रमुख के घर को उड़ाने की धमकी, पुलिस ने किया स्वीकार
पुणे 26 नवम्बर 2008
एक अज्ञात व्यक्ति ने पुणे पुलिस को पीसीओ से फोन करके धमकी दी कि मुंबई एटीएस के प्रमुख हेमन्त करकरे के घर को कुछ दिनों में उड़ा दिया जायेगा। बुध को एक उच्च पुलिस अधिकारी ने इसकी पुष्टि की। संयुक्त पुलिस आयुक्त राजेन्द्र सोनावाने के अनुसार टूटी फूटी मराठी में बोलने वाले उस व्यक्ति ने 24 नवम्बर को यह धमकी देते ही फोन काट दिया था। उन्होंने आगे कहा कि बाद में यह काॅल सहकारी नगर क्षेत्र के एक पब्लिक बुथ से की हुई पाई गई। जब सोनावाने से पूछा गया कि क्या केवल झूठी काॅल थी तो उन्होंने कहा कि वर्तमान स्थिति में पुलिस ऐसी सभी धमकियों को गंभीरता से ले रही है और मंुबई एटीएस को इस संबंध में सूचित कर दिया गया है फिर भी जब पुलिस कंट्रौल रूम से मंगल की रात सम्पर्क किया गया तो उसने करकरे को दी जा रही ऐसी किसी भी धमकी से मना कर दिया।
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