मेरा सेल फोन नम्बर अनगिनित लोगों के पास है। मैं इसे बदल भी नहीं पाता, इसलिए कि कई पीड़ितों ने भी इसी के सहारे मुझसे सम्पर्क किया। फिर जो भी जद्दोजेहद मेरे द्वारा की गई, उसके सकारात्मक परिणाम बरामद हुए। कुछ युवा जेलों से रिहा भी हुए, कुछ पलिस के शिकंजे से आज़ाद हुए और कुछ को गिरफ्तार करने की कोशिशें समाचार हम तक पहुंचने के कारण अमल में न आ सकीं। यह टेलीफोन काल्स मुहब्बत करने वालों की भी होती हैं और कभी-कभी कुछ लोग घृणा प्रकट भी करते हैं। मुझसे मुहब्बत करने वाले कुछ पाठक कभी-कभी कहते हैं कि ‘‘वह हैरान हैं कि मैं अभी तक जिंदा कैसे हूं’’। मैं क्या जवाब दूं यह तो अल्लाह का करम और आप सभी हज़रात की दुआओं का परिणाम है, वरना हैरान मैं भी कुछ कम नहीं हूं। अकसर कुछ युवक युवतियां जब किसी कार्यक्रम में भाग लेने के बाद मुझसे मिलते हैं तो कहते हैं कि हमारी माँ नमाज़ के बाद हमसे पहले आपके लिए दुआऐं करती हैं तो मुझे विश्वास हो जाता है कि मेरे क़लम का प्रभाव और मेरा जीवन बस इन्हीं दुआओं का परिणाम है। अभी कुछ देर पूर्व मेरे इसी नम्बर पर एक एस.एम.एस मुझे मिला, जो कुछ इस तरह थाः
‘‘सांसों के सिलसिले को न दो जिं़न्दगी का नाम
जीने के बावजूद भी कुछ मर गए’’
जिन्होंने यह मेसिज भेजा, उन्होंने अपना नाम तो नहीं लिखा परन्तु उनका फोन नम्बर मेरे सामने है ‘‘09452292302’’। काफी साहस भरी हैं यह दो पंक्तियां भी कि जीवित रहने का प्रतीक केवल सांसों का चलना ही नहीं, बल्कि कम से कम मेरे जैसे व्यक्ति के लिए क़लम का चलते रहना भी है।
मुझे एहसास है शहीद हेमंत करकरे के इस दुनिया से चले जाने का। आंतकवाद के विरूद्ध वह जो जंग लड़ रहे थे और जिन चहरों को बेनक़ाब कर रहे थे, वह कोई साधारण काम नहीं था। उन्हें अपनी मृत्यु से कुछ घंटे पूर्व ही जान से मारने की धमकियां मिल रही थीं। यह सब कुछ आॅन-रिकार्ड है। मैंने भी अपने पिछले सिलसिलेवार लेख ‘‘मुसलमानाने हिन्द.... माज़ी, हाल और मुस्तक़बिल???’’ की 100वीं क़िस्त ‘‘करकरे की शहादत को सलाम’’ में विस्तार से ऐसी सभी घटनाओं का उल्लेख किया है। सुनील जोशी की मृत्यु के मायने भी समझता हूं मैं कि अपनी ही लगाई आग के अपने दामन तक पहुचने से पहले ही उन्हें अपनों की सांसों को रोक लेने में कोई संकोच नहीं होता। फिर भी मैं लिख रहा हूं, कभी किसी के हवाले से और कभी इन्द्रेश के हवाले से, यह जानते हुए भी कि इन्द्रेश का नाम आने पर संघ परिवार ने किस प्रकार का हंगामा मचाया था और मुझे याद है सुदर्शन का वह वाक्य भी, जिसका सांकेतिक उल्लेख मैंने अपने कल के लेख में भी किया था। वह सभी आरोप जो आज भी नेट पर बिखरे पड़े हैं, उन सबको भूला नहीं हूं मैं, फिर भी यह लिखना आवश्यक है कि इन्द्रेश 31 अक्टूबर 2005 को गुजराती समाज के गेस्ट हाउस के कमरा नं. 26 में हुई उस गुप्त बैठक को बकवास क़रार दे सकते हैं, 800 पृष्ठों के आरोपपत्र के 22वें पृष्ठ पर अपने नाम को मनगढं़त ठहरा सकते हैं, परन्तु इस समाचार पर क्या कहेंगे, जिसका रहस्योद्घाटन शहीद हेमंत करकरे ने अपने जीवन में ही कर्नल पुरोहित के गिरफ्तार किए जाने के बाद उसके हवाले से किया थाः
‘‘दयानंद पाण्डे ने अगस्त 2007 में टेलीफोन पर पुरोहित और डाक्टर आर.पी.सिंह की बातचीत कराई थी। इस रिपोर्ट में डाक्टर सिंह का यह हवाला मौजूद है जिसमें उसने पुरोहित से कहा था कि इन्द्रेश ने ‘नेपाल में हिन्दुओं को बेच दिया था’, इसके लिए आई.एस.आई ने इन्द्रेश को तीन करोड़ रूपये दिए थे। बाद में पुरोहित ने यह बात तोगड़िया को बताई थी, जिसे सुनने के बाद तोगड़िया ने बताया कि उसे इसके बारे में पहले से मालूम है।’ ;प्दकपंदमगचतमेेण्बवउए 24 छवअमउइमत 2008द्ध
अगर यह समाचार ग़लत था तो क्या संघ परिवार की वैसी ही प्रतिक्रिया उस समय सामने आई, जेसी कि अब अजमेर धमाकों के संबंध में दाख़िल किए गए आरोपपत्र में इन्द्रेश का नाम आने के बाद सामने आई है। अगर हेमंत करकरे जीवित रहते? अगर 26 नवम्बर 2008 को मुम्बई पर आतंकवादी हमला न हुआ होता तो अजमेर बम धमाकों से संबंधित दाख़िल किए गए आरोपपत्र के 22वें पृष्ठ पर जो कुछ इस समय लिखा गया है, वैसा बहुत कुछ उसी समय सामने आ गया होता। कितने घनिष्ट संबंध आई.एस.आई के हैं कि उसने इन्द्रेश को 3 करोड़ रूपये दिए थे, क्या काम करती है आई.एस.आई....., किस काम के लिए पैसा ख़र्च करती है आई.एस.आई की....., भारत के विरूद्ध क्या गतिविधियां हैं आई.एस.आई, किससे छुपा है? बस यूं समझ लें कि इन्दे्रश की जगह अगर किसी मुसलमान का नाम होता तो क़यामत बरपा हो गई होती, कितने लोगों की गिरफ्तारियां हुई होतीं, किस तरह एक विशेष समुदाय का जीना मुश्किल हो गया होता। हम नहीं चाहते कि इन्दे्रश का नाम सामने आने पर ऐसी प्रतिक्रिया हो। परन्तु ऐसा भी न हो कि उनको बचाने के लिए ज़मीन-आसमान एक कर दिए जाऐं। जांच को प्रभावित करने के लिए सभी संभावित हथकण्डे प्रयोग किए जाने लगें और हम ख़ामोश रहें। आख़िर हमें यह समझना होगा कि देश प्रेम के मायने क्या हैं। अपने देश भारत का महत्व हम भारतियों के लिए क्या है, भारत की अखंण्डता, एकता तथा भाईचारा हमारी मातृभूमि के लिए कितना आवश्यक है। क्या इसे किसी एक नाम को बचाने पर क़ुरबान किया जा सकता है? क्या किसी एक संगठन को बचाने के लिए इसके अमन-चैन को दाव पर लगाया जा सकता है, एक संगठन जिसने देश प्रेम के मायने ख़ुद अपनी डिक्शनरी के हिसाब से ईजाद कर लिए हैं? पूर्व इसके कि मैं इनके देश प्रेम पर कुछ वाक्य लिखूं, कल अपने लेख में प्रकाशित किए गए समाचार की कुछ पंक्तियां निःसंदेह जो मेरी नहीं हैं, एक बार फिर पाठकों और देश बंदुओं की सेवा में प्रस्तुत कर देना चाहता हूंः
‘‘इंद्रेश कुमार ने कहा कि संघ किसी भी तरह की राजनैतिक व सामाजिक हिसंा में विश्वास नहीं करता है। संघ क्या कोई भी धार्मिक संगठन यही कहेगा कि वह किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं करता। हिंसा महाभारत और रामायण में भी कहां हुई थी। धर्म के नाम पर हिंसा फैलाने वाले यही कहेंगे कि जो कुछ होता है वह धर्म की रक्षा के लिए होता है। यानी किसी भी तरह की हिंसा धर्मयुद्ध के आवरण में बड़े आराम से समाज में फैलायी जा सकती है।’’
उपरोक्त पंक्तियां हमने अपने कल के लेख में ठींेामतण्बवउ से लीं और आज भी यह हवाला इसलिए पेश किया कि हमारे लेख को धार्मिक चश्मे से न देखा जाए, आज जो हम कह रहे हैं, वह केवल हम ही नहीं कह रहे हैं बल्कि वे सब कह रहे हैं, जिनके नज़दीक धर्म के नाम पर घृणा फैलाने वाले, चाहे उनका संबंध किसी भी धर्म या संगठन से हो, ग़लत हैं।
अजमेर बम धमाकों में लिप्त लोगों के नामों की चर्चा हम उनके कारनामों के साथ करेंगे, लेकिन पूर्व इसके मैं इन दो बातों पर विशेष ध्यान दिलाना चाहता हूं। राजस्थान के नगर जयपुर में 31 अक्टूबर 2005 को जब यह बैठक आयोजित की गई तो वहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी। वसुंधरा राजे सिंधिया मुख्यमंत्री थीं। इस बैठक में शामिल होने वालों में साध्वी प्रज्ञा सिंह का नाम भी शामिल था, जिनका चित्र मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान के साथ हेमंत करकरे द्वारा उनके कारनामों का खुलासा होने पर बार-बार दिखाया गया। यह गेस्ट हाउस गुजराती समाज का गेस्ट हाउस था, जिस राज्य के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं। सोचना होगा आख़िर क्या करते हैं यह लोग सत्ता में आने के बाद।
अभी तक मालेगांव बम धमाकों से लेकर अजमेर बम धमाकों तक जो नाम सामने आए हैं, उनमें अधिकतर आरोपियों का संबंध संघ परिवार से है। उनका कार्यक्षेत्र गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा महाराष्ट्र है। भारत के नक़्शे पर नज़र डालें तो यह चारों राज्य एक दूसरे से जुड़े हैं, इन चारों राज्यों में साम्प्रदायिक तत्वों तथा उनकी गतिविधियों का जो इतिहास मिलता है, वह किसी से छुपा नहीं है। गुमशुदा विस्फोटक पदार्थ के ट्रकों का विवरण जो हमने अपने पिछले लेखों में पेश किया था, उनका संबंध भी इन्हीं क्षेत्रों से है। इसके अलावा महाराष्ट्र में शिवसेना ने जो कुछ किया, वह श्री कृष्ण कमीशन की रिपोर्ट में उल्लेखित है। गुजरात में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के चलते क्या हुआ, यह भारत के इतिहास का बदनुमा दाग़ है। अगर अब मैं यह कहूं कि जो कुछ गुजरात में यकमुश्त हुआ, उसके बाद लगभग वही सब क़िस्तों में 2002 के बाद से 2008 तक बम धमाकों के रूप में देश व्यापी स्तर पर लगातार होता रहा। स्पष्ट हो कि 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस दुघर्टना के बाद 28 फरवरी 2002 के बाद गुजरात तीन हज़ार से अधिक एक विशेष समुदाय के लोगों के नरसंहार का गवाह बना और उसके बाद 26 नवम्बर 2008 तक हुए बम धमाकों में सैंकड़ों बेगुनाह इन्सानों का खून बहाया गया। कुछ घटनाऐंः
11 जुलाई 2006ः मुम्बई की ट्रेनों में सिलसिलेवार बम धमाके, 209 हताहत, 700 से अधिक घायल।
8 सितम्बर 2006ः मालेगांव की मस्जिद तथा क़ब्रिस्तान में बम धमाका, 37 हताहत, 125 घायल।
18 फरवरी 2007ः समझौता एक्सप्रेस बम धमाका, 68 हताहत, 150 घायल।
11 अक्टूबर 2007ः अजमेर दरगाह में बम धमाका, 2 हताहत, 17 घायल।
14 अक्टूबर 2007ः लुधियाना के सिनेमा हाल में ईद-उल-फितर के दिन धमाका, 6 हताहत, 20 घायल।
24 नवम्बर 2007ः लखनऊ, वाराणसी, फैज़ाबाद में सिलसिलेवार बम धमाके, 15 हताहत, 80 घायल।
13 मई 2008ः जयपुर में 9 सिलसिलेवार बम धमाके, 60 हताहत, 150 घायल।
26 जुलाई 2008ः अहमदाबाद में सिलसिलेवार बम धमाके, 28 हताहत, 100 घायल।
13 सितम्बर 2008ः दिल्ली में पांच बम धमाके, 30 हताहत, 130 से अधिक घायल।
27 सितम्बर 2008ः मेहरौली बम धमाके, 3 हताहत, 23 घायल।
9 सितम्बर 2008ः गुजरात तथा महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में कई बम धमाके, 8 हताहत, 80 घायल।
1 अक्टूबर 2008ः अगरतला में पांच बम धमाके, 4 हताहत, 74 घायल।
21 अक्टूबर 2008ः इम्फाल बम धमाके, 21 हताहत, 30 घायल।
26 नवम्बर 2008ः मुम्बई के विभिन्न स्थानों पर बम धमाके, 173 हताहत, 108 घायल।
अगर इन कुछ वर्षों में हुए बम धमाकों पर नज़र डाली जाए तो गुजरात के नरसंहार जैसा ही सिलसिला देश भर में देखने को मिलता है। अभी केवल मालेगांव और अजमेर बम धमाकों की फाईलें ही खुली हैं। समझौता एक्सप्रेस और मक्का मस्जिद धमाकों का आंशिक उल्लेख आया है। अगर इस बीच हुए सभी बम धमाकों की फाईलें खुलें, नए सिरे से जांच हो, आतंक मचाने वालों के चहरों और उनके संगठनों को सामने रखा जा सके तो शायद यह हक़ीक़त सामने आ जाए कि देश इस बीच किन परिस्थितियों से गुज़रता रहा है? किस मानसिकता के लोगों की हिंसक सनक का शिकार होता रहा है? अगर देश से प्रेम को धर्म से ऊपर उठ कर देखने की बातों को केवल शब्दों तक सीमित न रखें बल्कि उनमें वास्तविकता का रंग भर देने का संकल्प दिल व दिमाग़ में रखें तो फिर जो आतंकवादी चहरे नज़र आऐंगे हमें वह सब देश विरोधी, मानवता विरोधी नज़र आऐंगे। हम फिर न उनके नामों में कोई धर्म देखेंगे और न कोई संगठन देखेंगे। यह कहना बहुत आसान होता है कि यह मिट्टी हमारी माँ है। हम मातृभूमि के लिए क़ुरबान होने की भावना रखते हैं परन्तु यह करके दिखाना बहुत कठिन है। आज फिर भारत जिस दौर से गुज़र रहा है, इतिहास उसके एक-एक दिन और प्रत्येक क्षण की दास्तान लिखेगा। इनमें वह नाम और चहरे भी होंगे जिन्हें आने वाला कल भारत के इतिहास में कलंक के रूप में देखेगा और उसमें वह नाम भी शामिल होंगे जो भारत का मान बढ़ाने के लिए अपनी जान की बाज़ी लगाने में पेश-पेश रहते हैं। भारत एक महान देश है, इसे कई बार विपरीत परिस्थितियों से झूझना पड़ा है। हमने ग़ुलामी के दौर की दास्तान भी पढ़ी है, हमारे सामने स्वतंत्रता के संघर्ष का इतिहास भी है। हम उन पन्नों पर लिखे नामों को भी पढ़ते हैं और आज जो इतिहास लिखा जा रहा है, उसके पन्नों पर लिखे नामों को भी पढ़ रहे हैं और यही पूंजी आने वाली पीढ़ियों के नाम कर देने का इरादा रखते है ताकि कल जब वह अपने महान देश की दास्तान पढ़ें तो इसका हर दौर उनके मन मस्तिष्क में रहे। हर वह चेहरा उनके सामने रहे, जिसने देश प्रेम के लिए क़ुरबानियां पेश कीं और वह नाम और चेहरे भी उनके सामने रहें, जिन्होंने अपनी सनक को पूरा करने के लिए देश के सम्मान को कलंकित किया।
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