कल मुझे असीमानंद की गिरफ्तारी पर लिखना था, कौन है यह असीमानंद, किस-किस से इसके संबंध हैं, क्या कारनामें हैं इसके, किस षड्यंत्र में लिप्त पाया गया है, किन-किन बम धमाकों का आरोप है और जयपुर में गुजराती समाज के गैस्ट हाऊस में की गई जिस गुप्त बैठक का उल्लेख बार-बार आया है, उसमें शामिल होने वाले कौन-कौन थे, क्यों संघ परिवार इन नामों के सामने आने पर अत्यंत बदहवासी की स्थिति में बात करने लगा।
मगर मैं रूक गया। देर तक सोचता रहा कि जिस अंदाज़ में मैं लिख रहा हूं और रहस्योद्घाटन हो रहे हैं, जनता के बीच एक नया सन्देश जा रहा है, राजनीतिक, समाजिक परिदृश्य बदल रहा है और अब आतंकवाद के हवाले से की जाने वाली बातों में काफी बदलाव आ गया है, बल्कि साफ शब्दों में कहें तो अब इन बातों में ज़मीन व आसमान का अंतर दिखाई देता है। अब तक जिन पर आंतकवाद का आरोप लगाया जाता रहा, अब वह सुरख़ुरू होते नज़र आ रहे हैं और जो अत्यंत आक्रामक अंदाज़ में आरोप लगाया करते थे, वह अब दामन बचाते घूम रहे हैं, कहीं कुछ बोलते हैं तो इस तरह कि उन्हें स्वयं पता नहीं होता कि वह जो कुछ भी कह रहे हैं, उसका अर्थ क्या है। उनके इस तरह के व्यवहार पर लोगों की टिप्पणी क्या होगी, उनके यह आरोप स्वयं उनके लिए किस दर्जा शरमिंदिगी का कारण बनेंगे और फिर जब वह हर जगह आलोचना का निशाना बनने लगते हैं तो माफी मांगने का सिलसिला शुरू होता है। कहीं उनके बयान को निजी बयान कह कर संबंधित संगठन अपना पल्ला झाड़ लेना चाहता है तो कहीं सफाई देने की मुहिम शुरू हो जाती है।
यह एक लम्बी कहानी है और मेरे लेखों का सिलसिला भी लम्बा है, जो इंशाअल्लाह जारी भी रहेगा, मगर मुझे इस क्षण रूक कर अपने पाठकों से सीधे-सीधे कुछ बात करने की आवश्यकता इसलिए महसूस हुई कि कहीं इस तमाम संघर्ष का कोई ऐसा सन्देश न चला जाए कि हालात फिर करवट बदलने लगें। मैं बहुत स्पष्ट शब्दों में अपने पाठकों के सामने यह निवेदन कर देना चाहता हूं कि हिन्दु आतंकवादी संगठनों का जुड़ाव सामने आ जाना, हिन्दू धर्म से संबंध रखने वाले व्यक्तियों का बम धमाकों में शामिल पाया जाना कहीं हिन्दू धर्म या हिन्दू भाईयों के लिए आलोचना का कारण न बन जाये। आम हिन्दू, कट्टर हिन्दू और दिगभ्रमित हिन्दू में अंतर समझना होगा। इसी तरह आम मुसलमान, कट्टर मुसलमान और गुमराह मुसलमान में अंतर समझना होगा। जैसे लश्कर-ए-तयबा, हरकतुल जेहाद जैसे नाम रखने लेने से उन्हें धर्म पर चलने वाला कट्टर मुसलमान नहीं ठहराया जा सकता। इसी तरह विश्व हिन्दू परिषद, राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ और श्री राम सेना जैसे नाम रख लेने से यह समझ लेना कि विश्व हिन्दू परिषद पूरी दुनिया के सभी हिन्दूओं का सबसे बड़ा संगठन है, राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ देश की सुरक्षा और कल्याण के लिए काम करने वाली कोई स्वंय सेवी संस्था है या श्री राम सेना श्री राम के चरित्र से प्रभावित, उनके संदेश को आगे ले जाने वाला कोई संगठन है, तो यह गलत होगा।
निसंदेह एक लम्बी अवधि तक मुसलमानों पर आरोप लगाये जाते रहे, उनको बदनाम किया जाता रहा और कम से कम भारत में तो मुसलमानों के चरित्रहनन करने की इस हद तक कोशिश की गई कि वह अपनी पहचान से डरने लगे। वतन से उनकी मुहब्बत पर प्रश्न चिन्ह लगाये गये और आज जब मुसलमानों पर आरोप लगाने वाले तमाम जांच के बाद स्वंय इसमें लिप्त नज़र आते हैं तो क्रिया की प्रतिक्रिया के प्राकृतिक तकाज़े के अन्तर्गत कुछ लोग जोश व भावनाओं ने ऐसे ताने न देने लगें। उनकी चोटिल भावनाओं को समझा जा सकता है लेकिन समय और परिस्थितियांे के तकाज़े को समझना इससे ज्यादा आवश्यक है।
वह मुसलमान मुसलमान नहीं हो सकता है जो अल्लाह के बताये हुए रास्ते पर नहीं चल रहा है। कुरआन करीम की शिक्षाओं के अनुसार अमल नहीं कर रहा है इसी तरह हमारे विचार में वह हिन्दू सही अर्थों में हिन्दू कैसे हो सकता है जो श्रीराम के आदर्शो पर न चलता हो। हिन्दू धर्म के बताये हुए रास्ते पर न चलता हो। स्वंय को हिन्दुओं का ठेकेदार कहलवाने से कोई हिन्दुओं का ठेकेदार नहीं हो सकता। स्वंय को मुसलमानों का अलमबरदार कहने भर से कोई मुसलमानों का प्रवक्ता नहीं हो सकता। हमारी यह जंग आतंकवाद के विरूद्ध है और यह जंग उसी तरह लड़ी जानी है जिस तरह अंग्रेजों की गुलामी के विरूद्ध जंग लड़ी गई थी। अगर परवरदिगार आलम ने यह अवसर उस समय भी उपलब्ध किया कि आप अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ जंग में सबसे आगे रहें। अपनी जानों की कुर्बानी पेश करें, अपने देश को गुलामी के शिंकजे से निजात दिलायें, और आज भी चुनाव आप ही का हुआ जब देश आतंकवाद की महामारी का इस हद तक शिकार हुआ कि शांति प्रिय जनता का जीना दूभर हो गया था तो फिर चुनाव आप ही का हुआ। आप ही ने कुर्बानियां पेश कीं, आतंकवाद को नेस्त नाबूद करने के लिए आप ही सड़कों पर उतरेे ताकि राष्ट्रव्यापी स्तर पर जागृति मुहिम चलाई जा सके। इतिहास गवाह है उस समय भी हजारों उलेमा फांसी के तख्ते पर झूल गये थे जब देश की आज़ादी की जंग लड़ी जा रही थी, उस समय भी जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने आजादी के संघर्ष में उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी और इस बार भी आतंकवाद के विरूद्ध जंग मस्जिदों और मदरसों ही लड़ी गई। इसके बावजूद इस्लामी शिक्षण संस्थाओं को आतंकवाद का अड्डा क़रार दिया गया। लेकिन अपने कर्तव्य को समझते हुए ऐसे किसी भी आरोप की परवाह न करते हुए आतंकवाद के विरूद्ध आन्दोलन भी इन्ही शिक्षण संस्थाओं से चलाया गया। उर्दू पत्रकारिता ने जो भूमिका उस समय निभाई वही भूमिका आज हमने निभाने का प्रयास किया। वह जंग भी हिन्दू और मुसलमानों ने कंधा कंधा से मिलाकर लड़ी थी और आतंकवाद के विरूद्ध इस जंग में भी हिन्दू और मुसलमान साथ साथ हैं। कुछ हिन्दू तो उस समय भी अंग्रेजों की गुलामी के परवाने पर हस्ताक्षर कर रहे थे और आज भी आतंकवादी कार्यों में लिप्त नज़र आते हैं मगर हम उन्हें हिन्दूओं का प्रवक्ता क्यों समझें? उस समय अगर महात्मा गांधी वतन की आजादी की लड़ाई में लगे थे तो आज शहीद हेमन्त करकरे ने आतंकवाद के विरूद्ध जंग में सफलता का रास्ता दिखाया। यह सही समय है कि जब हम तमाम देशवासियों से बहुत प्रेम व विनम्रता से पेश आकर यह विश्वास दिलायें कि न तो दिगभ्रमित हिन्दुओं के अमल से हिन्दुओं की पहचान की जा सकती है और न ही गुमराह मुसलमानों से मुसलमानों की पहचान की जानी चाहिए बल्कि हमें संतोष इसलिए होना चाहिए कि पिछले दो वर्षों में हमने बहुत हद तक आतंकवाद पर काबू पा लिया है। ऐसा कोई आतंकवादी हमला 26 नवम्बर 2008 के बाद नहीं हुआ जो हमारे देश और राष्ट्र को भयभीत कर देता और जिस तरह हम आतंकवाद के नेटवर्क को समाप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं उससे देश में शांति रहने की आशा की जा सकती है।
यह थे चन्द वाक्य जो बिना देरी किए मैं आप के सामने प्रस्तुत कर देना चाहता था और अब मैं अपने लेख के इस सिलसिले की ओर आता हूं जिसका उल्लेख मैंने आरंभ में ही किया था। अर्थात मैं कल असीमानन्द की गिरफ्तारी पर लिखना चाहता था, रूक किस लिए गया वह भी आपके सामने रख दिया और जो लिखने जा रहा था अब वह भी आपके सामने रख देना चाहता हूं। असीमानन्द की गिरफ्तारी का समाचार पहले मैं शब्दशः एक मीडिया एजेंसी के हवाले से आपके सामने रख रहा हूं, ताकि यह समझा जा सके कि इस समाचार को पाठकों के सामने रखते समय न तो शब्द मेरे हैं और न ही अंदाज मेरा है,ताकि कोई यह न कह सके कि मैंने समाचार को इस अंदाज़ में पेश किया कि वह वास्तविकता से ज्यादा मेरी भावनाओं की तर्जुमानी करता था। हां मगर कल इस समाचार पर की जाने वाली टिप्पणी पूरी तरह अल्फ़ाज़ में भी, अंदाज़ में भी मेरी भावनाओं की तर्जुमानी समझी जा सकती है। लेकिन आज देखें ठींेांतण्बवउ की असीमानन्द की गिरफ्तारी पर यह खबर जिसे
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अजमेर दरगाह बम विस्फोट मामले में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता इंद्रेश कुमार सहित कुछ और कार्यकर्ताओं की भूमिका होने की बात सामने आने पर देश की राजनीति में एक बार फिर हलचल पैदा हो गयी है।
ए.टी.एस ने शुक्रवार को आरोप पत्र दाख़िल किया, जिसके मुताबिक़ अजमेर दरगाह को बम धमाकों से हिलाने की साज़िश जयपुर स्थित गुजराती समाज के अतिथि गृह में रची गयी थी। हिन्दू धार्मिक स्थलों पर जवाबी कार्यवाही करने के मक़सद से हिंदूवादी संगठनों के पदधिकारियों ने 31 अक्टूबर 2005 को इस अतिथिगृह के कमरा नंबर 26 में एक गुप्त बैठक की थी। इसमें इंद्रेश कुमार के अलावा अभिनव भारत संगठन के मुखिया स्वामी असीमानंद, जय वंदे मातरम संगठन की मुखिया साध्वी प्रज्ञा सिंह, सुनील जोशी, संदीप डांगे, रामचंद्र कलासांगरा उर्फ रामजी, शिवम धाकड़, लोकेश शर्मा, समंदर और देवेंद्र गुप्ता सहित कई लोग शामिल थे। इस अतिथिगृह की मैनेजर अरूणा ठाकुर ने एटीएस के समक्ष इन लोगों के ठहरने की पुष्टि की है। आठ सौ पन्नों के आरोप पत्र में 22 वें पन्ने पर इंद्रेश कुमार और साथियों का नाम आया है, लेकिन इंद्रेश कुमार इस पूरे आरोप पत्र को ही मनगढ़त कहानी का पुलिंदा बता रहे हैं। अपने एक वरिष्ठ पदाधिकारी का नाम किसी आतंकी घटना में आने से संघ में खलबली मचना स्वाभाविक है। वहां से प्रतिक्रियाएं उसके अनुरूप ही सामने आ रही हैं। इंद्रेश कुमार ने कहा कि संघ किसी भी तरह की राजनैतिक व सामाजिक हिसंा में विश्वास नहीं करता है। संघ क्या कोई भी धार्मिक संगठन यही कहेगा कि वह किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं करता। हिंसा महाभारत और रामायण में भी कहां हुई थी। धर्म के नाम पर हिंसा फैलाने वाले यही कहेंगे कि जो कुछ होता है वह धर्म की रक्षा के लिए होता है। यानी किसी भी तरह की हिंसा धर्मयुद्ध के आवरण में बड़े आराम से समान में फैलायी जा सकती है। यह गौरतलब है कि ए.टी.एस ने अभी केवल आरोप पत्र दाखिल किए हैं। अदालती कार्यवाही और दोष साबित होने पर सज़ा तय करना, यह लंबी प्रक्रिया अभी बाक़ी है। लेकिन संघ, विहिप व भाजपा की बौखलाहट देखते बनती है। हालांकि संघ प्रवक्ता राम माधव ने कहा कि संघ किसी भी तरह के आतंकवाद का विरोध करता है। इस तरह के मामले में अगर किसी व्यक्ति पर कोई आरोप हो तो उसकी सही ढ़ंग से जांच हो और अगर वह दोषी पाया जाता है तो उसे दंड भी मिले। लेकिन विहिप और भाजपा ने इस आरोप पत्र से उठे बवाल को अयोध्या फैसले और बिहार चुनाव तक पहुंचा दिया गया है। केन्द्र व राजस्थान दोनों जगहों पर कांग्रेस की सरकार है तो उसे निशाना बनाना स्वाभाविक है। लेकिन अयोध्या फैसला अदालत ने दिया है, उसे कुंठित राजनीति का मुद्दा बनाना ठीक नहीं है। इसी तरह बिहार में विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया चल रही है। नेपाल से माओवादियों का दबाव और भीतर नक्सालियों, बाहुबलियों, जातीय गुटबाज़ी से उपजा तनाव, इनके बीच चुनाव संपन्न करवाना यूं ही कठिन काम है। उस पर इस मामले को अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण से जोड़ना था और भड़काने वाले बयान देना किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता। विहिप के नेता प्रवीण तोगड़िया इसे सीधे देशभक्ति से जोड़ रहे हैं और कश्मीर में चल रही वार्ता प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कह रहे हैं कि जिस संगठन का 80-90 साल का देशभक्ति का इतिहास रहा है, उसे ऐसी गतिविधियों के साथ जोड़ना सबसे बड़ा षड़यंत्र है। वे इसे गृहमंत्री पी. चिदम्बरम के भगवा आतंकवाद की बात को सही साबित करने का कांग्रेस का राजनैतिक षड़यंत्र बता रहे हैं। उनका बयान विहिप के एजेंडे के अनुरूप है, लेकिन निराधार लगता है। इस आरोप पत्र को देशभक्ति जैसी महानतम भावना से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए। मामला अदालत में है तो फैसला आने तक इंतज़ार करना चाहिए। आतंकवाद के कई रूप और रंग भारत में फैल रहे हैं। दरअसल यह धर्म के नाम पर संकुचित होती मानसिकता का परिणाम है। क्रिया और प्रतिक्रिया के सिद्धांत को विकृत रूप में प्रस्तुत करने वाले इस संकुचित मानसिकता के कारण ही पनप रहे हैं।
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