10 नवम्बर को (पिम्परी चिन्चोड़ महाराष्ट)ª के पासबान-ए- उर्दू अवार्ड फंक्शन में शिरकत और उसके अगले दिन आज़म कैम्पस पूणे में मौलाना अबुलकलाम आज़ाद की जन्म तिथि पर ‘32वीं आलमी उर्दू कांफ्रेंस’ में ‘की नोट एड्रेस’, इसके बाद नागपुर विदर्भ मुस्लिम इंटलेक्चिुअल फोरम के द्वारा आर एस एस के गढ़ में मुस्लिम समस्याओं और उनके समाधान पर ऐतिहासिक कांफ्रेंस में संबोधन और फिर 14 नवम्बर 2010 को उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहर बनारस से हिन्दी दैनिक राष्ट्रीय सहारा की प्रकाशन के सिलसिले में आयोजित विमोचन कार्यक्रम,इसके बाद इलाहाबाद में शहीद वतन मौलाना लियाक़त अली की याद में ‘शामे लियाक़त’ के शीर्षक से राष्ट्रीय स्तर के आॅल इंडिया मुशायरे मंे शिरकत और फिर ईद कुर्बां अर्थात पिछला एक सप्ताह सफर में कटा और कुछ ईद कुर्बां की व्यस्तता, अतः लिखने का सिलसिला प्रभावित हुआ। आज 7 दिनों बाद जब कलम उठाया तो होना यह चाहिए था कि आज के लेख की शुरूआत उसी विषय से होती जिस पर लिखने का सिलसिला जारी था अर्थात अजमेर बम धमाकों की जांच में संघ परिवार के जिन कार्यकर्ताओं के नाम सामने आये हैं उनसे भारत में आतंकवाद के एक लंबे सिलसिले की वास्तविकता सामने आ रही थी। माले गांव के बाद अजमेर और अब हैदराबाद बम धमाकों के राज खुलने को थे। देश और समाज के हित में है कि न तो यह जांच का सिलसिला रूकना चाहिए और न किसी भी कारण से प्रभावित होना चाहिए अतः यह संघर्ष अभी जारी रहना चाहिए, इस संदर्भ में अगर हम यह कहें कि रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा ने इस विषय पर इतना काम किया है कि अपने आप में इसका यह एक ऐतिहासिक कारनामा है और अगर आज हम यह भी कहें कि संभवतः यह रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा के संघर्ष का ही नतीजा है कि आतंकवाद की वास्तविकता सामने आ सकी, वरना तो हमेशा की तरह पूर्व नियोजित मानसिकता के साथ कुछ विशेष नामों को सामने रखकर ही बात शुरू होती और समाप्त भी हो जाती।
आज के इस लेख के बाद इनशाअल्लाह फिर कुछ नये रहस्योद्घाटन और कुछ पुरानी घटनाओं की रौशनी में देश की अखंडता, शांति व एकता के लिए खतरा बने इस अफसोसनाक पहलू पर लिखने का सिलसिला जारी रहेगा। लेकिन आज का विषय भ्रष्टाचार और केंद्र सरकार की भूमिका पर।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा के भारत दौरे से पूर्व मुबंई के सबसे मंहगे इलाके कोलाबा में ‘आदर्श हाउसिंग सोसाईटी घोटाले का मामला सामने आया, जिसमें महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण की संलिप्ता भी नजर आई। नतीजा यह कि ओबामा की वापसी के फौरन बाद अशोक चव्हाण को अपने पद से हटना पड़ा। कांग्रेस ने बिना देर किये महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री अशोक चव्हाण को हटाने में ही अपनी भलाई समझी, इसलिए कि वह जनता के सामने अपनी छवि एक ईमानदार पार्टी और सरकार की रखना चाहती थी। मुख्यमंत्री अगर कांग्रेस के बजाये एनसीपी का होता तो शायद इतना आसान नहीं होता। बहरहाल इसके बाद केंद्र सरकार में शामिल डीएमके के ए राजा को भ्रष्टाचार के आरोप में हटना पड़ा। इस फैसले को अमली जामा पहनाने में केंद्र सरकार को काफी दिक्कत पेश आई, इसलिए कि राजा कांग्रेस पार्टी के सदस्य नहीं थे। बहरहाल सरकार की छवि को बनाये रखने के लिए यह निर्णय लेना भी आवश्यक था। लेकिन बात यहां समाप्त नहीं हुई। राजा के भ्रष्टाचार के आरोप केवल उन तक सीमित नहीं रहे बल्कि यह आरोप प्रधानमंत्री कार्याल तक पहुंच गया। अब प्रश्न प्रधानमंत्री की छवि का है। इसे कांग्रेस पार्टी और डाॅ0 मनमोहन सिंह के हक में सबसे बड़ी बात कहा जा सकता है कि आरोप लगाने वालों ने बहुत सावधानी से काम लेते हुए प्रधानमंत्री के चरित्र पर उंगली नहीं उठाई, लेकिन अब प्रश्न यह पैदा होता है कि यह मामला समाप्त कैसे हो क्योंकि लगातार संसद की कार्रवाई हंगामें की भंेट चढ़ रही है। विपक्ष का दबाव है कि ज्वाईट पार्लियामेंटरी कमेटी (जेपीसी)बनाई जाये जो तथ्यों को पता लगाकर उन्हें सामने रखे। इसमें क्या हर्ज है? कांग्रेस को यह पेशकश सहर्ष स्वीकार कर लेनी चाहिए लेकिन न जाने क्यों कांग्रेस इससे बच रही है? जबकि इस मामले में सरकार के लिए अदालत के द्वारा किसी निर्णय पर पहुंचने से बेहतर है ज्वाईंट पार्लियामंेटरी कमेटी बना दिया जाना। आखिर वह कौन लोग होंगें जो जेपीसी का हिस्सा बनेंगे। अगर ईमानदारी से देखा जाये तो इस हमाम में सभी निर्वस्त्र नज़र आते हैं। नीचे हम कुछ ऐसे घोटालों का हवाला पेश करने जा रहे हैं जिसमें अलग अलग समय पर अलग अलग पार्टियों के बड़े नेता आरोपी ठहराये गये और अगर कुछ वाक्य हाल ही के रहस्योद्घाटन पर लिखे जायें तो भारत के प्रसिद्ध कारोबारी व उद्योगपति रतन टाटा का यह आरोप कि 10-15 वर्ष पूर्व जब वह एयरलाईंस शुरू करना चाहते थे तो संबंधित विभाग से स्वीकृति देने के लिए 15 करोड़ की रिश्वत मांगी गई। जाहिर है उस समय ग़ुलाम नबी आज़ाद(कांग्रेस), सी.एम.इब्राहिम(जे.डी.यू) और अनंत कुमार(बी.जे.पी) नागरिक उड्यन मंत्री थे, अतः यह सारा मामला किसी भी पार्टी के नेता से जुड़ा रहा नहीं होगा। इनके अलावा बाबा रामदेव ने उतराखंड के एक मंत्री पर आरोप लगाते हुए कहा कि धर्मशाला के लिए जमीन देने के लिए उनसे दो करोड़ रूपये की रिश्वत मांगी गई और इस बात की जानकारी उतरांचल राज्य के मुख्यमंत्री को भी थी। इतना ही नहीं उन्होंने इस रकम को चंदे के रूप में प्राप्त किए जाने की बात को सही ठहराने का प्रयास किया। उतरांचल में भी कांग्रेस की सरकार नहीं है इसी तरह ताजा समाचार है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री यदूरप्पा जमीन घोटाले में फंस रहे हैं। कर्नाटक सरकार के मंत्री रेड्डी भाईयों की सच्चाई जनता के सामने आ जाये तो शायद यह भ्रष्टाचार के इतिहास में सबको पीछे छोड़ दे और फिर जिस टेलिकाॅम मंत्रालय में हुए घोटाले की जांच का मामला चर्चा में है उसकी शुरूआत भी अगर जेपीसी प्रमोद महाजन के दौर से करे तो हो सकता है कि ए राजा के दौर में हुआ बहुत बड़ा घोटाला प्रमोद महाजन के दौर में हुए घोटाला से बहुत छोटा साबित हो और वह लोग जो संसद को नहीं चलने दे रहे हैं, प्रधानमंत्री कार्यालय को इसमें लिप्त मानकर चल रहे हैं स्वंय इस आग को अपने दामन तक पहुंचते देखकर आवाज़ उठाना बन्द कर दें।
हालांकि यह देश व राष्ट्र के हित में है कि हर भ्रष्टाचार के मामले पर बहुत गंभीरता से विचार किया जाये। तमाम घटनाओं की तह तक पहंचा जाये, संबंधित लोगों को उचित सजायें भी दी जाये मगर इस समय हम एक बात और भी सोच रहे हैं कि जबजब एक विशेष मानसिकता के लोग अपने बुने जाल में फंसने लगते हैं, उनके चेहरे बेनक़ाब होने लगते हैं तो कोई घटना ऐसी होती है या कोई ऐसा कारण सामने आ जाता है कि उस तरफ से ध्यान हट जाता है और चर्चा का विषय कुछ नई बातें बन जाती हैं। हो सकता है कि यह केवल संयोग हो कि जिस समय शहीद हेमन्त करकरे मालेगांव बम धमाके की जांच के द्वारा हर रोज नये नये रहस्योद्घाटन कर रहे थे , ऐसे ऐसे लोगों के नाम सामने आ रहे थे जिनके विषय में सोचा ही नहीं जा सकता था और उनकी कारगुजारी के जिस सुनियोजित अंदाज का कच्चा चिट्ठा बयान कर रहे थे उससे लगता था कि अब देश आतंकवाद की तमाम घटनाओं का सच जान जायेगा, चूंकि इन रहस्योद्घाटनों में इतने बड़े प्रभावशाली और जिम्मेदार लोग शामिल नज़र आ रहे थे, इतना बड़ा नेटवर्क इन बम धमाकों के लिए इस्तेमाल हो रहा था कि सबके नाम और कारनामें सामने आ जाते। इनके नापाक इरादों का पता लग जायेगा ऐसा लगने लगा था कि अब हम देश भर में फैले आतंकवाद का बुनियादी कारण जान जायेंगे, जो लोग इन बम धमाकों के पीछे हैं उनका सारा सच सामने आ जायेगा, लेकिन तभी मुम्बंई में हुआ एक बड़ा आतंकवादी हमला जिसमें हेमन्त करकरे की भी जान गई और इन रहस्योद्घाटनों का सिलसिला टूट गया। फिर एक लंबी अवधि तक हम बात करते रहे 26/11 पर, पाकिस्तान के इसमें संलिप्त होने पर, लश्कर-ए-तैयबा की भूमिका पर, अजमल आमिर कसाब के जुर्म पर, या डेविड कोलमैन हेडली पर, इस बीच मालेगांव बम धमाके की जांच प्रभावित हुई साथ ही प्रज्ञा सिंह ठाकुर को बड़ी राहत मिली। उनके चेहरे से गुम हुई मुस्कुराहट वापस लौट आई और बड़ी हद तक इस पर बातचीत बन्द हो गई। फिर इसके लगभग दो वर्ष बाद अजमेर बम धमाकों की जांच मंे वही चेहरे सामने आने लगे जिनका रहस्योदघाटन हेमन्त करकरे कर रहे थे। नाम अलग हो सकते हैं, मगर काम वही था, परिवार वही था, काम करने का तरीका वही था। फिर पहले की तरह हंगामा आराई का दौर शुरू हुआ, पहले साध्वी प्रज्ञा सिंह के नाम पर पूर्व गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी बिफरे थे और उसके मामले को लेकर प्रधानमंत्री डाॅ0 मनमोहन सिंह से मिले थे। इस बार इन्द्रेश का नाम आने पर संघ परिवार ने हंगामा बरपा कर दिया। मोहन भागवत से लेकर सुदर्शन तक आग बगूला हो गये। सुदर्शन ने तो यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी पर इस तरह के आरोप लगाने शुरू कर दिये कि उन्हें बड़े पैमाने पर हर तरफ से आलोचना का सामना करना पड़ा यह सिलसिला इसी रफतार से जारी रहता तो संघ परिवार और उसका राजनीतिक प्लेटफार्म भारतीय जनता पार्टी टूट का बिखर जाते। फिर भ्रष्टाचार के शोर ने देश का ध्यान अपनी तरफ खींचा। संघ परिवार और भारतीय जनता पार्टी को अवसर मिला अपने बचाव पर नये सिरे से विचार करने का। ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि इस विशेष दल को फिर राहत मिली तो उसी शहर अर्थात मुंबई से। आदर्श घोटाले ने उन लोगों को ज़बान दी जिन्होंने आतंकवाद के रहस्योदघाटन के चलते होंठ सी लिये थे और मुंह छुपाये घूम रहे थे लेकिन ए राजा के मामले और प्रधानमंत्री कार्यालय तक भ्रष्टाचार के इस सिलसिले के पहुंचने ने हवा का रूख बिल्कुल बदल दिया। फिर अजमेर, हैदराबाद जैसे बम धमाकों पर होने वाले रहस्योदघाटनों का सिलसिला रूक गया और अपने बचाव का रास्ता ढुंढने वाले हमलावर के रूप में सामने आने लगे।
कांग्रेस को चाहिए कि निडर होकर जेपीसी बनाये और जिस दिशा में जो काम हो रहा था उसे जारी रखे। हमें नहीं लगात की जेपीसी में शामिल होने वाले तमाम नेता ऐसा कुछ रखने में सफल होंगे जिससे प्रधानमंत्री या केंद्रीय सरकार को कोई खतरा होगा, इसलिए कि कौन नहीं जानता कि बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी और कितनी दूर तक इसका कुछ इशारा हम निम्नलिखित पंक्तियों में देने का प्रयास कर रहे हैं।
तांसी(तामिलनाडू इस्माल इंडस्ट्रीज कार्पोरेशन) जमीन घोटालाः ज्या पब्लिकेशन और सासी इंटर प्राइजेज जिसमें तामिलनाडू की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता ओर शशिकला पार्टनर थीं , ने 1992 में तांसी फाउंड्री लैंड और म्दंउमस वायर यूनिट खरीदी थी। 15 नवम्बर 1996 को उनके विरूद्धचार्जशीट दायर की गई कि इस जमीन की खरीद से स्टेट एक्स चेकर को लगभग 2करोड़ 87 लाख का घाटा हुआ था। जयललिता के अलावा 6 लोगों के विरूद्ध मामला दर्ज किया गया था।
चारा घोटलाः चारा घोटाला 1996 में सामने आया, शुरूआत में इस घोटाले में छोटे स्तर के सरकारी अधिकारी लिप्त थे लेकिन धीरे धीरे इसमें उंचे कद वाले राजनीतिज्ञ और व्यापारी जुड़ गये। यह घोटाला लगभग 950 करोड़ रूपये का था उस समय के बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव इस घोटाले में मुख्य आरोपी थे इसी घोटाले को लेकर लालू प्रसाद पर अपने ही पार्टी जनता दल के सदस्यों ने आवाज उठाई । इन सबके चलते लालू प्रसाद यादव ने जनता दल से अलग होकर अपनी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल बना ली थी।
ताजकारीडोर घोटालाः वर्ष 2002-03 में ताज महल के आसपास पर्यवटको ं को अच्छी सुविधायें उपलब्ध कराने के लिए एक प्रोजेक्ट पास किया गया था जिसकी अनुमानित लागत 175 करोड़ रूपये थी। पहले कहा गया था कि पर्यावरण मंत्रालय ने इस प्रोजेक्ट को अपनी स्वीकृति दे दी है, लेकिन बाद में केंद्र की एनडीए सरकार ने कहा कि यह प्रोजेक्ट पर्यावरण मंत्रालय की स्वीकृति के बिना ही मायावती ने शुरू कर दिया था। इस प्रोजेक्ट में हुए घोटाले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई सीबीआई ने मायावती से संबंधित विभिन्न स्थानों पर छापे मारे और दावा किया कि मायावती ने पहले कहा था कि उन्होनें अपनी मुख्यमंत्री काल में केवल 1.1करोड़ रूपये कमाये हैं लेकिन उनके एक ही बैंक एकाउंट में 2.5 करोड़ रूपये जमा थे और उनके नाम पर उस समय 15करोड़ से अधिक की सम्पत्ति थी। इसी मामले में एक समय में उनके विरूद्ध गिरफ्तारी वारंट भी जारी कर दिया गया था, लेकिन उस पर स्टे लग गया।
हवाला घोटालाः इस घोटाले के अन्तर्गत हवाला दलालों जैन भाईयों के द्वारा कुछ भारतीय राजनेताओं को रिश्वत देने का मामला सामने आया था यह 18 मिलियन यूएस डालर घोटाला था। इस घोटाले के आरोपियों में लाल कृष्ण आडवाणी भी शामिल थे, वह उस समय विपक्ष के नेता थे। हालांकि उन्हें 1997 में पक्के सबूत न होने के कारण बरी कर दिया गया था।
खदानों की गैर कानूनी खुदाईः जी करूणाकर रेड्डी और जी जनार्दन रेड्डी जो कर्नाटक सरकार में मंत्री हैं उनकी कम्पनी व्ठन्स्।च्न्त्।ड माईनिंग कम्पनी गैर कानूनी खुदाई में शामिल है। इसकी रिपोर्ट लोकआयुक्त जस्टिस संतोष हेगड़े ने दी थी, लेकिन वहां के मुख्यमंत्री यदूरप्पा ने रेड्डी भाईयों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जिसके नतीजे में जस्टिस हेगड़े ने अपना इस्तीफा भी दे दिया था, लेकिन बाद में भाजपा नेता एल के आडवाणी ने उन्हें इस्तीफा न देने के लिए मनाया
यदूरप्पा जमीन घोटालाः कर्नाटक के मुख्यमंत्री वी एस यदूरप्पा ने एक कम्पनी जिसमें उनका पुत्र वीवाई राघवेन्द्र पार्टनर है, को 50ग80 फिट का प्लाट अलाट किया था इसके अलावा उन्होंने अपनी लड़की उमा देवी को दो एकड़ इंडस्ट्ररियल जमीन बीपीओ खोलने के लिए दी थी। इसी तरह उनके दो रिश्तेदारों को जमीनें आवंटित की गई थीं।
मामले और भी हैं लेकिन आज के लिए बस इतना ही काफी है।
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