Tuesday, November 2, 2010

यहाँ धमाका वहाँ धमाका-यहाँ भी संघ वहाँ भी संघ
अज़ीज़ बर्नी

हम चाहें तो रस्सी को सांप बनाकर पेश कर सकते हैं और यह क्षमता भी हमारे अंदर है कि हम सांप को रस्सी सिद्ध कर दें, अकसर हम ऐसा ही करते रहे हैं और आगे भी करते रह सकते हैं। लेकिन इसका परिणाम क्या होगा, आज इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है। हम रस्सी को सांप बनाकर पेश करने पर उतारू हो जाएंगे तो लोग रस्सी से डरकर और भय तथा आतंक का शिकार होकर स्वयं को अपने घरों में बंद कर लेंगे। हर तरफ़ आतंक का आलम होगा, जबकि रस्सी से ख़तरे का कोई कारण नहीं होगा। रस्सी से किसी को नुक़्सान नहीं पहुंच सकता। लेकिन दूसरी ओर जब हम सांप को रस्सी समझने की भूल करेंगे तो अपने मासूम बच्चों को मौत के मुंह में धकेल देंगे। वह किसी भी तरह के ख़तरे से निश्चिंत सड़कों पर घूमते नज़र आएंगे और हमारी बस्ती में सांपों का डेरा होगा। हमारे मासूम बच्चे उन्हें रस्सी समझते रहेंगे और यह सांप उन्हें डसते रहेंगे।
पिछले एक एम्बे समय से यही हो रहा है। हमारा देश आतंकवाद का शिकार है, जनता भयभीत है, बेगुनाह भारतीय नागरिक मृत्यु का निवाला बन रहे हैं और हम हर दुर्घटना की तस्वीर अपनी इच्छा के अनुसार पेश करते रहे हैं, अर्थात वही सांप को रस्सी और रस्सी को सांप समझने और समझाने का प्रयास। घरों में बम बनाने की फ़ैक्ट्रियां चलाई जाती हैं और हम उन्हें पटाख़ों का ढ़ेर सिद्ध करने पर उतारू नज़र आते हैं। बड़ी-बड़ी घटनाओं को इस तरह नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जैसे कुछ हुआ ही न हो। अगर कभी कहीं कोई समाचार आ भी गया तो बस इस तरह के वह सांप नहीं था रस्सी थी, डरने की कोई आवश्यकता नहीं। 28 अक्तूबर 2010 को कानपुर में बम धमाके हुए जिसमें 3 मकान ध्वस्त हो गए, 4 लोगों की जानें गईं, कई घायल हुए, समाचार यह सामने आया कि अवैध रूप से रखे हुए या बनाए जा रहे पटाख़ों में आग लग गई फिर चार दिन बाद जिसके घर में यह बम बनाने का कार्य अंजाम दिया जा रहा था, अर्थात वार्ड ब्वाय राजेश पुलिस की पकड़ में आया। ज्ञात हुआ कि उसके पास से 85 जीवित बम बरामद हुए हैं और कुछ अमोनियम नाइट्रेट भी। अनुमान है कि दो चार दिन इस घटना की चर्चा रहेगी, फिर न कोई समाचार प्रकाशित होगा और न ही जांच का कोई ख़ास परिणाम सामने आएगा। जैसा कि 2 वर्ष पूर्व 24 अगस्त 2008 को हुए बम धमाके में बम बनाने के प्रयास में लिप्त 2 लोग मारे गए थे यह दोनों ही संघ परिवार से संबद्ध बताए गए थे। दो चार दिन यह समाचार चर्चा में रहा, उसके बाद यह सामने नहीं आया कि यह लोग बम किसके लिए बनाते थे, किसके इशारे पर बनाते थे, कहां सप्लाई किए जाते थे या जैसा कि मालेगांव बम ब्लास्ट, समझौता एक्सप्रेस बम धमाका, अजमेर बम धमाका, मक्का मस्जिद बम ब्लास्ट जैसे बम धमाकों की जांच में एक विशेष मानसिकता के लोगों के नाम सामने आ रहे हैं, इन बम धमाकों में या ऐसे ही अन्य बम धमाकों में कानपुर तथा नानदेड़ में बम बनाने के प्रयास में मारे गए लोगों का संबंध भी किसी बम धमाके से था, वह किसके लिए काम कर रहे थे, उनके द्वारा बनाए गए बम किन किन बम धमाकों में प्रयोग हुए। वहां से जो नक़्शा और दस्तावेज़ बरामद हुए, उनके अनुसार यह बनाए जाने वाले बम कहां कहां प्रयोग होने थे, अब अगर एक अजमेर ब्लास्ट की चर्चित सुनील जोशी की डायरी के हर पन्ने से नए नए चेहरे सामने आ रहे हैं, नए नए रहस्योदघाटन हो रहे हैं तो क्या इन बम बनाने वालों के यहां से भी ऐसी कोई डायरी मिली थी। ऐसा कोई दस्तावेज़ सामने आया था, जिससे अन्य बम धमाकों के बारे में कुछ तथ्यों का पता चलता है, आज इन सभी बातों पर नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता है, अगर यह बम धमाके किसी ऐसी राजनीतिक मानसिकता के षड़यंत्र का हिस्सा हैं, जो अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बेगुनाह इनसानों का ख़ून बहा रहे हैं तो क्या उनकी इस हरकत को देश तथा जनता के हित में सोचा जा सकता है, क्या केवल एक विशेष समुदाय को बदनाम करने, आरोपित ठहराने, घृणा का पात्र बनने, जेल की सलाख़ों के पीछे डाल दिए जाने की क़ीमत पर हम बेगुनाह इनसानों की हत्या व ख़ून देखते रहें, अपनी आंखों से देश को तबाह व बरबाद होते देखते रहें और यह सोच कर चुप रहेंगे कि आरोप तो अमुक विशेष समुदाय पर जा रहा है जो किसी की योजनाबद्ध रणनीति का हिस्सा है।
नहीं, इतने संवेदनविहीन नहीं हैं हम। हम भारतीयों की भावनाएं और संवेदनाएं इतनी मुर्दा नहीं हो गई हैं कि हम केवल किसी की राजनीतिक महत्वकांक्षाओं के मद्देनज़र बेगुनाह इनसानों का ख़ून बहाए जाते देखते रहें। हम भारतीय तो वह है, जो श्री राम के आदर्शों को मानते हैं। अल्लामा इक़बाल ने श्री राम को इमामुल हिंद की उपाधि दी। वह श्री राम जिन्होंने राज महल छोड़ दिया और वनवास धारण कर लिया, केवल इसलिए कि उनकी सौतेली मां का दिल न दुखे। उनको आदर्श मानने वाले भला कैसे किसी निर्दोष की जान लेने पर उतारू हो सकते हैं। कानपुर की चार दिन पहले की घटना हमारी नज़रों के सामने है। कुछ बातें हम अपने देश तथा देशवासियों के सामने रखना चाहते हैं कि ईमानदारी से यह सोच कर देखें कि वार्ड ब्वाय जिसके घर में बम बनाए जा रहे थे, उसका नाम राजेश न होकर रशीद होता तो क्या इस घटना की जांच इसी तरह आगे बढ़ती। क्या इस बम धमाके को इसी ढंग से पेश किया जाता, क्या हमने यह जानने का प्रयास किया कि अपनी 3 दिवसीय फ़रारी के दौरान क्या वास्तव में वह अपने उन्हीं दोस्तों के पास रहा, जिनके नाम ले रहा है या फिर इस बीच वह अपने आक़ाओं से मिल कर अपने बचाव का मार्ग तलाश करता रहा। क़ानूनी सलाह भी प्राप्त की और जब रास्ता निकल आया उसे बचाने की पक्की व्यवस्था कर ली गई तो वह सामने आ गया, क्या हमने इस बीच उसके फ़ोन की काॅल डिटेल प्राप्त की, उसने किस किस से बात की, हो सकता है यह राजेश एक और सुनील जोशी के रूप में काम कर रहा हो।
यह भी विचार करके देखें कि अजमेर बम धमाकों की जांच में संघ परिवार के बड़े नेता इंद्रेश का जिस प्रकार नाम सामने आया, अगर उनके स्थान पर दूसरे समुदाय के उतने ही बड़े नेता का नाम सामने आता तो क्या इसी तरह से हम उसे हलके रूप में ले पाते? क्या पूरा देश उस एक नाम और उसके उल्लेख से एक पूरे समुदाय को आरोपित नहीं ठहरा रहा होता। हमारे कहने का उद्देश्य यह नहीं है कि उस एक व्यक्ति के कारण जिसका नाम अजमेर बम धमाकों के सिलसिले में सामने आया है, एक पूरे समुदाय को संदेह की दृष्टि से देखा जाए, परंतु हम यह निवेदन तो कर ही सकते हैं कि अपराध तथा अपराधियों को समझने के हम दो माप दंड रखेंगे, उन्हें दो अलग अलग निगाहों से देखेंगे तो अपने देश से अपराध की समाप्ति कैसे होगी। हमने पत्रकारिता के माध्यम से आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध लड़ना एक मिशन इसीलिए समझा कि हम महसूस कर रहे थे जिस प्रकार आज़ादी से पूर्व स्वतंत्रता संग्राम के लिए क़लम का जिहाद आवश्यक था, ग़्ाुलामी से छुटकारा पाने के लिए उनके विरुद्ध युद्ध लड़ना आवश्यकत था, जिन्होंने हमारे देश को ग़्ाुलाम बना रखा था उसी प्रकार आज आतंकवाद के विरुद्ध लड़ना भी उतना ही आवश्यक है। आज़ादी से पूर्व उर्दू पत्रकारिता ने ही यह कारनामा अंजाम दिया था, आज फिर उर्दू पत्रकारिता को अपनी इस ज़िम्मेदारी का एहसास है, इसलिए हमने आतंकवाद के विरुद्ध आवाज़ उठाना अपना परम कर्तव्य समझा, लेकिन साथ ही हमें संतोष इस बात का भी है कि अभी तक जो समाचार केवल उर्दू समाचारपत्रों के प्रथम पृष्ठ पर प्रथम समाचार के रूप में प्रकाशित हो रहे थे, अब वह हमारे राष्ट्रीय मीडिया अर्थात अंगे्रेज़ी के बड़े समाचारपत्रों के प्रथम पृष्ठ पर प्रथम समाचार के रूप में प्रकाशित किए जाने लगे हैं। हम इसे अपनी सफलता में गिनें या न गिनें परंतु इतना तो हुआ है कि अब हम सच को सच कहने का साहस करने लगे हैं। रस्सी को रस्सी और सांप को सांप कहने का साहस हमने अपने अंदर पैदा कर लिया है और इसे हम अपने देश तथा समुदाय के प्रति एक सुखद संदेश समझते हैं। हमने अजमेर बम धमाकों तथा मालेगांव और मक्का मस्जिद ब्लास्ट के बारे में बहुत कुछ लिखा है और अभी बहुत कुछ लिखना बाक़ी है। कानपुर की हालिया दुर्घटना हमारी ख़ुफ़िया एजेंसियों की किन लापरवाहियों का परिणाम है और उसके कितने भयानक परिणाम हो सकते हैं, इस संबंध में भी हमारे लिखने का सिलसिला जारी रहेगा। लेकिन हम अपने इस लेख की कड़ी में हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित प्रथम पृष्ठ के इस समाचार को इसलिए स्थान देना चाहते हैं ताकि भारत सरकार और अपने देश की जनता को यह एसहसास दिला सकें कि हमने जिस विषय की गंभीरता को समझते हुए अपना क़लम उठाया था आज उस विषय के महत्व को अन्य ज़िम्मेदार संस्थानों ने भी समझ लिया है और हमसे बेहतर और प्रभावशाली ढंग से वही बात कहनी शुरू कर दी है। इसलिए मुलाहिज़ा फ़रमाएं ‘‘हिन्दुस्तान टाईम्स’’ ;भ्प्छक्न्ैज्।छ ज्प्डम्ैद्ध, तिथिः 01.11.2010 के प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित पहली ख़बरः
अजमेर अभियुक्त: 5 में से 4 का संबंध आरएसएस से
केवल इंद्रेश कुमार ही नहीं, 5 में से 4 अभियुक्तों का आरएसएस से संबंध
धमाकों से संबंधित चार्जशीट में कहा गया है कि इस भगवा आतंक की जड़ें काफ़ी गहरी हैं।
(एच॰टी॰ संवाददाता)
नई दिल्ली: अक्तूबर 2007 में हुए बम धमाकों में, जिनमें तीन व्यक्ति हताहत हुए थे, अकेले वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार का ही संबंध आरएसएस से नहीं है। 22 अक्तूबर को राजस्थान एटीएस की ओर से दायर आरोपपत्र में दिए गए 5 अभियुक्तों में से 4 का संबंध आरएसएस से है।
इस षड़यंत्र में शामिल छठे प्रमुख आरोपी का नाम चार्जशीट में इसलिए नहीं दिया गया है क्योंकि उसकी मृत्यु हो चुकी है, फिर भी उसका अर्थात सुनील जोशी का संबंध भी आरएसएस से ही था। उसके नाम को शामिल तो किया गया है, लेकिन कुमार को अभियुक्त नहीं बनाया गया है। उसके नाम का उल्लेख केवल अक्तूबर 2005 की उस बैठक के संबंध में ही दिया गया है जिसमें इन धमाकों से संबंधित रणनीति तय की गई थी। इंद्रेश कुमार के नाम के प्रकाश में आने के बाद आरएसएस ने काफ़ी सख़्त प्रतिक्रिया व्यक्त की है और उसने दावा किया है कि एटीएस की जांच कार्रवाई अब ईमानदाराना नहीं रही है बल्कि केवल राजनीतिक प्रतिशोध का माध्यम ही बन कर रह गई है।
लेकिन चार्जशीट के अनुसार जिन 5 व्यक्तियों पर हत्या तथा षड़यंत्र के आरोप लगाए गए हैं उनमें से 4 अर्थात देवेंद्र गुप्ता, चन्द्रशेखर लावे, लोकेश शर्मा तथा संदीप डांगे का संबंध आरएसएस से है। इनमें से पहले तीन व्यक्ति तो इस समय जेल में हैं जबकि डांगे और पांचवां व्यक्ति रामजी कलसांग्रा फ़िलहाल फ़रार है।
आरोपपत्र का कहना है कि जोशी, मऊ, मध्यप्रदेश में आरएसएस का ज़िला प्रचारक था। गुप्ता ने अपने प्रमोशन तथा 2003 में जामतारा, झारखंड में ज़िला प्रचारक के रूप में अपने हस्तांतरण से पूर्व आरंभ में जोशी के मातहत ही आरएसएस के तहसील प्रचारक के रूप में काम किया था। गुप्ता अजमेर का ही रहने वाला है और उस पर आरोप है कि उसने दरगाह चिश्तिया में बम धमाकों के लिए डेटोनेटर्स और मोबाइल के सिम कार्ड उपलब्ध कराए थे। आरोपपत्र में दावा किया गया है कि लावे, मध्य प्रदेश के शाजापुर ज़िला में आरएसएस का ज़िला सम्पर्क प्रमुख तथा आरएसएस कार्यकर्ता भी था। डांगे, जो कि इंजीनियरिंग गे्रजुएट भी है और जिसने बम तैयार किया था, शाजापुर में आरएसएस का ज़िला प्रचारक भी था। कलसांग्रा एक प्रशिक्षित इलैक्ट्रिशियन है जिसने डांगे की सहायता की थी और वह एकमात्र ऐसा आरोपी है, जिसके आरएसएस से संबंध का अब तक कोई पता नहीं चल सका है।
निंदनीय प्रमाणः-
अजमेर अभियुक्त: 5 में से 4 का संबंध आरएसएस से
केवल इंद्रेश कुमार ही नहीं, 5 में से 4 अभियुक्तों का आरएसएस से संबंध
देवेंद्र गुप्ताः-
ज़िला प्रचारक, जामतारा झारखंड
चंद्रशेखर लावे
ज़िला सम्पर्क प्रमुख
शाजापुर, म.प्र.
लोकेश शर्माः-
आरएसएस कार्यकर्ता
संदीप डांगे भी जो फ़रार है मध्यप्रदेश में शाजापुर का ज़िला प्रचारक
एक और षड़यंत्रकारी आरोपी सुनील जोशी, मृत्यु हो जाने के कारण जिसका नाम शामिल नहीं किया गया, म.प्र. मऊ का ज़िला प्रचारक
घटनात्मक समानताः-
आरोपपत्र में मई 2007 में अजमेर तथा हैदराबाद में प्रयोग किए जाने वाले बमों की समानता का भी उल्लेख किया गया है। दोनों ही घटनाओं मेंः
टाइमर के रूप में एक मोबाइल हैंडसैट का प्रयोग किया गया था।
दो बम रखे गए थे, जिनमें से एक तो फट गया था जबकि दूसरा ज्यों की त्यों अवस्था में ही मिला था।
दोनों ही पाइपों की लम्बाई, जिनमें यह विस्फोटक पदार्थ भरा गया था लगभग बराबर ही थी।
इस विस्फोटक पदार्थ की पैकिंग के लिए एक ही प्रकार के काग़ज़ का प्रयोग किया गया था।
जिस बक्से में यह विस्फोटक पदार्थ रखा गया था उसका आकार तथा साइज़ भी एक जैसे ही थे।
इन बक्सों पर तालाबंद करने का सिस्टम भी लगभग एक जैसा ही था।

1 comment:

आपका अख्तर खान अकेला said...

aziz bhayi aapne to bs schchaayi kaa postmartm kr ke rkh diya aek aaynaa is duniya ko aapne dikha diya bs ab koi ismen apna kurup chehra dekh kr naraz ho to ho jane do hm aapke saath hen. akhtar khan akela kota rajsthan