आंध्रप्रदेश की यात्रा पर जाने से पूर्व लिखे गए अपने लेख में मैंने इरादा प्रकट किया था कि वापसी पर सुनील जोशी की हत्या पर प्रकाश डालूंगा, क्योंकि इस हत्या का संबंध न केवल मालेगांव बम धमाके से है, बल्कि यह हत्या इस ख़तरनाक मानसिकता को बेनक़ाब करती है, जो देश में आतंकवाद की घटनाओं के लिए भी ज़िम्मेदार है और मुसलमानों को आरोपी ठहराए जाने के लिए भी, लेकिन इस बीच ‘अमित शाह’ का मामला सामने आया तो मुझे लगा कि अब अविलंब अमित शाह के इस स्शौर्यगत जुलूस पर लिखा जाना चाहिए, जो एक विशेष मानसिकता को दर्शाता है। बहरहाल मैं अब वापस लौटता हूं, उसी सुनील जोशी की हत्या की राजनीति पर जो राजनीति, अपराध और आतंकवाद की एक ऐसी मिली-जुली कहानी सामने रखती है कि सुनने वाले के भी रौंगटे खड़े हो जाते हैं। आख़िर कौन सोच सकता है कि वह लोग जो देश प्रेम का दावा करते हैं, देश पर शासन करने के इच्छुक हैं, आख़िर उनकी मानसिकता कितनी पड़यंत्रकारी और ख़तरनाक है। माना कि वह मुसलमानों को बदनाम करना चाहते हैं, माना कि वह हिंदू राष्ट्र की स्थापना करना चाहते हैं, परंतु क्या अपने इस सपने को साकार करने के लिए आतंकवाद का सहारा लेना आवश्यक है? और इंतिहा तो यह है कि अख़िर कितने पत्थर दिल लोग हैं यह, जो अपने ही लोगों की हत्या करने से भी नहीं झिझकते। अगर सुनील जोशी की हत्या की कहानी और दयानंद पांडे के नारको टैस्ट के बाद सामने आई कहानी पर विश्वास किया जाए तो ‘सीमी’ ;ैजनकमदजे प्ेसंउपब डवअमउमदज व िप्दकपंद्ध को आरोपित ठहराया जाना और मालेगांव का बम ब्लास्ट दरअसल सुनील जोशी और एक स्थानीय कांग्रेसी नेता प्यारे सिंह के बीच आपसी झगड़े का परिणाम है। यह दोनों ही महू में रहते थे, अकसर दोनों में कहा सुनी होती रहती थी, एक बार यह विवाद इतना बढ़ा कि प्यारे सिंह ने सुनील जोशी की सबके सामने चोटी काट ली। इसके कुछ दिन बाद ही प्यारे सिंह और उसके बेटे की हत्या हो गई, जिसका आरोप सुनील जोशी पर लगाया गया, परिणामस्वरूप सुनील जोशी को शहर छोड़ कर भागना पड़ा और अपनी पहचान छुपाने के लिए एक बदले हुए नाम के साथ देवास के आश्रम में गुरू जी के नाम से रहने लगा। यहीं पर 29 दिसम्बर 2007 को अर्थात् मालेगांव बम ब्लास्ट से ठीक 10 महीने पूर्व सुनील जोशी की हत्या हुई। दरअसल यह आश्रम सुनील जोशी का ख़ुफ़िया ठिकाना था, उसके बारे में कम ही लोग जानते थे और कभी -कभार ही यहां कोई उससे मिलने आता था। हां, अलबत्ता प्रज्ञा सिंह ठाकुर ज़रूर उससे मिलने अकसर आया करती थी।
सुनील जोशी आरएसएस का प्रचारक था और प्रज्ञा सिंह ठाकुर का क़रीबी दोस्त था। दयानंद पांडे ने अपने नारको टैस्ट में सुनील जोशी और प्रज्ञा सिंह ठाकुर की निकटता की जो भी कहानी बताई हो, उससे हमारा कुछ भी लेना देना नहीं है। हां, परंतु दयानंद पांडे के इस बयान में दो बातें अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, एक तो यह कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर सुनील जोशी की हत्या के बाद अत्यंत ग़्ाुस्से में थी और उसकी हत्या का बदला लेना चाहती थी। इसी सिलसिले में दयानंद पांडे के घर जाकर उससे मुलाक़ात की और सहयोग मांगा। अपने बयान में स्वामी दयानंद पांडे ने यह भी स्वीकार किया कि उसी ने लेफ़्टिनेंट कर्नल पुरोहित से प्रज्ञा सिंह ठाकुर को मिलवाया था, जिसने बाद में उसकी बहुत सहायता की। दरअसल प्रज्ञा सिंह ठाकुर सुनील जोशी की हत्या का ज़िम्मेदार सीमी को मानती थी और वह सीमी को सबक़ सिखाना चाहती थी। मालेगांव बम धमाके की योजना भी इसीलिए थी। यहां इस समय मैं मालेगांव बम धमाका या शहीद हेमंत करकरे की जांच पर कुछ भी कहना नहीं चाहता, बल्कि केवल एक बात पर अपने पाठकों और भारत सरकार का ध्यान आकर्षित कराना चाहता हूं, वह यह कि सुनील जोशी संघ का प्रचारक था, सुनील जोशी की हत्या में जो लोग संलिप्त नज़र आते हैं, उनका संबंध भी संघ परिवार से है। उसकी हत्या के बाद से ही जो लोग फ़रार हैं, वह भी संघ परिवार से संबंध रखते थे, उसके दोस्त थे और उसके साथ रहते भी थे। उन्हें सुनील जोशी की हत्या की योजना की जानकारी थी। मैं अपने इस लेख की आगामी पंक्तियों में सुनील जोशी की हत्या का विवरण बयान करने जा रहा हूं, जिससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि संघ परिवार की मानसिकता क्या है। सीमी पर सुनील जोशी की हत्या का आरोप लगाना भी एक विशेष योजना के तहत था ताकि आरोप उस संगठन पर आए, जिसका संबंध मुसलमानों से है, ताकि देश में साम्प्रदायिक तनाव पैदा हो और हुआ भी कुछ ऐसा ही कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने सीमी को सुनील जोशी की हत्या का ज़िम्मेदार मानते हुए मालेगांव मंें बम ब्लास्ट का षड़यंत्र रच डाला, जिसका आरोप सीमी पर जाना ही था और गया भी, गिरफ्तारियां भी हुयीं। अगर शहीद हेमंत करकरे द्वारा मालेगांव बम ब्लास्ट की सच्चाई सामने नहीं आई होती तो बात चाहे सुनील जोशी की हत्या की हो या मालेगांव बम ब्लास्ट की, यही मान लिया जाता कि इस हत्या और आतंकवादी हमले के पीछे सीमी का हाथ है या कुछ अन्य मुस्लिम आतंकवादी हैं, वह आई.एस.आई के भी सिद्ध हो सकते थे, लश्कर-ए-तैयबा या इण्डियन मुजाहेदीन के भी। बहरहाल अब मैं अपने पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करने जा रहा हूं, सुनील जोशी की हत्या की वह हक़ीक़त जो डेटलाइन इंडिया डाट काॅम के आलोक तोमर ने बयान की है और जिसे इंटरनेट पर भी देखा जा सकता है।
संघ परिवार के क़त्ल कर दिए गए प्रचारक सुनील जोशी पर इल्ज़ाम था कि उसने अजमेर और हैदराबाद की मक्का मस्जिद पर विस्फोट की योजना बनाई। इन दोनों हादसों में बहुत सारे लोग मारे गए थे। सुनील जोशी का नाम अभियुक्तों में आया था, मगर उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सका था। अब सुनील जोशी के मामा मदन मोहन मोदी ने सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया है कि अजमेर विस्फोट के तत्काल बाद सुनील जोशी को उसके ही साथियों ने गोली से उड़ा दिया। मोदी को इन साथियों के नाम नहीं मालूम हैं।
देवास शहर में रहने वाले मोदी का इल्ज़ाम हैं कि मध्यप्रदेश में भाजपा शासित प्रदेश सरकार ने पुलिस को निर्देश दे रखे थे कि इस मामले की जांच नहीं करनी है और पुलिस ने कई सरेआम खुले हुए तथ्यों की अनदेखी की। जिस दिन सुनील जोशी की हत्या हुई उस दिन सुबह जोशी को एक रहस्यमय फोन काॅल आया था, जिसमें उनसे कहा गया था कि जितनी जल्दी हो सके घर से भाग जाओ। इसके अलावा चार और स्वयंसेवक जो सुनील जोशी के साथ लगातार रहते थे, वे भी हत्या वाले दिन से ही लापता हैं।
सुनील जोशी के पास जो दो सिम कार्ड थे, उनका भी पता नहीं चल पा रहा है और पुलिस यह आधारभूत जानकारी पता लगाने की स्थिति में भी अपने आपको नहीं पा रही है कि इन सिमकार्डों का कहीं और तो इस्तेमाल नहीं किया जा रहा। दरअसल पुलिस तो इस मामले में कुछ बोलना ही नहीं चाहती। सुनील जोशी 29 दिस्मर 2007 को अपनी मां के पास थे, जब उन्हें मोबाइल पर धमकी वाला संदेश मिला था। खुद आग से खेलने वाले सुनील जोशी ने फोन करने वाले से काफी झगड़ा किया था और इसके बाद शायद उन्हें कोई ठिकाना बताया गया था, जहां रवाना होने के लिए वे अपनी मोटरसाइकिल से निकलने की कोशिश करने लगे। मोटरसाइकिल स्टार्ट नहीं हो रही थी, इसलिए सुनील जोशी चूना ख़दान मोहल्ले में करीब दो किलोमीटर दूर अपने घर की ओर पैदल रवाना हो गए। इसी घर में सुनील जोशी चार और स्वयंसेवकों के साथ रहा करते थे और यह सभी स्वयंसेवक अब लापता है।
हत्यारों को शायद पता था कि सुनील जोशी किस रास्ते आ रहे हैं। मोटरसाइकिल भी शायद उन्होंने ही ख़राब की थी, ताकि सुनील जोशी को पैदल ही आना पड़े। रास्ते में इंदौर, भोपाल मार्ग पार करते ही एक उजाड़ और सुनसान इलाक़ा पड़ता है, जहां सुनील जोशी की हत्या की गई। उन्हें लगातार कई गोलियां मारी गईं। पुलिस ने परिवार को कभी नहीं बताया कि जोशी को मारने के लिए लोग आए थे और पुलिस रिकार्ड में होगा तो होगा लेकिन इसे सार्वजनिक कभी नहीं किया गया कि कितनी गोलियां चली थीं? यह भी आज तक ज़ाहिर नहीं हुआ है कि जोशी को फोन करने वाला कौन था और भले ही सिमकार्ड लापता हो गए हों, नम्बर के काॅल रिकार्ड से आसानी से पता लगाया जा सकता था कि अख़िर यह धमकी वाला फोन किस नम्बर से आया था और वह नम्बर किसके नाम रजिस्टर्ड है।
देवास पुलिस से बात करो तो वे राजपत्र ढंग से शर्माने लगते हैं, लेकिन उनके रिकार्ड में जो है उसके अनुसार सुनील जोशी के हत्यारे एक मारूती कार और एक मोटरसाइकिल पर आए थे। गोलियां तो कई चलाई गईं लेकिन सुनील जोशी को तीन गोलियां लगी थीं। जोशी के साथ उनके घर में रहने वाले मोहन राज, उस्ताद, घनश्याम और मुन्ना नाम के चारों लोगों को शायद इस साज़िश की पूरी जानकारी थी, इसलिए हत्या के बाद से उन लोगों का कभी पता नहीं लगा।
दो बार भाजपा के सांसद रहे और पहले भारत सरकार के कर्मचारी रह चुके बैंकंुठ लाल शर्मा प्रेम को तो सार्वजनिक रूप से यह साज़िश करते हुए देखा गया है कि भारत में एक साथ अगर लाखों मुसलमान मार दिए जाए तो जो बचेंगे वे अपने आप हिन्दू हो जाएंगे। बैंकंुठ लाल शर्मा प्रेम ने लैपटाॅप के वीडियो कैमरे के सामने यह साज़िश की और जब एक टीवी चैनल पर इसका प्रसारण हो गया तो भाजपा और बजरंग दल से लेकर संघ परिवार के कई सहयोगी संगठनों ने टीवी चैनल पर हमला कर डाला। यह बात अलग है कि इस टीवी चैनल के प्रधान संपादक प्रभु चालवा ख़ुद संघ परिवार के क़रीबी हैं, अख़िल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेता और दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। यह कम आश्चर्य की बात नहीं हैं कि प्रभु चावला अपने दोनों टीवी चैनलों पर मचाए जा रहे शोर और हंगामे के बावजूद एक बार भी टीवी कैमरों के सामने प्रकट नहीं हुए। संघ का दुस्साहस इसे ही कहते हैं।
मालेगांव, नासिक, अजमेर और बंगलुरू के अलावा हैदराबाद में बारूद बरसाने वाले संगठनों की पहचान हिन्दू उग्रवादी संगठनों के तौर पर की जाने लगी है और अभिनव भारत जैसे संगठन सुनने में चाहे जितने काग़ज़ी लगें, लेकिन पूरे देश में उनके इरादों का पता लगाया जा सकता है। भारतीय सेना के कई भूतपूर्व अधिकारी भी पकड़े जा चुके हैं और कईयो को पकड़े जाने के बाद भूतपूर्व बना दिया गया है।
यहां एक सवाल पूछना ज़रूरी हो जाता है कि आख़िर मध्यप्रदेश में ऐसा क्या जादुई चमत्कार है, जहां इंदौर के पास सिमी जैसे संगठन भी पनपते हैं, उनकी प्रशिक्षण शालाएं चलती हैं और इसके अलावा इंदौर के ही दूसरे कोने पर देवास में पहले मुस्लिम तीर्थ स्थलों पर आतंकवादी हमलों की साज़िश रची जाती है और फिर हमला हो जाने के बाद हमलों में शामिल एक मुख्य व्यक्ति को गोली से उड़ा दिया जाता है। हो सकता है कि सुनील जोशी प्रायश्चित की मुद्रा में हों और उनके साथियों को उनके प्रायश्चित से डर लगने लगा हो, मगर अब तो प्रायश्चित की मुद्रा में शिवराज सिंह चैहान को आना पड़ेगा और बताना पड़ेगा कि उनकी पुलिस को आखिर जो करना चाहिए था वह क्यों नहीं किया और अगर नहीं किया तो उसकी सज़ा आख़िर क्या हो सकती है?
Thursday, July 29, 2010
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