भारतीय दण्ड संहिता की धारा 107, 108, 117, 121, 124-ए, 153-ए, 153-बी, 505 (2) और 506 के अन्तर्गत मुक़दमा दायर किया गया है मेरे विरुद्ध मुम्बई की एक अदालत में। स्पष्ट रहे कि यह ऐसी धाराएं हैं कि सज़ाए मौत और उम्रक़ैद तक की सज़ाएं दी जा सकती हैं। मुक़दमा दायर करने वालों के अनुसार मैंने भारत सरकार के विरुद्ध विद्रोह का रवैया अपनाया हुआ है। मैंने दो सम्प्रदायों के बीच घृणा के हालात पैदा करने का प्रयास किया है। यह सब 26/11 के बाद उस आतंकवादी हमले पर लिखे गए मेरे लेखों पर संघ परिवार के एक समर्थक कार्यकर्ता की प्रतिक्रिया है।
अब चूंकि मुक़दमा दायर करने वालों में केवल एक ही नाम लिखित रूप में सामने आया है अतः न तो यह कहा जा सकता है कि कितने व्यक्ति इसमें शामिल हैं और न यह कि वह कौन सी संस्था है जिसकी ओर से यह मुहिम छेड़ी गई है। बहरहाल कोई अकेला व्यक्ति एक लम्बे समय तक लगातार इस सिलसिले को जारी रखे, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, पे्रस कौन्सिल हर जगह सम्पर्क करे, अख़बारों और इंटरनेट की विभिन्न वेबसाइटों को यह सामग्री उपलब्ध कराए या फिर उन्हें इसके प्रकाशन पर आमादा करे और चाहे कि इसका बड़े पैमाने पर प्रोपेगंडा हो गृहमंत्री, प्रधानमंत्री अर्थात भारत सरकार पर यह दबाव बनाए कि वह कोई क़दम उठाएं यही दुर्भावना नज़र आती है इस मुहिम की।
यहां मुझे धन्यवाद करना होगा कि भारत सरकार ने अभी तक संभवतः ऐसी किसी भी मुहिम को गंभीरता से नहीं लिया है। फिर भी इस मानसिकता के इरादे तो साफ़तौर से नज़र आते हैं जो तथ्यों को जनता के सामने लाने के हमारे प्रयासों के विरुद्ध लगातार रुकावट डालते रहे हैं। जिस व्यक्ति ने मुम्बई की अदालत में यह मुक़दमा दर्ज किया उसने उपरोक्त समस्त कार्यालयों में मेरे समाचारपत्र में प्रकाशित मेरे लेखों की कॉपी ग़लत रूप में पेश करके यह साबित करने का प्रयास किया कि जिन धाराओं के अन्र्तगत मुक़दमा दायर किया गया है वह उचित हैं। क्योंकि बात अभी अदालत की ओर से मुझ तक पहुंची ही नहीं इसलिए मैं इस सिलसिले में अभी कुछ नहीं कहना चाहता।
मगर 4 महीने से अधिक प्रतीक्षा के बाद अपने पाठकों और भारत सरकार के सामने यह बात रखना अब ज़रूरी हो गया है कि ऐसे लोग हमारे देश में मौजूद हैं, जो 26/11/2008 को मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमलों के तथ्यों को सामने नहीं आने देना चाहते। आज भी शायद मैं इन तमाम तथ्यों को सामने रखने की शुरूआत न करता। अगर स्वयं सच जनता के सामने न आने लगा होता। अब तो मैं डंके की चोट पर कह सकता हूं कि उस आतंकवादी हमले से लगभग 1 वर्ष पूर्व मैंने जो कुछ लिखा था और प्रकाशित किया था वह बेबुनियाद नहीं था।
अभी तो केवल अजमल आमिर क़साब का बदला हुआ बयान ही सामने आया है, जिसका अंदेशा हमें पहले दिन से ही था और डेविड कोलमैन हेडली और तहव्वुर हुसैन राना के नाम ही सामने आए हैं। हमारे विचार में यह तो बहुत छोटी मछलियां हैं, ‘मगरमच्छ’ सामने होने पर भी अभी हम उसके बारे में बात नहीं कर रहे हैं। हद तो यह है कि अभी मेरा क़लम भी ख़ामोश है, मैं भी मगरमच्छ का नाम नहीं लिख रहा हूं, इसलिए कि पूर्णविश्वास है कि जिस तरह मछलियां जाल में फंसने लगी हैं, एक दिन मगरमच्छ का अपराध भी चीख़-चीख़ कर बोलेगा हां इस अपराध में मैं भी शामिल था।
26/11 पर ताज़ा रहस्योद्घाटन के बाद जब मैंने एक बार फिर लिखना शुरू किया तो पहला नाम डेविड कोलमैन हेडली का था जिसके संबंध में काफी कुछ जानकारियां मैंने एकत्र कर ली थीं, लेकिन तभी अजमल आमिर क़साब का बदला हुआ बयान मेरे सामने आया और मुझे इस तरफ भी ध्यान देना पड़ा। फिर स्थिति कुछ ऐसी बनी कि जो मुक़दमा मुम्बई की अदालत में लगभग 4 माह पूर्व दायर किया गया था और जिस पर मैं लगातार ख़ामोश रहा उसे सामने रखना पड़ा, इसलिए कि अब इस मानसिकता को सामने रखना आवश्यक हो गया जो पर्दे के पीछे विरोधी गतिविधियों में संलिप्त हैं और उनकी यह मुहिम रुक ही नहीं रही है।
अतः मैंने मुम्बई और दिल्ली में अपने क़ानून विशेषज्ञ दोस्तों से सम्पर्क किया और जानकारियां प्राप्त कीं कि आखिर इस मुक़दमे को दायर करने की स्थिति क्या है? इन्हें कितनी गंभीरता से लेने की आवश्यकता है और इसके अंतर्गत क्या कार्रवाई संभव है? मुक़दमें में दायर धाराओं की क़ानूनी हैसियत क्या है, अपने इस लेख के साथ मैं अपने पाठकों के सामने यह तफ़्सील भी पेश कर रहा हूं। ताकि वह अनुमान कर सकें कि सच को सामने लाने के प्रयास के परिणाम क्या-क्या हो सकते हैं।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 107-108 में उकसाने व अपराध में सहयोग करने की परिभाषा दी गई है। यह धाराएं स्पष्टीकरण हैं और इनके अन्तर्गत मुक़दमा नहीं दर्ज किया जाता। सज़ा का प्रावधान करने वाली धारा 109 है।
धारा 117: जनता या 10 से अधिक व्यक्तियों के किसी गिरोह को किसी अपराध पर उकसाना। ‘‘जो कोई जनता या 10 से अधिक व्यक्तियों के ग्रुप को किसी अपराध के लिए उकसाता है उसे साधारण कारावास या सश्रम कारावास (जिसकी अवधि 3 वर्ष तक हो सकती है) की सज़ा दी जाएगी। या जुर्माना लगाया जाएगा और दोनों सज़ाए अर्थात् क़ैद और जुर्माना भी दी जा सकती हैं।’’
(नोटः इस धारा के अन्तर्गत अधिक से अधिक 3 वर्ष सश्रम कारावास व जुर्माना)।
धारा 121: भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध (बग़ावत) करना, युद्ध करने का प्रयास करना या ऐसे युद्ध के लिए उकसाना और प्रोत्साहन देना।‘‘जो कोई भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करे, युद्ध करने का प्रयास करे या ऐसे युद्ध के लिए उकसाए या प्रोत्साहित करे वह मृत्यु दण्ड या आजीवन कारावास का अधिकारी होगा और उस पर जुर्माना भी किया जाएगा।’’
(नोटः इस धारा के अन्तर्गत उपरोक्त अपराध पुलिस हस्तक्षेप योग्य, ग़ैर ज़मानती, आपसी समझौते में असमर्थ है और इसी के अन्तर्गत मुक़दमा सेशन न्यायालय में चलाया जाएगा)।
धारा 124-एः राष्ट्रद्रोह (ग़द्दारी) Sedition ‘‘जो कोई लेख या भाषण या अन्य दिखाई देने वाले माध्यमों से भारत में जारी क़ानून के अन्तर्गत स्थापित सरकार के लिए असंतोषजनक, हीनता और घृणा की भावनाओं को बढ़ाता है उसे आजीवन कारावास जिसमें जुर्माना भी शामिल हो, दी जा सकती है या 3 वर्ष का साधारण कारावास जुर्माना सहित या केवल जुर्माना लगाया जा सकता है।
धारा 153-एः अनेक ग्रुपों और वर्गों के बीच धर्म, नस्ल, जन्म स्थान, निवास और भाषा के आधार पर शत्रुता को बढ़ाना या ऐसा काम करना जो सहिष्णुता के लिए हानिकारक हों। इस अपराध के लिए 3 वर्ष का साधारण कारावास या केवल जुर्माना या दोनों दिए जा सकते हैं। 1। अगर उपरोक्त अपराध किसी पूजा स्थल में या किसी धार्मिक सभा में हो तो पांच वर्ष का साधारण कारावास जुर्माना सहित होगा।
धारा 153-बीः राष्ट्रीय एकता को सीधे या किसी अन्य तरीक़े से हानि पहुंचाना।
‘‘जो कोई सीधे या सांकेतिथ तरीक़े से कहे कि उक्त ग्रुप या वर्ग केवल अपनी भाषा, धर्म, नस्ल, राज्य और जाति के आधार पर भारत के संविधान से वफ़ादारी नहीं रखता।
या
कोई ग्रुप या वर्ग केवल अपने धर्म, नस्ल, राज्य, भाषा और जाति के आधार पर अपने नागरिक अधिकारों से वंचित कर दिया जाना चाहिए।
या
जो व्यक्ति इस तरह का प्रोपेगंडा करे जिससे केवल भाषा, नस्ल, धर्म, राज्य, क्षेत्रीय गिरोहबंदी आदि के आधारों पर समाज में घृणा फैले और राष्ट्रीय एकता खंडित हो ऐसे व्यक्ति को 3 वर्ष की क़ैद और जुर्माना या केवल जुर्माने की सज़ा दी जाएगी।
2। अगर उपरोक्त अपराध किसी पूजा स्थल में पूजा व इबादत के बीच (धार्मिक भाषण हो किया जाए तो सज़ा की अवधि 5 वर्ष तक हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जाएगा।)
धारा 505-(2)ः ऐसे वक्तव्य देना जिनसे विभिन्न वर्गों के बीच घृणा और शत्रुता को बढ़ावा मिले।
‘‘जो कोई इस तरह के वक्तव्य (लेख या भाषण के द्वारा) देता है जिनसे विभिन्न वर्गों के बीच धर्म, नस्ल, भाषा, निवास स्थान, जन्म स्थान, क़ौम और क्षेत्रीय ग्रुपबंदी के आधारों पर घृणा और रंजिश पैदा होती हो या उसको बढ़ावा मिलता है तो ऐसे व्यक्ति को साधारण कारावास जिसकी अवधि 3 वर्ष तक हो सकती है दिया जा सकता है व जुर्माना लगाया जा सकता है या दोनों सज़ाएं भी दी जा सकती हैं।
धारा ५०६: अपराधिक धमकी।
‘‘जो व्यक्ति किसी को इस तरह धमकी देता है जिससे सुनने वाले के दिल पर भय व्याप्त हो जाए तो उसकी सज़ा 2 वर्ष का साधारण कारावास या जुर्माना या दोनों हैं।
और अगर धमकी जान से मार देने की है तो सज़ा की अवधि 7 साल हो सकती है, व जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
विभिन्न परिभाषाएं:
पुलिस द्वारा हस्तक्षेप योग्य अपराध Cognizable offence
समस्त अपराध जो पुलिस के हस्तक्षेप योग्य हों उनके अन्तर्गत पुलिस को बिना वारंट गिरफ़्तारी का अधिकार है।
ग़ैर ज़मानती Non Bailable
समस्त ग़ैर ज़मानती अपराधों में गिरफ्तारी के बाद ज़मानत पर रिहाई न्यायालय के विवेक (Discretion) पर आधारित है, जबकि समस्त ज़मानती (Bailable) अपराधों में ज़मानत का अधिकार है अर्थात् जैसे ही ज़मानत पेश की जाए पुलिस या अदालत आरोपी को मुक्त करने पर मजबूर है।
WARRANT CASE
वे समस्त मुक़दमे जो किसी शिकायत पर एफआईआर दर्ज किए जाने पर पुलिस के द्वारा बनाए गए हों उनको साधारणतः पुलिस केस भी कहा जाता है।
साधारणतः यह मुक़दमे ग़ैर ज़मानती और पुलिस हस्तक्षेप योग्य होते हैं।
SUMMONS CASE
ज़मानती Bailable और गैर ज़मानती (Non bailable) मुक़दमे चाहे वह पुलिस हस्तक्षेप योग्य हों या पुलिस हस्तक्षेप योग्य न हों सीधे किसी मजिस्ट्रेट की अदालत में शिकायतकर्ता के द्वारा शिकायत दर्ज कराने पर क़ायम हो जाते हैं लेकिन ऐसे क़ायम किए गए मुक़दमों के बाद आरोपी या आरोपियों को उस समय तक तलब नहीं किया जाता जब तक एक तरफा साक्ष्य देखने और सुनने के बाद न्यायालय संतुष्ट न हो जाए कि प्रथम दृष्टयः (Prime facia) किसी अपराध का होना पाया जाता है, लेकिन अगर मौलिक साक्ष्य उपलब्ध करा दिए जाएं और शिकायतकर्ता का शपथ पत्र अदालत के सामने हो तो साधारणतः आरोपी या आरोपियों को तलब कर लिया जाता है।
नोटः इस केस में दर्ज समस्त मुक़दमे पुलिस हस्तक्षेप योग्य और ग़ैर ज़मानती हैं। प्रबल संभावना है कि इस समय साक्ष्य (Evidence) का चरण चल रहा है। मौलिक साक्ष्य से संतुष्ट होने के बाद अदालत समन जारी करेगी और इस स्थिति में आपको न्यायालय में पेश हो कर ज़मानत का प्रार्थना पत्र देना होगा। जिसकी स्वीकार्यता या अस्वीकार्यता न्यायालय के विवेक पर निर्भर है।...............................................
Tuesday, December 22, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
आपके लिए एक लेख ब्लांगिंग में आया है आपको ब्लागर समझ लिया खुदा उन्हें माफ करे कितने नासमझ हैं
मुस्लिम ब्लॉगर का कसाब प्रेम
अभी अभी अजीज बरनी नाम के सज्जन के ब्लॉग
http://incitizen.blogspot.com/2009/12/blog-post_22.html
आपके इस लेख से यह पता लगता है कि आपका मुकदमा स्वतंत्र भारत की स्वतंत्र अदालत में है किसी तालेबानी या मलयेशियन शरिया अदालत में नहीं है जहां किसी की कोई सुनवाई न हो. हमारे भारत की स्वतंत्र अदालतें तो कस्साब जैसे वहशियों को भी अपने बचाव का पूरा मौक़ा देती हैं, फिर आप जैसे पढ़े लिखे पत्रकार को किस बात का डर है?
वैसे भी कहावत है, "जब प्यार किया तो डरना क्या?"
Post a Comment