Friday, December 25, 2009


ग़ल्ती हुई मुझसे, शायद मुझे अपने पाठकों से यह निवेदन नहीं करना चाहिए था कि वह मेरे आज के लेख ‘‘अगर है कोई जवाब इसका तो बताओ’’ पर अपने विचार मुझ तक पहुंचाने का निवेदन नहीं करना चाहिए था, या फिर बात यह हुई कि मुझे यह अनुमान ही नहीं था कि रेस्पांस इतना अधिक होगा। पाठकों की प्रतिक्रिया इतनी बड़ी संख्या में मुझ तक पहुंचेगी कि आज का पूरा दिन एस।एम.एस. पढ़ने, टेलीफ़ोन पर बात करने और अन्य सूत्रों से जो उनके दृष्टिकोण मुझ तक पहुंचे उनका अध्य्यन करने में ही सारा दिन बीत जायेगा फिर इतना समय ही नहीं बचेगा कि मैं आज एक नया लेख लिख कर अपने पाठकों की सेवा में प्रस्तुत कर सकूँ। फिर भी इस कवायद का एक सुखद पहलू यह है कि इस समय जो कुछ लिखा जा रहा है वह बेवजह नहीं है। न केवल यह कि बहुत पढ़ा जा रहा है बल्कि उसे विशेष महत्व भी मिल रहा है, इसलिए आशा की जा सकती है कि स्थितियों में निरन्तर परिवर्तन आयेगा और इतना नहीं कि अब तक आतंकवाद के नाम पर आंख बंद करके जिन्हें गिरफ्तार किया जा रहा था अब उनको निशाना बनाने के बजाय जो वास्तव में आतंकवादी हैं, आतंकवादियों को शरण दे रहे हैं, आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं और अपने घिनौने उद्देश्यों के लिए जान बूझ कर आतंकवाद फैला रहे हैं, उनका असल चेहरा सामने आएगा, निसंदेह यह देश और राष्ट्र के हित में है, बल्कि कहा जा सकता है कि पूरी मानवता के हित में है।विचार था कि आज डेविड कोलमैन हेडली के साथ-साथ तहव्वुर हुसैन राणा पर भी लिखँूगा इसलिए कि एक सबसे चैंका देने वाली जानकारी जो मेरे सामने है, वह यह कि हेडली को पासपोर्ट जारी हुआ 10 मार्च 2006 को अमेरिका में और तहव्वुर हसैन राणा को पासपोर्ट जारी हुआ 3 मार्च 2006 को कनाडा में। अर्थात केवल एक सप्ताह के भीतर दोनों को पासपोर्ट दो अलग-अलग देशों से जारी होते हैं। हेडली के बारे में तो यह सच्चाई सामने आ ही गई है कि बदले हुए नाम के साथ उसके लिए यह एक नया पासपोर्ट अमेरिका में जारी किया गया, अब देखना यह है कि 48 वर्षीय तहव्वुर हुसैन राणा का भी यह कोई नए और बदले हुए नाम से बनाया गया पासपोर्ट है या फिर उसका असल नाम यही है और उसे 45 वर्ष की आयु तक पासपोर्ट की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। जो व्यक्ति पाकिस्तान में पैदा हुआ, अमेरिका में रहा वहां उसका मकान भी है और फिर कनाडा में जाकर बस गया, उसका यह पहला पासपोर्ट तो नहीं होना चाहिए, इसलिए कि पाकिस्तान में जन्म लेने के बाद जब वह अमेरिका और फिर कनाडा पहुंचा होगा तो उसके पास कोई पासपोर्ट तो अवश्य रहा होगा और उसने उन देशों के लिए वीज़ा भी प्राप्त किया होगा। ऐसी स्थिति में उसका पहला पासपोर्ट पाकिस्तानी होना चाहिए जहां वह पैदा हुआ और शिक्षा पाई।रिसर्च का सिलसिला जारी है, काफ़ी कुछ रिसर्च पेपर्स मेरे सामने हैं, जिनका अध्य्यन अभी तक नहीं कर पाया हूँ और अख़बार के प्रेस भेजने का समय निकट आता चला जा रहा है। अगर सरसरी तौर पर लिखकर इस बात को आगे बढ़ा दिया गया तो न विषय से न्याय होगा और न मेरे लिए अपने लेख के साथ ही, लिहाज़ा आज बस इतना ही। मुलाहिज़ा करें मेरे इस किस्तवार लेख की अगली कड़ी कल।

1 comment:

Arun sathi said...

आतंकवाद एक ऐसा पहलू है जिसपर किसे क्या कहा जाए समझ नहीं पाता हूं। आतंकवादी अपना बीजा और पासपोर्ट आसानी से बना लेते है और भला बनाए भी क्यों नहीं इस देश में आज भी चंद रूपये के खातीर पदाधिकारी कुछ भी करने के लिए तैयार है। आज भी पासपोर्ट बनाने के लिए जांच की नहीं नोट की जरूरत पड़ती है और पुलिस नकदी लेकर रिर्पोट देतें है।।