Sunday, December 27, 2009

जो हमने लिखा वही पूर्व डी.जी.पी पश्चिमी बंगाल ने भी!


कुछ लोग यानी एक विशेष मानसिकता के अनुयायी (अब यह सपष्ट करने की आवश्यकता नहीं है कि मैं किस मानसिकता की बात कर रहा हूं) लगातार यह भाव देने का प्रयास कर रहे हैं कि 26/11 के संबंध में, मैं जो कुछ लिख रहा हूं यह मुझे नहीं लिखना चाहिए, यह सब लिखकर मैं असल अपराधियों से ध्यान हटाने व जांच को एक दिशा देने का प्रयास कर रहा हूं, और मेरी सोच जो कि उनके नज़दीक ग़लत है, देश से ग़द्दारी है और भारत सरकार के विरुद्ध है। जहांतक मैं समझता हूं मेरे यह लेख मेरे द्वारा अपने देश भारत की मुहब्बत में लिखे गए हैं और यह भारत सरकार के लिए आतंकवाद से छुटकारा पाने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। हां, मगर जो लोग स्वाधीनता संग्राम में स्वतंत्रता सेनानियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के बजाए एक किनारे पर खड़े होकर अंग्रेज़ों के अनुयायी बन गए थे, उनके गीत गा रहे थे, उस मानसिकता के पोशित आज भी आतंकवाद के माध्यम से हमारे देश को विनाश के कगार पर पहुंचाने वालों तक नहीं पहुंचने देना चाहते, वरना क्या कारण है कि जो प्रमाण और तथ्य स्पष्ट संकेत दे रहे हैं, न केवल उनकी अनदेखी करने के लिए विवश किया जा रहा है, बल्कि ऐसी कोशिश करने वाले देश प्रेमी लोगों को निशाना भी बनाया जा रहा है। जहां तक डेविड कोलमैन हेडली उर्फ दाऊद गीलानी और तहव्वुर हुसैन राना का मामला है तो यह दोनों आतंकवादी हैं, पाकिस्तानी हैं और दोनों ही 26/11 को भारत में हुए आतंकवादी हमले में लिप्त हैं। अभी तक जो एफबीआई की रिपोर्टें भारत तक पहुंच रही हैं, वह यही हैं। अब उन तमाम जानकारिायेां को हू-बहू मान लेने के बाद जो प्रश्न पैदा होते हैं, उन पर वह भड़कते हों तो भड़कें, शक की सूई जिनकी ओर जा रही है, मगर हमारे अपने अगर इस पर नाराज़ दिखाई दें तो उचित नहीं लगता। यही कारण है कि हम अपनी रिसर्च के दौरान सामने आई समस्त जानकारियों को प्रकाशित करने के साथ-साथ इस पर नज़र रखते हैं कि देश भर में या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस दिशा में और कौन-कौन ज़िम्मेदार व्यक्ति या संस्थान लिख रहे हैं या सोच रहे हैं, उनका दृष्टिकोण भी अपने पाठकों ही नहीं, बल्कि भारत सरकार और सम्पूर्ण भारतीय समाज के सामने रखा जाए। इसी सोच के मद्देनज़र हमने वीर संघवी के दृष्टिकोण पर आधारित लेख और विनीता काम्टे की पुस्तक ‘‘टू दि लास्ट बुलेट’’ पर की गई समीक्षा प्रकाशित की और ‘‘लाॅस एंजिलिस टाइम्स’’ में प्रकाशित रिपोर्ट को सामने रखना आवश्यक समझा। इसी तरह आज प्रातः ०८.३० बजे हाजी नगर, 24 पर्गना, पश्चिम बंगाल के मुहम्मद ज़ुबैर ने पहले एसएमएस और फिर फोन करके जब यह बताया कि कोलकाता से प्रकाशित होने वाले हिंदी दैनिक ‘‘सन्मार्ग’’ में पूर्व डीजीपी पश्चिम बंगाल दिनेश चंद्र वाजपई ने ‘‘26/11: हेडली और अमेरिका’’ के शीर्षक से जो कुछ लिखा है वह हमारे ख़ुलासों के ऐन मुताबिक़ है तो आवश्यक लगा कि एक उच्च पद पर रहने वाले पुलिस अधिकारी का दृष्टिकोण भी आज अपने पाठकों की सेवा में पेश किया जाए। हालांकि विचार यह था कि आज हमने अपनी कल की क़िस्त-62 जो बहुत छोटी थी, उसमें हेडली और तहव्वुर राना के पासपोर्ट अमेरिका और कनाडा में एक ही सप्ताह के भीतर 3 और 10 मार्च 2006 को जारी होने पर अपनी बात आगे बढ़ाएंगे और साथ ही अपने पाठकों की जो प्रतिक्रियाएं कल दिन भर हम तक पहुंचती रहीं, आज उसी विषय पर कुछ पाठकों के विचार भी प्रकाशित करेंगे, लेकिन यह सब बाद के प्रकाशनों में, आज दिनेश चंद्र वाजपेई के विचारणीय दृष्टिकोण पर आधारित लेख:

डेविड कोलमैन हेडली उर्फ दाऊद गीलानी को अमेरीका में गिरफ्तार हुए प्रायः तीन महीने हुए, लेकिन अभी तक भारतीय जांच अधिकारी न तो उससे पूछताछ कर पाये हैं और न ही उसके बारे में हमें पूरी सूचना दी गयी है, हालांकि उसके ऊपर स्वयं अमेरीका का मुख्य आरोप है मुम्बई पर हुए 26/11 के आक्रमण का षड़यंत्र रचने का। जबकि अमेरीकी एफ।बी।आई के अफसर कसाब से जिरह कर चुके हैं, हालांकि उसका अमेरीका पर हुए आक्रमण से कोई संबंध नहीं था। इसी बीच उसके बारे में जो आधी-अधूरी सूचनाएं आ रही हैं, उससे उसका जेम्स बोंडये चरित्र और रहस्यमय होता जा रहा है। दाऊद सईद गिलानी का जन्म वाशिंगटन में हुआ, जहां उसके माता-पिता अमरीकी दूतावास में कार्यरत थे। पिता, सईद सलीम गीलानी एक कूटनीतिज्ञ थे, जो एक कवि और संगीतशास्त्री भी थे और अमरीकी माता सेरिल हेडली एक लिपिक थीं। 1960 में परिवार लाहौर आ गया किंतु पिता की कट्टर इस्लामी संस्कृति और माता की पाश्चात्य विचारधारा व रहन-सहन में समन्वय न हो सकने के कारण दोनों में मनमुटाव, फिर संबंध विच्छेद हुआ और 1970 में सेरिल परिवार को छोड़कर अमेरीका के फिलाडेल्फीया में रहने लगी। कुछ समय बाद उसने ‘खैबर पास’ नाम का एक मदिरालय खरीद लिया और उसे चलाने लगी। बचपन में दाऊद की परवरिश पाकिस्तान में एक कट्टरपंथी वातावरण में हुई। 1977 में पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता से घबराकर सेरिल पाकिस्तान जाकर दाऊद को जो उस समय 17 वर्ष का था और विशिष्ट आवासीय सैनिक स्कूल अब्दुल कैडेट कालेज में पढ़ रहा था, अमेरीका ले आयी। इन दो पृष्ठभूमियों के कारण दाऊद हमेशा दो संस्कृतियों, कट्टरपंथी इस्लामी संस्कृति और उदारवादी पाश्चात्य संस्कृति के बीच खिंचता रहा। कभी वह शराबी हो जाता, कभी परम्पराशील मुसलमान। उसकी एक पाकिस्तानी पत्नी है किंतु एक अमरीकी महिला (मेकअप कर्मी) से उसके संबंध हैं। उसके अन्कल (मामा) विलियम हेडली का कहना है, अधिकतर लोगों के जीवन में कुछ विरोधाभास होते हैं, किंतु वह उनमें सामंजस्य करना सीख जाते हैं, किंतु दाऊद ऐसा नहीं कर पाया और यही उसकी समस्या है और आज दाऊद एक कट्टरपंथी जिहादी है। अमरीकी अन्वेषक पत्रकारों ने पता लगाया कि दाऊद पहली बार 1988 में मादक द्रव्यों के व्यवसाय के आरोप में 2 के.जी.हेरोइन के साथ पकाड़ा गया। उसकी स्वीकारोक्ति के कारण उसे कम सज़ा हुई और फिर वह ड्रग अधिकारियों को गुप्त सूचनाएं देने लगा। विशेषकर पाकिस्तान से हो रही मादक द्रव्यों की तस्करी की सूचनाएं। उसी समय वह पाकिस्तानी आतंकवादियों के संपर्क में आया और उसका पाकिस्तान आना जाना शुरू हुआ। उसकी पत्नी ने अमरीकी समाचारपत्र फिलाडेल्फिया इन्क्वायरर को बताया कि वह भारतियों से घृणा करता था और भारत से बदला लेने की बात करता था। दाऊद 1998 में अंतिम बार अमेरीका में मादक द्रव्यों के व्यवसाय के आरोप में पकड़ा गया और फिर स्वीकारोक्ति के कारण उसे कम सज़ा हुई । ड्रग अधिकारियों की मदद कर वह फिर उनके करीब आया और अमेरीका पर हुए 9/11 के आक्रमण के बाद जब अमरीकी अधिकारियों को पाकिस्तान के आतंकवादियों के बीच काम करने के लिए गुप्तचरों की ज़रूरत पड़ी तो दाऊद को छोड़ दिया गया। उसे दाऊद से हेडली बना दिया गया और एक नया पासपोर्ट देकर उसे पाकिस्तान भेज दिया गया। अमेरीका की मादक द्रव्य विरोधी संस्था ड्रग एनफोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा मादक द्रव्य व्यवसाय में घुसपैठ कर गुप्तचर बनकर काम करने को। इसके बाद वह अमेरीका से पाकिस्तान और भारत लगातार यात्राएं करता रहा। बिना किसी रोक-टोक के जो एक सजायाफ्ता अपराधी के लिए 9/11 के बाद के कड़े सुरक्षा वातारवण में अचंभे की बात है और संदेह की भी। यदि वह अमेरीका की सुरक्षा के लिए खतरा होता तो क्या उसके लिए वह संभव हो पाता। क्योंकि वह केवल भारत की सुरक्षा के लिए खतरा था इसलिए क्या उसे यह करने दिया गया? क्या उसको नया पासपोर्ट व नया नाम केवल इसलिए दिया गया जिससे उसे भारत में लम्बी अवधि का वीज़ा मिल सके, उसकी अपराधी पृष्ठभूमि को छिपाकर? शिकागो स्थित भारतीय कौंसिल जनरल अशोक कुमार अत्री को यह देखकर भी संदेह नहीं हुआ कि वीज़ा आवेदनकर्ता अमरीकी है जिसका नाम डेविड कोलमैन हेडली है, जबकि उसके पाकिस्तानी पिता का नाम सईद सलीम गीलानी है? क्या उसे एक बार पूछताछ के लिए भी बुलाना नहीं चाहिए था? क्या उनके ऊपर वीज़ा देने के लिए कोई दबाव था? यदि वह जांच करते उसकी पृष्ठभूमि की तो उन्हें पता लगता कि हेडली ने फिलाडेल्फिया की अदालत में एफिडेविट देकर कुछ ही दिन पहले अपना नाम बदला है और पहले नाम से उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि का भी पता लगता। उसके बाद वह नौ बार भारत आया और प्रत्येक बार भारत से लौटकर वह पाकिस्तान गया किंतु भारत में इमिग्रेशन अफसरों को भी उसमें कुछ संदेहजनक नहीं लगा? क्या अमेरीका ने उसको अलग पासपोर्ट दिया था पाकिस्तान जाने के लिए? अक्टूबर 2009 में एफ.बी.आई द्वारा पकड़े जाने के बाद हेडली के ऊपर 26/11 के आक्रमण में शामिल होने के आरोप लगाये गये। हेडली ने लश्कर-ए-तय्यबा से अपने संबंध के बारे में बताया, भारत में आकर सैन्य व परमाणु ठिकानों के वीडियो बनाने, 26/11 के निशाने पर जो स्थान थे उनके बारे में जानकारी लेने व आक्रमण की साज़िश रचने और कराची से आतंकवादियों को निर्देश देने के बारे में बताया है। एफ.बी.आई के आरोपपत्र और अमरीकी समाचारपत्रों के खुलासों ने अमेरीका की नीयत पर प्रश्न चिन्ह लगा दिये हैं। अमेरीका ने 26/11 की आगामी ख़बर दी तो किंतु इतनी छिटफुट कि उसे रोका न जा सका। यदि अमेरीका को हेडली के आतंकवादी होने की ख़बर 2008 में लग गयी थी तो उसने भारत को सतर्क क्यों नहीं किया? यदि किया होता तो वह 26/11 के पहले ही भारत में पकड़ लिया गया होता और 26/11 की तबाही रोकी जा सकती थी। क्या हेडली को पकड़ा गया डेनमार्क पर हमला रोकने के लिए ही? 26/11 के आक्रमण के बाद जब अमेरीका को हेडली की भूमिका का पता लग गया तब भी भारत को खबर नहीं दी गयी और मार्च 2009 में भारत आया, अगले आक्रमण की तैयारी करने और दिल्ली, पुष्कर, गोवा और मुम्बई गया। अमेरीका क्यों नहीं चाहता था कि हेडली भारत में गिरफ्तार हो और क्या अमेरीका अपनी बदनीयती को छुपाने को हेडली से पूछताछ नहीं करने दे रहा है? अब हमारी नज़रें रहेंगी शिकागो में हेडली के ऊपर चल रहे मुक़दमे पर। यदि वह फिर अल्प सज़ा पाकर छूट जाता है तो यह अमेरीका पर हमारे संदेह को पक्का ही करेगा। अमरीकी रवैये को देखकर क्या यह आशा की जा सकती है कि हम हेडली को भारत लाने और उसपर मुक़दमा चलाने में सफल हो पायेंगे? शायद नहीं।..............................

No comments: