बटला हाउस पर जब मैं लिख रहा था तब भी कुछ लोगों को आपत्ति थी। जब गुजरात पर लिखा, मालेगांव इन्वेस्टिगेशन पर लिखा, नांदेड़, कानपुर बम धमाकों पर लिखा, साधवी, पुरोहित और दयानंद पाण्डे पर लिखा तब भी न केवल आपत्ति भरी आवाज़ें उठीं, बल्कि जगह-जगह उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में हमारे संवाददाताओं को एक विशेष मानसिकता का निशाना बनना पड़ा। 26/11 2008 को मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले के बाद जब लिखा और जांच को एक नया आयाम देने की कोशिश की, तब फिर कठोर प्रतिक्रिया सामने आई। आज एक वर्ष बाद फिर से जब 26/11 पर बात हो रही है तो, वही आयाम बार-बार सामने आ रहा है। विशेष रूप से डेविड कोलमेन हेडली की गिरफ़्तारी के बाद और अब केवल मेरे द्वारा ही नहीं बल्कि अन्य मीडिया द्वारा भी। मेरा कल का लेख इसी विषय पर था और मैंने भविष्य की आशंकाओं को सामने रखने के लिए संक्षेप में अतीत की दास्तान भी बयान की थी।
कुछ लोगों का विचार है कि शायद मैं अकेले 26/11 को हुए मुम्बई पर आतंकवादी हमले को एक अलग दृष्टि से देख रहा हूं, ऐसा नहीं है और भी हैं, जो इस दिशा में सोच रहे हैं और निसंदेह वह मुल्क के ज़िम्मेदार नागरिक हैं। वरिष्ठ पत्रकार हैं। एक ऐसे ही अंग्रेज़ी के वरिष्ठ पत्रकार का लेख मैंने अपने इस सिलसिलेवार लेख में प्रकाशित किया था, नाम और उल्लेख के साथ। आज भी एक ऐसा ही लेख जो मेरा नहीं है, देश के एक बड़े दैनिक के सम्पादक का है, प्रकाशित कर रहा हूं और मैं अपने कल के लेख के साथ अमेरीका के एक प्रमुख अख़बार के हवाले से अपनी बात को जारी रखने की कोशिश करूंगा। उद्देश्य केवल यही है कि देश को आतंकवाद से छुटकारा दिलाने के लिए हमें आतंकवाद की जड़ तक पहुंचना होगा और केवल सरकारों के भरोसे बैठकर प्रतीक्षा करना ही काफी नहीं होगा, बल्कि देश की सुरक्षा की इस जंग में स्वतंत्रता संग्राम की तरह ही सभी नागरिकों को शामिल होना होगा। निम्नलिखित लेख किस लेखक का है, यह कब और किस समाचारपत्र में प्रकाशित हुआ, यह सारे विवरण मैं अपनी अगली क़िस्त में सामने रखूंगा। आज नाम के उल्लेख के बिना यह लेख इसलिए प्रकाशित कर रहा हूं कि देखें कि आपत्ति करने वालों की इस लेख पर क्या प्रतिक्रिया होती है।
क्या अमेरिका 26/11 के सिलसिले में खामोश रहा?
क्या अमरीकियों को 26/11 के षड़यंत्र के बारे में पहले से सूचना थी, जिसे उन लोगों ने भारत को नहीं बताया केवल सचेत किया? और क्या लशकरे तय्यबा के अंदर कोई जासूस था जो वाशिंगटन (या लॉस एंजेलिस) को भारत के विरुद्ध आतंकवादी योजनाओं की सूचनाएं देता रहा-- फिर भी यह सूचना हमको नहीं दी गई।
निश्चित ही यह इस तरह देखने की शुरूआत है।
जब पहली बार हेडली गिरफ़्तार हुआ तो अमरीकियों ने घोषणा की कि उन्होंने डनमार्क के कार्टूनिस्ट की हत्या के षड़यंत्र का रहस्योद्घाटन किया है। उसके बाद अन्य विवरण आने लगे और संदिग्ध आतंकवादी के बारे में बताया गया कि वह पाकिस्तानी मूल का अमरीकी नागरिक है। उसका संबंध लशकरे तय्यबा से है। उसने भारत की कई बार यात्रा की है। वह 26/11 से जुड़ी एडवांस टीम का अंग हो सकता है।
भारतीय गुप्तचर विभाग को इस रिपोर्ट से जिज्ञासा पैदा हुई और वह वाशिंगटन हेडली से मिलने भी रवाना हो गई, लेकिन उन लोगों को हेडली तक पहुंचने की अनुमति नहीं दी गई। उन लोगों ने सव्यं जानने की कोशिश की कि कहीं हेडली वही व्यक्ति तो नहीं जिसकी तलाश वह लोग कर रहे हैं। उन लोगों ने सीआईए से पूछा था कि क्या किसी ऐसे अमेरिकी के बारे में सूचनाएं हैं जो लशकर का अंग था मगर इस सिलसिले में कोई सहयोग प्राप्त नहीं हुआ।
उस समय जब भारतीय मीडिया हेडली की महेश भट्ट के बेटे से दोस्ती को लेकर दीवानी हो रही थी, उसी दौरान अमरीका के खाजी पत्रकारों ने 1998 में मादक पदार्थों के इल्ज़ामे के आरोप में हेडली से जुड़े न्यायिक दस्तावाज़ों को ढूंढ निकाला। उन दस्तावेज़ों के माध्यम से पता चला कि हेडली को सज़ा हो चुकी है और वह जेल भी जा चुका है, लेकिन 9/11 के बाद उसे जेल से रिहा कर दिया गया और पाकिस्तान में ड्रग इन्फोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन (डीईए) के लिए अंडर कवर एजेंट के रूप में काम करने के लिए भेजा गया।
अमरीकी पत्रकारों के अनुसार हेडली को नया अमरीकी पासपोर्ट उसके असली नाम दाऊद गीलानी के बजाए (उसकी मां का ख़ानदानी नाम हेडली था।) डेविड हेडली के नाम से दिया गया। उसने पूरी दुनिया की यात्रा की। वह अमरीका में अपनी स्वेच्छा से दाख़िल हुआ और बाहर भी गया। आमतौर पर मादक पदार्थों से जुड़े मामलों में सज़ा पाए किसी भी व्यक्ति पर अमरीकी एयरपोर्ट पर विशेश ध्यान दिया जाता है, लेकन उसके मामले में अनदेखी की गई।
इसके अलावा अमरीकी पत्रकारों का विचार है कि डीईए (D.E.A) के लिए काम करने का दायित्व केवल अपनी पहचान छुपाने के लिए हो सकता है। 9/11 के बाद अमरीका के ऊपर दबाव था कि वह पाकिस्तान के आतंकवादी ग्रूप के भीतर घुसपैठ करे और इस उद्देश्य के लिए कई अंडर कवर एजेंट पाकिस्तान रवाना किए गए।
इस समय तक हमारे पास जो सूचनाएं हैं। पहली अमरीकी सरकार की जिसका कहना कि उसने एक आतंकवादी को गिरफ़्तार किया है। दूसरी अमरीकी मीडिया की जिसके अनुसार उस आतंकवादी को अंडर कवर एजेंट के रूप में अमेरिका ने पाकिस्तान रवाना किया।
आमतौर पर अमेरिकी पत्रकारों ने इस बात पर विश्वास करने से इन्कार कर दिया है कि वह केवल डीईए के लिए काम करता था। उन लोगों का मानना है कि वह सीआईए की नौकरी में था, लेकिन कई पत्रकारों का मानना है कि हेडली विद्रोही ;त्वहनमद्ध हो गया और डबल एजेंट बन गया। और लशकरे तय्यबा का सच्चा अनुपालक हो गया।
भारतीय जांच करने वालों के कई प्रश्न हैं। अब हम जानते हैं कि अमेरिका ने हमें सेचना भेजी थी कि ताज महल होटल पर हमला हो सकता है और आतंकवादी समंदर के रास्ते से आएंगे (वास्तव में हमारे लोगों ने इस चेतावनी की अनदेखी की) उस समय यह विश्वास किया गया कि यह गुप्त सूचनाएं आतंकवादियों के नेटवर्क में मौजूद सीआईए के जासूसों द्वारा आई हैं। क्या हेडली ही वह जासूस था?
इसके अलावा अगर अमेरिकी गुप्तचर विभाग हेडली की ही तलाश में थे-- जैसा कि अमेरिका दावा करता है। और वह जानते थे कि लशकरे तय्यबा की ओर से बराबर हिंदुस्तान की यात्रा कर रहा है, तो फिर यह सूचनाएं क्यों नई दिल्ली को नहीं बताई गईं? अगर आप सरकारी पक्ष को स्वीकार करें तो क्या हेडली एक आतंकवादी था, जिसकी उनको तलाश थी, ऐसे में हमारा अधिकार बनता है कि हमें बताया जाए कि वह भारत की यात्रा पर है? अगर वह एक एजेंट था जो विद्रोही (Rogue) हो गया (ग़ैर सरकारी बयान) तब भी हमें बताया जाना चाहिए था, लिहाज़ा हमें क्यों अंधेरे में रखा गया।
जैसा कि मैं जानता हूं इन प्रश्नों के अमेरिकी सरकार ने कोई उत्तर नहीं दिए हैं।
अब हमारे पास भारतीय छान-बीन करने वालों की थ्योरी है, जो इस तरह बयान करती हैः
9/11 की घटना के बाद अमरीका को जासूसों की तलाश थी, जिन्हें पाकिस्तान भेजा जा सके। हेडली को जेल से बाहर निकाला गया और आतंकवादी ग्रूपों के बीच घुसपैठ करने के लिए कहा गया। अमेरिकी सरकार की मदद (नए पासपोर्ट इत्यादि) से वह लशकरे तय्यबा के लिए काम करने लगा और अपने अमेरिकी पासपोर्ट से उन स्थानों तक भी पहुंच प्राप्त की जहां वह अगर अपने पाकिस्तानी संबंध के बारे में बताता उस पर संदेह किया जाता।
वह मुम्बई केवल ताज देखने नहीं आया था बल्कि उसने नरीमन हाउस का जायज़ा भी लिया। उसने स्वयं को अमरीकी यहूदी के रूप में पेश किया और विस्तृत रिपोर्ट भी रवाना की। इस दौरान उसने अपने अमरीकी आक़ाओं को 26/11 के षड़यंत्र के ख़ुलासे दिये। अमेरिका के लिए यहां मुश्किल थी। अगर वह हमें सब कुछ बताता है तो लशकरे तय्यबा को पता चल जाएगा कि हेडली ही सूचनाएं भेज रहा है और उसकी पहचान खुल जाएगी, तब भी अमेरिका ख़ामोश नहीं रहा इसलिए उसने कुछ गुप्त सूचनाएं हमको दीं लेकिन वह जो हेडली तक नहीं पहुंचती थीं और हेडली लशकरे तय्यबा के अंदर अमरीकी पूंजी के तौर पर लगातार काम करता रहा। कुछ माह पूर्व भारतीय गुप्तचर विभाग विभाग ने अमरीकी संबंध वाले बंगला देशी की तलाश शुरू की। इस तलाश में वह एक अमेरिकी तक पहुंच रहे थे जो लशकरे तय्यबा से जुड़ा था। गुप्तचर विभाग ने अमेरिका से मदद मांगी। उसके तुरन्त बाद हेडली गिरफ़्तार हो गया।
गिरफ्तारी पर भारत को आश्चर्य हुआ, जिस तरह से यह सब कुछ हो रहा है अगर अमरीका आतंकवादी के बारे में जानता है और उसे पाकिस्तान या भारत के लिए उड़ान भरने के लिए अनुमति देता है (दोनों जगह हेडली ने बार-बार यात्रा की) और फिर हमारे स्थानीय गुप्तचर विभाग को सूचना दी। फिर आतंकवादी गिरफ़्तार होता है और हिंसा की सहायता से उससे जानकारियां निकाली जाती हैं। (अमेरिका में टार्चर पर प्रतिबंध है।) जब आतंकवादी ने सभी सूचनाएं दीं तो फिर उसे स्वीकृति पत्र के साथ अमेरिकी सरकार के हवाले कर दिया गया।
हालांकि इस मामले में अमेरिकियों ने हेडली को उड़ान भरने से पूर्व ही गिरफ़्तार कर लिया था। इस पर बाक़ाएदा आरोप लगाया गया। वकील करने की अनुमति दी गई और अब वह अमेरिकी संविधान के तमाम रिज़र्वेशनों का हक़दार हो गया है। अब यह उसका अधिकार है कि वह भारतीय गुप्तचर विभाग को कुछ बताए या न बताए।
26/11 हमले के एक संदिग्ध व्यक्ति को क्यों अमेरिका ने इस तरह की सुविधा दी?
उनकी उचित सफाई यह है किः वह एक अमेरिकी एजेंट था। अमेरिका ने उसे उस समय गिरफ्तार किया जब उसे लगा कि भारतीय गुप्तचर विभाग उसके पीछे हैं। उसको जेल जाना होगा। और वह अमरीकी जेल व्यवस्था में कुछ समय के लिए गुम हो जाएगा और फिर बाहर निकाला जाएगा जैसा कि पिछली बार हुआ था।
तो क्या 26/11 के हमले को रोका जा सकता था? अगर थ्योरी सही है तो तब तो बिल्कुल। अमेरिका ने हमको और अधिक सूचनाएं दी होतीं तो हम षड़यंत्र को असफल कर सकते थे।
दूसरी ओर, चेतावनी के बावजूद हम लोगों ने उसकी अनदेखी की। कौन कह सकता है कि अगर हमें सम्पूर्ण सूचनाएं होतीं तो हमारी अयोग्य राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था असफल नहीं होती?
अन्ततः गुप्तचर विभाग सूचनाएं तभी काम की होती हैं जब वह किसी बुद्धिमान व्यक्ति के द्वारा प्राप्त की जाएं।
Wednesday, December 23, 2009
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