क़ुरआने करीम पूर्ण जीवन दर्शन है, मानव जीवन के लिए। विश्व की कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसे क़ुरआने करीम की रोशनी में समझा न जा सके। आयाते क़ुरआनी को समझना जब हमारे लिए मुश्किल होता है तो हम हदीस की तरफ़ लौटते हैं और जब कोई हदीस समझ से ऊपर होती है तो हम क़ुरआन की तरफ़ लौटते हैं। क़ुरआने करीम के द्वारा ईश्वर ने क्या संदेश दिया है इसे समझने के लिए कभी-कभी केवल आयाते क़ुरआनी को पढ़ लेना ही पर्याप्त नहीं होता बल्कि हमें अनुवाद, टीकाऐं और उसके उतरने के कारण का भी सहारा लेना पड़ता है। जब हम इस दृष्टिकोण से ध्यान पूर्वक अध्य्यन कर लेते हैं तब उस संदेश तक पहुंचना बहुत सरल हो जाता है।
यही कार्य पद्धति यदि हम विश्व के सभी मामलों में गूढ़ समस्याओं को सुलझाने के लिए व्यवहार में लाएं तो इस पवित्र आकाशीय पुस्तक का प्रकाश हर दृष्टिकोण से हर पक्ष को स्पष्ट कर देता है। ‘वन्दे मातरम’ भारतीय समाज के लिए पिछले लम्बे समय से अनसुल्झी पहेली बना हुआ है। अक्सर इस पर विवाद खड़ा हो जाता है, लम्बी बहस चलती है, फिर लोग थक जाते हैं, नई समस्याऐं अपनी ओर ध्यान केन्द्रित कर लेती हैं और यह समस्या पीछे चली जाती है। आज़ादी के पूर्व से लेकर अब तक इसी प्रकार यह सिलसिला जारी है।
यदि दारूल उलूम बेवबंद की गरिमा को निशाना न बनाया जाता तो शायद हमें इतनी गहराई से शोध की आवश्यक्ता पेश न आती। परन्तु अब जबकि देशवासियों के एक वर्ग विश्ेष ने देशप्रेम का पैमाना वन्दे मातरम को ही मान लिया है तो हमें ज़रूरी लगा कि क़ौम के दामन पर दाग़ लगाने की इस कोशिश को असफ़ल बनाने के लिए पूरी ईमानदारी के साथ तमाम तथ्यों को भारत सरकार और जनता के सामने रख दिया जाये। मैं फिर यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि वन्दे मातरम के सम्बंध में मेरे लेख न तो इसके विरोध में हैं और न इसके समर्थन में। हमारा प्रयास तो बस इतना है कि हम सब तमाम सच्चाइयों को खुली आंखों से देख लें फिर जिसकी सद्बृद्धि जो उचित समझे.
कोई भी बात कब कही गई, किन परिस्थितियों में कही गई, किस काल में कही गई और किस अवसर पर कही गई, जब तक हम इसका अध्य्यन नहीं करेंगे, बात की गहराई तक पहुंचना आसान नहीं होगा। राष्ट्र गीत की हैसियत रखने वाले वन्दे मातरम पर बहस आरम्भ करने के तुरन्त बाद मैंने आवश्यक समझा कि इस ऐतिहासिक परिदृश्य की ध्यान पूर्वक विवेचना की जाये, कि जब इसे लिखा गया वह परिस्थितियाँ किया थीं? लिखने का कारण क्या था? काल क्या था और कब इसे ‘राष्ट्र गीत’ का दर्जा दिया गया? साथ ही हमारी राष्ट्रीय पहचान से सम्बद्ध जितनी भी निशानियाँ हैं उनका भी गहराई से अध्य्यन किया जाये।
यह भी देखा जाये कि केवल राष्ट्र गीत ही दो हैं या हमारी अन्य राष्ट्रीय निशानियाँ भी दो-दो हैं फिर जब हम किसी एक का चुनाव करते हैं तो हमारी नज़र इस वर्ग में आने वाली अन्य अनेक चीज़ों पर भी होती है, उदाहरण स्वरूप मैं अपने लेख के साथ पिछले कई दिन से एक-एक कविता भी प्रकाशित कर रहा हूँ। यह कविता, गीत, तराना या आज की लोरी सब के सब स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन कविगण द्वारा लिखे गए जिनमें हिन्दू और मुसलमान दोनों का काव्य है, जो स्वतंत्रता सैनानियों के उत्साह को बढ़ाने के इरादे से लिखी गयीं।
आज इस लेख के साथ प्रकाशित की जाने वाली लोरी मोहतरम अख़तर शीरानी की कृति है और इसकी सबसे बड़ी विशेषता मुझे यह लगी कि इस दौर में एक माँ अपने अल्पायु बच्चे को नींद की गोद में पहुंचने से पूर्व भी उसे देशभक्ति का गीत सुनाती थी और उसके मन व मस्तिष्क में वह उत्साह पैदा करती थी कि वह अपने देश की स्वतंत्रता को अपने जीवन का उद्देश्य बनाकर जीवन बिताये। यह भावना थी हमारे शायरों की और यह वह गीत हैं जिनसे घबरा कर अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें ज़ब्त कर लिया था। इसलिए कि वह समझते थे कि उनका प्रभाव इतना गहरा है कि उनकी सरकार की चूलें हिल सकती हैं। मुझे नहीं मालूम कि क्या ‘वन्दे मातरम्’ भी अंग्रेज़ सरकार द्वारा ज़ब्त किया गया?
शोध जारी है, वैसे भी अभी मैंने सीधे रूप में वन्दे मातरम् पर बहस का सिलसिला शुरू नहीं किया है, हां अल्बत्ता आनन्द मठ के कुछ हवाले ज़रूर पेश किये हैं। इन्शा अल्लाह जल्द ही तमाम विस्तार के साथ इस पर भी क़ल्म उठाया जायेगा। अभी तक तो राष्ट्रीय प्रतीकों पर बातचीत जारी थी, इनमें से जिन तीन का उल्लेख शेष रह गया आज उस पर बात समाप्त करना चाहता हूँ और वह तीन प्रतीक हैं हमारा राष्ट्रीय फल, राष्ट्रीय फूल और राष्ट्रीय वृक्ष।
हमारा राष्ट्रीय फल ‘आम’ है वेदों में आम को भगवान का फल बताया गया है, मैं इस पर कोई बहस नहीं करना चाहता, मिर्ज़ा ग़ालिब को भी आम बहुत पसन्द थे और शायद सभी भारतियों की पहली पसन्द भी आम हैं। हां फूल पर कुछ वाक्य अवश्य लिखना चाहेंगे। ‘कमल’ के फूल को भारत मंे प्राचीन काल से ही पवित्र माना जाता रहा है और भारतीय देवमाला में इसे विशेष स्थान प्राप्त है। हिन्दू धर्म के अनुयाइयों के लिए यह फूल विशेष महत्व रखता है। इस धर्म के अनुसार कमल को भगवान विष्णु, ब्रह्मा, लक्ष्मी और पार्वती से जोड़ा जाता है। भगवान विष्णु के सौन्र्दय का उल्लेख करने के लिए कमल से उनको उपमा दी जाती है, अनेक धार्मिक रीतियों को पूरा करने में भी कमल के फूल का प्रयोग किया जाता है।
वेदों में भी कमल का उल्लेख मिलता है। सम्भव है कि इन्ही विशेषताओं के आधार पर भारतीय जनता पार्टी ने इसे अपना चुनाव चिन्ह चुना है। अन्यथा पण्डित जवाहर लाल नेहरू की शेरवानी पर मुस्कराने वाला गुलाब का फूल भी अपने सौन्र्दय और सुगन्ध के लिए तमाम फूलों में एक विशेष स्थान रखता है और वर्ष में एक दिन ऐसा भी आता है जब प्रेम करने वाले युवा लड़के लड़कियों के द्वारा फूल उनका प्रेम सन्देश बन कर उनके प्रेमी तक पहुंचता है और हमारे लिए तो इसका महत्व यूँ भी बढ़ जाता है कि ख़वाजा ग़रीब नवाज़ (रह।) की दरगाह हर समय इसी गुलाब की सुगन्ध से महकती रहती है और यह फूल तीर्थ स्थल ‘पुष्कर’ से आता है।
बहरहाल अब उल्लेख राष्ट्रीय वृक्ष ‘बरगद’ का। नीम के हवाले से आयुर्वेद और यूनानी दवाइयों के विशेषज्ञ बहुत कुछ कहते हैं, हमारे पूर्वज भी नीम के वृक्ष को आंगन में लगाना स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक समझते हों, यह सब अलग बात है, परन्तु हमारा राष्ट्रीय वृक्ष ‘बरगद’ है। जब मैं बरगद की विशेषताओं का अध्य्यन कर रहा था तो इतनी सामग्री मेरे सामने थी कि कई लेख केवल बरगद के धार्मिक पहलू को सामने रख कर लिखे जा सकते हैं। फल और फूल की दृष्टि से तो बरगद का उल्लेख निरर्थक है, इसलिए कि इस पर लगने वाले फूल और फल उल्लेखनीय नहीं, हां अल्बत्ता इसकी विशालता शेष सभी वृक्षों से बढ़कर है।
अब रहा प्रश्न इसे हिन्दू धर्म के महत्व के रूप में देखने का तो प्राचीन काल से ही भारत में इसकी पूजा की जाती रही है। ऋज्ञ वेद और अथर वेद ने इसकी पूजा को अनिवार्य क़रार दिया है। हिन्दू देव माला में भगवान शिव को बरगद के वृक्ष के नीचे बैठा हुआ बताया गया है। हिन्दू धर्म के अनुयायी इसे ‘कल्प वृक्ष’ भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि एक ऐसा वृक्ष जो तमाम मुरादों को पूरा करता है। सम्भव है इसका एक कारण यह भी रहा हो कि जब चित्रकूट की ओर जाते हुए सीता जी के रास्ते में यह वृक्ष पड़ा तो उन्होनें इसे नमस्कार किया और अपने पतिव्रत धर्म के पालन के लिए इस वृक्ष से प्रार्थना की। हाथ जोड़ कर सीता जी बहुत देर तक मौन इसके सामने खड़ी रहीं और अपनी मुराद को पूरा करने की प्रार्थना की जिसे संस्कृत के इस श्लोक में दर्शाया गया है
तेषु ते प्लवमुत्सृज्य प्रस्थाय यमुनावनात् ।
श्यामं न्यग्रोधमासेदुः शीतलं हरितच्छदम् ।।
न्यग्रोधं समुपागम्य वैदेही चाभ्यवन्दत ।
नमस्तेऽस्तु महावृक्ष पारयेन्मे पतिव्रतम् ।।
रामायण, अयोध्या काण्ड, 2, पृष्ठ 23-24, 55
‘हे महावट वृक्ष जो यमुना के किनारे स्थित है और शीतल छाया से आच्छादित है, मुझे पतिव्रता धर्म का पालन करने की सार्मथ्य दो और निर्विधनता का आर्शीवाद दो।’
और जब बनवास से सीता जी श्रीराम जी के साथ वापस लौट रही थीं तो इस सृन्दर वृक्ष को देख कर श्रीराम जी ने सीता जी को सम्बोधित करके कहा कि तुम ने जिस वृक्ष से प्रार्थना की थी, यह अन्य वृक्षों के बीच इस समय ऐसा ही स्पष्ट नज़र आ रहा है जैसे अनेक नीलमों के बीच पुखराज जड़ा हो। सम्भवतः सही कारण है कि आज भी विवाहित हिन्दू महिलाएं लम्बे और ख़ुशहाल गृहस्थ जीवन के लिए बरगद की पूजा करती हैं।
अपने इन राष्ट्रीय चिन्हों के सम्बंध में और भी कुछ लिखा जा सकता है परन्तु हम बात को और लम्बा नहीं करना चाहते, इसलिए कि हमें अब वन्दे मातरम् की तरफ़ लौटना है, हां इतना लिखने के पीछे भी उद्देश्य केवल यह था कि इस खोज से जो सच्चाई सामने आती है उससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि तमाम राष्ट्रीय चिन्हों का चुनाव करते समय हमारे धर्मनिरपेक्ष भारत के भाग्य विधाताओं ने क़दम-क़दम पर एक धर्म विशेष के प्रतिनिधित्व का ख़याल रखा था।
लोरी
कभी तो रहम पर आमादा बे रहम आसमाँ होगा।
कभी तो ये जफ़ा पेशा मुक़द्दर मेहरबाँ होगा।
कभी तो सर पे अब्रे रहमते हक़ गुलफ़िशां होगा।
मुसर्रत का समाँ होगा
मेरा नन्हा जवाँ होगा।।
किसी दिन तो भला होगा ग़रीबों की दुआओं का
असर ख़ाली न जाएगा ग़म आलूद इलतिजाओं का।
नतीजा कुछ तो निकलेगा फकीराना सदाओं का।
ख़ुदा गर मेहरबाँ होगा
मेरा नन्हा जवाँ होगा।
ख़ुदा रख्खे जवाँ होगा तो ऐसा नौजवाँ होगा।
हुसैन व फ़हमदाँ होगा दिलेरो तैग़रां होगा।
बहुत शीरी जुबाँ होगा बहुत शीरी बयाँ होगा।
यह महबूबे जहाँ होगा
मेरा नन्हा जवाँ होगा।
वतन और क़ौम की सौ जान से ख़िदमत करेगा यह।
ख़ुदा की और ख़ुदा के हुक्म की इज़्ज़त करेगा यह।
हर अपने और पराए से सदा उल्फ़त करेगा यह।
हर इक पर मेहरबाँ होगा
मेरा नन्हा जवाँ होगा।।
मेरा नन्हा बहादुर एक दिन हथियार उठाएगा।
सिपाही बनके सूए अर्सा गाहे रज़्म जाएगा।
वतन के दुश्मनों की ख़ून की नहरें बहाएगा।
और आख़िर कामरां होगा
मेरा नन्हा जवाँ होगा।।
वतन की जंगे आज़ादी में जिसने सर कटाया है।
ये उस शैदाए मिल्लत बाप का पुरजोश बेटा है।
अभी से आलमें तिफ़ली का हर अन्दाज़ कहता है।
वतन का पासबां होगा
मेरा नन्हा जवाँ होगा।।
है उसके बाप के घोड़े को कब से इन्तिज़ार उसका।
है रस्ता देखती कब से फ़िज़ाए कारज़ार उसका।
हमेशा हाफ़िज़ो नासिर रहे परवरदिगार उसका।
बहादुर पहलवाँ होगा
मेरा नन्हा जवाँ होगा।।
वतन के नाम पर इक रोज़ यह तलवार उठाएगा।
वतन के दुश्मनों को कुन्जे तुरबत में सुलाएगा।
और अपने मुल्क को ग़ैरों के पंजे से छुड़ाएगा।
ग़ुरूरे ख़ान्दाँ होगा
मेरा नन्हा जवाँ होगा।।
सफ़े दुश्मन में तलवार उसकी जब शोले गिराएगी।
शुजाअत बाज़ुओं में (आग) बन के लहलहाएगी।
जबीं की हर शिकन में मर्गे दुश्मन थरथराएगी।
यह ऐसा तेग़ रां होगा
मेरा नन्हा जवाँ होगा।।
सरे मैदान जिस दम दुश्मन उसको घेरते होंगे।
बाजाए ख़ूं रगों में उसकी शोले तैरते होंगे।
सब उसके हमला ऐ शेराना से मुंह फेरते होंगे।
तहो बाला जहां होगा।
मेरा नन्हा जवाँ होगा।।
अख़्तर शीरानी
1।अत्याचारी, 2। ईश्वरीय कृपा के बादल, 3। फूलों की वर्षा, 4. ख़ुशी, 5. दुखमय, 6. याचनाएं, 7. आवाज़ें, 8. समझदार, 9. कटार चलाने वाला (योद्धा), 10. मीठा, 11. प्रेम, 12. तरफ़, 13. युद्ध का मैदान, 14. सफल, 15. राष्ट्र प्रेमी, 16. बचपन, 17. रखवाला, 18. युद्ध का वातावरण, 19. रखवाला, 20. सहायक, 21. पालनहार, 22. क़ब्र का कोना, 23. गर्व, 24. पंक्ति, 25. बहादुरी, 26. माथा, 27. मृत्यु, 28. शेरों जैसा आक्रमण, 29. उलट-पलट

Indian Rupee Converter
No comments:
Post a Comment