Sunday, October 11, 2009

ये मुसलमानों के ही नहीं, हिन्दुओं के भी दुश्मन हैं

शिवसेना के सम्बन्ध में पिछले कुछ दिनों के अन्दर हमने जो कुछ लिखा, उस पर अपनी जगह कायम हैं, आज भी इस सिलसिले में और कुछ लिखना चाहते थे लेकिन इससे पहले आज कुछ बातें भारतीय जनता पार्टी से सम्बन्धित कहना भी जरूरी हैं। आम ख्याल यह है कि शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी मुसलमानों को नापसन्द करने वाली पार्टियां हैं लेकिन सच यह है कि शिवसेना केवल मुसलमानों को नापसन्द करने वाली या मुसलमानों की दुश्मन पार्टी ही नहीं है बल्कि शिवसेना की कार्यवाही इंसानियत दुश्मन है।

उत्तरी भारत से आने वालों पर अत्याचार करने से पहले शिवसेना ने दक्षिण भारत से मुम्बई आने वालों पर हिंसा तथा अत्याचार की शुरूआत की। ज़ाहिर है कि उत्तरी भारत और दक्षिणी भारत से आने वाले यह भारतीय क्षेत्रीयता पर आधारित घृणा तथा कट्टरता का शिकार हुए, धर्म की आधार पर नहीं। पलायन कर मुम्बई या महाराष्ट्र आने वालों में केवल मुसलमान ही नहीं, हिन्दू भी बड़ी संख्या में थे। इसलिए घृणा तथा कट्टरता का शिकार केवल मुसलमान ही नहीं हुए, हिन्दू भी हुए और हो रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी मुसलमानों की किस हद तक दुश्मन है, आज इस पर बहुत अधिक न लिखकर हम कहना यह चाहते हैं कि दरअसल भारतीय जनता पार्टी मुसलमानों की ही नहीं हिन्दुओं की भी बहुत बड़ी दुश्मन है। हमारे इस वाक्य पर आश्चर्य भी हो सकता है और आपत्ति भी मगर अगली कुछ पंक्तियों में यह स्पष्ट हो जायेगा कि हम जो कुछ कह रहे हैं वह अकारण नहीं है बल्कि उसके पीछे ठोस वास्तविकता है। भारतीय जनता पार्टी ने मन्दिर बनाने का झांसा दिया, हिन्दुओं को। मुसलमानों की नहीं, हज़ारों निर्दाेष हिन्दुओं की भी जानें गईं।

पर क्या मन्दिर बना? बनी तो केवल सरकार और उसके बाद राम मन्दिर का मुद्दा ठण्डे बस्ते में चला गया। अब उसकी याद तभी आती है, जब चुनाव निकट हों या उसका राजनीतिक लाभ उठाने का अवसर हो। यह हिन्दुओं से दुश्मनी नहीं है तो क्या है। भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता में आने का सपना तीन बार पूरा किया और जिन राज्योें के मतदाताओं के सहारे आज महाराष्ट्र में उन्हीं पर अत्याचार तथा हिंसा हो रही है मगर वह अपने राजनीतिक स्वार्थाें की ख़ातिर उत्तर भारतीयों पर होने वाले इस अत्याचार को देखकर भी ख़ामोश है और अत्याचार करने वाले के साथ है।

यह सभी विषय बहुत लम्बे हैं लेकिन हमारे पास 13 अक्टूबर यानी महाराष्ट्र, हरियाणा तथा अरूणाचल प्रदेश में मतदान से पहले के केवल दो दिन शेष हैं यानी अधिक से अधिक दो लेख हम अपने पाठकों की सेवा में प्रस्तुत कर सकते हैं और इस लिहाज़ से दूसरा लेख बहुत ज्यादा उन राज्यों की जनता के ध्यान को केन्द्रित कर पायेगा, इसकी आशा कम ही है। इसलिए कि जिस समय मतदान का सिलसिला शुरू होगा शायद उस समय तक तो उन राज्यों में हर दरवाज़े तक हमारा यह अख़बार पहुंचेगा भी नहीं। फिर भी अपनी बात कहने के लिए दो दिन या दो लेख भी कुछ कम नहीं हैं।

साम्प्रदायिक राजनीतिक दल के सम्बन्ध में तो बहुत कुछ हम आज ही के लेख में कह देने का इरादा रखते हैं और धर्म निर्पेक्षता का झण्डा उठाने वाली पार्टियों के बारे विश्लेषण कल आपकी सेवा में प्रस्तुत किया जायेगा। आज के इस लेख में हम शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के साथ-साथ तमिल टाइगर के नाम से पहचाने जाने वाले प्रभाकरण, खालिस्तान की मांग उठाने वाले जरनैल सिंह भिंडरावाला, बिहार में दलितों पर अत्याचार करने वाली रणवीर सेना और कश्मीर के पृथक्तवादी यासीन मलिक के बारे में भी कुछ वाक्य कहना चाहेंगे।

बाला साहब ठाकरे हिटलर के अनुयायी हैं यह तो सब जानते ही हैं मगर शायद यह बहुतों को ज्ञात नहीं होगा कि बाल ठाकरे प्रभाकरण और भिंडरावाला से भी प्रभावित नज़र आते हैं। प्रभाकरण का नारा था ‘‘तमिल राष्ट्र, तमिल राष्ट्रीयता और तमिलों को निर्णय लेने का अधिकर’’ भिंडरावाला सिखों की बहुलता के आधार पर पंजाब को खालिस्तान के रूप में देखना चाहते थे तो यासीन मलिक कश्मीर को एक स्वतंत्र राज्य रणवीर सेना जिन उद्देश्यों को लेकर अस्तित्व में आई वह बहुत स्पष्ट रूप से शिवसेना से मिलते-जुलते हैं जिस प्रकार बाल ठाकरे मराठियों के अधिकार की बात करते हैं, इसी प्रकार रणवीर सेना ने भूमिहार ज़मीदारों के पक्ष में आवाज़ उठाने के नाम पर अपना आन्दोलन आरंभ किया। इस संस्था के नाम में भी शब्द ‘‘सेना’’ अर्थात फौज का प्रयोग किया गया और शिवसेना में भी। रणबीर सेना ने दलितों तथा अनुसूचित जातियों के विरूद्ध हिंसा का रास्ता अपनाया तो शिवसेना ने पहले दक्षिण भारतीयों तथा बाद में उत्तर भारतीयों के विरूद्ध।

हम अपने आज के इस लेख में प्रभाकरण, भिंडरावाला, रणवीर सेना और यासीन मलिक का उल्लेख कर अपने पाठकों तथा महाराष्ट्र की जनता से यह कहना चाहते हैं कि क्या इन्हें वह रास्ता पसन्द है जो प्रभाकरण, भिंडरावाला, यासीन मलिक और रणवीर सेना ने अपनाया? अगर नहीं तो कृपया इंसान दोस्ती, राष्ट्रीय एकता, साम्प्रदायिक सद्भावना तथा देश से प्रेम की मांग यह है कि शिवसेना के इस रास्ते पर चलने को प्रोत्साहित न करें। भारतीय जनता पार्टी के हिन्दू-हिन्दी प्रेम को सच्चाई की कसौटी पर परखें तब कोई फैसला करें। कहने का अर्थ यह नहीं है कि उनको वोट न दें या अमुक को दें। वोट जिसको चाहें दें मगर उसको मजबूर करें कि आपके वोट का अधिकारी वह तभी हो सकता है जब उसके दिल में इंसान दोस्ती की भावना हो।

देश से प्रेम की भावना हो, सबको साथ लेकर चलने की भावना हो। अगर नहीं तो उस वक्त तक आपके वोट का हकदार नहीं।
आईये अब एक नज़र डालते हैं बाल ठाकरे सहित उन सभी लोगों द्वारा आरंभ किये गये आन्दोलनों पर जिनका उल्लेख ऊपर की पंक्तियों में किया गया है।
बाल ठाकरे

बाला साहब केशव ठाकरे शिवसेना के प्रमुख तथा स्थापक हैं। ठाकरे ने 19 जून 1966 को शिवसेना गठित की। ठाकरे ने फ्रीप्रेस जनरल में कार्टूनिस्ट के रूप में अपना कैरियर आरंभ किया और 60 के दशक में टाइम्स आॅफ इंडिया के संडे एडिशन में भी ठाकरे का कार्टून प्रकाशित होने लगा। महाराष्ट्र में गुजराती तथा दक्षिण भारतीय मज़दूरों के बढ़ते प्रभाव के विरूद्ध ठाकरे अभियान चलाते रहे हैं।

शिवसेना का गठन महाराष्ट्र वालों के अधिकारों की लड़ाई के नाम पर किया गया। शिवसेना का आरंभिक उद्देश्य दक्षिण भारत के लोगों, गुजरातियों और मारवाड़ियों और महाराष्ट्र के लोगों के लिए रोज़गार को सुनिश्चित करना था। राजनीतिक रूप से शिवसेना कम्युनिस्ट विरोधी रही है और सेना ने मुम्बई की तमाम ट्रेड यूनियनों से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का कब्ज़ा समाप्त करके अपना जमा लिया और व्यापार करने वालों से सुरक्षा के नाम पर रकम मांगी जाने लगी।

70 के दशक में ठाकरे ने नारा दिया कि महाराष्ट्र केवल महाराष्ट्र वालों के लिए है। ठाकरे ने दक्षिण भारत से पलायन करने वालों को मुम्बई छोड़ने की धमकी दी। 2002 में ठाकरे ने मुसलमानों के विरूद्ध हिन्दु आत्मघाती दस्ते बनाने की काल दी। ठाकरे अपने उत्तेजित विचारों का इज़हार अक्सर पार्टी के प्रवक्ता अखबार ‘‘सामना’’ के सम्पादकीय द्वारा करते हैं।

1980 में ठाकरे ने मुसलमानों के सम्बन्ध में कहा था कि यह लोग ‘‘कैंसर’’ (ब्ंदबमत) की तरह फैसला रहे हैं और उनका इलाज भी आॅप्रेशन द्वारा होना चाहिए। देश को मुसलमानों से बचाना चाहिए और इसमें पुलिस को भी सहायता करना चाहिए जिस प्रकार पंजाब में पुलिस खालिस्तान का समर्थन करने वालों के साथ सहानुभूति रखती थी।

श्रीकृष्णा कमीशन ने अपनी जांच में पाया कि बाल ठाकरे ने न केवल अपने ज़हरीले भाषण से भीड़ को भड़काया बल्कि दंगाईयों की गतिविधियों की सीधे तौर पर निगरानी तथा सहायता की। दंगों के बाद फरवरी 1993 में ठाकरे ने कहा कि हमारे लड़कों ने जो कुछ भी कहा उस पर हमें गर्व है हमें जवाब देना था और हमने दिया।

5 मार्च 2008 को ठाकरे ने अपने सम्पादकीय में लिखा कि ‘‘एक बिहारी 100 बीमारी’’ शिवसेना के उत्तर भारत के प्रमुख जय भगवान गोयल ने ठाकरे पर आरोप लगाया कि ‘शिवसेना खालिस्तान और जम्मू व कश्मीर के कट्टरपंथी गु्रप से अलग नहीं है और क्षेत्र के आधार पर देश के लोगों में घृणा तथा दूरी पैदा कर रही है और उनका उद्देश्य देश को तोड़ना है। एमएनएस की तरह सेना ने भी उत्तर भारतीयों का न केवल अपमान किया है बल्कि अमानवीय व्यवहार भी किया है’।

ठाकरे जर्मनी के तानाशाह हिटलर की प्रशंसा करते हैं और स्वयं की कई चीज़ों को हिटलर की भांति बड़ी शान से बताते हैं।
ठाकरे ने स्वीकार किया है कि वह तमिल टाइगर्स के समर्थक हैं और ठाकरे चाहते थे कि केन्द्र द्वारा एलटीटीई पर लगाया गया प्रतिबंध हटा लिया जाये।

वेलू पिल्लई प्रभाकरण

प्रभाकरण लिब्रेशन टाइगर आॅफ तमिलईलम (एलटीटीई) का संस्थापक और लीडर था जो श्रीलंका के उत्तर तथा पूर्वी भाग में एक पृथक देश बनाना चाहता था। 25 वर्ष से भी अधिक समय तक एलटीटीई ने श्रीलंका सरकार के विरूद्ध अभियान जारी रखा, इसी के परिणाम स्वरूप एलटीटीई को 32 देशों ने आतंकवादी संगठन करार दिया था। इंटरपोल के साथ ही श्रीलंका तथा भारतीय सरकार को प्रभाकरण की तलाश थी। 18 मई को श्रीलंका की सरकार ने घोषणा की कि प्रभाकरण श्रीलंका की सेना द्वारा मारा गया।

एलटीटीई का सिद्धांत तथा धर्मदर्शन बहुत महत्वपूर्ण नहीं था लेकिन ऐसा कहा जाता है कि वह बौद्ध धर्म के विरूद्ध थी। प्रभाकरण ने 10 अप्रैल 2002 को प्रेस कांफ्रेंस के दौरान पत्रकारों के प्रश्नों का जवाब देते हुए कहा कि मैंने अपने लोगों से कहा है कि जब कभी मैं सिद्धांतों से हटूं तो मुझे उड़ा दिया जाये।

प्रभाकरण ने एलटीटीई की तीन प्रमुख मांगों को इस प्रकार पेश किया। तमिल राष्ट्र, तमिल राष्ट्रीयता और तमिलों को निर्णय लेने का अधिकार जैसे ही इन मोगों के प्रकाश में कोई हल सामने आता है वह तमिल जनता को भी स्वीकार होगा।

जनरैल सिंह भिंडरावाला

1981 में भिंडरावाला को हिन्द समाचार ग्रुप के मालिक जगत नारायण की हत्या के मामले में पुलिस ने गिरफ्तार किया। जिसे बाद में सबूत न मिलने के कारण छोड़ दिया गया। आप्रेशन ब्लू स्टार में लिप्त होने के कारण भिंडरावाला अधिक बदनाम हैं। जिसमें भिंडरावाला और उनके समर्थकों ने अमृतसर स्थिति गोल्डन टैंपल के साथ ही अकाल तख्त पर कब्ज़ा कर लिया था। आप्रेशन के दौरान प्रधानमंत्री इन्दिरागांधी के आदेश पर सैनिक कार्यवाई में भिंडरावाला मारा गया।

भिंडरावाले को सिख बहुल राज्य खालिस्तान का समर्थक करार दिया जाता रहा। 13 अप्रैल 1978 को अखण्ड क्रीति जत्था के कुछ अमृतधारी सिखों ने नरंकारियों के विरूद्ध प्रदर्शन किया इसके कारण अखण्ड क्रीर्ति जत्था के 13 सदस्यों की हत्या हो गई। उसके बाद 24 अपै्रल 1980 को निरंकारियों के लीडर गुरवचन सिंह निरंकारी की हत्या हो गई और एफ.आई.आर. में 20 लोगों का नाम शामिल था और उनमें से अधिकतर का सम्बन्ध भिंडरावाला से था। उसके बाद भिंडरावाला को हत्या का आदेश देने के मामले में गिरफ्तार किया गया लेकिन प्रमाण न होने की वजह से छोड़ दिया गया।

1982 में भिंडरावाला ने अपने सशस्त्र साथियों के साथ गोल्डन टैंपल में शरण थी। 3 जून 1984 को प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने आप्रेशन ब्लू स्टार आरंभ करने का आदेश दिया।

यासीन मलिक

यासीन मलिक जम्मू व कश्मीर लिबे्रेशन फ्रंट के दो में से एक घटक का अध्यक्ष है जबकि दूसरे घटक के फारूक सिद्दीकी (फारूक पापा) जम्मू व कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के उस समय दो गुट हो गये जब फ्रंट के कई वरिष्ठ नेता कश्मीर समस्या पर नागालैंड की तरह ही भारत के साथ द्वीपक्षीय बातचीत से इंकार कर दिया और जिसके लिए मलिक ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ गुप्त भेंटें भी कीं। मलिक ने अपना आन्दोलन जम्मू व कश्मीर की आज़ादी के लिए आरंभ किया। यासीन मलिक लगभग 6 वर्ष तक जेल में रहा है।

भारतीय सेना के साथ मुठभेड़ में जेकेएलएफ के चीफ कमांडर अश्फाक वाणी की मृत्यु के बाद यासीन मलिक जेकेएलएफ के एरिया कमांडर के तौर पर प्रसिद्ध हुआ। 1994 में जेल से छूटने के बाद यासीन मलिक ने हिंसा का रास्ता छोड़कर कश्मीर समस्या के समाधान के लिए शांतिपूर्ण तरीके से काम करने का ऐलान किया। यासीन मलिक हिन्दू कश्मीरियों को भी कश्मीरी समाज का हिस्सा करार देता है और वापसी के उनके अधिकार की वकालत करता है।

रणवीर सेना

रणवीर सेना जाति पर आधारित एक ग्रुप है जो बिहार में सक्रिय है। उसके बारे में कहा जाता है कि उसको भूमिहार ज़मींदारों ने बनाया है और यह दलितों के विरूद्ध कार्यवाही करती है। भारत सरकार उसे आतकवादी गु्रप समझती है। रणबीर सेना ने दलितों तथा अनुसूचित जातियों के विरूद्ध हिंसक कार्यवाही की है। 1995 में बिहार सरकार ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया था।
रणवीर सेना का नाम रणवीर बाबा (देव मालाओं से सम्बन्धित व्यक्तित्व) के नाम पर और सेना का अर्थ फौज है। 19वीं सदी के दौरान सेना के सेवानिवृत्त रणवीर बाबा जो भोजपुर के रहने वाले थे, ने भूमिहारों के अधिकार की सुरक्षा की और कई दशकों बाद ब्रहमहेश्वर सिंह मुखिया ने एक संस्था बनाई तो उसका नाम रणबीर सेना रखा।

यह दावा किया जाता है कि रणबीर सेना का गठन केन्द्रीय बिहार में माओवादियों के बढ़ते प्रभाव की समाप्ति के लिए हुआ। सितम्बर 1994 में भोजपुर जिले के उदवंत नगर प्रखंड के बेलूर गांव में रणवीर सेना बनाई गई और रणवीर सेना जातियों की निजी सेना स्वर्ण लिब्रेशन आर्मी और सन लाइट सेना के मिल जाने से हुआ। भोजपुर में गठन के बाद रणबीर सेना जहानाबाद, पटना, रोहतास, औरगंाबाद, गया, भभुआ और बक्सर जिलों तक फैल गई। रणवीर सेना ने पिपुल्स वार ग्रुप, माओइस्ट कम्युनिस्ट और सी.पी.आई. (एम.एल.) के विरूद्ध लोगों को संगठित किया।

रणवीर सेना का प्रमुख ब्रहमेश्वर सिंह मुखिया था। रणवीर सेना के बारे में कहा जाता है कि उसमें 400 भूमिगत कैडर शामिल हैं। सूत्रों के अनुसार वर्ष 2004 तक उसके एक कैडर को हत्या के लिए मासिक 1100 रूपये से 1200 रूपये मिलते थे और सामूहिक हत्या में शामिल कैडर का जीवन बीमा हज़ारों रूपये का होता था।

रणवीर सेना ने ऊंची जाति के अपने लोगों के सामाजिक तथा आर्थिक स्वार्थ के मद्देनज़र रणवीर किसान महासंघ भी बना लिया है और इसी तरह रणवीर महिला संघ की भी स्थापना कर ली है। उनके सदस्यों को भी हथियारों का प्रशिक्षण दिया जाता है।

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