आपका वोट तय करेगा राज्य का भविष्य
आज का लेख चुनावों के संबंध में लिखे जा रहे लेखों के सिलसिले की अंतिम कड़ी है। कल अर्थात 13 अक्टूबर को वोट डाले जायेंगे। स्पष्ट है उस दिन इतना अवसर ही नहीं होगा कि इन राज्यों में हमारे पाठक अपने मताधिकार का प्रयोग करने से पूर्व अखबार पढ़ने का समय निकाल सकें। जबकि कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें सामने रखना बेहद आवश्यक है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि अपने वोट का इस्तेमाल अवश्य करें। आपने सुना होगा कि जब भी भारत में मुसलमानों की संख्या की बात आती है तो अक्सर मुस्लिम संगठन यह दावा करते हैं कि लगभग 24 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है मगर जब सरकारी
आंकड़ों की भाषा में बात की जाती है तो यह संख्या घटकर लगभग 14 प्रतिशत के आसपास रह जाती है।
भारतीय जनता पार्टी के लोग तो 12 प्रतिशत से आगे बढ़ना ही नहीं चाहते और वह भी शायद गलत नहीं हैं इसलिए कि अपनी मुस्लिम विरोधी रणनीति से उन्हें जब-जब सत्ता में आने का अवसर मिला है उन्होंने आंकड़ों की भाषा में इस संख्या को कम ही करने का प्रयास किया है। कारण केवल यह नहीं कि उनके इस प्रयास से मुसलमानों से मताधिकार छिन जाता है बल्कि मुसलमानों को इसका नुक़्सान हर मैदान में उठाना पड़ता है।
मुस्लिम संगठन जब आबादी के आंकड़ेे जमा करते हैं तो वह भारत में मुसलमानों की जनसंख्या पर काम करते हैं। उनमें से कितने मतदाता हैं और कितने मतदाता नहीं हैं वह मुस्लिम विरोधी षडयंत्रकारी मानसिकता के इस फरेब को नहीं जान पाते और संभवतः इस पर अधिक काम भी नहीं होता कोई भी संगठन कुछ करना भी चाहता है तो उसे केवल परेशानियों और हतोत्साहित होने के अलावा कुछ नहीं मिलता। गौरखपुर, मऊ, आज़मगढ़ के क्षेत्र में सरगर्म एक समाजी संगठन के कार्यकर्ता श्री असद हयात ने मुझे बताया कि उनके संगठन ने इस सिलसिले में बड़ा काम किया है।
उन्होंने यह आंकड़े जमा किये हैं कि कितने मुसलमानों के मतदाता परिचय पत्र नहीं बने हैं उनका नाम मतदाता सूची में नहीं है जबकि उनके पास अपने नागरिक होने के तमाम सबूत मौजूद हैं। आप निश्चित रूप से यह कड़वी सच्चाई जानकर हैरान होंगे कि एक ही शहर में 70 हज़ार से अधिक मुसलमानों के पास मतदाता परिचय पत्र नहीं है और जब उन्होंने यह प्रयास किया कि किसी तरह इनके मतदाता परिचय पत्र बनवा दिये जायें तो एक वर्ष से अधिक की मेहनत और भागदौड़ के बावजूद उसमें सफल नहीं हो सके।
इसलिए कि प्रशासन के लोगों का बताया गया रास्ता इतना पेचीदा था कि वह चाहकर भी लोगों के मतदाता परिचय पत्र नहीं बनवा पाए। व्यक्तिगत रूप से कुछ नागरिक अपना परिचय पत्र बनवा सकते हैं मगर सामूहिक रूप से इस संगठन के लिए यह सम्भव नहीं हो पाया। अब ज़ाहिर है कि दो वक्त की रोटी प्राप्त करने के संघर्ष में लगा कोई व्यक्ति केवल मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराने के लिए इतना समय खर्च नहीं कर सकता।
इस लेखक को व्यक्तिगत रूप से भी इसका तल्ख तजुर्बा है अतः वह भाग्यशाली जिनके पास मतदाता परिचयपत्र है। जिनका नाम मतदाता सूची में दर्ज है कम से कम वह तो शत प्रतिशत अपने वोट का उपयोग करें ही। और जिनके पास मतदाता परिचय पत्र नहीं है मगर कोई भी परिचय पत्र है वह भी पोलिंग बूथ तक पहुंचकर चुनाव अधिकारी से संपर्क करें और प्रयास करें कि उन्हें मताधिकार का अवसर मिल सके और जिनके पास यह दोनों ही नहीं हैं वह चुनावी गतिविधि में शामिल होने के लिए कम से इतना तो कर ही सकते हैं कि जो बूढ़े और बीमार मतदाता किसी के सहारे के बिना पोलिंग बूथ तक नहीं पहुंच पा रहे हैं वह अपनी सेवाएं उनके लिए पेश कर दें।
खुदा के लिए इस चुनावी गतिविधि के महत्व को समझें। आप जिन बहुत सी समस्याओं से घिरे हैं उनका बड़ी हद तक हल इसी रास्ते से निकल सकता है। मेरे सामने इस समय 2004 में हुए महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों का विवरण है जिसे मैं इस लेख के साथ प्रकाशित कर रहा हूं। कृपया इस पर एक नज़र डालें और देखें कि कितने प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग किया और किसके समर्थन में। फिर ध्यान दें कि किस तरह और बेहतर तरीके से अपने मत का प्रयोग कर सकते हैं।
जहां तक प्रश्न इस बात का है कि अपने वोट का इस्तेमाल किस दल या प्रत्याशी के समर्थन में किया जाये तो इस सिलसिले में काफी कुछ लिखा जा चुका है।
बहुत हद तक आप मन बना भी चुके होंगे और बना भी लिया जाना चाहिए ज़ाहिर है भारत की जनता इस देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था देखना चाहती है और उसके लिए धर्मनिर्पेक्ष सरकार का अस्तित्व में आना आवश्यक है चाहे वह केन्द्र की बात हो या राज्य की। मुस्लिम मतदाताओं का हमेशा यह प्रयास रहा है कि उनका वोट धर्मनिर्पेक्ष प्रत्याशी और धर्मनिर्पेक्ष दल के समर्थन में ही इस्तेमाल हो फिर भी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के मनमोहक झांसे कभी-कभी ऐसी स्थितियां पैदा कर देते हैं कि अपनी समझ से वह वोट तो धर्मनिर्पेक्ष प्रत्याशी और धर्मनिर्पेक्ष दल को दे रहे होते हैं मगर लाभ साम्प्रदायिक पार्टी को पहुंच रहा होता है।
जहां तक महाराष्ट्र का प्रश्न है तो इस समय दो ही गठजोड़ ऐसे हैं जो महाराष्ट्र में सरकार बनाने में सफल हो सकते हैं इनमें से एक कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस का गठजोड़ है जिसे धर्मनिर्पेक्ष गठजोड़ भी कह सकते हैं और दूसरा भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना का गठजोड़ है, इनके विषय में कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं है। महाराष्ट्र की जनता ने इनक क्रिया कलापों को अच्छी तरह देखा और महसूस किया है। हमने भी पिछले दिनों लिखे गये अपने लेखों में इन तथ्यों को फिर से जनता के सामने लाने का प्रयास किया है और ‘‘आलमी सहारा’’ साप्ताहिक के ताज़ा अंक में ऐसी कुछ घटनाओं को जमा करके इसे एक दस्तावेज़ की शक्ल देने का प्रयास किया है।
यह अंक आपके शहर में उपलब्ध है (आप अपने अखबार के साथ अपने हाॅकर से भी मंगा सकते हैं) भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के कारनामों का विस्तृत अध्ययन आप हमारी इस विशेष प्रस्तुति में कर सकते हैं। इनके अलावा एक राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना है, अब इस विषय में भाई मैं तो केवल इतना ही कहना चाहूंगा कि सेनाएं तो सारी हमें सीमाओं पर ही अच्छी लगती हैं। चुनावी गतिविधियो में सेनाओं का क्या काम? बाकी आपकी इच्छा। राज साहब के अतिरिक्त एक तीसरा मोर्चा भी है यह बेचारे इस मामले में तो बहुत ईमानदार राजनीतिज्ञ हैं कि हमेशा अपने आप को तीसरा मोर्चा ही ठहराते हैं।
उन्हें विश्वास है कि पहला और दूसरा स्थान उनके पास हो ही नहीं सकता। अब सरकार तो उसकी बनती है जिसे पहला स्थान प्राप्त हो। विपक्षी अर्थात अपोज़ीशन पार्टी उसको माना जाता है, जिसके पास दूसरा स्थान हो। जहां तक हमारा अनुमान है हर व्यक्ति स्वयं को पहले स्थान पर ही देखना चाहता है या पहले स्थान पर पहुंचने वाले की सहायता करना चाहता है, उसके साथ जुड़े रहना चाहता है। अब कौन तीसरे स्थान वाले को पसन्द करे और क्यों यह सोचने वाली बात है। वैसे भी उनको दिया जाने वाला मत किसके काम आयेगा, किसको नुक़्सान पहुंचायेगा इतनी राजनीतिक चेतना तो आज लगभग तमाम मतदाताओं में है।
अतः मनमोहक सुन्दर आश्वासनों पर ध्यान न देकर ज़मीनी सच्चाई को महसूस करें, फिर अपने मत का प्रयोग करें।
एक बात और जो इस अवसर पर समझना आवश्यक है वह यह कि सरकार जिसकी भी आप बनवाएं। स्पष्ट बहुमत के साथ बनवाएं बैसाखियों पर टिकी लूली लंगड़ी सरकार अक्सर ब्लैक मेलिंग का शिकार होती रहती है। इससे जनता का लाभ नहीं होता, बल्कि अपना समर्थन देकर सरकार बनवाने और चलवाने वाले हर कदम पर अपने समर्थन की क़ीमत वसूल करते रहते हैं। नतीजा आप वोट देकर भी तमाम आवश्यकताओं से वंचित रहते हैं और वह आपके वोट के सहारे मुंह मांगी मुराद प्राप्त करते रहते हैं।
अब अंतिम बात जो मैं आपकी सेवा में कहना चाहता हूं वह है भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना का महाराष्ट्र असंेंबली में प्रतिनिधित्व का इतिहास। 1962 से 1986 तक के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना को कोई बड़ी सफलता प्राप्त नहीं हुई। 1990 का पहला राज्य विधानसभा चुनाव था जब इन दोनों साम्प्रदायिक दलों को उल्लेखनीय सफलता प्राप्त हुई। हालांकि शिवसेना ने 1972 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में बाकायदा भाग लिया था। 26 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किये थे और उनमें से एक प्रत्याशी को सफलता भी प्राप्त हुई थी, लेकिन उसके बाद 1978 के चुनाव में 35 प्रत्याशी खड़े करने के बावजूद इस पार्टी के किसी उम्मीदवार को कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई। 1990 में शिवसेना ने 183 उम्मीदवार खड़े किये और 52 सीटों पर उसे विजय प्राप्त हुई इसके बाद से उसकी कामयाबी का ग्राफ बढ़ता रहा है।
1995 में 73, 1999 में 69 और 2004 में उसे 62 सीटें प्राप्त हुईं। इसी तरह भारतीय जनता पार्टी ने 1980 और 1985 के चुनाव में 14 और 16 सीटें प्राप्त कीं मगर 1990 के बाद उसने क्रमशः 42-56-56-54 सीटें प्राप्त कीं। आंकड़े गवाह हैं कि इन दोनों साम्प्रदायिक पार्टियों को राम मन्दिर मुद्दा, बाबरी मस्जिद की शहादत और मुम्बई में होने वाले साम्प्रदायिक दंगोें के बाद ही अपनी जड़ें मज़बूती के साथ जमाने का अवसर मिला अगर इस सिलसिले को यहीं पर इसी चुनाव में नहीं रोका गया तो राजनीतिक सफलता के लिए इनकी जो रणनीति है उसे रोकना कितना मुश्किल होगा समझा जा सकता है।
अगर एक और बार भी इस मानसिकता की पार्टियों को सत्ता में आने का अवसर मिला तो यह राज्य किस दिशा में जायेगा , इस राज्य की शांति का क्या होगा, इस राज्य में बसने वाले तमाम भारतीयों का भविष्य क्या होगा, इस सबके बारे में सोचना है आपको वोट देने से पूर्व। इसलिए कि आपका वोट इस राज्य के 6 करोड़ 59 लाख 66 हज़ार 296 मतदाताओं का ही नहीं बल्कि 9 करोड़ 68 लाख 78 हज़ार जनता का भविष्य तय करेगा। इनके अलावा लाखों की संख्या में उत्तर भारत और दक्षिण भारत के लोग भी जो रोज़गार की तलाश में आकर इस राज्य में बस गये हैं, मगर न वह यहां के मतदाता हैं और न ही उनमें से बहुतों को बाकायदा इस आबादी के आंकड़ों में शामिल किया जा सकता है उन सबका भविष्य जुड़ा है, आपके एक वोट से।
Monday, October 12, 2009
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