Tuesday, February 3, 2009

कल्याण का अपराध तो इतिहास के पन्नों में लिखित है


श्रीमान मुलायम सिंह यादव जी बड़े ही सेकुलर लीडर रहे हैं और केवल अल्पसंख्यक ही नहीं, बलके देश के एक बड़े समुदाय में आदर और सम्मान की निगाह से देखे जाते रहे हैं। १९९१ में राष्ट्रीय एकता परिषद् की मीटिंग में स्वर्गीय राजीव गाँधी जी ने बाबरी मस्जिद की सुरक्षा के सम्बन्ध से मुलायम सिंह यादव जी की जो प्रशंसा की, शायद उसे आज तक वो भी नहीं भूले होंगे। थोड़ा बहुत तो हमें भी याद है और पाठकों को भी उस दौर की घटनाएं अवश्य याद होंगी, इस लिए के बात पुरानी सही परन्तु जिन यादों से जुड़े हों, वो भुलाई जाने वाली नहीं हैं। फिर न जाने क्या हुआ के श्रीमान मुलायम सिंह यादव जी, जिस सोच विचार और जिस मानसिकता के सदा विरुद्ध रहे, आज उसी की प्रशंसा करने लगे हैं।

यहाँ तक के जितना वो व्यक्ति स्वयं अपना बचाव नहीं कर पारहा है, इस लिए के निशचित रूप से उसे यह भाव रहता होगा के हाँ, मैं ही तो हूँ, जिस ने बार बार कहा था के मैं इस ढाँचे (बाबरी मस्जिद) के गिराए जाने के लिए जिम्मेदार हूँ। और उन की यह बात रिकॉर्ड पर मौजूद है, झुठलायें भी तो कैसे? परन्तु आशचर्य की बात है के मुलायम सिंह जी को वो सब याद नहीं पड़ता। अब यह कहना तो बेकार की बात है के कुछ उम्र की मांग होती है, इस लिए के अभी तो उन से अधिक आयु के कुछ लोग राजनीती में सरगर्म हैं, वो भी जो देश के प्रधान मंत्री रह चुके हैं और वो भी, जिन के दिल में इच्छाओं का ज्वाला मुखी हर दम हिलोरे लेता रहता है। हाँ, अगर यह हालात और उन की इच्छाओं की मांग है तो वो ख़ुद समझें।


आज लिखने के लिए इस के अतिरिकत कुछ और भी शीर्षक थे, उदहारण के तौर पर आज़म गढ़ से दिल्ली पहुँची उल्माए कौंसिल एक्सप्रेस, एक एतिहासिक घटना है, जिसे नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता, इस पर अभी लिखना बाक़ी है। बजरंग दल, साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, दयानंद पांडे और पुरोहित के श्री राम सेना से जो सम्बन्ध जताया है, साथ ही प्रमोद मुतालिक ने जो ज़हर उगला है, वो भी ऐसा शीर्षक है, जिस पर कलम उठाना आवश्यक है, परन्तु अभी बात चीत का जो सिलसिला जारी है, अर्थात कल्याण सिंह की समाजवादी पार्टी से नजदीकी, इसी पर बात जारी रखते हैं।

राजनैतिक पार्टियाँ अक्सर शासन की चाह में बेमेल समझौते करते रहते हैं, वो जिन का नज़र्याती मतभेद होता है, बलके रहता भी है वो भी एक प्लेट फॉर्म पर इकठ्ठा हो जाते हैं। ताज़ा उदहारण देखनी हो तो नीतिश कुमार और भारतीय जनता पार्टी की शक्ल में हमारे सामने है, परन्तु ऐसा नज़रयाति मतभेद जो एक दूसरे की जिद हो, जो सिरे से एक दूसरे के विरोधी हों अर्थात बीच में हम अगर बाबरी मस्जिद को करार दें तो एक व्यक्ति वो है, जिस के सर बाबरी मस्जिद की सुरक्षा का सेहरा बंधा जाता रहा है। दूसरी ओर वो है, जो मस्जिद को नष्ट करने का तमगा प्राप्त करता रहा। अब अगर यह दोनों एक दूसरे को गले लगायें तो मस्तिष्क कैसे स्वीकार करे?


अगर कुछ मजबूर और ज़रूरतमंद आवाजें, उस व्यक्ति के बचाव में उठने लगी हैं, जिस ने बाबरी मस्जिद को शहीद कर देश के हिंदू और मुसलमानों के दिलों को घृणा से भर दिया, वो ज़मीन तैयार की ,जिस पर हजारों निर्दोषों का खून बहा और कौम को फिर बटवारे जैसे हालात का सामना करने को मजबूर होना पड़ा, तो आवयशक है के उन सच्चाइयों को इतिहास के पन्नों से निकाल कर एक बार फिर उन राजनेताओं के सामने रख दिया जाए, ताके वो जान सकें के कौन है वो व्यक्ति? उस का माज़ी क्या है? उस का अपराध क्या है? ताके वो समझ सकें को क्या उस का अपराध क्षमा योग्य है? क्या वो विशवास करने लायक हैं?

इस सम्बन्ध में अगर हम कुछ कहेंगे तो उसे हमारी भावना करार दिया जा सकता है। हमारा दृष्टीकोण करार दिया जा सकता है। परन्तु, अगर हम वो एतिहासिक सत्य उस लेखक की ज़बानी पेश करें, जिस ने सभी हालात और घटनाओं का सर्वेक्षण करने के बाद अपनी रिपोर्ट पेश की हो और वो रिपोर्ट हिंदुस्तान के इतिहास का एक कभी न भुलाया जाने वाला सबक बन गया हो, तब शायद कोई यह न कह सके के हम एकतरफा दृष्टिकोण की तर्जुमानी कर रहे हैं। जी हाँ, अब मैं पेश करने जा रहा हूँ जस्टिस श्री कृष्ण की वो रिपोर्ट, जिस में उन्होंने बाबरी मस्जिद की शहादत और उसके बाद घटने वाली घटनाओं को कलमबंद किया है।


रिपोर्ट:

१९९० में एक बार फिर हिंदू वादी, हिन्दुओं की जातिवादी पार्टियों, संघटनों ने अजोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह मजूज़ा राम मन्दिर की निर्माण करने की मुहीम शुरू कर दी। उन का दावा था के उस स्थान पर भगवन राम का जनम हुआ था, दूसरी ओर साफ़ बात थी के मुस्लमान एक इंच ज़मीन भी देना नहीं चाहते थे।


इस विवाद ने उस समय संगीन रूप ले लिया, जब अदालत की ओर से मुक़दमे में बहुत देरी होगई और राजनैतिक लाभ के लिए इस मामले को एक नया मोड़ ९० के दशक में भारतीय जनता पार्टी ने दिया और उस के मुख्य लाल कृष्ण अडवाणी ने राम जनम भूमि बाबरी मस्जिद विवाद पर जनता की जागृकता पैदा करने के लिए रथ यात्रा निकाली, जिस के दौरान जगह जगह छोटे बड़े दंगे हुए।


जुलाई १९९२ से भारतीय जनता पार्टी ने अजोध्या में राम मन्दिर के निर्माण के लिए मुहीम की शुरुआत कर दी थी और इस सिलसिले में राम पादोका जुलूस, चौक सभाओं और जलसों का आयोजन किया जाने लगा, जिन में हिन्दुओं को भाषणों के द्वारा रामजनम भूमि के मामले में एक होने की नसीहत दी जाने लगी थी। हिन्दुओं को नसीहत देने वाले इन भाषणों में जातिवादी भावनाओं को भड़काने वाले नारे लगाये जाते थे और मुसलमानों को वार्निंग दी जाती थी, जिन में मुसलमानों को देश निकला करने जैसे भड़कीले नारे शामिल थे, "मन्दिर वहीँ बनायेंगे" और "इस देश में रहना होगा तो वन्दे मातरम् कहना होगा" फ़िज़ा में गूंजने लगे। राम पादोका का उद्देश्य धार्मिक कम और राजनैतिक अधिक था। हिंदू वादियों ने अपने धरम की वकालत करते हुए अपनी पकड़ मज़बूत करली और मामले को राजनैतिक रंग दे दिया जबके अदालत में सुनवाई के अंतर्गत मामले को अजोध्या में भगवान् श्री राम का मन्दिर स्थापना की मांग के साथ उछालना शुरू कर दिया गया।


केंद्रीय सरकार की क्षमता न होने और सुस्ती के कारण एक विवादित इमारत में राम लल्ला की मूर्तियाँ रख दी गयीं और वहां पूजा की अनुमति की मांग ने नई परिस्थिति पैदा कर दी थी। बाबरी मस्जिद एक पुरानी ईमारत थी जिसे मस्जिद के तौर पर प्रयोग नहीं किया जाता था, परन्तु फिर भी यह मुसलमानों के लिए काफ़ी महत्त्वपूर्ण हो चुका था और उन में से एक समुदाय ने बाबरी मस्जिद प्रोटेक्शन कमिटी बना दी। उन्होंने सरकार से कहा के इस बात को निशचित बनाये के बाबरी मस्जिद को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचेगा। हिंदू संघटनों ने उस जगह कारसेवा की मांग शुरू कर दी।

१९९१ में पहली कारसेवा के लिए विवादित स्थान पर जमा कारसेवकों ने शरारत की और पुलिस ने फाइरिंग की थी (असल में यह कारसेवा १९९० में हुई थी) यह एक संगीन मामला नहीं था, परन्तु हिंदू संघटनों ने काफी शोर मचाया और प्रोपेगंडा किए जाने लगा के सरजू नदी निर्दोषों के खून से लाल हो चुकी है, जिन्हें पुलिस ने गोलियों का निशाना बनाया था, उन्हें शहीद कहा गया। इस प्रोपेगंडे ने विवाद को काफ़ी गरमा दिया, जिस ने कांग्रेस (आई) की शोहरत को कम कर दिया और भारतीय जनता पार्टी की शोहरत में बढोतरी हो गई। पार्टी ने केन्द्र में शासन पर कब्ज़ा करने के उद्देश्य से ६ दिसम्बर १९९२ को अजोध्या में दूसरी बार कारसेवा का एलान कर दिया।


भारतीय जनता पार्टी और उस की हमनवा जमातों वी एच पी, बजरंग दल और आर एस एस की ओर से अक्टूबर १९९२ से नवम्बर १९९२ तक सरगर्मियां तेज़ हो चुकी थी, ताके ६ दिसम्बर १९९२ को अजोध्या में कारसेवा की पूरी तैयारी कर ली जाए। मुसलमानों में इन सरगर्मियों के कारण बेचैनी पैदा हो गई और इस सरगर्मी को रोकने के लिए उन्होंने भी उचित कदम उठाये। इसी प्रकार दोनों ओर से जलसे, जुलुस, मुज़ाहरे, प्ले कार्ड्स और पंफ्लीट बांटना शुरू हो गया और दोनों जनता को समझाने की कोशिश करते थे के उन का इरादा सही है। मुक़र्ररीन का अंदाज़ अनोखा था।

हिंदू वादियों ने कहना शुरू किया के सरजू नदी के तट पर भगवान् राम की जन्म भूमि पर अजोध्या में मन्दिर के निर्माण की अनुमति न देना प्रत्येक हिंदू की खुद्दारी पर धब्बा है। जबके मुस्लमान लीडरों ने कहना शुरू किया के इस मामले में थोडी सी रिआयत इस्लाम को खतरे में डाल देगी। हिंदू बहुमतों ने अपनी एक नई पहचान ढूंढ ली और मुस्लमान अल्पसंख्यक स्वयं को असुरक्षित समझने लगे, जिस से ताकत आजमाई का दौर शुरू हो गया।


अजोध्या में कारसेवा के लिए मुहीम तेज़ी से जारी थी और देश भर में बड़ी मात्रा में कारसेवकों की भरती शुरू हो गई। इस बात का अंदेशा था के लाखों की मात्रा में कारसेवक अजोध्या में जमा होंगे। हिन्दुस्तानी सरकार ने बाबरी मस्जिद प्रोटेक्शन कमिटी और हिंदू पार्टियों के प्रतिनिधियों की मीटिंग बुलाई, जिस का कोई सही परिणाम सामने नहीं आया। दोनों में से किसी ने भी नरमी नहीं जताई। केंद्रीय सरकार ने उस समय के रक्षा मंत्री, होम सेक्रेटरी और उच्य अधिकारीयों की एक उच्चस्तरीय कमिटी बनाई ताके अजोध्या की स्थिति पर नज़र रखी जाए और प्रधानमंत्री से मशवरा किया जाता रहे।

बाबरी मस्जिद सुरक्षा के मामले ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के अंतर्गत होने के कारण कानूनी हैसियत प्राप्त कर ली थी । बाबरी मस्जिद प्रोटेक्शन कमिटी ने मांग की के उत्तर प्रदेश के मुख्या मंत्री कल्याण सिंह मस्जिद की सुरक्षा के सम्बन्ध में अपने विचार जताएं। लोक सभा में मामला उठाया गया तो उस समय के प्रधान मंत्री पी वी नरसिम्हा राव ने बाबरी मस्जिद की सुरक्षा का यकीन नहीं दिलाया, बलके कहा था के हिंदुस्तान के सेकुलर प्रशासन में उस की हर सम्भव सुरक्षा होगी। मुख्या मंत्री उत्तर प्रदेश ने भी सुप्रीम कोर्ट के सामने इस प्रकार से यकीन दिलाया गया था। नॅशनल इंटीग्रेशन कौंसिल में भी इसी प्रकार यकीन दिलाया गया।


केंद्रीय सरकार ने १ दिसम्बर १९९२ से बाबरी मस्जिद के चारों ओर एक बड़ी मात्रा में नीम सेना फोर्सेज को तैनात कर दिया था। अजोध्या में लाखों कारसेवकों के जमा होने के कारण परिस्थिति हर पल विस्फोटक होती जा रही थी। केन्द्रीय सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार तसल्ली देने के लिए कदम उठाये और अजोध्या में बाबरी मस्जिद के चारों ओर एक बड़ी मात्रा में सेना और नीम सेना के दस्ते तैनात कर दिए गए। ६ दिसम्बर १९९२ को सामान्य तौर पर यही मनहूसियत छाई हुई थी।


६ दिसम्बर १९९२ को स्थानीय पुलिस ने मस्जिद को घेर लिया और कारसेवकों को मस्जिद के चारों ओर बनाई गई रुकावटों से दूर रखने की कोशिश करते रहे। पुलिस और नीम सेना के दस्तों को पीछे धकेल कर कारसेवकों ने सभी घेरे तोड़ दिए। इस प्रकार का आरोप है के इस अवसर पर जिला मजिस्ट्रेट ने सेना और नीम सेना के दस्तों को कारसेवकों पर फाइरिंग के आदेश दिए, परन्तु जवानों ने कारसेवकों पर फाइरिंग करने से इंकार कर दिया था क्यूंकि वो उन्हें अपना भाई समझते थे। कारसेवकों ने रुकावटें हटा दीं और ज़बरदस्ती बाबरी मस्जिद में दाखिल हुए और उसे नष्ट करने में सफल हो गए। विदेशी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विशेषकर ब्रिटिश ब्रोडकास्टिंग कॉर्पोरशन टेलीविज़न (बी बी सी टी वी) ने बाबरी मस्जिद के गिराए जाने की फ़िल्म और कारसेवकों को जशन मानते हुए अपनी ख़बरों में दिखाना शुरू करदिया। दोपहर ढाई बजे से ख़बरों में बाबरी मस्जिद के गिराए जाने को अहम् ख़बर के तौर पर पेश किया जाने लगा था।


बाबरी मस्जिद के गिराए जाने की ख़बर का प्रभाव

बाबरी मस्जिद के गिराए जाने की घटना के सिलसिले में राज्य प्रशासन और पुलिस मिशनरी को पहले से कोई जानकारी नहीं दी गई थी और न ही बाबरी मस्जिद पर हमले या गिराए जाने के बारे में कोई शक जताया गया था। कमीशन के सामने गवाही देने वाले सभी पुलिस अधिकारीयों और उस समय के मुख्य मंत्री सुधाकर राव नायक ने साफ़ साफ़ कुबूल किया के बाबरी मस्जिद का गिराया जाना एक गैर उम्मीद घटना थी। आशचर्य की बात यह है के उन सभी व्यक्तियों को बाबरी मस्जिद के गिराए जाने की ख़बर टेलीविज़न खबर्नामे से मिली थी। हिन्दुस्तानी सरकार की इंटेलिजेंस एजेन्सी इस ख़बर को सरकारी तौर पर देती, उस समय तक काफ़ी देर हो चुकी थी।

पुलिस कंट्रोल रूम की लॉग बुक में पेश आने वाली घटनाओं के वायर लेस पर दिए जाने वाले संदेशों की सही विस्तार नहीं मिली है। असल में लॉग बुक में तत्काल होने वाली घटनाओं के बारे में लिखित विस्तार होता है। ६ दिसम्बर और ७ दिसम्बर १९९२ की लॉग बुक में अधिक विस्तार नहीं पाया गया।


६ दिसम्बर १९९२ बाबरी मस्जिद के गिराए जाने से पहले शहर में तनाव पाया जाता था।


१०.००: चरनी रोड आंबेडकर गार्डन में १५५ लोगों का जमा होना और चेम्बूर में १२.४५ बजे भारत कैफे के नज़दीक कुछ गड़बड़ हुई थी।


११.३४: एल टी मार्ग पुलिस स्टेशन की हद में स्थापित बम्बई मुनिसिपल कारपोरेशन बिल्डिंग के नज़दीक लोहार चाल की दरगाह में गड़बड़ हुई थी।


११ से १२ बजे: कारसेवकों और विश्वहिंदू परिषद् और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने विभिन्न स्थानों पर जलसों का आयोजन किया था।


१२.३३: शिव मन्दिर दादर के सामने ३००-४०० व्यक्ति जमा हुए थे।


१४.००: भोईवाडा पुलिस की हद में एल्फिन्स्टन ब्रिज के पास एक भीड़ जमा होगई थी। बाबरी मस्जिद दोपहर १२.३० बजे गिरा दी गई और इस ख़बर को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने बड़े स्तर पर पेश किया। विशेषकर बी बी सी न्यूज़ में ख़बर को बार बार पेश किया जाता रहा था।


१६.४०: धारावी में शिव सेना के स्थानीय लीडरों ने २००-३०० व्यक्तियों की एक साइकल रैली निकाली थी। रैली जातिवादी और मुस्लिम क्षेत्रों से निकाली गई और काले किल्ला पर समाप्त हुई थी, जहाँ एक सामान्य जलसे से शिवसेना के ओहदेदारों ने खिताब किया था। इस जलसे में भड़कीले भाषण दिए गए।


१९.५२: पाइधोनी की हद में इमाम बाड़ा और भिन्डी बाज़ार में एक भीड़ लग गई थी।


२०.३३: निजाम स्ट्रीट, मस्जिद क्रॉस लेन में मुस्लमान जमा होगये थे।


२०.४२: भाइकला की हद में जीजा माता लेन में ५०-६० हिंदुत्ववादी जमा थे।


२१.१०: जोगेश्वरी की हद में मीनारा मस्जिद के पास ५०० लोग पत्थर बाज़ी करने लगे और उन का निशाना पुलिस थी। पुलिस ने ताकत का प्रयोग करते हुए भीड़ को २३.२६ बजे यहाँ वहां कर दिया।


२३.३४: मांडवी टेलेफोन एक्सचेंज पैधोनी के पास भीड़ की ओर से आग लगाने की कोशिश की गई थी।


२३.४४: मीनार मस्जिद के पास पुलिस ने एक गोली चलाई और मांडवी पुलिस कुआरटर के पास भीड़ लग गई।


२३.५०: मोहम्मद अली रोड पर मोमिन मस्जिद के पास पत्थर बाज़ी हुई थी।


२३.५२: भिन्डी बाज़ार में पत्थर बाज़ी हुई और सोडा वाटर की बोत्तल फेंकी गई।


२३.५६: डोंगरी की हद में भिन्डी बाज़ार में एक ईमारत में से प्राइवेट फाइरिंग की गई।


२३.५८: डोंगरी की हद में भिन्डी बाज़ार में फाइरिंग और पत्थरबाजी हुई थी। दूसरे दिन दंगों ने पूरे शहर को अपनी लपेट में ले लिया।

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