Thursday, January 22, 2009


उसे पता था की उस की हत्या कर दी जायेगी
नहीं यह लेख मेरा नहीं है परन्तु इस लेख में, मैं एक चित्र देख रहा हूँ, शायद आप को भी वही चित्र नज़र आए। आज लिखना था मुझे एनकाउंटर बटला हाउस पर, किंतु जब मैंने श्री लंकन दैनिक " दी सन्डे लीडर" के संपादक लेसंथा विक्रम तुंगा के जीवन का यह आखरी लेख पढ़ा तो मुझे लगा के आज एक महान पत्रकार का यह विशेष लेख आप को पेश करूँ। निश्चित रूप से आप को यह जान कर दुःख होगा के संपादक विक्रम तुंगा की इसी ८ जनवरी को हत्या कर दी गयी और उन का यह लेख उन की हत्या के बाद उन के अन्तिम लेख की सूरत में उन के दैनिक में प्रकाशित किया गया।
इस लेख ने मेरे इरादों को दुर्बल नहीं किया बल्कि और भी अधिक ठोस कर दिया है इस लिए कल जब मैं एनकाउंटर बटला हाउस पर लिख रहा होऊंगा तब और भी मजबूती से अपना dरुश्तिकों पाठकों और हिन्दुस्तानी सरकार के सामने रख पाउँगा।
श्रीलंका में पत्रकारिता के अलावा ऐसा कोई दूसरा मैदान नहीं है जिस में आप से यह उम्मीद की जाती हो के आप अपनी जान पर खेल कर अपने हुनर का उपयोग सेना के बचाव के लिए करेंगे। पिछले कुछ वर्षों में स्वतंत्र पत्रकारिता पर हमलों में बढोतरी हुई है। इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के दफ्तरों को जलाया गया है, उन पर बमबारी हुई है, उन्हें सील किया गया है और दबाया गया है। कई पत्रकारों को परेशान किया गया, धमकाया गया और मार डाला गया है। मेरे लिए चिंता की बात है के मैं उस ग्रुप का हिस्सा हूँ।
मैं पत्रकारिता के पेशे में बहुत समय से हूँ। २००९ में "दी सन्डे लीडर" को १५ साल हो जायेंगे। इस दौर में श्री लंका में कई चीज़ें बदल चुकी हैं। अधिकतर की हालत ख़राब ही हुई है। हम एक ऐसी गृहयुद्ध में गिरफ्तार हैं, जिस में शामिल खून के प्यासों का कोई अंत नहीं। आतंक हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन चुकी है, चाहे वो आतंकवादियों की तरफ़ से हो या सरकार की। हत्या वो पहला हथ्यार है, जिस का उपयोग सरकार स्वंतंत्रता के इस स्रोत पर कंट्रोल के लिए करती है। आज पत्रकार हैं कल जज होंगे। किसी के लिए भी खतरा कम या ज़्यादा नहीं है।
परन्तु मैं यह काम क्यूँ करता हूँ, मैं एक पति हूँ, मेरे तीन हँसते खेलते बच्चे हैं। मेरे मित्र कहते हैं के मुझे कोई दूसरा सुरक्षित और बेहतर काम करना चाहिए दोनों ही ग्रुपों के राजनीतिकों ने मुझ से कई बार कहा को मैं राजनीती में आजाऊँ, मुझे मंत्रिपद की पेशकश भी की गई। राजदूतों को पता है के श्री लंका में पत्रकारिता करना कितना भयानक है। उन्हों ने मुझे किसी दूसरे देश में सुरक्षित ठिकाना देने की बात की, परन्तु मैं ने किसी की न सुनी। ऊंचे पद , नाम और सुरक्षा से भी एक बड़ी वस्तु होती है, आत्मा की आवाज़।
दी सन्डे लीडर एक विवादास्पद दैनिक है क्यूंकि उस में चोर को चोर कहते हैं और हत्यारे को हत्यारा। उसे हम शब्दों के उलट फेर में नहीं घुमाते। अगर हम परदा फाश करते हैं तो उस के कागजी सबूत भी देते हैं। सभी इन्केशाफत के बावजूद पिछले १५ वर्षों में हमें कोई ग़लत साबित नहीं कर सका है। स्वतंत्र मीडिया एक आईने के प्रकार होता है, जिस में लोग अपनी सूरत देख सकते हैं। कभी कभी लोगों को उस में अपनी सूरत अच्छी नहीं लगती। इसी लिए उस आईने को पकड़ने वाला पत्रकार खतरों में घिरा रहता है। हमारा प्रण श्री लंका में स्वच्छ, सेकुलरिस्म के लिए है। इन शब्दों को गौर से देखिये। साफ़ यानी सरकार की जवाबदेही लोगों के लिए हो और वह राजपाट का दुरूपयोग न करे। सेकुलर ताके हमारे जैसे बहु धर्मीय और सांस्कृतिक समाज में एक साथ रह सकें। उदार ताके हम दूसरों को वह जैसे भी हैं स्वीकार करें और अगर आप मुझ से सेकुलरिस्म का महत्त्व नहीं जानना चाहते हैं तो यह अच्छा होगा के आप मेरा दैनिक खरीदना बंद कर दें।
दी सन्डे लीडर ने बहुमत की हाँ में हाँ मिलाकर सुरक्षित रहना कभी पसंद नहीं किया। हम ने प्राय: उन विचारों को पेश किया जो बहुत से लोगों को पसंद नहीं आते। उदहारण के तौर पर हम यह कहते रहे के जुदाई पसंदी और आतंकवाद को ख़त्म कर दिया जाना चाहिए, लेकिन अधिक महत्त्वपूर्ण है के आतंकवाद के आधार को समाप्त किया जाए। हम ने श्री लंका सरकार से निवेदन किया के वह नस्लवाद के तनाव को एतिहासिक नज़रिए से देखे, आतंकवाद के नज़रिए से नहीं। हम ने आतंकवाद के खिलाफ लडाई में सरकार के इस आतंकवाद का भी विरोध किया, जो अपने ही नागरिकों पर बम बरसाती है।
कुछ लोग मानते हैं के सन्डे लीडर का कोई राजनैतिक एजेंडा है, हमारा ऐसा कोई एजेंडा नहीं है। हम प्राय: सरकार की नुकता चीनी विरोधियों से भी अधिक करते हैं तो सिर्फ़ इस लिए के विरोधियों की नुकता चीनी का लाभ भी क्या है? हम ने जो इन्केशाफत किए हैं, उन की वजह से हम यु एम् पी सरकार की आँख का सब से बड़ा काँटा बने हुए हैं, परन्तु हम तमिल टाइगर की पॉलिसियों के भी उतने ही विरोधी हैं। एल टी टी ई जैसी बेदर्द और लहू की प्यासी संघठन इस धरती पर दूसरी कोई नहीं है, इसे समाप्त किया ही जाना चाहिए, लेकिन यह कार्य सामान्य तमिल जनता पर फाइरिंग और बमबारी करके नहीं होना चाहिए। यह ग़लत तो है ही, संहली जनता के लिए भी लज्जा की बात है।
दो बार मुझ पर हमला हो चुका है और मेरे घर पर मशीन गन से फाइरिंग भी हो चुकी है, न पुलिस ने इस की कभी गंभीरता से छानबीन की और न हमला करने वालों को कभी गिरफ्तार ही किया जा सका। कई कारणों से मैं मानता हूँ के हमला करने वालों को सरकार से ही सीख मिली थी और अगर मैं मारा गया तो सरकार ही असली अपराधी होगी। बहुत कम लोग जानते हैं के मैं और महेंद्र राज पक्षे एक चौथाई शताब्दी तक मित्र रहे हैं। मैं उन लोगों में से हूँ जो महेंद्र को उस के पहले नाम से पुकारते हैं। शायद ही कोई ऐसा महिना हो जब हम न मिलते हों। २००५ में जब उन का नाम राष्ट्रपति पद के लिए आया तो उस का जितना स्वागत इस कालम में हुआ उतना कहीं नहीं हुआ। मानवाधिकार के लिए उन के हौसले को उस समय हर व्यक्ति जानता था फिर एक गलती हुई और "हमबन टोटा" का स्कैंडल सामने आगया।
एक बहुत बड़ी समस्या से जूजने के बाद हम ने वह रिपोर्ट प्रकाशित की थी और उस से निवेदन किया था की वो पैसा वापस कर दें और कई सप्ताह के बाद जब उन्होंने यह किया तो उन की इमेज को धक्का लग चुका था।
मैं जानता हूँ के मेरी मृत्यु के बाद आप भी दुःख व्यक्त करेंगे। तुंरत ही छानबीन का एलान भी होगा, लेकिन पिछली सभी जांचों के प्रकार इस बार भी सत्य सामने नहीं आएगा। हम दोनों को पता है के इस के पीछे कौन है, लेकिन कोई नाम नहीं लेगा। मेरे ही नहीं आपके जीवन के पीछे भी वही है।
देश के उत्तर पूर्वी हिस्सा जो के सेना के कब्जे में है, वहां तमिल जनता बिल्कुल द्वितीय श्रेणी के नागरिक बन कर रहने पर विवश हैं। उन को आत्म सम्मान से अलग कर दिया गया है। ऐसा सोचिये भी मत के आप युद्ध के बाद उन को सिर्फ़ प्रगतिशील कार्य और निर्माण के नाम पर अपना दीवाना बना लेंगे। युद्ध के घाव उन को सदा के लिए आप से दूर कर देंगे। वह आप से और अधिक घृणा करने लगेंगे और एक समस्या जिस का राजनीती से समाधान किया जा सकता है, वह एक ऐसा घाव बन जायेगा जो सदा बहता रहेगा। अगर मैं गुस्सा हूँ या असंतुष्ट हुआ तो अपने स्वदेशियों के कारन होऊंगा और सब से अधिक तर अपनी सरकार के कारन होऊंगा। मैं यह पूर्ण वर्तमान स्थिति दीवार पर स्वच्छ लिखी हुई देख रहा हूँ।
तुम ने मुझे कई बार बताया था के तुम राष्ट्रपति बन्ने में अधिक रूचि नहीं रखते, तुम को इस पद के पीछे भागने की आव्यशकता नहीं है। यह पद तो तुम्हारी झोली में यूँही गिर गया है। तुम ने मुझ से कई बार कहा के तुम्हारे सुपुत्र तुम्हारे लिए सब से ज़्यादा खुशी की वजह है और मैं अपने भाइयों को राज्य प्रशासन चलाने के लिए छोड़ देता हूँ। यह प्रशासन इतना शानदार और अच्छी तरह से काम कर रहा होता है के यूँ लगता है के अब मेरी भी आव्यशकता नही है, परन्तु अफ़सोस की बात यह है की वो सभी सपने जो तुमने अपने देश के लिए बचपन से सजा रखे थे, एक ढेर में बदल चुके हैं। तुम ने देश प्रेम के नाम पर सभी मानवाधिकार को नष्ट किया है। तुम ने करप्शन का इस प्रकार पालन पोसन किया है और जनता के धन को इस प्रकार नष्ट किया है के इस से पहले किसी राष्ट्रपति ने ऐसा नहीं किया।
तुम्हारा व्योहार एक ऐसे बच्चे जैसा हो गया है जिस को अचानक खिलोने की दुकान में छोड़ दिया जाए, खैर यहाँ यह उदहारण ठीक नहीं है के तुम ने अपने नागरिकों के अधिकारों से अपने हाथों को लहुलहान कर दिया है। आज तुम अपने राज्य के नशे में इतने मदहोश हो के तुम को कुछ दिखायी नहीं दे रहा है। तुम को इस बात पर अफ़सोस होगा की तुम्हारे बच्चों को ऐसी विरासत मिली है, जो सिर्फ़ दुखद का पूर्वानुमान साबित हो सकता है। जहाँ तक मेरा प्रश्न है मैं अपने जन्मदाता के साथ साफ़ आत्मा के साथ भेंट करूँगा। मेरी भी येही इच्छा है के तुम जब अपने जन्मदाता से मिलो तो तुम्हारी आत्मा भी ऐसी ही हो जैसी के मेरी है।
मेरे लिए यह संतोषजनक है के मैं जब कभी चला एक ऊंचे व्यक्ति के प्रकार चला, मैं किसी के आगे झुका नहीं, लेकिन मैंने जीवन का सफर अकेले नहीं काटा, मेरे साथ काम करने वाले, अन्य पत्रकार मीडिया से जुड़े हैं, मेरे साथ रहे। उन में से अधिक तर की मृत्यु हो चुकी है या बिना किसी मुक़दमे के जेलों में सड़ रहे हैं या दूसरे स्थानों पर देशनिकाले का जीवन बिता रहे हैं। कई पत्रकार तुम्हारे राष्ट्रपति पद के कारन उपजे मृत्यु के भयंकर साए के अन्दर जी रहे हैं। यह वही हालत है जिस के विरोध में तुम ने कड़ा संघर्ष किया था। तुम को कभी इस बात की अनुमति नहीं दी जायेगी के मेरी मृत्यु तुम्हारी देख रेख में हो। मुझे अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है के तुम्हारे पास मेरे हत्यारे का बचाव करने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। तुम इस बात का पूरा ख्याल रखोगे के कोई भी अपराधी दंड न पासके। तुम्हारे पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है, मुझे तुम पर अफ़सोस हो रहा है।
दी सन्डे लीडर के पाठकों के लिए मैं क्या कह सकता हूँ सिवाय इस के की वो हमारे मिशन का साथ दें, हम ने एक अप्रसिद्ध इशु को उठाया है। हम ने ऐसे लोगों से पंगा लिया है जो राज के नशे में इतने बलवान हो गए हैं के वह अपनी जड़ों को भूलते जा रहे हैं। ऐसे लोगों के विरोध में बगावत की है जो जनता की मेहनत की कमाई को बर्बाद कर रहे हैं और वो ऐसे हालात पैदा कर रहे हैं के जनता तक सिर्फ़ विपरीत बयान ही पहुँच सके। इस कार्य के लिए मैंने और मेरे खानदान ने कीमत चुकाई है। मुझे इस बात का अंदाजा था के मुझ को इस की कीमत चुकानी पड़ेगी। मैं सदा इस हालत के लिए तैयार रहा हूँ। मैंने इस हालत को पैदा होने से रोकने के लिए कुछ नहीं किया है। न सुरक्षा प्रबंध किए हैं न ख़ुद को बचाने के लिए कुछ और। मैं अपने हत्यारे को बता देना चाहता हूँ के मैं ऐसा कोई बुजदिल नहीं हूँ, जो बहुत बड़ी भीड़ के पीछे खड़ा हो। क्या मुझ जैसे बहुत से लोग नहीं हैं। शायद यह पहले ही लिखा जा चुका है के मरी ज़िन्दगी कौन लेगा। शायद सिर्फ़ यह लिखा जाना बाक़ी है के यह जान कब ली जायेगी और हाँ यह भी लिखा जा चुका है के सन्डे लीडर अपना संघर्ष जारी रखेगा। मैं जानता हूँ के यह युद्ध मैं अकेले नहीं लड़ रहा हूँ, मुझ से पहले बहुत से लोग मारे जा चुके हैं और मेरे बाद भी बहुत से लोग मारे जायेंगे।
लीडर की जब अन्तिम क्रिया कर दी जायेगी। मुझे आशा है के मरी हत्या स्वतंत्रता की हार नहीं होगी। मरी हत्या उन लोगों को काम करने के लिए हिम्मत देती रहेगी जो अपना प्रयास जारी रखना चाहते हैं और मरी हत्या उन लोगों को हौसला भी देती रहेगी जो मानव की आत्मनिर्भरता और देश की स्वतंत्रता के लिए काम करना चाहते हैं। मुझे आशा है के मेरी हत्या मेरे राष्ट्रपिता की आँखें खोल देगी और उन को इस बात का अनुभव हो जायेगा के देश भक्ति के नाम पर बहुत से लोग मारे जाते रहेंगे परन्तु मानवता की अनुभूति बढती रहेगी और राजा पक्से जैसे लोग इस अनुभूति को फ़ना करने में सफल नहीं हो सकते हैं।
लोग मुझ से पूछते हैं के मैं ऐसे खतरों से क्यूँ खेलता हूँ और मुझ से कहते हैं के मुझ को रास्ते से हटा दिया जायेगा। निश्चित रूप से ऐसा होगा , मुझे मालूम है के यह नामुमकिन नहीं है, परन्तु मैं ऐसे मौके पर न बोलूं तो ऐसा कौन बचेगा , जो उन लोगों के लिए आवाज़ उठाएगा जो बोल नहीं सकते हैं। वो चाहे नस्ली अल्पसंख्यक हो, समाज का लाचार समुदाय हो या वो लोग जो मुकदमों में फंसाए जा रहे हैं।
दी लीडर सदा आप के लिए आवाज़ उठाता रहेगा। चाहे आप संहली हों, तमिल हों, मुस्लमान हों, उच्चय जाती के हों या अपाहिज या किसी ऐसी सोच से जुड़े हों जिस पर सामान्य तौर पर सकारात्मक टिप्पणी न की जाती हो। दी लीडर का स्टाफ आप के संघर्ष को आगे बढायेगा। वो किसी के आगे नहीं झुकेगा, किसी से नहीं डरेगा, वो ऐसी हिम्मत दिखायेगा जिस का उदहारण नापैद नहीं रही हैं। इस वादे को भूलें नहीं के आपको इस बारे में कोई शक नहीं रहना चाहिए के हम पत्रकार जो भी बलिदान पेश करते हैं हम अपने नाम या धन के लिए नहीं करते। वो आप के लिए अपनी जान बलिदान कर देते हैं। लेकिन आप उन के बलिदान के लायक हैं या नहीं यह एक दूसरी बात है। मेरे लिए तो सिर्फ़ महत्त्व इस बात का है के मैं ने प्रयास किया।

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