Wednesday, January 21, 2009


झूठा कौन, चश्म दीद गवाह या पुलिस......?

एक अमेरिकी दैनिक ने आज शाम फ़ोन पर लगभग आधा घंटा मुंबई पर हुए आतंकवादी हमलों के सम्बन्ध में मेरे विचार जानने के लिए बात की। वो अपने समाचारपत्र और अन्य पश्चिम मीडिया के लिए मेरा एक विस्तारित इंटरव्यू चाहते थे। उन का कहना था की उन्होंने मेरे जारी लेख "मुसलमानाने हिंद....माज़ी , हाल और मुस्तकबिल???"की १०० वीं कड़ी का अभ्यास किया है और इस की ५ कॉपी खरीद कर अमेरिका भी भेजी हैं।

वो पिछले कई दिनों से मुझ से बात करना चाहते थे, वो मुसलसल हिन्दुस्तानी दैनिकों का अभ्यास कर रहे हैं और उन्हें हमारे ज़रिये उठाये गए प्रशनों पर मीडिया की खामोशी से काफ़ी आशचर्य है। अपनी बात चीत में इस खामोशी को उन्होंने "क्रिमिनल साइलेंस" का नाम देते हुए कहा के इतने गंभीर प्रशन उठाये जाने पर भी मीडिया की इस खामोशी को सिवाय इस के कुछ और नहीं कहा जा सकता।

बेशक उन्हें आशचर्य हो सकता है, इस लिए के अमेरिका व बरतानवी राज्कर्ताओं का मिज़ाज जो भी हो मगर वहां मीडिया इस हद तक पुलिस वर्जन को सामने रखने का आदि नहीं है, जितना के हम ने अपने यहाँ "एनकाउंटर बटला हाउस" और "२६ नवम्बर को मुंबई पर हुए आतंकवादी हमलों" के बाद देखा, लेकिन अब हालात बदलते नज़र आरहे हैं। इस अमेरिकी पत्रकार के सामने तो शायद पिछले छे महीने की पूर्ण दृश्यावली नहीं होंगी मगर हमारे पाठक अच्छी तरह जानते हैं के एनकाउंटर बटला हाउस के बाद मीडिया, पुलिस के ज़रिये दी गई जानकारियों को ही दिखाता रहा मगर कुछ दिनों बाद ही उस ने भी सच्चाई को सामने लाना शुरू कर दिया, ख़ास तौर से "मेल टुडे" "दी हिंदू" "टाईम्स ऑफ़ इंडिया" और "हिंदुस्तान टाईम्स" ने लगभग वही प्रशन उठाना शुरू कर दिए जो १९ सितम्बर को बटला हाउस में हुए संदिग्ध एनकाउंटर के बाद २१ सितम्बर से रोजनामा राष्ट्रीय सहारा ने उठाने शुरू किए थे और जनवरी के दूसरे हफ्ते में पुलिस के ज़रिये तीसरी चार्ज शीट दाखिल करने का समय आते आते लगभग सभी राष्ट्रीय मीडिया ने पूरे स्पष्टीकरण के साथ ये लिखना शुरू कर दिया के जब पुलिस ख़ुद इस बात का एतराफ कर रही है के इंसपेक्टर मोहन चंद शर्मा पर इस संदिग्ध एनकाउंटर में मारे गए आतिफ और साजिद के ज़रिये गोलियाँ नहीं चलाई गयीं और कहा है के इंसपेक्टर मोहन चंद शर्मा को उन आतंकवादियों की गोलियां लगीं जो जायवारदात से फरार हो गए थे। पुलिस की इस नाकाबिले यकीन कहानी पर पहले ही बहुत कुछ लिखा जा चुका है क्यूंकि बटला हाउस एल १८ के उस फ्लैट से भागने का सिर्फ़ एक ही रास्ता था, वो सीढियां जिन से उतर कर नीचे पहुँचा जा सकता था और ओपरेशन बटला हाउस के समय उन सीढियों पर ऊपर से नीचे तक पुलिस तैनात थी, इस लिए इस बात की सम्भावना नहीं थी के पुलिस की उपस्थिति में इस तंग जीने से कोई भी फरार हो सके।

आज हमारे सामने बटला हाउस का मामला तो है ही इस के अलावा मक्का मस्जिद ब्लास्ट के सभी २१ अभियुक्त रिहा किए जा चुके हैं, अब प्रशन यह पैदा होता है के असल मुजरिम कहाँ हैं क्यूंकि वो सब तो मुजरिम साबित नहीं हुए जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार किया था और अब उन के निर्दोष साबित होजाने के बाद उन अपराधी पुलिस वालों पर मुक़दमा क्यूँ नहीं जिन्होंने ने इन सब को निर्दोष होते हुए भी दोषी साबित करने की कोशिश में दर्दनाक सज़ाएं दी, जेल की सलाखों के पीछे रहने को मजबूर किया, आतंकवादी कह कर पुकारा, उन के खानदानों को समाज में रुसवा होने के लिए मजबूर किया, हम यह मामला भी उठाएंगे।

हमारे सामने ३१ दिसम्बर २००७ और १ जनवरी २००८ की पहली रात में रामपुर सी आर पी ऍफ़ कैंप में हुए हादसे की पूरी रिपोर्ट भी है, जिस से यह सवाल उठते हैं के पुलिस ने एक अविश्वसनीय कहानी बना कर उसे आतंकवादी हमला साबित करने का प्रयास किया, शीघ्र ही इस की पूरी सच्चाई हम सामने लायेंगे।

मुंबई लोकल ट्रेन में हुए बोम्ब ब्लास्ट की सच्चाई क्या है, यह सब सामने आने के बाद फिर एक बार शहीद हेमंत करकरे की याद आएगी, इस लिए के मालेगाँव बोम्ब ब्लास्ट के मामले में जो चोंका देने वाले रहस्योद्घाटन उन्होंने किए थे, ऐसा ही बहुत कुछ उन धमाकों के सम्बन्ध में भी देखने को मिल सकता है।

लेकिन हम इन सभी घटनाओं को कुछ समय के लिए पीछे छोड़ कर आज दो महत्त्वपूर्ण घटनाओं को पाठकों के सामने रखना चाहते हैं। पहली घटना तो वही है जिसे हम ने अपने पिछले जारी लेख की १०० वीं कड़ी में सामने रखा था यानी मुंबई पर आतंकवादी हमला और मुंबई ऐ टी एस चीफ हेमंत करकरे की शहादत। दूसरा महत्त्वपूर्ण मामला है जिसे इस घटना के साथ हम एक बार फिर सामने लाना चाहते हैं, वो है अंसल प्लाजा के बेसमेंट में हुआ एक ऐसा ही एनकाउंटर जैसा के एनकाउंटर बटला हाउस था।

२६ नवम्बर २००८ को कराची से समंदर के रास्ते मुंबई में प्रवेश करने वाले आतंकवादियों की एक मात्र चश्म दीद गवाह अनीता उदैया के साथ पिछले हफ्ते जो कुछ गुज़रा उसे हम अपने शब्दों में नहीं बल्कि विशवास कुलकर्णी और भूपेन पटेल की जांच के बाद सामने आई सच्चाई के प्रकाश में कहना चाहेंगे। हालाँकि हमारी मुंबई इन्वेस्टीगेटिव टीम लगातार इस घटना और हालात की जांच कर रही है मगर इस वक़्त हम चाहते हैं के अब जबकि राष्ट्रीय मीडिया ने २६ नवम्बर २००८ को मुंबई पर हुए आतंकवादी हमलों के सम्बन्ध में प्रशन उठाना शुरू कर दिया है और विशेषकर अनीता उदैया के मामले को अंग्रेज़ी, हिन्दी और अन्य स्थानीय भाषाओँ के लगभग सभी दैनिकों ने उठाया है तो हम क्यूँ न शब्द से शब्द यह दास्तान उन्हीं के हवाले से बयान करें और फिर कुछ वाक्यों में अपना तजज़िया पेश कर दें ताकि कोई यह न कह सके के हम बिना किसी कारन मामले को खींच रहे हैं। पेश है, अनीता उदैया को रहस्यमयी तरीके से भोर के समय उस के निवास स्थान के नज़दीक से उठा कर अमेरिका ले जाने की दास्तान और फिर अमेरिका से वापसी के बाद जब उस ने इस रहस्य का इन्केशाफ़ किया तो डिप्टी कमिशनर पुलिस राकेश मरिया के ज़रिये उसे झूठा करार देने का प्रयास.

पहले अनीता उदैया के मामले से अमेरिका ले जाए जाने और वापसी के बाद की कहानी:
२६/११ की गवाह अनीता उदैया जो चुपके से गायब हो गई थी, का कहना है के उसे गोरे, अमेरिका ले कर गए थे। ११ जनवरी की सुबह से वह अचानक अपने घर से गायब हो गई थी और बहुत तलाश करने के बाद भी जब वो नहीं मिली तो उस के घर वालों ने पुलिस स्टेशन में उस की गुम होने की रिपोर्ट दर्ज करादी। लेकिन १४ जनवरी को वो फिर रहस्यमई तरीके से अपने घर वापस भी लौट आई। वापसी के बारे में बताते हुए उदैया की बेटी ने पत्रकारों से कहा के उस की माँ को जांच करने वाले अमेरिका ले गए थे। लेकिन मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच ने इस दावे को बकवास कहा है और यह भी कहा है के वो मुंबई के आतंकवादी हमलों की एक मात्र गवाह नहीं है। बल्कि उदैया के खिलाफ आई पी सी के सेक्शन १८२ के तहत पुलिस को ग़लत ख़बर देने और गुमराह करने का मामला भी दर्ज कर लिया गया है। अपने घर वापस लौटने पर उदैया ने मीडिया और पुलिस से बचने के लिए झूठ बोला था के वो अपने रिश्तेदारों से मिलने सतारा जिला चली गई थी और वहां से विरार में जीवदानी की तीर्थ पर चली गई थी। लेकिन जब क्राइम ब्रांच ने उस की सच्चाई पर प्रशन चिन्ह लगाने शुरू कर दिए तो उस ने मीडिया के सामने सच बात कहने में ही खैरियत जानी।
पत्रकारों से बात करते हुए अनीता उदैया ने बताया के "मैं गायब नहीं हुई थी, मैंने अपने पति को इस की ख़बर दे दी थी। २७ नवम्बर २००८ से ही कुछ विदेशी मेरे संपर्क में थे। उन्होंने मेरी कहानी सुनी थी के कैसे मैंने उन लड़कों (आतंकवादियों) को यहाँ आते हुए देखा था। मुझ से तीन बार मिलने के बाद उन्होंने बताया था की वो एक दो दिन के लिए मुझे कहीं बाहर ले जाना चाहते हैं। मैंने उन पर विशवास किया, मैं उन की मदद करना चाहती थी, इस लिए मैंने "हाँ" में जवाब दे दिया। मैं सतारा नहीं गई थी, बल्कि अमेरिका गई थी। मैंने पुलिस से सतारा जाने की बात इस लिए कही क्यूंकि मैं डर गई थी।"

उदैया एक जाहिल औरत है, वो विस्तार से बयान नहीं करसकती, उस की कहानी में कई झोल भी हैं और अपने दावे को सच साबित करने के लिए उस के पास कोई कागज़ इत्यादि भी नहीं है।
अगर उस की बात सच है तो यह एक खुफिया इंटेलिजेंस ओपरेशन की निशानदही करता है।
हमारी मुलाक़ात उदैया से ब्रहस्पतिवार यानि १५ जनवरी की सुबह ७ बजे हुई जब वो अभी अभी नहा कर बाहर निकली थी और अपने बालों में कंघी कर रही थी लेकिन उस के चेहरे पर थकान दिखायी दे रही थी। उस का कहना था की "चारों तरफ़ से यलगार की वजह से मैं बहुत नाखुश हूँ। पुलिस हमें परेशान कर रही है। वो विरार में मेरी बेटी के पड़ोसी के घर भी गई थी, इस के बाद यहाँ पर मीडिया का हुजूम है।"

इस के बावजूद वो हम से बात करने के लिए तैयार हो जाती है। उदैया बताती है के २७ नवम्बर को यह बता देने के बाद के उस ने ६ लोगों को समुद्रतट से किनारे की तरफ़ आते हुए देखा था, बहुत सरे लोग इस सिलसिले में उस से बात चीत करनेके लिए आने लगे। उस की यह बातें बाद में टी वी पर भी दिखाई गयीं। उस के कुछ देर बाद ही कुछ "लंबे चौड़े क़द वाले लोग" उस से मिलने के लिए आए। उन के साथ एक हिन्दुस्तानी भी था (अनुवाद करने वाला)जिस का नाम शायद सुधाकर था "छोटा क़द, काला चेहरा, घुंघराले बाल और बड़ी बड़ी मूंछें" वो उस से इस बारे में बात करना चाहते थे के उस ने क्या देखा।

दिसम्बर के अन्तिम दिनों में और जनवरी के प्रारम्भ में उन्होंने अनीता उदैया से तीन बार मुलाक़ात की , उस से ज़्यादा से ज़्यादा विस्तार जानने की कोशिश की। और फिर उस से यह पूछा की वो उन के साथ कुछ दिनों के लिए देश से बहार जाने के लिए राज़ी है"। मैंने उन पर विशवास कर लिया, मैं उन की सहायता करना चाहती थी, इस लिए मैंने "हाँ" कह दिया। उस ने अपना यह बयान क्राइम ब्रांच के सामने भी दर्ज कराया था और उस का कहना है की मुंबई पुलिस के लोग भी उस से कई बार प्रशन कर चुके थे।

उदैया ने आगे बताया के "यह विदेशी मेरे साथ बड़ी अच्छी तरह पेश आए और मैंने उन से कहा के अगर वो मुझे सुरक्षित मेरे घर वापस छोड़ देंगे तो मैं उन के साथ जाने को तैयार हूँ।"
देश से बाहर जाने की तयारी में अनीता उदैया को एक "बड़े एयर कंडीशंड हॉस्पिटल" ले जा कर उस का मेडिकल टेस्ट कराया गया। लेकिन वो अस्पताल को नहीं पहचानती। उसे बताया गया के उसे शनिवार को बहार ले जाया जाएगा। क्यूंकि उस का पति सेंट जोर्ज हॉस्पिटल में भरती है और उस के दो छोटे बच्चे घर पर रहते हैं जिन की देखभाल उसे ख़ुद करनी पड़ती है, इसलिए उस ने अपनी बड़ी बेटी को (जो के विवाहित है और अपने पति के साथ विरार में रहती है) उसे कुछ दिनों के लिए अपने ही घर पर बुला लिया। उस ने एक छोटा सूट केस भी पैक किया, उस ने हमें यह दिखाया भी, जिस में उस ने अपनी सब से अच्छी दो साडियाँ रखीं। शनिवार को देर रात तक वो उन की प्रतीक्षा करती रही लेकिन वो नहीं आए।

रविवार (११ जनवरी) की सुबह को ५ या ६ बजे के आस पास उसे फोन कर के बताया गया के वो अपने घर से बाहर निकल आए और साथ में कोई भी सामान न लाये" यह बहाना करते हुए के " मैं शौचालय जा रही हूँ" वो घर से बाहर निकली।

कुछ दूरी पर एक गाड़ी उस का इंतज़ार कर रही थी। "मैं ने उन से कहा के जाने से पहले मुझे अपने पति से मिलना है इसलिए वो मुझे सेंट जोर्ज हॉस्पिटल ले गए जहाँ पर मैंने अपने पति से कहा के मैं कुछ दिनों बाद वापस आ जाउंगी ,उस ऐ बाद हम लोग एयर पोर्ट चले गए जहाँ मुझे एक स्कर्ट, ब्लाउज और एक स्कार्फ पहेन्ने के लिए दिया गया। इस के बाद हम लोग एक जहाज़ में सवार हो गए, यह सफ़ेद और नीले रंग का था और उस की दुम पर एक सितारा बना हुआ था। यह बड़ा जहाज़ नहीं था। मैं जिस सीट पर बैठी थी उस के आगे की कुछ सीटें खाली थी। उस जहाज़ में कुल १५-२० लोग थे। जब यह जहाज़ उड़ने लगा तो मैं बहुत घबरायी लेकिन कुछ देर बाद सब ठीक होगया और मैं सो गई"।

जब हम लोग जहाज़ से उतरे तो रात का समय था। वो एक बहुत बड़ा एअरपोर्ट था। उन्होंने मुझे कुछ सिक्यूरिटी चेक से गुज़ारा, उस के बाद हम बाहर आगये। जब हम बाहर आए तो बहुत ठण्ड थी। बहुत ही ठण्ड लेकिन उसे बर्दाश्त किया जासकता था। हम जल्द ही एक कार में बैठ गए और आगे को चल दिए। सड़कों पर अधिक भीड़ नहीं थी, जैसा के मुंबई में होती है, रास्ते में मैंने बड़ी बड़ी इमारतें देखि, ठीक वैसी ही जैसी के हमारे यहाँ का वर्ल्ड ट्रेड सेंटर है। मुझे एक होटल में ले जाया गया। क्या ही शानदार कमरा था! बिस्तर भी उतना ही मुलायम और स्प्रिंग की तरह था, लेकिन मैं आप को बताऊँ, मैं ज़मीन पर ही सो गई क्यूँ की मुझे इस की आदत थी। लेकिन इस से पहले हमें रात का खाना खिलाया गया, यह विदेशी खाना था, लेकिन मैंने उस की परवाह नहीं की।"
उदैया के अनुसार, अगली सुबह उसे एक ईमारत में ले जाया गया जो के उस होटल से बहुत दूर था, उस की दूरी उतनी ही थी जितनी के "कोलाबा से मछीमार नगर है" वहां हमें एक कमरे में ले जाया गया जहाँ पर पहले से ३०-४० लोग मौजूद थे लेकिन बीच में एक बड़ा काला आदमी बैठा हुआ था, जिस ने मुझ से पूछा के जब आतंकवादी वहां पर उतरे तो समय क्या हो रहा था, उन की सूरत शकल कैसी थी, वो कौन सा कपड़ा पहने हुए थे, उन के कन्धों पर लटके हुए बैग का रंग कैसा था, उन के उतरने और कोलाबा में होने वाले पहले धमाके के बीच कितना समय गुज़रा था। क्या मैं यह जानती हूँ की उन (आतंकवादियों) का ख़ास निशाना विदेशी ही थे।"

प्रशन व उत्तर के इस लंबे वक़्त के दौरान उदैया को कई बार काफ़ी पिलाई गई। उदैया के अनुसार, उस की यह पूरी बातचीत कैमरे के ज़रिये रिकॉर्ड भी की जा रही थी। जब उसे वहां से वापस होटल में लाया गया तो शाम का अँधेरा छा चुका था। "लोग मेरे साथ बहुत अच्छी तरह पेश आए और उन्होंने मुझ से कहा के अगर आव्यशकता पड़ी तो वो मुझे दोबारा बुलाएँगे।"

जब वो एअरपोर्ट पहुँची तो दोबारा अँधेरा हो चुका था। "जिस समय में मुंबई से चली थी उस वक़्त एअरपोर्ट पर ज़्यादा देर इंतज़ार नहीं करना पड़ा था, लेकिन यहाँ पर मुझे एक बड़े कमरे में ले जाया गया और वहां पर कई घंटे तक इंतज़ार करना पड़ा। जिस हवाई जहाज़ से हम लोग वापस आए वो भी अलग था। यह एक बहुत बड़ा जहाज़ था, उस में गोरी एरहोस्टेस के अलावा कुछ औरतें साडियों में भी थीं, जो हमारी सेवा कर रही थीं और उस जहाज़ का रंग सफ़ेद था जिस पर लाल रंग की धारी बनी हुई थी।"

यह जहाज़ बीच में भी कहीं पर आधे या एक घंटे के लिए रुका, लेकिन उदैया को नहीं मालूम के वो जगह कौन सी थी। उदैया मुंबई में मंगलवार की शाम ६ बजे पहुँची और फिर उसे एक होटल में ले जाया गया, बहुत ही "आलिशान" होटल जहाँ पर उसे हिन्दुस्तानी खाना दिया गया।"खाना आने में काफ़ी देर लगी, जो आदमी मेरे साथ था, वो मुझ से लगातार बातें किए जा रहा था, लेकिन जब खाना आया तो यह सचमुच बहुत ही बढ़िया खाना था।"

इसी होटल में लगभग ४८ घंटों के बाद उदैया ने अपने कपड़े बदले। रात के ११ बजे उस के लिए एक टैक्सी बुलाई गई और टैक्सी ड्राईवर को ५०० रूपये दे कर कहा गया के उदैया को कोलाबा में स्थित उस के घर छोड़ दे। "मैं वापस आई, वहां पर मैंने पुलिस और मीडिया वालों को मेरा इंतज़ार करते हुए पाया, और फिर सारा तनाजा शुरू हो गया।"

बार बार पूछने के बावजूद उदैया ने और विस्तार बताने से मना कर दिया, उस ने किसी विदेशी का नाम भी नहीं बताया और न ही उस का नाम बताया जो शुरू से आख़िर तक उस के साथ रहा। परन्तु उस ने हमें कुछ कार्ड दिखाए जो विदेशियों के थे और वो भी पत्रकारों के विजिटिंग कार्ड थे। लेकिन उदैया की बेटी न बताया के उस की माँ को १०,००० अमेरिकी डॉलर देने का वादा किया गया है, लेकिन यह पैसे अभी उसे मिले नहीं हैं।

उदैया की २५ वर्षीय सब से बड़ी बेटी, सीमा केतन जोशी जो अपने पति के साथ विरार में रहती है, ने बताया के "मेरी माँ उस से पहले क्राइम ब्रांच के कार्यकर्ताओं के साथ आतंकवादियों की लाशों को पहचाने के लिए गई थी और पिछले कई दिनों से बार बार यह कह रही थी के बहुत जल्दी कोई उस को बुलाएगा और ये के "उस को कुछ दिनों के लिए ले जाने की तैयारियां चल रही हैं" लेकिन हमारी बार बार की कोशिशों के बावजूद उस ने हमें यह बताने से इंकार कर दिया के कौन उसे ले कर जायेगा और कहाँ। शनिवार के दिन हम लोग दिन भर बैठे हुए येही बातें करते रहे और रविवार की सुबह को लगभग ६ बजे जब वो शौचालय के लिए गई तो वहां से वापस नहीं लौटी।"

आस पड़ोस में उस की छान बीन करने के बाद जब उस का कहीं पता नहीं चला तो उदैया की फॅमिली कफ़ परेड पुलिस स्टेशन पहुँची और गुम होने का मामला दर्ज करा दिया। कफ़ परेड पुलिस स्टेशन के सब इंसपेक्टर सुनील विपत ने बताया के "हम ने शहर के सभी पुलिस स्टेशन को एलर्ट कर दिया है और दूरदर्शन पर उदैया की तस्वीर भी दिखाई है। हमें इस के बारे में अब तक कोई सुराग नहीं मिला है।" क्राइम ब्रांच के सीनियर कार्यकर्ता जो इस हमले की जांच कर रहे हैं, उन्होंने कोई भी बात करने से इंकार करदिया है।

इस बीच, उदैया की फॅमिली के लोगों और उस के पड़ोसी लगातार उस की खोज में लगे रहे और उन्हें इस बात का डर भी रहा कहीं उस की जान खतरे में न पड़ जाए क्यूंकि वो २६/११ हादसे की जांच से जुड़ी है। उदैया, जो बुधवार पार्क में सफाई का काम करती थी, उस दिन अपने घर के बाहर बैठी हुई थी जब उस ने आतंकवादियों को उधर से गुज़रते हुए देखा। कालोनी के चेयरमैन मधुसुदन नायर के अनुसार, जिस समय आतंकवादी वहां से गुज़र रहे थे उस समय उस (उदैया) के कुत्ते न उन पर भोंकना शुरू कर दिया, इस लिए उस न यूँही उन लोगों से पूछ लिया के वो कौन हैं, लेकिन उन आतंकवादियों न उसे झिडकते हुए कहा के वो अपना काम करे।

नायर ने बताया के जब उदैया ने उस से यह कहा के वो बाहर जाने वाली है तो उसे शक हुआ था के यह जांच का हिस्सा हो सकता है। नायर के अनुसार, "उस के गायब होने से कुछ दिनों पहले हम दोनों में बात चीत हुई थी और उस समय उस ने बताया था के उसे कुछ दिनों के लिए देश से बाहर जाना पड़ सकता है। उस ने यह भी कहा था के उस का पासपोर्ट जारी करने की भी तयारी चल रही है क्यूंकि वो क्राइम ब्रांच के दफ्तर में कई बार जा चुकी थी और फिर वहां से वापस आ जाती थी इस लिए मैंने सोचा के यह भी उसी जांच का हिस्सा हो सकता है। लेकिन वो अचानक गायब हो गई और हमें उस के बारे में कुछ भी पता नहीं चला के वो कहाँ है, अब हम उस की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं।"

इसी बीच, आज एक और घटना घटी जिस ने उस के परिवार के लोगों को और क्रोधित कर दिया, उन के पास मौजूद एक मात्र मोबाइल भी उन के घर से चोरी हो गया। सीमा ने बताया के "जिस समय हम लोग अपने दरवाज़े के बाहर खड़े पत्रकारों से बात कर रहे थे उसी समय किसी ने हमारे उस मोबाइल को घर से चुरालिया। यह एक ही मोबाइल था जिस से हमारी माँ हम से संपर्क बनाये रखती थी लेकिन अब यह भी गायब हो चुका है।"
अनीता उदैया की अमेरिका से वापसी

पी टी आई को बताते हुए अनीता उदैया ने कहा है के "मुझे यह बताया गया था के (अमेरिका के) जिन अफसरों ने मुंबई हमलों के बारे में मुझ से प्रशन किए थे वो मुझे अमेरिका ले कर जायेंगे। वो रविवार की सुबह मेरे पास आए और मुझे एक हवाई जहाज़ के ज़रिये अमेरिका ले जाया गया। जब मैं वहां से वापस आई तो मैंने पुलिस से झूट बोला के मैं सतारा जिला गई थी (अपने भाई के पास) क्यूंकि उन अफसरों ने मुझ से कहा था की मैं अमेरिका जाने के बारे में किसी को कुछ न बताऊँ।"
अमेरिका जाने की कहानी बयान करते हुए उदैया ने कहा के शनिवार की रात को लगभग १० बजे उदैया जांच करने वाले अफसरों के आने का इंतज़ार कर रही थी। बाद में रविवार की सुबह जब वो शौचालय के लिए बाहर गई तो वहीँ से चार अफसर उसे एक गाड़ी में बिठा कर एअरपोर्ट ले गए। उदैया के मुताबिक उन चारों में से एक अफसर हिन्दी जानता था।

उदैया ने बताया के "सब से पहले मुझे सेंट जोर्ज हॉस्पिटल ले कर जाया गया ताकि मैं अपने पति राजेन्द्र को देख सकूँ। मैंने अपने पति को बताया के मैं कुछ दिनों बाद घर लौट आउंगी।" अस्पताल से मुझे एअरपोर्ट ले जाया गया। मुझे एअरपोर्ट पर बिठा दिया गया और बाक़ी अफसर एअरपोर्ट पर मौजूद कार्यकर्ताओं को कागज़ दिखने में लगे हुए थे। मेरे पास कोई सामान नहीं था। कुछ देर बाद, मैं जहाज़ में सवार हुई परन्तु मैं वहां पर बेचैनी महसूस कर रही थी।

उदैया जिस न हवाई जहाज़ के उस सफर में १७-१८ घंटे गुजारे,ने बताया के "सफर के दौरान ही मुझे बताया गया के हम अमेरिका जा रहे हैं। मैं हवाई जहाज़ में ठीक ढंग से खाना नहीं खा पा रही थी क्यूंकि वो लोग मुझे चॉकलेट सेनविच और खाने पीने की दूसरी चीज़ें दे रहे थे। मुझे नहीं मालूम के मैंने वो चीज़ें कैसे खायीं।"

"अमेरिका में हवाई जहाज़ से उतारते ही मुझे एक कार में बिठा कर एक आलिशान होटल में ले जाया गया। कुछ घंटों के बाद हम सब लोग एक बड़ी ईमारत में गए जहाँ पर मुझ से आतंकवादियों और मुंबई हमलों के बारे में कई प्रशन पूछे गए। मैं हिन्दी में जो कुछ बताती थी उस का अनुवाद अंग्रेज़ी में एक अफसर करता था और फिर अंग्रेज़ी में पूछे गए प्रशन का हिन्दी में अनुवाद करके मुझे बताया जाता था। यह सिलसिला दो तीन घंटे तक चला।"

"मैंने (हामिद कुरैशी )मुंबई का एक स्क्रैप डीलर जहाँ अनीता उदैया काम करती है) को फ़ोन के ज़रिये कई बार बताया के मैं सुरक्षित स्थान पर हूँ।" उस के बाद उदैया को उस ईमारत से वापस उस होटल में लाया गया फिर मुंबई ले जाने के लिए वहां से एअरपोर्ट लाया गया। मुंबई एअरपोर्ट से एक टैक्सी के ज़रिये वो अपने घर वापस लौट आई।

अब ऐसी खबरें मिले रही हैं की मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच ने उदैया के ख़िलाफ़ इंडियन पेनल कोड के सेक्शन १८२ के तहत पुलिस को गुमराह करने और ग़लत ख़बर देने का मामला दर्ज कर लिया है। मुंबई पुलिस (क्राइम ब्रांच) के जोइंट कमिशनर राकेश मारिया ने कहा है के उदैया अमेरिका नहीं गई थी बल्कि सतारा जिले में रहमत पूर गाँव गई थी। लेकिन प्रशन यह उठता है के राकेश मारिया को यह सब कैसे पता चला और वो यह बात यकीन के साथ कैसे कह सकते हैं। मारिया ने और जानकारी देने से मना कर दिया है।

इस बीच हिंदुस्तान में स्थित अमेरिकी सिफारत खाने के एक व्यक्ति ने अनीता उदैया के अमेरिका लेजाने की बात को खारिज कर दिया है।

मुंबई के डिप्टी कमिशनर राकेश मारिया का कहना है के अनीता उदैया झूठ बोल रही है, ऐसा ही कहा गया था डॉक्टर हरी कृष्ण के मामले में जो दिल्ली में हुए फर्जी एनकाउंटर (चश्मदीद गवाह डॉक्टर हरी कृष्ण) अंसल प्लाजा, जहाँ पुलिस ने दो नौजवानों को कार से बाहर निकाल कर गोली मार दी और फिर उन्हें आतंकवादी करार दे दिया। इस मामले की पूरी फाइल इस समय मेरे सामने है और इस लेख के अगले सिलसिले में पूर्ण विस्तार पाठकों की सेवा में पेश की जायेगी जो यह साबित करती है के पुलिस किस तरह चश्म दीद गवाहों को परेशान करती है, उन्हें लालच देती है, धमकियां देती है। अनीता उदैया तो एक गरीब, कमज़ोर, अनपढ़ औरत है, जब डॉक्टर हरी कृष्ण जैसे शिक्षित, समाज में एक अच्छी पोजीशन, दिल्ली की एक पोश कालोनी के शानदार बंगले में रहने वाले व्यक्ति को पुलिस परेशान कर सकती है, उन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर सकती है क्यूंकि उन्होंने इंसपेक्टर मोहन चंद शर्मा के ज़रिये किए गए उस फर्जी एनकाउंटर की असलियत को सामने रखा था, जी हाँ यह वही एनकाउंटर स्पेशलिस्ट इंसपेक्टर मोहन चंद शर्मा हैं जिन्होंने ओपरेशन बटला हाउस में भाग लिया था।

२६ नवम्बर २००८ को मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले के बाद २८ नवम्बर को मैं ने अपने जारी लेख की ८५ वीं कड़ी इस टाइटल "हेमंत करकरे के बाद ऐ टी एस" के तहत शहीद वतन हेमंत करकरे की मौत पर शक का इज़हार किया था, उस के बाद मुसलसल १० दिनों तक लगभग हर दिन अपने लेखों के ज़रिये हम ने वो प्रशन सामने रखे जिन का उत्तर न तो पुलिस के पास था और न ही हिन्दुस्तानी सरकार के पास। क्यूंकि आज भी वो प्रशन अपनी जगह मौजूद हैं और उस पर लिखने का सिलसिला भी जारी है इस लिए आज के इस लेख में हम उस दौरान लिखे गए लेखों के कुछ टाइटल पाठकों की सेवा में पेश कर देना आवयशक समझते हैं।

८५ कड़ी: हेमंत करकरे के बाद ऐ टी एस (२८.११.२००८)

८६ कड़ी: मालेगाँव धमाकों की जांच और मुंबई आतंकवादी हमलों का क्या कोई सम्बन्ध है? (२९.११.२००८)

८७ कड़ी: करकरे के बाद भी क्या बेनकाब हो पायेंगे सफ़ेद पोश दहशत गर्द? ( ०१.१२.२००८)

८८ कड़ी: 5 अलग अलग स्थान पर 60 घंटे तक तबाही और केवल 10 आतंकवादी, बात कुछ हज़म नहीं हुई (०२.१२.२००८)

८९ कड़ी: शहीदों के रिश्तेदार न्याय मांग रहे हैं वह समझते हैं की जो दिख रहा है उसके परदे में सच्चाई कुछ और भी है (०३.१२.२००८)

९० कड़ी: मुंबई पर आतंकवादी हमला या क्रिया की प्रतिक्रिया "क्रिया" करकरे की जांच और "प्रतिक्रिया" करकरे की मौत (०४.१२.२००८)

९१ कड़ी: किसी भी निर्णय से पहले हमारी सरकार यह तो सोचे विश्वसनीय कौन! आतंकवादी "क़सब" या "शहीद करकरे" (०५.१२.२००८)

९२ कड़ी: प्रज्ञा और प्रोहित नए नहीं हैं आतंकवाद १९४७ से ही आर एस एस का कल्चर रहा है(०६.१२.२००८)

९३ कड़ी: १९९३ के अतिरिक्त सभी आतंकवादी घटनाएं संघ व मोसाद की साजिश का नतीजा हैं! करकरे इस सच्चाई को सामने ला रहे ठ(०७.१२.२००८)

९४ कड़ी: कौन है मास्टर माइंड इन आतंकवादी हमलों का, क्या सोचते हैं आप! विचार करें और बताएं (०९.१२.२००८)

अब यह सभी लेख एक बार फिर शहीद वतन हेमंत करकरे की शहादत यानी अपने जारी लेख की १०० कड़ी के दूसरे एडिशन में प्रकाशित किए जा रहे हैं।

हालात और सबूत जिस तरफ़ इशारा कर रहे हैं, उन से अंदाजा होता है के २६ नवम्बर २००८ को मुंबई पर हुआ आतंकवादी हमला सिर्फ़ १० आतंकवादियों का कारनामा नहीं था बल्कि एक ऐसे विदेशी षड़यंत्र का परिणाम था जो हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच जंग देखना चाहती थी, जो हिंदुस्तान को खाना जंगी का शिकार देखना चाहती थी, जो हिंदुस्तान में हिंदू और मुसलमानों के बीच ऐसी ही कशीदगी देखना चाहती थी, जो ६ दिसम्बर १९९२ को बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद देखि गई। और उन विदेशी ताकतों में अमेरिका और इस्राइल शामिल नज़र आते हैं।

अगर हिन्दुस्तानी सरकार अपने देश को उन विदेशी शिकंजों से बचाना चाहती है और उसे हिंदुस्तान की १०० करोड़ जनता की थोडी सी भी चिंता है तो उन सच्चाइयों को सामने लाना ही होगा जो उन आतंकवादी हमलों से जुड़ी हैं। हिन्दुस्तानी सरकार को बताना होगा के नरीमन हाउस का सच क्या है? जिस तरह के इशारे मिल रहे हैं २६, २७ और २८ नवम्बर को मुंबई पर हुए आतंकवादी हमलों का केन्द्र नरीमन हाउस था, जिसे छाबड़ हाउस के नाम से भी जाना जाता था, उस नरीमन हाउस में उन तीन दिनों में क्या हुआ उस की अकेली चश्मदीद गवाह सेंड्रा सामुएल जो इस्राइली रब्बी ग्योरेल नोच होतेज्बर्ग और उस की पत्नी रिविका के बच्चे की आया थी और जो उसी दिन से इस्राइल में है और इस्राइली सरकार उसे अपने देश के सब से बड़े अवार्ड से नवाजने जा रही है।

आख़िर क्या वजह है के वो अपने दो बेटों को हिंदुस्तान में छोड़ कर दूसरे की औलाद की परवरिश के लिए इस्राइल में रहना चाह रही है, क्या यह उस की मर्ज़ी है या उस के ऊपर इस्राइल का ऐसा दबाव है के उस के पास इस के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं, हिन्दुस्तानी सरकार उसे वापस बुलाकर सभी बातों की जानकारी क्यूँ नहीं चाहती? हिंदुस्तान की पुलिस उस का बयान लेना ज़रूरी क्यूँ नहीं समझती? वो पासपोर्ट और विज़ा के बिना किस तरह इस्राइल पहुँची? उन तीन दिनों में उस ने क्या देखा? वो कौन लोग थे जिन्हें आतंकवादियों न मार दिया और वो आतंकवादी कौन थे जिन के कब्जे में नरीमन हाउस था? किन लोगों के लिए १०० किलो मांस और २५००० की शराब मंगाई?

इसी तरह हिन्दुस्तानी सरकार को इन प्रशनों का उत्तर भी देना होगा के अनीता उदैया को पासपोर्ट और विज़ा के बिना हिंदुस्तान के बाहर कैसे ले जाया गया? हिंदुस्तान की पुलिस को उस की जानकारी क्यूँ नहीं थी? ऍफ़ बी आई या अमेरिकी खुफिया एजेन्सी को उस से किसी भी जानकारी की आव्यशकता क्यूँ पड़ी? हमारी सरकार और पुलिस उस चश्मदीद गवाह के अमेरिकी सफर को छिपाना क्यूँ चाहती है? क्या अमेरिका ले जा कर उस पर यह दबाव डाला गया के उस दिन रबर की कश्ती से पहुँचने वाले आतंकवादियों का सही हुलया वो अपनी ज़बान पर न लाये? क्या वो आतंकवादी गोरी चमड़ी के थे?क्या उस आतंकवादी हमले में अमेरिका और इस्राइल शामिल है? क्या वो इस चश्मदीद गवाह की ज़बान को खामोश रख कर उस राज़ पर परदा रखना चाहते हैं?

हो सकता है के हिन्दुस्तानी सरकार आज इन प्रशनों का उत्तर न देना चाहे मगर जल्दी ही होने वाले चुनाव में उसे ऐसे प्रशनों से गुज़रना होगा। हमारे सामने डॉक्टर हरी कृष्ण की सूरत में एक ऐसा ही चश्मदीद गवाह मौजूद है क्यूंकि हमने अंसल प्लाजा केस की फाइल को पढ़ा है इस लिए हम अंदाजा कर सकते हैं. जो कुछ डॉक्टर कृष्ण के साथ गुज़रा वैसा ही कुछ अनीता उदैया के साथ भी गुज़रा होगा।

No comments: