क्या कांग्रेस भी कल्याण के साथ........?
मेरी निगाहों के सामने इस समय ७ और ८ दिसम्बर १९९२ के दैनिक हैं, जिन की कुछ सुर्खियाँ मैं आप की सेवा में पेश करने जा रहा हूँ। ७ दिसम्बर १९९२ को पृष्ठ १ पर पहली और सब से बड़ी ख़बर थी " बाबरी मस्जिद बचाई नहीं जा सकी, कल्याण का इस्तीफा, उत्तर्पर्देश अस्सम्ब्ली बर्खास्त, राष्ट्रपति शासन लागू, इस के अलावा पृष्ठ १ पर अन्य खबरें थीं, "उत्तर्पर्देश में रेड एलर्ट", "कई राज्यों में कर्फियु" , "दिल्ली में सेना का फ्लैग मार्च" , "राष्ट्रपिता का प्रधानमंत्री को आदेश के वो तत्काल सही कदम उठाएं" , "बुखारी ने मुसलमानों से भावनाओं पर नियंत्रण रखने का निवेदन किया" , "अजोध्या की घटनाओं से कांग्रेस सहित सभी महत्वपूर्ण राजनैतिक पार्टियाँ हैरान, एक आवाज़ में सभी ने निंदा की और कार्यवाही की मांग की"
इस सब का जिम्मेदार कौन..........?
"कल्याण सिंह"
८ दिसम्बर १९९२ के दैनिकों में पृष्ठ एक की महत्त्वपूर्ण सुर्खियाँ थीं, "देश भर में तशद्दुद, १५० लोग मारे गए, कई शहरों में कर्फियु, हालात संगीन" , "अडवाणी कल्याण के विरुद्ध मुकदमा चलाने के इशारे, चीफ सेक्रेट्री सहित बड़े अफसर भी ज़द में आयेंगे" , "फैजाबाद के डी एम्, एस एस पी सस्पेंड" , "अडवाणी ने विपक्षी दल के लीडर के पद से इस्तीफा दिया" , " विवादास्पद स्थानों पर कारसेवकों का अभी भी कब्ज़ा ".
कुसूरवार कौन..........?
"कल्याण सिंह"
६ दिसम्बर १९९२ को जब बाबरी मस्जिद शहीद हुई, केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी और प्रधानमंत्री थे नरसिम्हा राव। मुसलमानों की ६ दिसम्बर के बाद कांग्रेस और नरसिम्हा राव से यही नाराजगी रही के उन की सरकार की अवधि में मस्जिद को बचाया नहीं जा सका। मुसलमानों ने कल्याण सिंह के साथ साथ नरसिम्हा राव को भी इस के लिए जिम्मेदार माना और उन के जीवन में कभी भी नरसिम्हा राव को क्षमा नहीं किया, यहाँ तक के कांग्रेस को भी मुसलमानों की नाराजगी का भुगतान करना पड़ा।
कल्याण सिंह के फिर से समाचारों में आने और समाजवादी पार्टी से मित्रता का उल्लेख बाद में करेंगे, पहले इस समय की कांग्रेस सरकार के वादों की एक झलक पाठकों के सामने रखना अवश्य समझते हैं। ७ दिसम्बर को अर्थात बाबरी मस्जिद की शहादत के अगले दिन कांग्रेस (कांग्रेस सरकार) ने यह वादा किया था के सरकार ढांचा (बाबरी मस्जिद) की फिर से स्थापना कराएगी। क्या पिछले १६ वर्षों में सरकार ने यह वादा पूरा किया? उपरोक्त समाचार इस प्रकार था के केंद्रीय सरकार ने अजोध्या में गिराए गए ढांचा (बाबरी मस्जिद) की फिर से स्थापना का निर्णय लिया है। सरकार जातिवादी संघटनों पर प्रतिबन्ध भी लगायेगी। सरकार ने उत्तर्पर्देश में राष्ट्रपति शासन लागू करने के बाद अजोध्या के हालात की उच्च स्तरीय छानबीन कराने का तत्काल एलान किया, जिस के बिन्दु निम्न लिखित थे:
१. गिराए गए ढांचा (बाबरी मस्जिद) की फिर से स्थापना की जाए और इलाबाद हाई कोर्ट का निर्णय आने (११ दिसम्बर) के बाद अजोध्या में एक नए राम मन्दिर की स्थापना के लिए सही कदम उठाये जायेंगे।
२. जातिवादी संघटनों पर प्रतिबन्ध लगाया जायेगा, उन संघटनों की सूची के बारे में गृह मंत्रालय गौर कर रही है।
३. अजोध्या में राम जनम भूमि, बाबरी मस्जिद ढांचा को तोड़ने की घटना से सम्बंधित दोषियों के विरुद्ध कानून के तहत कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जायेगी। यह कार्यवाही उन लोगों के विरुद्ध भी की जायेगी, जिन्होंने लोगों को भड़काने और उकसाने का काम किया है।
४. ६ दिसम्बर के मामले में लापरवाही बरतने वाले अन्य सरकारी अधिकारीयों के विरुद्ध विभागीय कार्यवाही की जायेगी, उन पर मुक़दमे भी चलाये जा सकते हैं।
सरकारी अनुवादक ने उसे अजोध्या के हालात के सम्बन्ध से किए गए निर्णय की पहली कड़ी करार दिया।
अगले दिन अर्थात ८ दिसम्बर १९९२ को दैनिकों की पहली ख़बर यह थी: "देश भर में हुए अत्याचार में १५० लोग मारे गए, कई शहरों में कर्फियु, हालात नाज़ुक"
"दूसरी बड़ी ख़बर थी: "अडवाणी और कल्याण सिंह के विरुद्ध मुकदमा चलाये जाने के इशारे"
क्या सरकार बता पाएगी के वो कौन से जातिवादी संघटन हैं, जिन की फेहरिस्त गृह मंत्रालय ६ दिसम्बर १९९२ की घटना के बाद तैयार कर रही थी और उन में से किन किन जातिवादी संघटनों पर पिछले १६ वर्षों में प्रतिबन्ध लगाया गया। अगर नरसिम्हा राव से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक के राज्य काल की बात न करें, तब भी प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के दौर में क्या कांग्रेस ने उस के सम्बन्ध में कोई कदम उठाया?
लाल कृष्ण अडवाणी और कल्याण सिंह के विरुद्ध कौन से मुक़दमे चलाये गए और उन का क्या परिणाम हुआ?
६ दिसम्बर १९९२ को बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद देश भर में हुए अत्याचार में १५० लोग मारे गए, कई शहरों में कर्फियु और हालात संगीन, यह ख़बर घटना के सिर्फ़ २४ घंटे गुजरने के बाद की थी। अगर हम १६ वर्षों की बात करें तो गुजरात सहित, बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद हुए जातिवादी दंगों में कितने लोग मारे गए हैं, घायल हुए हैं। क्या इन सब की ज़िम्मेदारी सब से अधिक कल्याण सिंह पर नहीं आती है? जब तक कल्याण सिंह भारतीय जनता पार्टी में थे, तब तक इस सम्बन्ध में कोई भी आवाज़ उठाना बेकार था, इस लिए के जब नरेंद्र मोदी के राज्य काल में मुसलमानों की हत्या पर उठाये जाने वाली आवाजों का कोई परिणाम नहीं निकला तो कल्याण सिंह के विरुद्ध आवाज़ उठाने से क्या मिलता?
लेकिन!
आज जब कल्याण सिंह को सेकुलर पार्टियों की श्रुंखला में खड़ा कर दिया गया है तो कांग्रेस को उन प्रशनों के उत्तर देने के साथ साथ इस प्रशन का उत्तर भी देना होगा के कांग्रेस सरकार जिन पर उस समय मुकदमा चलने की बात कर रही थी, आज उन्हीं के साथ गठजोड़ का निर्णय क्या उस के शब्दों और कार्य पर प्रशन नहीं उठाता? वो व्यक्ति जो बाबरी मस्जिद की शहादत के लिए जिम्मेदार है, वो व्यक्ति जिसे देश भर में हुए हजारों निर्दोषों की हत्या की ज़िम्मेदारी से अलग नहीं किया जा सकता, वो व्यक्ति जिसे मुस्लमान नरसिम्हा राव से भी अधिक नापसंद करते हैं, वो व्यक्ति जिस ने स्वतंत्रता के बाद एक बार फिर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच नफरत पैदा की, वो व्यक्ति जो केवल बाबरी मस्जिद की शहादत के लिए ही नहीं, बलके देश में शान्ति का नाश करने का जिम्मेदार है। क्या आज उस व्यक्ति को सेकुलर मान लिया जाए? क्या उस के पिछले सभी अपराधों को माफ़ कर दिया जाए? हमारे ख्याल में यह संभव नहीं है। समाजवादी पार्टी की इस राजनीतिक नीति के बारे में हम बाद में बात करेंगे, आज हम कांग्रेस को यह बता देना चाहते हैं के ६ दिसम्बर १९९२ के दैनिकों की इन सुर्खियों पर गौर करे, अपने किए हुए वादों पर गौर करे, उस व्यक्ति के कार्य पर गौर करे जो बाबरी मस्जिद की शहादत के लिए जिम्मेदार है, फिर यह निर्णय ले के क्या इस सब के बावजूद भी उसे कल्याण सिंह के साथ खड़ा होना स्वीकार है? उस के बाद यह निर्णय देश की सेकुलर जनता को करना होगा के अब वो किसे कम्युनल और किसे सेकुलर कहें, किस की हिमायत करें और किस से दूर रहे।
Thursday, January 29, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
jnab aapne kya khob kaha, banda aap ki rae se mutafiq he.
Post a Comment