Thursday, January 29, 2009

और अब नॉएडा एनकाउंटर भी संदिग्ध

देश में अगर कहीं भी बम धमाके हो रहे हैं तो षड़यंत्र करने वालों से लेकर बम प्लांट करने वालों तक सब के सब मुस्लमान ही होंगे और अगर पुलिस या ऐ टी एस कहीं संदिग्ध आतंकवादियों को गिरफ्तार कर रही है या चुपके से उठा कर ले जा रही है तो उन का सम्बन्ध भी किसी न किसी इस्लामी नाम वाले आतंकवादी संघटन से होगा और अगर कुछ आतंकवादी पुलिस के साथ एनकाउंटर में हलाक हो रहे हैं तब वो भी मुस्लमान ही होंगे। हाँ, हालत में थोड़ा सा बदलाव आप अवश्य अनुभव कर सकते हैं के अब वो मुस्लमान हिन्दुस्तानी मुस्लमान न हों, बलके पाकिस्तानी मुस्लमान हों और पाकिस्तान के बारे में तो कुछ कहने का प्रशन ही नहीं उठता। खैर अगर वो आतंकवादी है तो मुस्लमान ही होंगे। भूल जाइए के शहीद हेमंत करकरे आतंकवाद का कौन सा चेहरा दिखा रहे थे, भूल जाइए के उस आतंकवाद के तार कहाँ तक पहुँच रहे थे, संघ परिवार और भारतीय जनता पार्टी के कौन कौन से लोग शक के दायरे में थे और गिरफ्त में आसकते थे, इस लिए के ऐ टी एस के स्थानापन्न मुख्य अब रघुवंशी हैं और यह रघुवंशी मुंबई ऐ टी एस के पहले भी मुख्य रह चुके हैं। नांदेड जहाँ बम बनाने की कोशिश में बजरंग दल और शिव सेना के दो कार्यकर्ता मारे गए थे, वो आतंकवाद के एक बड़े नेटवर्क का हिस्सा थे, परन्तु बुद्धि का प्रयोग करते हुए मिस्टर रघुवंशी ने उस मामले को रफा दफा कर देने में धरती आकाश एक कर दिया था, आज भी उन के सवभाव में कोई बदलाव नज़र नहीं आता।



वैसे इस समय बात मालेगाँव बम धमाकों की निरंतरता में की जाने वाली छानबीन की नहीं है और न ही २६ नवम्बर को मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले के सम्बन्ध में कुछ लिखना है, हाँ नॉएडा में मारे गए आतंकवादी और मुंबई पर हुए आतंकवादी हमलों में कोई समानता है तो केवल इतनी के दोनों स्थानों पर आतंकवादी पाकिस्तानी थे, जैसा के मुंबई पुलिस और यु पी ऐ टी एस के द्वारा बताया गया है।



जहाँ तक "रोजनामा राष्ट्रीय सहारा" के द्वारा इन मामलात के उठाये जाने का या अपनी पत्रकारी छानबीन के द्वारा सच्चाई के सामने लाने की कोशिश का प्रशन है तो बात बहुत पूरानी नहीं है, उत्तर परदेश के एक ऐसे ही कारनामे को हम पिछले दिनों सामने लाये थे, यह बात १६ अक्टूबर २००८ की है, जब रात लगभग ८ बजे हमें यह ख़बर मिली के शाहीन बाग़ पुलिस स्टेशन के पास उत्तर परदेश पुलिस के जवानों को जनता के द्वारा पाकर शाहीन बाग़ पुलिस स्टेशन के हवाले कर दिया गया है क्यूँ के वो किसी नोर्दोश को आतंकवादी बता कर उस का एनकाउंटर करने वाले थे। यह "रोजनामा राष्ट्रीय सहारा" की कोशिशों का असर था के जनता ने एक सम्भव एनकाउंटर को रोक लिया, इतना ही नहीं, बलके "रोजनामा राष्ट्रीय सहारा" ने इस निरंतरता में अधिक रूचि लेते हुए उत्तर परदेश की राज्य मंत्री से सही कदम उठाने का निवेदन किया। परिणाम स्वरुप राज्य अल्पसंख्यक आयोग के सचिव मोहम्मद अकरम ने तत्काल कार्यवाही करते हुए उत्तर परदेश पुलिस के जिम्मेदारान से उत्तर माँगा और उस मुस्लिम नौजवान को उठाने वाले सभी पुलिस वालों के विरुद्ध कार्यवाही की गई। हम यहाँ इस घटना पर इस लिए बात कर रहे हैं के उत्तर परदेश ऐ टी एस ने नॉएडा सेक्टर ९७ में २६ जनवरी की सुबह जिन २ संदिग्ध आतंकवादियों को मार गिराया, वो कहानी भी हलक से नहीं उतर रही है और पहली नज़र में तो लगता है के यह एनकाउंटर भी फर्जी हो सकता है। इस सम्बन्ध में रोजनामा राष्ट्रीय सहारा आन्दोलन की एक सफलता भी करार दी जा सकती है के अब ऐसे प्रशन केवल हमारी और से ही नहीं उठाये जा रहे हैं, बलके अन्य राष्ट्रीय मीडिया भी इस मामले में भरपूर रूचि ले रहा है और वो पुलिस के ज़रिये बताई जाने वाली कहानी पर पूरी तरह से भरोसा न कर के सच्चाई को सामने रख रहा है। "टाईम्स ऑफ़ इंडिया" ने ललित कुमार और परवेज़ इकबाल सिद्दीकी की जो रिपोर्ट प्रकाशित की है, वो पुलिस की उस कार्यवाही पर प्रशन्चिंंह लगाती है।


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शनिवार की शाम से ही नॉएडा एनकाउंटर की सच्चाई पर प्रशन उठने शुरू हो गए थे।



सब से पहले स्वयं आतंकवादियों के बारे में प्राप्त होने वाली जानकारी पर ही प्रश्नाचिंंह लग रहे हैं। लखनऊ के डीप्टी इंसपेक्टर जनरल (ऐ टी एस) राजीव कृष्ण से जब यह पूछा गया के पुलिस के मुखबिर को कैसे शक हुआ तो उन का उत्तर था के उस ने उन लोगों के पास ऐ के ४७ राइफल देखी थी। उन्होंने विस्तारित बताते हुए कहा के मुखबिर ने देखा था के उन (आतंकवादियों) के बैग से राइफल की नली बहार निकली हुई है। राजीव कृष्ण ने यह भी बताया के मुखबिर असल में एक पुलिस कांस्टेबल का रिश्तेदार है। कृष्ण के अनुसार "ऐ के ४७ के बैरल पर एक विशेष प्रकार का "A" जैसा टारगेट गाइड होता है। मुखबिर ने बैग (थैला) देखा था और यह अनुभव किया था के "A" बाहर की और निकला हुआ है।"



इस से यह पता चलता है के आतंकवादी अपने मिशन के लिए जाते समय अपने हत्यारों को लेकर पूरी तरह से लापरवाह थे।



ऐ टी एस के अनुसार मुखबिर ने उन से बात कर के अपने शक को जताया था के यह संदिग्ध लोग स्थानीय नहीं लग रहे हैं, बलके उन की ज़बान "मुसलमानों से मिलती जुलती" है।



कृष्ण ने बताया के "असल में दोनों संदिग्ध व्यक्ति कुँवें के पास एक चाय की दुकान पर रुके और यह एक संयोग ही है के उन्होंने हमारे मुखबिर से दिल्ली का रास्ता और दूरी के बारे में पूछा।"



गणतंत्र दिवस के अवसर पर आतंकवादियों के द्वारा जिन की राइफल उन के थैले से बाहर को निकल रही थी, एक मुखबिर से दिल्ली के रास्ते के बारे में पूछना! क्या यह केवल एक संयोग है या फिर मनघडत कहानी? अगर आप इस दावे में यह भी जोड़ लें के आतंकवादी गणतंत्र दीवस के अवसर पर भोर के समय राजधानी में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे थे। जबके उस दिन उस समय सुरक्षा का कड़ा प्रबंध होता है, तो यह कहानी अविश्वसनीय लगती है।



लेकिन ऐ टी एस बंदूक वाली बात पर अधिक ज़ोर दे रही है। कानून और व्यवस्था के अतिरिक्त महानिदेशक अपराध और आतंकवाद विरोधी दस्ते, ब्रिज लाल ने बताया के "गाड़ी पर गोली का निशान था, जिस के कारण हम उस गाड़ी का पीछा कर रहे थे। यहाँ तक के हमारे एक जवान की टांग पर गोली भी लगी थी, वो अब भी अस्पताल में भरती है।"



ब्रिज लाल ने आगे बताया के "जहाँ तक संदिग्ध व्यक्तियों की कार का सम्बन्ध है (जिस पर गोलियों के निशान नहीं हैं) जिस का पुलिस वाले पीछा कर रहे थे, तो उस बारे में पुलिस का कहना है के उन्होंने कार के निचले भाग को निशाना बनाया था, जिस के कारण कार का पिछला टायर पंक्चर हो गया था, यह इस लिए किया गया ताके वो कार को छोड़ कर बाहर निकल आयें और छिपने के लिए भागें।"



संयोग पर संयोग यह भी है के यह एनकाउंटर नॉएडा के सेक्टर ९७ में उसी स्थान पर पेश आया है जहाँ पर १८ दिसम्बर २००८ को नरेंद्र उर्फ़ कालू नाम के एक अपराधी को मार गिराया गया था, जिस पर कुछ सप्ताह पहले बागपत के तीन व्यापारियों की हत्या का आरोप था। यही नहीं, बलके तीन अन्य अपराधियों को भी इसी स्थान पर पिछले वर्ष १७ अप्रैल को गोली मार दी गई थी, जिन में से एक डाकू बिरजू पहाडी भी था।



नॉएडा के एक पुलिस अधिकारी का कहना है के "यह एक खाली जगह है जहाँ पर अपराधी छुप सकते हैं और उन्हें कोई परेशान भी नहीं कर सकता। इस के अलावा यह एक संयोग भी हो सकता है।"



(शायद अब एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस अफसरों की तरह एनकाउंटर लोकेशन पर भी बात हुआ करेगी)



एक और विशेष बात जिस पर बात की जा सकती है वो यह के रविवार को होने वाले नॉएडा एनकाउंटर के दौरान मारे गए संदिग्ध आतंकवादियों के पास से पुलिस को एक भी मोबाइल फ़ोन नहीं मिला है, समीक्षकों को आशचर्य हो रहा है साथ ही इस एनकाउंटर की सच्चाई पर शक और भी गहरा होता चला जा रहा है।



जहाँ तक ओपरेशन का सम्बन्ध है तो इस प्रकार के आतंकवाद मॉड्यूल के लिए सेल फ़ोन एक अवश्य आले के तौर पर कार्य करता है। उन आतंकवादियों को प्रयोग करने वाले मोबाइल फ़ोन के द्वारा ही उन्हें पल पल की जानकारी उपलब्ध कराते रहते हैं और बाद में छानबीन करने वालों को भी वर्त्तमान में होने वाले इस प्रकार के आतंकवादी हमलों के दौरान इन मोबाइल फ़ोन से ही बहुत सहायता मिलती है। लगभग सभी घटनाओं में आतंकवादियों के पास से प्राप्त होने वाले मोबाइल फ़ोन से उन के बेक ग्राउंड का पता लगाने में भी काफ़ी सहायता मिली है, ऐसा छानबीन करने वालों का मानना है।



परन्तु यु पी ऐ टी एस के पास इस भी उत्तर मौजूद है, इस प्रशन पर उन का कहना है के ऐसा अनुभव होता है के आतंकवादियों ने भूत काल में की जाने वाली गलतियों से पाठ प्राप्त किया है। वो उदहारण पेश करते हुए कहते हैं के आतंकवादियों ने मुंबई हमलों के दौरान एक भी सेल फ़ोन का प्रयोग नहीं किया था, बलके इस के उलट सॅटॅलाइट फ़ोन पर ही निर्भर रहे, जिस को पकड़ पाना, विशेष कर हिन्दुस्तानी खुफिया एजेंसियों के लिए सरल नहीं है, इसलिए कुछ आतंकवादियों ने जो सेल फ़ोन प्रयोग किए, वो भी उन्होंने बंधक बनाये गए लोगों से लिए थे, जो के प्रयोग करने के बाद उन लोगों को वापस भी कर दिए गए। नॉएडा एनकाउंटर की छानबीन करने वाले कुछ अफसरों का कहना है के "क्यूंकि मोबाइल फ़ोन से काल की डिटेल प्राप्त की जासकती हैं, इस लिए इस ओपरेशन में आतंकवादियों ने किसी भी प्रकार के आले का प्रयोग न करने का निर्णय लिया था। वो शायद पी सी ओ बूथ का प्रयोग कर रहे थे या फिर प्रयोग करने के बाद फ़ेंक दिए जाने वाले हैण्ड सेट का।"



येही कारण है के पुलिस के अनुसार, आतंकवादियों के स्थानीय साथियों का पता लगाने में कठिनाई हो रही है। इस लिए छानबीन करने वालों का कहना है के वो इस मामले में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए उस मारुती कार के असली मालिक का पता लगाने की कोशिश में लगे हुए हैं, जिसे आतंकवादी प्रयोग कर रहे थे। "एक बार जब पुलिस को उस स्थान का पता लग जायेगा, जहाँ से उस कार को उठाया गया तो वो उस गैंग का पता लगाने में सफल हो सकेंगे, जिन्होंने आतंकवादियों को गाड़ी उपलब्ध कराइ थी और फिर उन जगहों का भी पता लगा पायेंगे जहाँ जहाँ यह आतंकवादी गए थे। "छानबीन करने वालों को भरोसा है के यह दोनों संदिग्ध आतंकवादी अपने "मिशन" के आखरी पडाव में नेपाल में ठहरे होंगे और फिर अपने मिशन को पूरा करने के लिए हिंदुस्तान में प्रवेश किया होगा। उन में से एक के पास से प्राप्त होने वाला पासपोर्ट यह जताता है के उस पर काठ्मांडू का एग्जिट स्टांप नहीं लगा हुआ है जब के उस पर मई २००८ का कराची से आने का एंट्री स्टांप लगा हुआ है।



पुलिस २५ किलोमीटर वाले प्रशन से भयभीत क्यूँ है?



यु पी ऐ टी एस इस बात से इनकार कर रही है को उन्होंने दोनों आतंकवादियों का पीछा २५ किलोमीटर तक किया, परन्तु स्थानीय पुलिस का यही कहना है के २५ किलोमीटर तक पीछा करने वाली बात पुलिस को परेशानी में डाल सकती है क्यूँ को ऐसा करते समय एनकाउंटर की जगह तक पहुँचने से पहले वो गाज़िआबद और नॉएडा के पाँच पुलिस पोस्ट से हो कर गुज़रे होंगे।



इस का अर्थ यह हुआ के उन पोस्ट पर तैनात पुलिस वालों ने या तो आतंकवादियों की तेज़ दौड़ रही मारुती कार को रोका ही नहीं या फिर उन्होंने उस पर ध्यान देने या उन्हें रोकने की कोई परवाह ही नहीं की, जबके उन सभी पुलिस पोस्ट पर कार की गति को कम करने और उस पर कंट्रोल प्राप्त करने के आलात लगे हुए हैं।



शनिवार की शाम को होने वाली घटना में अगर उस कार का पीछा किया गया था तो उस के रास्ते में गाज़िआबद का विजय नगर पुलिस पोस्ट और नॉएडा का मॉडल टाऊन, सेक्टर ६०, सेक्टर ३७ और अमेटी पुलिस पोस्ट पड़ते हैं। इस का अर्थ यह हुआ के किसी ने भी उस गाड़ी को रोकने की कोशिश नहीं की।



जाली स्कूल आई कार्ड के बारे में प्रिंटर्स से पूछ ताछ



नॉएडा में होने वाले शूट आउट की जांच शुरू हो गई है। इस जांच में भाग लेने के लिए यु पी ऐ टी एस के सेनिअर पुलिस अफसर भी लखनऊ से नॉएडा पहुँच चुके हैं। छानबीन करने वाले इस नकली आई कार्ड की असलियत का पता लगाने में व्यस्त हैं जो शुभम माडर्न पब्लिक सेकेंडरी स्कूल से जारी हुआ है और जो मारे गए आतंकवादियों के पास से बरामद हुआ है। एक कार्ड जो समीर चौधरी के नाम पर जारी हुआ है, वो अबू इस्माइल के पास से बरामद हुआ है, अबू इस्माइल को उस के साथी फारूक उर्फ़ अली अहमद के साथ नॉएडा में रविवार को भोर के समय होने वाले एनकाउंटर में मार दिया गया था।



नॉएडा पुलिस के एक सीनियर अफसर के अनुसार उन्हें इस बात की दिल्ली पुलिस के उत्तर पूर्वी जिले से जानकारी प्राप्त हुई है। उन्होंने बताया के "हम लोग रिपोर्ट का अध्यन करने में लगे हुए हैं। मिलने वाली जानकारियों के आधार पर हम बहुत ही जल्दी अपनी जांच टीम को उस्मान पूर की विजय कालोनी में स्थित उस स्कूल में भेजेंगे।"



पुलिस के अनुसार जांच का फोकस वो प्रिंटिंग प्रेस होंगे, जहाँ से यह आई कार्ड प्रिंट किया गया है। पुलिस अधिकारी का कहना था के "हम ऐसे कुछ प्रिंटर्स से पूछ ताछ कर रहे हैं जो सामान्य तौर पर स्कूल के आई कार्ड छापते हैं। इस सम्बन्ध में हम दिल्ली पुलिस की भी सहायता लेंगे। जांच के लिए स्कूल की मुहर भी फोरेंसिक एक्सपर्ट के पास भेजी जायेगी। हम स्कूल प्रशासन से यह भी पूछेंगे के क्या वो अपने आई कार्ड पर किसी होलोग्राम का भी प्रयोग करते हैं, जिस से के उस की असलियत बनी रहे।"



इसी दौरान दिल्ली पुलिस ने कहा है के जांच के सम्बन्ध में यु पी पुलिस ने अब तक उन से कोई संपर्क नहीं किया है। दिल्ली पुलिस के पी आर ओ राजन भगत ने यह कहा है के उस्मान पूर पुलिस ने नॉएडा पुलिस को आई कार्ड के सम्बन्ध में एक रिपोर्ट भेजी है। नई दिल्ली पुलिस के जोइंट पुलिस कमिशनर धर्मेन्द्र कुमार ने आई कार्ड को नकली बताया है। उन का कहना है के "स्कूल ने पिछले दो वर्षों के दौरान ऐसा कोई भी आई कार्ड जारी नहीं किया है। इस के अलावा इस में उपलब्ध कराइ गई सभी जानकारियां भी जाली हैं। "पुलिस को परन्तु इस विशेष स्कूल के नाम पर तशवीश है। विशेष सेल के एक सीनियर अधिकारी के अनुसार "यह स्कूल उत्तर पूर्वी दिल्ली के काफ़ी अन्दर स्थित है। पाकिस्तना के किसी व्यक्ति के लिए इस स्कूल तक पहुंचना सरल नहीं है। ठीक इसी प्रकार उन के लिए यह भी सरल नहीं था के वो चोरी हो चुकी मारुती ८००, जिस पर गाज़िआबद के शाहपूर में रहने वाले एक व्यक्ति के स्कूटर का नंबर लिखा हुआ था, तक पहुँच जाएँ। इस लिए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता के एन सी आर में आतंकवादियों के स्लीपर सेल में यहाँ का कोई स्थानीय व्यक्ति भी शामिल हो।"



हम ने १६ अक्टूबर २००८ को शाहीन बाग़ की घटना पर बात, उस मुस्लिम नौजवान मोहम्मद आमिर की फोटो, जिस कार में उसे उठा कर लेजाना था, की फोटो, वो कार और कार से प्राप्त होने वाले क्रेडिट कार्ड्स, इस लिए नॉएडा में हुए संदिग्ध एनकाउंटर की ख़बर के साथ प्रकाशित किए हैं ताके पाठक और सरकार अच्छी तरह समझ सकें के पुलिस के लिए इस तरह के सबूत जुटाना कुछ भी कठिन नहीं होता। मारुती -८०० जो ताज़ा घटना में प्रयोग हुई, उस के नीचे हम ने जिस कार की फोटो दी है, वो पुलिस के द्वारा प्रयोग की गई, उस पर कोई नंबर प्लेट नहीं लगी थी, बलके यह नंबर प्लेट उसी कार की डिगी से प्राप्त की गई थी। अब अगर मारुती ८०० पर किसी स्कूटर की नंबर प्लेट लगी है तो आशचर्य की बात क्या है? प्रशन यह उठता है के आख़िर इस प्रकार के एनकाउंटर कब तक किए जाते रहेंगे? सरकार कब तक चुप रहेगी? जनता की और से कब तक प्रदर्शन नहीं होगा? अब हर घटना में तो डॉक्टर हरिकृष्ण जैसा चश्मदीद गवाह मिल नहीं सकता, जो अंसल प्लाजा एनकाउंटर की तरह सत्य को सामने लाने का इरादा कर ले। यह चिंता जनक क्षण है सभी के लिए, जहाँ यह महत्त्वपूर्ण है के एनकाउंटर अगर फर्जी हो तो उस में निर्दोष मारे जाते हैं, वहीँ शान्ति प्रेमी जनता के दिलों में भय और आतंक भी जनम लेता है।

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