Tuesday, January 13, 2009

जो दिल पर लिखा है, मैंने
२६ नवम्बर २००८ को मुंबई पर हुआ आतंकवादी हमला वास्तव में भारत की अखंडता पर हमला था, भारत की शान्ति और एकता पर हमला था, यदि यह हमला पाकिस्तान की शरारत से हुआ तो पाकिस्तान को ऐसा उचित जवाब दिया जाना चाहिए की उसकी आने वाली पीढियां भी याद रखें और भारत में आतंकवादी गतिविधियों के संरक्षण से तौबा कर लें।
और यदि यह हमला भारत की असामाजिक तथा सांप्रदायिक शक्तियों ने इस्राइल, मोसाद की सहायता से और अमेरिका के संरक्षण में किया तो उन सभी शक्तियों को एक आवाज़ में यह समझाना होगा की अब वह दौर नहीं की कुछ फिरंगी लौंग इलाइची का कारोबार करने के बहाने आयें और हिंदुस्तान को अपना गुलाम बना लें। हम जानते हैं, आतंकवाद आज तुम्हारा कारोबार है और उस के लिए तुम्हें भारत, पाकिस्तान उर्वरक भूमि की तरह नज़र आता है ताकि तुम्हारा यह कारोबार भी चलता रहे और तुम अरब देशों को भयभीत करके उनके तेल की संपत्ति पर कब्जा किए बैठे रहो। अपनी इन्हीं अपवित्र महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए तुम ने इस क्षेत्र में इस्राइल के रूप में अपना तोपखाना स्थापित किया है ताकि जब चाहो अपने खरीदे हुए गुलामों के द्वारा भारत में आतंक बरपा कर दो, जब चाहो पाकिस्तान की धरती को खून से रंग दो, तुम्हारी इस रणनीति ने तुम्हें परदे के आड़ में अफगानिस्तान और इराक पर शासन करने का अवसर प्रदान किया, लेकिन बदले में क्या मिला, दुन्या के सब से शक्तिशाली देश के सब से शक्तिशाली व्यक्ति के मुहँ पर एक इराकी पत्रकार मुन्तज़िर अलज़ैदी का जूता।
मुन्तज़िर अलज़ैदी का यह जूता जहाँ इस बात का प्रतिक है की मानवतावादी और देशप्रेमी मानवता के शत्रुओं का किस प्रकार स्वागत करते हैं, वहीँ इस बात का भी प्रतिक है की इराक को शिया और सुन्नी के बीच फूट की साज़िश का तुम्हें उस देश के नागरिक तुम्हें क्या जवाब देते हैं। विदाई द्वार पर खड़े निराश अमेरिकी राष्ट्रपति के मुख पर पड़ने वाले जूते को उनके द्वारा खरीदे हुए दास तथा इराक के तथाकथित शासक ने अपना हाथ आगे कर के बचा तो लिया परन्तु इस के पशचात संसार भर में पड़ने वाले जूतों से कौन बचा सका।
हम जानते हैं की नूरी अल्माल्की की मानसिकता के कुछ लोग भारत में भी हो सकते हैं, जो इसी प्रकार की सरकार के इच्छुक हैं। जो आज मुंबई पर हुए आतंकवादी हमलों के वास्तविक षड़यंत्र को बेनकाब होने से रोक देना चाहते हैं, इस लिए की उन के दागी चेहरे सामने न आपायें और इस लिए भी की उनके स्वामी बेनकाब न हों, ताकि उन का संरक्षण उन के दीर्घकालीन स्वप्न को ठोस रूप में लाने तक बना रहे।
परन्तु क्या भारत की १०० करोड़ जनता अपने प्यारे देश के विनाश और दासता के मूल्य पर इस षड़यंत्र को सफल हो जाने देगी....? क्या इस देश के बहुसंख्यक यह नहीं जानते की राम के नाम पर एक मन्दिर बनाने के बहाने अयोध्या के कई मन्दिर जिन्होंने तोड़ डाले, वो हिंदू राष्ट्र बनाने के नाम पर भारत की कितनी बार और कितने टुकड़े करेंगे...?
मेरा यह लेख व्यक्तिगत रूप में है जो आज आपके हाथों की शोभा बना। यह मेरे लगातार लेख "मुसलमानाने हिंद, माज़ी (अतीत), हाल (वर्तमान) और मुस्तकबिल (भविष्य)???" की १०० वीं किस्त है। मैं इस समय केवल उर्दू सहारा के समूह संपादक के रूप में नहीं बल्कि एक शांतिप्रिय, राष्ट्रभक्त भारतीय के रूप में आप से संभोदित हूँ। कदाचित मैं इस देश का एक मात्र वह नागरिक हूँ (जैसा की स्वर्गीय निर्मला देशपांडे ने कहा था) जो अपनी बेटी के विवाह के अवसर पर निकाह से पहले दूल्हा दुल्हन (सबा अज़ीज़ व शकील अहमद) को दिल्ली की जामा मस्जिद में नमाज़े शुक्र अदा करने केलिए ले जाने के बाद स्वतंत्रता के दूत राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की समाधी पर फूल चढ़ाने के लिए लेकर गया। इसके बाद मन्दिर, गुरुद्वारा और चर्च पर सम्मानस्वरूप इन तमाम धर्मों के प्रतिनिधियों से दुआओं के लिए हाज़री दी। तत्पश्चात अपने संरक्षक परम आदरणीय सहारा श्री की सेवा में हाज़िर हो कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। इस के पशचात निकाह का फरीजा अदा किया गया।
मैं वह भारतीय हूँ की जब ईद और दीपावली से पहले २९ अक्टूबर २००५ के दिन दिल्ली में आतंकवादियों के द्वारा बम धमाकों में ६१ निर्दोष लोगों की जान गई तो ईद न मानाने का निर्णय करते हुए सारा दिन शान्ति के दूत महात्मा गाँधी की समाधी पर अपने परिवार के साथ कुरान पढने और नमाज़ की अदायगी में गुज़ारा।
इस लिए आज मैं यह कहने का अधिकार रखता हूँ कि इस देश कि गंगा जमनी सभ्यता का झंडाबरदार हूँ, मैं जितना सच्चा पक्का मुस्लमान हूँ उतना ही सच्चा पक्का भारतीय और मानवता का मित्र भी।
मैं संघी, फिरंगी और जंगी तीनों कि मानसिकता से भलीभांति परिचित हूँ, संघी वे जो इस देश को हिंदू राष्ट्र के बहाने अपनी अपवित्र मानसिकता का दास बनाना चाहते हैं और जिन्हें शहीद हेमंत करकरे बेनकाब कर रहे थे, फिरंगी वह मानसिकता है जो केवल ब्रितिशियों तक सीमित नहीं, आज अमेरिकी मानसिकता इस से कहीं अधिक खतरनाक रूप में हमारे सामने है और जो सारे विश्व पर अपना वर्चस्व चाहती है। अब रहा सवाल जंगी का तो यह जंगी तथाकथित मुजाहिदीन लश्करे तैय्यबा, आई एस आई, अल क़ायदा , इंडियन मुजाहिदीन यह सब उन संघियों और फिरंगियों के हथ्यार हैं, इन में शामिल आतंकवादी मुस्लमान हो सकते हैं, परन्तु यह मुसलमानों के जिहादी ग्रुप नहीं हो सकते, इस्लाम के अनुयायी नहीं हो सकते, बल्कि यह उन उपरोक्त शक्तियों के खिलोने हैं, जब सोवियत संघ को टुकड़े टुकड़े करना था तो येही बिन लादेन और अल क़ायदा बुश परिवार के सर्वोत्तम मित्र थे, जब ईरान का विनाश करना था तो सद्दाम हुसैन उन कि पहली पसंद थे और जब इराक का विनाश करना था तो पाकिस्तान उन का दोस्त था, जब भारत को आतंकवाद कि आग में झोंकना था तो कश्मीर के रास्ते येही लश्करे तैय्यबा उनका हथ्यार था, उन ही कि सहायता से यह पला बढ़ा और पाकिस्तान कि गुप्तचर संस्था आई एस आई से इन्द्रेश के कितने निकट सम्बन्ध थे , यह रहस्योद्घाटन भी किया था शहीद हेमंत करकरे ने अपनी जांच में कि आई एस आई से ३ करोड़ रूपये प्राप्त किए थे इन्द्रेश ने। आज येही संघी, फिरंगी और जंगी के त्रिकोण में चौथा कोण शामिल हुआ इस्राइल और मोसाद का जो शायद २६ नवम्बर २००८ को मुंबई के रास्ते भारत पर आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार हैं।
ज़रा सोचिये..........! क्या केवल १० आतंकवादी पाकिस्तान से आकर भारत पर इतना बड़ा हमला कर सकते हैं, बिना किसी कि सहायता के? और हाँ! यह सामान्य लोगों कि सहायता से भी नहीं हो सकता, यह तभी सम्भव है जब देश के बहुत बड़े प्रभावशाली और कदावर व्यक्तियों की छत्रछाया उन को प्राप्त हो।
संभवत: अपने घिनौने उद्देश्य को पूरा करने के लिए संघी, जंगी और फिरंगी सबके उस गठजोड़ ने १० भाड़े के टट्टुओं का सहारा लेकर और उन्हें सभी प्रकार कि सुविधाएं उपलब्ध कराकर भारत पर यह शर्मनाक हमला किया, परन्तु ऐसा होगा नहीं, यह आरुशी मर्डर केस का मामला नहीं है जो एक घर परिवार कि चारदीवारी तक सीमित था, यह हमारे प्यारे देश भारत के मान सम्मान का मामला है, १०० करोड़ भारतियों के स्वाभिमान का मामला है, इसे कब तक दबाया जा सकेगा। देश की मर्यादा पर मर मिटने वाले शहीदों कि अंतरात्मा कि आवाज़ को, सीमा पर खड़े हो कर देश पर बलिदान हो जाने वाले सैनिकों कि आवाज़ को, ताज ओबेरॉय और नरीमन हाउस को आजाद कराने वाले जांबाज़ सिपाहियों के ज़मीर की आवाज़ को हमेशा हमेशा के लिए दबाया नहीं जा सकता। क्या यह सब नहीं जानते कि वास्तविकता क्या है? क्या यह नहीं जानते कि उनके साथियों की मूल्यवान जानें किस उद्देश्य के लिए कुर्बान हुई हैं? हाँ हो सकते हैं हमारी पुलिस और सेना में दो चार गुमराह जो धोके में आजायें और कोई गलती कर बैठें परन्तु हमारी पुलिस और सेना के भरोसे पर पूरा देश और समाज टिका है, कब तक उनको बहकाया जा सकेगा, कब तक उन की आवाज़ को दबाया जा सकेगा!
यही बताएँगे सच, इस आतंकवादी हमले का! यही बचायेंगे अपने देश को असली और नकली आतंकवादियों से, इसी मिटटी में जन्मे हैं ये! यह धरती इन की माँ है और माँ के मान की ओर कोई आँख उठा कर देखे, उसे इस धरती के सपूत कभी सहन नहीं कर सकते! मजबूरी, विपरीत परिस्थिति, डर और भय कुछ देर तो चुप रख सकता है, सदैव के लिए नहीं। आख़िर मरता कौन है, रन भूमि में जा कर सीने पर गोली कौन खता है, किस के बच्चे अनाथ होते हैं, किस का परिवार बे सहारा होता है, क्या भीख में मिले चांदी के यह कुछ सिक्के उस परिवार को उसके घर का चिराग लौटा सकते हैं।
नहीं! अब और घरों में अँधेरा नहीं होने देंगे। कुर्सी के भूके और देशद्रोहियों के लिए अपने प्राणों का बलिदान नहीं होने देंगे, जो दृश्य देखा गेट वे ऑफ़ इंडिया और पूरे भारत में २९ नवम्बर २००८ को वही शान्ति और एकता का दृश्य साड़ी दुन्या देखेगी।
मैं इस समय कोई लेख नहीं लिख रहा हूँ, यह मात्र शब्द नहीं हैं मेरे हृदय की एक आवाज़ है जिसे मैं आपके दिलों तक पहुँचाना चाहता हूँ, यह एक छोटा सा नमूना है, मेरे उस प्रयास का जिस पुस्तक को मैंने नाम दिया है "जो दिल पर लिखा है मैंने" एक ऐसे भारतीय पत्रकार की आंखों देखी दास्तान जो अपने देश से अत्याधिक प्रेम करता है और उसे अपनी आंखों के सामने पुन: गुलाम होते नहीं देख सकता।
मैं लिख रहा हूँ इस पुस्तक को उर्दू, हिन्दी और अंग्रेज़ी में और चाहता हूँ की अन्य भारतीय भाषाओं में इसका अनुवाद किया जाए ताकि यह आवाज़ हर भारतीय के दिल तक पहुंचे और उसके दिल की धड़कन बन जाए।
इसीलिए प्रस्तुत कर रहा हूँ अपनी विशेष प्रस्तुति, अपने लगातार लेख की १०० वीं किस्त उर्दू, हिन्दी और अंग्रेज़ी भाषाओं में, इस आशा के साथ की यह प्रत्येक भारतीय तक पहुंचे, इसी सोच के अनुरूप मैंने शामिल किए हैं इस में उन लेखकों के लेख भी जो आज सत्य की आवाज़ बुलंद कर रहे हैं ताकि इसे केवल मेरी आवाज़ नहीं बल्कि भारत के सभी न्याय प्रियों की आवाज़ समझा जाए।
मेरी सम्मानपूर्वक प्रार्थना है, नम्र निवेदन है हर देश भक्त से की वह इस अंक की एक एक कॉपी पुलिस और सेना के एक एक सदस्य तक अवश्य पहुंचाएं, इसलिए की येही तो हमारे देश या समाज के रखवाले हैं, येही सच सामने लायेंगे और अपने प्यारे देश को आतंकवाद और आतंकवादियों से बचायेंगे। और प्रस्तुत करें इस की एक कॉपी अपने हस्ताक्षरों और एक मेमोरेंडम के साथ अपने जिलाधिकारी या निर्वाचित प्रतिनिधि के द्वारा भारत सरकार की सेवा में ताकि वे जान सकें की आप सब सच्चाई को सामने लाना चाहते हैं, फिर भेज दीजिये अपनी वह तस्वीर और हस्ताक्षरों वाला मेमोरेंडम मुझे ताकि मैं अपने इसी सिलसिले की अगली कड़ियों में इन्हें शामिल कर सकूँ और फिर उसे लेकर अपने देश के राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की सेवा में प्रस्तुत हो कर आप सब की भावनाएं उन की सेवा में प्रस्तुत करूँ।
एक और अन्तिम बात सभी पाठकों, लेखकों तथा प्रकाशकों को यह अधिकार प्राप्त है की वे मेरे सभी लेखों को जो मेरे अख़बार की वेब साईट , मेरी पुस्तकों और मेरे ब्लॉग पर उपलब्ध हैं, प्रकाशित कर सकते हैं, हवाले के रूप में प्रयोग कर सकते हैं, अपने भाषणों तथा संबोधनों में उल्लेख कर सकते हैं, चाहे उन के सम्बन्ध किसी भी धर्म, भाषा और देश से क्यूँ न हो, उन्हें इस विषय में किसी भी आज्ञा की आव्यशकता नहीं है।
क्या यह सिर्फ़ एक इत्तेफाक है की इस घटना पशचात इस्राइल ने फिलस्तीन पर आक्रमण कर दिया या फिर यह अंतर्राष्ट्रीय षड़यंत्र का हिस्सा! इंशा अल्लाह अति शीघ्र १०१ वीं कड़ी का आरम्भ इस विषय के साथ किया जायेगा। अब इजाज़त !
धन्यवाद
अल्लाह हाफिज़, जय हिंद
आपका
अज़ीज़ बर्नी

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