नहीं इस ख़बर में ऐसा कुछ भी नहीं था की बोलती बंद हो जाए!!
२४ अक्टूबर शाम ८ बजे से ही इंतज़ार होने लगा था की बटला हाउस एनकाउंटर के ताल्लुक से आज कोई बड़ा धमाका होने वाला है! इस लिए की ख़बर से पहले ख़बर के प्रचार के लिए बार बार जो बात कही जा रही है वह ध्यान देने योग्य थी की गोली न आतिफ ने चलायी न मोहन चाँद शर्मा ने तो फिर गोली किस ने चलायी? सारा हिंदुस्तान देखेगा आज यह सच! देश के सब से बड़े एनकाउंटर का सच और यह सच बताएगा वह ख़ुद जो एनकाउंटर के समय वहां उपस्थित था! आज के बाद कोई नहीं कहेगा की यह एनकाउंटर फर्जी था! पहले एलान था की यह ख़बर ९ बजे देखने को मिलेगी, लेकिन ९ बजे स्क्रीन पर प्रज्ञा देवी प्रकट हो गई! वह साध्वी जो मालेगाँव बोम्ब धमाकों में सम्मिलित है! परन्तु बटला हाउस एनकाउंटर से जुड़ी ख़बर की प्रतीक्षा बनी रही और फिर रात १० बजे वह ख़बर सामने आ ही गई! यूँ तो आधे घंटे की ख़बर को यदि लिखने बैठें तो कई पृष्ठों की आव्यशकता होगी और कई घंटों का समय भी चाहिए! परन्तु इस आधे घंटे की ख़बर की तफसील बयान करने के लिए ५ मिनट और १० लाइन भी अधिक हैं! चलिए पहले ख़बर का ज़िक्र करते हैं! फिर ख़बर पर बात होगी!
पुलिस सब इंसपेक्टर धर्मेन्द्र सब से पहले ल-18 के उस फ्लैट में एक मोबाइल कंपनी का सेल्समन बन कर गया! आतिफ से उस ने पहचान पत्र की दरख्वास्त की! वोटर आई कार्ड की शक्ल में शानाख्ती कार्ड मिल जाने पर उस की फोटो कॉपी उपलब्ध करने की प्रार्थना की जिस पर आतिफ ने झिड़क दिया! फिर धर्मेन्द्र के निवेदन करने पर फ्लैट के दूसरे कमरे से फोटो कॉपी लेने चला गया! इस बीच धर्मेन्द्र ने अपने टीम लीडर मोहन चंद शर्मा को अपने मोबाइल फ़ोन से कोड वर्ड के द्वारा यह संदेश दे दिया की उन्हें जिस की तलाश थी वह सामने है! उस समय साजिद पलंग पर लेता हुआ टी वी देख रहा था! फ़ोन की घंटी बजने पर वह चोंका और कड़कदार आवाज़ में पता किया की किस का फ़ोन था! धर्मेन्द्र ने बताया की बॉस का फ़ोन था! वह उसे जामिया नगर से साउथ एक्स भी भेजना चाहते थे! लेकिन उस ने कह दिया की मैं जामिया नगर में हूँ! पहले यहीं का काम निपटाना चाहता हूँ! साजिद जवाब से संतुष्ट हो कर फिर टी वी देखने लगा! इस के बाद धर्मेन्द्र ने कुछ वक्त और गुजरने और मोहन चाँद शर्मा को ऊपर आने का इशारा देने की वजह से आतिफ से एक ग्लास पानी माँगा और जब वह पानी लेने अन्दर चला गया! तो उस ने मोहन चंद शर्मा को ऊपर आने का मेस्सेज देदिया! मोहन चंद शर्मा जैसे ही दरवाज़े पर पहुंचे साजिद ने गोलियाँ चलाना आरम्भ कर दीं! धर्मेन्द्र ने झुक कर अपने आप को बचा लिया! एक गोली मोहन चंद शर्मा के कंधे में, एक पेट में और एक गोली मोहन चाँद शर्मा के पीछे खड़े बलवंत राणा को लगी! आतिफ यह सब खड़ा देख रहा था और बेहद घबरा गया था! उसी बीच पुलिस कर्मी त्यागी ने जो गोलियाँ चलायी वह साजिद को लगीं! वह वहीँ ढेर हो गया और आतिफ भी उसी की गोलियों से मारा गया! गोली बारी के दौरान दो लड़के भागने में कामयाब हो गए और एक ने ख़ुद को बाथरूम में बंद कर लिया! जो बाद में पकड़ा गया
यह था हिंदुस्तान के सब से बड़े एनकाउंटर का सच! एक ऐसा सच जो पहली बार सामने आया और अब सब की बोलती बंद कर देगा और अब कोई सवाल नहीं करेगा!
लीजिये अब सवाल नोट करिए और भूल जाइये की अब कोई सवाल नहीं करेगा इस लिए की अब सवालों की संख्या और बढ़ जायेगी हाँ मगर हम आज भी बहुत सारे सवाल जान बुझ कर नहीं उठा रहे हैं! वह इस लिए की हमें प्रतीक्षा है अदालत में चलने वाली कार्यवाही की! इस लिए कुछ सवाल तो उसी समय सामने आयेंगे परन्तु इस कहानी से कुछ सवाल तो अभी इसी समय सामने रखे जा सकते हैं! अभी तक तो सवाल येही था की इंसपेक्टर मोहन चंद शर्मा ने बुल्लेट प्रूफ़ जैकेट क्यूँ नहीं पहनी? अब इस कहानी के बाद सवाल यह भी है की मोहन चंद शर्मा जो इस इरादे से वहाँ पहुंचे की उन का सामना एक ऐसे दहशत गर्द से होना है जो बहुत लोगों की जान ले चुका है और उसे उन की जान लेने में भी कोई झिझक नहीं होगी फिर भी उन्होंने ने अपना पिस्टल अपने हाथ में नहीं लिया, गोली नहीं चलायी, न गोली चलने के इरादे से फ्लैट में दाखिल हुए! ध्यान रहे की पूरी तरह पुष्टि और निशान्दाही उनका साथी धर्मेन्द्र पहले ही कर चुका था और अब उनके हिसाब से शक की कोई गुंजाईश नहीं थी! या तो आरोपियों को गिरफ्तार करना था! या उन के हमले करने की सूरत में उन पर गोली चलानी थी! दोनों ही सूरतों में सब से आगे चलने वाले इंसपेक्टर मोहन चंद शर्मा जो टीम लीडर थे उन के हाथ रिवोल्वर होना ही चाहिए था! भले ही वह डरा कर गिरफ्तार करने के लिए ही क्यूँ न हो! इस कहानी के अनुसार मोहन चंद शर्मा ने कोई गोली नहीं चलाई! यह अनुमान से दूर की बात है की मोहन चंद शर्मा के पास रिवोल्वर हो और उन के हाथ में न हो और रिवोल्वर उन के हाथ में हो तो उन्हें गोली चलने का अवसर न मिले! इस लिए की वह एक मशहूर एनकाउंटर स्पेसिअलिस्ट कहे जाते थे! यह तो शायद कुछ पल के लिए मान भी लिया जाता की उन्होंने जो गोलियां चलायी वह किसी को नहीं लगी पर इस ख़बर के अनुसार तो उन्होंने गोली चलायी ही नहीं आख़िर क्यों???उन के पीछे खड़े बलवंत राणा को भी गोली लगी पर उस की गोली से भी कोई ज़ख्मी नहीं हुआ! उस ने गोली चलायी या नहीं इस का भी कोई ज़िक्र नहीं!
पलंग पर लेते साजिद ने जो गोलियां चलायी उन से कमरे के अन्दर पहले से मौजूद और घटना क्रम के हिसाब से उन का सब से बड़ा दुश्मन (धर्मेन्द्र) जिस ने उन पर हमला करने के लिए रास्ता साफ़ किया, उस को कोई गोली नहीं लगती है! साजिद उस के निकट होने पर भी उस पर कोई गोली नहीं चलाता! उस के द्वारा चलायी गई दो गोलियाँ लगती हैं इंसपेक्टर मोहनद चाँद शर्मा को और एक कांस्टेबल बलवंत राणा को क्या यह काबिले यकीन नज़र आता है???पुलिस के अनुसार साजिद मास्टर माइंड, इंडियन मुजाहिदीन का सरगना, बेहद खतरनाक मुजरिम, दर्जनों लोगों की हत्या और बम धमाकों का जिम्मेदार! मगर वह गोली की आवाज़ से डर जाता है और अन्दर जा कर दूसरा कमरा बंद भी नहीं करता! बाथरूम में जा कर छुपता भी नहीं! फ्लैट में मौजूद ak-47 की तरफ़ आँख उठा कर भी नहीं देखता! एक पिस्टल तो साजिद के हाथ में था! पुलिस के मुताबिक दो पिस्टल और एक AK -47 में से बाकी बचा दूसरा पिस्टल भी उस के हाथ में नहीं होता! क्या यह काबिले यकीन नज़र आता है???
कहानी कार ने शायद घटना स्थल पर जा कर कहानी नहीं लिखी! लेखक घटना स्थल के दरवाज़े और छत तक गया है और उस ने अपनी आंखों से देखा है की फ्लैट के दरवाजों के बाहर सेफ्टी के लिए ग्रिल गेट भी लगे हैं! सभी फ्लाट्स के दरवाज़े अन्दर की तरफ़ खुलते हैं और मेंन गेट के बहार लगा ग्रिल गेट बाहर की तरफ़ खुलता है! अर्थार्त यदि बाहरी आदमी इस ग्रिल गेट को खोलेगा! तो उसे पीछे की और हटना होगा! अब यदि अन्दर का दरवाज़ा खुला है तो कमरे के अन्दर मौजूद व्यक्ति देख लेगा की बहार कौन है और उस के हाथ में क्या है! यदि बाहरी व्यक्ति पहले बाहर का और फिर अन्दर का दरवाजा खोलेगा तभी वह अन्दर जा सकता है! इस कहानी में ग्रिल गेट का कोई ज़िक्र नहीं है! L-१८ यानी इस इमारत की हर मंजिल पर दो फ्लैट हैं दोनों फ्लाट्स के दरवाज़े आमने सामने हैं और दोनों फ्लाट्स के सामने का एरिया ज़्यादा से ज़्यादा 5x5 फीट का है! अब इतनी तंग जगह में जहाँ पुलिस वाले मौजूद हों गोली बारी के बीच दो आरोपी कैसे निकल कर फरार हो सकते हैं? अगर सीढियों पर एक भी पुलिस वाला मौजूद है! तब किसी दूसरे व्यक्ति के उतर कर भागने की गुंजाईश सम्भव नहीं है! इस का गहराई से विश्लेषण हम ने सीढियों पर ख़ुद खड़े हो कर किया है और छत से कूद कर फरार भी नहीं हुआ जा सकता! यह हमने छत पर भी जा कर देखा है!
इस कहानी के अनुसार इंसपेक्टर मोहन चाँद शर्मा गोलियां लगने के बाद बैठ गए! मगर जो तस्वीर हम ने छापी थी अवश्य हमारे पाठकों के साथ साथ पुलिस वालों ने भी देखि होगी और शायद समाचारों की दुन्या में रहने वालों ने भी! इस चित्र में मोहन चाँद शर्मा चार मंजिला सीढियों से उतरने के बाद अपने दो साथियों की मदद से पैदल चलते दिखाए गए हैं और उन के पेट पर गोली का कोई ज़ख्म, कपडों पर पेट के ऊपर या पेट के नीचे टांगों की और खून बहता दिखाई नहीं दे रहा है और उनका या उन के साथियों में से किसी का हाथ भी उन के पेट पर नहीं है! जिस से की बहते हुए खून को रोका जा सके! हम ने इस तस्वीर को देश के प्रसिद्द सर्जन के पास भेज कर उन के द्वारा मिलने वाली रिपोर्ट भी छापी थी जिस से पता चलता है की जिस प्रकार मोहन चाँद शर्मा घायल अवस्था में चल कर जा रहे थे! उन की मौत नहीं होनी चाहिए थी!
इस कहानी के अनुसार पलंग पर लेते हुए साजिद ने जो गोलियाँ चलायी वो इंसपेक्टर मोहन चाँद शर्मा को लगी! अब इस ओर ध्यान दें, इंसपेक्टर मोहन चाँद शर्मा को लगी गोलियों की दिशा जो हम ने तय नहीं की! यह चित्र मशहूर अंग्रीजी समाचार पत्र हिंदुस्तान टाईम्स ने छापा और यकीनन उसे भी जो पोस्ट मोरटेम रिपोर्ट मिली होगी और वह भी पुलिस या मोहन चाँद शर्मा के घर वालों के द्वारा ही दी गई होगी! जिस की बुन्याद पर इस अखबार ने वह तस्वीर छापी थी हम ने इस तस्वीर पर भी इस देश के मशहूर सर्जन की रिपोर्ट छापी थी! आज फिर इस रिपोर्ट को छापने की आवयश्यकता नहीं है! हाँ मगर वह तस्वीर ज़रूर छाप रहे हैं जिस में गोलियां लगने और निकलने की दिशा दिखाई गई है! ताकि कहानी कार समझ सके की क्या अब सवाल नहीं उठने चाहिए??? क्या सचमुच इस कहानी के बाद बोलती बंद हो जानी चाहिए??? एक बार फिर ध्यान दें, गोलियों की दिशा वाली तस्वीर में कंधे पर जो गोली लगी उस में तीर का निशाँ दिखाई दे रहा है की गोली सर के ऊपर लगी और बाजू से बाहर निकली! दूसरी गोली जो कमर में लगी और जांघ से बाहर निकली! क्या कोई भी व्यक्ति जो लेता हुआ है वह यदि गोली चलाये तो उस की पिस्टल से निकली गोलियां क्या इस अंदाज़ से लग सकती हैं??? हमारे विचार में बिल्कुल नहीं!!
कहानी कार ने आतिफ और साजिद को गोलियां लगने के बाद की तसवीरें शायद नहीं देखि हैं! उन्हें जितनी और जिस दिशा से गोलियां लगी हैं वह मुतभेड के दौरान लगना मुश्किल है! हाँ! इरादा कर के मारा जाए तो बात अलग है! वह सभी तसवीरें ज़रूरत पड़ने पर एक बार फिर छापी जा सकती हैं और अगर अदालत को ज़रूरत पेश आए तो मुकदमा लड़ने वाले वकीलों को भी दी जा सकती हैं!
सवाल अनेक हैं और निरंतर किए जा सकते हैं! परन्तु हम आज के इस लेख को बस इन अन्तिम प्रश्नों पर समाप्त करना चाहते हैं की यदि वास्तव में ल-१८ में घटी घटना का सच सामने लाना है तो पुलिस के जिम्मेदार जो मौकाए वारदात पर मौजूद थे सामने आकर प्रेस से कुछ क्यूँ नहीं कहते? इंसपेक्टर मोहन चाँद शर्मा का होली फॅमिली हॉस्पिटल के बंद कमरे में सब की नज़रों से बचा कर ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर कौन थे? नर्स कौन थी? वार्ड बॉय कौन था? कमरे के अन्दर कोई दाखिल न हो इस के लिए दरवाज़े पर नियुक्त गार्ड कौन था? और किस के आदेश से और क्यूँ यह राजदारी बरती गई? पोस्ट मार्टम करने वाले आल इंडिया मेडिकल इंस्टिट्यूटडॉक्टर को देश के इस सब बड़े पोस्ट मोर्तेम का सच सामने रखने की दरखास्त क्यूँ नहीं की गई? आज के लिए इतने सवाल बहुत हैं! वैसे हमारे पास सवाल और भी हैं........
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