Thursday, February 10, 2011

आज की तहरीर-दस्तक इंसाफ पसंदो के दिल-व-दिमाग़ पर
अज़ीज़ बर्नी

आज के इस लेख से पूर्व मेरा जो अन्तिम लेख आपकी निगाहों की ज़ीनत बना, वह असीमानन्द की अपराध स्वीकारोक्ति के हवाले से था और आज फिर जब लम्बे समय के बाद एक बार फिर मैंने क़लम उठाया है तो संयोग यह है कि फिर असीमानन्द का इक़बालिया बयान मेरे हाथ में है और अब यह केवल मेरे हाथ में ही नहीं, बल्कि भारत की करोड़ों जनता के हाथों में है। परन्तु विडंबना यह है कि जिन हाथों में इस इक़बालिया बयान को सबसे पहले होना चाहिए था, अभी तक भी यह उन हाथों में नहीं है। बेशक मेरा इशारा मुम्बई की मकोका अदालत के जज वाई.डी.शिन्दे की ओर है, जिन्हें 8 फ़रवरी 2011 को सुनवाई के दौरान उन 9 अभियुक्तों (सलमान फ़ारसी, शब्बीर अहमद, नूर उल्लाह दोहा, रईस अहमद, मोहम्मद अली, आसिफ़ खां, जावेद शेख़, फ़ारूक़ अन्सारी और अबरार अहमद) की क़िस्मत का फ़ैसला करना था जो 2006 में हुए मालेगांव बम धमाकों में अभियुक्त के तौर पर गिरफ्तार किये गए थे और आज भी अपने अन किए गुनाहों की सज़ा भुगतने के लिए मजबूर हैं। 8 फ़रवरी को बड़ी उम्मीद के साथ उन्होंनें न्याय की चैखट पर दस्तक दी थी कि अब तो असीमानन्द की अपराध स्वीकारोक्ति ने उन्हें बेगुनाह साबित कर दिया है। इसलिए उन्हें और जेल की सलाखों के पीछे क़ैद की पीड़ा बर्दाशत नहीं करनी होगी और अब वह खुली हवा में सांस ले सकेंगे, परन्तु ऐसा न हो सका। क़ानून की पेचीदगियाँ उनके रास्ते में सबसे बड़ी दीवार बन गईं। सीबीआई की कार्य निष्ठा पर हम क्या कहें, असीमानन्द का इक़बालिया बयान स्वंय इसकी पुष्टि करता है कि अगर उन्होंने तथ्यों की तह तक जाने का प्रयास किया होता, सीबीआई ने अपने कार्य को ईमानदारी से अंजाम दिया होता तो जो कुछ असीमानन्द ने अपने इक़बालिया बयान में अब कहा वह इससे बहुत पहले ही सीबीआई की रिपोर्ट के रूप में सामने आ गया होता, असल अपराधी सलाखों के पीछे होते और बेगुनाहों को सज़ा पाने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता। परन्तु बात यहां भी समाप्त नहीं हुई आज उस समय जब उनके पास यह अवसर था कि उन्होंने असीमानन्द से सीख हासिल करके अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को सुन लिया होता तो कम अज़ कम इतना तो कर ही सकते थे कि समय रहते इस बयान की कापी स्पेशल जज वाई.डी.शिन्दे के हाथों तक पहुंचा देते, जिन्हें आज इन 9 अभियुक्तों की जेल से रिहाई के लिए अत्यंत आवश्यक्ता थी, जो उन्हीं की ग़लती के कारण जेल की सलाखों के पीछे थे। वह क्यों अड़े थे इस बात पर कि सुनवाई की तिथि को आगे बढ़ा दिया जाए। जिन अधिकारियों के सुपुर्द यह ज़िम्मेदारी थी कि वह अपराध स्वीकारोक्ति की प्रति न्यायालय तक पहुंचायें वह इस समय जांच के सिलसिले में मालेगांव और गुजरात के दौरे पर क्यों थे? क्यों इतने उदासीन हो गए हैं हम कि हमें इतना भी अहसास नहीं रहता कि हमारी साधारण सी चूक किसी के जीवन के लिए कितनी भयावह और पीड़ादायक सिद्ध होती है। क्या भारत सरकार विचार करेगी अपने इन अधिकारियों के इस व्यवहार पर?
क्या काफ़ी होगी उपरोक्त अभियुक्तों की अदालत से रिहाई, अब तो उन्हें अभियुक्त लिखना भी अफ़सोसनाक लगता है इसलिए कि वह अपने नाकरदा गुनाहों की सज़ा पाने के लिए मजबूर कर दिये गए हैं। क्या कोई सज़ा नहीं मिलेगी उन अपराधियों को जिन्होंने उन्हें अपराधी साबित करने के लिए ऐड़ी चोटी का ज़ोर लगा दिया था, इसके पीछे उनकी मंशा कुछ और थी या केवल अपने कर्तव्य की अनदेखी, इस समय अगर बहस इस बिन्दु पर न भी की जाए तो भी क्या वह सज़ा के पात्र नहीं हैं। अपने आज के इस लेख के साथ मैं असीमानन्द के इक़बालिया बयान से कुछ वाक्य अपने पाठकों के सामने रख रहा हूँ जिसका उल्लेख मैंने अपने पिछले लेख 10 जनवरी 2011 को ‘‘असीमानन्द की ज़िन्दगी का एक पहलू यह भी ह्न’’ में किया था परन्तु इक़बालिया बयान का विस्तृत विवरण नहीं दिया था। मुलाहिज़ा फ़रमायें आतंकवादी हमलों की जांच में टर्निंग प्वाइंट सिद्ध होने वाले इस तफ़्सीली बयान से कुछ वाक्यः
‘‘मैं सुनील, भरतभाई और प्रज्ञा सिंह अलग से एक जगह पर बैठे। बाकि चार लोग अलग से बैठे थे। हम चारों की बैठक में मैंने सुझाव दिया कि महाराष्ट्र के मालेगांव में 80 प्रतिशत मुस्लिम रहते हैं इसलिए नज़दीक से ही हमारा काम शुरू होना चाहिए और पहला बम वहीं रखना चाहिए। फिर मैंने कहा कि स्वतंत्रता के समय हैदराबाद के निज़ाम ने पाकिस्तान के साथ जाने का निर्णय लिया था इसलिए हैदराबाद को भी सबक सिखाना चाहिए और हैदराबाद में भी बम रखना चाहिए। फिर मैंने बताया कि अजमेर ऐसी जगह है के वहां की दरगाह में हिन्दू भी काफ़ी संख्या में जाते हैं इसलिए अजमेर में भी एक बम रखना चाहिए जिससे हिन्दू डर जाएंगे और वहां नहीं जाएंगे। मैंने यह भी बताया कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिर्टी में भी बम रखना चाहिए क्योंकि वहां पर ज्यादा मुस्लिम लड़के होंगे। मेरा सुझाव सब लोगों ने मान लिया और यह तय हुआ कि इन चारों जगह हम बम ब्लास्ट करेंगे। सुनील जोशी ने चारों जगह की रेकी करने की ज़िम्मेदारी ली। सुनील जोशी ने भी सुझाव दिया कि इंडिया-पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस में केवल पाकिस्तानी ही यात्रा करते हैं इसलिए समझौता एक्सप्रेस में भी बम ब्लास्ट करना चाहिए। इसकी ज़िम्मेदारी सुनील जोशी ने स्वंय ली। सुनील जोशी ने बताया कि झारखंड से हमें पिस्टल और सिम कार्ड मिल गए हैं। सुनील जोशी ने यह भी बताया कि योगी आदित्यनाथ और राजेश्वर सिंह से कोई मदद नहीं मिली। सुनील जोशी ने यह भी बताया कि समझौता एक्सप्रेस में बम ब्लास्ट सिम की मदद से नहीं हो सकता उसके लिए कुछ कैमिकल्स की ज़रूरत पड़ेगी जो सन्दीप व्यवस्था करेगा। सुनील जोशी ने बताया कि बम ब्लास्ट करने के लिए 3 ग्रुप होने चाहिएं। एक ग्रुप आर्थिक मदद और बाक़ी व्यवस्था करेगा, एक ग्रुप बम के सामान के संग्रह का काम करेगा और तीसरा ग्रुप बम रखने का काम करेगा। सुनील जोशी ने यह भी कहा कि अगर तीनों ग्रुप आपस में एक दूसरे को नहीं जानेंगे तो अच्छा होगा। सुनील जोशी ने कहा कि तीनों ग्रुप के आकलन का काम वह करेगा। फिर हमारी मीटिंग ख़त्म हो गई।’’
मैंने स्वामी असीमानन्द के इस लम्बे इक़बालिया बयान के केवल वह वाक्य यहां लिखे हैं जिनके आधार पर हैदराबाद का युवक कलीम खां रिहा हुआ। जिसके अच्छे स्वभाव ने असीमानन्द की अंतर्रात्मा को झंझोड़ दिया और अब यह बयान अन्य बेगुनाहों की रिहाई का कारण बन सकता है। मैंने उस समय भी अपने उस लेख में अंतर्रात्मा की आवाज़ के सुन लिए जाने पर ज़ोर दिया था और मैं आज फिर मुख़ातिब हूँ उन्हीं लोगों से जिनकी अंतर्रात्मा की आवाज़ पर टिके हैं बहुत से बेगुनाहों की क़िस्मत के फ़ैसले। अगर वह सुन लें अपनी अंतर्रात्मा की आवाज़ तो हज़ारों बेगुनाह जेलों की सलाख़ों से बाहर आ सकते हैं। अगर वह सुन लें अपनी अंतर्रात्मा की आवाज़ तो असल गुनाहगार जेल की सलाख़ों के पीछे जा सकते हैं। अगर हम सब सुन लें अपनी अंतर्रात्मा की आवाज़ तो देश को आतंकवाद और साम्प्रदायिकता दोनों से छुटकारा दिला सकते हैं। अगर हम इंसाफ़ की जद्दोजहद में ऐड़ियाँ रगड़ने वाले बेगुनाहों को केवल उनके हाल पर छोड़ देने की ग़लती न करें, हर उस व्यक्ति को इंसाफ़ दिलाने की जद्दोजहद को हम अपना फ़र्ज़ समझें, उसकी कोशिशों का हम स्वंय एक हिस्सा बन जाएं जो बेगुनाह हैं चाहे उनका सम्बंध किसी भी धर्म, समुदाय या जाति से हो, अगर वह बेगुनाह है तो उसकी बेगुनाही साबित करने के लिए समाज का हर व्यक्ति अपनी बिसात भर कोशिश करे और जो गुनाहगार है उन्हें उनके अंजाम तक पहुंचाना भी हम सब अपना दायित्व समझें तो शायद हम एक ऐसे भारत की कल्पना कर सकते हैं, जिसका सपना स्वतंत्रता सैनानियों ने देखा होगा।
मालेगांव के अभियुक्तों को न्याय के लिए अभी कुछ दिन और प्रतीक्षा करना पड़ेगी, परन्तु दिल्ली की एक अदालत ने उन अभियुक्तों को जेल की सलाखों से बाहर आने की अनुमति दे दी, जो मालेगांव के अभियुक्तों की तरह ही अपने नाकरदा गुनाहों की सज़ा पा रहे थे। आज के अख़बार का यह समाचार भी मेरी निगाहों के सामने है जिसे मैं हूबहू अपने पाठकों के साथ साथ उन जज साहिबान की सेवा में पेश कर देना चाहता हूँ जिनके सामने प्रतिदिन इस तरह के मामले आते हैं।
‘‘यह आतंकवादी नहीं हैं
दिल्ली पुलिस द्वारा आतंकवादी बताये गए 7 व्यक्ति रिहा, जांच के तरीक़े पर अदालत नाराज
आरोपियों के ख़िलाफ न कोई ठोस सबूत है और न ही उनका आई.एस.आई से कोई संबंध
दिल्ली पुलिस द्वारा आतंकवादी क़रार दिये गए 7 व्यक्तियों को आज एक अदालत ने रिहा करने का आदेश देते हुए कहा कि इस सिलसिले में पुलिस के एनकाउंटर की कहानी बड़ी सावधानी से गढ़ी गई है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीष विरेन्द्र भट्ट ने साक़िब रहमान, बशीर अहमद शाह, नज़ीर अहमद सैफ़ी, हाजी ग़ुलाम मोईनुद्दीन डार, अब्दुल मजीद भट्ट, अब्दुल क़य्यूम खां तथा विरेन्द्र कुमार सिंह को रिहा कर दिया। इन सातों को दिल्ली पुलिस ने 2005 में एक कथित फ़र्ज़ी एन्काउंटर के बाद गिरफ़्तार किया था। अदालत ने कहा कि 1 õ2 जुलाई 2005 की मध्य रात्रि में कथित रूप से हुआ एन्काउंटर दरअसल फ़र्ज़ी एन्काउंटर था जिसे अत्यंत सावधानी पूर्वक पेश किया गया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने हाल ही में कहा कि एन्काउंटर की कहानी अत्यंत सावधानी के साथ दिल्ली पुलिस के धौला कुआं कार्यालय में लिखी गई। यह कहानी डिप्टी सुप्रिन्टेंडेन्ट रविन्द्र त्यागी ने सहायक सब इंस्पैक्टर निराकर, चरण सिंह एवं महेन्द्र सिंह के साथ मिल कर तैयार की। अभियोजन पक्ष ने कहा कि अभियुक्त साक़िब रहमान, नज़ीर अहमद सैफ़ी, ग़ुलाम मोईनुद्दीन डार और बशीर अहमद शाह को 1 जुलाई 2005 को गुड़गांव-दिल्ली राष्ट्रीय मार्ग के निकट फाइरिंग के बाद गिरफ़्तार किया गया था। दिल्ली पुलिस ने बताया कि चारों अभियुक्त कार में थे और रोकने पर इन लोगों ने भागने का प्रयास किया। पुलिस टीम ने पीछा करके इन लोगों को रोका।
अदालत ने पुलिस आयुक्त से अपने अधिकारों का ग़लत इस्तेमाल करने वाले चारों पुलिस अधिकारियों के खि़लाफ़ पूर्ण रूप से जांच करने तथा 3 महीने में रिपोर्ट देने के लिए कहा। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने दिल्ली पुलिस की जांच के तरीके पर भी नाराज़गी प्रकट की। उन्होनें कहा कि वर्तमान मामले में अभियोजन पक्ष कोई भी ऐसा प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पया जिससे पता चलता कि अभियुक्त वास्तव में आतंकवादी हैं तथा उनका पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आई.एस.आई से सम्बंध है। दिल्ली पुलिस ने इस सम्बंध में कोई जांच नहीं की। जज ने कहा कि दिल्ली पुलिस अभियुक्तों से तथा उनके बताए जाने के बाद बरामद हथियारों और गोला बारूद एवं जाली नोटों के सूत्रों का भी पता नहीं लगा पाई। अदालत ने यह भी कहा कि कुछ पुलिसकर्मियों की इस तरह की कार्रवाई से आम लोगों का पुलिस प्रशासन पर से विश्वास समाप्त होता जा रहा है। जज ने कहा कि इन चारों पुलिस अधिकारियों ने पूरी दिल्ली पुलिस फ़ोर्स के लिए लज्जाजनक तथा अपमानजनक स्थिति पैदा की है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विरेन्द्र भट्ट ने अपने फ़ैसले में कहा कि दिल्ली पुलिस ने अत्यंत सावधानी के साथ उन्काउंटर की कहानी गढ़ी और उन्हें आतंकवादी के रूप में पेश किया। बस मेरा प्रश्न इतना है कि क्या वह पुलिस वाले अब सज़ा के हक़दार नहीं हैं? क्या आज की रिहाई अर्थात उन बेगुनाहों के हक़ में किया जाने वाला फ़ैसला क्या पूर्ण न्याय है, जो 1 जुलाई 2005 के बाद से लगातार जेल की सलाखों के पीछे थे? जिन्होंने अपने जीवन के साढे़ पांच वर्ष जेल की काली कोठरी में बिता दिए। क्या हम उनको उनके बीते हुए दिन लौटा सकेंगे। उन साढ़े पांच वर्षों की मानसिक, शारीरिक पीड़ा का क्या बदला देंगे हम उन्हें? और केवल इतना ही नहीं यह 7 व्यक्ति जो अपराधी न होते हुए भी सज़ा पाने के लिए मजबूर कर दिए गए थे और केवल ये लोग ही सज़ा नहीं काट रहे थे बल्कि उनके परिवार वालों को, उनसे जुड़े व्यक्तियों को कितने कष्टदायक क्षणों का सामना करना पड़ा होगा, उन्हें समाज में कितना ज़लील व अपमानित होना पड़ा होगा, उनका जीवन कितना कठिन बन गया होगा। हमें अपने सम्मानित जज साहिबान से अत्यंत आदर व सम्मान के साथ यह निवेदन भी करना होगा कि फ़ैसला करते समय इस पहलू पर भी विचार किया जाए, ताकि बेगुनाहों को पूर्ण नयाय मिल सके और न्याय के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा जा सके।
..................................

No comments: