बराक हुसैन ओबामा अर्थात अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा को अगर मैं एक ख़ास दृष्टिकोण से देख रहा हूं तो ख़ुदा के लिए आप इसे मेरी तंगनज़री न समझिए बल्कि पिछले कुछ वर्षों से अपने धर्म के लिए लगातार निशाना बनाए जाने वाली क़ौम के लिए ओबामा के यह शब्द कुछ राहत भरे थे वह इसलिए कि मज़हब-ए-इस्लाम के लिए उस देश के राष्ट्रपति की ज़ुबान से प्रशंसा के वाक्य अदा किए गए जहां से 9/11 के बाद लगातार इस्लाम धर्म तथा उसके मानने वालों को निशाना बनाया जा रहा था। इसलिए अगर मैं अमेरिकी राष्ट्रपति की यात्रा को मुस्लिम परिपेक्ष में देख रहा हूं तो इसे इस पहलू पर भी भरपूर रौशनी डालने का एक प्रयास समझिए जो शायद अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा के उद्देश्यों में से एक प्रमुख उद्देश्य था।
हो सकता है राष्ट्रपति ओबामा ने मुम्बई के सैंट ज़ेवियर्स काॅलेज में छात्र तथा छात्राओं से गुफ़्तगू के दौरान प्रश्न-उत्तर के क्रम में मात्र संयोग के रूप में पूछे गए इस प्रश्न का उत्तर दिया हो या फिर छात्रों से इस गुफ़्तगू के दौरान यह प्रश्न पहले से ही ऐजेंडे में शामिल रहा हो। बहरहाल जो भी हो अगर यह प्रश्न सैंट ज़ेवियर्स काॅलेज की छात्रा ने मात्र संयोगवश पूछा, तब भी इसका उत्तर निर्धारित था, जिसका इक़रार अमेरिकी राष्ट्रपति ने उत्तर देते हुए किया कि मुझे आशा थी कि यह प्रश्न मुझसे किया जाएगा अर्थात वह उत्तर के लिए मानसिक रूप से पहले से तैयार थे और भारत के लिए तो यह प्रश्न बिल्कुल भी नया नहीं था, अकसर व बेश्तर यह प्रश्न उठता रहता है कि अमेरिका पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित क्यों नहीं करता? लेकिन इस प्रश्न का अमेरिकी राष्ट्रपति की ज़ुबान से इस अवसर पर दिया गया यह उत्तर निश्चितरूप से अप्रत्याशित था। वह उत्तर क्या था पहले वह शब्द उसके बाद टिप्पणी:
‘पाकिस्तान एक बड़ा देश है, वो सिर्फ अमेरिका के लिए नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए बहुत मायने रखता है। मैं यह भी मानता हूं कि पाकिस्तान में कुछ कट्टरपंथी लोग हैं, जिन्हांेने माहौल को ख़राब कर रखा है। पाकिस्तानी सरकार को भी कट्टरपंथियों के बारे में पता है और वो भी उनसे लड़ रहे हैं।’
मैं मानता हूं कि अमेरिका को पाकिस्तान से संबंध बनाए रखना चाहिएं। मैंने हमेशा ही अपनी विदेश नीति में पाकिस्तान को महत्व दिया है। हम एक स्थिर, शांत और स्मृद्ध पाकिस्तान चाहते हैं। पाकिस्तान में अनिश्चितता की स्थिति, कट्टरता और आतंकवाद दुनिया के लिए कैंसर के समान है। मैं यह भी मानता हूं कि पाकिस्तान ने उतनी तरक़्क़ी नहीं कि जितनी की करनी चाहिए थी।
पाकिस्तान में आतंकवाद के ख़िलाफ जारी लड़ाई में उतनी कामयाबी नहीं मिल पाई है जितनी हम चाहते थे। पाकिस्तान की समस्याओं को सुधरने में वक़्त लग रहा है। हम यह भी जानते हैं कि पाकिस्तान में कुछ जगह हालात बहुत मुश्किल हैं। हम पाकिस्तान के दोस्त हैं और उसके साथ ईमानदार रहना चाहते हैं।
मैं यह भी जानता हूं कि भारत और पाकिस्तान के बीच हमेशा ही संबंध बहुत मुश्किल रहे हैं और इतिहास इसका गवाह है। दोनों ही देशों के रिश्ते बहुत जटिल हैं। दोनों ही देशों ने आतंक ओर हिंसा का सामना किया है। आप लोगों को अजीब लग सकता है, लेकिन मैं यक़ीन करता हूं कि पाकिस्तान की तरक़्क़ी से सबसे ज़्यादा फ़र्क भारत को पड़ेगा। पाकिस्तान की तरक़्क़ी सबसे ज़्यादा भारत के लिए ज़रूरी है। यदि पाकिस्तान अस्थिर रहता है तो उसका सबसे ज़्यादा नुक़सान भारत को ही उठाना पड़ेगा। एशिया में स्थिरता की स्थिति के लिए पाकिस्तान का स्थिर होना बहुत ज़रूरी है।
मैं चाहता हूं कि पाकिस्तान और भारत के बीच बातचीत शुरू हो और जो भी मतभेद हैं वह समाप्त हों। मैं चाहता हूं कि पाकिस्तान और भारत एक दूसरे के साथ शांति से रहे। अमेरिका भारत और पाकिस्तान पर समझौता करने के लिए दबाव नहीं डाल सकता। भारत और पाकिस्तान को ही यह तय करना होगा, समझौते की शर्तें तय करना अमेरिका का काम नहीं है।’’
अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा भारत की धरती पर क़दम रखने के बाद पाकिस्तान की इतनी प्रशंसा करेंगे, उसकी मित्रता का दम भरेंगे, उसकी वकालत करेंगे, उसके मज़बूत तथा समृद्ध होने की दुआ करेंगे और भारत को यह समझाने का प्रयास करेंगे कि भारत के लिए भी बेहतर यही है कि पाकिस्तान समृद्ध और शांतिपूर्ण रहे, कल्पना से परे की बात थी, एक विशेष वर्ग इसे पसंद नहीं करेगा। प्रतिक्रिया आने लगी है हमें अंदाज़ा है कि उनके जाने के बाद और भी अधिक यह जवाब चर्चा का विषय बना रहेगा।
भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने ओबामा के इस बयान पर नापसंदीदगी व्यक्त कर ही दी है, जहां तक हमारे प्रधानमंत्री का संबंध है तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में अमेरिकी राष्ट्रपति की उपस्थिति में ही यह कह दिया था कि पाकिस्तान जब तक आतंकवाद पर क़ाबू नहीं पायगा, उससे बातचीत नहीं की जा सकती, लेकिन अब प्रश्न यह पैदा होता है कि क्या पाकिस्तान चाह कर भी आतंकवाद पर क़ाबू पा सकता है? कम से कम त्वरित रूप से तो यह संभव नज़र नहीं आता। हमारा देश पाकिस्तान की ओर से आने वाले आतंकवादियों का शिकार है, यह अपनी जगह, परंतु पाकिस्तान जिस प्रकार आतंकवाद का शिकार है यह भी किसी से छुपा नहीं है। अभी दो दिन पूर्व हुए बम धमाके में 70 से अधिक लोग हताहत हुए। यह तो अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के आगमन से ठीक पहले की घटना है। अगर पाकिस्तान इस आतंकवादी कार्रवाई को रोक सकता तो शायद ज़रूर रोक लेता अर्थात वास्वतिकता यह है कि पाकिस्तान ख़ुद भी आतंकवाद का शिकार है और उस पर क़ाबू पाना उसके लिए भी आसान काम नहीं है। अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा पाकिस्तान को उस आतंकवाद से छुटकारा दिलाने में तथा पाकिस्तान के आतंकवाद से भारत को छुटकारा दिलाने में किस हद तक सफल होंगे या कम से कम ईमानदाराना कोशिश करेंगे यह तो आने वाला समय ही बताएगा। हां, परंतु जो कुछ बराक हुसैन ओबामा ने कहा अगर वह वाक़ई ऐसा ईमानदारी के साथ करना चाहते हैं तो इसके बेहतर परिणाम ज़रूर बरामद हो सकते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा पर डेविड कोलमैन हेडली का उल्लेख उनकी ज़ुबान पर कहीं भी नहीं आया, शायद उन्होंने इसकी आवश्यकता नहीं समझी, हालांकि उन्होंने साफ़ शब्दों में यह कहा कि वह 26 नवम्बर 2008 को मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले को नहीं भूल सकते। ताज होटल से उठने वाली आग की लपटें आज भी उन्हें याद हैं और होटल ताज में ठहरने का फ़ैसला भी इसीलिए था कि वह एक संदेश देना चाहते थे। उन्होंने मृतकों से सहानुभूति भी जताई, शोक प्रकट भी किया। 9/11 तथा 26/11 के आतंकवादियों को सज़ा की बात भी कही, परंतु डेविड कोलमैन हेडली जो इस आतंकवादी हमले का प्रमुख आरोपी दिखाई देता है और जिसका संबंध अमेरिका से भी है और पाकिस्तान से भी, वह अमेरिकी भी नागरिक है और पाकिस्तानी नागरिक भी, वह अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी एफबीआई के लिए भी काम करता रहा है और पाकिस्तान की लश्कर-ए-तैयबा के लिए भी। उसका कोई उल्लेख नहीं आया। हमारे विचार में यह प्रश्न अमेरिकी राष्ट्रपति के सामने आना चाहिए था, इसलिए कि वह आतंकवाद के विरुद्ध एक निर्णायक युद्ध की बात करते नज़र आ रहे हैं। जहां तक पाकिस्तान से संबंधित कहे गए ओबामा के वाक्यों तथा हमारे प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया का संबंध है तो हम समझते हैं कि आतंकवाद पर क़ाबू पाना दोनों देशों अर्थात भारत एवं पाकिस्तान की प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए और अगर इसके लिए दोनों देशों के शासनाध्यक्षों के बीच बातचीत का होना आवश्यक है तो यह इस प्रतीक्षा के बिना हो कि पाकिस्तान पहले आतंकवाद पर क़ाबू पाए, क्योंकि इस प्रतीक्षा में बहुत देर हो जाएगी, जो स्थिति आज है, उसे ध्यान में रखते हुए आगामी कुछ वर्षों में भी पाकिस्तान आतंकवाद से पाक होगा यह कल्पना से परे की बात है अर्थात इस स्थिति में पाकिस्तान के साथ हमारी बातचीत की संभावना भी उतनी ही कम है। जितना वहां आतंकवाद पर क़ाबू पाना इसलिए हमारा अपने प्रधानमंत्री से सादर निवेदन तो यही होगा कि इस फ़ैसले पर पुनर्विचार किया जाए।
अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा से जब जिहाद के बारे में प्रश्न किया गया तो इस्लाम के बारे में उनके विचार तथा उनका उत्तर एक दार्शनिक जैसा था। हम वह उत्तर भी हूबहू पाठकों को भेंट कर रहे हैं।
‘‘इस्लाम में जिहाद और हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है। मैं ख़ुद इस्लाम धर्म की बहुत इज़्ज़त करता हूं। आज दुनिया भर में धर्मों, जातियों, नस्लों के लोग एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं और दुनिया को तरक़्क़ी पर ले जा रहे हैं। दुनिया में कोई भी धर्म हिंसा फैलाना नहीं चाहता।’
हमने आज के लेख का आरंभ अमेरिकी राष्ट्रपति के पूरे नाम अर्थात ‘बराक हुसैन ओबामा’ से किया था। उनका उपरोक्त उत्तर इस बात की निशानदही करता है कि कहीं न कहीं अपने नाम का प्रभाव ओबामा के स्वभाव, उनकी शिक्षा तथा संस्कारों पर है। इसके अलावा उनकी इस यात्रा में अन्य कई बातें और उनके व्यवहार से साफ़ दिखाई देता है कि वह मुसलमानों से संबंध सुधारना चाहते हैं। इस्लाम के बारे में अमेरिका का नया दृष्टिकोण सामने रखना चाहते हैं। संभव है हुमायूं का मक़बरा देखना भी उनके कार्यक्रम में इसलिए शामिल रहा हो कि वह मक़बरे में अपनी उपस्थिति से इसी प्रकार का कोई संदेश देना चाहते हैं, जिस प्रकार ताज होटल में ठहर कर आतंकवादी मानसिकता के लोगों को संदेश देना चाहते हैं। एक उल्लेखनीय बात यह भी रही कि मक़बरे पर गाइड के रूप में उनके साथ पुरातत्व विभाग के सुप्रीटेंडेंट के.के.मोहम्मद थे। अलक़ाएदा पर उनका दृष्टिकोण अपनी जगह है और वह ठीक भी है, इसलिए कि आतंकवादी संगठन कोई भी हो, उसका संबंध चाहे किसी धर्म से भी हो, उस पर लगाम तो कसी ही जानी चाहिए, अब वह जिस तरह भी संभव हो।
बहरहाल आज मैंने अपने लेख के आरंभ में ही स्पष्ट कर दिया था कि मैं एक ख़ास दृष्टिकोण को ध्यान में रख कर गुफ़्तगू कर रहा हूं और वह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा के एजेंडे में इस्लाम और मुसलमानों के संदर्भ में अमेरिकी राष्ट्रपति के द्वारा अपने जिन विचारों का व्यक्त करना शामिल था, वो मैंने किया साथ ही भारत सरकार की ओर से उनके आगमन के अवसर पर आगमन से लेकर विदाई तक के कार्यक्रम में मुसलमानों को जो प्रतिनिधित्व मिला, उसे अत्यंत महत्वपूर्ण क़रार दिया जा सकता है। हो सकता है केंद्रीय मंत्री सलमान ख़ुर्शीद का चयन इसलिए किया गया हो कि वह कंपनी अफ़ेयर मिनिस्टर हैं और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा एक बिज़नेस डेलिगेशन के साथ आ रहे थे, इसलिए भारत सरकार की ओर से उनका स्वागत एक ऐसे केंद्रीय मंत्री द्वारा हो जिसका संबंध ऐसे ही किसी विभाग से हो। निःसंदेह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हान अपने राज्य के मुख्यमंत्री होने के नाते उनके स्वागत के लिए उपस्थित थे। लेकिन सलमान ख़ुर्शीद कंपनी अफ़ेयर मिनिस्टर होने के साथ-साथ मायनाॅरेटी अफ़ेयर्स के मंत्री भी हैं, इसलिए अल्पसंख्यकों के संबंध में उनकी उपस्थिति इस मायने में भी महत्वपूर्ण साबित हो सकती थी। भारतीय संसद ने इस ऐतिहासिक संबोधन के अवसर पर उप-राष्ट्रपति हामिद अन्सारी के स्वागत भाषण के साथ उपस्थिति व उनके साथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का संबंध भी अल्पसंख्यक समुदायों से है, यूपीए की चैयरपर्सन श्रीमती सोनिया गांधी, अर्थात सभी का संबंध अल्पसंख्यक समुदाय से, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार का संबंध दलित समुदाय से, इसे हम अपने देश के बहुसंख्यक वर्ग की उदारता भी कह सकते हैं और भारतीय लोकतंत्र तथा धर्म निर्पेक्ष की गारंटी भी।
अमेरिकी राष्ट्रपति के आने से दो दिन पूर्व जिस समय हमने मोहतरम मौलाना कल्बे जव्वाद साहब द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के आगमन के सिलसिले में प्रदर्शन के समाचार पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए यह सुझाव दिया था कि हमारी ओर से ऐसा कोई क़दम न उठाया जाए, जिसका नकारात्मक संदेश जाए और विरोधियों को कोई अवसर मिले। यही सब हमारे ज़हन में था हम इसके लिए आभारी हैं कि उन्होंने हमारे निवेदन को स्वीकार किया और आज जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति इस सफल यात्रा के बाद यहां से जा चुके हैं, हम चैन की सांस ले सकते हैं कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, जिसके लिए हमें सोचना पड़े और कुल मिलाकर यह यात्रा जहां व्यापारिक दृष्टि से हमारे देश तथा समुदाय के लिए सकारात्मक सिद्ध हो सकती है वहीं इस्लाम और मुसलमानों से संबंधित दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति का इस्लाम और मुसलमानों के प्रति यह दृष्टिकोण विश्व स्तर पर सोच में बदलाव का कारण बन सकता है। क्योंकि जिस धरती से यह दाग़ लगा अगर उस धरती का शासनाध्यक्ष उसे छुड़ाने का प्रयास करे तो उसके मायने समझे जा सकते हैं।
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