भारत पर हुए सबसे बड़े आतंकवादी हमले की दूसरी बरसी है आज। निश्चितरूप से हमारे पाठक ही नहीं, बल्कि पूरे भारत की जनता 26 नवम्बर 2008 को हमारे देश की आर्थिक राजधानी के रूप में प्रसिद्ध मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले को भूले नहीं होंगे, हो सकता है आज जब आप मेरा यह लेख पढ़ रहे हों, अन्य समाचारपत्रों तथा इलैक्ट्राॅनिक मीडिया में भी इस आतंकवादी हमले की चर्चा हो, लेकिन पिछले दिनों जिस तरह भारत में हुए अन्य बम धमाकों की जांच के समाचार सुर्ख़ियां बनते रहे और उनकी प्रतिक्रिया में राजनीतिक व ग़ैर-राजनीतिक संगठन प्रदर्शन करते रहे, 26 नवम्बर को मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले की चर्चा इस अंदाज़ में नहीं हुई और न ख़ुद को देश भक्त कहने वाले संगठनों की ओर से भी वास्तविकता को सामने लाने के लिए कोई विशेष आंदोलन चलाया गया। वैसे भी अगर नवम्बर 2008 के अंतिम सप्ताह तथा दिसम्बर की बात जाने दें तो इस आतंकवादी हमले पर जांच का सिलसिला उस तरह नहीं चला जिस तरह चलना चाहिए था और न ही मीडिया ने इसकी जांच के मामले को इतना महत्व दिया जितना कि दिया जाना चाहिए था। मैं फिर स्पष्ट कर दूं कि इस आतंकवादी हमले से संबंधित प्रकाशित की जाने वाली या दिखाई जाने वाली ख़बरों की चर्चा मैं इस समय नहीं कर रहा हूं। यह हमला कितना बड़ा था, कितने लोग हताहत हुए, कितने घायल, मैं इस तरह के समाचारों की भी चर्चा नहीं कर रहा हूं। शहीद हेमंत करकरे, अशोक कामटे और विजय सालस्कर जैसे पुलिस अधिकारी इसमें मारे गए, मैं इन समाचारों की भी चर्चा नहीं कर रहा हूं। आज मैं ऐसे सभी समाचारों से हट कर बात कर रहा हूं। प्रश्न यह है कि दो वर्ष बीत जाने के बाद भी भारत की धरती पर हुए इस सबसे बड़े आतंकवादी हमले की जांच के संबंध में आज तक क्या हुआ? हमलावर पाकिस्तान से आए थे, उनकी संख्या 10 थी, षडयंत्र पाकिस्तान में रचा गया, षडयंत्र रचने वाला ज़्ाकीउर्रहमान लखवी था, अजमल आमिर क़साब वह एक मात्र आतंकवादी है, जो इन आतंकवादी हमलों के बाद जीवित पकड़ में आया। डेविड कोलमैन हेडली और तहव्वुर हुसैन राना के नाम बाद में जुड़े। डेविड कोलमैन हेडली पाकिस्तान और अमेरिका दोनों की नागरिकता रखता था। उसका संबंध पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसी आईएसआई और अमेरिका की एफबीआई से था। यह सब अपनी जगह लेकिन इसके आगे क्या हुआ। हमारी टीम अमेरिका गई, क्या पता लगा कर लाई, नहीं मालूम। इस बीच भारत के प्रधानमंत्री डा॰ मनमोहन सिंह की अमेरिकी यात्रा भी हुई और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा भी भारत पधारे। शरम-अल-शैख़ ;म्हलचजद्ध में भारतीय प्रधानमंत्री और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की मुलाक़ातें भी हुईं। इस आतंकवादी हमले की चर्चा भी हुई। ज़्ाकीउर्रहमान लखवी पर बात भी हुई। यह सब वह बातें हैं, जिसकी जानकारी आपको भी है, परंतु अब इससे आगे जो मैं लिखने जा रहा हूं, वह ज़रा नई बात है और इस पर मैं आपका विशेष ध्यान चाहता हूं।
मुम्बई में हुए इस आतंकवादी हमले के बाद उस समय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलास राव देशमुख ने त्यागपत्र दिया, आर॰आर॰ पाटिल जो महाराष्ट्र के गृह मंत्री थे, हटाए गए, आर॰आर॰ पाटिल आज फिर महाराष्ट्र के गृह मंत्री हैं। विलासराव देशमुख केंद्र सरकार में कैबिनेट दरजे के मंत्री हैं, जब उनको हटाया गया था तब भारतीय जनता पार्टी या संघ परिवार ने ऐसी कोई ज़ोरदार मांग नहीं की थी कि उन्हें अपने पदों से हटाया जाए। मुम्बई पर हुआ आतंकवादी हमला उनकी ग़ैर ज़िम्मेदारी का परिणाम था, इसलिए उनको अपने पदों पर बने रहने का अधिकार नहीं है। यह फ़ैसला कांग्रेस पार्टी का था और जहां तक मुझे याद पड़ता है विलासराव देशमुख घटना स्थल का निरीक्षण करने के लिए जब गए तो अपने साथ अपने बेटे रितेश देशमुख जो फ़िल्म कलाकार हैं और एक फ़िल्म प्रोड्यूसर को भी ले गए, अधिक आपत्तिजनक इसी बात को माना गया, उनकी कोताही पर बहस चली हो, उनका त्यागपत्र सज़ा के रूप में लिया गया हो और यह मांग भारतीय जनता पार्टी, संघ परिवार या शिवसेना की ओर से की गई हो, ऐसा कुछ ख़ास नहीं था। बात इतनी पुरानी नहीं है कि विवरण उपलब्ध न हो सके। अशोक चव्हान के आदर्श सोसायटी में 3 फ़्लैट होने के आधार पर मान लिया गया कि वह भ्रष्टाचार में कहीं न कहीं लिप्त हैं, इसलिए उनसे त्यागपत्र की मांग की गई। परिणाम स्वरूप उन्हें अपने पद से हटना पड़ा। टेलीकाॅम मिनिस्टर ए.राजा स्पैक्ट्रम घोटाले में लिप्त पाए गए, उन्हें अपने पद से हटना पड़ा। प्रधानमंत्री के कार्यालय को भी आलोचना का निशाना बनाया गया। भारतीय जनता पार्टी ने 17 दिन तक संसद नहीं चलने दी। कई बार यह निवेदन किया गया कि कृप्या सदन की कार्रवाई जारी रहने दें, लकिन भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं का हंगामा कम नहीं हुआ, जब कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री यदयुरप्पा भी भूमि घोटाले में लिप्त पाए गए।
अजमेर बम धमाकों में इंद्रेश का नाम आने पर संघ परिवार का हंगामा करना और के॰एस॰ सुदर्शन का आरोप मंढना किसी से छुपे नहीं हैं, हम यह नहीं कहते कि भारतीय जनता पार्टी ने या संघ परिवार ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध जो प्रतिक्रिया व्यक्त की, वह ग़लत थी, उन्हें ऐसा नहीं करना चाहए था, परंतु अगली बात जो हम कह रहे हैं उसके महत्व को समझते हुए भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार के व्यवहार की समीक्षा करनी होगी। यह भ्रष्टाचार के मामले इस प्रकार के थे कि उन्हें ख़ामोशी से सहन नहीं किया जाना चाहिए था। इसलिए जो कुछ किया भारतीय जनता पार्टी ने उसे वह करना ही चाहिए था। परंतु अब विचार इस बात पर भी करना होगा कि यह भ्रष्टाचार अधिक बड़ा मामला था या 26 नवम्बर 2008 को मुम्बई पर हुआ आतंकवादी हमला बड़ा मामला था। हर बम धमाके के बाद चिंता व्यक्त करने और जांच के मामले में सक्रिय होने वाला संघ परिवार इतने बड़े आतंकवादी हमले के बाद कितना सक्रिय हुआ, बीजेपी ने कितनी बार संसद की कार्यवाही ठप की इस मांग के साथ कि 26/11 के सभी अभियुक्तों का पर्दाफ़ाश होना चाहिए। इस संपूर्ण नैटवर्क को बेनक़ाब किया जाना चाहिए। उसने क्यों आवाज़ नहीं उठाई कि आख़िर अनिता उदय्या को गुप्त रूप से अमेरिका क्यों ले जाया गया। अमेरिका को क्या अधिकार था उसे इस तरह ले जाने और पूछताछ करने का। भारतीय यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा की विशेष मीटिंग सुषमा स्वराज से भी हुईं। क्या इस देशभक्त पार्टी के नेताओं ने डेविड कोलमैन हेडली जो भारत पर आतंकवादी हमले का मास्टर माइंड था, उसके बारे में गुफ़्तगू की। क्या प्रधानमंत्री डा॰ मनमोहन सिंह से मांग की कि इस विषय पर गुफ़्तगू एजंेंडे में शामिल की जाए। क्या भारतीय जनता पार्टी ने आपत्ति जताई कि आर॰आर॰ पाटिल को दोबारा गृह मंत्री क्यों बनाया जा रहा है। क्या भारतीय जनता पार्टी और संध परिवार ने यह जानने का प्रयास किया कि 10 पाकिस्तानी आतंकवादियों के अलावा और कौन कौन इसमें शामिल था। कम से कम भारत में कौन कौन ऐसे व्यक्ति थे, जो इन आतंकवादी हमलों का षडयंत्र रचने या उन्हें अमली जामा पहनाने में शामिल रहे हांे। अक्षरधाम पर हमला हुआ, मक्का मस्जिद पर हमला हुआ, इन हमलों के तुरंत बाद से लगातार भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार का व्यवहार क्या रहा और मुम्बई पर हुए इस आतंकवादी हमले के बाद उसका व्यवहार क्या रहा। आज उसकी तुलना करनी होगी। क्या उसने इस आतंकवादी हमले और इसके षड़यंत्र का पता लगाए जाने की वैसी ही जद्दोजहद की, जैसी की अन्य घटनाओं के बाद करती रही है? अगर नहीं तो इसका कारण क्या है।
शहीद हेमंत करकरे और इंस्पैक्टर मोहनचंद शर्मा दो चेहरे हमारे सामने हैं, दोनों को ही शहीद का दर्जा प्राप्त है। इंस्पैक्टर मोहनचंद शर्मा अधिक बड़ी दुर्घटना का शिकार हुए या हेमंत करकरे? इंस्पैक्टर मोहनचंद शर्मा का मुक़ाबला अधिक सख़्त था या हेमंत करकरे का? इन दोनों के मामले में संघ परिवार का व्यवहार क्या रहा यह सबके सामने है। क्या उसका कोई कारण समझ में आता है। बहरहाल मैं अपने लेख को आगे बढ़ाने से पूर्व अपने पाठकों तथा भारत सरकार का ध्यान निम्नलिखित समाचार की ओर दिलाना चाहता हूं, जिसका संबंध पूर्व इंस्पैक्टर जनरल पुलिस एस॰एम॰ मुशरिफ़ द्वारा लिखी गई पुस्तक श्श्ॅीव ापससमक ज्ञंतांतमश्श् (करकरे का हत्यारा कौन) से है। इस समाचार के बाद मेरे लेख का सिलसिला जारी रहेगा।
महाराष्ट्र के पूर्व इंस्पैक्टर आॅफ़ पुलिस एसएम मुशरिफ़ को मुम्बई उच्च न्यायालय ने उनकी विवादित पुस्तक ‘‘करकरे को किसने मारा’’ के कंटैंट के बारे में स्पष्ट करने के लिए बुलाया है, जिसमें आरोप लगाया है कि हिंदू कट्टरपंथियों और भारतीय गुप्तचर एजेंसियों ने मिलकर एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे को मारने का षड़यंत्र रचा था।
जस्टिस बीएच मारला पिल्लई और जस्टिस आरवाई गानू ने मुशरिफ़ को आदेश दिया है कि वह 1 दिसम्बर को हाईकोर्ट की डिवीज़न बंच के सामने हों। मारला पिल्लई ने कहा कि अगर कोई सरकारी अधिकारी न केवल यह कि खुले आम यह बयान दे, बल्कि उसको प्रकाशित भी कर दे तो उसकी जांच होनी चाहिए।
अदालत ने कहा कि अगर पुस्तक में सरकार को कुछ आपत्तिजनक लगा था तो वह उस पर प्रतिबंध लगा सकती थी। लेकिन आपने ऐसा नहीं किया। शायद आपमें साहस नहीं था। क्या आपने उनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज की? मारला पिल्लई ने सरकारी वकील से पूछा और अदालत ने कहा कि अगर पुस्तक में आपत्तिजनक सामग्री थी तो उन्हें मुशरिफ़ के विरुद्ध कार्यवाही करनी चाहिए थी। बहरहाल अगर इसमें कोई मामला बनता है तो उसकी जांच की जानी चाहिए।
सरकारी वकील पांडवरंगपोल ने कोर्ट में पुलिस कमिश्नर संजीव दयाल की ओर से एक शपथपत्र दायर किया, जिसमें बिल्कुल स्पष्टरूप में कहा गया है कि करकरे की हत्या के मामले में अभिनव भारत समैत किसी हिंदू संगठन का हाथ नहीं है। शपथपत्र में कहा गया है कि जांच के दौरान ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला है जिसमें इस मामले की चार्जशीट में नामज़द किए गए दो अभियुक्तों मुहम्मद अजमल क़साब और अबू इस्माईल के अलावा कोई और भी लिप्त है। यहां तक कि जिस कोर्ट में क़साब के मुक़दमे की कार्यवाही चली, उसमें भी आरोपपत्र दाख़िल करते समय किसी हिंदू सगठन के इस मामले में लिप्त होने का कोई प्रमाण नहीं मिला। शपथपत्र को पढ़ने के बाद जस्टिस मारला पिल्लई ने कहा कि अदालत यह नहीं कह रही है कि करकरे को किसी और ने मारा था, बल्कि हम यह जानना चाहते हैं कि कहीं भारत की धरती से संबंध रखने वाला कोई व्यक्ति इसमें लिप्त तो नहीं था, क्योंकि मिस्टर मुशरिफ़ आप ही की फ़ोर्स का एक अंग थे।
करकरे की मौत को भारतीय गुप्तचर एजेंसियों के आदमियों तथा हिंदू कट्टरवादी संगठनों के सर थोपे जाने के विरुद्ध हाईकोर्ट में दो रिटपटीशन दाख़िल की गई हैं, जिनमें से एक बिहार के एमएलए राधाकांत यादव और दूसरी क्योतिबेदीकर ने दाख़िल की है।
मुझे एसएम मुशरिफ़ और विनीता काम्टे की पुस्तकों के संदर्भ में बहुत कुछ कहना है। इसी विषय पर मेरे पिछले क़िस्तवार लेख ‘‘मुसलमानाने हिंद ह्न माज़ी हाल और मुस्तक़बिल’’ की 100 वीं क़िस्त ‘‘शहीद-ए-वतन करकरे की शहादत को सलाम’’ और मेरी पुस्तक ‘‘क्या आर.आर.एस का षडयंत्र - 26/11’’ के संदर्भ में भी इस सच्चाई को सामने रखने का प्रयास करना है लेकिन इस संक्षिप्त लेख को अजमेर बम धमाकों के हवाले के साथ समाप्त करना चाहूंगा।
इसलिए अब एक नई नज़र अजमेर दरगाह बम धमाका और उसके बाद की परिस्थितियों पर:
11 अक्तूबर 2007 को अजमेर की दरगाह में धमाके हुए। इन धमाकों में 3 व्यक्ति हताहत तथा 20 घायल हुए।
पुलिस ने सबसे पहले लशकर-ए-तय्यबा को आरोपित ठहराया।
उस समय केंद्र सरकार ने कहा था कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई॰एसर्॰आईं इस तरह के धमाकों के द्वारा भारत-पाक वार्ता में रुकावट डालना चाहते हैं।
22 अक्तूबर 2007 को दोनों देशों के बीच वार्ता होनी है जिनमें प्दकव.चंा ंदजप जमततवत उमबींदपेउ पर विचार किया जाने वाला था। उसके बाद सीबीआई जांच में सामने आया कि अजमेर दरगाह में सुनील जोशी ने बम रखे थे, फिर अचानक समाचार आया कि संघ परिवार के सदस्य सुनील जोशी की हत्या कर दी गई। अधिक आश्चर्य की बात यह कि मध्यप्रदेश में जहां हत्या हुई, भाजपा की सारकार थी, लेकिन न तो हत्यारे का कोई सुराग़ मिला और न किसी की ओर से कोई मांग कि आख़िर पुलिस इतनी उदासीनता से क्यों काम ले रही है, फिर अजमेर धमाकों के लिए स्वामी असीमानंद को उत्तराखंड के हरिद्वार से गिरफ़्तार किया गया, जिसका संबंध वंदेमातृम ग्रुप से था। अन्य गिरफ़्तार किए जाने वालों में मुकेश वसहानी को गोधरा से गिरफ़्तार किया गया, उस पर भी दरगाह में बम रखने का आरोप है। देवेंद्र गुप्ता, लोकेश शर्मा, चंद्रशेखर लेवे को गिरफ़्तार किया जा चुका है। संदीप डांगे, रामजी कलसांगरे फ़रार हैं और संभवतः गुजरात में शरण लिए हुए हैं। 16 मई 2010 को इंदौर से राजेश मिश्रा नामक एक व्यापारी को गिरफ़्तार किया गया। इस तरह इस मामले में अब तक 7 अभियुक्तों की निशानदेही हुई है, जिनमें से दो फ़रार हैं, जबकि पहले राजस्थान पुलिस ने अजमेर दरगाह बम धमाकों में हूजी और लश्कर-ए-तय्यबा को आरोपित ठहराया था और अब्दुल हफ़ीज़ शमीम, ख़शीयुर्रहमान और इमरान अली को गिरफ़्तार किया था। इसके अलावा अपनी आरंभिक मुहिम में हैदराबाद, राजस्थान पुलिस ने कहा था कि 25 अगस्त के बम धमाकों में जो सिम काॅर्ड बरामद हुए थे, वह बाबूलाल यादव ने प्राप्त किए थे। पुलिस ने कहा था कि यह अपराधियों की चालाकी थी। यह सिमकार्ड नक़ली पहचान प्रयोग करके प्राप्त किए गए थे। पुलिस ने यह भी कहा था कि शाहिद बिलाल जोकि हूजी का कमांडर है अजमेर धमाकों के पीछे भी हो सकता है। इस तरह पुलिस ने हैदराबाद और अजमेर धमाकों के लिए शाहिद बिलाल का हाथ होने की आशंका व्यक्त की थी।
पुलिस का कहना है कि यादव के नाम से लिया गया सिमकार्ड शाहिद बिलाल और अन्य मुस्लिम आतंकवादियों ने 13 अक्तूबर 2007 को धोखा देने के लिए प्रयोग किया था, इसलिए पुलिस शाहिद बिलाल को ही अजमेर, मक्का मस्जिद और 25 अगस्त 2007 के धमाकों के लिए ज़िम्मेदार ठहराती रही है।
जारी................................कृप्या कल अवश्य पढ़ें।
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Its a QU?
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