इन्सानी दिमाग़ के उड़ान की ऊंचाई की कोई सीमा नहीं। वह कब क्या सोचने लगे, कल्पना करना कठिन है। इसी तरह ख्वाब की बात भी है जब आप गहरी नींद में डूबे हों तो आपकी आंखें कैसे-कैसे सपने सजा लें, इस पर भी आपका कोई ज़ोर नहीं। कभी-कभी ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हो जाता है। यूं तो रात और दिन काम की चिंता चैन से सोने ही नहीं देती, मगर कभी यूं भी होता है कि आप स्वयं ही नींद की अग़ोश में पहुंच जाते हैं। ‘अररिया’ से ‘बागडोगरा’ तक की यात्रा जो ढाई से तीन घंटे में कार द्वारा पूरी होनी थी, उसमें चार घंटे से भी अधिक समय लगा, इसलिए कि किशन गंज के रास्ते बागडोगरा पहुंचना था। बहुत कठिन नज़र आ रहा था, फ्लाइट के निर्धारित समय तक एयरपोर्ट पहुंच जाना, लेकिन ख़ुदा का शुक्र और कुछ ड्राइवर की कुशलता कि मैं समय पर पहुंच गया। जेट एयरवेज़ की फ़्लाइट डब्ल्यू 2208-9 अपने शैड्यूल के अनुसार समय पर थी और मेरी सीट का नम्बर 1ब् था, अर्थात् पहली पंक्ति में आॅयल सीट, जिसके ठीक सामने अपनी ड्यूटी पर तैनात एयरहोस्टेस को बैठना होता है। अब यह ज़रा कठिन काम था कि अगर मैं आंखें खुली रखूं तो अकस्मात नज़रें एयरहोस्टेस के चेहरे पर जम जाती थीं और आँखें बंद कर लूं तो उन्हें नींद की आग़ोश में चले जाने से रोकना कठिन था। पहली अवस्था कुछ अनुचित लगी, इसलिए एक ज़माने से बेख़्वाब आंखों का ख़्वाब पूरा हुआ। मैंने पलकें क्या झुकाईं, उन्होंने सपनों के स्वागत के लिए मख़मली बिस्तर सजा दिए।
फिर हुआ यूं कि अररिया से वापसी के बाद मैं अपनी इस स्मरणीय यात्रा की जो दास्तान आज लिखना चाहता था, वह पीछे चली गई। (संभव है कि कल मैं इस पर लिखूँ) परन्तु आज क़लम के हवाले है वह मंज़र जो आसमान की ऊंचाइयों पर उड़ान भरते हुए मेरी सोई हुई निगाहों ने देखा। हां, यह ख़्वाब ही हो सकता है, इसलिए कि वर्तमान हालात में ऐसी किसी भी हक़ीक़त की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
अपने देश के प्रधानमंत्री डा॰ मनमोहन सिंह की पिछली अमेरिका यात्रा नवम्बर 2009 में, मैं उनके साथ था, परंतु इस बार नहीं, वह इस समय अमेरिका में हैं और मैं भारत में। लेकिन मेरी निगाहें देखती क्या हैं कि मैं इस बार भी उनके साथ हूं और हमारे प्रधानमंत्री सभी सरकारी कार्यक्रम से हट कर एक अत्यंत निजी भेंट में व्यस्त हैं। इसे बस संयोग ही समझिए कि जैसे पिछली बार मैं अकेला था, जो उनके साथ डेलीगेशन में शामिल होने के बावजूद व्हाइट हाऊस के बाहर रह गया और इस बार भी मैं अकेला ही था, मगर उनके साथ व्हाइट हाऊस के भीतर, फिर मैं देखता क्या हूं कि हमारे प्रधानमंत्री उस ऐतिहासिक भेंट में अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा से कुछ इस तरह मुख़ातिब थे।
‘‘आदर्णीय श्री ओबामा साहब, मैं आपकी सेवा में अपनी और तमाम भारतीयों की ओर से सलाम अर्ज़ करता हूं। आपके राष्ट्रपति चुने जाने के बाद पांच महीने पूर्व जब मैं अमेरिका आया था तो आपने रेड कार्पेट बिछाकर मेरा स्वागत किया था। बहुत कुछ मेरे मन में था जो मैं उसी समय आपकी सेवा में अर्ज़ कर देना चाहता था, मगर रेड कार्पेट के ऊपर बिछे सुगंधित फूलों की खुशबू ने मुझे यह अवसर ही नहीं दिया कि मैं उन ख़ून के धब्बों की चर्चा करूं, जो उस रेड कार्पेट के नीचे छुपे होने के बावजूद भी मुझे मेरे मन की आँखों से साफ़ दिखाई दे रहे थे। क़दम-क़दम पर कभी मुझे अफ़ग़ानिस्तान में शहीद बेगुनाहों की सिस्कियां सुनाई देती थीं तो कभी ईराक़ियों की आहें।
आप जानते हैं कि मैं एक अत्यंत भावुक तथा शांति प्रिय देश का नागरिक हूं। एक ज़माना था, जब सारी दुनिया हमारे देश को अमन के गहवारे के रूप में देखती थी। शांति की तलाश में त्रृषि मुनी, संत इस धरती को अपना आशियाना बनाते थे, यह हमारे लिए गर्व की बात है और हमारी धरती की महानता भी कि कर्बला की जंग को रोकने के लिए हज़रत इमाम हुसैन ने यज़ीद की सेना के सामने अपने लशकर के साथ भारत चले आने का प्रस्ताव रखा था। मैंने कर्बला का उल्लेख इसलिए किया कि ख़ून में डूबे ईराक़ के साथ हमारी कुछ मधुर यादें जुड़ी हैं और एक कारण यह भी है कि हमारे देश की दूसरी सबसे बड़ी बहुसंख्यक आबादी पवित्र अरब की धरती के चप्पे-चप्पे से मानसिक लगाव रखती है, इसके अलावा हमारे ईराक़ तथा उसके नेता से पुराने मधुर संबंध भी रहे हैं। आपको याद होगा कि जाते-जाते अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जाॅर्ज वाॅकर बुश ने भी यह स्वीकार कर लिया था कि ईराक़ के मामले में उनसे ग़लती हुई है। सच यही है, जो आप भी जानते हैं और मैं भी जानता हूं, परंतु इस सिलसिले में आज भी मैं किसी बातचीत का इरादा नहीं रखता, इसलिए कि मुझे इस समय अपनी धरती की सुरक्षा की चिंता अधिक है। मैं उसे ख़ून में डूबने से बचाना चाहता हूं। मैं भारत का प्रधानमंत्री हूं इसलिए यह मेरी ज़िम्मेदारी है, मेरे देश और मेरी जनता की सुरक्षा की चिंता मेरे दायित्व की मांग है। आप जानते हैं कि 26 नवम्बर 2008 को हमारी धरती पर क्या क़हर टूटा। आप जानते हैं कि उस आतंकवादी हमले की साज़िश करने वालों में कौन-कौन सी ताक़तें शामिल हैं। आप जानते हैं कि डेविड कोलमैन हेडली जिसने जुर्म स्वीकार किया है, उसका संबंध किस-किस संस्था से और किस-किस प्रकार का है। मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि 9/11/2001 (11 सितम्बर 2001) की त्रासदी, जब एक आतंकवादी हमले में न्यूयार्क के वल्र्ड ट्रेड टाॅवर तबाहकर दिए गए थे, जिसके लिए ज़िम्मेदार क़रार दिया गया था, बिन लादेन और उसके आतंकवादी संगठन अलक़ायदा नामी संगठन को। लादेन चूंकि अमेरिकी गुप्तचर माध्यमों की सूचनाओं के अनुसार अफ़ग़ानिस्तान की तोरा-बोरा पहाड़ियों में छुपा हुआ था, इसलिए अमेरिकी सरकार ने अविलंब अफ़ग़ानिस्तान पर हमला करने का निर्णय कर लिया। 26/11 को भारत के 9/11 के रूप में देखने वाले आज मुुझसे यह प्रश्न करते हैं कि अगर अमेरिका आतंकवाद के विरुद्ध जंग में इतना गंभीर है कि वह एक आतंवादी को शरण देने के अपराध में उस देश पर हमला कर देता है तो फिर वह 26/11 के अपराधी को शरण क्यों दे रहा है और मैं उसके प्रत्यर्पण के लिए मांग क्यों नहीं कर रहा हूं या फिर मुझे उसकी आवश्यकता भी क्यों पड़ रही है? आप जानते हैं कि मैं भारत के इतिहास का वह पहला प्रधानमंत्री हूं जिसका संबंध अल्पसंख्यक समुदाय से है। अपने देश के बहुसंख्यकों का भरोसा क़ायम रखना, अन्य अल्पसंख्यकों की आशाओं पर पूरा उतरना, अपने देश की सुरक्षा, अपनी जनता की समृद्धि मेरा पहला फ़र्ज़ है, मेरा बुनियादी उद्देश्य। जिस समय मैं अमेरिका के साथ एटमी डील पर हस्ताक्षर कर रहा था, उस समय भी मेरे देश के अधिकांश ज़िम्मेदार लोग उसके पक्ष में नहीं थे। परंतु मैं उसे अपने देश तथा राष्ट्र के हित में समझता था, इसलिए मैंने उस डील पर हस्ताक्षर किए और आजकी यात्रा भी उसी को आगे बढ़ाने के लिए है। मैं आपके इस मिशन का समर्थन करता हूं जिसमें परमाणु हथियारों के प्रयोग पर प्रतिबंध तथा आतंकवाद के विरुद्ध जंग शामिल है। मैं इन दोनों बातों पर आपसे सहमत हूं, मगर इस युद्ध के मापदंड दो न हों। आपने पाकिस्तान को जो हथियार दिए, निःसंदेह आपके निकट वह तालिबान से लड़ने के लिए रहे होंगे, आतंकवाद पर क़ाबू पाने के लिए रहे होंगे, मगर जब उन हथियारों का प्रयोग हमारी धरती पर आतंकवाद के लिए होता है तो हमारी यह चिंता वाजिब है कि एक तरफ़ अमेरिका पाकिस्तान को भारत में आतंकवाद फैलाने के लिए ज़िम्मेदार भी मानता रहे और दूसरी ओर उसकी हर प्रकार से सहायता भी करता रहे। इस समय जब मैं आपसे यह बातचीत कर रहा हूं, ताशक़ंद में अपने देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मानसिक स्थिति का अनुमान है मुझे, उनकी वह अंतिम मुलाक़ात इतिहास के पन्नों में दर्ज है और मेरे दिल व दिमाग़ पर भी अंकित है। मुझे मालूम नहीं कि मेरी आजकी इस मुलाक़ात को इतिहास किन शब्दों में सुरक्षित रखेगा, परंतु मैं यह अवश्य सोच रहा हूं कि अगर इन क्षणों का वर्णन स्वर्ण अक्षरों में न लिखा जा सके तो कम से कम उसे काले अध्याय के रूप में तो न लिखा जाए, इसलिए कि मेरे जैसे व्यक्ति का भारत के इस महान पद के लिए चुनाव एक ऐतिहासिक घटना है। अगर यह चयन की प्रक्रिया मुझ तक पहुंची तो शायद इसका कारण रहा होगा, मेरी सादगी, मेरी शराफ़त, मेरी ईमानदारी, और मेरी स्पष्ट वादिता, संभवतः इसीलिए मुझे सभी का विश्वास प्राप्त रहा, जबकि न तो ऐसी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि मुझ से जुड़ी थी जो मुझे रातों रात इस पद तक पहुंचा देती और न मैं ज़मीन से जुड़ा कोई ऐसा राजनीतिज्ञ था जिसने भारत के गली कूचों में घूम-घूम कर जनता का इतना समर्थन प्राप्त किया हो, मैं निश्चित रूप से वह भाग्यशाली हूं कि समान रूप से साधारण और विश्ष्ठि लोगों ने मुझे पसंद किया तो केवल मेरी पार्टी ही नहीं, बल्कि विपक्षी दलों का भी मुझे विश्वास प्राप्त रहा, मैं इस विश्वास को टूटने नहीं देना चाहता। मैं इस पसंदीदगी को नापसंदीदगी में नहीं बदलते देखना चाहता। इसलिए यह सभी बातें आपके सामने रख रहा हूं। हम एक ऐसे लोकतांत्रिक देश हैं जहां दर्जनों धर्मों के मानने वाले सैकड़ों भाषाएं बोलने वाले एक साथ मिल कर रहते हैं, मीडिया हमारे लोकतंत्र का चैथा स्तंभ है और यह केवल कहने के लिए नहीं, उसे पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त है। वह जब प्रश्न करता है कि अनीता उदैया को क्यों गुप्त रूप से अमेरिका ले जाया गया? एफबीआई ने उससे क्या जानकारियां प्राप्त कीं? तो मीडिया को संतोषजनक उत्तर देना हमारी ज़िम्मेदारी होती है। हमारा मीडिया जब हमसे हेडली के प्रत्यार्पण के संबंध में बात करता है तो हमारी यह ज़िम्मेदारी होती है कि हम उनके हर प्रश्न का सटीक उत्तर दें। क्योंकि बहुत से प्रश्नों के उत्तर आपकी धरती से जुड़े हैं, आपकी न्याय व्यवस्था से जुड़े हैं, इसलिए हमें आपके सामने अत्यंत गंभीरता के साथ इन प्रश्नों को रखने का अधिकार है और हम आशा करते हैं कि आप हमें ऐसे सभी सवालों के जवाब उपलब्ध कराएं, इसलिए कि यह केवल मीडिया तथा भारतीय जनता को संतुष्ट करने के लिए ही आवश्यक नहीं हैं, अपितु आतंकवाद पर क़ाबू पाने के लिए भी आवश्यक है। हमारे लिए यह आश्चर्यजनक है कि इस प्रकार इस बदले हुए नाम और पिता के नाम के साथ डेविड कोलमैन हेडली को अमेरिकी नागरिक के रूप में पास्पोर्ट प्राप्त हुआ, उसमें कौन-कौन शामिल है, वह सब भारत में आतंकवादी हमले की साज़िश का हिस्सा हैं, इसलिए उनके अपराध को एक जाली पास्पोर्ट बनाने के अपराध के रूप में ही नहीं देखा जा सकता, बल्कि पास्पोर्ट जिस आतंकवादी प्रक्रिया को पूरा करने के उद्देश्य से बना, उसी परिदृश्य में देखना होगा। स्वीडन के कार्टूनिस्ट की हत्या का प्रयास और 1995 में पुरूलिया में गिराए गए हथियारों के अपराधी का इस समय स्वीडन में होना क्या आपस में कोई संबंध रखता है, आपके सहयोग से हमें इस प्रश्न का उत्तर चाहिए, 26/11 के आतंकवादी हमले में वानछित गतिविधियों के लिए क्षबद हाऊस (नरीमन हाऊस) और पुणे में हुए बम ब्लास्ट में क्षबद हाऊस की गतिविधियों और उनका हमारे देश में होने वाले आतंकवाद से क्या कोई संबंध है, यह जानकारी प्राप्त करने में हम आपका सहयोग चाहेंगे। आप अपनी गुप्तचर एजेंसियों के माध्यम से सच्चाई का पता लगाकर हमें सहयोंग दें। आतंकवाद के विरुद्ध जंग में हमारे लिए आपका यह व्यवहारिक सहयोग होगा। यह अंतिम तथा नम्र निवेदन है कि हम पाकिस्तान और चीन के साथ कैसे संबंध रखें, उसमें हमें उस समय तक कोई सुझाव न दिया जाए, जब तक कि हम मांग न करें। इसी प्रकार ईरान से आने वाली गैस पाइप लाइन का समझौता हमारा निजी मामला है, यह ईरान को और हमें तय करना है, इस संबंध में हम पर कोई नैतिक दबाव न डाला जाए। आप अच्छी तरह जानते हैं कि लशकर-ए-तैयबा हमारे देश में कई आतंकवादी हमलों के लिए ज़िम्मेदार है, और आप यह भी जानते हैं कि अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी सीआईए और एफबीआई के लशकर-ए-तैयबा से कितने घनिष्ट संबंध हैं। स्वयं डेविड कोलमैन हेडली ने अमेरिकी अदालत में अपना अपराध स्वीकार करते हुए इन संबंधों को माना है। यह किस प्रकार संभव है कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ी जाने वाली जंग में आतंकवादी संगठनों के साथ निकट संबंध भी हों और उनके विरुद्ध जंग लड़ने का दावा भी।
मैं जानता हूं कि यह तमाम बातें कुछ कड़वी और अप्रिय हो सकती हैं, परंतु आप अमेरिका के एक ऐतिहासिक व्यक्ति हैं, आपने भी इस पद पर पहुंच कर एक नया इतिहास रचा है अगर पूरी ईमानदारी और नम्रता के साथ मेरी इन बातों पर आप विचार करेंगे तो निश्चित रूप से आप महसूस करेंगे कि आज की हमारी यह मुलाक़ात पूरी दुनिया के लिए शांति का एक संदेश होगी, और जब मैं यहां से विदा हो रहा हूंगा तो केवल भारत के प्रधानमंत्री के रूप में ही नहीं, बल्कि मेरे इस प्रयास को विश्व शांति के एक दूत के रूप में भी याद किया जाएगा, जिसका श्रेय निःसंदेह आपके सर होगा।
Tuesday, April 13, 2010
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1 comment:
GOOD POST ALWAYS
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