Saturday, March 20, 2010

आतंकवादी ‘‘हेडली’’ किसका एजेंट, लशकर-ए-तयबा या एफ.बी.आई?

अगर कोई मेरी हत्या करना चाहता है तो वह मुझ पर गोली चलाए, चाकू से वार करे या बम से उड़ा दे, क्या फर्क़ पड़ता है। अगर मेरी जान चली जाती है तो हथियार कोई भी हो, बस इसी तरह अगर कोई मेरे देश की दुशमनी पर अमादा है तो वह अलक़ायदा हो, लश्कर-ए-तयबा, एफ बी आई या सी आई ए क्या अंतर पड़ता है। अगर मेरे देश के बेगुनाह नागरिकों की जान जाती है। मेरे देश में घृणा के हालात पैदा होते हैं, जगह जगह हिंसा फूट पड़ती है, हम एक तरफ आतंकवाद का शिकार हो जाते हैं और दूसरी तरफ साम्प्रदायिकता के। देश की शान्ति व अमन भंग हो जाते हैं। हम गृहयुद्ध के दहाने पर पहुंच जाते हैं। फिर एक बार देश विभाजन जैसी स्थितियां पैदा हो जाती हैं तो फिर यह अपराध लशकर-ए-तयबा की साजिश हो, अलकायदा की, एफ बी आई या सीआईए की जिन घरों का चिराग बुझ जाएगा हम उन्हें फिर से रौशन तो नहीं कर सकते। दिलों में नफरत की जो दीवारें खड़ी हो जाती हैं हम उन्हंे एक पल में मिटा तो नहीं सकते, हमारी दुशमनी पर अमादा हैं। पाकिस्तान अपने आतंकवादी संगठनों के द्वारा हमारे देश में बम धमाके करवा रहा है या फिर यह चाल अमेरिका की है और वह सीआईए और एफबीआई का इस्तेमाल कर अलकायदा और लशकर-ए-तयबा के द्वारा यह बम धमाके करवा रहा है। हम इसे कितना अलग अलग नजरों से देंखें । मैं जानता हूं मेरी बात पर बहुत से शक्तिशाली लोग क्रोधित हो जायेंगे, मैं क्यों लशकर-ए-तयबा और अलकायदा को एफबीआई और सीआइए की श्रेणी में रख रहा हूं क्यों उनकी भूमिका एक जैसी साबित करने का प्रयास कर रहा हूं। 26/11,2008 को मुम्बई के रास्ते भारत पर हुआ आतंकवादी हमला मेरी निगाहों के सामने है। इसका मुख्य अपराधी डेविड कोलमेन हेडली मेरी निगाहों के सामने है। रहा होगा वह अलकायदा या लशकर-ए-तयबा का एजेंट लेकिन भारत आया वह एक अमेरिकी की हैसियत से। आतंकवाद का निशाना बनाये जाने वाले स्थानों की निशानदेही की उसने एफबीआई एजेंट के रूप में। मुझे क्षमा करें यही वास्तविकता है उसकी जब जब पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लशकर-ए-तयबा में एफबीआई के द्वारा शामिल कराया गया तो वह एफबीआई के एजेंट के रूप में ही शामिल हुआ था। जब यह मादक द्रव्यों के अपराध में गिरफ्तार हुआ और छोड़ा गया तो उसी समय छोड़ा गया जब उसने अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई के लिए इस्तेमाल होने की रजामंदी दी थी। इसके बाद जो कुछ किया उसने एफबीआई एजेंट के रूप में किया। बदले हुए नाम और पैतृकता के साथ उसका जो पास्पोर्ट बना वह लशकर-ए-तयबा या अलकायदा के इशारे पर नहीं। एफबीआई या सीआईए के इशारे पर था। इसलिए कि पाकिस्तान के यह आतंकवादी संगठन अमेरिकी शासकों पर इस तरह प्रभाव नहीं डाल सकते की बदले हुए नामों और पैतृकता के साथ पास्पोर्ट जारी कराने में सफलता प्राप्त कर लें। फिर जिस तरह उसका बार बार भारत आगमन हुआ, भारत में लंबे समय तक ठहरा और अधिकतर स्थानों तक जाने का अवसर मिला। इसलिए कि हम उसे अमेरिकी नागरिक और गैरमुस्लिम समझते रहे, मुसलमान या पाकिस्तानी नहीं। लेकिन अमेरिकी सरकार तो यह अच्छी तरह जानती थी कि उसकी असलियत क्या है। यह कौन सोच सकता है कि पुरी दुनिया पर नज़र रखने वाली अमेरिकी खुफिया एजेंसियां अपने ही एजेंटों पर नजर न रखती हों। उनकी गतिविधियों से बेखबर हों। वह कब कहां क्यों और क्या कर रहे हैं, उनके इरादे क्या हैं इससे बेखबर हों। हमारा तो मानना है कि अपने एजेंटों की तमाम गतिविधियों , उनको दी गई जिम्मेदारी और इस जिम्मेदारी को निभाने का तरीका, सब कुछ इन खुफिया एजेंसियों के द्वारा ही तय होता है। किस तरह एक ऐसा आतंकवादी जिसने भारत में 9/11 जैसा हमला किया, आसानी से हमारे देश से निकल कर भागने में सफल हो गया। हम क़साब को पकड़े बैठे रहे और यही मानकर चलते रहे कि 26/11 के अपराध में मुख्य भूमिका अजमल आमिर कसाब की है, लशकर-ए-तयबा की है पाकिस्तान की है। हम कभी 10 की गिनती से आगे बढ़े ही नहीं। हम 11वें के नाम पर इस तरह शोर मचाने लगते मानो इस 11वें व्यक्ति का मतलब हम ही से है। फिर यह डेविड कोल मैंन हेडली कहां से आ गया। एफबीआई और अमेरिका से इसका सम्बंध कैसे पैदा हो गया। फिर अमेरिका जो हमारा मित्र है उसने क्यों नहीं समय रहते हमें यह जानकारी दी? क्यों ऐसी स्थितियां पैदा हुई कि वह आसानी से भारत की सीमा से बहुत दूर चला जाये? उनकी शरण मे आ जाये? वह उसका भागने का रास्ता निकाल लें? अपने यहां उसकी गिरफ्तारी दिखायें? फिर अमेरिकी कानून के अनुसार सारी कहानी कुछ इस तरह तैयार करें कि न भारतीय अधिकारी उससे पुछ ताछ कर पायें न उसे भारत लाया जा सके। उसे वह जब तक चाहें अपनी कैद में रखें और हो सकता है यह कैद भी दुनिया दिखावे की हो। जब कोई इससे मिल ही नहीं सकता तो कब और कहां वह एक और बदले हुए नाम से अमेरिका की किसी ऐशगाह में शानदार जिन्दगी गुजारता रहे, हम डेविड कोलमैन पर नजर रखें उसके नाम के लकीर पीटते रहें। उसका एक फोटो भी हमारे पास न हो और वह किसी राबर्ट विलियम के नाम से फिर अमेरिका के किसी शहर में नये सिरे से अपनी जिन्दगी शुरू कर चुका हो और यह भी संभव है कि जरा सी प्लास्टिक सर्जरी करा कर अपने चेहरे में थोड़ा सा परिवर्तन कराके फिर हमारे देश में चला आये। कोई नया आतंकवादी हमला प्लान करने के लिए नये नाम और नई पैतृकता के साथ। आखिर भारत का चप्पा चप्पा उसने देखा है। वह हमारी कमजोरियां जानता है। बच निकलने के तरीके जानता है । उसे अपने अमेरिकी आकाओं पर पूरा भरोसा है जो बार बार उसे गिरफ्तार करते हैं और छोड़ देते हैं। हो सकता है कि वह अपनी गिरफ्तारी और रिहाई को इसी अंदाज में देखता हो। जैसे हमारे कुछ राजनीतिज्ञ सुबह को गिरफ्तार होते हैं और शाम को छूट जाते हैं फिर फूल मालाओं से उनका स्वागत होता है। हो सकता है भारत की दुशमनी पर तैनात करने वाले उसकी सफलता के बाद उसका ऐसा ही स्वागत करते हों। यह गिरफ्तारी और मुकदमें का नाटक केवल दुनिया को दिखाने के लिए हो।


मैंने इस संदर्भ में कई लेख लिखे हैं। आज वह सब मेरे सामने है। कल जब बटला हाउस इनकाउन्टर में मारे गये आतिफ और साजिद की पोस्टमार्टम रिपोर्ट देख रहा था तो इस घटना के सम्बंध में मैने जो कुछ लिखा उसकी फाईल मेरे सामने थी और आज फिर एक बार इन लेखों के प्रकाशित अंश हवालों के साथ पाठकों की सेवा में पेश करना चाहता था और केवल पाठक ही क्यों, भारत सरकार और हमारे इस दृष्टिकोण से सोचने पर क्रोधित हो जाने वालों के सामने भी रखना चाहता था कि देखो जो कुछ हमने लिखा था वही सब तो अब पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी कह रही है लेकिन रात ही रात में हालात बदल गये। फिर बटला हाउस इनकाउन्टर का यह मामला पीछे चला गया। मैं इस पर कुछ और लिखता इसके पहले हेडली का मामला सामने आ गया और इसके साथ ही इस सिलसिले में लिखे गये मेरे लेखों की एक और फाईल मेरे सामने आ गई। जो कुछ मैंने बहुत पहले लिखा था वही अब डेविड हेडली और अमेरिका के मामले सामने आ रहा है। मैं कोई ज्योतिषी नहीं हूं। असाधारण बुद्धिमान और ऐसी अनोखी योग्यताओं का मालिक भी नहीं हूं जो मेरे सिवा किसी के पास नहीं हैं। मैं किसी खुशफहमी या गलतफहमी का शिकार नहीं हूं। अगर कोई व्यक्ति पूरी तरह ध्यान देकर अपनी कौम देश या मानवता की सुरक्षा को ज़ेहन में रखकर सोचेगा तो स्वंय यह तमाम बातें उसके मस्तिष्क में आने लगेंगी। क्या हमारी खुफिया एजेंसियों में अपनी कौम, देश या मानवता के लिए ऐसी भावना नहीं है। नहीं ऐसा नहीं सोचा जा सकता। फिर क्या मजबूरी उनके सामने है? क्या वह ऐसी मानसिकता रखते हैं कि लश्कर-ए-तयबा ,अलकायदा और पाकिस्तान से आगे बढ़कर सोचना ही नहीं है? या फिर एफबी आई, सीआईए और अमेरिका के बारे में वह चाहकर भी सोच नहीं पाते? हमारे देश के प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह अमेरिका के दौरे पर गये। फिर सउदी अरब के दौरे पर भी। आतंकवाद के प्रश्न पर दोनों जगह उनकी बात चीत हुई। सउदी अरब में यह बातचीत कितनी सार्थक थी इसका बेहतर अंदाजा तो हमारे प्रधान मंत्री को ही होगा। लेकिन अमेरिका में आतंकवाद के विषय पर बातचीत बहुत महत्वपूर्ण कही जा सकती है। इस बातचीत में क्या अनिता उदिय्या के प्रश्न पर भी बात हुई, इसके बारे में खबरें गर्म थी कि 26 नवम्बर 2008 को मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमलों में शामिल आतंकवादियों को देखने वाली वह अकेली चश्मदीद गवाह है और जिसे बहुत खुफिया तरीके से अमेरिका ले जाया गया था। क्या अमेरिकी यात्रा के दौरान और अमेरिकी प्रेसीडेन्ट बराक ओबामा से मुलाकात के दौरान बदले हुए नाम और पैतृकता, जाली पास्पोर्ट के द्वारा भारत आने वाले डविड कोल मैंन हेडली के बारे में कोई बात हुई जो मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमलों में शामिल पाया गया है हमें नहीं मालूम।


26/11 आतंकवादी हमले के बाद लगभग अमेरिका के जितने भी नेताओं और खुफिया एजेंसियों के अधिकारियों ने भारत का दौरा किया, पाकिस्तान पर हमले की बात जरूर कही अर्थात लगभग सब ने भारत के द्वारा पाकिस्तान पर हमला किये जाने का माहौल बनाया, उकसाया और बहुत हद तक अमादा किया। यह बुद्धिमानी थी भारत सरकार की कि उसने किसी अंतिम निर्णय पर पहुंचने से पहले जंग का रास्ता नहीं अपनाया। लेकिन जो माहौल बना उसमें पाकिस्तान के लिए बेहद नफरत और जंग के हालात पैदा हो गये थे, इस सच्चाई से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। आज हमारे सामने अजमल आमिर कसाब से भी बड़ा आतंकवादी चेहरा डेविड कोल मैंन हेडली का है। जिसे अमेरिका का समर्थन प्राप्त है। जिसने अपने गुनाहों को स्वीकार किया है। जिसने 26/11 को मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले में अपनी भूमिका को पूरी तरह स्पष्ट किया है। अब क्या कहेंगे अमेरिकी शासक और खुफिया संगठनों के अधिकारी। जो बात वह पाकिस्तान के सम्बंध में कह रहे थे क्या अब अपने सम्बंध में भी कह सकते हैं?
हमने माना कि जो सोच हम पाकिस्तान के लिए रखते हैं वह सोच हम अमेरिका के लिए नहीं रखते। पाकिस्तान के साथ जितने कड़वे लहजे में बात कर सकते हैं अमेरिका के बारे में नहीं। हम पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों अलकायदा, लशकर-ए-तयबा और खुफिया संगठन आईएसआई के हवाले से जो कुछ कह सकते हैं वह एफबीआई या सीआईए के सम्बंध में नहीं, पर क्या इससे किसी का अपराध छोटा हो जाता है। यह अलग बात है कि हम इस तेवर के साथ अमेरिका से बात न करें, लेकिन आतंकवाद का बहाना बनाकर अमेरिका ने पूरी दुनिया में जो आतंक का माहौल पैदा किया है उसे देख और समझकर भी क्या खामोश रह जाना चाहिए? क्या इस मामले को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नहीं उठाना जाना चाहिए? मेरे सामने इस समय टी.वी चैनल ‘आज तक’ की ताजा रिपोर्ट है जिसमें उसने डेविड कोलमैंन हेडली के नए बयान के हवाले से कुछ बिन्दु सामने रखे हैं। मैं अपने पाठकों की सेवा में उन्हें शब्दशः पेश कर देना चाहता हूं, इसके बाद आप मेरे कल के लेख में पढ़ेंगे डेविड कोल मैंन हेडली के सम्बंध में जो कुछ मैंने पिछले दिनों लिखा उसके महत्वपूर्ण अंश। वह इसलिए कि अगर समय रहते हमारी सरकार और खुफिया संगठनों ने इस ओर ध्यान दिया होता और इन शंकाओं को ज़हेन में रखा होता तो आज हम जिस दर्जा स्वंय को हेडली की सुपुर्दगी के मामले में लाचार और बेबस महसूस कर रहे हैं संभवतः यह स्थिति न होती और हमने कोई रास्ता निकाल लिया होता।


गुनाह कुबूल मौत की सज़ा से बचा हेडलीः ‘आज तक’
पाकिस्तान के एक पूर्व राजनयिक और फिलाडेलफिया के एक सोशलाईट के पुत्र हेडली ने अपने उपर लगे सभी 12 आरोपों में अपना अपराध स्वीकार कर लिया है। इस मामले की सुनवाई लगभग आधे घंटे तक चली। एफबीआई ने शिकागो के रहने वाले 49 वर्षीय हेडली को पिछले वर्ष 3 अक्तूबर को गिरफ्तार किया था।

हेडली ने अमेरिकी जज हेरीलेनिन ब्योर को बताया कि वह अपना पिछला बयान बदलते हुए अपने अपराध को स्वीकार करना चाहता है। समझा जाता है कि हेडली ने सजा-ए-मौत से बचने के लिए और कम व आसान सज़ा पाने के लिए अपना अपराध स्वीकार किया है। बहरहाल संघीय अभियोजकों के साथ हुए समझौते के अनुसार उसे सजा-ए-मौत नहीं दी जायेगी और उसको भारत,पाकिस्तान व डेनमार्क के सुपुर्द भी नहीं किया जायेगा। समझौते के अनुसार वह आतंकवाद के विरूद्ध जांच में सरकार को सहयोग देगा।

पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी नागरिक और लशकर -ए-तयबा के आतंकवादी डेविड कोलमैन हेडली ने शिकागो की एक अदालत के सामने अपनी सजा कम करने के लिए की गई अपील में अमेरिका के साथ सहयोग करने का विश्वास दिलाया है।
अपने 35 पृष्ठों पर आधारित शपथ पत्र में हेडली ने अमेरिकी सरकार के साथ सहयोग के अपने पिछले रिकार्ड का हवाला दिया जब उसे 1998 में अमेरिकी ड्रग इन्फोर्समेंट एजेंसी ने गिरफ्तार किया था।

शपथ पत्र कहता है कि हेडली के पूर्व बयान और भविष्य में संभावित सहयोग को देखते हुए अमेरिका के अटार्नी जनरल ने अलीनायके नार्दन ज़िले के अमेरिकी अटार्नी को हेडली के विरूद्ध मौत की सजा की मांग नहीं करने के लिए नामजद किया है।
शपथ पत्र के अनुसार हेडली यह समझता है कि अगर वह इस करार को तोड़ता है, इसका उल्लंघन करता है तो ऐसी स्थिति में सरकार इस समझौते को निष्प्रभावी कर सकती है तब सरकार मौत की सजा की मांग न करने के अपने फैसले को मानने के लिए विवश नहीं होगी।

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