पिछले दो दिनों में हमने प्रकाशित किया डेविड कोलमैन हेडली के आरोप पत्र के प्रमुख अंश..... और अब हमप्रकाशित करने जा रहे हैं 26 नवम्बर 2008 को मुम्बई के रास्ते भारत पर हुए आतंकवादी हमले के एक मात्रजीवित गिरफतार आतंकवादी अजमल आमिर क़साब का इक़बालिया बयान। यद्यपि अब हमें यह सोचना पड़ेगाकि क्या अब भी अजमल आमिर क़साब को उस आतंकवादी हमले का एक मात्र जीवित पकड़ में आया आतंकवादीकहें, क्योंकि अब तो डेविड हेडली और तहव्वुर हुसैन राना जैसे नाम भी सामने आ चुके हैं और अब शायद यह सूचिऔर लम्बी हो जाए। फिर भी हेडली के आरोप पत्र और क़साब का इक़बालिया बयान एक साथ सामने रखने के पीछेहमारा उद्देश्य है भारत के विरुद्ध इस साज़िश की तह तक पहुंचना, इसलिए प्रतीक्षा कीजिए, शायद कुछ ऐसी बातेंसामने आएं कि आप ही नहीं भारत सरकार और इस साज़िश को रचने वाले भी सोचने के लिए विवश हों।
जीवित रह जाने वाले एकमात्र आतंकवादी की ज़बानी दहला देने वाली इन घटनाओं को आपके सामने प्रस्तुतकिया जा रहा है जो उसने पुलिस के सामने बयान की हैं।
आतंकवाद के आरोपी मोहम्मद अजमल आमिर क़साब का बयानः आयु 21 साल, पेशाः मज़दूरी, घर का पताःफरीद कोट, तहसील दीपालपुर, ज़िला ओकाड़ा, राज्य पंजाब, पाकिस्तान।
मैं अपने जन्म से ही उपरोक्त पते पर रहा हूं। मैंने कक्षा चैथी तक सरकारी प्राइमरी स्कूल में शिक्षा प्राप्त की है।
2000 में स्कूल छोड़ने के बाद मैं लाहौर चला गया। लाहौर में मेरा भाई गली न. 54, कमरा न.12 में यादगारमिनार के पास तौहीदाबाद में रहता है। 2005 तक मैं विभिन्न स्थानों पर मज़दूरी करता रहा। इस बीच मैं अपनेपैतृक गांव भी आता-जाता रहा। 2005 में मेरा अपने बाप से झगड़ा हो गया, जिसके बाद मैंने घर छोड़ दिया औरअली हजू़री के दरबार लाहौर में रहने लगा।
इस जगह घर से भाग कर आने वाले लड़कों को रखा जाता है और वहां से उनको विभिन्न स्थानों पर कार्य करने केलिए भेजा जाता है। एक दिन वहां शफ़ीक़ नाम का एक व्यक्ति आया और मुझे अपने साथ ले गया। वह कैटरिंगहाउस चलाता था। वह झेलम का रहने वाला था। मैं उसके साथ दैनिक वेतन पर कार्य करने लगा। मुझे प्रतिदिनरूपये मिलते थे। कुछ समय बाद मुझे प्रतिदिन 200 रूपये मिलने लगे, मैंने उसके यहां 2007 तक कामकिया।
जिस समय मैं शफ़ीक़ के यहां कार्य कर रहा था, उसी समय मेरी मुलाक़ात मुज़फ्फर लाल ख़ान से हुई जिसकीआयु 22 वर्ष थी। वह पाकिस्तान के सूबा-ए-सरहद के ज़िला और तहसील अटक के रोमिया गांव का रहने वालाथा। हम दोनों अच्छी कमाई नहीं कर पा रहे थे। इसलिए हम दोनों ने लूटपाट और डकैती का प्रोग्राम बनाया ताकिहम लोग एक बड़ी रक़म कमा सकें। उसके बाद हम लोगों ने कामकाज छोड़ दिया।
उसके बाद हम लोग रावलपिंडी गए और वहां हम बंगलादेशी कालोनी में एक फ्लैट किराए पर लेकर रहने लगे।अफज़ल ने एक ऐसे घर की निशानदही की, जहां हम बड़ा हाथ मार सकते थे।
उसने पूरे क्षेत्र का सर्वे करके एक नक़्शा तैयार किया। अब हमको आग्नेयअस्त्रों की आवश्यकता थी। अफज़ल नेकहा कि वह अपने पैतृक गांव से आग्नेयअस्त्र ख़रीद सकता है परन्तु उनको वहां से लाने में बहुत ख़तरा है क्योंकिगांव में लगातार छापे पड़ते रहते हैं।
हथियारों की तलाश के दौरान बक़रा ईद के दिन हमने रावलपिंडी के राजा बाज़ार क्षेत्र में लशकर-ए-तैयबा कास्टाॅल देखा। हमने सोचा कि अगर हम हथियार प्राप्त कर भी लें तो उनको चला नहीं सकेंगे। इसलिए हम लोगों नेहथियार चलाने की टेªनिंग लेने के लिए लशकर-ए-तैयबा में शामिल होने का निर्णय लिया।
इस बारे में जानकारी प्राप्त करने के बाद हम लशकर-ए-तयबा के कार्यालय पहुंच गए। वहां हमारी एक व्यक्ति सेभेंट हुई, हमने उससे कहा कि हम लशकर में शामिल होना चाहते हैं। उसने हमसे कुछ प्रश्न किए और हमारे नामपते नोट करने के बाद अगले दिन आने को कहा।
अगले दिन हम लोग फिर लशकर-ए-तैयबा के कार्यालय पहुंच गए और उसी व्यक्ति से मिले। वहां एक दूसरा व्यक्तिभी मौजूद था।
उसने हमको 200 रूपये और कुछ रसीदें दीं।
फिर उसने हमको कुरदके में स्थापित ‘मर्कज़-ए-तैयबा’ कहे जाने वाले स्थान का पता देकर वहां जाने को कहा, जहां लशकर-ए-तैयबा का टेªनिंग कैम्प स्थित है। हम लोग वहां बस से पहंुचे। हम लोगों ने वे रसीदें गेट परदिखाई जो हमको दी गई थी। हमको प्रवेश करने की अनुमति मिल गई। प्रवेश द्वार पर दो फार्म भरे गए जिनमेंहमारे बारे में जानकारी नोट की गई। उसके बाद हम को कैम्प के असल इलाक़े में ले जाया गया। उस जगह हमेंपहले 21 दिन की टेªनिंग के लिए चुना गया जिसको दौरा-ए-सूफा कहा गया। दूसरे ही दिन से हम लोग ट्रेनिंग प्राप्तकरने लगे। प्रतिदिन का कार्यक्रम निम्नलिखित थाः
4.15 जागने का अलार्म और सुबह की नमाज़।
8.00 बजे नाशता।
8.30 से 10.00 तक कुरान और हदीस पर मुफ्ती सईद का लैक्चर।
10.00 से 12.00 तक विश्राम।
12.00 से 13.00 तक दोपहर का भोजन।
13.00 से 14.00 नमाज़।
14.00 से 16.00 तक विश्राम।
16.00 से 18.00 पी.टी और खेलकूद, इंस्ट्रक्टर फ़ज़लुल्लाह।
18.00 से 20.00 नमाज़ और दूसरे कार्य।
20.00 से 21.00 रात्रि भोजन।
इस ट्रेनिंग के पूरे होने के बाद हम को टेªनिंग के दूसरे दौरा-ए-अमा के लिए चुना गया।
यह टेªनिंग भी 21 दिन की थी। उसके बाद हमें एक सवारी द्वारा बटल गांव के मंसेरा नामी क्षेत्र में ले जाया गया।यहां पर हम को हर प्रकार के हथियार चलाने की 21 दिन की ट्रेनिंग दी गई। यहां का प्रतिदिन का प्रोग्रामनिम्नलिखित थाः
4.15 से 5.00 जागने का अलार्म और नमाज़।
05.00 से 6.00 पी.टी इस्ट्रक्टर अबुअब्बास।
8.00 बजे नाशता
08.30 से 11.30 तक हथियार चलाना,
टेªनर अब्दुर्रहमान। हथियार ए.के-47, ग्रीन ज़ीरो, एस.के.एस, यूज़ी गन, पिस्तौल और रिवाल्वर।
11.30 से 12.00 तक विश्राम।
12.00 से 13.00 तक दोपहर का भोजन।
13.00 से 14.00 तक नमाज़
14.00 से 16.00 तक आराम
16.00 से 18.00 तक पी.टी
18.00 से 20.00 नमाज़ और अन्य कार्य
20.00 से 22.00 डिनर
यह प्रशिक्षण पूर्ण होने के पश्चात हमें बताया गया कि अब हमें एडवांस ट्रेनिंग दी जाएगी लेकिन इससे पहले हमें दोमहीनें ख़िदमत में गुज़ारने होंगे। (ख़िदमत एक प्रकार का स्वयंसेवी कार्य है जो प्रशिक्षण लेने वालों को उनकीइच्छानुसार दिया जाता है।) हम ख़िदमत पर राज़ी हो गए।
....................................(जारी)
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जीवित रह जाने वाले एकमात्र आतंकवादी की ज़बानी दहला देने वाली इन घटनाओं को आपके सामने प्रस्तुतकिया जा रहा है जो उसने पुलिस के सामने बयान की हैं।
आतंकवाद के आरोपी मोहम्मद अजमल आमिर क़साब का बयानः आयु 21 साल, पेशाः मज़दूरी, घर का पताःफरीद कोट, तहसील दीपालपुर, ज़िला ओकाड़ा, राज्य पंजाब, पाकिस्तान।
मैं अपने जन्म से ही उपरोक्त पते पर रहा हूं। मैंने कक्षा चैथी तक सरकारी प्राइमरी स्कूल में शिक्षा प्राप्त की है।
2000 में स्कूल छोड़ने के बाद मैं लाहौर चला गया। लाहौर में मेरा भाई गली न. 54, कमरा न.12 में यादगारमिनार के पास तौहीदाबाद में रहता है। 2005 तक मैं विभिन्न स्थानों पर मज़दूरी करता रहा। इस बीच मैं अपनेपैतृक गांव भी आता-जाता रहा। 2005 में मेरा अपने बाप से झगड़ा हो गया, जिसके बाद मैंने घर छोड़ दिया औरअली हजू़री के दरबार लाहौर में रहने लगा।
इस जगह घर से भाग कर आने वाले लड़कों को रखा जाता है और वहां से उनको विभिन्न स्थानों पर कार्य करने केलिए भेजा जाता है। एक दिन वहां शफ़ीक़ नाम का एक व्यक्ति आया और मुझे अपने साथ ले गया। वह कैटरिंगहाउस चलाता था। वह झेलम का रहने वाला था। मैं उसके साथ दैनिक वेतन पर कार्य करने लगा। मुझे प्रतिदिनरूपये मिलते थे। कुछ समय बाद मुझे प्रतिदिन 200 रूपये मिलने लगे, मैंने उसके यहां 2007 तक कामकिया।
जिस समय मैं शफ़ीक़ के यहां कार्य कर रहा था, उसी समय मेरी मुलाक़ात मुज़फ्फर लाल ख़ान से हुई जिसकीआयु 22 वर्ष थी। वह पाकिस्तान के सूबा-ए-सरहद के ज़िला और तहसील अटक के रोमिया गांव का रहने वालाथा। हम दोनों अच्छी कमाई नहीं कर पा रहे थे। इसलिए हम दोनों ने लूटपाट और डकैती का प्रोग्राम बनाया ताकिहम लोग एक बड़ी रक़म कमा सकें। उसके बाद हम लोगों ने कामकाज छोड़ दिया।
उसके बाद हम लोग रावलपिंडी गए और वहां हम बंगलादेशी कालोनी में एक फ्लैट किराए पर लेकर रहने लगे।अफज़ल ने एक ऐसे घर की निशानदही की, जहां हम बड़ा हाथ मार सकते थे।
उसने पूरे क्षेत्र का सर्वे करके एक नक़्शा तैयार किया। अब हमको आग्नेयअस्त्रों की आवश्यकता थी। अफज़ल नेकहा कि वह अपने पैतृक गांव से आग्नेयअस्त्र ख़रीद सकता है परन्तु उनको वहां से लाने में बहुत ख़तरा है क्योंकिगांव में लगातार छापे पड़ते रहते हैं।
हथियारों की तलाश के दौरान बक़रा ईद के दिन हमने रावलपिंडी के राजा बाज़ार क्षेत्र में लशकर-ए-तैयबा कास्टाॅल देखा। हमने सोचा कि अगर हम हथियार प्राप्त कर भी लें तो उनको चला नहीं सकेंगे। इसलिए हम लोगों नेहथियार चलाने की टेªनिंग लेने के लिए लशकर-ए-तैयबा में शामिल होने का निर्णय लिया।
इस बारे में जानकारी प्राप्त करने के बाद हम लशकर-ए-तयबा के कार्यालय पहुंच गए। वहां हमारी एक व्यक्ति सेभेंट हुई, हमने उससे कहा कि हम लशकर में शामिल होना चाहते हैं। उसने हमसे कुछ प्रश्न किए और हमारे नामपते नोट करने के बाद अगले दिन आने को कहा।
अगले दिन हम लोग फिर लशकर-ए-तैयबा के कार्यालय पहुंच गए और उसी व्यक्ति से मिले। वहां एक दूसरा व्यक्तिभी मौजूद था।
उसने हमको 200 रूपये और कुछ रसीदें दीं।
फिर उसने हमको कुरदके में स्थापित ‘मर्कज़-ए-तैयबा’ कहे जाने वाले स्थान का पता देकर वहां जाने को कहा, जहां लशकर-ए-तैयबा का टेªनिंग कैम्प स्थित है। हम लोग वहां बस से पहंुचे। हम लोगों ने वे रसीदें गेट परदिखाई जो हमको दी गई थी। हमको प्रवेश करने की अनुमति मिल गई। प्रवेश द्वार पर दो फार्म भरे गए जिनमेंहमारे बारे में जानकारी नोट की गई। उसके बाद हम को कैम्प के असल इलाक़े में ले जाया गया। उस जगह हमेंपहले 21 दिन की टेªनिंग के लिए चुना गया जिसको दौरा-ए-सूफा कहा गया। दूसरे ही दिन से हम लोग ट्रेनिंग प्राप्तकरने लगे। प्रतिदिन का कार्यक्रम निम्नलिखित थाः
4.15 जागने का अलार्म और सुबह की नमाज़।
8.00 बजे नाशता।
8.30 से 10.00 तक कुरान और हदीस पर मुफ्ती सईद का लैक्चर।
10.00 से 12.00 तक विश्राम।
12.00 से 13.00 तक दोपहर का भोजन।
13.00 से 14.00 नमाज़।
14.00 से 16.00 तक विश्राम।
16.00 से 18.00 पी.टी और खेलकूद, इंस्ट्रक्टर फ़ज़लुल्लाह।
18.00 से 20.00 नमाज़ और दूसरे कार्य।
20.00 से 21.00 रात्रि भोजन।
इस ट्रेनिंग के पूरे होने के बाद हम को टेªनिंग के दूसरे दौरा-ए-अमा के लिए चुना गया।
यह टेªनिंग भी 21 दिन की थी। उसके बाद हमें एक सवारी द्वारा बटल गांव के मंसेरा नामी क्षेत्र में ले जाया गया।यहां पर हम को हर प्रकार के हथियार चलाने की 21 दिन की ट्रेनिंग दी गई। यहां का प्रतिदिन का प्रोग्रामनिम्नलिखित थाः
4.15 से 5.00 जागने का अलार्म और नमाज़।
05.00 से 6.00 पी.टी इस्ट्रक्टर अबुअब्बास।
8.00 बजे नाशता
08.30 से 11.30 तक हथियार चलाना,
टेªनर अब्दुर्रहमान। हथियार ए.के-47, ग्रीन ज़ीरो, एस.के.एस, यूज़ी गन, पिस्तौल और रिवाल्वर।
11.30 से 12.00 तक विश्राम।
12.00 से 13.00 तक दोपहर का भोजन।
13.00 से 14.00 तक नमाज़
14.00 से 16.00 तक आराम
16.00 से 18.00 तक पी.टी
18.00 से 20.00 नमाज़ और अन्य कार्य
20.00 से 22.00 डिनर
यह प्रशिक्षण पूर्ण होने के पश्चात हमें बताया गया कि अब हमें एडवांस ट्रेनिंग दी जाएगी लेकिन इससे पहले हमें दोमहीनें ख़िदमत में गुज़ारने होंगे। (ख़िदमत एक प्रकार का स्वयंसेवी कार्य है जो प्रशिक्षण लेने वालों को उनकीइच्छानुसार दिया जाता है।) हम ख़िदमत पर राज़ी हो गए।
....................................(जारी)
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pad rahe hain
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