‘‘पाकिस्तान से मुहब्बत?
आज के हालात में यह शब्द अजीब से लगते हैं।
जब हम सीमा के दूसरी ओर की बात करते हैं तो आतंक, घृणा, और कट्टरता जैसे शब्द एक दम हमारे दिमाग़ में आ जाते हैं, पिछले 6 दशकों से यह शब्द रोज़ाना हमारे कानों में डाले जाते हैं और पिछले एक वर्ष से तो यह शब्द बहुत अधिक सुनाई दे रहे हैं।
और हमारा मन, इस न झुटलाई जाने वाली सच्चाई से है कि सीमा के उस पार के लोग भी बहरहाल हम जैसे ही हैं। तो प्रश्न यह उठता है कि क्या हमारा हाथ नाराजगी प्रकट करने के अलावा मुबारकबाद के लिए उठ सकता है।
लेकिन प्रश्न यह है कि पहले हाथ कौन बढ़ायेगा, कुछ लोग पूछेंगे कि दोस्ती का हाथ कैसे बढ़ायें और अधिकतर पूछेंगे कि दोस्ती की बात क्यों की जाए? हम दोस्ती का हाथ क्यों बढ़ाएं? हमको उनकी आवश्यकता ही क्या है? क्या उनको पहले अपने क्रियाकलापों के लिए क्षमायाचना नहीं करनी चाहिए। इन सब प्रश्नों का एक उत्तर है कि क्षमा से अधिक आसान और संक्षिप्त शब्द सलाम है।
इसके अलावा एक बात और ध्यान देने योग्य है कि ऐसा कोई नियम नहीं है जो कहता हो कि दूसरी किताब खोलने से पहले पहली किताब बन्द कर देनी चाहिए, वह किताब इतिहास की ही क्यों न हो।
शान्ति स्थापना की उम्मीद के साथ टाइम्स ऑफ़ इंडिया पाकिस्तान के जंग ग्रुप के साथ मिलकर एक साहसिक कदम बढ़ा रहा है, जिसका उद्देश्य राजनीति, आतंक और कट्टरपन को भुलाकर दोनों देशों की जनता को सांस्कृतिक, भावनात्मक और शान्ति की राह पर साथ लेकर चलना है।
राजनीति, आतंकवाद और कट्टरता को छोड़कर हम सीमा के दोनों ओर सभ्यता सांस्कृतिक, तालमेल, बिज़नेस सेमिनारों, संगीत और साहित्यक प्रोग्रामों द्वारा मानवता के सम्बंध को मजबूत करें और मानवता को एक अवसर दें।
इस उम्मीद के साथ कि एक दिन भारत, पाकिस्तान और मुहब्बत के शब्द जब एक जगह होंगे तो अटपटे न लगेंगे।’’उपरोक्त पंक्तियों में आपने जो कुछ पढ़ा, वह एक विज्ञापन है अंग्रेजी दैनिक ‘‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’’ का, जो शुक्रवार के दिन यानी 1 जनवरी 2010 को प्रथम पृष्ठ पर और पूरे पृष्ठ पर प्रकाशित हुआ। अगर यह विज्ञापन या यह तहरीर मेरी होती और मैने ‘रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा’’ या साप्ताहिक ‘‘आलमी सहारा’’ को पाकिस्तान के किसी भी अखबार के साथ जोड़ने का प्रयास किया होता तो शायद साम्प्रदायिक शक्तियों ने एक तूफान खड़ा कर दिया होता। बहरहाल मैं मुबारकबाद पेश करता हूं ‘‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया ग्रुप को, नये साल में की गई इस खूबसूरत पहल के लिए।
जैसा कि मैंने पहले ही निश्चय किया हुआ था कि मैं अपने इस क़िस्तवार लेख के सिलसिले को भारत में होने वाले बम धमाकों की तफ़्सील पेश करने के बाद पाकिस्तान में होने वाले बम धमाकों का भी उल्लेख करूंगा। अल्लाह का शुक्र है कि वर्ष 2009 में हमारा देश ऐसी अप्रिय घटनाओं से सुरक्षित रहा, लेकिन अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान के बारे में हम ऐसा नहीं कह सकते चूंकि उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार नया पास्पोर्ट बनने के बाद डेविड कोलमैन हेडली ने 2006 से 2009 के बीच भारत के साथ-साथ पाकिस्तान की भी यात्राऐं कीं। इसलिए मैं समझना और समझाना चाहता था कि क्या यह बम धमाके (बात चाहे भारत की हो या पाकिस्तान की) उन्हीं तारिखों के आस पास हुए, जिन तारीखों मंे डेविड हेडली ने इन देशों की यात्रा की तो परिणाम अत्यन्त चैंका देने वाले सामने आये। मैं इस छोटे से लेख के साथ यह तफसील प्रकाशित कर रहा हूं , जिसे पढ़ने और देखने के बाद आपके लिए यह समझना कतई मुश्किल नहीं होगा कि डेविड कोलमैन हेडली की हर यात्रा भारत और पाकिस्तान के लिए कितनी विनाशकारी सिद्ध हुई।
हेडली की गिरफ्तारी और डेनमार्क के कार्टूनिस्ट पर हमला फिर सूर्खियों में है। जहां तक मैं समझता हूं ‘‘सैटेनिक वर्सेज’’ लिखने के बाद सलमान रूश्दी के विरूद्ध इमाम खुमैनी सहित विभिन्न उलेमा ने फतवे दिये, मगर कुछ दिन बाद ही मामला दब गया, और अब वह सारी दुनिया में घुमता फिरता है, कहीं न तो उसका उल्लेख आता है, न उस पर हमले की बात सुनने को मिलती है। ऐसा ही उस कार्टूनिस्ट के मामले में भी है। जब कार्टून छपा तब बवाल मचा, फिर खामोशी छा गई। इधर तो कुछ ऐसा था ही नहीं जिससे उस कार्टूनिस्ट को मारने जैसी कोई बात सामने आती, इसलिए बार बार यह बात मन में आती है कि शायद यह डेविड कोलमैन हेडली को एक ऐसा मुसलमान सिद्ध करने की कोशिश है जो जेहाद के नाम पर किसी की भी जान लेने को उतारू है। अगर वह ऐसा ही था, तब फिर सोचना होगा कि अमेरिका में रहते हुए क्या उसने कभी जार्ज डब्ल्यू बुश के बारे में अपने दृष्टिकोण सामने रखे।
एक और बड़ी अजीब बात यह भी है कि जब आतंकवादी हमले भारत में होते हैं तो सहजता से कह दिया जाता है कि यह गुजरात में मुसलमानों के नरसंहार का बदला है या बाबरी मस्जिद की शहादत पर प्रतिक्रिया और फिर कुछ साम्प्रदायिक तत्व उन की आवाज़ में आवाज़ मिलाकर इस दुषप्रचार को और मजबूत कर देते हैं। परिणामस्वरूप जांच की दिशा बस उसी दायरे तक सीमित रहती है और फिर मुसलमानों की गिरफ्तारी और उन्हें जेल भेजने का सिलसिला शुरू हो जाता है। अगर कुछ पल के लिए हम इस दुषप्रचार को सच भी मान लें तो प्रश्न यह पैदा होता है कि पाकिस्तान में कौन सा गुजरात हुआ है? वहां क्यों इतने बम धमाके होते हैं और हो रहे हैं? मरने वाले भी मुसलमान? मारने वाले भी मुसलमान? न वहां गुजरात जैसे नरसंहार का मामला, न बाबरी मस्जिद जैसे किसी धर्मस्थल की शहादत की घटना? फिर क्यों मस्जिदों में नमाज़ियों की हत्या की जा रही है? यह लश्कर-ए-तयबा, अलकायदा जैसे संगठन आखिर क्यों एक इस्लामी देश पाकिस्तान के पीछे पड़ गये हैं जबकि सारी दुनिया में ढिंढोरा पीटा जाता है कि यह इसलामी आतंकवादी संगठन हैं हमें इस अत्यंत गंभीर मामले पर गहराई से सोचना होगा? मेरा कोई सम्बंध नहीं है पाकिस्तान से, कोई सहानुभूति नहीं, कोई लगाव नहीं, मगर हां मानवता से है, सम्बंध भी, सहानुभूति भी और मुहब्बत भी। मरने वाले अगर निर्दोष हैं तो उनका सम्बंध चाहे जिस मुल्क से हो, चाहे जिस धर्म से हो, हम उनसे असम्बंध नहीं रह सकते, इसलिए कि यह प्रश्न मानवता के अस्तित्व का है, मानवता की सुरक्षा का है, इस सिलसिले में लिखने और कहने के लिए अभी इतना कुछ बाकी है कि लगातार कई दिन तक निरंतर लिखते जाना होगा, मगर चूंकि आज डेविड कोलमैन हेडली की पाकिस्तान यात्राओं और इस बीच होने वाले बम धमाकों, हताहतों की तफ़्सील पेश करनी है इसलिए आज के इस लेख को यहीं समाप्त करना होगा। कल फिर सेवा में उपस्थित रहूँगा कुछ नई जानकारियों के साथ।
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