Wednesday, December 30, 2009

और अब सिलसिला साज़िश से परदा उठाने का

वर्ष 2009 के आख़री दिन अर्थात बृहस्पतिवार 31 दिसम्बर को प्रकाशित होने वाला मेरा लेख इनशाअल्लाह हमारे आदर्णीय इमामों के लिए तक़रीर का मवाद उपलब्ध कराएगा, यानी नव वर्ष के पहले दिन जुमा की नमाज़ से पूर्व जब वह देश को सम्बोधित कर रहे होंगे, तब भारत पर हो रहे आतंकवादी हमलों से संबंधित बातचीत करने के लिए.... मुस्लिम क़ौम के दामन पर लगे दाग़ को छुड़ाने के लिए ..... भारत के विरुद्ध षड़यंत्र रचने वालों तथा आतंकवादी हमलों में लिप्त असल अपराधियों को बेनक़ाब करने के लिए उनके पास इतने स्पष्ट प्रमाण होंगे, जिनकी अनदेखी किया जाना किसी के लिए भी संभव नहीं होगा। और इस प्रकार नव वर्ष का आरंभ हम राष्ट्रीय एकता का संदेश देने के लिए करेंगे जो इस समय की सबसे बडी़ आवश्यकता को पूरा करेगा और उसका आरंभ होगा मस्जिदों के मीनारों से। नमाज़ी जब अल्लाह की इबादत के बाद मस्जिदों से बाहर आएंगे और अपने देशवासियों के रू-बरू होकर उन्हें तथ्यों से भी अवगत कराएंगे और उनसे यह निवेदन भी कर सकेंगे कि आज हमारे देश का सम्मान और आज़ादी फिर एक बार ख़तरे में है, इसलिए यह सही समय है कि जब हम फिर एक बार स्वतंत्रता सेनानियों की तरह कंधे से कंधा मिलाकर अपने देश की सुरक्षा का संकल्प करें और इस साल के दौरान राष्ट्रीय एकता और देशप्रेम के गीतों के साथ अपनी यात्रा भी आरंभ करें और समाप्त भी।

26 नवम्बर 2008 को मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले इस समय हमारे लिए जांच का विषय हैं और जितनी गहराई से हम इस पर रिसर्च करते जाते हैं, आश्चर्यजनक रहस्योद्घाटन सामने आते जाते हैं। 1 जनवरी 2010 शुक्रवार को प्रकाशित होने वाला मेरा लेख उन आतंकवादी गतिविधियों की एक ऐसी सच्चाई आपके सामने रखेगा जो सारे देश को चैंका देगी, यह तथ्य भारत सरकार को नए सिरे से इस दिशा में सोचने के लिए विवश कर देगा, जिस पर अभी तक ध्यान ही नहीं दिया गया है और हिंदू भाइयों के मन मस्तिष्क में अभी तक इन आतंकवादी घटनाओं से संबंधित जो चित्र बसाई गई है, वह उस पर एक बार फिर विचार करने के लिए मजबूर होंगे और अतिसंभव है कि फिर इस षड़यंत्र से पर्दा कुछ इस तरह उठे कि हमारे इस लेख में उन्हें असल अपराधियों का चेहरा साफ़-साफ़ नज़र आने लगे।
डेविड कोलमैन हेडली उर्फ़ दाऊद गीलानी मुसलमान है, यहूदी है या ईसाई है, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। वह पाकिस्तानी है या अमरिकी, इससे भी कोई अंतर नहीं पड़ता उसका संबंध लशकर-ए-तय्यबा से है, अलक़ाएदा से या सी।आई.ए से, इससे भी कोई अंतर नहीं पड़ता। चैंकिए मत, मानता हूं कि सी.आई.ए के साथ संबंध सिद्ध हो जाने से काफी अंतर पड़ता है, मगर अभी ज़रा रुकिए। हमारे सामने पहली बात यह होनी चाहिए कि वह, 26 नवम्बर 2008 को भारत पर हुए आतंकवादी हमले में लिप्त था, इसलिए साफ़ सामने दिखाई देने वाला वह आतंकवादी चेहरा है, जो मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमलों के लिए ज़िम्मेदार है। अब उसके बाद प्रश्न यह पैदा होगा कि क्या वह केवल अपनी इच्छा से, अपने निर्णय पर अपनी आतंकवादी मानसिकता के कारण इस हमले में लिप्त था या वह केवल एक मोहरा था, एक हथियार था? तो जब तक हम इन पर्दे के पीछे रहने वाले अपराधियों तक नहीं पहुंचेंगे, जो आतंकवादी हमलों के प्रेरक हैं, उस समय तक आतंकवाद पर नियंत्रण नहीं पा सकेंगे। मुहरे पिटते रहेंगे, मुहरे मिटते रहेंगे। प्रेरक नए मुहरे ईजाद करते रहेंगे, उनके नाम, उनका धर्म, उनकी राष्ट्रीयता हमारे लिए हर बार एक नया धोखा होगी, ताकि हम उनके बुने इस जाल में उलझ कर रह जाएं और जो असल अपराधी हैं उनके चेहरे पर नक़ाब यूं ही पड़ी रहे। इसलिए नक़ाब-कुशाई की खोज में जब हम हेडली (तहव्वुर हुसैन राना की चर्चा बाद में करेंगे) की कुण्डी तलाश करने बैठे और यह समझने की कोशिश की कि आख़िर वह इतनी सहजता से बार-बार हमारे देश में प्रवेश करने और आतंकवादी हमलों को अंजाम देने में कैसे सफल हो गया तो सच्चाई सामने आई। आइये नज़र डालते हैं हम अपनी कमियों और दूसरों की चालाकियों पर, जिनका ख़ुलासा अत्यंत सुन्दरता के साथ किया है श्री बी॰ रमन ने, जो केन्द्रीय सरकार के केबिनेट सचिवालय में अतिरिक्त सचिव रह चुके हैं और वर्तमान में इंस्टीट्यूट फार ट्रोपिकल स्टडीज़ चिन्नई में निदेशक के पद पर नियुक्त हैं। क्योंकि वह स्वयं एक ब्यूरोक्रेट/डिप्लोमेट हैं, इसलिए उन कमियों को भलीभांति उजागर कर सकते हैं जो पासपोर्ट और वीज़ा से संबंधित आम आदमी की पकड़ में नहीं आती। हम यह उल्लेख इत्यादि इसलिए भी इकट्ठा कर रहे हैं और प्रकाशित कर रहे हैं कि जिनके मन हमारी ओर से साफ़ नहीं हैं, वह स्पष्ट रूप में समझ लें कि देश से प्रेम रखने वालों की सोच एक जैसी ही होती है, चाहे उनका धर्म कोई भी हो। मुलाहिज़ा करें वह तकनीकी त्रूटियां जिन्हें हम अपने कोन्सिलेट की चूक भी कह सकते हैं और हेडली के अभिभावकों की जालसाज़ी भी।


जब एक व्यक्ति अपना नाम बदलता है और पासपोर्ट के लिए आवेदन करता है तो उसके साथ यह पुष्टि पत्र आवश्यक होता है कि उस व्यक्ति ने इससे पूर्व अमुक नाम से और अमुक पासपोर्ट नं॰ से यात्रा की है। अगर शिकागो में भारतीय उच्च आयुक्त ने ध्यान के साथ उसके पासपोर्ट और वीज़ा आवेदन को देखा होता, जैसा कि नियमानुसार होता है, तो उन लोगों ने निम्नलिखित बातों का अवश्य नोटिस लिया होताः न।1- उसने भारतीय वीज़ा लेने से ठीक पहले अपने आवास को फ़्लेडेल्फ़िया से शिकागो स्थानान्तरित किया। दूसरे- उसने भारतीय वीज़ा लेने से ठीक पहले अपना नाम बदल कर नया पासपोर्ट प्राप्त कर लिया। तीसरे- उसके पिता मुसलमान थे और उनका नाम भी मुसलमानों की तरह ही था जबकि वीज़ा का आवेदन करने वाले का नाम ईसाईयों जैसा था।

उसके तुरंत बाद ही आवेदनकर्ता के साथ पर्सनल इंटरव्यू होता है, जिसमें उससे उन बिंदुओं पर प्रश्न किए जाते है। हम जानते हैं कि दूसरे देशों के वीज़ा के लिए भारत में उनके दूतावास में आवेदन देने पर कितने लोगों को पर्सनल इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता है और अगर पासपोर्ट की जांच पड़ताल में कहीं कोई संदेह की बात नज़र आ जाए तो गहन जांच की जाती है।

पूरी दुनिया के उच्च आयुक्त और इमेग्रेशन अधिकारी उस व्यक्ति को संदेह की दृष्टि से देखते हैं, जो नया पासपोर्ट प्राप्त करने के लिए अपना नाम तब्दील करता है। कट्टर देश जो आतंकवाद के संदिग्ध व्यक्तियों के साथ कठोरता से पेश आते हैं, उनके यहां वीज़ा के लिए आवेदन करते समय दो विशेष कॉलम ज़रूर भरने होते हैं। प्रश्न नं॰ 1- क्या आपने कभी दूसरे पासपोर्ट से यात्रा की है? अगर हां तो, विवरण दें। प्रश्न नं॰2- क्या आपने कभी अन्य नाम से यात्रा की है? यदि हां तो, विवरण दें। जैसे इन प्रश्नों के उत्तर में कोई संदेह पैदा होता है तो उसको साक्षातकार का सामना करना ही होता है। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि हेडली पाकिस्तानी नागरिक है या अमेरिकी नागरिक जो पाकिस्तान में पैदा हुआ या एक अमेरिकी नागरिक जो अमेरिका में पैदा हुआ। इस षड़यंत्र के आरंभिक चरणों से ही यह अपराधिक सबूत है कि उसने अपनी मुस्लिम पहचान को छुपाने के लिए नाम तब्दील किया और इस बात को उसकी यात्रा के आरंभ में शिकागो में ही पता चलाया जा सकता था न कि भारत में उसके आगमन के बाद।

इसके बावजूद भी अगर वह अमेरिकी नागरिक है, जो अमेरिका में पैदा हुआ तो भी उससे पूछताछ करने से हमें रोका नहीं जाना चाहिए। हम जानते हैं कि किस तरह अमेरिकी इमेग्रेशन अधिकारियों ने फ़िल्म अभिनेता शाहरुख़ ख़ान से लगभग 1 घंटे तक पूछताछ की। जबकि वास्तिविकता यह थी कि वह भारत के सम्मानित नागरिक हैं और अमेरिका के भारत के साथ अच्छे संबंध हैं इसके बावजूद उनसे प्रश्न करने से उनको रोका नहीं गया।


टूरिस्ट या बिज़नेस वीज़ा के लिए आवेदन करने वालों को पासपोर्ट के साथ कुछ अन्य दस्तावेज़ देने होते हैं। उसमें आनेजाने का हवाई जहाज़ का टिकट, उन शहरों के नाम जहां वह जाना चाहते है और वह स्थन जहां वह ठहरेगे, और भारत में उनको जानने वाले व्यक्ति की ओर से एक स्पांसरशिप का पत्र (चाहे वह मित्र, रिशतेदार या कॉर्पोरेट हाउस कोई भी हो) भी देना होता है। बिना इन काग़ज़ात के वीज़ा नहीं दिया जा सकता है जब तक कि आवेदन कर्ता उच्च आयुक्त को निजीतौर पर जानता न हो और वह उच्च आयुक्त का विश्वास प्राप्त करने की स्थिति में हो।

जब आवेदन कर्ता व्यवसायिक वीज़ा के लिए आवेदन करता है तो अतिरिक्त दस्तावेज़ों की जांच और गहनता के साथ की जाती है। शिकागो का षड़यंत्रह्न जिसके परिणाम में 166 लोगों को आतंकवादियों ने मारा, उसी दिन आरंभ हो गया था जिस दिन वह भारतीय उच्च आयुक्त के कार्यालय में अपनी मुस्लिम पहचान को छुपाने के लिए एक बदले हुए नाम और नए पासपोर्ट जिससे उसने कहीं भी इससे पूर्व यात्रा नहीं की थी और व्यवसायिक वीज़ा के लिए आवेदन किया। उसके वीज़ा से जुड़े तमाम काग़ज़ात उस षड़यंत्र का भेद जानने के लिए महत्वपूर्ण प्रमाण बन गए हैं। जिस समय एफबीआई ने भारत सरकार को हेडली की गिरफ़तारी और उसकी यात्रा के बारे में अक्तूबर में बताया था उसी समय विदेश मंत्रालय को उच्च आयुक्त से उसके दस्तावेज़ एक मुहरबंद लिफ़ाफ़े में भारत भेजने के लिए कहना चाहिए था ताकि जांच एजंसियां जांच कर सकें। यह आश्चर्यजनक है कि लगभग 2 माह तक ऐसा नहीं किया गया।

अब हमें भारत से बाहर अपने उच्च आयोग के सुरक्षा केन्द्र से वीज़ा आवेदन से जुड़े काग़ज़ात को प्राप्त करने के बारे में असंतोषजनक कहानी बताई जा रही है। मैंने विदेशों में 8 वर्षों तक वीज़ा अधिकारी के रूप में कार्य किया है। इसमें कुछ मिनटों से अधिक समय नहीं लगना चाहिए कि काग़ज़ात को निकाला जाए और उसे दिल्ली रवाना किया जाए। आप वीज़ा रजिस्टर लें उस नम्बर को प्राप्त करें, जिसके तहत उसे वीज़ा जारी किया गया और उसी नम्बर की सहायता से आवेदन तथा अन्य काग़ज़ात प्राप्त किए जा सकते हैं।


तो यह है षड़यंत्र से परदा उठाने की पहली कड़ी। अब मेरा हर लेख आपके हाथों में एक और कड़ी की तरह आता रहेगा, आप तो बस कड़ियां जोड़ते जाइयें, फिर देखिये यह ज़ंज़ीर किस की गर्दन तक पहुंचती है।...............

2 comments:

Mohammed Umar Kairanvi said...

मुझे 31 दिसम्बर अर्थात कल के अखबार का बेहद इन्‍तजार रहेगा, उम्‍मीद है आप वह जानकारियां ब्‍लाग पर भी देंगें

काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif said...


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बहुत उम्दा लेख....आपकी अगली कडी का इन्तेज़ार रहेगा...

"हमारा हिन्दुस्तान"

"इस्लाम और कुरआन"

The Holy Qur-an

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