Tuesday, December 1, 2009

वतन वापसी के बाद अब फिर‘वन्दे मातरम्’, लिब्राहन कमीशन’ और ‘26/11’

वाशिंगटन (Washington)

हां वह एक पत्रकार मैं ही था, जिसे व्हाइट हाउस में प्रवेश करने से रोक दिया गया। हो सकता है कुछ लोगों की निगाह में यह बात बहुत अपमान की हो, अगर वह चाहें तो ऐसा भी सोच सकते हैं, मगर मेरे लिये यह परवर दिगार-ए-आलम का बहुत बड़ा ईनाम है और व्हाइट हाउस द्वारा भेंट किया गया एक ऐसा सम्मान जिसे मैं हमेशा याद रखना चाहूंगा। मुझे भी विश्वास नहीं आता, अगर यह सच्चाई सामने न आई होती कि मेरे लिखने का इतना प्रभाव अमरीकी सरकार महसूस करती है।

व्हाइट हाउस को अपने दूतावास व अन्य माध्यमों से प्राप्त सामग्री इस निर्णय का कारण बनी इसमें लगभग एक माह तक 9/11 पर लिखे गये मेरे लेख, सद्दाम हुसैन को दी गई फांसी के विरूद्ध मेरे लेख, अफगानिस्तान और ईराक के विनाश पर मेरे विचार व ईराक़ हमले पर आधारित मेरी पुस्तक ‘‘सद्दाम सफ़र ज़िंदगी का’’ व हैदराबाद में हुए बम धमाके पर लिखा गया लेख ‘‘शक के दायरे में हूजी और आई.एस.आई. ही क्यों, सी.आई.ए. क्यों नहीं?’’ ;04.09.2007द्ध और Mr. Bush Listen Me Please ;27.09.2007द्ध

24 नवम्बर को व्हाइट हाउस में आमंत्रित किया गया था भारत के प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह जी को और उनके साथ शिष्ट मण्डल में सम्मिलित तमाम व्यक्तियों को मीडिया डेलीगेट सहित.......और इस नाते अपने देश के प्रधानमंत्री के सम्मान को देखते हुए मेरा नैतिक दायित्व था इस दरवाज़े तक पहुंचना। अब यह करम अल्लाह का कि उसने मुझे उस दस्तर ख्वान तक पहुंचने से रोक लिया, जिस पर ईराक और अफगानिस्तान के शहीदों के खून के छींटे थे, निश्चित रूप से इस इमारत के दरो-दीवार में आज भी उन बेगुनाह मासूम शहीदों की आहें सुरक्षित होंगी, जिन्हें दुनिया के पर्दे से मिटाने के लिए साज़िश रची गई थी इस व्हाइट हाउस में।

मेरे कलम का जिहाद जारी रहेगा इसी अन्दाज़ में उन मज़लूमों के लिए जब तक कि अफगानिस्तान और ईराक की जनता को अमरीकी फौज और उन पर थोपे गये कठपुतली शासकों से मुक्ति नहीं मिल जाती, संभवतः यही शंका थी व्हाइट हाउस के उन पहरेदारों को कि डर गये वह एक पत्रकार के कदमों की आहट से। बहरहाल मैं वाशिंगटन से लौट आया हूं, अतः शीघ्र ही इस विषय पर लिखे जाने वाले लेखों का क्रम प्रस्तुत किया जाएगा आपके सामने, फिलहाल उल्लेख उसी विषय का जिस पर बात जारी थी।

वंदे मातरम् (Vande मातरम)
इस संदर्भ में पिछले लगभग एक महीने में काफ़ी कुछ लिखा है मैंने और अभी बहुत कुछ लिखा जाना शेष है। अभी तक यह प्रश्न मुसलमानों से था कि वंदे मातरम् का गाया जाना वतन से मुहब्बत की पहचान है। अब यह प्रश्न उन लोगों से होगा जो अब तक मुसलमानों से यह प्रश्न करते रहे थे कि वह बताएं क्या ‘वंदे मातरम्’ का गाया जाना राष्ट्र पे्रम की निशानी हो सकती है? जबकि हमारे पास ऐसे बहुत से ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध हैं कि वास्तव में यह तो अंग्रेज़ों से मुहब्बत की निशानी थी और ‘‘आनंद मठ’’ में जो कुछ भी लिखा गया है ‘वह न तो हिन्दुस्तान के पक्ष में था और न हिंदुओं के पक्ष में बल्कि इस उपन्यास का उद्देश्य तो सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों की दुश्मनी थी। हां, यदि इस उपन्यास से किसी का समर्थन उद्देश्य था तो वह केवल अंग्रेज़ थे।

आज के इस लेख में इस सिलसिले को अगर आगे बढ़ाया गया तो अन्य महम्वपूर्ण विषयों पर कुछ वाक्य लिखना भी सम्भव नहीं होगा, अतः वंदे मातरम् पर मेरे लेख का सिलसिला देखें कल से और इजाज़त दें आज कुछ वाक्य लिब्राहन कमीशन और 26/11 पर लिखने के लिए।

लिब्राहन कमीशन (Liberhan Commission)

मुझे आश्चर्य है कि जस्टिस लिब्राहन कमीशन ने यह रिपोर्ट इतनी कम अवधि में कैसे पूरी कर ली? क्या वह थक गए थे प्रमाण जमा करते-करते या कोई विवशता थी उनकी, एक अपूर्ण रिपोर्ट को इतनी जल्दी में पेश कर देने की? नहीं यह कोई व्यंगात्मक वाक्य नहीं है। हां उन्हें अवश्य ऐसा लगता होगा जो पिछले कुछ दिनों से रिपोर्ट को देर से पेश किए जाने का राग अलाप रहे हैं। जहां तक मैं समझता हूं लिब्राहन कमीशन बाबरी मस्जिद की शहादत से जुड़े तथ्यों पर जांच का काम कर रहा था और बाबरी मस्जिद की शहादत में जानबूझ कर या अनजाने में जो व्यक्ति भी शामिल थे उन्हें चिन्हित करना इस कमीशन का उद्देश्य था। क्या बाबरी मस्जिद की शहादत से जुड़ी अपराधिक सरगर्मियां बंद हो गई हैं?

हत्याओं और विनाश का सिलसिला रुक गया है? अगर नहीं तो यह जांच बंद कैसे हो सकती है? हां इस रिपोर्ट को जांच का एक भाग अवश्य ठहराया जा सकता है, फिर इस एक भाग में भी देखना होगा कि क्या इसमें गुजरात में हुए मुस्लिम नरसंहार का उल्लेख है, क्योंकि अयोध्या से चली ‘साबरमती एक्सप्रेस’ के गोधरा पहुंचने के बाद ‘कारसेवकों’ के हवाले से जो कुछ गुजरात में हुआ 28 फरवरी 2002 के बाद, क्या वह 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद की शहादत से जुड़ा नहीं था। छाती ठोंक कहा बाल ठाकरे ने कि ‘जिन कोठारी भाइयों ने मस्जिद के गुंबदों को तोड़ा था और भगवा झंडा लहराया था वह शिव सैनिक थे और मुझे उन पर गर्व है।’

क्या महाराष्ट्र में और विशेष कर मुम्बई में चुन-चुन कर मुसलमानों के घरों ओर दुकानों को आग लगा देने वाले शिव सैनिकों का उल्लेख है इस रिपोर्ट में? अभी दो दिन पहले प्ठछ.7 न्यूज़ चैनल के एक कार्यक्रम में भारतीय जनता पार्टी के महासचिव विनय कटियार ने कहा कि अगर उनका बस चलता (सत्ता में होते) तो बाबरी मस्जिद को बाबरी मस्जिद कहने वालों की राष्ट्रीयता समाप्त कर देते। क्या इस अपराधिक वाक्य को दर्ज करने की गुंजाइश है इस रिपोर्ट में? अगर नहीं तो यह रिपोर्ट अभी पूर्ण कैसे हो सकती है, अब प्रश्न यह अवश्य पैदा होता कि यह रिपोर्ट जिन अपराधियों को चिन्हित करती है, अगर 17 वर्ष बाद भी हम उन्हें सज़ा देने की स्थिति में नहीं हैं तो फिर अब तक की गई या आगे की जा सकने वाली जांच का क्या अर्थ?


हमने चुनाव किया है इस विषय का भी अपनी जांच के लिए और लिखने के लिए, आजके यह आरम्भिक वाक्य तो केवल इसलिए हैं कि बाबरी मेस्जिद की शहादत के लिए ज़िम्मेदार अपराधियों को चिन्हित करने के साथ-साथ बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद भारत भर में जो साम्प्रदायिक दंगे हुए और जो इन दंगों के लिए उत्तरदायी हैं उन सबको भी इस जांच के दायरे में लाना होगा। अब यह निर्णय करना भारत सरकार का काम है कि वह इसके लिए कितने कमीशन बिठाती है? या लिब्राहन कमीशन को कितने भागों में अपनी रिपोर्ट पेश करने की इजाज़त देती है और फिर क्या वह इन तमाम अपराधियों को सज़ा भी दे पाती है।

अन्यथा क्या लाभ इस काग़ज़ी कार्यवाही का इसमें ऐसा क्या है जो हम नहीं जानते? यह अपराधी कोई नक़ाबपोश हमलावर नहीं थे, जो कुछ हुआ दिन के उजाले में हुआ सबकी नज़रों के सामने हुआ और किसके उकसावे पर हुआ कौन नहीं जानता, अब क़ौम की दिलचस्पी नाम जानने में नहीं अपराधियों को सज़ा दिये जाने में है।

26/11


‘‘मुसलमानाने हिंद........ माज़ी, हाल और मुस्तक़बिल???’’ अर्थात् मेरे पिछले क़िस्तवार लेखों की 100 वीं क़िस्त जो 100 पृष्ठों से अधिक पर आधारित एक दस्तावेज़ के रूप में पाठकों के सामने पेश की गई, उसका शीर्षक यही था और आज भी जब मैं इस विषय पर लिखना शूरू करूंगा तो 100 पृष्ठों से कहीं अधिक दरकार होंगे। मगर आज जबकि केवल चंद पंक्तियां ही लिखनी हैं और वह चंद पंक्तियां भी ऐसी कि अपने आप में न केवल पूर्ण हों और बल्कि कई लेखों पर भारी हों तो एक-एक शब्द ध्यान देने योग्य होना ही चाहिए।


26 नवम्बर 2008 को मुम्बई पर हुआ आतंकवादी हमला 10 पाकिस्तानी आतंकवादियों का कारनामा था, जिसकी साज़िश रची गई पाकिस्तान की धरती पर..... स्वीकार, 100 बार स्वीकार, कोई बहस नहीं इस पर। अब हमारे पास मौजूद हैं 9 आतंकवादी लाशें और दसवां जीवित आतंकवादी। क्या कोई 11वां भी है? अगर नहीं तो कम से कम एक बात तो अब् तय हो जाए कि इन 10 आतंकवादियों के अलावा कोई 11वां आतंकवादी इस हमले में शामिल नहीं था। फिर प्रश्न यह पैदा होगा कि शहीद हेमंत करकरे की विधवा कविता करकरे ने जो सवाल उठाए हैं, चाहे वह हेमंत करकरे की बुलेट प्रूफ़ जैकेट के संबंध में हों या यह कि मेरे पति तो सड़क पर आतंकवादियों की गोलियों से छलनी आख़री सांसें लेते रहे और आतंकवादियों को अस्पताल पहुंचाया जाता रहा, ऐसा क्यों?


अब इस प्रश्न का उत्तर वह 9 आतंकवादी लाशें देंगी या दसवां जीवित बचा आतंकवादी?..... महाराष्ट्र पुलिस के पूर्व आई।जी. एस.एम मुशरिफ की किताब "Who Killed Karkare? The Real face of Terrorism in India" अशोक काम्टे की विधवा विनीता काम्टे की किताब ^^To the Last Bullet** ने जो प्रश्न खडे़ किए उनका उत्तर हाफ़िज़ सईद से मिलेगा या ज़कीउर्रहमान लखवी से. .......26 नवम्बर को हेमंत करकरे की शहादत से 24 घंटे पहले उन्हें मौत की धमकी इन 9 आतंकवादी लाशों ने दी थी या दस्वें जीवित बचे आतंकवादी ने? ‘‘इंडियन एक्सप्रेस और रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा ने अपने प्रकाशनों में वह टेलीफोन नं॰ प्रकाशित किया था, वह नम्बर किसके द्वारा प्रयोग किया गया, उन 9 आतंकवादी लाशों के द्वारा या दसवें जीवित बचे आतंकवादी के द्वारा, या फिर 11वां कोई और........था?


सरकार और मीडिया के पास आतंकवादियों के द्वारा की गई बातचीत के टेलीफोन रिकॉर्ड मौजूद हैं, जो विभिन्न टीवी चैनलों पर भी दिखाए गए। होटल ताज, होटल ओबराय से की गई अन्य कालों का रिकॉर्ड कहां और किसके पास है? इतनी बड़ी संख्या में हथियार वहां कैसे पहुंचे? अनिता उदया को ख़ुफिया रूप से अमरीका क्यों ले जाया गया और हाल ही में हुए नए रहस्योदघाटन की क्या हेडली एफबीआई का एजेंट है, इन प्रश्नों का उत्तर मुर्दा घर में पड़ी वह 9 आतंकवादी लाशें देंगी या एक जीवित बचा आतंकवादी?


कहीं ऐसा तो नहीं कि जिस तरह हम बटला हाऊस का सच सामने नहीं लाना चाहते, कोई सीबीआई जांच या न्यायिक जांच नहीं करना चाहते, क्योंकि उससे जो नतीजे सामने आ सकते हैं उससे हमारी पुलिस के उत्साह पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, क्या उसी तरह 26/11 के 10 आतंकवादियों के बाद हम किसी 11वें आतंकवादी की तरफ इसलिए उंगली नहीं उठाना चाहते कि................


बात जारी रहेगी, प्रतीक्षा कीजिए 26/11 पर लेखों के नए सिलसिले का और तब तक नज़र डालिए हमारे प्रकाशित लेखों के बाद होने वाले रहस्योदघाटनों पर, क्या यह सब लगभग वही तो नहीं हैं, जिसका इशारा हमने 26/11 के तुरंत बाद अपने लेखों में कर दिया था।

1 comment:

Mohammed Umar Kairanvi said...

जनाब, ब्लागवाणी पर आपका चिटठा आना आपको मुबारक हो, मैंने आपका ध्यान दिलाया था, अब आप जो पोस्‍ट डालेंगे वह इसके ब्लाग सेंटर पर दिखाई देगी, इसकी वेब से कोड मिला होगा या लें तो मिल जाएगा वह अपने ब्‍लाग पर लगाऐं तो उसके बहुत फायदे हैं,
साथ ही यह बता दूं सारी दुनिया में मैं ही एक ऐसा हूं जिसे यह ब्लागवाणी सेंटर अपनी मेम्‍बरशिप नहीं देता