हिन्दी-हिन्दू-हिन्दुस्तान या मराठी-मराठा-मराठिस्तान
यह तय करना है अब भारतीय जनता पार्टी को कि उसे किस रास्ते पर चलना है कभी उसका नारा हुआ करता था ‘‘हिन्दी-हिन्दू-हिन्दुस्तान’’ यह नारा तो अब शायद हो नहीं सकता, इसलिए कि महाराष्ट्र में जिस तरह वह शिवसेना की पिछलगू पार्टी दिखाई दे रही है उससे तो लगता है कि अब ‘‘मराठी-मराठा-मराठिस्तान’’ का नारा उसे लगाना पड़ेगा। कारण बिल्कुल स्पष्ट है कि महाराष्ट्र के इन विधानसभा चुनावों में चुनाव तो भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना मिलकर लड़ रहे हैं लेकिन राज्य का जो परिदृश्य देखने को मिल रहा है उसमें हर जगह शिवसेना, बाल ठाकरे और उद्धव ठाकरे या शिवसेना के बाग़ी ग्रुप एमएनएस के राज ठाकरे दिखाई देते हैं।
मुख्यमंत्री के रूप में भी जो नाम उछाला जा रहा है वह उद्धव ठाकरे का है। भाजपा या गोपीनाथ मुंडे कहां, किस कोने में हैं कुछ पता ही नहीं। इस पार्टी के किसी बड़े नेता का भी अभी तक यह साहस नहीं हुआ कि वह शिवसेना की इस दावेदारी पर जु़बान खोले। इसके दो ही कारण हो सकते हैं, या तो उन्हें विश्वास है कि भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना गठजोड़ बहुमत में आयेगा ही नहीं, सरकार बनाने का अवसर मिलेगा ही नहीं तो फिर मुख्यमंत्री के नाम पर झगड़ा किस बात का?
पार्टी के आपसी झगड़े में आबरू तो जा ही रही है (संसदीय चुनावों के बाद भाजपा का जो हाल हुआ उसे देखकर तो यही कहा जा सकता है ), अब रहे सहे साथियों को भी क्यों नाराज़ होने का अवसर दिया जाये और दूसरा कारण यह हो सकता है कि उन्होंने शिवसेना के सामने हथियार डाल दिये हों, वैसे भी शिवसेना के बाल ठाकरे के सामने बोलने योग्य भाजपा में कद किसका है।
ले देकर केवल एक लाल कृष्ण आडवाणी हैं जिनके ऊपर पिछले कुछ दिनों में इतनी उंगलियां उठाई गईं कि उन्हें सन्यास लेने की घोषणा तक करनी पड़ी। हमने ‘‘हिन्दी-हिन्दू-हिन्दुस्तान’’ के स्थान पर ‘‘मराठी-मराठा-मराठिस्तान’’ की बात कहकर भारतीय जनता पार्टी को उसके आदर्शों की याद दिलाने का प्रयास इसलिए किया कि अब तक वह मुसलमानों को राष्ट्र की मुख्य धारा में आने का पाठ पढ़ाती रही थी।
अब देखना यह है कि क्या वह शिवसेना को राष्ट्रीय धारा में आने का पाठ पढ़ा सकती है? मुसलमान तो राष्ट्रीय धारा में हैं, उन्होंने कभी नहीं कहा कि अरबी, फारसी या ऊर्दू उनकी भाषा होगी, जबकि ऊर्दू को भारत की राष्ट्रीय भाषा होने का सौभाग्य प्राप्त रहा है और आज भी भारत में सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा ऊर्दू ही है। भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक मित्र बाल ठाकरे, उनके पुत्र उद्धव ठाकरे, चचा की भाषा में नालायक औलाद राज ठाकरे मराठी से हटकर भारत की राष्ट्रीय भाषा हिन्दी को अपनाना ही नहीं चाहते।
बात अगर ऊर्दू की होती तो कुछ देर के लिए यह सोचा भी जा सकता कि कारण मुसलमानों से नाराज़गी या ऊर्दू भाषा से वैमनस्य है लेकिन हिन्दी के बारे में अगर उनका यही रवैया है तो फिर क्या कहा जाए? क्या ऐसे लोगों से आशा की जा सकती है कि वह राष्ट्रीय धारा में चल सकते हैं? हम यहां एक उदाहरण राष्ट्रीयगान का देना चाहेंगे। स्पष्ट है कि राष्ट्रगान भारत के हर होशमन्द नागरिक को ज़ुबानी याद होगा, फिर भी हम शब्दशः नीचे लिखकर दे रहे हैं ताकि अपनी बात को पूरी तरह सामने रख सकें।
जन गण मन अधिनायक जया है
भारत भाग्य विधाता
पंजाब सिंध गुजरात मराठा
द्रविड़ उत्कल बंगा
विन्धय, हिमाचल, यमुना, गंगा
उच्छल जलधि तिरंगा
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशीष मांगे
गाहे तब जय गाथा
जन गण मंगल दायक जया है
भारत भाग्य विधाता
जया है, जया है, जया है
जय, जय, जय, जय है
और अब इतिहास के हवाले से वह पृष्ठभूमि जब राष्ट्रगान लिखा गया। जन गण मन भारत का राष्ट्रगीत है जो बंगाली भाषा में लिखा गया है। यह ब्रहम प्रशंसा के पहले पांच बन्द हैं। नोबिल इनाम प्राप्त करने वाले रविन्द्र नाथ टैगोर ने इसे लिखा है। 27 दिसम्बर 1911 को कोलकाता में हुए कांग्रेस के पहले अधिवेशन में इसे गाया गया था। जन गण मन को बाकायदा तौर पर 24 जनवरी 1950 को संविधान निर्मात्री सभा ने अपनाया।
हालांकि बुनियादी तौर पर पूरा तराना बंगाली में लिखा है लेकिन देश के भाषाई मतभेदों के कारण तराने का उच्चारण अलग-अलग भागों में अलग है। स्तुति में शामिल कई शब्दों की अदायगी दूसरी भाषाओं के बोलने वाले इस तरह करते हैं जिस तरह बंगाली भाषा वाले करते हैं और अकसर गाने वाले की भाषा के असल शब्दों से मिलता जुलता उच्चारण होता है।स्वाधीन भारत में राष्ट्रगीत के रूप में जन गण मन के प्रासंगिकता का विवाद आज भी जिन्दा है यह कविता 1911 में लिखी गई थी।
यह वह समय था जब जार्ज पंचम की ताजपोशी हो रही थी और कई लोग इसे ‘‘भारत की तकदीर के मालिक’’ की शान में पढ़ा गया कसीदा ठहराते हैं। इसे पहली बार कोलकाता में हुए इंडियन नैशनल कांग्रेस के जलसे में पढ़ा गया। 1911 में हुए इस जलसे के दूसरे दिन भी पढ़ा गया और जलसे के दूसरे दिन का एजेंडा जार्ज पंचम के भारत आने का स्वागत करने का था इस घटना की रिपोर्ट भारतीय प्रेस में भी आई।
रविन्द्र नाथ टैगारे के द्वारा विशेष रूप से लिखे गये इस गीत के बाद जलसे की कार्यवाई शुरू हुई।27 दिसम्बर 1911 बुध के दिन जब इंडियन नैशनल कांग्रेस की कार्यवाही आरंभ हुई तब जार्ज पंचम के स्वागत में बंगाली गीत गाया गया।2005 में तराने से सिंधू शब्द को हटाने की और इसे कश्मीर से बदलने की मांग की गई। इसके लिए औचित्य यह पेश किया गया कि सिंधू अब भारत का भाग नहीं है। 1947 में देश विभाजन के बाद अब सिंध पाकिस्तान का भाग है।
इस मांग के विरोधियों ने कहा कि सिंध शब्द सिंधू नदी और सिंधी सभ्यता और उससे जुड़े लोगों की ओर संकेत करता है जो भारतीय संस्कृति का अटूट भाग हैं। परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रगान में संधोधन करने से इंकार कर दिया।यह राष्ट्रीय गान लिखा गया रविन्द्र टैगोर के द्वारा जो बंगाली थे और यह लिखा भी गया संस्कृत मिली बंगाला भाषा। 24 जनवरी 1950 में संविधान निर्मात्री सभा में जब इसे राष्ट्रगान के रूप में बाकायदा अपनाया गया उस समय मौलाना अबुल कलाम आज़ाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री के रूप में सरकार में मौजूद थे, मगर न तो जन गण मन की भाषा पर ऐतराज़ किया गया और न ही उसके भावार्थ पर।
हालांकि उससे कुछ पहले तक ऊर्दू भारत की राष्ट्रीय भाषा थी और उस समय अल्लामा इकबाल के द्वारा लिखा गया कौमी तराना ‘‘सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा’’ भी मौजूद था, जिसे अल्लामा इकबाल ने 16 अगस्त 1904 से पूर्व लिखा था। इसलिए कि साप्ताहिक पत्रिका ‘‘ इत्तेहाद’’ में यह 16 अगस्त 1904 के प्रकाशन में शामिल किया गया था जबकि रवन्द्रि नाथ टैगोर ने पहली बार 28 दिसम्बर 1911 को जार्ज पंचम अर्थात ब्रिेटेन के शहंशाह का स्वागत करने के लिए राष्ट्रगान गाया था, जो 28 दिसम्बर 1911 ‘‘स्टैटमैन’’ में प्रकाशित किया गया।
हम चन्द पंक्तियों में अल्लामा इकबाल के द्वारा लिखे गये कौमी तराना जिसे तराना-ए-हिन्दी भी कहा जाता है को ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ सहित प्रकाशित करने जा रहे हैं ताकि पाठकों को यह विश्वास दिला सकें कि जिन्हें आज तक भारतीय जनता पार्टी या उसकी राजनीतिक मित्र शिवसेना संकीर्ण मानसिकता वाला ठहराती रही। संकीर्ण मानसिकता वाले वह हैं या यह साम्प्रदायिक पार्टियां।
सारे जहाँ से अच्छा
हिन्दोस्तां हमारा
हम बुलबुले हैं इसकी
ये गुलसितां हमारा
गुर्बत में हो अगर हम
रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी
दिल है जहाँ हमारा
परबत वो सब से ऊंचा
हमसाय आसमाँ का
वो संतरी हमारा
वो पासबां हमारा
गोदी में खेलती हैं
इसकी हज़ारों नदियां
गुलशन है जिनके दम से
रश्क-ए-जना हमारा
ए-आबरू-ए-गंगा
वो दिन है याद तुझको
उतरा तेरे किनारे
जब कारवाँ हमारा
मज़हब नहीं सिखाता
आपस में बेर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है
हिन्दोस्तां हमारा
युनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा
सब मिट गये जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी
नामो निशां हमारा
कुछ बात है कि हस्ती
मिटती नहीं हमारी
सदियो रहा है दुश्मन
दौर-ए-ज़मां हमारा
इकबाल कोई मेहरम
अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को
दर्द-ए-निहा हमारा।
सारे जहां से अच्छा ‘राष्ट्र प्रेम पर ऊर्दू में लिखी गयी सर्वश्रेष्ठ कविताओं में से एक है वास्तव में इसे बच्चों के लिए ऊर्दू शायरी के ग़ज़ल स्टाइल में मोहम्मद इकबाल ने लिखा था यह कविता पहली बार 16 अगस्त 1904 में साप्ताहिक पत्रिका ‘‘इत्तेहाद’’ में प्रकाशित हुई और अगले ही वर्ष इकबाल ने इसे लाहौर के गोरमेंट कालिज में पहली बार पढ़ा और शीघ्र ही भारत पर अंग्रेज़ी सरकार के विरोध का तराना बन गया।
इस कविता में भारत की स्तुति की गई है जिसमें आज के भारत-पाकिस्तान और बंग्लादेश शामिल थे यह कविता तराना-ए-हिन्दी के रूप में अधिक लोकप्रिय है। इकबाल इस समय गोरमेंट कालिज लाहौर में लैक्चरार थे और लाला हरदयाल नामी छात्र ने उनको एक प्रोग्राम की अध्यक्षता के लिए आमंत्रित किया था। सम्बोधन की जगह इकबाल ने इस अवसर पर ‘सारे जहां से अच्छा को गाया’। इस कविता में भारत की धरती से लगाव से इज़हार किया गया है।
1905 में जब इकबाल केवल 27 वर्ष के थे तभी उन्होंने महादीप के भविष्य के समाज को बहु संस्कृति और मिले-जुले समाज के रूप में देखा था।‘‘राष्ट्रीय गान’’ और अल्लामा इक़्बाल का राष्ट्रीय तराना आज के लेख में क्यों शामिल किया गया, कुछ हमद तक तो पाठकों को अंदाज़ा हो गया होगा। परन्तु अभी पूरी तरह स्पष्ट करने की आवश्यकता है, इसलिए आज का यह लेख अधूरा है, कल भी इसी विषय पर बात होगी, इसलिए आज केवल इतना कह देना काफ़ी है कि जिनका सब कुछ था, भाषा थी, तराना था, उन्होंने कभी यह रूख़ नहीं अपनाया जो आज मराठी और मराठा के नाम पर देखने को मिल रहा है।
अब देश के विभाजन या पाकिस्तान की स्थापना का उदाहरण मत दीजिएगा, इसलिए कि हम ही नहीं जसवंत सिंह से लेकर बाल ठाकरे तक जिन्ना के बारे में बहुत कुछ कह चुके हैं और यदि पाकिस्तान जिन्ना की देन है तो फिर पाकिस्तान की स्थापना के कारण को भी समझा जा सकता है।.................................(जारी)
ہندی-ہندو-ہندوستان یامراٹھی-مراٹھا-مراٹھستان
یہ طے کرنا ہے اب بھارتیہ جنتا پارٹی کو کہ اسے کس راستے پر چلنا ہے۔ کبھی اس کا نعرہ ہوا کرتا تھا: ”ہندی-ہندو-ہندوستان“۔ یہ نعرہ تو اب شاید ہونہیںسکتا، اس لےے کہ مہاراشٹر میں جس طرح وہ شیوسینا کی پچھ لگو پارٹی نظر آرہی ہے، اس سے تو لگتا ہے کہ اب ”مراٹھی- مراٹھا- مراٹھستان“ کا نعرہ اسے لگانا پڑے گا۔ وجہ بالکل صاف ہے کہ مہاراشٹر کے ان ریاستی انتخابات میں الیکشن تو بھارتیہ جنتا پارٹی اور شیوسینا مل کر لڑرہے ہیں، لیکن ریاست کا جو منظرنامہ دیکھنے کو مل رہا ہے، اس میں ہر جگہ شیوسینا، بال ٹھاکرے، اودھوٹھاکرے یا شیوسینا کے باغی گروپ ایم این ایس کے راج ٹھاکرے نظر آتے ہیں۔
وزیراعلیٰ کے طور پر بھی جو نام اچھالا جارہا ہے، وہ اودھوٹھاکرے کا ہے۔ بھارتیہ جنتا پارٹی یاگوپی ناتھ منڈے کہاں، کس کونے میں ہیں، کچھ پتا ہی نہیں۔ اس پارٹی کے کسی بڑے لیڈر کی بھی ابھی تک یہ ہمت نہیں ہوئی ہے کہ وہ شیوسینا کی اس دعویداری پر زبان کھولے۔ اس کی دو ہی وجہیں ہوسکتی ہیں، یا تو انہیں یقین ہے کہ بھارتیہ جنتا پارٹی اور شیوسینا اتحاد اکثریت میں آئے گا ہی، سرکار بنانے کا موقع ملے گا ہی نہیں تو پھر وزیراعلیٰ کے نام پر جھگڑا کس بات کا؟پارٹی کے آپسی جھگڑے میں آبرو تو جاہی رہی ہے(پارلیمانی انتخابات کے بعد بی جے پی کا جو حشر ہوا، اسے دیکھ کر تو یہی کہاجاسکتا ہے)، اب رہے سہے ساتھیوں کو بھی کیوں ناراض ہونے کا موقع دیا جائے اور دوسری وجہ یہ ہوسکتی ہے کہ انہوں نے شیوسینا کے سامنے خودسپردگی اختیار کرلی ہو۔
ویسے بھی شیوسینا کے بال ٹھاکرے کے سامنے بولنے لائق بی جے پی میں قد کس کا ہے۔ لے دے کر صرف ایک لال کرشن اڈوانی ہیں، جن کے اوپر گزشتہ چند روز میں اس قدر انگلیاں اٹھائی گئیں کہ انہیں سنیاس لینے کا اعلان تک کرنا پڑا۔ہم نے ”ہندی-ہندو-ہندوستان“ کی جگہ ”مراٹھی-مراٹھا-مراٹھستان“ کی بات کہہ کر بھارتیہ جنتا پارٹی کو اس کے اصولوں کی یاد دلانے کی کوشش اس لےے کی کہ اب تک وہ مسلمانوں کو قومی دھارا میں آنے کا سبق پڑھاتی رہی تھی۔ اب دیکھنا یہ ہے کہ کیا وہ شیوسینا کو قومی دھارا میں آنے کا سبق پڑھا سکتی ہے؟
مسلمان تو قومی دھارا میں ہےں، انہوں نے کبھی نہیں کہا کہ عربی، فارسی یا اردو ان کی زبان ہوگی، جبکہ اردو کو ہندوستان کی قومی زبان ہونے کا شرف حاصل رہا ہے ا ور آج بھی ہندوستان میں سب سے زیادہ بولی اور سمجھی جانے والی زبان اردو ہی ہے۔ بھارتیہ جنتا پارٹی کے سیاسی دوست بال ٹھاکرے، ان کے بیٹے اودھو ٹھاکرے، چچا کی زبان میں نالائق اولاد راج ٹھاکرے، مراٹھی سے ہٹ کر ہندوستان کی قومی زبان ہندی کو اپنانا ہی نہیں چاہتے۔ بات اگر اردو کی ہوتی تو کچھ دیر کے لےے یہ سوچا بھی جاسکتا تھا کہ وجہ مسلمانوں سے نفرت یا اردو زبان سے تعصب ہے، لیکن ہندی کے بارے میں اگر ان کا یہی رویہ ہے تو پھر کیا کہا جائے؟
کیاایسے لوگوں سے امید کی جاسکتی ہے کہ وہ ملک کی قومی دھارا میں چل سکتے ہیں؟ ہم یہاں ایک مثال راشٹریہ گان کی دینا چاہیں گے۔ ظاہر ہے ”راشٹریہ گان“ہندوستان کے ہر ذی ہوش شہری کو زبانی یاد ہوگا، تاہم لفط بلفظ نیچے تحریر کردے رہے ہیں، تاکہ اپنی بات کو مکمل طور پر سامنے رکھ سکیں
جن گن من ادھنائک جیا ہے
بھارت بھاگیہ ودھاتا
پنجاب سندھ گجرات مراٹھا
دراوڑ اتکل بنگا
وندھیا ہماچل یمنا گنگا
اچچھل جلدھی ترنگا
تو شبھ نامے جاگے
تو شبھ آشیش مانگے
گاہے تب جے گاتھا
جن گن منگل دایک جیا ہے
بھارت بھاگیہ ودھاتا
جیا ہے جےا ہے جےا
ہےجے جے جے جےا ہے
اور اب تاریخ کے حوالہ سے وہ پس منظر جب ”راشٹریہ گان“ لکھا گیا۔ جن گن من ہندوستان کا قومی ترانہ ہے ، جو بنگالی زبان مےں لکھا گےاہے۔ےہ برہمو حمدکے پہلے پانچ بند ہےں۔ نوبل انعام ےافتہ رابندر ناتھ ٹےگور نے اسے لکھاہے۔ 27دسمبر 1911کو کلکتہ مےں ہوئے کانگرےس کے پہلے سےشن مےں اسے گاےاگےا تھا۔ جن گن من کو باقاعدہ طور پر 24جنوری 1950کو کاٹسٹی ٹوئنٹ اسمبلی نے اپناےا۔
قومی ترانے کو گانے مےں عام طور سے 52سےکنڈ کا وقت لگتاہے۔حالانکہ بنےادی طور پر پورا ترانہ بنگالی مےں لکھاہے، لےکن ملک کے لسانی اختلاف کے سبب ترانے کا تلفظ الگ الگ حصوں مےں مختلف ہے۔حمد مےں شامل کئی الفاظ کی ادائےگی دوسری ہندوستانی زبان کے بولنے والے اس طرح کرتے ہےں، جس طرح بنگالی زبان والے کرتے ہےں اور اکثر گانے والے کی زبان کے ہم اصل لفظ سے ملتا جلتا تلفظ ہوتاہے۔آزاد ہندوستان مےں قومی ترانے کے طور پر جن گن من کی مناسبت کا قضےہ آج بھی زندہ ہے۔
ےہ نظم 1911مےں قلم بند ہوئی تھی ۔ ےہ وہی وقت تھا جب جارج پنجم کی تاج پوشی ہورہی تھی اور کئی لوگ اسے ’ہندوستان کو تقدےر کے مالک‘ کی شان مےں پڑھا گےا قصےدہ قرار دےتے ہےں۔ اسے پہلی بار کلکتہ مےں ہوئے انڈےن نےشنل کانگرےس کے جلسہ مےں پڑھاگےا۔ 1911مےں ہوئے اس جلسہ کے دوسرے دن بھی پڑھا گےا اور جلسہ کے دوسرے دن کا اےجنڈہ جارج پنجم کی ہندوستان آمد کا استقبال کرنے کا تھا۔ اس واقعہ کی رپورٹ ہندوستانی پرےس مےں بھی آئی۔رابندر ناتھ ٹےگور کے ذرےعہ خصوصی طور پر لکھے گئے اس گےت کے بعد جلسہ کی کارروائی شروع ہوئی۔
27دسمبر 1911بدھ کے دن جب انڈےن نےشنل کانگرےس کی کارروائی شروع ہوئی، تب جارج پنچم کے استقبال مےں بنگالی گےت گاےا گےا۔ 2005مےں ترانے سے سندھ لفظ کو ہٹانے کا اور اسے کشمےر سے بدلنے کا مطالبہ کےاگےا۔ اس کے لئے جواز ےہ دےاگےا کہ سندھ اب ہندوستان کا حصہ نہےں ہے۔ 1947 مےں تقسےم وطن کے بعد اب سندھ پاکستان کا حصہ ہے۔ اس مطالبہ کے مخالفےن نے کہا کہ سندھ لفظ سندھ ندی اور سندھی ثقافت اور اس سے جڑے لوگوں کی جانب اشارہ کرتاہے، جو ہندوستانی ثقافت کے اٹوٹ حصہ ہےں، لیکن سپرےم کورٹ نے قومی ترانے کے ا لفاظ مےں تبدےلی کرنے سے انکار کردےا۔یہ ”راشٹریہ گان“ لکھا گیارابندرناتھ ٹیگور کے ذریعہ، جو بنگالی تھے اور یہ لکھا بھی گیا سنسکرت آمیز بنگالی زبان میں۔
24جنوری 1950میں کونسٹینٹ اسمبلی میںجب اسے ”راشٹریہ گان“ کے طور پر باقاعدہ اپنایا گیا، اس وقت مولانا ابوالکلام آزاد ہندوستان کے پہلے وزیرتعلیم کی حیثیت سے حکومت میں موجود تھے، مگر نہ تو ’جن گن من‘ کی زبان پر اعتراض کیا گیا اور نہ ہی اس کی عبارت پر، حالانکہ اس سے کچھ پہلے تک اردو ہندوستان کی قومی زبان تھی اور اس وقت علامہ اقبال کے ذریعہ لکھا گیا قومی ترانہ ”سارے جہاں سے اچھا ہندوستاں ہمارا“ بھی موجود تھا، جسے علامہ اقبال نے 16اگست1904سے پہلے قلمبند کیا، اس لےے کہ ہفت روزہ ”اتحاد“ میں یہ 16اگست1904کے شمارے میں شامل اشاعت کیا گیا تھا، جبکہ رابندرناتھ ٹیگور نے پہلی بار 28دسمبر1911کو جارج پنجم یعنی برطانیہ کے شہنشاہ کو خوش آمدید کہنے کے لےے ”راشٹریہ گان“ گایا تھا، جو28دسمبر1911”اسٹیٹ مین“ میں شائع کیا گیا۔
ہم چند سطروں میں علامہ اقبال کے ذریعہ لکھے گئے قومی ترانہ جسے ترانہ¿ ہندی بھی کہا جاتا ہے، کو بمعہ تاریخی پس منظر شائع کرنے جارہے ہیں تاکہ قارئین کو یہ باور کراسکیں کہ جنہیں آج تک بھارتیہ جنتا پارٹی یا اس کی سیاسی دوست شیوسینا تنگ نظر قرار دیتی رہی، تنگ نظر وہ ہیں یا یہ فرقہ پرست جماعتیں:
سارے جہاں سے اچھا
ہندوستاں ہمارا
ہم بلبلیں ہیں اس کی،
یہ گلستاں ہمارا
غربت میں ہوں اگر ہم،
رہتا ہے دل وطن میں
سمجھو وہیں ہمیں بھی،
دل ہو جہاں ہمارا
پربت وہ سب سے اونچا،
ہمسایہ آسماں کا
وہ سنتری ہمارا،
وہ پاسباں ہمارا
گودی میں کھیلتی ہیں
اس کی ہزاروں ندیاں
گلشن ہے جن کے دم سے
رشک جناں ہمارا
اے آبروئے گنگا،
وہ دن ہیں یاد تجھ کو؟
اترا ترے کنارے
جب کارواں ہمارا
مذہب نہیں سکھاتا
آپس میں بیر رکھنا
ہندی ہیں ہم وطن ہے
ہندوستاں ہمارا
یونان و مصر و روما
سب مٹ گئے جہاں سے
اب تک مگر ہے باقی
نام و نشاں ہمارا
کچھ بات ہے کہ ہستی
مٹتی نہیں ہماری
صدیوں رہا ہے دشمن
دورِ زماں ہمارا
اقبال! کوئی محرم
اپنا نہیں جہاں میں
معلوم کیا کسی کو
درد نہاں ہمارا
”سارے جہاں سے اچھا....“ حب الوطنی پر اردو میں لکھی گئی بہترین نظموں میں سے ایک ہے۔دراصل اسے بچوں کے لےے اردو شاعری کے غزل اسٹائل میں علامہ اقبال نے لکھا تھا۔ یہ نظم پہلی بار16اگست1904میں ہفتہ وار رسالہ ”اتحاد“ میں شائع ہوئی اور اگلے ہی سال اسے اقبال نے لاہور کے گورنمنٹ کالج میں پہلی بار پڑھا اور جلد ہی یہ نظم ہندوستان پر انگریزی حکومت کی مخالفت کا ترانہ بن گئی۔ اس نظم میں ہندوستان کی قصیدہ خوانی کی گئی ہے، جس میں آج کے ہندوستان، پاکستان اور بنگلہ دیش شامل تھے۔
یہ نظم ترانہ ہندی کے طور پر زیادہ مقبول ہے۔اقبال اس وقت گورنمنٹ کالج لاہور میں لکچرر تھے اور لالہ ہردیال نامی طالب علم نے ان کو ایک پروگرام کی صدارت کرنے کے لےے مدعو کیا تھا۔ خطاب کرنے کی جگہ اقبال نے اس موقع پر ”سارے جہاں سے اچھا....“ گایا۔ اس نظم میں ہندوستانی سرزمین سے لگاﺅ کا اظہار کیا گیا ہے۔ 1905میں جب اقبال محض27سال کے تھے، تبھی انہوں نے برعظیم کے سماج کو کثیرثقافتی اور ملے جلے معاشرہ کے طور پر دیکھا تھا۔
”راشٹریہ گان“ اور علامہ اقبال کا قومی ترانہ آج کی تحریر میں کیوں شامل کیا گیا، کچھ حد تک تو قارئین کو اندازہ ہوگیا ہوگا۔ ہاں، ابھی مکمل وضاحت کی ضرورت ہے، لہٰذا آج کی یہ تحریر ادھوری ہے، کل بھی گفتگو اسی پس منظر میں ہوگی تاہم اتنا کہہ دینا ضروری ہے کہ جن کا سب کچھ تھا، زبان بھی، ترانہ تھا، انہوں نے کبھی یہ رُخ اختیار نہیں کیا جو آج مراٹھی اور مراٹھا کے نام پر دیکھنے کو مل رہا ہے۔ اب تقسیم وطن یا پاکستان کے قیام کی مثال مت دیجئے گا، اس لےے کہ ہم ہی نہیں جسونت سنگھ سے لے کر بال ٹھاکرے تک جناح کے بارے میں بہت کچھ کہہ چکیں اور اگر پاکستان جناح کی دین ہے تو پھر پاکستان کے وجود میں آنے کی وجہ کو بھی سمجھا جاسکتا ہے۔............................(جاری)
1 comment:
Dear sir, you view gives a clear message to we indian.
Post a Comment