Thursday, October 1, 2009

क्या केन्द्र सरकार नरेन्द्र मोदी पर भरोसा कर सकती है?

क्या केन्द्र सरकार नरेन्द्र मोदी पर भरोसा कर सकती है?

कल के लेख में हमने कुछ ऐसे मामलों को उल्लेख किया था और आज फिर कर रहे हैं, जिनमें पुलिस ने अनेक लोगों को एंकाउंटर में मार गिराया। क्या वास्तव में इन सभी घटनाओं में पुलिस की यही कार्यवाही होनी चाहिए थी? इस दिशा में भारत सरकार मुख्य रूप से गृह मंत्रालय को गंभीरता से सोचना चाहिए। ऐसी घटनाओं की लम्बी सूचि है, जिन्हें एक दो लेख तो क्या एक दो पुस्तकों में भी नहीं समेटा जा सकता।

हमने कुछ घटनाओं का उल्लेख केवल इसलिए किया है ताकि गृहमंत्री का ध्यान केंद्रित कर सकें और इशरत जहां के एंकाउंटर को एक टेस्ट केस के रूप में लेने का कारण भी यही है कि हमारे गृहमंत्री पी.चिदम्बरम इस एंकाउंटर के मामले की जानकारी रखते हैं, ऐसा उनके बयान से भी स्पष्ट होता है। अभी हम उनके इस बयान के हवाले से कुछ भी लिखना नहीं चाहते।

परन्तु हम यह आवश्य चाहते हैं कि हमारे टेस्ट केस इशरत जहां एंकाउंटर के संबंध में जो तथ्य हमारे पास हैं, उन्हें भारत सरकार के सामने रखा जाए और इसके बाद इशरत जहां की छोटी बहन मुसर्रत जहां का नज़रिया भी कि वह गुजरात सरकार को लेकर क्या राय रखती है और नरेन्द्र मोदी के सत्ता में रहते हुए उन्हें और उनके परिवार को किस हद तक न्याय मिलने की उम्मीद है।

पिछले दिनों गुजरात सरकार उस समय एक बार फिर जांच के दायरे में आई जब एक मजिस्ट्रेट की रिर्पोट ने 2004 में हुए इशरत जहां और तीन दूसरे लोगों की मुठभेड़ को फर्ज़ी करार दे दिया। एक दूसरे मामले में पहले ही राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के समक्ष स्वींकार कर चुकी है कि नवम्बर 2005 में सोहराबुद्दीन फर्ज़ी मुठभेड़ में मारा गाया था। सोहराबुद्दीन की पत्नी कोसरबी और एक महत्वपूर्ण गवाह तुलसीराम प्रजापती भी मारे गए थे।

विधानसभा में एक प्रश्न के उत्तर में गुजरात सरकार ने कहा है कि 2002 से 2006 के बीच 21 लोग मुठभेड़ में मारे गए। इशरत जहां मामले का उल्लेख सूचि में शामिल है। इसके अलावा अहमदाबाद के रहने वाले समीर खान पठान का नाम ग़ायब है जिसे पुलिस ने 2001 में मार गिराया था। समीर खान पर आरोप था कि उसने मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को मारने का षड्यंत्र रचा था।

बापोदी मोहम्मद शाह फकीर और मीर भीमा मान्डा अधेदरा की मुठभेड़ों में कईं प्रश्न को लेकर संबंध है। पूर्व मंत्री हीरेन पांडे की विधवा जाग्रती पांडे ने अपने पति के कत्ल के तीन साल पश्चात् एक पत्र के द्वारा पूरे मामले की दुबारा जांच का आग्रह किया था और इसी पत्र में जाग्रती पांडे ने यह भी उल्लेख किया था कि बापोदी और भीमा के पास उनके पति के कत्ल से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां थी।

दिलचस्प बात यह है कि डी जी वंजारा, एन के अमीन और पुलिसवालों की टीम अहमदाबाद के अधिकतर एंकाउंटर में शामिल रही है। इसी प्रकार से विसाड ज़िले में हुई चारो मुठभेड़ों में पुलिस इंसपेक्टर के जी अरदा और सब इंसपेक्टर जितेंदर यादव शामिल थे। 2002 के दंगों के समय इरदा की पोस्टिंग अहमदाबाद में थी जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा बनाई गई इस्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम ने नरोदा गाम और नरोदा पाट्या दंगों के संबंध में गिरफ्तार किया था।

भावनगर का रहने वाला सादिक जमाल 13 जूलाई को मारा गया था। गुजरात पुलिस ने दावा किया था कि वह आई एस आई का ऐजेंट है और उस का संबंध लश्कर तैयबा, दाऊद और छोटा शकील से है। सादिक पर आरोप था कि वह नरेंद्र मोदी, प्रवीन तोगड़िया, एल के आडवाणी को मारने के मिशन पर था। 6 महीने बाद मुम्बई के एक पत्रकार केतन तीरोडकर ने स्पेशल मकोका अदालत के सामने अपने बयान में दावा किया कि सादिक को फर्ज़ी एंकाउंटर में मारा गया था।

केतिन ने बताया कि मुम्बई के एंकाउंटर स्पेशलिस्ट दया नायक ने सादिक को गुजरात पुलिस के हवाले किया था। सादिक के भाई साबिर ने गुजरात उच्च न्यायालय का दरवाज़ा भी खटखटाया है। पुलिस की प्रारंभिक जांच के सभी दस्तावेज़ मैट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में हैं।

ध्मुम्बई के रहने वाले गणेश कंटे और महेंद्र जाधव 23 जून 2003 को अहमदाबाद में मारे गए था। पुलिस के अनुसार दोनों छोटा शकील गैंग के सदस्य थे और सीनियर बीजेपी लीडरों के क़त्ल की योजना बना रहे थे। जांच के दौरान डीटेक्शन आॅफ क्राइम ब्रांच ने पोटा के तहत मुम्बई से 8 अहमदाबाद से 3 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया था। इन में से तीन को ही 5 वर्ष की आम कैद की सज़ा हुई थी।

इशरत जहां, जावेद शेख़ उर्फ प्रानेश प्लाई, ज़ीशान जोहर उर्फ जांबाज़ और अमजद अली अकबर राणा को अहमदाबाद में 15 जून 2004 को मारा गया, जबकि जावेद शेख़ पूणे का रहने वाला था और इशरत जहां मुम्बरा की रहने वाली थी। पुलिस ने ज़ीशान और अमजद को पकिस्तानी शहरी बताया था। सी.बी.आई के अनुसार चारों का संबंध लश्क्र-ए-तैयबा से था और मोदी और दूसरे नेतओं की हत्या करने के मिशन पर थे।

इशरत की माँ शमीमा और जावेद के पिता गोपी नाथ प्लाई ने पूरे मामले की सी.बी.आई जांच के लिए उच्च न्यायालय में अर्ज़ी दी है। गुजरात उच्च न्यायालय ने मामले की जांच के लिए तीन सदस्यों की एक इस्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम (एस.आई.टी) बनाई है।

राज कोट में रहने वाले जाला पोपट को 17 जनवरी 2004 को मारा गया था। पुलिस को इस व्यक्ति की लूट और चोरी के 6 मामलों में तलाश थी। मजिस्ट्रेट जांच की रिपोर्ट दाख़िल की गई थी।

सलीम गागी भाई मियाना का नाम 11 प्रोबेशन मामलों में था। उसे 4 मई 2004 को मारा गया। न्यायालय में सलीम की माँ ने मामले को चेलेंज करते हुए आरोप लगाया कि एंकाउंटर फर्ज़ी था। इस मामले में एक हैड कांस्टेबल यनती देव सिंह ज़ाला को सज़ा हुई।

जाम नगर के रहने वाले रफीक़ उर्फ बापूदी मोहम्मद शाह फकीर को 18 जुलाई 2007 को मारा गया। इस व्यक्ति पर हत्या, चोरी और डाका डालने के 28 मामले थे। मजिस्ट्रेट जांच की रिपोर्ट दाख़िल की गई थी।

हत्या के साथ 14 मामलों में जूनागढ़ के मीरभीमा मांदा उधेदरा दारा की तलाश थी। 19 सितम्बर 2004 को उसे पुलिस ने एंकाउंटर में मार गिराया था। मजिस्ट्रेट जांच की रिपोर्ट दाख़िल की गई थी।

हत्या, लूट, चोरी और ग़ैर क़ानूनी रूप से हथियार सहित 11 मामलों में उत्तरप्रदेश के रहने वाले कश्यप हरपक सिंह ढ़ाका का नाम था। 14 अगस्त 2004 को वदोदरा में पुलिस ने मार गिराया। मजिस्टेªट जांच रिपोर्ट दाख़िल की गई थी।

डाका डालने के मामले में वांछित मेथो उमर डाफर, 14 मार्च 2004 को आनंद ज़िले में मारा गया।

हत्या, लूट, चोरी और डाका डालने सहित 14 मामलों में मतलूब राजेशवर उर्फ मिंटो, 9 अप्रैल 2005 को आनंद में मारा गया।

एक पुलिस कांस्टेबल की हत्या और लूट के मामले में वांछित सूरत के रहने वाले अनिल बेन मिश्रा बिहारी को 11 मार्च 2003 को सूरत के अधना मुगडला रोड पर मारा गया। मजिस्ट्रेट जांच ने पुलिस को क्लीन चिट दी थी।

लूट और हत्या की कोशिशों के मामलों में वांछित महेश दीपक गरवाली 21 जनवरी 2004 को सूरत में मारा गया।

हत्या और डाका डालने के मामले में वांछित एक पूर्व फौजी सुभाष भास्कर नायर सूरत धूलिया रोड, वलसाद पर 4 जून 2004 को मारा गया।

बिलसाड के रहने वाले संजय उर्फ संजू को 26 नवम्बर 2004 को मारा गया।

डोंगरिया हिमला मच्छर को वलसाद के माराई गांव में 25 अगस्त 2008 को मारा गया।

तस्करी, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम और नेशनल सिक्यूरिटी एक्ट सहित 13 मामलों में वांछित जाम सिलाया के हाजी इस्माइल सूज़ानिया को 9 अक्तूबर 2005 को मारा गया।

हत्या, चोरी, डाका डालने और लूट के 42 मामलों में मतलूब विलसाड के रहने वाले जोगिन्द्र सिंह खट्टन सिंह सिख को 2006 में मारा गया।

हमारे पास ऐसी और भी बहुत सी घटनाओं का विवरण है, परन्तु इस समय हम मुसर्रत जहां का नज़रिया बयान करके आज का लेख यही समाप्त करते हैं।

इशरत जहां की छोटी बहन मुसर्रत जहां ने अपना दर्द बयान करते हुए कहा कि गुजरात सरकार और पुलिस पर हमें बिल्कुल भरोसा नहीं है, इसलिए इशरत जहां फ़र्ज़ी एंकाउंटर से संबंधित मुक़दमे को गुजरात उच्चन्यायालय से सर्वोच्च न्यायालय में हस्तांतरित किया जाए और फ़र्ज़ी एंकाउंटर में लिप्त सभी राजनीतिज्ञों और पुलिस अधिकारियों को बेनक़ाब करने के लिए इस मामले की सी.बी.आई से जांच करायी जाए ताकि इशरत जहां हत्या की सच्चाई सबके सामने आसके और अपराधियों को अंजाम तक पहुंचाया जा सके।

दरअस्ल इशरत जहां की हत्या की गई थी और एंकाउंटर एक ड्रामा था। मजिस्ट्रेटी रिपोर्ट आने से सिद्ध हुआ, परन्तु गुजरात सरकार ने इस रिपोर्ट के विरूद्ध उच्च न्यायालय से इस्टे हासिल कर लिया, जो बहुत पीड़ाजनक बात है। गुजरात सरकार का यह कहना कि यह जांच रिपोर्ट बहुत जल्द तैयार की गई है, बड़ा हास्यासपद है।

हमने इस सच्चाई को सामने आने के लिए पांच वर्ष इंतिज़ार किया है, जो रिपोर्ट चार-पांच माह में आजानी चाहिए थी, वह इतनी देर से आई और उस पर भी गुजरात सरकार का यह रवैया है। इससे उसकी नियत साफ हो जाती है।

हमने ही मजिस्ट्रेटी तमांग की रिपोर्ट पर इस्टे के विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है और हमें पूरी उम्मीद है कि हमें न्याय मिलेगा, परन्तु गुजरात उच्च न्यायालय में जारी सुनवाई से हम ज़्यादा संतुष्ट नहीं हैं क्योंकि वहां उन ‘लोगों’ की सरकार है और हम मानते हैं कि वह किसी भी जांच को ईमानदारी और ग़ैर जानिबदारी से पूरा नहीं होने देंगे। अभी जो जांच वहां चल रही है, उससे हम संतुष्ट नहीं हैं क्योंकि वहां गुजरात पुलिस, गुजरात सरकार और नरेन्द्र मोदी के साथियों की ओर से रूकावट की आशंका है।

हमारी मांग है कि इस पूरे मामले को सर्वोच्च न्यायालय में हस्तांतरित कर दिया जाए और एंकाउंटर की जांच सी.बी.आई से कराई जाए ताकि इस फर्ज़ी एंकाउंटर में लिप्त सभी राजनीतिज्ञों और पुलिस अधिकारियों के चेहरे बेनक़ाब हो सकें।

کیا مرکزی حکومت نریندر مودی پر بھروسہ کرسکتی ہے؟

کلکے مضمون میں ہم نے کچھ ایسے معاملات کا ذکر کیا تھا اور آج بھی کررہے ہیں، جن میں پولیس نے متعدد افراد کو انکاؤنٹر میں مار گرایا۔ کیا واقعی ان تمام واقعات میں پولیس کا یہی طرزعمل ہونا چاہےے تھا؟ اس سمت میں حکومت ہند بالخصوص وزارت داخلہ کو سنجیدگی سے غور کرنا چاہےے۔ ایسے واقعات کی طویل فہرست ہے، جنہیں ایک دو مضامین تو کیا ایک دو کتابوں میں بھی نہیں سمیٹا جاسکتا۔

ہم نے چند واقعات کا ذکر صرف اس لےے کیا ہے کہ تاکہ وزیرداخلہ کو متوجہ کرسکیں اور عشرت جہاں کے انکاؤنٹر کو ایک ٹیسٹ کیس کے طور پر لینے کی وجہ بھی یہ ہے کہ ہمارے وزیرداخلہ پی چدمبرم اس انکاؤنٹر کے معاملہ میں جانکاری رکھتے ہیں، ایسا ان کے بیان سے بھی واضح ہوتا ہے۔ ابھی ہم ان کے اس بیان کے حوالہ سے کچھ بھی لکھنا نہیں چاہتے، لیکن ہم یہ ضرور چاہتے ہیں کہ ہمارے ٹیسٹ کیس عشرت جہاں انکاؤنٹر کے تعلق سے جو حقائق ہمارے پاس ہیں، انہیں حکومت ہند کے گوش گزار کردیں اور اس کے بعد عشرت جہاں کی چھوٹی بہن مسرت جہاں کے تاثرات بھی کہ وہ گجرات حکومت کو لے کر کیا رائے رکھتی ہے اور نریندر مودی کے برسراقتدار رہتے ہوئے انہیں اور ان کے خاندان کو کس حد تک انصاف کی امید ہے۔

گزشتہ دنوں گجرات حکومت اس وقت ایک بار پھر جانچ کے دائرہ میں آئی، جب ایک مجسٹریٹ کی رپورٹ نے 2004میں ہوئے عشرت جہاں اور تین دوسرے افراد کی مڈبھیڑ کو فرضی قرار دے دیا۔ ایک دوسرے معاملہ میں پہلے ہی ریاستی حکومت سپریم کورٹ کے سامنے قبول کرچکی ہے کہ نومبر 2005میں سہراب الدین شیخ فرضی مڈبھیڑ میں مارا گیا تھا۔ سہراب الدین کی بیوی کوثر بی اور ایک اہم گواہ تلسی رام پرجاپتی مارے گئے تھے۔ اسمبلی میں ایک سوال کے جواب میں گجرات حکومت نے کہا تھا کہ 2002سے 2006کے درمیان 21لوگ مڈبھیڑ میں مارے گئے۔

عشرت جہاں معاملہ کا ذکر فہرست میں ہے، لیکن اس میں سہراب الدین، اس کی بیوی یا پرجاپتی کا نام شامل نہیں ہے۔ اس کے علاوہ احمد آباد کے رہنے والے سمیر خان پٹھان کا نام غائب ہے، جسے پولس نے اکتوبر 2001میں مار گرایا تھا۔ سمیر خان پر الزام تھا کہ اس نے وزیر اعلیٰ نریندر مودی کو مارنے کی سازش رچی تھی۔
باپو دی محمد شاہ فقیر اورمیر بھیما ماندا ادھے دارا کی مڈبھیڑوں پر اٹھے سوالات میں ایک تعلق ہے۔ سابق وزیر ہرین پانڈیا کی بیوہ جاگرتی پانڈیا نے اپنے شوہر کے قتل کے تین سال بعد ایک خط کے ذریعہ پورے معاملہ کی دوبارہ جانچ کا مطالبہ کیا تھا اور اسی خط میں جاگرتی پانڈیا نے یہ بھی ذکر کیا تھا کہ باپو دی اور بھیماکے پاس ان کے شوہر کے قتل سے متعلق اہم معلومات تھیں۔

دلچسپ بات یہ ہے کہ ڈی جی ونذارا، این کے امین اور دوسرے پولس والوں پر مبنی پولس ٹیم ہی احمد آباد کے زیادہ تر انکائونٹر میں شامل رہی ہے۔ اسی طرح سے ولساڈ ضلع میں ہوئی چاروں مڈبھیڑوں میں پولس انسپکٹر کے جی اردا اور سب انسپکٹر جتیندر یادو شامل تھے۔ 2002کے فسادات کے وقت اردا کی پوسٹنگ احمد آباد میں تھی، جسے بعد میں سپریم کورٹ کے ذریعہ مقرر کی گئی اسپیشل انویسٹی گیشن ٹیم نے نرودا گام اور نرودا پاٹیہ فسادات کے سلسلے میں گرفتار کیا تھا۔

بھائونگر کا رہنے والا صادق جمال مہتر 13جولائی 2004کو مارا گیا تھا۔ گجرات پولس نے دعویٰ کیا تھا کہ وہ آئی ایس آئی کا ایجنٹ ہے اور اس کا تعلق لشکر طیبہ ، دائودابراہیم اور چھوٹا شکیل سے ہے۔ صادق پر الزام تھا کہ وہ نریندر مودی، ایل کے اڈوانی اور وی ایچ پی لیڈر پروین توگڑیا کو مارنے کے مشن پر تھا۔ چھ ماہ بعد ممبئی کے ایک صحافی کیتن تیروڑکر نے اسپیشل مکوکا عدالت کے سامنے اپنے بیان میں دعویٰ کیا کہ صادق کو فرضی انکائونٹر میں مارا گیا تھا۔ کیتن نے بتایا کہ ممبئی کے انکائونٹر اسپیشلسٹ دیانائک نے صادق کو گجرات پولس کے حوالے کیا تھا۔ صادق کے بھائی صابر نے گجرات ہائی کورٹ کا دروازہ کھٹکھٹایا ہے۔ پولس کی ابتدائی جانچ کے تمام دستاویز چیف میٹرو پولیٹن مجسٹریٹ کی عدالت میں ہیں۔

ممبئی کے رہنے والے گنیش کنٹے اور مہندر جادھو 23جون 2003کو احمد آباد میں مارے گئے تھے۔ پولس کے مطابق دونوں چھوٹا شکیل گینگ کے ممبر تھے اور سینئر بی جے پی لیڈروں کے قتل کا منصوبہ بنارہے تھے۔ جانچ کے دوارن ڈیٹکشن آف کرائم برانچ (ڈی سی جی) نے پوٹا کے تحت ممبئی سے 8 اور احمد آباد سے 3افراد کو گرفتار کیا تھا۔ ان میں سے صرف تین کو ہی 5سال کی قید کی سزا ہوئی تھی۔

عشرت جہاں رضا، جاوید شیخ عرف پرانیش پلائی، ذیشان جوہر عرف جانباز اور امجد علی اکبر رانا کو احمد آباد میں 15جون 2004کو مارا گیا، جبکہ جاوید شیخ پونے کا رہنے والا تھا اور عشرت ممبرا کی رہنے والی تھی۔ پولس نے ذیشان اور امجد کو پاکستانی شہری بتایا تھا۔ انٹلی جنس بیورو کے مطابق چاروں کا تعلق لشکر طیبہ سے تھا اور وہ مودی اور دوسرے لیڈروں کو قتل کرنے کے مشن پر تھے۔ عشرت کی ماں شمیمہ اور جاوید کے والد گوپی ناتھ پلائی نے پورے معاملہ کی سی بی آئی جانچ کے لئے ہائی کورٹ میں عرضی دی ہے۔ گجرات ہائی کورٹ نے معاملہ کی جانچ کے لئے تین اراکین پر مبنی اسپیشل انویسٹی گیشن ٹیم (ایس آئی ٹی) مقرر کی ہے۔

راج کوٹ کے رہنے والے جالا پوپٹ کو 17جنوری 2004کو مارا گیا تھا۔ پولس کو اس شخص کی لوٹ اور چوری کے 6معاملوں میں تلاش تھی۔ مجسٹریٹ جانچ کی رپورٹ داخل کی گئی تھی۔

سلیم گاگی بھائی میاناکا نام 11امتناعی معاملوں میں تھا۔ اسے 4مئی 2004کو مارا گیا ۔ عدالت میں سلیم کی والدہ نے معاملے کو چیلنج کرتے ہوئے الزام لگایا کہ انکائونٹر فرضی تھا۔ اس معاملے میں ایک ہیڈکانسٹبل ینتی دیو سنگھ زالہ کو سزا ہوئی۔

جام نگر کے رہنے والے رفیق عرف باپودی محمد شاہ فقیر (Faquir)کو 18جولائی 2007کو مارا گیا۔ اس شخص پر قتل، چوری اور ڈاکہ زنی کے 38معاملے تھے۔ مجسٹریٹ جانچ کی رپورٹ داخل کی گئی تھی۔

قتل کے ساتھ 14معاملوں میں جوناگڑھ کے میر بھیما ماندہ ادھے دارا کی تلاش تھی۔ 29دسمبر 2004کو اسے پولس نے انکائونٹر میں مار گرایا تھا۔ مجسٹریٹ جانچ کی رپورٹ داخل کی گئی تھی۔

قتل،لوٹ، چوری اور غیر قانونی طور پر اسلحہ رکھنے سمیت 11معاملوں میں اترپردیش کے رہنے والے کشیپ ہرپک سنگھ ڈھاکہ کا نام تھا۔ 14اگست 2004کو ودودرا میں پولس نے مار گرایا۔ مجسٹریٹ جانچ کی رپورٹ داخل کی گئی تھی۔

ڈاکہ زنی کے معاملہ میں مطلوب میتھو عمر ڈافر، 14مارچ 2004کو آنند ضلع میں مارا گیا۔

قتل، لوٹ، چوری اور ڈاکہ زنی سمیت 14معاملوں میں مطلوب راجیشور عرف منٹو،اپریل 2005کو آنند میں مارا گیا۔

ایک پولس کانسٹبل کے قتل اور لوٹ کے معاملے میں مطلوب صورت کے رہنے والے انل بین مشرا بہاری کو 11مارچ 2003کو سورت کے ادھنا مگڈلا روڈ پر مارا گیا۔ مجسٹریٹ جانچ نے پولس کو کلین چٹ دے دی تھی۔

لوٹ اور قتل کی کوشش کے معاملوں میں مطلوب مہیش دیپک گروالی 21جنوری 2004کو سورت میں مارا گیا۔

قتل اور ڈاکہ زنی کے معاملے میں مطلوب ایک سابق فوجی سبھاش بھاسکر نائر کو ولساڈ میں سورت دھولیہ روڈ پر 4جون 2004کو مارا گیا۔

دلساڈ کے رہنے والے سنجے عرف سنجو کو 26نومبر 2004کو مارا گیا۔

ڈونگریا ہملا مچھار کو ولساڈ کے مارائی گائوں میں 25اگست 2008کو مارا گیا۔

اسمگلنگ، ایکسپلو سوایکٹ اور نیشنل سیکورٹی ایکٹ سمیت 13معاملوں میں مطلوب جام سلایاکے حاجی اسماعیل سوزانیہ کو 9اکتوبر 2005کو مارا گیا۔

قتل، چوری، ڈاکہ زنی اور لوٹ کے 42معاملوں میں مطلوب ولساڈ کے رہنے والے جوگیندر سنگھ کھتان سنگھ سکھ کو 2006میں مارا گیا۔

ہمارے پاس ایسے اور بھی بہت سے واقعات کی تفصیل موجود ہے، لیکن ہم اس وقت مسرت جہاں کے تاثرات بیان کرکے آج کا مضمون یہیں پر ختم کرتے ہیں۔

عشرت جہاں کی چھوٹی بہن مسرت جہاں نے اپنا دردبیان کرتے ہوئے کہا کہ گجرات کی حکومت اور پولس پر ہمیں قطعی اعتماد نہیں ہے، اس لئے عشرت جہاں فرضی انکائونٹر سے متعلق مقدمہ کو گجرات ہائی کورٹ سے سپریم کورٹ میں منتقل کیا جائے اور فرضی انکائونٹر میں ملوث تمام سیاستدانوںاور پولس افسران کو بے نقاب کرنے کےلئے اس معاملے کی سی بی آئی سے تفتیش کرائی جائے تاکہ عشرت جہاں قتل کی حقیقت سب کے سامنے آ سکے اور مجرموں کو کیفر کردار تک پہنچایا جاسکے۔

دراصل عشرت جہاں کو قتل کیا گیا تھا اور انکائونٹر محض ایک ڈرامہ تھا۔ مجسٹریٹی رپورٹ آنے سے ثابت ہوا، لیکن گجرات سرکار نے اس رپورٹ کے خلاف ہائی کورٹ سے اسٹے حاصل کر لیا، جو انتہائی تکلیف دہ بات ہے۔گجرات سرکار کا یہ کہنا کہ یہ جانچ رپورٹ بہت جلد تیار کی گئی ہے، کافی مضحکہ خیز ہے ۔ ہم نے ا س سچائی کے سامنے آنے کے لئے پانچ سال انتظار کیا ہے، جو رپورٹ چار پانچ ماہ میں آ جانی چاہئے تھی، وہ اتنی تاخیر سے آئی اور اس پر بھی گجرات سرکار کا یہ رویہ ہے ۔ اس سے اس کی نیت صاف ہو جاتی ہے۔

ہم نے ہی مجسٹریٹ تمانگ کی رپورٹ پراسٹے کے خلاف سپریم کورٹ میں پٹیشن دائر کی ہے اور ہمیں پوری امید ہے کہ ہمیں انصاف ملے گا، لیکن گجرات ہائی کورٹ میں جاری سماعت سے ہم زیادہ مطمئن نہیں ہیں کیونکہ وہاں ان ’ لوگوں‘ کی سرکار ہے اورہم مانتے ہیں کہ وہ کسی بھی جانچ کوایمانداری اورغیر جانبداری سے مکمل نہیںہونے دیں گے۔ابھی جو انکوائری وہا ںچل رہی ہے، اس سے ہم مطمئن نہیں ہیں کیونکہ وہاں گجرات پولس ، گجرات سرکار اور نریندر مودی کے ساتھیوں کی جانب سے رخنہ اندازی کا خدشہ ہے۔

ہمارا مطالبہ ہے کہ اس پورے معاملے کو سپریم کورٹ میں منتقل کر دیا جائے اور انکائونٹر کی تفتیش سی بی آئی سے کرائی جائے تاکہ اس فرضی انکائونٹر میں ملوث تمام سیاستدانوں اور پولس افسران کے چہرے بے نقاب ہوسکیں۔


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