Friday, March 27, 2009

आज़म खान समाजवादी पार्टी से राज़ी या नाराज़?



आज़म खान के सम्बन्ध से ताज़ा समाचार समाचारपत्रों की शोभा बना वह यह के कोई एक व्यक्ति है समाजवादी पार्टी में जो उनके लिए पार्टी की "ज़मीन तंग" कर रहा है, उन्हें बदनाम कर रहा हैऔर पार्टी को हानि पहुँचा रहा है, लेकिन इस के बावजूद वह पार्टी नहीं छोडेंगे। उनके मुलायम सिंह यादव से ४० साल पुराने सम्बन्ध हैं।



बहुत खूब आज़म खान साहब..........



नाम लिए बिना जिस व्यक्ति की और आप इशारा कर रहे हैं, हम अगली कुछ पंक्तियों में नाम के साथ यह स्पष्ट कर देंगे के आपके इस बयान का कारण क्या है, परन्तु खूब भ्रम फैलाया आपने या फिर जनता ही बिना कारण इस ग़लत फ़हमी का शिकार रही और आपकी नाराज़गी का कारण कुछ और मानती रही, क्यूंकि नाम लेकर तो अभी तक आप कल्याण सिंह के सम्बन्ध से ही बात करते रहे थे। दो दिन पूर्व कल्याणसिंह की प्रशंसा करने वालों, उसका बचाव करने की चेष्टा करने वालों और उस से दोस्ती रखने वालों को आपने अच्छे शब्दों से नहीं पुकारा था। यह शब्द "गद्दार" किस के लिए था? स्पष्ट है आपके ४० साल पुराने मित्र के लिए तो नहीं होगा, जबकि कल्याण सिंह की मित्रता का ढिंढोरा पीटने वाले और घुमा फिरा कर बाबरी मस्जिद की शहादत के स्पष्ट आरोप से मुक्त ठहराने का प्रयास करने वाले लखनऊ से देवबंद तक की यात्रा कर के, उसे स्वीकार कर लिए जाने के लिए संघर्ष करने वाले तो आपके ४० साल पुराने मित्र ही थे। भले ही उन्होंने कभी क्लीन चिट न दी हो, परन्तु भागदौड़ का उद्देश्य क्या था.........?



अब रहा प्रशन अमर सिंह का, जिस का आप नाम नहीं ले रहे हैं और आपके अनुसार जो पार्टी को बर्बाद कर रहे हैं, तो शायद यह आपका निजी विचार है, क्यूंकि आपकी पार्टी के प्रमुख और आपके ४० साल पुराने मित्र मुलायम सिंह यादव तो आपकी बात से सहमती नहीं रखते। उनकी दृष्टी में तो अमर सिंह समाजवादी पार्टी को आबाद करने वाले हैं, न की बरबाद करने वाले। शायद यह आपकी नाराजगी का नया पहलु है क्यूंकि अभी तक लोग यह समझ रहे थे के आपकी समाजवादी पार्टी से नाराज़गी का कारण कल्याण सिंह से मित्रता है, तो क्या यह ग़लत सोच रहे थे? अब तो आपने स्वयं ही स्पष्ट कर दिया के कारण वह व्यक्ति है, जो आपको बदनाम कर रहा है। अर्थात नाराज़गी की बुन्याद कल्याण सिंह नहीं हैं, तब हमें कहना होगा के जो भी हो अमर सिंह एक स्पष्टवादी व्यक्ति तो हैं। उन्होंने तो आप से यह पहले ही स्पष्ट कर दिया था के आपके और उनके बीच मतभेद हैं और जाया परदा की उमीद्वारी भी इस का एक कारण है। आपसे इस मतभेद की बात तो अमर सिंह ने अनेक मुस्लिम प्रतिनिधियों के बीच भी साफ़ शब्दों में कही थी और इस में यह भी शामिल था के आप दोनों एक जगह नहीं रह सकते, अर्थात आज़म खान पार्टी में सक्रीय होंगे तो अमर सिंह अपने घर बैठ जायेंगे।



यदि आप का ताज़ा बयान मुलायम सिंह से pichhle दिनों आपकी पाँच घंटे की भेंट में तय हुई नई ranneeti का hissa नहीं है तो फिर आपका यह बयान अत्याधिक आश्चर्यजनक है क्यूंकि अमर सिंह से नाराजगी की बात नई नहीं है। यदि कारण यही था तो फिर इस तरह का भाव व्यक्ति करके के कल्याण सिंह का पार्टी से जुड़ना आपको पसंद नहीं है, कम से कम पार्टी को हानि पहुँचने का कारण तो आपको नहीं बनना चाहिए था। यदि आप ऐसा न करते तो शायद अमर सिंह और मुलायम सिंह को देवबंद जाकर तसवीरें खिंचवाने की आव्यशकता न पड़ती और न कल्याण सिंह के निवास पर नमाज़ अदा किए जाने की आव्यशकता होती।



अब हम एक और महत्त्वपूर्ण समाचार की तरफ़ आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। २५ मार्च को ३४-बी ब्लाक, दारुल शिफा लखनऊ में मुस्लिम बुद्धिजीवियों की एक प्रतिनिधि बैठक आयोजित की गई, जिस में वर्तमान राजनितिक हालात का विशलेषण करने के बाद कल्याण सिंह मामले में समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव पर वडा खिलाफी का आरोप लगते हुए एक कड़ी नाराजगी दिखाई गई और बैठक में सहमती से एक सलाहकार समिति का गठन किया गया, जिस के द्वारा मुस्लिम जागृकता अभियान व राजनितिक हालात से लोगों को परिचित करने के उद्देश्य से प्रत्येक जिले में सेमिनार आयोजित करने का निर्णय लिया गया। मदरसा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष मौलाना खलील अतहर अशरफी की अध्यक्षता में होने वाली इस बैठक में पूर्व एडवोकेट जनरल एस एम् ऐ काज़मी, अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व चेयरमैन शेख सुलेमान, गोरखपुर से आए ज़फर अमीन डाकू, टांडा (आंबेडकर नगर) के नफीसुल हसन एडवोकेट, उन्नाव के ज़मीर अहमद खान, उच्ची न्यायलय के वरिष्ट वकील मुश्ताक अहमद सिद्दीकी और घोसी के शमशाद अहमद खान इत्यादि ने बैठक में अपने विचार प्रकट करते हुए कहा के मुलायम सिंह यादव की पहल पर मोहम्मद आज़म खान ने १९ मार्च को दिल्ली में उनके निवास पर जाकर भेंट की और कल्याण सिंह के सिलसिले में मुसलमानों की भावनाओं से उन्हें आगाह कराया और मुसलमानों की इस मांग को उनके समक्ष रखा के वह इस समबन्ध में अपने विचार स्पष्ट करें।



मुलायम सिंह ने आज़म खान से वादा किया किया था के वह कल्याण सिंह मामले में दो तीन दिन के भीतर आज़म खान के साथ प्रेस कोंफ्रेंस करके ग़लत फेह्मियां दूर करेंगे, परन्तु आज तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है। इस वडा खिलाफी से नाराज़ बुद्धिजीवियों द्वारा मुशावारती कोंसिल (सलाहाकार समिति) की स्थापना करके पाँच व्यक्तियों को जिम्मेदारियां सोंपी गयीं हैं ताके वे इस का तन्जीमी ढांचा तैयार करें।

आगे की सभी कार्यवाही इसी कोंसिल की देख रेख में होगी। इस सिलसिले में मिल्ली बेदारी पैदा करने के लिए सभी जिलों में सेमिनार करने का फ़ैसला किया गया। बैठक में कोंसिल के संयोजक एम् ऐ सिद्दीकी, मियुन्सिपल बोर्ड बुलंद शहर के पूर्व चेयरमैन बदरुद्दीन, बरेली क सरफ़राज़ अली खान, रामपुर के नसीर अहमद खान, बनाराज़ के शकीलुर रहमान बबलू, फिरोजाबाद के हनीफ खाकसार और रैबरेली के राफे रना ने विशेष रूप से भाग लिया।

क्या दारुल शिफा में आयोजित इस मीटिंग में आपका मशवरा शामिल नहीं था, क्या वास्तव में आपकी कल्याण सिंह को लेकर कोई नाराजगी नहीं है? क्या सारे का सारा सच यही है के आपके और अमर सिंह के बीच मतभेद है और आप जो इतने दिनों से अपने पार्टी लीडर से बात नहीं कर रहे थे, मीटिंगों में भाग नहीं ले रहे थे, उस का कारण अमर सिंह से आपकी नाराजगी ही थी। अगर सच यही है तो यह आपका , अमर सिंह या आपकी पार्टी का आंतरिक मामला है, जिस तरह राजनाथ सिंह और अरुण जेटली की नाराजगी भाजपा का आंतरिक मामला था। जनता का इस से क्या लेना देना। मुलायम सिंह के लिए आप ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हैं या अमर सिंह, यह मुलायम सिंह यादव को तय करना है। आप दोनों एक साथ पार्टी में रहेंगे या आप दोनों में से कौन पार्टी में रहेगा कौन नहीं, यह भी आप दोनों का आपसी मामला है।

हम अगर इस समय इस सवाल पर बात कर रहे हैं तो इस लिए के मुसलमानों में बड़ा "कन्फ़ियुज़न" है। यह समझना कठिन हो रहा है के दारुल उलूम देवबंद में मौलाना मर्गूबुर रहमान साहब और मौलाना अरशद मदनी साहब ने कल्याण सिंह के इशु पर अमर सिंह व मुलायम सिंह यादव से भेंट के बाद क्या निर्णय लिया? क्या मुलायम सिंह यादव ने कल्याण सिंह के बारे में जो स्पष्टीकरण उनके सामने रखा वह उससे सहमत हैं, या कल्याण सिंह के इशु पर उनका मत मुलायम सिंह से अलग है। इसी तरह आपका मामला है। क्या कल्याण सिंह के इशु पर आप अपने पार्टी लीडरों के विचारों से सहमत हैं? या कल्याण सिंह से दोस्ती के मामले में आज भी आप अपने उसी दृष्टिकोण पर हैं जो लगभग पिछले दो माह से आपके द्वारा सामने रखा जाता रहा? इन तमाम बातों पर बहस इस लिए के अब निर्णय लेने का समय करीब आ पहुँचा है। मुस्लमान राजनितिक दलों की तरह न तो दबाव की राजनीती जानता है और न उस की कोई चुनावी रणनीति होती है। माहोल कुछ ऐसा बनाया जा रहा हैके उस का वोट भाजपा के विरोध में पड़े। इससे भाजपा भी खुश और धर्मनिरपेक्ष पार्टियां भी खुश। भाजपा इस लिए खुश के उसे मुस्लिम विरोधी मानसिकता रखने वाले वोटरों को एक साथ लाने का अवसर मिल जाता है और धर्मनिरपेक्ष पार्टियां इस लिए खुश के उन्हें थोक में मुसलमानों का वोट मिल जाता है।

आप क्यूंकि मुसलमानों की पसंदीदा धर्मनिरपेक्ष पार्टी में मुसलमानों का चेहरा समझे जाते रहे हैं, इसलिए आपकी राय का महत्त्व है और चूंकि आप बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर शुरू से ही जुड़े रहे हैं तो कल्याण सिंह के मामले में भी आपकी राय को अनदेखा नहीं किया जा सकता। वह मुसलमानों की सवच के अनुरूप हो या न हो, लेकिन उस पर बात तो की ही जा सकती है। जहाँ तक सवाल इस बात का है के इस चुनाव में मुसलमानों की रणनीति क्या हो इस पर भी अब बात करने का समय आगया है। लेकिन आज के इस lekh में नहीं। आज का यह लेख सिर्फ़ और सिर्फ़ इसी बिन्दु पर, इस लिए के इस इशु पर आपका दृष्टीकोण स्पष्ट रूप से सामने आए तो फिर कोई और बात की जाए और यदि इस प्रश् पर आपकी चुप्पी इसी तरह बनी रही जिस तरह पिछले दो महीने से आपके और आपके पार्टी लीडर ४० वर्ष पुराने मित्र के बीच रही तो फिर मुसलमानों को मिल बैठकर सोचना होगा और सोचना यह भी होगा की आपकी लंबे समय के बाद हुई एक विशेष मीटिंग का नतीजा क्या यही था के आप अपनी नाराज़गी सिर्फ़ और सिर्फ़ अमर सिंह पर केंद्रित कर देन ताकि इसे पार्टी के दो नेताओं के आपसी मतभेद का मामला समझकर अनदेखा कर दिया जाए और कल्याण सिंह के इशु पर कोई बात ही न हो।

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