प्रज्ञा और प्रोहित नए नहीं हैं
आतंकवाद १९४७ से ही आर एस एस का कल्चर रहा है
अमरेश मिश्रा एक बड़े इतिहासकार और यथार्थवादी लेखक हैं। उन्होंने २६ नवम्बर को मुंबई पर आतंकवादी हमलों के सम्बन्ध में बहुत कुछ लिखा है, जिसे हमने प्रकाशित भी किया है। उन्होंने ने अपने शोध द्वारा संघ परिवार के अतीत और इन आतंकवादी हमलों के उलझे हुए प्रश्नों पर भरपूर रौशनी डाली है, जिसे हम आज और आने वाले कल के प्रकाशन में पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करना चाहते हैं। अमरेश मिश्रा का यह लेख और उन के साथ की गई अभद्रता की जानकारी हमें ई-मेल द्वारा प्राप्त हुई। मुंबई पर आतंकवादी हमले के सम्बन्ध में मेरे ई-मेल पर कुछ और भी महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ हैं जिन्हें इस सिलसिलेवार लेख की आगामी कड़ियों में पाठकों की सेवा में प्रस्तुत किया जायेगा।
अब तथ्यों से छेड़छाड़ कौन कर रहा है? आप मेरा हवाला मेरी पृष्ठभूमि से बाहर जाकर देते हैं। मैंने कभी यह नहीं कहा की मुंबई हमले में चूंकि ६० मुस्लमान मारे गए थे इसलिए यह इस्लामी आतंकवादियों का कार्य नहीं हो सकता। मैंने केवल यह कहा था की यह वह तथ्य है जो कुछ देर के लिए मुझे ठहर कर सोचने पर मजबूर करता है।
इस बात को लेकर पूरे विश्व में मेरा साक्षात्कार हो रहा है, बी बी सी से लेकर अलजजीरा तक। मैं आपको कई बार इस बातचीत के बारे में बता चुका हूँ, जो द्वारिका के शंकराचार्य और सनातन धर्मियों के धरम गुरु स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज और आर एस एस प्रमुख गोलवलकर के बीच हुई थी। यह भी बता चुका हूँ की गोलवलकर ने कैसे श्री राम को "भगवान" मानने से मन कर दिया था और उन्हें केवल एक "महापुरुष" कहा करते थे और शंकराचार्य ने इन से कहा था की "येही बात रावन ने भी कही थी"।
आप यह बात भी भली भांति जानते हैं की द्वारिका के शंकराचार्य ने कई बार मुझ से कहा था की आर एस एस के कुछ लोग गांधी के हत्यारे हैं, उन्होंने ने कई बार मुझ से यह भी कहा था की आर एस एस के लोग अपराधी हैं, यह अपराधी दस्ते हैं, जिन्होंने कई बार शंकराचार्यों पर जानलेवा आक्रमण किया। वे हथ्यार और गोला बारूद एकत्रित करने में निपुण हैं। वे धर्म निरपेक्षता में विश्वास नहीं रखते। वे १९४७ से ही भारत में सेना की बगावत जैसा माहौल पैदा करने की प्रतीक्षा में हैं। आप जानते हैं की मेरे दादा सी बी आई में थे और इन दिनों (१९७० के दशक में) सी बी आई के सदस्य RAWके लिए भी कार्य किया करते थे अत: मेरी परवरिश RAW के सदस्यों की गोद में हुई है। इन लोगों के साथ मेरे सम्बन्ध अब भी हैं और मुझे यह बात भली भाँती पता है की RAW भारतीय सुरक्षा एजेंसियों और भारत के राज्यतंत्र के भीतर एक और सांप्रदायिक, संघ समर्थक, इस्राइल समर्थक और अमेरिकी सेना की समर्थक शक्तियों और दूसरी और धर्म निरपेक्ष राष्ट्रिय वादी शक्तियों के बीच जीवन और मृत्यु की जंग चल रही है।
अत: २६ नवम्बर की रात मैं अचानक ही किसी निर्णय पर नहीं पहुँचा। मैं जानता था की सभी आतंकवादी हमले इन्हीं युद्ध का परिणाम हैं और धर्म निरपेक्ष राष्ट्रवादी शक्तियों को नीचा दिखने हेतु अमेरिका के समर्थक, इस्राइली समर्थक और संघ समर्थक शक्तियों का एक प्रयास है। ये शक्तियां अब अपने बचाव के लिए लड़ रही हैं।
मैं एक बार फिर किसी परिणाम तक नहीं पहुँचा। मुझे गुप्त तौर पर यह बात पता थी, इस लिए मैं वह सब कुछ कह सका, जो मैंने कहा है और इसीलिए मेरी बात सत्य भी साबित होगी, क्यूंकि जब मैं मालेगाँव के आतंकवादी हमलों में संघ के लिप्त होने की बातें कर रहा था की जिस दौर में अडवानी केंद्रीय मंत्री थे और २००६ में नांदेड का मामला पेश आया था, तो इस दौर में संघ (परिवार) ने अमेरिका और इस्राइल की सहायता से अपनी आतंकवादी गतिविधियाँ फिर से प्रारम्भ कर दी थीं। उस समय भी कुछ लोगों ने मेरी बातों पर विश्वास किया था और अब करकरे ने पूरे सत्य का खुलासा कर दिया है।
मैं यह महसूस करता हूँ की कुछ लोग करकरे से इर्ष्या रखते थे क्यूंकि वह सत्य तक पहुँच रहे थे और अडवाणी और मोदी को भी गिरफ्तार कर सकते थे। आपकी सोच इस स्तर तक पहुँच चुकी थी? एक बार फिर आप मेरा उल्लेख पृष्ठभूमि से हट कर मत कीजिये।
इस लड़ाई में मैं धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवादी शक्तियों के साथ हूँ। ब्रह्मण और अब्राह्मण नौकर शाहों का एक पूरा संप्रदाय मेरे समर्थन में खड़ा है। आप मेरी मजबूती को भी भलीभांति जानते हैं। आप मुझे यु पी के किसी भी चुनावी क्षेत्र से खड़ा कर दीजिये, अमेरिका, इस्राइल और संघ के बीच रिश्तों की बात करते हुए भी कन्याकुब्जा ब्राहमणों का पूरा वोट मुझे ही मिलेगा, इस पर आप क्या कहेंगे? यह किस कन्याकुब्जा ब्रह्मण मुस्लिम समर्थक हैं?
पंडित नेहरू इस बात को जानते थे और हम लोग भी इसे भलीभांति जानते हैं की भारत का सब से महत्त्वपूर्ण और एकमात्र संघ का आतंकवाद है।
ब्रिटेन के इतिहासकार एलेक्स्वान तन्ज़ल मैन ने अपनी पुस्तक "दी इंडियन समर : सीक्रेट स्टोरी ऑफ़ एन एंड ऑफ़ एन अम्ब्यार" में एम् १६ और कुछ गुप्त ब्रिटेन अभिलेखों का खुलासा किया है जो इस बात की पुष्टि करते हैं की सितम्बर १९४७ में दिल्ली में होने वाले सांप्रदायिक दंगे वास्तव में भारतीय सेना के पूर्व अधिकारीयों की सहायता से आर एस एस द्वारा कराये जाने वाले दंगे थे। इन दंगों को भारतीय सेना ने सख्ती से कुचल दिया।
अत: प्रसाद श्रीकांत प्रोहित और प्रज्ञा सिंह ठाकुर नए नहीं हैं, आतंकवाद १९४७ से आर एस एस की संस्कृति रही है। आख़िर क्यूँ? क्यूंकि इन्होने "इंडियन नॅशनल स्टेट" पर कभी भरोसा ही नहीं किया, जिस की स्थापना १९४७ में की गई थी। ऐसे बहुत से अभिलेख हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं की गोलवरकर ने यु पी के मुस्लिम क्षेत्रों में आक्रमण करने हेतु ब्रिटेन अधिकारियों से सांठगाँठ कर रखी थी।
निम्नलिखित नमुनूं को देखें और फिर कृपया एक बुद्धिमान व्यक्ति की तरह अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें।
भारत की ब्रिटिश सरकार और आर एस एस के बीच संबंधों के पुख्ता प्रमाण राजेश्वर दयाल आई सी एस की जीवनी "ऐ लाइफ ऑफ़ अवर टाईम्स" में मौजूद हैं। इस पुस्तक को ओरिएंट लोग मैन ने १९९८ में प्रकाशित किया है।
उन्होंने ने आर एस एस को शहरों और गावों का विस्तृत मानचित्र प्राप्त किया ताकि मुसलमानों पर हमला किया जा सके।
दयाल कहते हैं की १९४६ के प्रारंभिक दिनों की एक कोकटेल पार्टी में मुख्या सचिव ने एक दिन अचानक मुझ से कहा था की "मैं उत्तर प्रदेश का अगला ग्रह सचिव बन सकता हूँ। ऐसी स्थिति में मैं पहला भारतीय अधिकारी होता जो इस पद पर आसीन होता, क्यूंकि अब तक यह पद ब्रिटिश अधिकारीयों के लिए ही सुरक्षित होता है।"
(पृष्ठ-७७)
ग्रह सचिव के रूप में दयाल बहुत ही गुप्त जानकारियों के राजदार बन चुके थे, "मैं एक अत्यन्त गंभीर घटना रिकॉर्ड पर रखना चाहता हूँ जब सांप्रदायिक तनाव अपनी पराकाष्टा पर था तो पश्चिमी रेंज के एक योग्य अधिकारी एवं अत्यन्त निपुण डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल बी बी एल जेटली बहुत रहस्मय ढंग से मेरे घर पहुंचे। उन के साथ दो अधिकारी थे, जो अपने साथ एक ताला लगा हुआ स्टील का संदूक भी लाये थे। जब उस संदूक को खोला गया तो उस के अन्दर से इस क्षेत्र के पश्चिमी जिलों में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे और खून खराबा करने के षड़यंत्र का परदा फाश हुआ और उस के प्रमाण भी मिले।
इस बक्से के अन्दर पूरी होश्यारी से बनाये गए ब्लू प्रिंट और व्यासायिक ढंग से बनाये गए मुस्लिम क्षेत्रों और निवास स्थलों के मानचित्र भी मिले, जिनमें उन स्थानों को विशेष रूप से चिन्हित किया गया। इन कागजों में इस बात का भी पूरा विवरण मौजूद था की इन क्षेत्रों तक कैसे पहुँचा जाए। इस के अलावा इस तरह के अन्य प्रमाण भी थे जिस से इस घिनौने षड़यंत्र का पता चलता था।"
दयाल इन सांप्रदायिक प्रमाणों को लेकर मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ्पन्त के पास पहुंचे "वहां पर एक बंद कमरे में जेटली ने अपनी खोज के बारे में बताया और स्टील के बक्से में मौजूद सभी प्रमाण भी दिखाए। आर एस एस के ठिकानों पर पड़ने वाले छापों के कारन एक बड़े षड़यंत्र का परदा फाश हो गया। यह पूरा षड़यंत्र इस संघटन के प्रमुख की निगरानी और उनके निर्देशन में तैयार किया गया था।
हम दोनो ने ही यानि जेटली और दयाल आरोपी श्री गोलवलकर को गिरफ्तार करने पर ज़ोर दिया जो की उस समय उस क्षेत्र में ही मौजूद थे। लेकिन पन्त जी ने इस पूरे मामले को मंत्रिमंडल के सामने रखने का निर्णय लिया। कांग्रेस के अन्दर आर एस एस से हमदर्दी रखने वाले लोग मौजूद थे और ख़ुद विधान सभा के अध्यक्ष आत्मा गोविन्द खेर्गी इन हमदर्दों में से एक थे और उनके पुत्रों के बारे में सब को पता था की वे आर एस एस के सदस्य हैं। लेकिन क़दम सिर्फ़ इतना उठाया गया की गोल्वालरअलकार को गिरफ्तार करने के बजाय उन्हें उन के खिलाफ पकड़े गए उन प्रमाणों के बारे में उन से स्पष्टीकरण माँगा गया। जैसा की आशा की जा सकती है की गोलवलकर वहां से भागने में सफल हो गए और कुरिअर उन तक पहुँच ही नहीं सका- "उन को ढूँढने का बेकार प्रयास जारी रहा। एक जगह से दूसरी जगह ढूँढने में हफ्तों गुज़र गए।"
इस पुस्तक के पृष्ठ के ९४ का अगला पेराग्राफ अपनी कहानी ख़ुद बयान करता है की "अंतत: ३० जनवरी १९४८ का वह दिन आगया जब शान्ति के सबसे बड़े संदेशवाहक एक गोली के शिकार होगये।"
यह मानचित्र केवल "ब्रिटिश सर्वेयर जनरल" के कार्यालय में ही तैयार हो सकते थे। ब्रिटिश प्रशासन को इस के महत्त्व और गंभीरता का अच्छी तरह पता रहा होगा जिसके कारन इस मानचित्रों की कड़ी सुरक्षा की गई और आर एस एस को यह मानचित्र मुहैय्या करना इस बात का प्रमाण है की उन दोनों के बीच गहरे सम्बन्ध थे...............जारी
अमरेश मिश्रा
5 comments:
aziz sahab apkey blogs padh k khabron ki sachchi shakal dekhney ko milti hai....
nice job keep it up....
inshaallah ap aise hi sach se rubaru karatey rahengey...
allah hafiz
Keep posting Amaresh Misra's all the guest articles on Roznama Sahara, here also.
aziz bhai assalamualaikum
main is baat ko nahin samajh paa raha hoon ki media ki is report par
police kiyon ghor nahin kar rahi hai
ki kama hospital par attack karne wale marathi bol rahe the jabki kaha jaraha hai ki kama hospital par pakistani terrorist ne attack kiya tha. please is par kuchh roshni dalen
THANKS ONCE AGAIN-
AZIZ BURNEY SHAAB for your true Blogs.
sir,
hindi language scripts for computers is very difficult to mind.
so plz write your Blogs in HINDI as ROMAN SCRIPTS or english.
Azia - Idiots like u are the reason why youth in India and around the world get misled. The kind of s**t you spew about conspiracy theories et al prove how silly and stupid you are. There is no place for idiots like you in a civil society.
Post a Comment