किसी भी निर्णय से पहले हमारी सरकार यह तो सोचे
विश्वसनीय कौन! आतंकवादी "क़सब" या "शहीद करकरे"
पाकिस्तान पर हमला करना है तो वातावरण निर्मित है, बिना झिझक किया जा सकता है, जिस समुदाय ने पहले एक वीर अब्दुल हामिद दिया था, अब वह दस अब्दुल हामिद दे सकता है। मीजाइल मैन ऐ. पी. जे अब्दुल कलाम की दी हुई टेक्नोलॉजी भी है और मौलाना आजाद, मौलाना हसरत मोहानी व अली ब्रद्रन की छोड़ी हुई विरासत भी है। परन्तु यह युद्ध क्या भारत की किसी समस्या का हल है? क्या पाकिस्तान पर हमला करके आतंकवाद से मुक्ति पाई जा सकती है? क्या वास्तव में स्वयं आतंकवाद का शिकार पाकिस्तान भारत में होने वाले आतंकवादी हमलों में लिप्त हो सकता है? क्यूंकि पिछले दिनों आतंकवादी हमलों में पाकिस्तान ने जो खोया वो भी कुछ कम नहीं है। ताज और ओबेरॉय से पहले पाकिस्तान के होटल "मेरिअट" पर हमला हुआ तथा करकरे से पहले पाकिस्तान में लोकतंत्र की बहाली के लिए चिंतित बेनजीर भुट्टो आतंकवादी हमलों की भेंट चढ़ गयीं। आख़िर हम यह कब सोचेंगे की यह आतंकवादी हमले किस की समस्याओं का समाधान हें, किस के मस्तिष्क कि खोज हें, किसे अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए आतंकवाद और युद्ध कि आव्यशकता है। क्या अमेरिका के अतिरिक्त किसी और का नाम आपके मस्तिष्क में आता है?
हम अगले एक वर्ष तक बराक हुसैन ओबामा के नेतृत्व वाला अमेरिका देखना चाहते हें, इस लिए पहले से स्थापित दृष्टीकोण पर अधिक बात नहीं करना चाहते हें। आज भारत में बैठ कर कोंडालिसा राइस क्या बोल रही हें और कल इस्लामाबाद जा कर क्या बोलेंगी यह हमारे लिए इतना महत्तवपूर्ण नहीं है। हाँ मनमोहन सिंह और आसिफ ज़रदारी के लिए महत्त्वपूर्ण हो सकता है। हमें देखना होगा की बराक हुसैन ओबामा और हिलेरी क्लिंटन क्या बोल रहे हें? जहाँ तक जॉर्ज डब्लेव बुश का प्रशन है तो ९/११ के बाद उन की पर्त्येक समस्या का निदान लादेन का भूत था। जब भी वे परेशानी में होते, लादेन का कैसेट सामने आजाता, इसी प्रकार हिंदुस्तान में जब जब भारतीय जनता पार्टी परेशान होती है, बम धमाके हो जाते हें। इस समय इन बम धमाकों ने किस प्रकार भारतीय जनता पार्टी को मुसीबत से बचाया है, समूचा विश्व जनता है। वरना अब तक करकरे, अडवाणी और राज नाथ की कितनी किरकिरी कर चुके होते, समझा जा सकता है। पता नही हमारी केंद्रीय सरकार की सोचने समझने की शक्ति समाप्त हो गई है अन्यथा संघ परिवार को क्लीन चिट देने के लिए वह इतनी उतावली न होती। जहाँ तक पाकिस्तान को आरोपी ठहराने की बात है और उस के लिए पाकिस्तान पर हमला किया जाना चाहिए था तो जयपुर से ले कर आसाम तक पिछले ६ महीनों में ६ से अधिक अवसर हमारे पास थे। अब रहा प्रमाणों का सवाल तो सरकार भलीभांति जानती है की वह कौन से प्रमाण हें जो पाकिस्तान के विरुद्ध हें और जिन्हें बुन्याद बना कर न केवल यह की बेहतर होते जा रहे सम्बन्ध खतरे में डाले जा रहे हें। अपितु हमला करने तक की आवाज़ें उठने लगी हें। क्या पुलिस के हाथ आए आतंकवादी का बयान शब्दश: सच्चा है? पुलिस की कार्यप्रणाली तो सब जानते ही हें। वो केवल तोते की तरह रटा हुआ बयान बोलेगा। इस के पीछे किस की इच्छा क्या है, यह इसे क्या पता। हमारी वह गुप्तचर एजेंसियाँ जिन्हें अब पल पल की ख़बर है, कहाँ तक पानी का जहाज़ आया, कहाँ से वे नावों में सवार हुए, कितने लोग थे, कैसे कपड़े पहने थे, इरादे क्या थे, कितने सटेलाईट फ़ोन थे, कितने घंटे तक बात हुई? ठीक इसी प्रकार उन्हें दस मिनट में पूर्ण जानकारी प्राप्त हो गई, जिस प्रकार वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के दस मिनट बाद सी आई ऐ और मिस्टर बुश को प्राप्त हो गई थी। जब हम यह सुनते थे की भारत नक़ल करने में निपुण है तो हमारा मस्तिष्क इस ओर नहीं जाता था की वह अमेरिकी रणनीति की भी नक़ल करेगा। अब अगर यह नक़ल करने की प्रवृत्ति इससे भी आगे तक जारी रही तो फिर पाकिस्तान के साथ युद्ध अनिवार्य नज़र आता है। इस लिए की अमेरिका पर हुए ९/११ के आतंकवादी हमले के बाद अफगानिस्तान और इराक , अमेरिकी एक्पक्ष्य युद्ध के बाद लग भग नष्ट कर दिए गए। बहाना था की अफगानिस्तान में लादेन है, और इराक में विनाशकारी हथ्यार। जाते जाते मिस्टर बुश स्वयं यह भी कह गए की इराक में विनाशकारी हथ्यार नहीं थे और यह केवल एक अफवाह थी। येही बात तो सद्दाम हुसैन ने भी कही थी तथा स्वयं उन के द्वारा भेजी गई विशेषज्ञों की हजारों पृष्ठों पर आधारित रिपोर्ट का भी येही कहना था। परन्तु क्या उन्होंने उस समय विश्वास किया? अमेरिका को हमला करना था, यह हमला हुआ, परिणाम सबके सामने है। हमले का जो कारण बीते हुए कल में अमेरिका के पास था, वही आज हमारे पास भी है। अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला इस लिए किया क्यूंकि वहां लादेन था और हम पाकिस्तान पर इस लिए हमला कर सकते हें की वहां दाऊद है। इराक को इस लिए नष्ट किया गया क्यूंकि वहां विनाशकारी हथ्यार होने की सूचना थी। हम पाकिस्तान को इस लिए नष्ट कर सकते हें क्यूंकि उस के विषय में मुंबई में हुए आतंकवादी हमले की सूचना है। "सूचना है" मैंने इस लिए लिखा की अभी विशवास करने जैसी बातें सामने नहीं आई हें। यह बयान हमारे उन सतर्क एवं कर्तव्यनिष्ठ गुप्तचर अधिकारीयों का है जिन की नाक के नीचे इतना बड़ा आतंकवादी हमला हुआ और वे सोते रहे। अब भी वे लगातार एक अविश्वसनीय बात कहते चले आरहे हें की हमला करने वालों की संख्या केवल दस थी तथा कोई स्थानीय हाथ भी इस में शामिल नहीं है। कौन मूर्ख इस बात पर विशवास करेगा की इतना बड़ा विनाश और केवल १० आतंकवादी, कोई स्थानीय सहायक नहीं। हमारे विचार में तो ताज और ओबेरॉय जैसे होटल में कोई अपनी दोस्त को पत्नी बना कर ले जाए तो यह बात भी पकड़ में आसकती है। हत्यारों का इतना बड़ा भंडार होटलों में हो और उपस्थित होटल के स्टाफ और प्रबंधनों को इस की कोई जानकारी न हो। बात कुछ हज़म नहीं होती। इस से जुडा एक प्रशन जो करना नहीं चाहते थे मगर सच की मांग है इस लिए करना आवयशक लगता है। भोपाल गैस काण्ड में एंडरसन पर मुकदमा क्यूँ? दिल्ली के उपहार सिनेमा में आग लगने पर अंसल ब्रदर्स को सज़ा क्यूँ? क्या एंडरसन कम्पनी के जिम्मेदारों ने स्वयं आकर गैस लीक की थी? क्या अंसल ब्रदर्स ने स्वयं आकर अपने सिनेमा घर में आग लगायी थी? दोनों मामलों में केवल मानवीय भूल थी परन्तु इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती थी। तो फिर इस से बड़ी भूल के लिए होटल ताज और ओबेरॉय के मालिक जिम्मेदार क्यूँ नहीं? माफ़ कीजिये, भोपाल गैस काण्ड या उपहार सिनेमा में आग भारत पर आतंकवादी हमला नहीं था जबकि ताज और ओबेरॉय में जो कुछ हुआ, वह भारत पर हमले से कम नहीं है। क्या भारतीय सरकार को अपनी मित्रता के लिए सब कुछ स्वीकार है या फिर कारन यह है की भोपाल गैस काण्ड और उपहार सिनेमा में आग लगने के मामले को पाकिस्तान से नहीं जोड़ा जा सकता था।
होटल ताज में हमला करने वालों ने अमेरिकी और ब्रिटिश नागरिकों की निशान्दाही चाहि और निशाना भी बनाया। क्या इस लिए की कोंडालिसा राइस और मिस्टर ब्राउन को हस्तक्षेप का अवसर मिले और यदि पाकिस्तान पर हमला करने की आव्यशकता हो तो उन की राय का दखल भी रहे। नरीमन हाउस निशाना बना क्यूंकि इजराइलियों की घृणा को इस्लाम और मुसलमानों के विरुद्ध प्रयोग किया जा सके, क्या यह सब कुछ एक सोचे समझे षड़यंत्र का हिस्सा नहीं हो सकता? आख़िर हम इस दिशा में क्यूँ नहीं सोच रहे हैं जो इस आतंकवादी हमले का एक कारण हो सकता है? हो सकता है की यह ग़लत हो परन्तु जांच के लिए विभिन्न दृष्टिकोण सामने रखे ही जाते हें। भारत के इतिहास में यह पहला अवसर था की हिंदू संघटनों के आतंकवाद का इतना बड़ा नेटवर्क सामने आया। इस दिशा में जांच की जा रही है क्या हेमंत करकरे को रास्ते से हटाने, हिंदू आतंकवाद की घटनाओं को परदे के पीछे ले जाने और एक बार फिर मुसलमानों या इस्लामी देशों का सम्बन्ध आतंकवाद से जोड़ने के लिए यह षड़यंत्र रचा गया हो, ऐसा नहीं हो सकता।
हाँ हम वे घटनाएँ और विवरण सामने रखेंगे की जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार में फौज के बीच संघ परिवार का लिटरेचर बांटा गया, क्या उन का मस्तिष्क बदलने के लिए विशेष अवसरों पर फौज के बीच बाल ठाकरे और संघ के प्रचारक तरुण विजय को निमंत्रित नहीं किया गया। चलो कुछ देर के लिए बाल ठाकरे को राजनीति और इस सरकार का हिस्सा मान भी लें तो तरुण विजय की उपस्थिति का कारण? हमारे पास वह विवरण है जिस से स्पष्ट होता है की "RAW"और IBमें एक भी मुस्लमान नहीं था। (जिस समय की रिपोर्ट का उल्लेख हम कर रहे हें, उस समय नहीं था। हो सकता है आज कोई हो) ऐसा क्यूँ? १९३६ में भोसला मिलेट्री ट्रेनिंग कॉलेज की स्थापना की गई, कब किस ने और किस उद्देश्य के लिए की? सब कुछ सामने आया तो स्पष्ट हो जायेगा की प्रोहित और उपाध्याय जैसे लोगों को आतंक का पर्याय बनाने के लिए प्रयोग किया गया यह मिलेट्री कॉलेज।
हम इस आतंकवादी "क़सब" की बात पर विशवास करें जिस ने बताया की ५०० आतंकवादियों को ट्रेनिंग दी गयी पाकिस्तान में। या "शहीद हेमंत करकरे" की बात पर विशवास करें जिन्होंने ने बताया की प्रोहित ने ५०० आतंकवादी तैयार किए। अब निर्णय भारत सरकार को लेना है और भारतीय जनता को की यह आतंकवादी सच्चा है या शहीद हेमंत करकरे? हमला इस आतंकवादी के बयान को आधार बना कर पाकिस्तान पर किया जाना चाहिए या करकरे के इस बयान को उन की आखरी वसीयत मान कर उन लोगों पर पकड़ मज़बूत की जानी चाहिए जिन्हें वह बेनकाब कर रहे थे।
1 comment:
hans blix ,chief un weapons inspector said before the iraq attack..."many in the us and pentagon are BASTARDS"
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