Wednesday, December 10, 2008



कौन है मास्टर माइंड इन आतंकवादी हमलों का

क्या सोचते हैं आप! विचार करें और बताएं

जीवन सहारा उर्दू विशेषकर इस एक लेख "मुसलमानाने हिंद .......माजी, हाल और मुस्तकबिल???तक सिमट कर रह गया है। घर परिवार मित्र, रिश्ते नाते, तीज त्यौहार सब कुछ बहुत पीछे छूट गया है। यहाँ तक की शनिवार की शाम जब मैं अपने कार्यालय मैं बैठा उस दिन का लेख तैयार कर रहा था तभी फ़ोन पर सूचना मिली की पत्नी की तबियत बहुत ख़राब है। अत: डॉक्टर को फ़ोन किया और मैं ख़ुद भी घर के लिए रवाना हो गया। एक ही समय में मैं और डॉक्टर घर पहोंचे। इंजेक्शन इत्यादि देने के बाद कुछ राहत मिली तो तो उस ने बड़ी हसरत से मूंगफली का एक पैकेट खोलकर मेरे सामने रखते हुए कहा,"कभी आप सर्दियों में मूंगफली और गजक ले कर आते थे आज मैं लेकर आई हूँ, अब तो आपके पास इतना समय नहीं होता..........कभी हम जब बहुत मामूली जीवन जी रहे थे तब बहुत खुश थे, थोड़े से पैसे होते तो आप मूंगफली लाते और कभी कभी फ़िल्म भी देख आते, अब तो यह सब सपनों की सी बातें लगती हैं। इस के पश्चात् मुझे लगा की कुछ तकाजे ऐसे भी हैं जिनकी बिल्कुल उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। मैं देर तक उससे बातें करता रहा, रात्रि के लगभग १० बजे का समय था, टी वी ऑन किया तो कलर्स चैनल पर फ़िल्म "हल्ला बोल" आरही थी। शायद आधी से ज़्यादा फ़िल्म निकल चुकी थी, जहाँ से मैंने फ़िल्म देखना शुरू की वहां अदालत में एक लड़की झूठ बोलकर अपराधियों की जान बचा लेती है। ये अपराधी राज्य के एक मंत्री के बेटे हैं और इस फ़िल्म के नायक समीर खान जो एक फ़िल्म स्टार है, अपराधियों को उन के किए का दंड दिलाने के लिए अपनी पोजीशन की भी चिंता नहीं करता। परन्तु उस लड़की का झूठ मुकद्के को उन के हक में कर देता है। लड़की अदालत से बहार निकल कर फूट फूट कर रोते हुए बताती है की किस तरह बाज़ार में अपमानित किया गया और उसे यह धमकी भी दी गई की यदि अदालत में उस ने अपराधियों की पहचान की तो उस का अंजाम भी ऐसा ही होगा जैसा की उस की बाहें का हुआ था। समीर खान उस के बावजूद भी हार नहीं मानता। वह अपराधियों को बेनकाब करना चाहता है इसलिए राज्य के उस मंत्री गाइक्वाद के घर पहोंचता है और वहां उस के आलिशान घर पहुँच कर उसे उसकी वास्तविकता बतलाता है। परन्तु जब वह वहां से लौट रहा होता है तो रास्ते में उस पर हमला होता है, उसका सीनियर साथी सिद्धू समय पर पहुँच कर समीर खान की जान बचाता है।


गैक्वाद का प्रयास है समीर खान किसी भी तरह सड़क पर किए गए प्रदर्शन में उसे बेनकाब न करे, जबकि समीर खान और सिद्धू जो एक थिअटर से निकले थे यह फ़ैसला करते हैं की "हल्ला बोल" के नाम से सड़क पर नाटक करके अपराधियों को बेनकाब करेंगे। लंबे समय के बाद देखि गई इस फ़िल्म में भी मैं अपनी पत्नी के साथ रह कर भी साथ न रह सका, मेरा यह सिलसिलेवार लेख इस दौरान भी मेरे मस्तिष्क पर छाया रहा। मुझे लगा की यह समीर खान वास्तविक जीवन में हमारे जीवन में हमारे बीच हेमंत करकरे के रूप में मौजूद था जो दुर्भाग्य से अब हमारे साथ नहीं हैं और गाइक्वाद आज भी जीवित है। क्या उसे बेनकाब करने के लिए कुछ समीर खान सामने आयेंगे? करकरे के अधूरे काम को पूरा करने का साहस करेंगे? शायद येही उन के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी। आज ईद का दिन है मेरे पाठक मुझ से राय मांगते रहे हैं की राष्ट्र व क़ौम के कल्याण के लिए वे क्या करें? हर बार मैंने येही कहा की माहौल को अनुरूप होने दीजिये, एक हो कर कोई कार्य योजना बनायेंगे और फिर उसे क्रियान्वयन के लिए आपके सामने रखा जायेगा। परन्तु इस समय मैं अनुभव करता हूँ की देर करना उचित नहीं होगा, अब कोई शुरुवात करनी ही होगी। अत: विचार आया की इस आन्दोलन को आगे बढ़ने के लिए आप कोई नाम सामने रखें और यदि आप चाहें तो वो नाम


"सहारा यूनिटी मिशन"


SAHARA UNITY MISSION


भी हो सकता है। हर शहर, हर गावं, हर मुहल्ले में इस की शाख स्थापित करें और रोजनामा राष्ट्रीय सहारा के द्वारा शुरू की गई अधिकार और न्याय की इस जंग को अपने हाथ में लेकर आगे बढ़ें। परन्तु यह ध्यान रहे की यह जंग अकेले नहीं लड़नी है। इस जंग में सफलता तब तक सम्भव नहीं जब तक के हमारे अन्य देशवासी भाई विशेषकर हिंदू भाई इस में शामिल न हों। इस लिए आज हम में से हर एक को अपने निकटतम हिंदू भाइयों से ईद मिलने के लिए अवश्य जाना चाहिए और जो आ सकें उन्हें निमंत्रण भी देना चाहिए तथा उन के सामने केवल एक ही बात रखनी चाहिए की मुंबई पर आतंकवादी हमला वास्तव में हमारे देश पर किया गया आतंकवादी हमला है और यह जंग हमें मिलजुल कर लड़नी है, उसी प्रकार जिस प्रकार अंग्रेजों के विरुद्ध जंग में हम कंधे से कन्धा मिलाकर साथ थे। आज चाहे हमारे विदेशी पड़ोसी का मामला हो या हमारे देश में देश के उन गद्दारों का मामला हो जो सफ़ेद पोश होने के करना पहचान में नहीं आते हैं, इस लिए बचे रहते हैं। आतंकवादी उस समय तक अपनी आतंकवादी गतिविधियों में सफल नहीं हो सकते जब तक की उन्हें अन्दर से कोई सहायता न मिले। क्या उत्तरदायी लोगों की लापरवाही उनके लिए उत्साह्वृद्धक साबित होती है या फिर यह आतंकवाद उन की राजनीतीक आव्यशकता बन गई है और इसके लिए वह इंसानों का खून बहने से भी बाज़ नहीं आते।
आजके इस लेख को मैं अधिक विस्तार नहीं देना चाहता। आज का समय पढने से ज़्यादा मैं आप सबको सोचने में प्रयोग करते हुए देखना चाहता हूँ और आपके सोचने के लिए उपरोक्त बिन्दुओं के अतिरिक्त एक तस्वीर भी आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ जिस में शहीद करकरे का चेहरा और होटल ताज की इमारत है, चारों ओर वे चेहरे हैं जिन में से कुछ हेमंत करकरे और उनके साथियों की मृत्यु के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं और देश पर इस आतंकवादी हमले के लिए भी। सबसे ऊपर जो तीन चेहरे (साध्वी प्रज्ञा सिंह, लेफ्टनेंट कर्नल प्रोहित और दयानंद पाण्डेय) आपके सामने हैं, उन को तो इस लिए इस फोटो में जगह दी गई है की हो सकता है येही तीन इस भयानक हमले का बुनयादी करना बने हों, इस लिए की हेमंत करकरे जिन्हें बेनकाब कर रहे थे, उन में सूची में सब से ऊपर यही थे. मोदी और प्रवीन तोगाडिया, शायद यह उन लोगों में से हैं जिन के दामन तक वह आग पहुँच रही थी और वह अपने भविष्य और योजनाओं को लेकर डर गए थे। मनमोहन सिंह, कोंडोलिजा राइस और मोसाद की सांकेतिक फोटो इस लिए दी गई हैं की कहीं ऐसा तो नहीं की भारत में मुसलमानों को आरोपी ठहराने के लिए अमेरिका और इस्राइल ने भी कोई रोल अदा किया हो और हमारे प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह उन के दबाव में आकर मौन रहने के लिए विवश हो गए हों। अडवाणी और उनके बीच जो भी बातचीत हुई हो, क्या इस में अमेरिका का भी कोई दखल था और अंत में जो फोटो हैं उन में एक तो वो आतंकवादी है जो पुलिस की कहानी का केंद्रीय चरित्र है और जिस के सहारे इस आतंकवादी हमले की सच्चाई सामने रखने की बात कही जा रही है और बाक़ी पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ ज़रदारी और दवूद इब्राहीम जिन की ओर यह इशारा है की आई एस आई अर्थार्त पाकिस्तान का खुफिया संघटन इन आतंकवादी हमलों में लिप्त है। मेरे मस्तिष्क में इन सभी फोटो के सम्बन्ध से एक काल्पनिक कथा है, एक ऐसा दृष्टिकोण जो शायद सही भी हो सकता है, मगर इस समय मैं इन फोटो को आपकी सेवा में प्रस्तुत करना चाहता हूँ की पहले आप सब का दृष्टिकोण जानूं क्यूंकि पूर्ण वस्तुस्थिति आपके सामने है और कोई राय तो आपने भी स्थापित की होगी, इस लिए कलम उठाइये और नीचे दिए गए ई मेल द्वारा मुझे अपनी राय भेजिए और फिर प्रतिज्ञा करें मेरे अगले लेख का।

1 comment:

expiredream(aslansary) said...

Sir,
Aziz burny.
EACH word of your each santance is respectsable for everyone who keeps faiths on justic.
perhaps you are only indian muslim who are lighting us from the dark.
your newspapers and your Blog spot are giving us a platform for the fighting against unjustics.
Sir, main point is that..
WHY ARE MUSLIM WORSHIPERS CALLED TERRORISTS OR FUNDAMENTALISTS.
WHY ARE NON-MUSLIM WORSHIPERS NOT CALLED TERRORISTS OR FUNDAMENTALISTS.
A beard muslim is terrorist but not a dirty beard non-muslim.
Islamic warshiping is crime?
ALL SECTIONS OF MUSLIMS ARE TERRORISTS IN THE SIGHTS OF ANTI-MUSLIMS.
SO, All we would be come on a platform for justics.
AND THE MUSLIM LEADERSHIP IN INDIA...
is a team of manhoodless.
HOW much is matters of shame for us
that BATLA HOUSE FAKE ENCOUNTERS.
A HINDU LEADER LIKE AMAR SINGH COMES FOR THE JUSTIC FOR INNOCENTS WHO ARE KILLED IN FAKE ENCOUNTER BUT NOT A MUSLIM LEADER.
the HINDU HARDLINERS come for the supporting of hindu terrorsists as PRIGYA SADHVI and PUROHIT.
our muslim leaders are lover of chairs.
NO ONE MUSLIM LEADER IS HERE WHO STAND FOR THE JUSTIC OF BATLA HOUSE FAKE ENCOUNTER.
In the last
i am very happy and thanks to AZIZ BURNEY who gave us a spot for fighting against unjustic.
By
Mohd Aslam ANSARY