हमें लगा यह कि अब हमें इन विषयों पर और लिखने की ज़रूरत नहीं है जिन पर पिछले कुछ वर्षों में लगातार लिखा जाता रहा है। इसलिए कि हम चाहते थे कि भारत सरकार को उन तथ्यों से अवगत कराएं, वह इन आशंकाओं पर तवज्जो दे, और फिर इस देश विरोधी, समाज विरोधी योजनाओं से निमटने की रणनीति बनाए। 19 और 20 दिसम्बर 2010 को बुराड़ी में आयोजित देश की सत्ताधारी पार्टी कांगे्रस ने अपने 125 वर्षीय जश्न के एजंडे में लगभग इन तमाम बातों को शामिल कर लिया जिन पर कि हम सरकार और जनता की तवजो दिलाना चाहते थे, हमारा ख़याल था अब हमें अपनी तहरीर के लिए कुछ नए विषयों पर रिसर्च करनी होगी, लेकिन यह अधिवेशन समाप्ति तक पहुंचने से पहले ही प्रथम आपत्ति इस्राईल के दूतावास की हमारे सामने आई, उन्हें आपत्ति थी कि आरएसएस की तुलना ‘ना़िज़यो’’ से या ‘हिटलर’ से क्यों की गई। दरअसल इसकी व्याख्या हम अपने सिलसिलेवार लेख में पहले भी कर चुके हैं और आज फिर वक़्त की ज़रूरत यह है कि आरएसएस के दोस्त इस्राईल के दूतावास से जो आॅफ़िशियल आपत्ति दर्ज की गई है हम उसकी वास्तविकता आरएसएस के शब्दों में ही सामने रख दें, लिहाज़ा हम ज़िक्र करने जा रहे हैं मानव संसाधन मंत्रालय ह्न के द्वारा बनाई गई एक अत्यंत अहम कमेटी की रिपोर्ट) जिसमें आरएसएस की शैक्षणिक संस्थाओं पर अपनी तहक़ीक पेश की थी। इस कमेटी में देश के बुद्धिजीवियों और शिक्षा से संबंधित सीनियर अफ़राद सम्मिलित थे, जिनका उल्लेख हम अपने निम्नलिखित लेख में करने जा रहे हैं। विदित रहे कि हम यह तमाम बातें पहले भी सामने रख चुके हैं और उन्हें अपनी ताज़ा ‘पुस्तक’ में भी शामिल किया है। मगर आज फिर ज़रूरत इसलिए पेश आई कि हमारे द्वारा उठाए गए प्रश्न अब राष्ट्रीय बहस का विषय बन चुके हैं। सत्ताधारी पार्टी के एजेंडे में शामिल हो चुके हैं। लिहाज़ा हम इन तमाम बातों को जो कहते रहे हैं और लिखते रहे हैं अपनी तहक़ीक़ के ज़रिए सबूतों और हवालों के साथ पेश करना आवश्यक समझते हैं और आइंदा भी अगर हमारे द्वारा सामने लाए गए किसी भी तथ्य पर कुछ भी तफ़्सीलात दरकार होंगी तो उन्हें फिर एक बार मंज़रेआम पर रख दिया जाएगा।
सरस्वती शिशु मंदिर, जिस का प्रथम स्कूल आर.एस.एस चीफ एम.एस.गोलवालकर की उपस्थिति में 1952 में प्रारम्भ किया गया था, उस का प्रभाव कई गुना बढ़ चुका है। यहां पर सबसे पहले इस बात की चर्चा करना अतिअवश्यक प्रतीत होता है कि शिक्षा के इन ‘मंनिदरों’ में पढ़ाने लिखाने के नाम पर क्या कुछ सिखाया, समझाया जाता है।
भारतीय जनता पार्टी (बी.जे.पी) के सत्ता में आने से पहले पाठ्यक्रम की पुस्तकों का जायज़ा लेने के लिए एक कमेटी बनाई गई थी जिसका नाम था ‘नेशनल इस्टेयरिंग कमेटी आॅन टेक्स्ट बुक एवेल्यूशन’ और इसमें चर्चित और आदरणीय बुद्धिजीवीओं को नियुक्त किया गया था। इस कमेटी में जो लोग थे उनके नाम हैः प्रोफेसर बीपिन चंद्रा, प्रोफेसर एमरेटस, जवाहर लाल नेहरू यूनीवर्सिटी नेशनल प्रोफेसर और चेयरमैन, नेशनल बुक ट्रस्ट (एन.बी.टी) जिन्हें इस कमेटी का चेयरमैन बनाया गया था, प्रोफेसर रविन्द्र कुमार, पूर्व डायरेक्टर, नेहरू मेमोरियल म्यूज़ियम एण्ड लाइब्रेरी, प्रोफेसर निमाई सदहन बोस, पूर्व वाइस चांसलर विश्व भारतीय यूनिवर्सिटी, शांति निकेतन, प्रोफेसर एस.एस.बाल, पूर्व वाइस चांसलर, गुरू नानक देव यूनिवर्सिटी अमृतसर, प्रोफेसर आर.एस.शर्मा, पूर्व चेयपर्सन इण्डियन कोंसिल फाॅर हिस्टोरिकल रिसर्च, प्रोफेसर सीता राम सिंह, मुज़फ्फरपुर यूनिवर्सिटी, प्रोफेसर सरोजनी रीगानी, उस्मानीया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद और श्री वी.आई.सुब्रामनियम को सदस्य के रूप में शामिल किया गया था जबकि एन.सी.ई.आर.टी के डीन, प्रोफेसर अर्जुन देव को सचिव सदस्य बनाया गया था। इस कमेटी ने जनवरी 1993 और अक्टूबर 1994 को होने वाली इस मीटिंग में इन रिपोर्टो पर विचार विमर्श किया जिसे नेशनल कोंसिल फाॅर एजूकेशनल एंड ट्रेनिंग (एन.सी.इ.आर.टी) ने अनेक राज्यों में पढ़ाए जाने वाली पाठ्यपुस्तकों के हवाले से तैयार किया था और साथ ही आर.एस.एस द्वारा चलाए जाने वाले सरस्वती शिशु मंदिर के प्रकाशन (पब्लिकेशन) और विद्या भारतीय पब्लिकेशन द्वारा सामने लाया गया था। इस पर विचार विमर्श करने के बाद कमेटी ने मानव विकास संसाधन मंत्रालय (एम.एच.आर.डी) और विभिन्न राज्यों के शिक्षा संस्थानों को जो प्रस्ताव रखें और एन.सी.ई.आर.टी ने जो रिपोर्टे तैयार कीं, उनके कुछ अंश नीचे दिये जा रहे हैं जो यह दर्शाते हैं कि पार्टी की राजनीति और साम्प्रदायिकता का विष क्या होता है जिससे हमारे बच्चों के मस्तिषक को विषाक्त किया जा रहा था। नीचे दिये गये हवालों को हाई अलर्ट किया गया है, वह हमारी ओर से हैं।
सरस्वती शिशु मंदिर प्रकाशन के बारे में कमेटी का प्रस्ताव इस प्रकार हैः
‘‘सरस्वती शिशु मंदिर में प्राईमरी (बुनियादी) स्तर पर जो पुस्तकंे पढ़ाई जा रही हैं उनमें से कुछ पाठ्य पुस्तकों में भारतीय इतिहास के अत्यधिक विषाक्त और साम्प्रदायिक विचारधारा को पेश किया गया है...। यह तरीक़ा पूरी तरह कट्टरता पर आधारित है और अत्यधिक बचकाना है जिसकी भाषा भी भोंडी है और ऐतिहासिक तथ्यों को जिस प्रकार तोड़ मरोड़कर पेश किया गया है उसका उद्देश्य देश प्रेम का प्रसार नहीं है। जैसा कि दावा किया जा रहा है बल्कि पूरी तरह हठधर्मी और फासीवाद पर आधारित है.. इन पाठ्य पुस्तकों को स्कूल में पढ़ाने की स्वीकृति नहीं दी जानी चाहिए’
‘‘इसी तरह विद्याभारती पब्लिकेशन के बारे में इस कमीटी ने निम्नलिखित प्रस्ताव पेश कियाः
इस पब्लिकेशन के संबंध में तथा संस्कृतिक ज्ञान की शीर्षक से लिखे गए साम्प्रदायिक लेखों, जिन्हें देश के विभिन्न भागों में स्थापित किये गये विद्याभारती स्कूलों मंे पढ़ाया जा रहा है, कि विषय में जो चिंता इस रिपोर्ट में प्रकट की गई है उससे यह कमीटी भी सहमत है। ऐसे स्कूलों की संख्या 6000 बताई जाती है। यह कमीटी रिपोर्ट में उल्लेखित इस बात से सहमत है कि ‘‘संस्कृतिक ज्ञान सीरीज’’ के तहत प्रकाशित किये जाने वाले गद्य का उद्देश्य ‘नई नस्लों को संस्कृति की शिक्षा देने के नाम पर हठधर्मी और धार्मिक पागलपन को बढ़ावा देना है’’ इस कमीटी की राय है कि विद्याभारती स्कूलों को स्पष्ट रूप से हंगामा पैदा करने वाले साम्प्रदायिक विचारों के प्रचार के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है... संस्कृति ज्ञान सीरीज की पुस्तकों के बारे में मालूम हुआ है कि उन्हें मध्य प्रदेश तथा अन्य स्थानों पर स्थित विद्याभारती स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है। मध्यप्रदेश तथा अन्य राज्यों के शिक्षण प्रबंधन को चाहिए कि वह स्कूलों में इस सीरीज की पुस्तकों पर प्रतिबंध लगा दे। राज्य सरकारें इन पुस्तकों के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाने के लिए, जो साम्प्रदायिक घृणा को हवा देती हैं, कोई उचित क़दम उठायें और इन परीक्षाओं पर भी प्रतिबंध लगायें जो इन पुस्तकों के विषय वस्तु से संबंधित विद्या भारतीय संस्थान द्वारा लिये जाते हैं।’
स्कूलों में बच्चों की उभरती हुई मानसिकता में विष भरा गया
गोधरा के बाद वाली घटना जिसमें गुजरात में नरसहार किया गया जबकि राज्य में (और केन्द्र में भी) बी.जे.पी की सरकार थी और स्कूलों में बच्चों की उभरती हुई मानसिकता में विष भरा गया, इस बात की ओर बार-बार इशारा किया गया। गुजरात राज्य द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों में गयारवीं कक्षा के बच्चों को समाजिक ज्ञान (सोशल इस्टेडीज़) में निम्निलिखित बातें पढ़ाई जाती हैः
‘‘ ह्नमुसलमानों के अतिरिक्त ईसाइयों, पारसियों और दूसरे विदेशियों को भी अल्पसंख्यक सम्प्रदायों के रूप में माना जाता है। कुछ राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं जबकि मुसलमान, इसाई और सिख इन राज्यों में बहुसंख्यक हैं।’’
इन पाठ्य पुस्तकों में यह लिखा गया कि ‘‘हिटलर हमारा नेता है’’
गुजरात राज्य की दसवीं कक्षा के समाजिक ज्ञान की पुस्तक में जो फासीवाद और नाज़ीवाद की वकालत करती है, बच्चों को यह पढ़ाया जाता है कि इन ‘विदेशियों’ से कैसे निमटना है, जो हिन्दुओं को स्वयं उनके ही देश में अल्पसंख्यक बनाने में लगे हुए हैं।
नाज़ीवाद की विचारधाराः फासीवाद की तरह एक देश को चलाने के सिद्धांत या नियम जिसकी नीव हिटलर ने डाली थी, उसे नाज़ीवाद की विचारधारा कहा जाता है। सत्ता में आने के बाद नाज़ी पार्टी ने अधिनायक (डिक्टेटर) को पूर्ण, असीमित तथा सभी बड़े अधिकार दे दिए। अधिनायक को ‘फ्युहर्र’ के नाम से जाना गया। हिटलर ने पूरे ज़ोर शोर से यह घोषणा की ‘‘पूरी दुनिया में असली आर्य केवल जर्मनी के निवासी हैैं और वह विश्व पर शासन करने के लिए ही जन्मे हैं।’’ इस बात को सुनिश्चित बनाने के लिए कि जर्मन की जनता कठोरता से नाज़ीवाद के नियमों पर ही चलती रहेगी, इन नियमों को शैक्षिक संस्थानों के पाठ्यक्रम में शामिल कर दिया गया। इन पाठ्य पुस्तकों में यह लिखा गया कि ‘‘हिटलर हमारा नेता है और हम उससे प्रेम करते हैं।’’
नोटः- अगला लेख 27 दिसम्बर 2010 को इस्लाम जिमख़ाना, नेताजी सुभाषचंद्र बोस रोड, मैरीन ड्राइव, मुम्बई में अपनी ताज़ा तसनीफ़ ‘‘आर.एस.एस का षड्यंत्र-26/11?’’ के विमोचन के बाद।
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2 comments:
Dear Mr Burney. Another wonderful piece of 'enlightened fanaticism'.
Can you ignore the fact that India was partitioned by Islamic Fundamentalists and not by Hindu Saffronites. And can you say with full confidence that all those who did/could not migrate were all Nationalists?
Can you also ignore the fact that a Nation liberated by Indian forces in 1971/72 declared itself Islamic State, just because majority population was Islamic.
Will you please pay your attention on AMU too, though it may prove to be 'mis-adventurous' to scrutinize AMU and its role in Partition.
Mr. Burney
Though Ignorance is not bliss but my ignorance (Incapability) to understand urdu is perhaps a bliss, because atleast half of your poisonous articles I can not read. man think beyond being fanatic muslim. don't drown the respect of 'journalism' just because you have many a followers who are equally fanatic, or follow to get some political mileage.
I feel bad for the country to have people like you on its earth, who use all its resources and try to create rift between people.
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