9/11 की भांति अमेरिका में एक और हादसा हुआ उतना गंभीर तो नहीं मगर अंदाज़ वही। एक विमान टेक्सास में ‘‘आस्टन ऑफिस’’ भवन से टकराया जो एसबीआई के स्थानीय कार्यालय से कुछ ही क़दम की दूरी पर था। इस विमान को बम की शक्ल में तब्दील कर देने वाला आत्मघाती (नहीं मैं उसे आत्मघाती आतंकवादी नहीं लिख सकता क्योंकि सभी समाचार माध्यमों और अमेरिकी सरकार इस बीच यही सिद्ध करने में लगी है कि वह आतंकवादी नहीं था) विमान चालक ‘जॉय स्टेक’ कोई प्रशिक्षित पायलेट नहीं बल्कि एक सॉफ़्टवेयर इंजीनियर था। उसने यह आतंकवादी रवैया क्यों अपनाया, उसे किससे क्या शिकायत थी, उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है, क्यों अमेरिकी सरकार और समाचार माध्यम उसे आतंकवादी न सिद्ध करने पर तुले हैं, क्यों उसका चित्र कुछ इस तरह सारी दुनिया के सामने प्रस्तुत किया जा रहा है कि उससे सहानुभूति पैदा हो, उसे मासूम समझा जाए? आज यह मेरे शोध का विषय है, बहुत कुछ सामग्री ‘‘जॉय स्टेक’’ के हवाले से मेरे अध्ययन में है, कल शाम लखनऊ के ‘‘इरम डिग्री’’ कॉलेज के स्वागत समारोह में अपने भाषण के दौरान मैंने इस घटना का भी हवाला दिया था। इरादा तो यही था कि मैं आज इसी विषय पर लिखूंगा परन्तु लखनऊ से दिल्ली पहुंचते-पहुंचते आज की एक और बड़ी ख़बर मेरे सामने थी। ‘‘पंजाब में बड़े आतंकवादी हमले की साज़िश विफल’’ मुबारकबाद हमारी गुप्तचर एजंसियों और स्थानीय प्रशासन को कि समय पर कार्यवाही करके उन्होंने देश को एक और आतंकवादी हमले से बचा लिया। मुझे नहीं मालूम कि यह समाचार आपकी निगाहों से गुज़रा या नहीं, यह ख़याल भी इसलिए पैदा हुआ कि एक एडिटर और पत्रकार होने के नाते दर्जन भर से अधिक अख़बार मेरे अध्ययन में रहते हैं, उर्दू, हिंदी के भी और अंग्रेज़ी के भी। मैंने इस ख़बर को अधिकांश अख़बारों में नहीं पाया। ख़ुदा जाने उन्होंने इस ख़बर को अधिक महत्व के योग्य नहीं समझा। शायद हमारे प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया को इसमें बड़ी ख़बर के लायक़ कुछ ख़ास नहीं मिला या फिर कारण यह रहा कि ये आतंकवादी केएलएफ, बब्बर ख़ालसा और ख़ालिस्तान ज़िंदाबाद इत्यादि से संबंध रखते थे। अल-क़ायदा, लश्कर-ए-तय्यबा, इंडियन मुजाहिदीन जैसे कसी आतंकवादी संगठन से नहीं जुड़े थे। पूर्व इससे कि मैं इस ख़बर के हवाले से अपनी बात शुरू करूं, आवश्यक लगता है कि पहले यह ख़बर अपने पाठकों की सेवा में पेश कर दी जाए, जो दिल्ली से प्रकाशित होने वाले एक हिंदी दैनिक ने अपने प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित की है, फिर उसके बाद मेरी बातचीत का सिलसिला जारी रहेगा।
पंजाब में बड़े आतंकवादी हमले की साज़िश विफल‘‘
नाभा, पेट्रः पंजाब में आतंकवाद के फिर सिर उठाने की आशंकाओं के बीच पुलिस ने रविवार को पटियाला के निकट नाभा से दो खूंखार आतंकियों को धर दबोचा। गिरफ्त में आए आतंकवादी राज्य में किसी बड़ी वारदात करने की फिराक़ में थे। पुलिस ने खालिस्तान लिबरेशन फोर्स (के एल ऍफ़) के दोनों दहशतगर्दो के कब्ज़े से आठ किलो विस्फोटक सहित जिलेटिन की 40 छड़ें, दो पिस्टल और भारी मात्रा में गोला बारूद बरामद किया।
पुलिस0 महानिरीक्षक पी एस गिल ने आतंकवादियों की गिरफ्तारी को बड़ी सफलता क़रार दिया है। उनका कहना है कि गिरफ्तारी से पूर्व दोनों आतंकी किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने की योजना बना रहे थे। लेकिन पुलिस ने ऐन मौक़े पर उन्हें गिरफ्तार कर आतंकवादियों के नापाक मंसूबों पर पानी फेर दिया। पुलिस ने समय पर कार्रवाई करते हुए एक बड़ी आतंकी साज़िश को विफल कर दिया। ध्यान रहे कि के।एल.एफ ने 18 फरवरी को बाक़ायदा बयान जारी कर नाभा में इंडियन आयल के बाटलिंग प्लांट, चंडीगढ़ के निकट जीरकपुर में एयर फोर्स स्टेशन और लुधियाना के हलवारा वायु सेना हवाई अड्डे के सामने विस्फोटक रखने की ज़िम्मेदारी ली थी। के.एल.एफ ने ई-मेल से जारी बयान में कहा था कि तकनीकी गड़बड़ी के कारण धमाका करने की उनकी योजना भले ही फेल हो गई है, लेकिन महत्वपूर्ण सरकारी ठिकानों पर हमला करने की कोशिश जारी रहेगी। जांच के दौरान पुलिस को के.एल.एफ के ईमेल के बारे में भी पता चला, जिसमें नाभा सहित अन्य महत्वपूर्ण ठिकानों पर धमाका करने के लिए बघेल सिंह नामक किसी शख़्स को ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। इस ईमेल के खुलासे के बाद अधिकारियों ने कहा था कि राज्य में आतंकी संगठनों की नए सिरे से सक्रियता की संभावना से हम इनकार नहीं करते हैं। आतंकवाद के दौर में 1982 से 1995 के बीच के.एल.एफ पंजाब में खूंखार तरीके से सक्रिय था। खुफिया सूत्रों ने भी आगाह किया है कि के.एल.एफ के साथ-साथ बब्बर खालसा और खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स भी अपने नेटवर्क का विस्तार करने में जुटे हैं।’’
पिछले दिनों एक ख़बर पढ़ कर मुझे बेहद प्रसन्नता हुई। निश्चय ही आप सब भी काफी ख़ुश हुए होंगे। यह जानकर कि अमेरिका भारत को विकास की राह पर अग्रसर देख कर हैरान है। निःसंदेह अमेरिका ही नहीं, लगभग सभी विकसित देश भारत का विकास देख कर हैरान होंगे और उनकी यह हैरानी उस समय और अधिक बढ़ जाती होगी, जब वह यह देखते होंगे कि भारत आतंकवादी हमलों से जूझ रहा है। ताज़ा दहशतगर्दी की घटनाओं के अलावा नक्सलाइटस, सी.पी.आई.एम.एल, पीपुल्स वार ग्रुप, पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी, उल्फा, रणवीर सेना और बोडोलेण्ड की मांग करने वालों की दहशतगर्दाना कार्यवाहियों को ध्यान में रखें तो हम अंदाज़ा कर सकते हैं कि यदि भारत सभी प्रकार की दहशतगर्दी से पाक रहता तो आज उसने विकास की कितनी मंज़िलें तय कर ली होतीं। वह विकसित देशों की सूचि में किस स्थान पर खड़ा होता। बेशक हम सभी अपने देश को एक ऐसा विकसित देश देखना चाहते हैं जिसकी कोई मिसाल न हो और अगर आतंकवाद पर क़ाबू पा लिया जाए तो यह अतिसंभव नज़र आता है। मेरा विश्वास है कि दहशतगर्दी का मुक़ाबला आज केवल सरकार की ही ज़िम्मेदारी नहीं है, बल्कि भारत के हर नागरिक को इस आतंकवाद को जड़ से समाप्त करने के लिए व्यवहारिक रूप से कुछ करना होगा, तभी हमारा देश तरक्की की मंज़िलें तय कर पाने में कामयाब होगा और फिर यह कहने की ज़रूरत है ही नहीं कि अगर देश तरक्की करेगा तो देश का हर नागरिक भी तरक्की करेगा।
अब मैं वापस आता हूं उस समाचार की ओर जिसके हवाले से मैं आज कुछ लिखना चाहता हूं। इस ख़बर का महत्व कम क्यों था, यह सभी अख़बारों की मुख्य खबर क्यों नहीं थी, इसी तरह की घटनाएं जब अलग-अलग अवसरों पर, अलग-अलग शहरों में, अलग-अलग वर्गों से संबंध रखने वालों की शक्ल में नज़र आती हैं तो क्या हमारा व्यवहार ऐसा ही होता है? यहां मैं एक बार फिर यह अर्ज़ कर देना आवश्यक समझता हूं कि एक आतंकवादी ‘आतंकवादी होता है’, उसका धर्म, उसका दीन-व-ईमान सब कुछ ‘आतंकवाद’ ही होता है। वह केवल देश का दुश्मन ही नहीं मानवता का भी दुश्मन होता है। उसका संबंध चाहे किसी भी धर्म से हो, किसी भी आतंकवादी संगठन से हो या किसी भी देश से, इस बात को बार-बार कहने की आवश्यकता इसलिए है कि जब तक यह बात हमारे मन मस्तिषक में पूर्ण रूप से समा नहीं जाती, हम पूरी ईमानदारी के साथ आतंकवाद से लड़ नहीं सकते।
अधिकांश समाचार पत्र, टीवी चैनल और इन्टरनेट पर मौजूद न्यूज़ सर्विस मेरे अध्ययन में रहती है, जैसा कि मैंने आजकी दो ख़बरों के हवाले से कुछ कहने की कोशिश की है अगर आतंकवाद की घटना किसी अन्य विचारधारा के आतंकवादी या व्यक्ति से संबंध रखने वाली है तो फिर उसे न तो उतनी गंभीरता से लिया जाता है न उस पर अधिक ध्यान दिया जाता है, जबकि यदि ऐसी ही आतंकवादी घटना में कोई मुस्लिम नाम वाला लिप्त पाया जाए तो फिर हमारा रवैया एक दम भिन्न होता है। मैं उसके नुक़सानों पर ध्यान दिलाना चाहता हूं। ख़ुदा के लिए मेरी इस कोशिश को धर्म के चश्मे से न देखें, किसी की प्रतिरक्षा, किसी का बचाव न समझें, मेरे मन में केवल इतना है कि अगर भारत में आतंकवाद की प्रक्रिया जारी रखने वाले हेडली का नाम रख कर एक बदले हुए बाप के नाम के साथ और हमारे दोस्त समझे जाने वाले देशों का पासपोर्ट लेकर हमारी धरती पर क़दम रखेंगें तो बड़े से बड़े आतंकवादी हमले करते रहेंगे और हमारा ध्यान उस ओर या तो जाएगा ही नहीं या फिर तब जाएगा जब घटना हो चुकी होगी और ऐसे अपराधी अगर बेनक़ाब हो भी गए तो उस समय होंगे जब वह हमारी पकड़ से बाहर निकल चुके होंगे। इंडियन मुजाहिदीन की आतंकवादी प्रक्रिया से जुड़े भारत के विभिन्न शहरों में बम धमाके हुए। एक अमेरिकी नागरिक ‘केन हे वुड’ का नाम सामने आया, किंतु वह हमारे देश से फ़रार होने में कामयाब हो गया क्योंकि ऐसे नाम के लोगों को हमारे देश में आतंकवादी की निगाह से नहीं देखा जाता इसलिए न तो सीमा पार करते समय और न ही विमान में बैठते समय उन्हें संदिग्ध निगाहों से देखा जाता है। ऐसा ही हेडली के संबंध में हुआ। हमारी इस सोच से आतंकवादी संगठन भलीभांति परिचित हैं। अगर वह इसका फ़ायदा उठाकर बदले हुए नामों से हमारे देश में आतंकवाद फैलाते रहे तो फिर हम उस आतंकवाद से कैसे निपटेंगे। हमें नहीं मालूम कि दिल्ली एयरपोर्ट के निकट स्थित होटल ‘रेडिसन’ से पकड़े गए दो ब्रिटिश नागरिक किस इरादे के साथ हमारे यहां ट्रेफ़िक कंट्रोलर और पायलट के बीच हो रही बातचीत सुन रहे थे, रिकॉर्ड कर रहे थे, और अपने पास मौजूद राडार से हमारे आसमान पर उड़ने वाले विमानों पर नज़र रख रहे थे। मगर चूंकि उनके नाम ऐसे नहीं थे, जैसे नामों पर हमें आतंकवादी होने की शंका होती है, उनका संबंध ऐसे देश से नहीं था, जिन्हें हम अपना दुश्मन देश या आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला देश समझते हैं, इसलिए हमारा रवैया उनके प्रति अत्यंत नर्म रहा। हमने शायद यह भी नहीं सोचा कि अल-क़ायदा और लश्कर-ए-तय्यबा जो आज दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी संगठन माने जाते हैं और जिनके नाम हमारे देश में होने वाले विभिन्न बम धमाकों में भी सामने आते रहे हैं, वह अपने किसी नापाक मनसूबे के लिए किसी ऐसे देश के नागरिक का भी प्रयोग कर सकते हैं, जिस देश को हम अपना मित्र मानते हों। वह ऐसे धर्म के लोगों का भी प्रयोग कर सकते हैं, जिस धर्म के मानने वालों पर हम संदेह नहीं करते। अल-क़ायदा में लादेन की जगह लेने का दावा करने वाला एक अमेरिकी नागरिक जिसका नाम ‘एडम याहिया’ है। अब भले ही यह कहा जाए कि उसने इस्लाम गृहण कर लिया था, वह मुसलमान हो गया था, मगर इस सच्चाई को तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि आतंकवाद के लिए कुछ ऐसे लोगों का भी प्रयोग हो ही सकता है, इसलिए हमें ऐसे संदिग्ध लोगों को भी साधारण रूप में नहीं लेना चाहिए। बल्कि अपने देश की सुरक्षा के मद्दे नज़र हर दृष्टिकोण से उनकी संदिग्ध गतिविधियों को जानना व समझना चाहिए वरना एक स्थापित सोच हमें आतंकवाद के इस भयानक युद्ध में सफल नहीं होने देगी।
Monday, February 22, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
हिन्दू समझते हैं, लेकिन ९९ प्रतिशत मुस्लिम यह नहीं समझते. किसी पुलिसवाले से पूछिये कि मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में मुजरिम को गिरफ्तार करना कितना आसान होता है. यह भी ठीक है कि पुलिस किसी को भी कोई भी लेवल चिपकाकर बन्द कर देती है, लेकिन यह भी सत्य है कि पाकिस्तान से प्रायोजित आतंकवाद के विरुद्ध किसी भी इस्लामी धर्मगुरु ने आजतक साफ शब्दों में कुछ भी नहीं कहा. यह भी सत्य है कि पाकिस्तानी आतंकवादी जानबूझ कर ऐसी जगह हिट करते हैं जहां हिन्दू अधिक हों. यह भी सत्य है कि कश्मीर से हिन्दू साफ कर दिये गये लेकिन कभी मुस्लिम संगठनों ने उनके लिये वैसा कोई धरना प्रदर्शन नहीं किया जैसे कि वे अपने छोटे से छोटे मामले में करते हैं. सिख आतंकवाद सिखों ने ही दूर करा दिया, फिर ऐसे मामलों में मुसलमान आगे क्यों नहीं आते.
Post a Comment