Sunday, February 21, 2010

मुस्लिम आरक्षण के सवाल पर तूफ़ान क्यों?

पिछले कुछ दिनों से अस्थाई रूप से मैंने अपने लिखने के अंदाज़ में कुछ परिवर्तन किया है। अब मैं शुरुआत अपनी बात से नहीं करता। बल्कि मेरे सामने कोई न कोई ख़बर होती है और मैं इसे हू-बहू पाठकों के सामने रख देता हूं फिर इसके बाद मेरी टिप्पणी, समीक्षा, दृष्टिकोण या लेख, आप जो भी समझें। दरअसल यह इसलिए कि अक्सर राजनीतिज्ञ मीडिया पर आसानी के साथ यह आरोप लगा देते हैं कि उनके कहने का उद्देश्य यही नहीं था, उनके शब्द तब्दील कर दिए गए हैं। उनकी बात को ठीक से समझा नहीं गया है। इसलिए मुझे लगा कि जब मैं ऐसे नाज़ुक मसलों पर बातचीत कर रहा हूं तो, जिसके जिस वाक्य पर बात की जाती है पहले उसी को पूरी तरह सामने रख दिया जाए फिर आगे अपनी बात शुरू की जाए। वैसे तो इस बीच दो और ऐसे विषय थे जिन पर बातचीत की जानी चाहिए थी और जिन पर मैं लिख भी रहा था, एक तो पुणे का बम ब्लास्ट और दूसरा दिल्ली एयरपोर्ट के निकट होटल रेडीसन से दो ब्रिटिश नागरिकों का संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त पाया जाना। हालांकि अब ऐसा नज़र आ रहा है कि यह दोनों ही ब्रिटिश नागरिक बिना किसी कठिनाई के कुछ दिनों में ही अपने देश वापस चले जाएंगे और फिर इस मामले को रफ़ा-दफ़ा कर दिया जाएगा। इस बात की आशंका मैंने ‘ऑल इंडिया तंजीमे अइम्मा-ए-मसाजिद’ के एक विशेष अधिवेशन में शनिवार के दिन अपने भाषण के दौरान व्यक्त भी की थी और जिस समय मैं इन दोनों ब्रिटिश नागरिकों को लेकर अपनी आशंका व्यक्त कर रहा था, देश के विभिन्न प्रतिष्ठित शख़्सियतें मौजूद थीं विशेष रूप से देश भर से आए हमारे मस्जिदों के इमामा ज़ाहिर है वहां हर व्यक्ति अपने आप में एक संस्था का महत्व रखता था। ‘‘वह ब्रिटिश आसानी के साथ वापस चले जाएंगे’’ इस समय मैंने यह वाक्य इसलिए लिखा कि नॉर्थ-ईस्ट सोमर सेट से हमारे एक सांसद डेन नोरिस ;क्मद छवततपेद्ध उनसे सहानुभूति प्रकट करते हुए कहा कि यह कोई ख़ास बात नहीं है। स्पष्ट रहे कि डेन नोरिस सम्पर्क अधिकारी की ज़िम्मेदारियां भी निभा रहे हैं साथ ही उनके वकील राजीव अवस्थी ने भी न्यूज़लाइन से बात करते हुए कहा कि मेरे मुअक्किलों के कार्यों पर प्रश्न चिन्ह लगाने जैसा कुछ भी नहीं है।

जहां तक मेरा विचार है अगर यह दोनों ब्रिटिश नागरिक मुसलमान होते और किसी मुस्लिम देश अफगानिस्तान, पाकिस्तान या बंग्लादेश से उनका संबंध होता तो फिर इतने स्पष्ट शब्दों में उनका समर्थन करने वाला कोई न होता। अगर अतीत पर नज़र डालें तो मुसलमान होने पर ऐसे लोगों के लिए वकालत की ज़िम्मेदारी निभाने वाले को भी मुसीबतों का सामना करना पड़ता। इमाम ऑर्गनाइज़ेशन के अधिवेशन में अपने यह विचार प्रकट करके जब मैं बाहर आया तो टाइम्स ग्रूप के जरनलिस्ट मिस्टर शुक्ला ने मेरे विचार का समर्थन करते हुए कहा कि आप ठीक कह रहे हैं और यह अफ़सोसनाक है। बहरहाल मैं पुणे बम धमाका और इन दो ब्रिटिश नागरिकों का संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त पाया जाना, दो बड़े मामले मानता हूं और इस पर तहक़ीक़ के साथ बातचीत का सिलसिला जारी रहेगा। लेकिन इस समय बात उस विषय पर जिसका इशारा आरंभ की कुछ पंक्तियों में दिया गया था। जी हां, मुस्लिम आरक्षण के मामले पर भाजपा के नवनियुक्त अध्यक्ष तथा अन्य वरिष्ठ नेताओं का बयान तो मुलाहिज़ा फ़रमाएं कि अपनी दंदौर कान्फ्ऱेंस में मुस्लिम रिज़रवेशन के संबंध में 19 फ़रवरी को उन्होंने किन विचारधाराओं का इज़हार किया, उसके बाद मेरी बातचीत।

मुस्लिमों को आरक्षण, बड़ी साज़िश: बी जे पी
बी रमन
इंदौर- मुस्लिम और दलित ईसाइयों को आरक्षण देने और अन्य पिछड़ा वर्ग में मुसलमानों का हिस्सा बढ़ाकर 15 फ़ीसदी करने की रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट को बीजेपी ने शुक्रवार को मुसलमानों को आरक्षण देने की बड़ी साज़िश बताते हुए कहा कि वह इसका हर कीमत पर विरोध करेगी और बलिदान देना हुआ तो इसके लिए तैयार रहेगी।

बीजेपी के तीन दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन के अंतिम दिन शुक्रवार को यहां रंगनाथ मिश्रा आयोग रिपोर्ट पर चर्चा की शुरूआत करते हुए पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कहा कि इस रिपोर्ट से अनुसूचित जाति और जनजातियों के मन में बहुत ज़बरदस्त भय हे कि अगर यह सिफ़ारिश लागू हो गई तो उनका आरक्षण कम हो जाएगा।पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता गोपीनाथ मुंडे ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग में मुसलमानों का आरक्षण बढ़ाकर 15 प्रतिशत करना और दलित मुसलमानों तथा ईसाइयों को आरक्षण देना एक बहुत बड़ी सोची समझी साज़िश है। ऐसा करके मुसलमानों को राजनीति में भी आरक्षण देने का षड़यंत्र रचा जा रहा है।उन्होंने कहा कि अगर दलित ईसाइयों और मुसलमानों को आरक्षण मिल गया और अन्य पिछड़े तबक़ों को मिले 27 प्रतिशत के आरक्षण में मुसलमानों का आरक्षण 15 प्रतिशत कर दिया गया तो इससे विधानसभाओं, संसद और अन्य निर्वाचित संस्थाओं में मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व अपने आप बढ़ जाएगा। इस विषय पर गडकरी, मुंडे और एम॰वैंकया नायडू सहित अपनी बात रखने वाले पार्टी के विभिन्न वक्ताओं ने कहा कि हिंदू समाज के आरक्षण में एक प्रतिशत की कटौती को भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पार्टी ने पूरे देश के लोगों से अपील की कि वह खेल का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरें और इसके लिए अगर बलिदान देने की आवश्यकता पड़े तो वह भी दें।नायडू ने कहा कि आजादी से पहले धर्म आधारित आरक्षण की विभाजन के रूप में देश बहुत बड़ी कीमत पहले ही चुका चुका है और अब भविष्य में ऐसा नहीं होने दिया जाएगा। कांग्रेस की साज़िश को नाकाम करने के लिए हम हर-तरह का बलिदान और कुर्बानी देने को तैयार हैं।

राष्ट्रीय परिषद की बैठक में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया जिसमें कहा गया कि दलित मुस्लिमों को आरक्षण देने और अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण में मुसलमानों का प्रतिशत बढ़ाना न सिर्फ मुसलमानों को राजनीति में आरक्षण देने जैसा ख़तरनाक षड़यंत्र है बल्कि इससे धर्मांतरण को भी बड़े पैमाने पर श्ह मिलेगी। अधिवेशन में फैसला किया गया कि सरकार के इस षड़यंत्र का बीजेपी संसद में जोरदार विरोध करेगी और इसके खिलाफ जनमानस तैयार करने के लिए 11 मार्च को संसद के बाहर एक बड़ा प्रदर्शन भी करेगी।’’

भाजपा के पूर्व अध्यक्ष तथा वरिष्ठ नेता वैंकैया नायडू ने मुस्लिम आरक्षण के विषय पर बोलते हुए कहा कि ‘‘धर्म के नाम पर विभाजन के रूप में यह देश बहुत बड़ी क़ीमत पहले ही अदा कर चुका है। अब भविष्य में ऐसा नहीं होने दिया जाएगा।’’ यहां मैं स्पष्ट कर देना आवश्यक समझता हूं कि देश के विभाजन का मुसलमानों से या धर्म से कोई संबंध नहीं था। यह एक राजनीतिक षड़यंत्र था, जिसका शिकार हमारा देश हुआ, जिसके शिकार मुसलमान भी हुए और हिंदू भी। हां मुसलमानों को इसका ज़्यादा बड़ा ख़मियाज़ा भुगतना पड़ा और आज भी भुगत रहे हैं। मैं यह बात पिछले 25 वर्षों से अपने अख़बारों में बार-बार लिख चुका हूं। सैकड़ों, हज़ारों जलसों में इस विषय पर बोल चुका हूं और अब तो उनकी अपनी पार्टी के जसवंत सिंह भी मोहम्मद अली जिनाह पर किताब लिख कर इस हक़ीक़त को स्वीकार कर चुके हैं। मैंने इस समय इस विषय पर क़लम उठाया तो बातचीत बहुत लम्बी हो जाएगी, जबकि मैं आज भाजपा के मुस्लिम आरक्षण के सवाल पर दैनके दृष्टिकोण की रौशनी तक गुफ़्तुगू ही अपनी बात को सीमित रखना चाहता हूं। इस समय मैं लखनऊ में हूं। आज सुबह 11 बजे लखनऊ की इन्टेगरल यूनिवर्सिटी में मुसलमानों से संबंधित शैक्षणिक समस्याओं पर विचार करने के लिए कुछ चुने हुए लोगों को आमंत्रित किया गया था। आयोजक वसीम अख़तर, वाइस चांसलर इन्टेगरल यूनिवर्सिटी के अलावा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर पीके अब्दुल अज़ीज़, उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन मिस्टर काज़िम, वरिष्ठ आईएएस अनीस अंसारी तथा अहम शख़्सियात मौजूद थीं। जनाब अनीस अंसारी ने पिछड़े मुसमलानों के आरक्षण से संबंधित बड़ी रिसर्च की है। उनका पक्ष बड़ा वाजिब है कि एक नाई, धोबी, कहार, मल्लाह इत्यादि-इत्यादि छोटे-मोटे काम करने वाले चाहे वह हिंदू धर्म से संबंध रखते हों या इस्लाम धर्म से, उन्हें अलग-अलग दृष्टिकोणों से क्यों देखा जाए। अगर किसी रिज़र्व सीट पर किसी मल्लाह को इलेक्शन लड़ने का अधिकार प्राप्त है तो फिर वह हिंदू हो या मुसलमान उसे यह अवसर मिलना चाहिए। यह कुछ पंक्तियां हवाले के रूप में हैं। क्यूंकि उनका संबंध भी आरक्षण से था इसलिए आंशिक रूप से लेख में शामिल कर लिया। वरना उनके कार्यों का अहाता करते हुए अलग से एक विस्तृत लेख की आवश्यकता है। मैं इस समय गुफ़्तगू कर रहा था कि भाजपा में मुसलमानों के आरक्षण पर उठे तूफ़ान पर इसी अधिवेशन में पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता गोपीनाथ मुंडे ने कहा कि ‘‘पिछड़े वर्ग’’ में मुसलमानों का आरक्षण 15 प्रतिशत करना तथा दलित मुसलमानों एवं ईसाइयों को आरक्षण देना एक राजनीतिक षड़यंत्र है। ऐसा करके मुसलमानों को राजनीति में अवसर देने का षड़यंत्र रचा जा रहा है। ‘मुंडे साहब मैं आपके शब्द आप ही को लौटाने जा रहा हूं। ठीक कहा आपने, अब आप अंदाज़ा कीजिए कि अरग आपके नज़दीक मुसलमानों को राजनीति में भागीदारी मिलना एक राजनीतिक षड़यंत्र है तो क्या उन्हें भागीदारी से वंचित रखना राजनीतिक षड़यंत्र नहीं था? जो वर्ग 61 वर्षों से इस राजनीतिक षड़यंत्र का शिकार है उसे उसका हक़ मिले, आज इस विषय पर विचार-विमर्श करना भी आपको गवारा नहीं है। यही वह मानसिकता है जिसको सामने लाना और समझना अत्यंत आवश्यक है। ज़रा मंगवाइये रिज़र्व क्षेत्रों के आंकड़े, आप पाएंगे कि अकसरियत ऐसे क्षेत्रों की है जहां मुसलमान बड़ी संख्या में हैं। आपने और अधिक आशंका व्यक्त करते हुए कहा कि 27 प्रतिशत आरक्षण में मुसलमानों को 15 प्रतिशत आरक्षण दे दिया गया तो संसद और विधानसभा के लिए चुने जाने वाले मुस्लिम सदस्यों की संख्या में भारी वद्धि हो जाएगी और फिर इस प्रकार उच्च प्रशासनिक सेवाओं में मुसलमानों की हैसियत बढ़ जाएगी। यानी आप नहीं चाहते कि मुसलमानों को यह अवसर मिले। आपकी पार्टी की यह सोच तो पहले से ही जग ज़ाहिर थी अब आपकी ज़बान से उसका सामने आना सिद्ध करता है कि आपके जो कुछ वाक्य जो बदलाव का वातावरण पैदा करने की कोशिश समझे जा रहे थे और आप जो नई सोच के साथ हिंदुओं और मुसलमानों के बीच की दूरी कम करने की बात कर रहे थे, वह केवल आपके शब्दों का धोखा है, जिसके पीछे आपकी राजनीतिक मानसिकता काम कर रही है। मानसिकता बदली नहीं है। अब एक आख़री बात आप जो मुस्लिम आरक्षण के विरोध में सड़को पर उतर आने की बात कह रहे हैं, बलिदान देने के लिए तैयार रहने की बात कर रहे हैं और 11 मार्च को संसद के बाहर एक बड़ा प्रदर्शन करने की घोषणा कर रहे हैं, हो सकता है कि उसमें आप अपनी पार्टी का कुछ हित देखते हों, जैसा की बाबरी मस्जिद की शहादत और कारसेवा के नाम पर हिंदुओं और मुसलमानों का रक्त बहा था, उस समय उसे भी बलिदान ही कहा गया था। इस बलिदान ने अगर सफलता प्राप्त कर ली होती तो क्या आप आज यह कहते कि मुसलमान राम मंदिर बनाने में मदद करें और हम मस्जिद बनवाएंगे। चलिए हक़ीक़त अब आप भी समझने लगे हैं, फिर भी इस मानसिकता से हट नहीं पा रहे हैं। हर बात को राजनीति से जाड़ देना, सड़कों पर उतर आना, बलिदान के नाम पर बेगुनाहों को ख़ून बहाने के लिए आमादा करना क्या देश के उत्थान और कल्याण का कारण बन सकता है। नहीं ना, आप क्यों नहीं गंभीरता और ईमानदारी से जस्टिस राजिंदर सच्चर की रिपोर्ट पर विचार करते हैं, जिसमें उन्होंने आज के मुसलमानों को दलितों से भी पिछड़ा बताया है और यह उनकी बरसों की मेहनत और शोध का निचोड़ है। जिस तरह देश के विकास के लिए आज़ादी के बाद दलितों को आरक्षण देना आवश्यक समझा गया ताकि एक दबे-कुचले वर्ग को ऊपर उठने का मौक़ा मिले तो फिर आज उससे बदतर हालत में मुसलमानों के पहुंच जाने पर उनके आरक्षण पर इतना तूफ़ान क्यों?

11 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...
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पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

जनाव अजीज बुर्ने साहब !
चूँकि अपनी कुछ कडवे सच बोलने की आदत है इसलिए आपकी विरादरी के एक तथाकथित बुद्दिजीवी सलीम अख्तर सिद्दकी ने अभी कुछ दिनों पहले अपने ब्लॉग पर एक लेख लिखकर मुझे "तुच्छ और गलीच" करार देकर अपने समकक्ष खडा कर दिया था ! खैर, ज्यादा नहीं कहूँगा क्योंकि इंसान दूसरो को अपने ही स्तर से तोल पाता है, इसलिए उनकी गलती नहीं ! और एक बार फिर कहूंगा की हमारे ये राजनेता चाहे वो किसी भी दल का हो अपने स्वार्थो के लिए मुसलमानों को धार्मिक आधार पर आरक्षण देकर बहुत ही घटिया खेल खेल रहे है ! जहां तक अगर धार्मिक और जाति और अल्प्संखयक आधारित आरक्षण की बात है, मैंने पिछले स्वतंत्रता दिवस पर एक लेख लिखा था जिसका कुछ अंश यहाँ आपके सवाले के उत्तर में प्रस्तुत कर रहा हूँ इसे पढ़कर आप खुद सोचिये कि इस आधार पर आरक्षण का असली हकदार कौन है !

अगर इस बात को मान लिया जाए कि हिन्दुस्तान में रहने वाला हर नागरिक हिन्दू है तो फिर इस देश का वास्तविक अल्प्संखयक कौन है, और नकली अल्पसंख्यक बनकर अल्पसंख्यको वाले कल्व का लुफ्त सही मायने में कौन उठा रहा है ! १९९१ की देश की जनगणना के आंकडो पर अगर नजर डाले तो कुल आवादी ८४,६३,०२, ६८८ थी, जो २१.४ % की अनुमानित दर से बढ़कर २००१ में १,०२,७०,१५,२४७ हो गई ! अब आये देखे कि उस आवादी में जो इस देश में मौजूद विभिन्न धर्मो और जातियों का प्रतिशत था उसी को लगभग आधार मानकर यह मान ले कि आज की तारीख में देश की कुल आवादी लगभग एक अरब बीस करोड़ है ! एवं मान लो कि यहाँ पर हिन्दू नाम का कोई धर्म नहीं, सिर्फ इस देश में चार धर्म; मुस्लिम, सिख, ईसाई और बौध है तथा कुछ जातिया है जो इस कुल आवादी का प्रतिनिधित्व १९९१ एवं २००१ की जनगणना के प्रतिशत की आधार पर निम्न लिखित समीकरण बनाती है:

जैसा कि मैंने कहा कि आज की अनुमानित आवादी = १,२०,०००००००० (एक अरब बीस करोड़ )
धर्म:
कुल आवादी का मुस्लिम प्रतिशत (१५ %) .= १८,००,००००० (अठारह करोड)
कुल आवादी का सिख प्रतिशत (२.२ %) = २,६४,००००० (दो करोड़ चौसट लाख)
कुल आवादी का ईसाई प्रतिशत (३.१ %) = ३,७२,००००० (तीन करोड़ बहतर लाख)
कुल आवादी का बौध प्रतिशत (१%) १,२०,००००० (एक करोड़ बीस लाख )

जाति:
पिछडी जातिया कुल आवादी का प्रतिशत (३७ %) ४४,००००००० ( चवालीस करोड़ )
अनुसूचित जाति कुल आवादी का (१६.२ % ) १९,५०,००००० (साडे उन्नीस करोड़ )
अनुसूचित जन जाति कुल आवादी का (८.५%) १०,२०,००००० (दस करोड़ बीस लाख )
वैश्य जाति कुल आवादी का (१% ) १,२०,००००० (एक करोड़ बीस लाख )
क्षत्रिय जाति कुल आवादी का (९ % ) १०,८०,००००० ( दस करोड़ अस्सी लाख)
ब्राह्मण जाति कुल आवादी का (४.३२ %) ५,१८,००००० (पांच करोड़ अठारह लाख)

अन्य धर्म /जातियाँ जैसे यहूदी, जैन इत्यादि २,५०,००००० (ढाई करोड़ )
अन्य मानव प्रजातिया जैसे हिजडा/ साधू कुछ आदिवासी इत्यादि ५०,० ०००० (पचास लाख )
( नोट: सभी आंकडे केवल अनुमानित है, इन्हें अन्यथा न लिया जाए)

अब आप उपरोक्त आंकडो पर खुद गौर फ़रमा कर सहज अंदाजा लगा सकते है कि इस देश में वास्तविक अल्पसंख्यक कौन है, और मिथ्या आंकडो के तहत अल्प्संखयक होने का असली लुफ्त कौन उठा रहा है ! साथ ही जानकारी के लिए यह भी बता दू कि इन तथाकथित उच्च जाति में क्षत्रियों की आवादी का ५० % से अधिक और ब्राह्मणों की आवादी का ४५ % से अधिक जनसंख्या गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे है, और बेरोजगार है !

मेरा भारत महान !

Unknown said...

अरे गोदियाल साहब किसे समझा रहे हैं… अभी-अभी ये साहब पुणे ब्लास्ट में पश्चिमी हाथ बताकर हटे हैं… इन्हीं के एक और भाई चतुर्वेदी जी पुणे ब्लास्ट में हिन्दू संगठनों का हाथ बता रहे हैं…।
आपने तमाम आँकड़े देकर बता भी दिया तब भी जिन्हें "अपने धर्म" को "अपने राष्ट्र" से ऊपर समझना है उनका दिमाग कैसे बदलेंगे…

drdhabhai said...

जनाब आपको संविधान को पढने की सख्त जरूरत हैं....आरक्षण सदियों से छूआछूत से पीङित हिंदु समाज को कुछ समय के लिए संरक्षण देने के लिए था,,,,न कि उसे वोट बैक की तरह काम लेने का....काश आपने बहुपत्नि प्रथा के बारे मैं लिखा होता....या के मुसलमानों के बङे परिवार से होने वाले आर्थिक और सामाजिक पक्ष के बारें मैं जो कि मुसलमानों की बुरी स्थिति के लिए जिम्मैदार है

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

हिन्दुओं को देश से बाहर करने का आसान रास्ता है. वैसे पाकिस्तान, ईराक, ईरान, मलेशिया, सऊदी अरब, सूडान, मिस्र इत्यादि देशों में दीगर धर्मों के लोगों को समान अधिकार दिलवाने के बारे में क्या विचार हैं. कल ही तीन सिखों के सिर काटकर गुरुद्वारे में फेंक दिये हैं पाकिस्तान में, इनके लिये आप क्या करेंगे.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

एक घर में बीस बच्चे, और बदहाली का दायित्व हिन्दुओं का! वाह क्या सोच है.

Safat Alam Taimi said...

बहुत अच्छा लेख। आप ही हैं कि सत्य को खंगाल कर सामने लाते हैं। इसके लिए हम आपको हार्दिक बधाई देते हैं। आज आपके जैसे लेखकों की ही दुनिया को आवश्यकता है। धन्यवाद

شہروز said...

इस सन्दर्भ में मेरा लेख कमीशन-दर-कमीशन नेताओं का है मिशन ज़रूर पढ़ें आप लोग!

सहसपुरिया said...

VERY GOOD POST

PD said...

और आरक्षण का खामियाजा उठाना पड़ता है उन मेधावी छात्रों को जो उच्च वर्ग से आते हैं मगर कहीं नौकरी या कालेज में प्रवेश नहीं मिल पता है.. मैं खुद भुक्तभोगी हूँ.. 91 Percentile लाकर भी अच्छे सरकारी कालेज में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था.. वही 0.04 Percentile लाने वाला NIT में पढ़ने चला गया था..

मुझे तो इस आरक्षण नाम से ही चिढ है.. चाहे किसी को भी मिले.. आखिर बैसाखियों पर क्यों चलना चाहते हैं आप लोग? और वह बैसाखी भी आपको दूसरे के घर में लगी लकडियाँ तोड़ कर लाया हुआ चाहिए, जिससे उसका घर भी सलामत ना रहे!!

आक्रोशित मन ...ना माने मन की बात said...

ऊँची नस्ल वाले कुत्ते अंधेरो में भोकते है ..