विश्वास कीजिए आज भी मेरे लिए यह संभव नहीं लग रहा था कि मैं अपने क़िस्तवार लेख के टूटे हुए सिलसिले को जोड़ सकूँ, इस बार ये अवधि कुछ लम्बी हो गई थी और सभी तरह की आशंकाएं और हमारे पाठकों के ज़हन में आने लगे थे, जिसका इज़हार वह कभी मिल कर तो कभी फोन या एस.एम.एस के द्वारा करते रहे। उनकी चिंता और जिज्ञासा अस्वभाविक भी नहीं थी, क्योंकि इस सिलसिले के शुरू किए जाने के बाद से अब तक शायद पहले कभी नहीं। विदेशों के सफर के दौरान भी यह सिलसिला इतने समय के लिए टूटा नहीं था। जानता हूँ कि जिस तरह लिखना मेरी आदत बन गई है, शायद मुझे हर रोज़ पढ़ना मेरे पाठकों की भी आदत बन गई है। मैं इस मोहब्बत के लिए अपने पाठकों का आभारी हूँ और यह सिलसिला जीवनभर जारी भी रखना चाहता हूँ और इनशाअल्लाह रखूंगा भी।
दरअसल हुआ यूं कि इस बीच मैं स्वयं ही अपना लिखा पढ़ने लगा और फिर एक बार यह सिलसिला शुरू किया तो ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। जो कुछ रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा, आलमी सहारा में प्रकाशित हुआ, इधर दो-तीन वर्षो में ही नहीं 1991 में ‘सहारा इण्डिया परिवार’ से जुड़ने के बाद से अब तक उर्दू में, हिन्दी में और कभी-कभी अंग्रेज़ी में भी अधिक लिखा है। इससे पूर्व उर्दू मासिक ‘परचम-ए-क़ुरान’, हिन्दी साप्ताहिक ‘कमेंटेटर’ में भी बहुत कुछ लिखा। बहुत हद तक यह सब कुछ मेरे अख़बार की वैबसाइट www.urdusahara.net पर है और यह सब भी और जो कुछ यहां नहीं है, वह भी मेरी वैबसाइट www.azizburney.com पर देखा जा सकता है। दरअसल मेरे पाठकों का कहना था कि वह मेरे लेखों की कटिंग संभाल कर रखते हैं और क्या ही अच्छा हो कि उन्हें किताब का रूप दे दिया जाए, इसलिए अपने प्रिय पाठकों की इच्छा को देखते हुए मैं इस प्रयास में लगा तो अंदाज़ा हुआ कि एक ही भाषा में अगर उन्हें किताब के रूप में लाया जाए तो विषयों के अनुसार 32 से ज़्यादा किताबे प्रकाशित की जा सकती हैं और उनको उर्दू के साथ-साथ हिन्दी और अंग्रेज़ी में भी पहले की तरह प्रकाशित किया जाए तो यह संख्या 100 तक पहुंच सकती है। अब यह कुछ दिनों में तो संभव हो नहीं सकता, इसलिए मुझे आसान लगा कि अभी तक जो लेख जिस रूप में भी है, उन्हें अपनी वैबसाइट के हवाले कर दिया जाए, ताकि कम से कम सुरक्षित रहें और पाठकों के पढ़ने के लिए भी उपलब्ध। फिर जैसे जैसे समय और हालात इजाज़त देंगे, अपने पाठकों की इच्छा के अनुसार उन्हें किताब के रूप में भी प्रस्तुत किया जाएगा। इस समय यह स्पष्ट करना इसलिए आवश्यक था कि अपने पाठकों की शिकायतों और जिज्ञासा का बारी-बारी जवाब देना मुश्किल हो रहा था।
आईए आज से फिर से इस टूटे हुए सिलसिले को जोड़ते हैं। कोशिश रहेगी कि सप्ताह में कम से कम पांच दिन इन क़िस्तवार लेखों का सिलसिला जारी रहे और बाक़ी दो रोज़ अतीत की यादों को समेटने के लिए भी रहें। उद्देश्य दोनों सूरतों में एक ही है, हर लिहाज़ से अपने पाठकों की इच्छा का सम्मान। पिछले 25 दिन में कई विषय ऐसे थे, जिन पर क़लम उठाने की ज़रूरत थी। ‘‘माई नेम इज़ ख़ान’’ की रिलीज़ पर शिवसेना का आपत्तीजनक रवैया, मुलायम सिंह और अमर सिंह के बीच की दूरियों का मामला, दिगविजय सिंह का आज़मगढ़ संजरपुर दौरा, यानी बटला हाऊस पर एक बार फिर बहस, भारत-पाक के बीच कभी गर्म तो कभी नर्म रिश्ते, अमेरिकी अधिकारियों की भारत यात्रा और 26/11 यानी मुम्बई पर आतंकवादी हमले के संबंध में लगातार बयान....... स्पष्ट रूप से कहूँ तो हिन्दुस्तान को तैयार करना कि वह पाकिस्तान से जंग करे। 4 फरवरी को हमारे गृहमंत्री का बयान कि 26/11 के आतंकवादी हमलों में कोई हिन्दुस्तानी भी हो सकता है।
जहां तक मुझे याद आता है, मेरे लेखों की फाइल भी मेरे सामने है, मैंने अपने इस क़िस्तवार लेख की 82वीं क़िस्त तक, जहां से यह सिलसिला टूटा था यानी डेविड कोलमैन हेडली के ख़िलाफ दर्ज चार्जशीट और मुम्बई पर आतंकवादी हमले में एकमात्र जीवित पकड़े गए पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर क़साब का इक़बालिया बयान प्रकाशित किया था, यानी विषय 26 नवम्बर 2008 को मुम्बई के रास्ते हिन्दुस्तान पर हुआ आतंकवादी हमला ही था और सिद्धांत रूप से आज भी मुझे अपनी बात उसी विषय पर आगे बढ़ाते हुए शुरू करनी चाहिए, इसलिए कि आज मैं इस टूटे हुए सिलसिले को फिर से जोड़ रहा हूं।
डेविड कोलमैन हेडली की चार्जशीट और अजमल आमिर क़साब का बयान प्रकाशित करने का कारण यह था कि मैं स्पष्ट करना चाहता था और आज भी स्पष्ट करना चाहता हूँ कि हिन्दुस्तान की सरकार विपक्षी पाटिर्यों और जनता की एक बड़ी आबादी ने यह स्वीकार कर लिया था कि 26/11 को मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले की कहानी ज्यों की त्यों वहीं है, जो हमें आतंकवादी अजमल आमिर क़साब की ज़बानी पता लगी है। अगर आप लगभग एक वर्ष पहले के दौर में वापस जाकर देखें तो अजमल आमिर क़साब के बयान से हट कर न कोई सोचना चाहता था, न बात करना चाहता था, बल्कि अगर इससे अलग कोई बात भी करता था तो उसे शक की निगाह से देखा जाता था, उसे अलोचना का सामना करना पड़ता था। उस पर तरह तरह के आरोप लगाए जाते थे। फिर हमारे सामने आई डेविड कोलमैन हेडली की चार्जशीट यानी 26/11 के आतंकवादी हमले में जीवित पकड़े गए एक और आतंकवादी के बयानों पर आधारित कहानी। अगर आप चाहें तो उसे एफ.बी.आई के इन्टेरोगेशन के नतीजे में सामने आने वाली कहानी भी क़रार दे सकते हैं, जिसकी रोशनी में चार्जशीट तैयार की गई और अमेरिकी न्यायालय में दाख़िल की गई। इस समय मैं डेविड कोलमैन हेडली उर्फ दाऊद गिलानी की चार्जशीट, उसकी आतंकवादी भूमिका या एफ.बी.आई की नियत पर कुछ भी नहीं कहना चाहूंगा। अब एक बार फिर से यह सिलसिला शुरू हो ही गया है तो बात इन विषयों पर भी होगी, मगर पहले अपने पाठकों, भारत सरकार और विपक्षी दलों से यह कह देना चाहता हूं कि चाहें तो एक बार फिर से अध्ययन करलें, जीवित पकड़े गए आतंकवादी अजमल आमिर क़साब का इक़बालिया बयान और डेविड कोलमैन हेडिली की चार्जशीट, मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमलों की दास्तान दो अलग अलग कहानियां बयान करती हैं। अगर अजमल आमिर क़साब का यह बयान सच्चा, जैसा कि हम अब तक मानते चले आ रहे थे, तो क़साब के उस समय के बयान में वह सब कुछ क्यों नहीं, जो एफ.बी.आई की इंटेरोगेशन और हेडली के बयान के बाद सामने आया है। और अगर दाऊद गिलानी उर्फ हेडली का बयान और एफ.बी.आई की रिपोर्ट सच्ची है तो फिर अजमल आमिर क़साब के द्वारा बयान की गई कहानी से मेल क्यों नहीं खाती। अब सवाल यह पैदा होता है कि सच्चाई इन दोनों बयानों से हट कर क्या कुछ और है या फिर यह दोनों ही बयान झूठे हैं तो फिर सच क्या है अब इसका पता लगाना तो हमारी खुफिया एजेंसियों और एफ.बी.आई के लिए आवश्यक है, क्योंकि अब एफ.बी.आई का किरदार भी इन आतंकवादी हमलों में सामने आगया है। अब इसे असंबद्ध़ क़रार नहीं दिया जा सकता।
मैं एक बार फिर पाठकों से निवेदन करूंगा कि वह मुम्म्बई पर हुए 26 नवम्बर 2008 के हमले के तुरंत बाद पैदा हुए हालात पर ध्यान दें, हमारी खुफिया एजंेसियों और सरकार के रोल पर ध्यान दें और आज की बदली हुई परिस्थियों पर ध्यान दें, अगर संभव हो सके तो मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले के संबंध से रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा ने उसी समय जो कुछ लिखा था उसका अध्ययन करें। एक बार फिर मैं उस फाईल को खोल कर बैठ गया हूं, इस समय 26 नवम्बर 2008 को मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले के दिन से अगले एक माह तक प्रकाशित होने वाले लेखों की सूचि सामने है। मैं अपने कल के लेख में तिथि और प्रकाशित किए गए ऐसे कुछ लेखों के शीर्षकों को पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करने जा रहा हूं ताकि यह स्पष्ट कर सकूं कि आज जो हमारे गृहमंत्री कह रहे हैं और नए-नए रहस्योदघाटन जिस दिशा में इशारा कर रहे हैं, रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा 14 माह पहले ही वह सब कुछ सामने रख चुका था, अगर उसी समय देश और समाज के हितों को देखते हुए इस तरफ ध्यान दिया गया होता तो हम आज इस तरह अपनी समस्याओं के समाधान के लिए खासतौर से आतंकवादी मामलों में 26/11 के आतंकवादी मामले में अमेरिकी की तरफ मंुह उठा कर देखने के लिए विवश नहीं होते। यही कारण है कि हम एक बार फिर वह बिंदु सामने लाने जा रहे हैं, हमने जिन को उसी समय देश और जनता के सामने रख रख दिया था। इस उम्मीद में कि जिस तरह आज हम इस लेख के टूटे हुए सिलसिले को जोड़ रहे हैं, उसी तरह हमारी खुफिया एजेंसियां और भारत सरकार अपनी जांच के टूटे हुए सिलसिले को जोड़ सके और इस आतंकवादी हमले का सच दुनिया के सामने लासके।
...............................(जा
Saturday, February 13, 2010
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