Wednesday, December 3, 2008

शहीदों के रिश्तेदार न्याय मांग रहे हैं

वह समझते हैं की जो दिख रहा है उसके परदे में सच्चाई कुछ और भी है

मुंबई के वर्त्तमान आतंकवादी हमलों में हमने ऐसा बहुत कुछ खोया है, जिस की भरपाई नहीं हो सकती. परन्तु जो कुछ पाया है यदि उस पर गंभीरता से विचार करें तो हम समझ सकते हैं की शहीदों का बलिदान निरर्थक नहीं गया यह आतंकवादी हमला, पाकिस्तान की ओर से था, लश्करे तैबा ने किया या इस में भारत से सम्बन्ध रखने वाले आतंकवादी शामिल थे, यह जांच चलती रहेगी, परिणाम आते रहेंगे परन्तु इस भयानक विनाश के बाद जो कुछ देखने को मिला, उससे अब यह आशा बंधती नज़र आती है की भारतीय जनता जागरूक हो चुकी है, उस ने आतंकवादियों के उद्देश्य को भी समझ लिया है, उस के सामने सांप्रदायिक व्यक्तियों के चेहरे बेनकाब हो गए हैं और अब राजनीतिज्ञों का राजनीती खेल भी उससे छिपा नहीं है।

मुखौटे लगाकर घूमने वाले कुछ नेता तो स्वयं अपनी करतूत से ही बेनकाब हो गए, उन के चेहरे से नकाब उठाने की आव्यशकता ही नहीं पड़ी और शेष को उन की पूर्व गतिविधियों के प्रकाश में पहचानना कठिन नहीं है। भारतीय जनता ने धर्म जाती के भेद भाव के बिना जिस प्रकार इस गंभीर स्तिथि में शान्ति व एकता का दृश्य प्रस्तुत किया वह प्रशंसिया व अनुकर्णीय है और यदि हम इस भावना को कायम रख पाये तो निश्चय ही यह बलिदान एक नए भारत को जनम दे सकता है, जहाँ शान्ति भी होगी और सांप्रदायिक एकता भी, जहाँ राजनीतिज्ञ वोट के लिए सांप्रदायिक तनाव पैदा करने में सफल नहीं होंगे इश्वर करे की ऐसा हो जाए।

परन्तु

यह भी आवयशक है की हम अत्याधिक गंभीरता से इन आतंकवादी हमलों की विवेचना करें और इस वास्तविकता को समझने का प्रयास करें की इस विनाश के पीछे कौन है, यह विनाश किस की समस्याओं का हल है तथा इस में किस के हितों का रहस्य छिपा है? मैंने अपने कल के लेख में ऐसे कुछ प्रशन उठाये थे। जिनके उत्तर सच्चाई को सार्वजनिक कर सकते हैं। यह प्रशन पिछले कई दिनों से मेरे मस्तिष्क में थे और मैं लगतार यह सोचता रहा था की इन प्रशनों को उठाया जाए की नहीं यहाँ तक की प्रकाशन से पहले मैंने अपने वरिष्ठ साथियों के बीच इन प्रशनों को रख कर उन का सुझाव भी चाहा, राय मिली जुली थी परन्तु मैं इन प्रशनों को उठाने से स्वयं को रोक न सका।

मुझे संतोष उस समय हुआ जब आज प्रात: मैं अंग्रेज़ी दैनिक "हिंदुस्तान टाईम्स" पढ़ रहा था, उस ने भी न केवल कुछ ऐसे ही प्रशन उठाये हैं अपितु पृष्ठ एक पर "वीर सांघवी" ने कुछ रहस्योद्घाटन भी किए हैं। जो हमारी सरकार की असफलता की ओर संकेत करते हैं। हम इन सभी बिन्दुओं को एकत्रित करके अपने पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करेंगे। परन्तु इस समय मैं आवयशक समझता हूँ की प्रसिद्द इतिहासकार और बुद्धिजीवी "अमरेश मिश्रा" के वे लेख अपने पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करूँ जो उन्होंने ईमेल द्वारा तीन अलग अलग टुकडों में मुझ तक पहुंचाए बहुत सम्भव है की इस आतंकवादी हमले की तह तक जाने में उन के द्वारा उठाये गए प्रशन भी अत्याधिक महत्त्वपूर्ण साबित हों।

मैं जिस "थेओरी" को बयान कर रहा हूँ, उस पर कई लोगों ने संदेह प्रकट किए हैं, शायद इन्टरनेट पर। उन्हें किसी भी व्यक्ति अथवा किसी भी चीज़ पर संदेह करने और उस के सम्बन्ध में प्रशन करने का अधिकार है। हो भी क्यों न, सही दिशा में सोचने की बुन्याद आख़िर संदेह ही तो है।

मैंने मौत की धमकी सुनी, मेरे पास घृणा से भरे मेल आए, परन्तु साहस के कारण मुझे प्रशंसाएं भी सुनने को मिलीं।

कुछ लोग इस बात को नहीं समझते की मुंबई पर आतंकवादी हमले जैसे पेचीदा हालत में जैसे जैसे नई सच्चियां सामने आती जाएँगी, नए नए दृष्टिकोण भी उभरते चले जायेंगे परन्तु इस का अर्थ यह नहीं है की किसी व्यक्ति को सरकारी अधिकारीयों की आलोचना करने से रोक दिया जाए या मीडिया की बात को नकार दिया जाए।

मेरी बुनयादी थेओरी की संघ परिवार के तत्वों ने आतंकवादी हमलों के लिए मार्ग प्रशस्त किया है, अब अधिक सशक्त हो चुकी है. वास्तव में संघ परिवार से कहीं ज़्यादा इस में मोदी का अमल नज़र आता है. जी हाँ वह हिन्दुस्तानी फासीवाद के नए और आधुनिक चेहरे हैं। वह एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने वास्तव में कई मामलों में आर एस एस को भी पीछे छोड़ दिया है, वह मोसाद के मित्र नंबर एक हैं, हाल ही में आर एस एस के एक बड़े अधिकारी ने मुझे बताया की "अमरेश हम ने अपने केद्रों के ऊपर अपना कंट्रोल खो दिया है। हम कभी नहीं चाहते थे की उरिसा और कर्णाटक में हालत काबू से बहार हो जाएँ. उरिसा के अन्दर तो हम ने ईसाई नेताओं के साथ एक साझी घोषणा जारी करने की योजना भी बनाई थी, परन्तु निचले स्टार से बगावत हो गई। वि एह पी और बजरंग दल ने हमारी बातों को मानने से इनकार कर दिया इस के बाद उन्हें मोदी जैसे व्यक्ति से समर्थन प्राप्त हो गया हम लोग असहाय रह गएबुनयादी रूप से आर एस एस ने जो संघटन खड़ा किया था, उस के ऊपर अब स्वयं उस का कंट्रोल नहीं रहा। मोदी के रूप में इस संघटन ने मोसाद से संथ गाँठ कर li है यहाँ पर इस बात को भी याद रखिये की मोसाद के सम्बन्ध विनाश में लिप्त आई एस आई में के साथ भी हैं. यह भी याद रखें की पाकिस्तान, अफगानिस्तान और मध्यपूर्व में सक्रिय बहुत से "जिहादी" गिरोहों का रिमोट कंट्रोल या तो मोसाद (इस्राइली खुफिया एजेन्सी) के हाथ में है या फिर सी आई ऐ (अमेरिकी खुफ्या एजेन्सी) के हाथ में. हाल ही में यमन में एक ऐसे मुस्लिम "जिहादी" संघटन का पता चला है, जिसकी स्थापना मोसाद ने की थी. इसी लिए यह सम्भव है की जिन आतंकवादियों ने मुंबई पर हमला किया, उन्होंने ने पाकिस्तान को अपने अड्डे के रूप में प्रयोग किया हो परन्तु उन का सम्बन्ध अलग अलग देशों से हो सकता है, उन में से कुछ ब्रिटेन के भी मुस्लमान हो सकते हैं उन में से कम से कम एक के बारे में पता चला है की वह मौरिशुस का रहने वाला है।

अब यह बात भी सामने आ रही है की साउदी अरब के एक व्यक्ति (जिसे इस समय मौलाना बेदी कहा जा रहा है) ने शायद उन "जिहादियों" को एकत्रित किया और यहाँ पर भेजा। इस मास्टर मंद को धन किस से प्राप्त हुआ होगा, यह पता लगना आवयशक है। ऐसे मास्टर मिन्ड्स की कोई विचारधारा नहीं होती। यह अमेरिका की पैदावार हैं जो पैसे के लिए काम करते हैं, बल्कि कई बार तो अमेरिकी हितों के विरुद्ध भी काम करते हैं। यह एक बार फिर एक पेचीदा परन्तु स्पष्ट तथ्य है।

स्वयं ओबेरॉय होटल के मालिक भी मोदी के घनिष्ट मित्र हैं उन्होंने गुजरात में करोरों रुपयों की पूँजी लगाई है ओपेराशन से पहले आख़िर इतने दिनों तक यह आतंकवादी कैसे ताज और ओबेरॉय में ठहरे हुए थे? इन दोनों ही पाँच सितारा होटलों में कई दिनों तक भला हथ्यार और गोला बारूद कैसे जमा किए जाते रहे? क्या कोई साधारण व्यक्ति ऐसा कर सकता है? होटल प्रबंधन की जानकारी के बिना क्या यह सब सम्भव है?

नरीमन हाउस की यदि बात करें तो मैं वास्तव में आश्चर्यचकित हूँ की मोसाद समर्थन से होने वाले ओपेराशन में यहूदियों को क्यों मारा जायेगा? लेकिन क्यूँ नहीं? मोसाद हर स्तिथि में बर्बर ज़ेओनिज़्म (यहूदीवाद) का समर्थन करता है जो के संघ परिवार के हिंदुत्व की ही तरह एक आधुनिक धार्मिक व फासीवादी विचारधारा है ज़ेओनिज़्म, जुदैज्म का भाग नहीं है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार हिंदुत्व सनातन धर्म का भाग नहीं है जो की हिन्दुओं का वास्तविक धर्म है। प्रज्ञा सिंह के मामले में सनातन धर्म के लोगों ने ऐसे हिंदुत्व का विरोध किया, विशेष कर जिस प्रकार उन्होंने हेमंत करकरे को बदनाम किया।

" मोसाद" और ज़ओनिस्ट साधारण यहूदियों को मारने के लिए जाने जाते रहे हैं आख़िर हिंदुत्व विचारधारा ने महात्मा गाँधी की भी हत्या कर दी थी, क्या कोई इस से इंकार कर सकता है?

इस बात पर भी विचार करें की विश्व में बुराई का बोल बाला है क्योंकि अछे के अन्दर सोचने की कमी है। कुछ समय के लिए बुराई की ही जीत होती है क्योंकि इस के अन्दर अच्छाई से भी अधिक सोचने की क्षमता है।

जो लोग अपने आप को मोदी और अडवानी का समर्थक कहते हैं वह लोग महात्मा गाँधी के कातिलों के भी समर्थक हैं हिंदुत्व विचारधारा और राजनीती प्रारम्भ से ही धर्म निरपेक्ष राज्य का विरोध करते रहे हैं जिसकी बुन्याद १९४७ में पड़ी थी उन्होंने १९४७ में भारतीय राज्य के विरुद्ध भी बगावत की थी इस बात के प्रमाण मौजूद हैं की आर एस एस प्रमुख गोलवलकर ने मुसलमानों के विरुद्ध हमला करने के लिए ब्रिटिश सेना की सहायता की थी यह बात उस समय के उनितेद प्रोविंस (मौजूदा उत्तर प्रदेश) के गृह सचिव, राजेश्वर दयाल को बताई गई थी, जिन्होंने ने U. P. के उस समय के मुख्या मंत्री गोविन्द बल्लभ पन्त को इस समाचार से सूचित किया था।

१९४७ के बाद जो मुस्लमान हिंदुस्तान में ही ठहर गए थे, उन्होंने ऐसा अपनी इच्छा से किया था। स्वयं मुसलमानों में इस बात को ले कर काफ़ी विरोधाभास था। जिस के कारण जिन्नाह और मुस्लिम लीग एक और हो गए थे जबकि दूसरे मुस्लिम उल्माओं और उन के समर्थकों ने कांग्रेस का साथ दिया था।

करकरे की मौत: अब करकरे का मामला : इस से सम्बंधित दो बातें पहले से ही आरही हैं। यह बात अब तक साफ़ नहीं है की उनको कैसे मारा गया? इस को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। करकरे की माँ टी वी पर आई और वह यह जानना चाहती थी की उनके बेटे को कैसे मारा गया। सलस्कर के चछेरे भाई ने भी यह प्रश्न उठाया।

बहादुर शहीदों के रिश्तेदार न्याय की मांग कर रहे हैं। वह यह महसूस करते हैं की जो कुछ नज़रों के सामने दिखाई दे रहा है। उससे से भी परे कोई बात अवश्य है और कहीं न कहीं करकरे, काम्टे और सलस्कर की मौत मालेगओं धमाकों की जांच से जुड़ी हुई है, जो करकरे की निगरानी में चल रही थी।

आख़िर करकरे की पत्नी और बेटे ने मोदी द्वारा घोषित की गई १ करोड़ की राशि को लेने से इनकार क्यूँ कर दिया? करकरे का यह बेटा बाद में ओबेरॉय होटल भी आया, जहाँ पर फायरिंग का सिलसिला अभी जारी था। उस ने एक बयान भी दिया जो किसी को भी पसंद नहीं आया मोदी शायद येही सोच रहे थे की उन्होंने विपक्ष की इस घड़ी में एक समस्या को दूर कर दिया जो की मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के चुनाव से पहले पैदा हुई थी जिस में आतंकवादी हमलों से पूर्व भाजपा की स्पष्ट असफलता दिखाई दे रही थी।

ज़रा सोचिये, मुंबई आने वाली नाव गुजरात सरकार की मदद के बिना वहां तक नहीं पहुँच सकती थी।

सच्चाई यह है वह सभी हिंदुत्व शक्तियां जो करकरे और पूरी मुंबई ऐ टी एस टीम को अपना निशाना बनाये हुए थी और उन्हें विल्लें और "हिन्दुओं का शत्रु" बता रही थी, वह आज अचानक उन्हें हीरो कहने लगी हैं? कैसे द्विमुखी लोग हैं! यह कुछ लोगों ने मुझे मेल भेजे हैं और कह रहे हैं की वे अडवाणी और मोदी का समर्थन करते हैं यह सभी लोग करकरे की मौत का समर्थन कर रहे हैं, ठीक उसी प्रकार जैसे उन्होंने महात्मा गाँधी की मौत का समर्थन किया था। लेकिन हमें यह जानना चाहिए, हमें यह जानने का अधिकार है की कुछ हिंदुत्व वादी करकरे से घृणा रखते थे, क्या उन्होंने ने ही उन की मौत के पीछे अपना दिमाग लगाया और क्या ऐसे लोग ही उन की हत्या के लिए जिम्मेदार हैं. करकरे हमारे महान हीरो हैं. धर्म निरपेक्षता के लिए अपनी जान निछावर करने वाले शहीद हैं।

मोदी, अडवाणी और सभी सनातनी विरुद्धि हिंदू जो इन्टरनेट पर स्वयं को हिंदू कह रहे हैं, मुस्लिम दुश्मनी में लिप्त यह लोग "मालेगाँव" धमाके की जांच को देखना नहीं चाहते थे, जिस में करकरे बहुत हलद प्रवीन तोगडिया का नाम भी लेने वाले थे, यहाँ तक के छोटे राजन का भी लेकिन इस से पहले ही करकरे को रास्ते से हटा दिया गया।

विदेशी एजेंसियों के संरक्षण में सांप्रदायिक शक्तियां भारत को नष्ट कर देना चाहती हैं. अमेरिका पाकिस्तान को नष्ट कर देना और चीन का घेराव करना चाहता है इत्यादि और इस के लिए वह चाहता है की भारत भी अमेरिका और इस्राइल के प्रभाव क्षेत्र में दाखिल हो जाए इसी कारण अमेरिकियों, ब्रितानियों तथा इस्रैलियों को निशाना बनाया गया नरीमन हाउस एक ऐसा केन्द्र था जहाँ पर चश्मदीद गवाहों के अनुसार बहुत से संदिग्ध इस्राइली आया जाया करते थे इसलिए यह सम्भव है की वोही लोग आतंकवादी हमलों में भी शामिल रहे हों और उन्होंने ने ही स्वयं अपने लोगों को मार दिया हो।

मुंबई पर होने वाला आतंकवादी हमला एक बड़ा प्रयोग था अर्थार्थ भारत में मौजूद उन शक्तियों के लिए जिन में से एक भारत को खतरनाक और आत्मघाती अमेरिकी व इस्राइली प्रभाव क्षेत्र में ले जाना चाहता है तथा दूसरी वह शक्ति जो भारत को स्वतंत्र देखना चाहती है और पाकिस्तान, चीन और इरान के साथ उस के संबंधों को सुध्रुध करना चाहती है इस युद्ध में सम्मिलित प्रत्येक शक्ति का चेहरा पूर्ण रूप से स्पष्ट नहीं है परन्तु यह पैटर्न धीरे धीरे साफ़ होता जा रहा है भारतीय राष्ट्रीय वाद को पुन : स्पष्ट करने की आव्यशकता है अमेरिका समर्थक, इस्राइल समर्थक निति और हिंदुत्व की और भारत का धीरे धीरे झुकाव मौलाना बेदी और मूसद के लिए यह मैदान तैयार कर रहा है की वह भारत पर हमला करें भारत को उपनिवेशवाद से पूर्व की हिंदू मुस्लिम एकता और १८५७ के हिंदुत्व विरोधी राष्ट्रवाद की और वापास जन होगा।

आख़िर १८५७ की १५० वी वर्षगाँठ को भारत में इतना महत्व क्यूँ नहीं दिया गया? क्यूंकि अमेरिका समर्थक और इस्राइल समर्थक लोब्बी १८५७ को पसंद नहीं करती जो की वास्तविक भारतीय राष्ट्रवाद का सच्चा लक्षण था।

विचार कीजिये ........थोड़ा सोचिये .........हम करकरे और एन एस जी और सेना के सभी वीरों को नमन करते हैं।

1 comment:

expiredream(aslansary) said...

who is in the great advantage after the MUMBAI CARNAGE.
WHO IS THE GREAT ADVANTAGE AFTER THE ATS CHIEF HAMENT KARKARY'S UNTIMELY DEATH?Why ware only 10 boys playing the bloody game against large numbers comondo and security.
why ware these terrorists speaking MARATTHI?
All these questions are hiding after death of HAMENT KARKAR'S DEATH.
nearly two hundreds innocents have been killed for the four INVESTIGATIONERS OF MALEGAON ATTACK.
MANY HINDUHARDLINERS HAVE BEEN SAVED FROM THE DEFACES.
It is hard to mind that what would be results of hindu terrorists as free or defree after the murders of ATS OFFICERS.
BY
Mohd Aslam