Friday, November 28, 2008


हेमंत करकरे के बाद ऐ. टी. एस.?

हमारी आदर्श साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को सम्मान के साथ रिहा किया जाए।

हमारे हीरो लेफ्टनेंट कर्नल प्रोहित पर लगे सारे आरोप वापस लिए जायें और उन्हें फौज में अपने उत्तरदायित्व को निभाने के लिए भेजा जाए।

हमारे रोल मॉडल महंत दयानंद पाण्डेय का लैपटॉप वापस किया जाए, उस से प्राप्त सारे सबूतों को निष्ट किया जाए और उन के पैर छू कर माफ़ी मांगी जाए।

अभिनव भारत से जुड़े जिन व्यक्तियों को हिरासत में लिया गया है, उन सभी को छोड़ दिया जाए। राम जी की खोज बंद की जाए

।मालेगाँव बम धमाकों के सिलसिले में ऐ टी एस की सम्पूर्ण जांच को रद्द किया जाए और जांच में सम्मिलित सभी अधिकारीयों और कर्मचारियों को काले पानी की सज़ा सुना दी जाए।

भारत सरकार वचन दे की आगे से कभी भी किसी भी मामले में कितने भी स्पष्ट सबूत प्राप्त हो जाने पर भी किसी हिंदू सघटन या हिंदू धर्म से सम्बन्ध रखने वाले व्यक्ति को आरोपी नहीं ठहराया जाएगा।

किसी भी बम धमाके के बाद चाहे वह भारत में कहीं भी हो, संदेह की सूई केवल और केवल मुसलमानों और मुस्लिम संघटनों तक ही सीमित रहेगी।

मालेगाँव ही नहीं यह वचन दिया जाए की अन्य बम धमाकों को भी इंडियन मुजाहिदीन, लश्करे तय्यबा, होजी इत्यादि अर्थात इन जैसे मुस्लिम संघटनों से ही जोड़ा जाए।

मुंबई बम धमाकों के लिए जिस नए आतंकवादी संघटन दक्किन मुजाहिदीन का नाम सामने रखा गया है, इसी को सही मान लिया जाए, अब कोई और जांच न की जाए। इस संघटन को भारत का सब से खतरनाक आतंकवादी संघटन करार दिया जाए और इसे भारत में अलकाएदा की शाख तथा उस का नेता बिन लादेन को माना जाए........

नहीं, मुंबई के पंच तारा होटल ताज व ओबेरॉय में बम धमाके करने वाले आतंकवादियों ने इस प्रकार की कोई भी मांग सामने नहीं रखी है क्योंकि यह अभिनव भारत या किसी हिंदू आतंकवादी संघटन के नहीं थे, अगर होते तो शायद इस प्रकार की मांग होती। उन्होंने जो मांग सामने रखी है, उस के अनुसार दक्किन मुजाहिदीन के जो आतंकवादी भारत की विभिन्न जेलों में बंद हैं, उन्हें रिहा किया जाए, हैदराबाद को इस्लामी स्टेट स्वीकार किया जाए और कश्मीर से फौजों को वापस बुलाया जाए। अब सवाल यह पैदा होता है की यह दक्किन मुजाहिदीन हैं कौन? यह आतंकवादी संघटन अस्तित्व में कब आया और वह कौनसे आतंकवादी हैं जिन का सम्बन्ध दक्किन मुजाहिदीन से है? जिन्हें रिहा कराने के लिए उन आतंकवादियों ने 100 से अधिक निर्दोषों की जान ली और कई सौ व्यक्तियों को घायल कर दिया। अब तक के अनुभव के अनुसार तो जब किसी बहुत ही खतरनाक अपराधी की रिहाई उद्देश्य होती है तो उस का नाम क्या है और वह किस जेल में है और किस मामले में उसे बंद किया गया है, यह सभी बातें सामने आती हैं। पाठक और भारत सरकार को भली भाँती याद होगा की जब भारतीय जनता पार्टी की समर्थन वाली सरकार केन्द्र में थी और हिंदुस्तान का एक विमान अग्वा करके अफगानिस्तान ले जाया गया था और आतंकवादियों की मांग पूरी करने के लिए भारतीय जनता पार्टी के एक मंत्री काबुल गए थे, उस समय भी कदाचित एक व्यक्ति की मृत्यु सामने आई थी। विमान में फंसे शेष 100 से अधिक यात्रियों को कोई हानि नहीं पहुँची थी और कुशलता पूर्वक अपने अपने घरों को पहुँच गए थे, फिर क्या कारण है की दक्किन मुजाहिदीन के कुछ अज्ञात आतंकवादियों की रिहाई के लिए 100 से अधिक निर्दोषों की जान ली गई और कई सौ लोगों को घायल किया गया और पूरे मुंबई शहर और सम्पूर्ण भारत को आतंकित किया गया। अगर इतनी बड़ी घटना मूसाद, सी आई ऐ, अथवा आई एस आई जैसी खतरनाक संस्थाओं द्वारा की गई होती तो सोचा जा सकता था की हाँ उन का नेटवर्क इतना बड़ा हो सकता है। भयानक हथ्यार, हैण्ड ग्रेनेड और अन्य अग्नीय शास्त्र उन्हें प्राप्त हो सकते हैं। किंतु एक ऐसी संस्था जिसका पहले किसी ने नाम भी नहीं सुना, जिस का कोई वजूद था ही नहीं, जिस का ज़िक्र हमारी गुप्त एजेंसियों ने कभी किया ही नहीं, अचानक वह इतना बड़ा आतंकवादी हमला करने में कैसे सफल हुई? यह काम कुछ लोगों का तो हो नहीं सकता और न कुछ दिन की तैयारी से ही यह सम्भव है। निश्चय ही इस की रूप रेखा अत्यन्त चतुर मानसिकता के लोगों ने तैयार की होगी, जिस में सैंकडों प्रशिक्षित आतंकवादी सम्मिलित रहे होंगे और उन्हें प्रशिक्षण देने वाले अवश्य ही कुछ ऐसे निपुण लोग रहे होंगे जो आतंकवादी तैयार करने में निपुण समझे जाते हों। इन्हें इतनी बड़ी संख्या में इतने हथ्यार उपलब्ध कराने के लिए कोई बड़ा और संघटित नेटवर्क रहा होगा। धन की आव्यशकता को पूर्ण करने हेतु हवाला कारोबारियों से उनका सम्बन्ध और धन की उपलब्धता की व्यवस्था उन के पास रही होगी। इस भयानक योजना के लिए उन्हें ऐसे स्थान प्राप्त होंगे जहाँ बैठ कर वह ऐसी सभाएं कर सकें और भयानक योजनायें बना सकें और पूर्ण करने हेतु अलग अलग टीमों का गठन कर सकें की कौन रेलवे स्टेशन पर धमाका करेगा, कौनसी टीम होटल ताज को अपने कब्जे में लेगी और होटल ओबेरॉय में धमाका करने की ज़िम्मेदारी किस टीम की होगी? ऐ टी एस के प्रमुख हेमंत करकरे को कौन निशाना बनाएगा और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट माने जाने वाले विजय सालसकर और ऐ सी पी अशोक काम्टे किसका निशाना बनेंगे। यह कारनामा दक्किन मुजाहिदीन ने अंजाम दिया है, यह संदेश किस के द्वारा और किस प्रकार पहुँचाया जायेगा। अगर कुछ लोग इस आतंकवादी वारदात के बाद गिरफ्तार कर लिए गए तो वह क्या बयान देंगे और उन के बयान का स्क्रिप्ट कौन बनाएगा। और वारदात वाले स्थल पर पकड़े जाने वाले आतंकवादी कौन कौन होंगे, उन्हें कहाँ कहाँ से लाया जायेगा और क्या क्या बयान रटाया जायेगा? वह किस किस मुजरिम की निशानदही करेंगे और इस नेटवर्क में किस किस का सम्मिलित होना बताएँगे और किस को मास्टर माइंड बताया जाएगा? यह सब कोई मामूली कार्य नहीं है। कुछ लोगों द्वारा इसे किसी नामालूम संस्था द्वारा पूर्ण किया जाना विश्वसनीय नज़र नहीं आता।पाठकों को याद होगा हमने अपनी पिछली कड़ियों में इसी लेख के अंतर्गत कुछ ऐसे आरोपियों का इकबालिया बयान छापा था, जिन का कहना था की वे निर्दोष हैं, किंतु उन्हें लिखा हुआ बयान रटाया गया और उन्हें इस प्रकार से प्रताडित किया गया, जिनके सामने गुंतानामोबे और अबुघरीब जेल में किए जाने वाले अत्याचार भी कम नज़र आए। यहाँ तक की इस प्रताड़ना के लिए मूसाद के लोगों की सेवाएँ प्राप्त की गयीं। फिर इसे किस प्रकार असंभव करार दें की इस बड़ी घटना के लिए ऐसा ही बड़ा षड़यंत्र पहले से तैयार नहीं किया होगा।अब रहा सवाल दक्किन मुजाहिदीन का तो जिस प्रकार इंडियन मुजाहिदीन समय की आव्यशकता थी, आतंकवादी घटनाओं को किसी के सर थोपने की, मगर ऑपेरशन बटला हाउस का सत्य सामने आने के बाद और रोजनामा राष्ट्रिय सहारा के लगातार आन्दोलन द्वारा जब देश का राजनितिक परिदृश्य बदल गया और लगभग यह स्पष्ट हो गया की L-18, बटला हाउस का एनकाउंटर फर्जी था तो स्वयं ही इंडियन मुजाहिदीन का वजूद समाप्त हो गया। चूंकि इस का मास्टर माइंड आतिफ और साजिद को ही बताया गया था। अत: अब किसी भी आतंकवादी घटना के लिए एक नए नाम की आव्यशकता थी, इस लिए दक्किन मुजाहिदीन नामक एक नई आतंकवादी संस्था का वजूद सामने लाना पड़ा। भारत के इतिहास में यह प्रथम अवसर था जब भारत में हिंदू आतंकवादी संस्थाओं का इतना बड़ा नेटवर्क सामने आया। भारत के इतिहास में यह प्रथम अवसर था जब ऐ टी एस ने बम धमाकों से जुड़े आरोपियों के विरुद्ध इतने सारे साक्ष्य इकठ्ठा किए।भारत के इतिहास में यह प्रथम अवसर था जब आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार किए गए भयानक आरोपियों पर न्यायालय जाते समय फूल बरसाए गए और इब्न-7 टी वि पर भारतीय जनता पार्टी के एक सदस्य (पूर्व पुलिस अधिकारी) फूल फेंकने वालों का समर्थन करते दिखे और स्वीकार किया की अभी दोष साबित नहीं हुआ है और बहुत से लोग इन्हें अपने हीरो के रूप में देखते हैं।भारत के इतिहास में यह भी प्रथम अवसर है की राष्ट्रिय स्तर के एक राजनितिक दल के अध्यक्ष और स्वयं को भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखने वाले व्यक्ति ने आतंकवाद के आरोपियों का इस हद तक समर्थन किया हो और ऐ टी एस की कार्यप्रणाली पर प्रशन खड़े किए हों, न सिर्फ़ इसके आत्मविश्वास को तोडा हो अपितु अधिकारीयों को बदलने की बात भी कही हो। मुंबई ऐ टी एस प्रमुख हेमंत करकरे का इस आतंकवादी घटना में मारा जाना स्वयं अपने आप में बहुत बड़ा प्रशन है, जिस व्यक्ति के नेतृत्व में ऐ टी एस ने इतना बड़ा कारनामा अंजाम दिया हो, जिस के द्वारा वर्षों से मुसलमानों के दामन पर लगा दाग धुल सके, आख़िर कोई भी मुस्लमान इस व्यक्ति की जान क्यों लेना चाहेगा? और कोई भी मुसलामानों की संस्था भले ही वह आतंकवादी क्यों न हों, क्यों उसे मारना चाहेगी जो इस समय इतना बड़ा कारनामा अंजाम दे रहा हो? जिस का कोई दूसरा उदहारण भारत के इतिहास में नहीं मिलता। यह भी सोचना होगा की आख़िर इतने बड़े आतंकवादी घटना से किस को लाभ होगा और अब अगर ऐ टी एस की जांच में कोई रुकावट सामने आती है, जिस की संभावनाएं पैदा हो गयीं हैं तो किस को क्षति होगी? इस सम्बन्ध में हमारी जांच जारी रहेगी। मैं इस समय पाकिस्तान के शहर कराची में हूँ जहाँ आज अर्थात 27 नवम्बर को "मीडिया रेसौर्सस सेंटर" की ओर से आयोजित किए जाने वाले सम्मलेन के लिए आया था और इस लेख को लिखने और पाठकगन तक पहुँचने के लिए मीडिया बैंक पाकिस्तान की सहायता की अव्यशाकता पड़ी। अत: बहुत सम्भव है की अधिक विवरण पर आधारित इस लेख की आगामी कड़ी 29 नवम्बर को भारत वापसी पर ही सम्भव हो और यह भी हो सकता है की कल फिर इसी प्रकार बहुत व्यस्तता के बावजूद और पूर्वनियोजित कार्यकर्मों के मध्य इतना समय निकाल लिया जाए की कल पुन: आपकी सेवा में हाज़िर हो सकूँ!

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